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20201130

गुरु नानक : सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Guru Nanak : Social - Cultural Context - Prof. Shailendra Kumar Sharma

अखिल विश्व के प्रति उत्कट अनुराग निहित है गुरु नानक  की वाणी में  – प्रो शर्मा 

गुरु नानक देव जी : सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी 

   

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा गुरु नानक देव जी : सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश - दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के विद्वान वक्ताओं और साहित्यकारों ने भाग लिया।  कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि सरदार जसवंत सिंह अमन, लुधियाना, प्रो हरपालसिंह पन्नू, बठिंडा सरदार डॉ बलविंदरपाल सिंह, लुधियाना, पंजाब, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, पंजाब, डॉ शिवा लोहारिया जयपुर, डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली, साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉक्टर गरिमा गर्ग, चंडीगढ़, महासचिव डॉ प्रभु चौधरी एवं उपस्थित वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षाविद् डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की।







प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि गुरु नानक जी ने मानवीय जीवन से जुड़े अनेक व्यावहारिक सन्देश दिए हैं। उन्होंने गुरु नानक देव जी द्वारा दिए गए दस प्रमुख संदेशों का नॉर्वेजियन भाषा में अनुवाद प्रस्तुत किया।






मुख्य वक्ता प्रसिद्ध लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि विश्व संस्कृति को गुरु नानक देव जी की देन अद्वितीय है। उनका सामाजिक और सांस्कृतिक चिंतन गहरी आध्यात्मिक दृष्टि पर टिका है। उनकी वाणी के केंद्र में  परमात्मा की व्यापकता और  अखिल विश्व के प्रति उत्कट अनुराग अंतर्निहित है। इस संसार में सत्य एक ही है, उसका विभिन्न रूप और विधियों के माध्यम से अलग-अलग दर्शन और अलग-अलग वर्णन सदियों से किया जा रहा है। गुरु नानक जी उन सब के मध्य समन्वय का मार्ग सुझाते हैं। वे सभी पंथियों का आह्वान करते हैं कि एक बार मन को जीत लें तो सारा संसार जीता जा सकता है। उन्होंने न केवल व्यापक लोक समुदाय को प्रभावित किया, वरन उसे नए ढंग से जीने और दुनिया को देखने का नजरिया दिया। उनका मुख्य सन्देश है कि परमात्मा एक है, उसी ने हम सबको बनाया है। सभी मत, पंथ और संप्रदायों के अनुयायी एक ही परमात्मा की संतानें हैं। गुरु नानक जी परमात्म तत्त्व के साक्षात्कार के लिए भटकते हुए लोगों को सही राह दिखाते हैं। उन्होंने सभी पंथों के लोगों से बाह्याडंबरों को त्याग कर मूल्यों पर दृढ़ रहने की प्रेरणा दी। उनका मार्ग पलायन और निष्कर्म से परे गहरे दायित्वबोध का मार्ग है। संन्यास लेने भर से मुक्ति नहीं मिलती, वह तो स्वभाव की प्राप्ति से सम्भव है। स्वयं को पहचाने बगैर भ्रम की काई नहीं मिटेगी।




विशिष्ट अतिथि सरदार डॉ बलविंदरपाल सिंह, लुधियाना, पंजाब ने गुरु नानक देव की वाणी में निहित आर्थिक दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज दुनिया भर में लंगर चल रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि गुरु नानक जी ने बीस रुपये से जो पहली बार लंगर करवाया था, उसकी एफ डी इस तरह हुई थी कि आज भी वह लंगर जारी है। गुरु नानक जी की मान्यता है कि समस्त प्रकार के भौतिक संसाधन और बौद्धिक क्षमता ईश्वर द्वारा दिया गया उपहार है। दुनिया में प्राप्त सभी पदार्थ सभी के लिए हैं। गुरु नानक जी मानते हैं कि जरूरतमंद लोगों को केवल दान देने से लाभ नहीं होगा, वरन उन्हें कौशल सिखाया जाए, जिससे वे स्वयं धन उपार्जन कर सकें। वास्तविक रत्न और जवाहर बुद्धि में है, गुरु नानक जी ने इस बात पर बल दिया है। नानकदेव जी ने करतारपुर में स्वयं अपने हाथों से खेती की थी। कितनी भी तरक्की हो जाए, किंतु हम ईश्वर को न भूलें, यह गुरु नानक जी का संदेश है। गुरु नानक जी  निरपेक्ष गरीबी रखने वालों के साथ खड़े होने का आह्वान करते हैं। उन्होंने अनेक नए शहर बसाए, जो आर्थिक प्रगति में सहायक सिद्ध हुए।




