सुरेश चंद्र शुक्ल कृत लॉकडाउन : कोरोना काल पर दुनिया का प्रथम काव्य संग्रह - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा
नॉर्वेवासी वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' की कृति लॉकडाउन दुनिया की किसी भी भाषा में कोरोना काल पर केंद्रित प्रथम प्रकाशित काव्य संग्रह है, जिसमें इस अभूतपूर्व वैश्विक संकट के बीच व्यापक मानवीय चिंताओं, संघर्ष और सरोकारों को वाणी मिली है।
श्री शुक्ल ने विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के दौर में मानवीय रिश्तों और संवेदनाओं को तहस-नहस होते हुए देखा है। इस अभूतपूर्व महामारी की रोकथाम के उपायों में लॉकडाउन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। लॉकडाउन ने इस महामारी के संक्रमण से तो मानव सभ्यता को बचाया है, लेकिन सामाजिक, आर्थिक, मानसिक, सांस्कृतिक परिवेश पर गहरा असर भी छोड़ा है। इन्हीं की काव्यमयी अभिव्यक्तियों के साथ उनका नया कविता संग्रह लॉकडाउन आया है।
शुक्ल जी ने लॉकडाउन, कोरोना के डर से, कोरेण्टाइन में, लॉकडाउन में मां आदि शीर्षक सहित अनेक कविताओं में इस अभूतपूर्व संकट से जुड़े कई पहलुओं की मार्मिक अभिव्यक्ति की है। वे इस दौर में जहाँ दुनिया के तमाम हिस्सों में पलायन को विवश प्रवासी मजदूरों की पीड़ा और संघर्ष का आंखों देखा बयान प्रस्तुत करते हैं, वहीं गाँव - घर की ओर लौटते श्रमिकों को आशा और उत्साह का संदेश भी देते हैं।
संग्रह की प्रभावशाली कविताओं में एक लॉकडाउन 2 के माध्यम से कवि सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ ने कोविड - 19 से उपजे वैश्विक संकट के दौर में मानवीय त्रासदी के बीच सरकारों के संकट और पूंजीवाद के नृशंस चेहरे को दिखाया है –
दुनिया में कोरोना:
अमेरिका में पचास हजार चढ़ गये
कोरोना की सूली पर
दो मीटर की आपसी दूरी पड़ गयी कम
जनता और सरकार के बीच बढ़ी दूरी।
× × × ×
भरे हुए सरकारी अनाज के गोदामों को
भूखी जनता का धैर्य चिढ़ा रहा।
जनता की भुखमरी पर कमा रहा कार्पोरेट जगत
सबसे ज्यादा अमीर की सूची में
नाम दर्ज करा रहा।
जैसे सरकार को अपनी
अंगुली में नचा रहा?
कविवर सुरेश चंद्र शुक्ल ने लॉक डाउन के वैश्विक संकट को लेकर जो कुछ अनुभव किया है, उन्हें सहज – तरल अंदाज में कविताओं में पिरोया है। वे जब यह देखते हैं कि देश आर्थिक गतिविधियों में रीढ़ की हड्डी बने हुए प्रवासी मजदूर लाठियाँ खाने को मजबूर हैं, तब उनकी आत्मा कराह उठती है। उनकी कविता ये प्रवासी मजदूर – 3 की चंद पंक्तियाँ देखिए :
जीने के लिए कर रहे प्रदर्शन,
ये प्रवासी मजदूर।
अहिंसक मजदूरों को गिरफ्तार किया
उन भूखों पर लाठी भांजी
गंभीर दफा में लगे मुकदमे,
क्यों तोड़ रहे अनुशासन
ये प्रवासी मजदूर?
यदि गाँधी बाबा होते तो
लड़ते उनके मुकदमे।
और समझाते अनशन करके,
जनता का हो शासन?
