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20200915

लोक एवं जनजातीय साहित्य और संस्कृति : सार्वभौमिक मानव मूल्य - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

लोक एवं जनजातीय संस्कृति का संरक्षण इस धरती के हित में है - प्रो. शर्मा

लोक एवं जनजातीय साहित्य और संस्कृति : सार्वभौमिक मानव मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी

संजा लोकोत्सव 2020 : अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ दुनिया के कई देशों की लोक संस्कृति पर विमर्श

देश की प्रतिष्ठित संस्था प्रतिकल्पा सांस्कृतिक संस्था, उज्जैन द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित संजा लोकोत्सव के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन रविवार को किया गया। यह संगोष्ठी लोक एवं जनजातीय साहित्य और संस्कृति : सार्वभौमिक जीवन मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में अभिकेंद्रित थी। संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। संगोष्ठी की अध्यक्षता चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं आईसीसीआर हिंदी चेयर, सुसु, चीन के पूर्व आचार्य डॉ नवीनचंद्र लोहनी ने की। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक , हिंदी विभागाध्यक्ष एवं लोक संस्कृतिविद् प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा तथा विशिष्ट अतिथि महात्मा गांधी संस्थान, मॉरीशस की वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ अलका धनपत एवं जनजातीय संस्कृति की अध्येता डॉ हीरा मीणा, नई दिल्ली थीं। संस्था की निदेशक डॉ पल्लवी किशन ने संजा लोकोत्सव एवं संगोष्ठी की संकल्पना और रूपरेखा पर प्रकाश डाला।








मुख्य अतिथि प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने संबोधित करते हुए कहा कि नॉर्वे में जनजातीय समुदाय के लोग भी बड़ी संख्या में रहते हैं। उत्तरी नॉर्वे में रहने वाले सामी जाति के लोगों की विशिष्ट भाषा है। सामी लोग एशियाई  मूल के हैं। नॉर्वे और रूस के उत्तरी क्षेत्र के जनजातीय समुदाय के लोगों ने देशों की राजनीतिक दूरी के बावजूद सरहदों के आर पार मानवीय रिश्ता बनाया हुआ है। उनका गहरा रिश्ता प्रकृति और जीव - जंतुओं के साथ बना हुआ है। सामी लोक संगीत आज भी जीवित है।









कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. नवीन चंद्र लोहनी ने कहा कि उत्तराखंड एवं कौरवी क्षेत्र में अनेक लोक और जनजातीय समुदायों के लोग रहते हैं, जिनकी विशिष्ट परम्पराएँ आज भी प्रासंगिक हैं। चीन में हक्का सहित कई जनजातीय समुदायों की संस्कृति के संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं। वहाँ की जनजातियों के प्राकृतिक वास स्थान को यूनेस्को ने विश्व की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में महत्त्व दिया है। चीन के दर्शन के अनुरूप लकड़ी के ये क्लस्टर बनाए गए हैं। चीन में अनेक प्रकार की चाय मिलती है, जिन्हें जनजातीय समुदाय के लोगों ने संरक्षित किया है। वहाँ की जनजातियां पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती हैं।








मुख्य वक्ता लोक संस्कृतिविद् प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि लोक एवं जनजातीय संस्कृति का संरक्षण और अंगीकार इस धरती के हित में है। मानवीय लोक संस्कृतियों में वैविध्य है, लेकिन वह अंतर बाहरी है। सभी को एक समान जीवन मूल्य आधार देते हैं। सत्य, शांति, अहिंसा, प्रेम, सह अस्तित्व और पर्यावरण संरक्षण जैसे सार्वभौमिक मानव मूल्यों और मानवीय संवेदनाओं का संदेश लोक और जनजातीय संस्कृतियों से मिलता है। संजा जैसे लोक पर्व हमारे व्यावहारिक और ब्रह्मांडीय जीवन को जोड़ते हैं। यह लोक पर्व मनुष्य और प्रकृति के सह अस्तित्व और मानवीय रिश्तों की ऊष्मा के साथ इस धरती के स्त्री पक्ष के सम्मान का सन्देश देता है। हमारे प्राकृतिक संसाधन छीजते जा रहे हैं। परस्पर प्रेम, सद्भाव और समरसता का संसार संकट में है। ऐसे में लोक और जनजातीय संस्कृति के मूल्य, जीवन दृष्टि, संवेदना और जीवन शैली इन संकटों का मुकाबला करने की सामर्थ्य देते हैं।







