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20210108

आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी का आलोचनात्मक योगदान - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Critical Contribution of Dr. Rammurti Tripathi - Prof. Shailendra Kumar Sharma

ध्वनि और रस सिद्धांत पर आचार्य त्रिपाठी का योगदान अद्वितीय  


शंकराचार्य स्वामी दिव्यानंद तीर्थ एवं आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी जयंती समारोह 


मध्यप्रदेश लेखक संघ द्वारा चार धाम मंदिर सभागार में आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी एवं भानपुरा पीठ के शंकराचार्य स्वामी दिव्यानन्द तीर्थ जयंती समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि महामंडलेश्वर श्री शांतिस्वरूपानंद जी थे।  विशिष्ट अतिथि श्री नारदानन्द जी, कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय एवं पूर्व कुलपति प्रोफ़ेसर बालकृष्ण शर्मा थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा एवं प्रो शैलेंद्र पाराशर ने विचार व्यक्त किए। संस्थाध्यक्ष प्रो हरिमोहन बुधौलिया ने कार्यक्रम की पीठिका प्रस्तुत की।




प्रो बालकृष्ण शर्मा ने आदि शंकराचार्य के बहुआयामी व्यक्तित्व और योगदान प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आदि शंकराचार्य ने अल्प वय में भारतीय दर्शन, भक्ति, संस्कृति और राष्ट्रीय एकता के लिए महत्वपूर्ण अवदान दिया। स्वामी दिव्यानंद तीर्थ ने उनकी परंपरा को नए दौर में जीवंत किया। 





प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी के योगदान पर केंद्रित व्याख्यान देते हुए कहा कि आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी ने चिंतन और समालोचना में दुर्गम पथ चुना था, जिस पर वे आजीवन चलते रहे। भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रति गहन निष्ठा,  काव्यशास्त्रीय चिंतन की पुनराख्या, प्राचीन और नवीन रचनाधर्मिता की तलस्पर्शी आलोचना और आगमिक दृष्टि से काव्य एवं काव्यशास्त्र की पड़ताल आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी को समूची आलोचना धारा में अद्वितीय बनाते हैं।  आलोचना के क्षेत्र में ध्वनि और रस सिद्धांत पर उनका योगदान अनुपम है, जो सदैव याद किया जाएगा। भारत की पहचान के अभिलक्षणों के प्रसार के लिए वे निरन्तर गतिशील बने रहे। 




प्रोफेसर शैलेंद्र पाराशर ने आचार्य त्रिपाठी के साहित्यिक लेखन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि त्रिपाठी जी का संपूर्ण जीवन अध्ययन ,अध्यापन, लेखन एवं प्रबोधन को समर्पित रहा।



कार्यक्रम में पूर्व कुलपति प्रोफ़ेसर बालकृष्ण शर्मा को शंकराचार्य दिव्यानंद तीर्थ सम्मान तथा साहित्यकार डॉ देवेंद्र जोशी को आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी सम्मान से महामंडलेश्वर श्री शांति स्वरूपानंद जी , स्वामी नारदानन्द जी एवं अतिथियों ने सम्मानित किया। 


अभिनंदन पत्र का वाचन  साहित्यकार डॉ हरीश कुमार सिंह एवं श्री सूरज नागर उज्जैनी ने किया।







सरस्वती वंदना श्रीमती सीमा जोशी ने की। साहित्य सारथी कैलेंडर का विमोचन डॉ हरीशकुमार सिंह ने करवाया। 


कार्यक्रम में डॉ पुष्पा चौरसिया, डॉ अभिलाषा शर्मा,डॉ रफीक नागौरी, संतोष सुपेकर आदि सहित अनेक साहित्यकार उपस्थित थे।


कार्यक्रम का  संयोजन डॉ देवेंद्र जोशी ने किया। आभार प्रदर्शन प्रोफेसर हरिमोहन बुधौलिया ने किया।