लुधियाना, पंजाब के सरदार डॉ जसवंत सिंह अमन ने गुरु नानक देव जी के राजनीतिक विचारों पर व्याख्यान देते हुए कहा कि गुरु नानक जी के दौर में धर्म का स्वरूप विकृत हो गया था। नैतिकता के क्षरण के दौर में उन्होंने नई दिशा दिखाई। शासक और प्रशासक, प्रजा विरोधी रवैया अपनाए हुए थे। गुरु नानक जी परमेश्वर को सर्वोच्च शासक मानते हैं। उनके बिना संसार में कुछ भी नहीं है। वे शासकों में परमेश्वर के गुण चाहते हैं। वे प्रजा में भी ज्ञानयुक्त होने की अपेक्षा करते हैं। भ्रष्ट शासन व्यवस्था के लिए वे प्रजा को भी जिम्मेदार मानते हैं। गुरु नानक जी राजनीति को धर्म के अधीन रखते हैं, तभी अत्याचारों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।



अध्यक्षीय उद्बोधन में शिक्षाविद् डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि गुरु नानक जी के विचार अनेक संदर्भों में आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने सभी पंथों और धर्मों के लिए महत्वपूर्ण उपदेश दिए हैं। वे योगी, समाज सुधारक, उपदेशक और  देशभक्त थे। उनकी दृष्टि में मानव मात्र की सेवा सबसे बड़ी ईश्वर भक्ति है। संसार की प्रमुख समस्याओं के निराकरण के लिए नानक वाणी में कई महत्वपूर्ण संदेश मिलते हैं।





डॉ प्रवीण बाला, लुधियाना में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गुरु नानक जी ने संपूर्ण समाज को बाह्य आडंबर और भेदभाव से मुक्त किया। उन्होंने बाल्यकाल से ही अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया था। उनके जीवन से जुड़ी अनेक चमत्कारिक घटनाएं आज भी याद की जाती हैं। उनके संदेश तीन आधारों  पर टिके हैं कीरत करो, नाम जपो और लंगर छको।





समाजसेवी  डॉ. शिवा लोहारिया, जयपुर ने कहा कि समाज की आत्मनिर्भरता और आध्यात्मिक उन्नति के लिए गुरु नानक के संदेश अत्यंत प्रासंगिक हैं। उन्होंने तत्कालीन धर्म के उपदेशकों की सीमाएं बताईं और लोगों को सद्धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश दिया।



कार्यक्रम की संकल्पना और  संस्था का प्रतिवेदन  महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत किया। 





इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली एवं  साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी ने भी विचार व्यक्त किए। श्री वाजपेयी ने इंदौर क्षेत्र में स्थित विभिन्न गुरुद्वारों का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि गुरुद्वारों के माध्यम से अपूर्व शांति प्राप्त होती है।



प्रारंभ में संगीतमय गुरुवाणी अलका वर्मा  ने प्रस्तुत की। स्वागत भाषण साहित्यकार डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर ने दिया। अतिथि परिचय वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राजेंद्र साहिल, पटियाला ने दिया। 




अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में  संस्था की राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष डॉक्टर सुवर्णा यादव, मुंबई, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ आशीष नायक, रायपुर, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली, डॉ मधुकर देशमुख, नागपुर, डॉ रुपिंदर शर्मा, पटियाला, डॉ  रिधिमा जोशी, डॉ राजेंद्र कुमार सेन, भटिंडा, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉक्टर राजेंद्र साहिल, लुधियाना, डॉ राधा दुबे, जबलपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ श्वेता पंड्या, उज्जैन, श्रीराम सौराष्ट्रीय आदि सहित अनेक प्रतिभागियों ने भाग लिया।




अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद एवं डॉ राजेंद्र साहिल, लुधियाना ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ राजेंद्र कुमार सेन, भटिंडा ने किया।



