महात्मा गांधी संस्थान, मॉरीशस की वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ अलका धनपत ने कहा कि मॉरीशस के लोग अपनी संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए चिंतित हैं। सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण के लिए मॉरीशस वासी निरन्तर प्रयासरत हैं। गौवंश के प्रति गहरी निष्ठा मॉरीशस वासियों में है। मॉरीशस के लोक समुदाय सिद्ध करते हैं कि श्रेष्ठ संस्कार जीवन भर बने रहते हैं। उनकी जड़ें बहुत गहरी हैं। आज भी वहाँ पदयात्रा करते हुए कावड़ यात्रा निकाली जाती है। वर्षा की कामना के लिए भोजपुरी लोकगीत गाए जाते हैं। विवाह के मौके पर हरदी गीत गाए जाते हैं। मॉरीशस के लोगों में लोक संस्कृति अंदर तक रची - बसी है।




जनजातीय संस्कृति की अध्यक्षता डॉ. हीरा मीणा, नई दिल्ली ने कहा कि जनजातीय समुदायों ने सदियों से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया हुआ है। वे मानते हैं कि पूर्वज प्रकृति की रक्षा करते हुए वह धरोहर हमें देकर जाते हैं। इसलिए पुरखों के प्रति श्रद्धा का भाव जनजातीय समुदायों की विशेषता है। वे पुरखों को याद करते हुए पक्षियों और जीवों को भी बुलाते हैं।


संस्था के अध्यक्ष श्री गुलाब सिंह यादव, सचिव कुमार किशन एवं निदेशक डॉ पल्लवी किशन ने वेब पटल पर अतिथियों का स्वागत किया।


संगोष्ठी का संचालन डॉ श्वेता पंड्या ने किया एवं आभार प्रदर्शन संस्था के अध्यक्ष श्री गुलाबसिंह यादव ने किया।

अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का जीवंत प्रसारण प्रतिकल्पा सांस्कृतिक संस्था, उज्जैन के फेसबुक पेज पर किया गया, जिसमें देश - विदेश के सैकड़ों लोक संस्कृतिप्रेमियों, विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और साहित्यकारों ने सहभागिता की। 


20200912

देवनागरी विश्वनागरी के रूप में दुनिया को जोड़ सकती है - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

देवनागरी लिपि को लेकर आत्म गौरव का भाव जगाना होगा – प्रो. शर्मा 

आचार्य विनोबा भावे और सार्वदेशीय लिपि के रूप में देवनागरी पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न


प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा आचार्य विनोबा भावे और सार्वदेशीय लिपि के रूप में देवनागरी पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की मुख्य अतिथि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने की। यह संगोष्ठी आचार्य विनोबा भावे के 125 वें जयंती वर्ष के अवसर पर आयोजित की गई। 






मुख्य अतिथि डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य विनोबा भावे ने देवनागरी लिपि के प्रचार और संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी प्रेरणा से स्थापित नागरी लिपि परिषद देश की विभिन्न भाषाओं और बोलियों को लिपि के माध्यम से जोडने का कार्य कर रही है। परिषद द्वारा कोकबोरोक, कश्मीरी आदि सहित अनेक भाषा और  बोलियों को नागरी लिपि के माध्यम से लेखन के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में देवनागरी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है।




प्रमुख वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन ने कहा कि देवनागरी विश्वनागरी के रूप में दुनिया को जोड़ सकती है। इस लिपि में विश्व लिपि बनने की अपार संभावनाएं हैं। देवनागरी लिपि ध्वनि विज्ञान, लिपि विज्ञान, यंत्र विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी इन सभी दृष्टियों से उपयुक्त लिपि है। आचार्य विनोबा भावे  की संकल्पना थी कि देवनागरी लिपि के माध्यम से उत्तर एवं दक्षिण भारत की भाषाएं जुड़ें। लिपिविहीन लोक और जनजातीय भाषाओं के लिए देवनागरी का प्रयोग करने से राष्ट्रीय एवं भावात्मक एकता में अभिवृद्धि होगी। दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशियाई भाषाओं के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग सहज ही किया जा सकता है। साथ ही यूरोप एवं अन्य महाद्वीपों की भाषाओं को सीखने में देवनागरी सहायक सिद्ध हो सकती है। गांधी जी ने विभिन्न पुस्तकों को अपनी मूल भाषा के लिए प्रचलित लिपि के साथ देवनागरी लिपि में प्रकाशित करने का संदेश दिया था। हमें देवनागरी लिपि को लेकर आत्म गौरव का भाव जगाना होगा। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दौर में देवनागरी लिपि का सामर्थ्य सिद्ध हो गया है।






