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20130303

हरिवंशराय बच्चन की चर्चित कविता 'अग्निपथ' हर बार नया अर्थ देती है - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

अग्निपथ : बच्चन जी की कालजयी कविता
 प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

अग्निपथ कविता का अर्थ आत्म शक्ति संपन्न  मनुष्य का निर्माण करना है। हरिवंशराय बच्चन  की चर्चा  मधु काव्यों के लिए की जाती है, लेकिन उन्होंने कई रंगों की कविताएं लिखी हैं। इसी तरह की एक विलक्षण कविता है अग्निपथ, जो मनुष्य की अविराम संघर्ष चेतना और विजय यात्रा से रूबरू कराती है। 

जब से मनुष्य ने इस धरती पर अपनी आंखें खोली है, तब से वह कर्तव्य पथ पर चलते हुए अनेक प्रकार की बाधाओं से टकराता आ रहा है। उसकी राह में जब तब फूल के साथ कांटे भी आते रहे हैं। प्रकृति भी आसरा देने के साथ कई बार उसके सामने चुनौतियां खड़ी करती रही है। मनुष्य की इस अपरिहार्य यात्रा में यदि वह सदैव आश्रयों का ही अवलंब लेता रहा तो वह कभी आत्मशक्ति नहीं जगा पाएगा। बच्चन जी इस कविता के माध्यम से मनुष्य को आत्मशक्ति और आत्माभिमान से संपन्न बनने का आह्वान करते हैं। वे पलायन नहीं, प्रवृत्ति की ओर उन्मुख करते हैं। यह कविता हर युग, हर परिवेश, हर परिस्थिति में नया अर्थ देती है। सही अर्थों में यह एक कालजयी कविता है।


अग्निपथ के उद्गाता की जन्मशती स्मृति

अपने ढंग के अलबेले कवि हरिवंशराय बच्चन  की चर्चित कविता 'अग्निपथ' हर बार नया अर्थ देती है। 2007-2008 में एक साथ सात महान रचनाकारों - महादेवी वर्मा,  हजारीप्रसाद द्विवेदी,  हरिवंशराय बच्चन,  रामधारी सिंह दिनकर, नंददुलारे वाजपेयी, श्यामनारायण पांडे, जगन्नाथप्रसाद मिलिंद का शताब्दी वर्ष मनाने का सुअवसर मिला था। उसी मौके पर चित्रकार श्री अक्षय आमेरिया द्वारा आकल्पित पोस्टर का विमोचन कवि - आलोचक अशोक वाजपेयी एवं तत्कालीन कुलपति प्रो.रामराजेश मिश्र ने किया था। नीचे दिए गए चित्र में साथ में (दाएँ से ) संयोजक प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा, लोक कलाकार कृष्णा वर्मा , पूर्व कुलसचिव डॉ. एम. के. राय, डॉ. राकेश ढंड । पोस्टर के साथ कविता का आनंद लीजिये.।।

अग्निपथ

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छांह भी,
मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ

यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ

 - - - - - - - - - - - - - - - 

अमिताभ बच्चन की टिप्पणी के साथ उन्हीं की आवाज में अग्निपथ कविता सुनिए : 




बच्चन जी की एक और लोकप्रिय रचना 

तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए! / हरिवंशराय बच्चन 

मेरे वर्ण-वर्ण विशृंखल 
चरण-चरण भरमाए,
गूंज-गूंज कर मिटने वाले
मैनें गीत बनाये;
कूक हो गई हूक गगन की
कोकिल के कंठो पर,
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए!
जब-जब जग ने कर फैलाए,
मैनें कोष लुटाया,
रंक हुआ मैं निज निधि खोकर
जगती ने क्या पाया!
भेंट न जिसमें मैं कुछ खोऊं,
पर तुम सब कुछ पाओ,
तुम ले लो, मेरा दान अमर हो जाए!
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए!
सुन्दर और असुन्दर जग में
मैनें क्या न सराहा,
इतनी ममतामय दुनिया में
मैं केवल अनचाहा;
देखूं अब किसकी रुकती है
आ मुझ पर अभिलाषा,
तुम रख लो, मेरा मान अमर हो जाए!
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए!
दुख से जीवन बीता फिर भी
शेष अभी कुछ रहता,
जीवन की अंतिम घडियों में
भी तुमसे यह कहता
सुख की सांस पर होता
है अमरत्व निछावर,
तुम छू दो, मेरा प्राण अमर हो जाए!
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए!