गुरुनानक जयंती पर स्वस्तिकामनाएँ




20201129

विक्रम का कालिदास विशेषांक | सम्पादक : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | The Vikram : Kalidas Special Number | Editor : Prof. Shailendrakumar Sharma

विक्रम का कालिदास विशेषांक | सम्पादक : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 

The Vikram : Kalidas Special Number Volume 19, 2020 Editor : Prof. Shailendrakumar Sharma

अस्मदीयं

महाकवि कालिदास भारत की सांस्कृतिक और वैचारिक अस्मिता के अनन्य चितेरे हैं। सदियों से चली आ रही निगमागम, पुराख्यान और शास्त्र परम्परा को उन्होंने नई अर्थवत्ता दी, वहीं लोक जीवन, राग - ऋतु और प्रकृति के मर्मस्पर्शी चित्रों को उकेरने में उनके जैसा कोई दूसरा समर्थ रचनाकार दिखाई नहीं देता। समाज में आ रहे परिवर्तन भी विश्वकवि के दृष्टिपथ में थे। मानव जीवन के मूल में परम्परा और परिवर्तन, पुरातनता और नवीनता के बीच असमाप्त अंतर्क्रिया जारी है। यही बात किसी भी क्षेत्र से जुड़े  अनुसन्धान और नवाचार पर भी लागू होती है। पुरातन और नवीन में से अधिक महत्त्वपूर्ण और उपादेय कौन है, यह हमारे विवेक पर निर्भर करता है। इसीलिए वे संकेत देते हैं -

पुराणमित्येव न साधु सर्वं न चापि काव्यं नवमित्यवद्यम्।

सन्त: परीक्ष्यान्यतरद्भजन्ते मूढ: परप्रत्ययनेयबुद्धि:॥

अर्थात् पुरानी होने से ही न तो सभी वस्तुएँ अच्छी होती हैं और न नयी होने से बुरी या हेय। विवेकशील व्यक्ति अपनी बुद्धि से परीक्षा करके श्रेष्ठतर वस्तु को अंगीकार कर लेते हैं और मूर्ख जन दूसरों द्वारा बताने पर ग्राह्य या अग्राह्य का निर्णय करते हैं। वर्तमान दौर में उनका यह कथन अत्यंत प्रासंगिक बना हुआ है।


https://drive.google.com/file/d/1k0qL7TEbj1tZV-Zeh-GeBD-l0Rc6c2L1/view?usp=drivesdk


Vikram Journal - Kalidasa Special Number Vol 19, 2020 | विक्रम शोध पत्रिका | कालिदास विशेषांक | Download PDF | पीडीएफ डाउनलोड करें : 

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Vikram Journal - Kalidasa Special Number Vol 19, 2020 pdf | विक्रम शोध पत्रिका | कालिदास विशेषांक

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सम्राट विक्रमादित्य की रत्नसभा के अनूठे रत्न के रूप में विख्यात महाकवि कालिदास (प्रथम शती ई. पू.) की पुण्य कर्मस्थली उज्जयिनी रही है। उन्होंने इस रम्य नगरी के अनेक स्थलों और जनजीवन का जीवंत अंकन किया है।  विशेष तौर पर शिप्रा और महाकालेश्वर मंदिर का वर्णन बड़े मनोयोग से किया है। उनके समय में यह मनोरम नगरी अपार वैभव और सौंदर्य से मंडित थी। इसीलिए वे इसे स्वर्ग के कांतिमान खण्ड के रूप में चिह्नित करते हैं- 'दिवः कान्तिमत्खण्डमेकम्‌'। 

महाकवि कालिदास की समर्चना में मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित अखिल भारतीय कालिदास समारोह राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध महोत्सव है, जिसके अंतर्गत कालिदासीय अध्ययन को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से गुणवत्तापूर्ण शोधपत्रों के लिए अनुसन्धानकर्ताओं को पुरस्कृत किया जाता है। विगत दो समारोहों में विक्रम कालिदास पुरस्कारों से अलंकृत शोधपत्रों का प्रकाशन विक्रम विश्वविद्यालय की शोध पत्रिका विक्रम के कालिदास विशेषांक में करते हुए हमें गौरव की अनुभूति हो रही है। 