विशिष्ट अतिथि डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि विनोबा भावे महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे। उन्होंने भूदान आंदोलन के माध्यम से देश में परस्पर सद्भाव और समानता का संदेश दिया था। लिपि के संबंध में उनका संदेश है कि भारत की विभिन्न भाषाएं अपनी - अपनी लिपियों के साथ देवनागरी लिपि के माध्यम से भी लिखी जाएं। वे ही वादी नहीं, भी वादी थे। उन्होंने जय जगत का नारा बुलंद किया था, जो आज भी प्रासंगिक है। 




प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि नार्वे से प्रकाशित दो पत्रिकाएं नॉर्वेजियन और हिंदी दोनों भाषाओं में प्रकाशित की जाती हैं। इनमें नॉर्वेजियन भाषा की रचनाओं को देवनागरी लिपि के माध्यम से भी प्रकाशित किया जाएगा। देवनागरी लिपि के माध्यम से नॉर्वेजियन भाषा की वार्तालाप पुस्तिका एवं स्वयं शिक्षक का प्रकाशन जल्द किया जाएगा। भारत के विभिन्न भागों में फैले लोक और जनजातीय समुदायों की बोलियों को सुरक्षित रखने के लिए देवनागरी का प्रयोग किया जाना चाहिए। 




संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। स्वागत भाषण डॉ रश्मि चौबे ने दिया। 



कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए  साहित्यकार श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुम्बई ने कहा कि देवनागरी लिपि के माध्यम से विभिन्न भाषाओं को सीखना आसान होता है। भारतीय भाषाओं के लिए रोमन लिपि के प्रयोग की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए व्यापक जागरूकता और स्वाभिमान जगाने की आवश्यकता है।  

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कार्यक्रम में साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी इंदौर ने डॉ प्रभु चौधरी की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक देवनागरी लिपि : तब से अब तक की समीक्षा प्रस्तुत की। 




संगोष्ठी में डॉ लता जोशी, मुंबई, मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ भरत शेणकर, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ वी के मिश्रा, रामेश्वर शर्मा, श्री अनिल ओझा, इंदौर, गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, दीपिका सुतोदिया, गुवाहाटी, प्रभा बैरागी, श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली, शम्भू पंवार, झुंझुनूं,  रागिनी शर्मा, इंदौर, डॉ शैल चंद्रा, डॉ ममता झा, दीपांकर तालुकदार, अशोक जाधव, सपन दहातोंडे, जी डी अग्रवाल, विनोद विश्वकर्मा, गुरुमूर्ति, अरुणा शुक्ला, ज्योति सिंह, श्वेता गुप्ता, दीपंकर दत्ता, सुरैया शेख, आलोक कुमार सिंह, संदीप कुमार, प्रियंका घिल्डियाल, जब्बार शेख, नयन दास, श्री सुंदरलाल जोशी, नागदा, राम शर्मा, मनावर, मनीषा सिंह, अनुराधा अच्छावन, समीर सैयद, डॉ श्वेता पंड्या, डॉ कुमार गौरव, विजय शर्मा, पंढरीनाथ देवले, विमला रावतले आदि सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।











प्रारंभ में सरस्वती वंदना ज्योति तिवारी ने की।

कार्यक्रम का संचालन सविता नागरे ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ मनीषा शर्मा, अमरकंटक ने किया।


20200910

भारतीय संस्कृति और साहित्य में मातृ तत्त्व - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

मातृ तत्त्व की अपार महिमा का निरूपण हुआ है संस्कृति और साहित्य में – प्रो. शर्मा 

भारतीय संस्कृति और साहित्य में मातृ तत्त्व पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी

प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा भारतीय संस्कृति और साहित्य में मातृ तत्त्व पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। प्रमुख वक्ता साहित्यकार श्री त्रिपुरारिलाल शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन ने की। 