हरिवंशराय बच्चन  (27 नवम्बर 1907 – 18 जनवरी 2003)


 पोस्टर का विमोचन करते हुए कवि - आलोचक श्री अशोक वाजपेयी एवं तत्कालीन कुलपति प्रो.रामराजेश मिश्र। साथ में (दाएँ से ) समन्वयक प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा, लोक कलाकार कृष्णा वर्मा , तत्कालीन कुलसचिव डॉ. एम. के. राय, डॉ. राकेश ढंड ।





साजन आ‌ए, सावन आया
हरिवंशराय बच्चन 

अब दिन बदले, घड़ियाँ बदलीं,
साजन आ‌ए, सावन आया।

धरती की जलती साँसों ने
मेरी साँसों में ताप भरा,
सरसी की छाती दरकी तो
कर घाव ग‌ई मुझपर गहरा,

है नियति-प्रकृति की ऋतु‌ओं में
संबंध कहीं कुछ अनजाना,
अब दिन बदले, घड़ियाँ बदलीं,
साजन आ‌ए, सावन आया।

तूफान उठा जब अंबर में
अंतर किसने झकझोर दिया,
मन के सौ बंद कपाटों को
क्षण भर के अंदर खोल दिया,

झोंका जब आया मधुवन में
प्रिय का संदेश लि‌ए आया-
ऐसी निकली ही धूप नहीं
जो साथ नहीं ला‌ई छाया।
अब दिन बदले, घड़ियाँ बदलीं,
साजन आ‌ए, सावन आया।

घन के आँगन से बिजली ने
जब नयनों से संकेत किया,
मेरी बे-होश-हवास पड़ी
आशा ने फिर से चेत किया,

मुरझाती लतिका पर को‌ई
जैसे पानी के छींटे दे,
ओ' फिर जीवन की साँसे ले
उसकी म्रियमाण-जली काया।
अब दिन बदले, घड़ियाँ बदलीं,
साजन आ‌ए, सावन आया।

रोमांच हु‌आ जब अवनी का
रोमांचित मेरे अंग हु‌ए,
जैसे जादू की लकड़ी से
को‌ई दोनों को संग छु‌ए,

सिंचित-सा कंठ पपीहे का
कोयल की बोली भीगी-सी,
रस-डूबा, स्वर में उतराया
यह गीत नया मैंने गाया ।
अब दिन बदले, घड़ियाँ बदलीं,
साजन आ‌ए, सावन आया।