चार्य 




राममूर्ति त्रिपाठी जयंती


20210105

आलोचक आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी : बहुआयामी अवदान - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Critic Acharya Ramamurthy Tripathi: Multidimensional Contribution : Prof. Shailendra Kumar Sharma

भारतीय साहित्य और काव्यशास्त्र के अद्वितीय मनीषी थे आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी 

आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी जयंती महोत्सव एवं उनके बहुआयामी अवदान पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी

डॉ पन्नालाल आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी सम्मान से अलंकृत 

क्लैसिकी शोध संस्थान एवं हिंदी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के संयुक्त तत्वावधान में प्रख्यात आलोचक और विद्वान आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी की 92 वीं जयंती के अवसर पर सारस्वत महोत्सव एवं राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि मध्यप्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक डॉ पन्नालाल थे। कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि पूर्व संभागायुक्त एवं पूर्व कुलपति डॉ मोहन गुप्त थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने की। कार्यक्रम में श्रीधाम आश्रम के महंत श्री श्यामदास जी का सान्निध्य रहा।  विशिष्ट अतिथि प्रो गीता नायक, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, श्री जियालाल शर्मा एवं डॉ देवेंद्र जोशी थे। कार्यक्रम में डॉ पन्नालाल जी को उनके विशिष्ट योगदान के लिए आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी सम्मान से अलंकृत किया गया। 






प्रमुख अतिथि पूर्व पुलिस महानिदेशक डॉ पन्नालाल ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी भारतीय साहित्य और काव्यशास्त्र के अद्वितीय मनीषी थे। उन्हें हम किसी भाषा के दायरे में नहीं बांध सकते। उनकी आलोचना के केंद्र में काव्यगत चारुता की चर्चा आती है। इसके साथ ही वे रस और साधारणीकरण की चर्चा किया करते थे।  वे रसवादी आचार्य हैं। रचना से यदि आनंद मिलता है, वह सर्वोपरि होती है।







सारस्वत अतिथि डॉ मोहन गुप्त ने कहा कि आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी,  आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल और आचार्य नंददुलारे वाजपेयी की परंपरा को नई दिशा देने वाले साहित्य मनीषी और आलोचक हैं। उन्होंने प्राचीन से लेकर नवीन साहित्य सर्जना पर समीक्षा कार्य किया। उनके साहित्य सिद्धांतों और मीमांसा को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए व्यापक प्रयास किए जाने चाहिए। 





कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए लेखक एवं आलोचक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि आचार्य त्रिपाठी पिछली सदी के अपने ढंग के अनन्य आलोचक हैं। उनकी आलोचना दृष्टि भारतीय चिंतन धारा की ठोस आधार भूमि पर टिकी हुई है। ऐसे समय में जब पश्चिमी चिंतन से आक्रांत सर्जक और आलोचक आत्महीनता की स्थिति में आ गए थे, आचार्य त्रिपाठी ने अपनी जड़ों में अंतर्निहित काव्य दृष्टि की संभावनाओं को नए सिरे से उजागर किया। रस और ध्वनि जैसे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों को सतही तौर पर लेने वाले आलोचकों की अधूरी समझ और सीमाओं का उन्होंने पूरी दृढ़ता से प्रतिरोध किया। काव्य के रसात्मक प्रतिमान को वे सर्वोपरि महत्व देते हैं। भारतीय काव्यशास्त्र के सिद्धांतों की पुनराख्या के साथ पश्चिम से आगत अनेक काव्य सिद्धांतों की सीमाओं को लेकर वे निरन्तर सजग करते हैं। उन्होंने आगम या तंत्र के आलोक में भारतीय साहित्य और काव्य चिंतन परम्परा के वैशिष्ट्य को प्रतिपादित किया, वहीं नई रचनाधर्मिता का तलस्पर्शी मूल्यांकन किया। 