प्रमुख अतिथि लेखक एवं आलोचक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन ने कहा कि भारतीय संस्कृति, परम्परा और साहित्य में मातृ तत्त्व की अपार महिमा का निरूपण हुआ है। शास्त्र और लोक दोनों ने ही मातृ तत्व को अनेक रूपों में महत्त्व दिया है। माँ ही हमें सर्वप्रथम व्यावहारिक और आध्यात्मिक जीवन से जोड़ती है। मां मात्र देवधारी जीव नहीं है, वह आदिशक्ति और जगत जननी का साक्षात् प्रतिरूप है। माँ ही सृजन, उर्वरता, संवेदना और भावी संभावनाओं का मूल आधार है। विभिन्न दर्शनों और पंथों में परस्पर वैचारिक असमानता के बावजूद मातृ तत्त्व के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। मातृ शक्ति के लौकिक और अलौकिक गुणों का गान करने में देव भी स्वयं को असमर्थ पाते हैं। आज स्त्री - पुरुष लैंगिक अनुपात बिगड़ रहा है, ऐसे में हमें स्त्रियों के सम्मान और बेटियों के बचाव के लिए व्यापक जागरूकता लानी होगी।





वन्दनीया गीता देवी चौधरी स्मृति सम्मान से सम्मानित किए गए पांच संस्कृतिकर्मी : 


कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार डॉ शंभू पंवार, झुंझुनू, डॉ भरत शेणकर, राजुर, महाराष्ट्र, डॉ रागिनी स्वर्णकार शर्मा, इंदौर, डॉ. संगीता पाल, कच्छ एवं श्रीमती रेणुका अरोरा, गाजियाबाद को वंदनीया मां गीता देवी चौधरी जयंती सम्मान 2020 से सम्मानित किया गया। उन्हें सम्मान के रूप में शॉल, श्रीफल, प्रशस्ति पत्र और सम्मान राशि अर्पित की गई। 







कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि मां एक व्यक्ति नहीं है, सर्वव्यापी तत्व है। संपूर्ण जीव - जगत की सृष्टि बिना मां के संभव नहीं। पुराणों में संकेत मिलता है कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है लेकिन माता कभी कुमाता नहीं होती। श्रीकृष्ण सरल ने मां को लेकर सुंदर काव्य पंक्तियां प्रस्तुत की हैं, मां वर्ण केवल एक, जिस पर वर्णमाला ही न्यौछावर। शब्द केवल एक, जिसमें अर्थ का सागर भरा है।




डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि इस्लाम में नारी को बहुत ऊंचा दर्जा मिला है। इस्लाम में माना गया है कि मां के पैरों के नीचे जन्नत है। पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने बेटियों के संरक्षण के लिए उन्हें उच्च स्थान दिलाया। हमें अंतर्मन से सोचना होगा कि समाज में स्त्री को सम्मान दिया जाए।




साहित्यकार श्री त्रिपुरारिलाल शर्मा, इंदौर ने कहा कि सभ्यता वास्तव में संस्कृति का अंग है। मन और आत्मा की संतुष्टि के लिए ज्ञान, संस्कार और अध्यात्म से रिश्ता आवश्यक है। भारत में मातृ तत्व को लेकर महत्वपूर्ण विचार हुआ है।



संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि मातुश्री गीता देवी चौधरी की स्मृति में वर्ष 2018 से प्रतिवर्ष विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिभाओं को सम्मानित किया जाता है। स्वागत भाषण डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई ने दिया। संस्था परिचय श्री राकेश छोकर ने दिया। कार्यक्रम में डॉ भरत शेणेकर, राजूर, महाराष्ट्र, डॉ शंभू पंवार, झुंझुनू, डॉ रागिनी स्वर्णकार शर्मा, इंदौर, डॉ. संगीता पाल, कच्छ ने भी विचार व्यक्त किए।  





संगोष्ठी में डॉ लता जोशी, मुंबई, मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉक्टर प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ वी के मिश्रा, रामेश्वर शर्मा, श्री अनिल ओझा, इंदौर, डॉ रश्मि चौबे, श्री राकेश छोकर, डॉ शैल चंद्रा, डॉ ममता झा, श्री सुंदर लाल जोशी, नागदा, राम शर्मा, मनावर, मनीषा सिंह, अनुराधा अच्छावन, समीर सैयद, डॉ श्वेता पंड्या, विजय शर्मा, पंढरीनाथ देवले, मीनाक्षी चौहान आदि सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।




प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ संगीता पाल ने की।

कार्यक्रम का संचालन रागिनी शर्मा, इंदौर ने किया। आभार प्रदर्शन श्री अनिल ओझा, इंदौर ने किया।











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