महाकवि कालिदास का साहित्य उनकी सूक्ष्म अवलोकन दृष्टि और बहुज्ञता को प्रमाणित करता है। इस पत्रिका में समाहित एक शोध पत्र में श्री शशिकांत द्विवेदी ने कालिदास साहित्य में निरूपित योग दर्शन  की सम्यक् मीमांसा की है। डॉ लक्ष्मी मिश्रा ने कालिदास के रूपकों में आयुर्विज्ञान के संदर्भों को विवेचना का विषय बनाया है। डॉक्टर चंद्र भूषण झा ने राष्ट्र के विषय में कालिदास की अवधारणा का सूक्ष्म विश्लेषण  किया है। डॉ डॉली जैन ने महाकवि कालिदास के काव्य में प्रयुक्त उपमाओं के पौराणिक आधारों का गहन विश्लेषण अपने शोध पत्र में किया है। डॉक्टर योगिनी एच व्यास ने रघुवंश की सीता देहली दीप कल भी - आज भी के माध्यम से महाकवि की उदात्त दृष्टि का निरूपण किया है। 

डॉ रेणु बाला ने अभिज्ञानशाकुंतल के विशेष संदर्भ में कालिदास की अपृथग्यत्ननिर्वर्त्य  अलंकार योजना का समुचित विश्लेषण किया है। इसी प्रकार डॉ सरोज कौशल ने अभिज्ञानशाकुंतलम् के विशेष संदर्भ में महाकवि कालिदास के भाषिक सौंदर्य की पड़ताल की है। डॉ चंद्रकला आर कौंडी ने अपने शोध पत्र के माध्यम से तर्कपूर्ण ढंग से यह सिद्ध किया है कि महाकवि कालिदास के काव्य में निहित दोष सूक्ष्मता से विचार करने पर दोषहीन दिखाई देते हैं। 

विक्रम शोध पत्रिका का यह विशेष अंक इस आशा के साथ समर्पित है कि कालिदासीय अध्ययन, अनुसंधान और नवाचार की परंपरा निरंतर गतिशील बनी रहेगी।


विमोचन : अखिल भारतीय कालिदास समारोह के समापन अवसर पर इस शोध पत्रिका का विमोचन संपन्न हुआ।






प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

सचिव

कालिदास समिति

आचार्य एवं विभागाध्यक्ष

हिंदी अध्ययनशाला

कुलानुशासक

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन


20201124

अखिल भारतीय कालिदास समारोह

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2020

मध्यप्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन का संयुक्त आयोजन

आमंत्रण पत्र : डाउनलोड करें PDF 

https://drive.google.com/file/d/1hbrXLvcu24yt__ozJcDfLhCeW-5noBcN/view?usp=drivesdk










सारस्वत आयोजन


राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी


सुधी प्राध्यापक / शिक्षाविद् / शोधकर्ता कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र प्रस्तुति के लिए सादर आमंत्रित हैं।

दिनांक :  26 एवं 27 नवंबर 2020 

प्रतिदिन - प्रातः 10 : 00 बजे

स्थान : अभिरंग नाट्यगृह, कालिदास संस्कृत अकादमी विश्वविद्यालय मार्ग, उज्जैन

पंजीयन के लिए संपर्क :

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

सचिव

कालिदास समिति

विक्रम विश्वविद्यालय

सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान 

देवास मार्ग, उज्जैन


ईमेल :

shailendrakumarsharmaprof@gmail.com

मो. 9826047765 

मो. 7089513740


सांस्कृतिक कार्यक्रम



गढ़कालिका पर वागर्चन की विधि सम्पन्न


अ.भा. कालिदास समारोह के अवसर पर प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी प्रातः 10 बजे वागर्चन की विधि सन्त सुन्दरदास सेवा संस्थान एवं युग निर्माण समिति उज्जैन के सहकार से सम्पन्न हुई। इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.अखिलेश कुमार पाण्डेय, पूर्व कुलपति प्रो.बालकृष्ण शर्मा, कालिदास समिति के सचिव प्रो.शैलेन्द्रकुमार शर्मा, प्रो.तुलसीदास परोहा, अकादमी की प्रभारी निदेशक श्रीमती प्रतिभा दवे, उपनिदेशक डॉ.योगेश्वरी फिरोजिया, डॉ.पीयूष त्रिपाठी, डॉ.रमेश शुक्ल, श्री सत्यनारायण नाटानी, श्री मोहन खंडेलवाल मुकुल, श्री आशीष खंडेलवाल आदि गणमान्यजनों ने देवी का पूजन एवं स्तुति की। विद्वानों का स्वागत श्री मोहन खंडेलवाल मुकुल ने किया। धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम समन्वयक श्री राजेन्द्र अवस्थी ने किया।





