20130207

विश्व हिन्दी संग्रहालय एवं अभिलेखन केन्द्र, उज्जैन



विश्व हिन्दी संग्रहालय एवं अभिलेखन केन्द्र : एक परिचय

प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिन्दी अध्ययनशाला में नव स्थापित विश्व हिन्दी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र में संग्रहकार्य,सर्वेक्षण एवं दस्तावेजीकरण जारी है। विश्वभाषा के रूप में प्रतिष्ठित हिन्दी के बहुकोणीय रेखांकन के लिए 2007 ई.  में स्थापित इस संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र में विगत एक हजार से अधिक वर्षों के हिन्दी साहित्य के महत्त्वपूर्ण पक्षों को प्रस्तुत करने के साथ ही साहित्यिक पत्रिकाओं के विशेषांक,देश-विदेश के विभिन्न भागों से प्रकाशित हिन्दी समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ, प्रकाशन सूचियॉं,अनुसंधान सूचनाएं एवं अन्य आधार सामग्री को सॅंजोया गया है।
        विक्रम विश्वविद्यालय,उज्जैन के विश्वहिन्दी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र के संस्थापक- समन्वयक प्रो.शैलेन्द्रकुमार शर्मा द्वारा परिकल्पित इस केंद्र में देशांतरीय हिन्दी साहित्य के साथ ही बसव समिति, बेंगलुरु,आंध्रप्रदेश हिन्दी अकादमी, हैदराबाद आदि संस्थाओं  द्वारा अर्पित साहित्य, स्त्री एवं दलित विमर्श , राजभाषा एवं प्रयोजनमूलक हिंदी से संबद्ध महत्त्वपूर्ण प्रकाशनों को संग्रहीत किया गया है। प्रदर्शनकारी एवं रूपंकर कलाओं, संस्कृत साहित्य से संबद्ध सामग्री, बालसाहित्य, पर्यटन साहित्य,स्वाधीनता आंदोलन पर केंद्रित साहित्य भी यहां संजोया गया है। हिन्दी की साहित्यिक एवं लघु पत्रिकाओं के दुर्लभ अंकों के  साथ ही वर्तमान में प्रकाशित हो रहीं पाँच  सौ से अधिक पत्र-पत्रिकाओं के अंक भी अवलोकनार्थ उपलब्ध हैं।   यहॉं स्थापित श्री गुरुनानक अध्ययन पीठ की दृष्टि से भारतीय भाषाओं में भक्ति साहित्य एवं गुरुनानक देव के साहित्य के साथ ही श्री गुरु ग्रंथ साहिब महत्त्वपूर्ण पुस्तकें तथा पत्र- पत्रिकाएं संजोयी गई हैं।
       अपने ढंग के इस प्रथम विश्व हिन्दी संग्रहालय में हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकारों पर एकाग्र वृत्तचित्रों के साथ ही लोकभाषा में निबद्ध गाथा, कथा तथा गीतों की आडियो-वीडियो, सीडी संजोयी गयी हैं, जिनका समय-समय पर प्रदर्शन किया जाता है।यहॉं प्रमुख साहित्यकारों के चित्र,हस्तलेख, पत्र आदि के डिजिटलीकरण की दिशा में कार्य जारी है। संग्रहालय में विभिन्न संस्थाओं साहित्यकारों एवं साहित्यरसिकों द्वारा भी महत्त्वपूर्ण सामग्री अर्पित की जा रही है। विश्व हिन्दी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र के लोक- संस्कृति प्रभाग में मालवी लोक-संस्कृति के  विविध पक्षों पर व्यापक कार्य जारी है। मालवी संस्कृति के समेकित रूपांकन एवं अभिलेखन की दिशा में विशेष प्रयास जारी हैं। यहॉं हिन्दी एवं मालवी के शीर्ष रचनाकारों के परिचयात्मक विवरण, कविता एवं चित्रों की दीर्घा संजोयी गयी है । चित्रावण, संजा, मांडणा, कठपुतली कला सहित मालवा क्षेत्र के विविध कलारूपों और भीली जनजातीय संस्कृति से सम्बद्ध महत्त्वपूर्ण सामग्री को भी इस संग्रहालय में संजोया गया है।हिन्दी और उसकी क्षेत्रीय बोलियों विशेषतः मालवी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के विविध पक्षों से संबद्ध साहित्य, लेख एवं सूचनाओं का दस्तावेजीकरण इस केंद्र में किया जा रहा है।भारत की प्रमुख लोकभाषाओं यथा- मालवी, बुन्देली, हाड़ौती, मेवाडी, मारवाडी, भोजपुरी, हरियाणवी, कन्नौजी, कनपुरिया, अवधी,  ब्रजभाषा, निमाडी, भीली, भिलाली, बारेली, सहरिया, गोंडी जैसी बोलियों के अभिलेखन की दिशा में भी कार्य जारी है।
हाल के दशकों में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में एक साथ कई दिशाओं में शोध कार्य हुआ है, जिनमें हिन्दी भाषा-साहित्य एवं संस्कृति के विविध आयामों के साथ ही हिन्दी कम्प्यूटिंग,वेब पत्रकारिता, दृश्य जनसंचार-माध्यम,मशीनी अनुवाद, राजभाषा हिन्दी आदि के अधुनातन संदर्भ उल्लेखनीय हैं। यहॉं विश्वभाषा हिन्दी के साथ ही लोकभाषा मालवी के साहित्य एवं संस्कृति को लेकर महत्त्वपूर्ण काम  हुआ है और आज भी जारी हैं। यहॉं स्थापित मालवी लोक साहित्य एवं संस्कृति केंद्र के अंतर्गत मालवी और उसकी उपबोलियों-सोंधवाड़ी, रजवाडी, दशोरी, उमठवाडी, निमाडी आदि पर महत्त्वपूर्ण कार्य हुआ है। यहॉं स्थापित भारतीय लोक एवं जनजातीय संस्कृति केंद्र के अंतर्गत बुन्देली, हाडौती, मेवाडी, भोजपुरी, हरियाणवी, अवधी, ब्रजभाषा, निमाडी, भीली, बारेली, सहरिया, गोंडी आदि पर भी उल्लेखनीय कार्य हुआ है। मालवी लोक-संस्कृति के विविध पक्षों, यथा-व्रत पर्व उत्सव पर केंद्रित लोक साहित्य, लोकदेवता, साहित्य, पर्यावरण, शृंगारपरक लोकगीत, हीड काव्य, माच परम्परा, संजा पर्व, चित्रावण, मांडणा, विरद बखाण, गाथा साहित्य, लोकोक्ति आदि पर भी महत्त्वपूर्ण अनुसंधान एवं अभिलेखन जारी है। हिन्दी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन हिन्दी के साथ ही भारत की विविध बोलियों के लोक-साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में कार्य के लिए कृत- संकल्पित है। इसदिशा में रचनात्मक सुझावों का सदैव स्वागत रहेगा। इस प्रथम विश्व हिन्दी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र के समुचित विकास की दिशा में संभावनाओं के द्वार खुले हुए हैं। इस हेतु देश-विदेश की अकादमिक संस्थाओं, साहित्यकारों तथा विद्वानों से सहयोग का अनुरोध है।

प्रो. डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा
संस्थापक-समन्वयक
विश्व हिन्दी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र
हिन्दी अध्ययनशाला                      
 विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

[म.प्र.] भारत


संग्रहालय का अवलोकन करते हुए अशोक वाजपेयी 
अशोक वाजपेयी को संग्रहालय का अवलोकन कराते हुए
डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा


संग्रहालय का अवलोकन करते हुए अशोक चक्रधर 
अशोक चक्रधर को संग्रहालय का अवलोकन कराते हुए
डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा 







सृजन संस्कार वर्ष 2007-08:
एक शताब्दी हिन्दी के सात स्वरों की
 के अवसर पर
जारी   पोस्टर
             

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