तब समझाते बापू,
बड़े काम के, रीढ़ देश की
ये प्रवासी मजदूर।
संग्रह की प्रभावशाली कविताओं में एक लॉकडाउन 2 के माध्यम से कवि सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ ने कोविड - 19 से उपजे वैश्विक संकट के दौर में मानवीय त्रासदी के बीच सरकारों के संकट और पूंजीवाद के नृशंस चेहरे को दिखाया है –
दुनिया में कोरोना:
अमेरिका में पचास हजार चढ़ गये
कोरोना की सूली पर
दो मीटर की आपसी दूरी पड़ गयी कम
जनता और सरकार के बीच बढ़ी दूरी।
× × × ×
भरे हुए सरकारी अनाज के गोदामों को
भूखी जनता का धैर्य चिढ़ा रहा।
जनता की भुखमरी पर कमा रहा कार्पोरेट जगत
सबसे ज्यादा अमीर की सूची में
नाम दर्ज करा रहा।
जैसे सरकार को अपनी
अंगुली में नचा रहा?
कविवर सुरेश चंद्र शुक्ल ने लॉक डाउन के वैश्विक संकट को लेकर जो कुछ अनुभव किया है, उन्हें सहज – तरल अंदाज में कविताओं में पिरोया है। वे जब यह देखते हैं कि देश आर्थिक गतिविधियों में रीढ़ की हड्डी बने हुए प्रवासी मजदूर लाठियाँ खाने को मजबूर हैं, तब उनकी आत्मा कराह उठती है। उनकी कविता ये प्रवासी मजदूर – 3 की चंद पंक्तियाँ देखिए :
जीने के लिए कर रहे प्रदर्शन,
ये प्रवासी मजदूर।
अहिंसक मजदूरों को गिरफ्तार किया
उन भूखों पर लाठी भांजी
गंभीर दफा में लगे मुकदमे,
क्यों तोड़ रहे अनुशासन
ये प्रवासी मजदूर?
यदि गाँधी बाबा होते तो
लड़ते उनके मुकदमे।
और समझाते अनशन करके,
जनता का हो शासन?
तब समझाते बापू,
बड़े काम के, रीढ़ देश की
ये प्रवासी मजदूर।
कोविड 19 के संक्रमण से उपजे संकट को वे मानवीय परीक्षा की घड़ी मानते हैं, जहाँ बेहद धैर्य की जरूरत है। फिर यह स्वयं को सिद्ध करने का मौका भी है। 'गाँवों को आदर्श बनाना है' शीर्षक कविता में रचनाकार का संकेत साफ है :
लॉक डाउन
एक संकट है,
उसे उम्मीद में
बदलने का।
मजदूर अपने गाँव आये हैं,
उनसे कौशल विकास
सीखना है।
श्रमिक बारात ले
वापस आये हैं
कारंटाइन में गाँव
बना जनवासा,
बच्चों को कौशल
सिखाओ तो,
कामगार हैं
प्रगति के दुर्वासा।
शुक्ल जी नार्वे में रहते हुए पिछले तीन से अधिक दशकों से प्रवासी भारतीयों के साथ संस्कृति कर्म, हिंदी भाषा और साहित्य के सम्प्रसार का महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। डॉ. शुक्ल ने नार्वे में हिंदी प्रचार - प्रसार के लिए अनेक कार्य किये हैं, जिनमें से नार्वे के विद्यालयों तथा विश्वविद्यालय में हिंदी के पठन पाठन और पारस्परिक अनुवाद की व्यवस्था का श्रेय मुख्य रूप से डॉ.शुक्ल को जाता है। वे लगातार साहित्यिक - सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से भारतीयता के मानबिंदुओं को लेकर गम्भीर प्रयास करते आ रहे हैं।
शुक्ल जी नार्वे में रहते हुए पिछले तीन से अधिक दशकों से प्रवासी भारतीयों के साथ संस्कृति कर्म, हिंदी भाषा और साहित्य के सम्प्रसार का महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। डॉ. शुक्ल ने नार्वे में हिंदी प्रचार - प्रसार के लिए अनेक कार्य किये हैं, जिनमें से नार्वे के विद्यालयों तथा विश्वविद्यालय में हिंदी के पठन पाठन और पारस्परिक अनुवाद की व्यवस्था का श्रेय मुख्य रूप से डॉ.शुक्ल को जाता है। वे लगातार साहित्यिक - सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से भारतीयता के मानबिंदुओं को लेकर गम्भीर प्रयास करते आ रहे हैं।
- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा Shailendrakumar Sharma
(लॉकडाउन काव्य संग्रह के प्राक्कथन से)
सुरेश चंद्र शुक्ल |
#लॉकडाउन कृति के लिए अनेक साधुवाद और स्वस्तिकामनाएँ Sharad Alok ji