 









कलश यात्रा एवं मंगल घट स्थापना के साथ कालिदास समारोह की शुरुआत

तीन दिवसीय अखिल भारतीय कालिदास समारोह देव प्रबोधिनी एकादशी (25 नवंबर) से प्रारंभ होगा। उद्घाटन कालिदास संस्कृत अकादमी के पं. सूर्यनारायण व्यास संकुल हॉल में शाम 4 बजे बतौर मुख्य अतिथि प्रदेश की संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर करेंगी। अध्यक्षता उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव करेंगे। पहले दिन कालिदास साहित्य में वर्णित नायिकाओं पर आधारित संस्कृत नाटक दीपशिखा का मंचन सतीश दवे के निर्देशन में होगा। दूसरे दिन शर्मा शर्मा के निर्देशन में हिंदी नाटक मालविकाग्निमित्र और तीसरे दिन प्रज्ञा गढ़वाल के निर्देशन में मालवी नृत्यनाटिका ऋतुसंहार का मंचन होगा। ये तीनों प्रस्तुतियां शाम 7 बजे से पं. सूर्यनारायण व्यास संकुल में होगी।


उद्घाटन से एक दिन पहले अकादमी ने रामघाट पर कलश पूजन किया और फिर प्रतीकात्मक यात्रा निकाल कलश को कालिदास अकादमी में स्थापित किया। विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अखिलेशकुमार पांडेय, कालिदास समिति के सचिव प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा, अकादमी की प्रभारी निदेशक प्रतिभा दवे, एसडीएम राकेशमोहन त्रिपाठी, नायब तहसीलदार भूमिका जैन, रूप पमनानी, ओम जैन उपस्थित थे। इस अवसर पर विधायक पारस जैन ने ज्योतिषविद् पं. आनंदशंकर व्यास का सम्मान किया। पं. व्यास ने कहा कि समारोह का मूल उद्देश्य संपूर्ण विश्व में संस्कृत संबंधी कार्य को एक मंच पर लाना है। पूर्व में महाकाल मंदिर और योगेश्वर टेकरी से मेघदूत के श्लोकों का प्रसारण होता था, वह दोबारा शुरू किया जाना चाहिए।


समारोह अंतर्गत मंगलवार शाम पं. सूर्यनारायण व्यास संकुल हॉल में नांदी कार्यक्रम अंतर्गत उज्जैन के नगाड़ा वादक नरेंद्र कुशवाह और लोक गायक सुंदरलाल मालवीय ने साथी कलाकारों के साथ प्रस्तुति दी। कार्यक्रम कोविड-19 गाइडलाइन पालन करते हुए किया गया। बताया कि कालिदास समारोह के उद्घाटन के साथ राष्ट्रीय चित्र एवं मूर्तिशिल्प कला की प्रदर्शनी का उद्घाटन भी होगा। ये प्रदर्शनी 1 दिसंबर तक सुबह 10 से रात 8 बजे तक लोग देख सकेंगे। इस प्रदर्शनी का अवलोकन यू-ट्यूब चैनल के माध्यम से भी किया जा सकेगा। समारोह के तीनों दिन अभिरंग नाट्यगृह में राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी भी होगी। 















कालिदास समारोह के संदर्भ में प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष 24 नवम्बर को प्रतीकात्मक रूप में कलश यात्रा के संदर्भ में भगवती शिप्रा का पूजन एवं मंगल कलश का पूजन प्रातः 9 बजे शिप्रा तट रामघाट पर किया गया। वहां से कलश लेकर भगवान महाकाल को प्रणाम करते हुए अकादमी में मंगल कलश की स्थापना की गई। इस अवसर पर जनप्रतिनिधि, प्रशासकीय अधिकारी, समाजसेवी एवं आयोजन के अधिकारियों की गरिमामयी उपस्थिति रही।












                                                                 



