विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज द्वारा वेब पटल पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। इस संगोष्ठी में अनेक वक्ताओं ने अपने विचार प्रकट किए।
भारतीय साहित्य को रामाश्रयी काव्यधारा और गोस्वामी तुलसीदास का योगदान अविस्मरणीय है। रामकाव्यधारा का प्रवर्तन वैष्णव संप्रदाय के स्वामी रामानंद से स्वीकार किया जाता है। रामकाव्यधारा में शील, शक्ति और सौंदर्य का अद्भुत समन्वय पाया जाता है। ये विचार मुख्य अतिथि तथा विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, म. प्र. के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने व्यक्त किये।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज, उ. प्र. के तत्वावधान में ' रामाश्रयी काव्यधारा : तुलसीदास' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वे उद्बोधन दे रहे थे। डाॅ. शर्मा ने आगे कहा कि सभी रामभक्त कवि विष्णु के अवतार दशरथ पुत्र राम के उपासक हैं। उनके राम परब्रह्म स्वरूप भी है। रामचरितमानस में तुलसी ने आदर्श गृहस्थ, आदर्श समाज और आदर्श राज्य की कल्पना की है।रामकाव्य में ज्ञान,कर्म और भक्ति की अलग अलग महत्ता स्वीकार करते हुए भक्ति को उत्कृष्ट बताया गया है। रामाश्रयी कवियों की भारतीय संस्कृति में पूर्ण आस्था रही है। लोकहित के साथ उनकी भक्ति स्वांत:सुखाय थी।
विशिष्ट अतिथि डाॅ. चंद्रशेखर सिंह, मुंगेली, छत्तीसगढ ने कहा कि तुलसीदास ने रामचरित मानस को बोली के रूप में मानीजानेवाली अवधी में रचा। मानस में लोकतंत्र की बात निहित है। जीवन जीने का सही रास्ता मानस में बताया गया है। रामचरितमानस को पूरे विश्व में श्रद्धापूर्वक पढा जाता है।
डाॅ. अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, पटना, बिहार ने कहा कि रामाश्रयी शाखा के समस्त कवियों में तुलसीदास जी का स्थान अनुपम है। भारतीय संस्कृति को आधार बनाकर मानस की रचना हुई है। तुलसीदास जी की राम के प्रति दासभक्ति थी। प्रो. स्मिता बहन मिस्री, नवसारी गुजरात ने मंतव्य में कहा कि भारतीय संस्कृति में तुलसी का पौधा और महाकवि तुलसीदास दोनों का गौरवपूर्ण, अद्वितीय और अभूतपूर्व स्थान है। भारतीय जनमानस की नब्ज को पकडकर उनका सटीक उपचार बताने वाले तुलसीदास समाज में व्याप्त विसंगतियों को दूर करके एक स्वस्थ समाज की स्थापना करते हैं।
रामकथा का सानिध्य गंगास्नान समान अतुल्य है।अत: तुलसी साहित्य आज भी प्रासंगिक है। डाॅ. भारती दोडमनी, कारवार, कर्नाटक ने अपने उद्बोधन में कहा कि तुलसीदास जी की रचनाएँ स्वांत: सुखाय और बहुजन हिताय दोनों में प्रस्तुत है। मानस के सात खंडों में मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को व्यक्त किया गया है। उनकी अधिकांश रचनाएँ लोक कल्याण की कामना व्यक्त करती है।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उ.प्र. के सचिव डाॅ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने अपने प्रास्तविक भाषण में गोष्ठी के विषय की महत्ता प्रतिपादित करते हुए संस्थान की गतिविधियों पर विस्तार से प्रकाश डाला। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उ. प्र. के अध्यक्ष डाॅ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि रामाश्रयी काव्यधारा में तुलसीदास जी के पश्चात उनके समक्ष अन्य कोई कवि दिखाई नहीं देता। वे जीवन की समग्रता के गायक थे। रामचरितमानस एक संपूर्ण समाजदर्शन है।
तुलसीदासजी महान चिंतक, बहुत बडे संत तथा कालजयी महाकवि थे। उनका मानस भारतीय दर्शन का अक्षय भंडार है।
गोष्ठी का शुभारंभ श्रीमती ज्योति तिवारी, इंदौर की सरस्वती वंदना से हुआ। प्रा. रोहिणी बालचंद डावरे, अकोले, अहमदनगर, महाराष्ट्र ने स्वागत भाषण दिया। गोष्ठी का संयोजन श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव 'शैली', रायबरेली ने किया। गोष्ठी का सफल व कुशल संचालन व नियंत्रण डाॅ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया तथा श्रीमती रश्मि संजय श्रीवास्तव 'लहर' लखनऊ ने आभार प्रदर्शित किया।
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मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक और हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय साहित्य को रामाश्रयी काव्यधारा और गोस्वामी तुलसीदास का योगदान अविस्मरणीय है। रामकाव्य धारा का प्रवर्तन वैष्णव संप्रदाय के स्वामी रामानंद से स्वीकार किया जाता है। इस काव्य का आधार संस्कृत साहित्य में उपलब्ध राम-काव्य और नाटक रहे हैं। इस धारा के कवियों ने राम के अवतारी स्वरूप को अंगीकार किया है। सभी रामभक्त कवि विष्णु के अवतार दशरथ - पुत्र राम के उपासक हैं। वे अवतारवाद में विश्वास करते हैं। साथ ही उनके राम परब्रह्म स्वरूप भी हैं। उनमें शील, शक्ति और सौंदर्य का समन्वय है। उनका अवतार लोक-मंगल के लिए हुआ है। रामचरितमानस में तुलसी ने आदर्श गृहस्थ, आदर्श समाज और आदर्श राज्य की कल्पना की है। राम-काव्य में ज्ञान, कर्म और भक्ति की अलग अलग महत्ता स्वीकार करते हुए भक्ति को उत्कृष्ट बताया गया है। तुलसी का मानस विविध मत वाद और समुदायों के बीच समन्वय का सेतु बनाता है। रामाश्रयी कवियों की भारतीय संस्कृति में पूर्ण आस्था रही। लोकहित के साथ-साथ उनकी भक्ति स्वांत: सुखाय थी। तुलसी के काव्य में चिरंतन और सार्वभौमिक जीवन सत्यों की अभिव्यक्ति की अपूर्व क्षमता है। उनके मानस का विश्व मानव पर गहरा प्रभाव पड़ा है। निजी सम्बन्धों से लेकर समग्र विश्व के प्रति स्नेह-सम्बन्धों की प्रतिष्ठा राम के समतामूलक जीवन दर्शन के केन्द्र में रही है। लोकमानस पर अंकित राम का यह बिम्ब सदियों से अखंड मानवता की रक्षा का आधार है।