विशिष्ट वक्ता डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी की आलोचना दृष्टि और आलोचना भाषा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आचार्य त्रिपाठी ने अपने काव्यशास्त्रीय लेखन में भारतीय काव्य चिंतन की सभी मान्यताओं और सिद्धांतों को प्रामाणिक और अविकल रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने एक ही संप्रदाय के आचार्यों के मध्य परस्पर विचार भेद को भी प्रकट करने में संकोच नहीं किया। भारतीय काव्य विमर्श के सातत्य को उन्होंने रीतिकालीन कवि आचार्यों और आधुनिक हिंदी आलोचकों तक दिखाने का अत्यंत कठिन कार्य उन्होंने किया है। रीतिकालीन आचार्यों की मौलिकता और उनके काव्यशास्त्रीय योगदान की अत्यंत तार्किक मीमांसा त्रिपाठी जी ने की है। उनका संपूर्ण कृतित्व मूल्यवान और अर्थवत्ता लिए हुए हैं, जिसके माध्यम से समकालीन रचना और आलोचना दोनों का मार्ग आलोकित हो सकता है।




प्रो गीता नायक ने आचार्य त्रिपाठी से जुड़े हुए अनेक संस्मरण सुनाए।




डॉ देवेन्द्र जोशी ने कहा कि डॉ त्रिपाठी ने शास्त्र और साहित्य परंपरा के विविध विषयों पर कलम चलाई है। उनके समग्र चिंतन को पढ़ते हुए गूढ़ गंभीर चिंतक और सिद्धांतवादी की छवि उभरती है। लेकिन जब समूचे चिंतन की गहराई में उतरा जाता है तो उनका लेखन समाजोपयोगी होकर साहित्य और समाज का पथप्रदर्शक बन कर हमारे सामने आता है। कवि, आलोचक, शोधकर्ताओं और तंत्र उपासकों ने आचार्य त्रिपाठी के समूचे चिंतन को पढ़ा होता तो वे उस भटकाव से बच जाते जो आज के युग की बड़ी समस्या है। तंत्रशास्त्र हो अथवा आलोचनाशास्त्र, वे खामियों पर टिप्पणी ही नहीं करते हैं, उनका समाधान भी प्रस्तुत करते हैं। उनके समूचे चिंतन का आधार समाज और साहित्य में नैतिक मूल्यों की स्थापना कर मूल्य आधारित समाज की स्थापना करना रहा है। उन्होंने सुझाव दिया कि डॉ त्रिपाठी पर केंद्रित कार्यक्रम का विस्तार हो। उनके लेखन कर्म पर शिक्षण और शोध के स्तर पर सार्थक विमर्श हो।


डॉ पन्नालाल जी को उनके विशिष्ट योगदान के लिए अतिथियों द्वारा अंग वस्त्र, श्रीफल एवं प्रशस्ति पत्र अर्पित करते हुए आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी सम्मान से अलंकृत किया गया। अभिनंदन पत्र का वाचन वरिष्ठ गीतकार श्री सूरज उज्जैनी ने किया।






अतिथियों का स्वागत वरिष्ठ समाजसेवी श्री तुलसी मनवानी, सूरज उज्जैनी, अमिताभ त्रिपाठी, पद्मनाभ त्रिपाठी, अनिल पांचाल सेवक, डॉ राजेश रावल सुशील आदि ने किया। प्रारंभ में अतिथियों द्वारा आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। 

अतिथि साहित्यकारों का सम्मान श्री धाम आश्रम की ओर से स्वामी महंत श्री श्यामदास जी महाराज ने किया। सरस्वती वंदना डॉ राजेश रावल सुशील ने की।




समारोह में श्री अक्षय कुमार चवरे, डॉ इसरार मोहम्मद खान, गौरीशंकर उपाध्याय, अनिल पांचाल, डॉ संदीप पांडेय, अभिजीत दुबे,  रामचंद्र जी पांचाल, ओम प्रकाश कुमायू, किशोर अलबेला, श्रीमती अनीता सोहनी, राधे दीदी, श्रीमती शीला तोमर आदि सहित अनेक साहित्यकार, संस्कृति कर्मी और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।


संगोष्ठी का संचालन पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर हरिमोहन बुधौलिया ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ सदानंद त्रिपाठी ने किया।

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