नान्दी के अंतर्गत हुई सांस्कृतिक प्रस्तुतियां


कालिदास समारोह शुभारंभ की पूर्व संध्या पर नांदी के अंतर्गत लोक गायक श्री सुंदर लाल मालवीय और उनके समूह द्वारा निर्गुणी भजनों की प्रस्तुति की गई। नगाड़ा सम्राट श्री नरेंद्र सिंह कुशवाहा एवं समूह द्वारा ताल वाद्य वादन किया गया।

महाकवि कालिदास : वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में समग्र दृष्टि - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

काल की सीमा से नहीं बंधते हैं महाकवि कालिदास 

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महाकवि कालिदास की समग्र दृष्टि पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न   


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में महाकवि कालिदास की समग्र दृष्टि पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश - दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ वक्ताओं और साहित्यकारों ने भाग लिया।  कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के पूर्व कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा थे। विशिष्ट वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, डॉ कौशल किशोर पांडेय, इंदौर, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महासचिव डॉ प्रभु चौधरी एवं उपस्थित वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन ने की। यह संगोष्ठी अखिल भारतीय कालिदास समारोह की पूर्व पीठिका के रूप में आयोजित की गई थी।









संगोष्ठी को संबोधित करते हुए पूर्व कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि महाकवि कालिदास अद्वितीय महाकवि हैं। टीकाकारों और समीक्षकों ने महाकवि की प्रशंसा करते हुए उनके साहित्य की अपार संभावनाओं की ओर संकेत किया है। महाकवि कालिदास का काव्य श्रेष्ठ बुद्धि वाले लोगों द्वारा अनुभवगम्य है। इसलिए उसकी व्याख्या या आस्वाद कोई सामान्य व्यक्ति नहीं ले सकता। भगवान विष्णु का विराट स्वरूप हर कोई नहीं देख सकता, केवल उनकी कृपा से अर्जुन ही उसका साक्षात्कार कर सके थे। इसी प्रकार कालिदास अर्थ गाम्भीर्य के कवि हैं। उन्हें कोई सामान्य व्यक्ति ग्रहण नहीं कर सकता। कालिदास दिव्य कवि हैं, वे काल की सीमा से नहीं बंधते हैं। वे जितने अपने समय में प्रासंगिक थे, उससे अधिक आज प्रासंगिक हैं। कालिदास का संकेत है कि कोई शस्त्र या शक्ति का प्रयोग तभी किया जाए, जब निर्बलों की रक्षा करनी हो। वे संकेत देते हैं कि जब आप किसी से परिचय बनाते हैं और बिना परीक्षण के प्रगाढ़ सम्बन्ध बना लेते हैं, इस प्रकार के अज्ञात हृदय से मित्रता श्रेयस्कर नहीं होती। उनके काव्य में जनमंगल की भावना है। उन्होंने अपने नाटकों के भरतवाक्य में विश्व मंगल की कामना की है। हम दुर्गम स्थितियों से मुक्त हो जाएं और सभी लोग सभी स्थानों पर प्रसन्न हों, यह उदात्त भावना कालिदास की है।



विशिष्ट वक्ता लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि महाकवि कालिदास जीवन की समग्रता के कवि हैं। उनका साहित्य हमारी शाश्वत मूल्य दृष्टि, जातीय स्मृतियों, परंपराओं और इतिहास के अनेक महत्वपूर्ण पहलुओं से साक्षात्कार का अवसर देता है। क्या व्यक्ति और परिवार जीवन, क्या समाज जीवन, क्या राष्ट्र जीवन और क्या विश्व जीवन -  महाकवि की दृष्टि से कुछ भी ओझल नहीं है। इसीलिए दार्शनिक एवं काव्यशास्त्री आचार्य आनंदवर्धन की निगाह जब कालिदास पर जाती है तो उन्हें प्रतीत होता है कि इस संसार में अब तक की जो विचित्र कवि परंपरा है, उसमें कालिदास जैसे दो या तीन या पांच कवियों की ही गणना की जा सकती है। रघुवंश में महाकवि ने रघुकुल के राजाओं की महिमा एवं उनके वैशिष्ट्य का वर्णन करने के बहाने केवल राजन्य वर्ग ही नहीं, प्राणिमात्र के लिए सार्वभौमिक प्रादर्शों को प्रस्तुत किया हैं। उन्होंने भारत के भूगोल और निसर्ग वैभव का मनोरम चित्र उकेरा है, जो उनकी व्यापक दृष्टि का परिचायक है। वे भूमि के साथ निवासी और संस्कृति के चितेरे हैं और इन तीनों के समुच्चय से ही राष्ट्र बनता है। कालिदास हिमालय से लेकर विंध्य और वहां से लेकर सागर पर्यंत अविच्छिन्न राष्ट्रीयता के संपोषक हैं। दिलीप, रघु, दशरथ और राम जैसे शासक उनके लिए आदर्श हैं, जो सदैव  प्रजाहित में  लीन रहते हैं और राष्ट्र को भय, अनाचार, आधि - व्याधि रहित बनाए रखते हैं। परोपकार, तप और त्याग में लीन चरित्रों के सरस अंकन से कालिदास की रचनाओं में सबका मन रम जाता है।




कार्यक्रम में प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नार्वे ने नॉर्वेजियन भाषा में कालिदास कृत मेघदूत के चुनिंदा का अंशों का अनुवाद प्रस्तुत किया। उनका यह अनुवाद स्कैंडिनेवियन भाषाओं के मध्य कालिदास साहित्य का प्रथम अनुवाद है।




विशिष्ट अतिथि संस्कृतविद डॉ कौशल किशोर पांडेय, इंदौर ने कहा कि कालिदास की दृष्टि में पार्वती और परमेश्वर दोनों परस्पर संपृक्त हैं। उनकी दृष्टि में गृहिणी सखी भी है। यह बात आज भी प्रासंगिक है। कालिदास संकेत करते हैं कि शरीर धर्म के लिए प्रथम साधन है।  यह बात कोरोना संकट के दौर में स्पष्ट रूप से सिद्ध हो गई है। योगसाधना और गौ सेवा की उपादेयता को उन्होंने सदियों पहले प्रतिपादित किया था।                                                        


कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्था अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि वर्तमान का चित्र सभी कविगण करते हैं, किंतु आगामी काल की स्थितियों को जो प्रत्यक्ष कर देता है, वह कालजयी कवि होता है। कालिदास इसी प्रकार के कालजयी कवि हैं। रवींद्रनाथ टैगोर, दिनकर आदि की कविताओं पर कालिदास का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। महाकवि कालिदास की कविता विराट वेदना को प्रत्यक्ष करती है। उनकी कविताओं को पढ़कर प्रत्येक व्यक्ति का मन नर्तन करने लग जाता है।






वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि महाकवि कालिदास का उज्जयिनी से गहरा संबंध है। उनके जैसा उपमा का कोई दूसरा कवि नहीं हुआ।





संस्था की कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुम्बई ने कहा कि कालिदास भारतीय संस्कृति के जनकवि हैं। उनके काव्य में उदात्त नैतिकता और मर्यादा का अंकन हुआ है। कालिदास का कहना है कि सद् कर्मों से मानव भी देवता हो सकता है, किंतु असद् कर्मों से देवता को भी धरती पर आना पड़ता है।


प्रारंभ में संगोष्ठी की पूर्व पीठिका शिक्षाविद डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने प्रस्तुत की।





संगोष्ठी की संकल्पना, संस्था की गतिविधियों का प्रतिवेदन एवं अतिथि परिचय राष्ट्रीय महासचिव श्री प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत किया। संस्था का परिचय डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर ने दिया।




सरस्वती वंदना साहित्यकार डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने की। स्वागत भाषण डॉ लता जोशी, मुंबई ने दिया।


कार्यक्रम में डॉक्टर मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉक्टर लता जोशी, मुंबई, डॉ आशीष नायक, रायपुर, डॉ मनीषा सिंह, मुंबई, डॉक्टर ममता झा, मुंबई, डॉक्टर रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, प्रो बीएल आच्छा, चेन्नई, डॉक्टर संगीता पाल, कच्छ, डॉ समीर सैयद, डॉ ललिता घोड़के, डॉ अनिल काले, डॉ श्वेता पंड्या, उज्जैन, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ दर्शनसिंह रावत, जयपुर आदि सहित अनेक प्रतिभागी उपस्थित थे। 


कार्यक्रम का संचालन संस्था की डॉ मनीषा सिंह, मुंबई ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया।














 

































  


महाकवि कालिदास की समर्चना में अखिल भारतीय कालिदास समारोह का आयोजन प्रतिवर्ष देव प्रबोधिनी एकादशी से  किया जाता है।



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