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20250904

Sanja Lokotsava 2025 : International Seminar | संजा लोकोत्सव 2025 | अंतरराष्ट्रीय लोक साहित्य महोत्सव एवं संगोष्ठी

संजा लोकोत्सव 2025 | अंतरराष्ट्रीय लोक साहित्य महोत्सव एवं संगोष्ठी | International Seminar : Sanja Lokotsava 2025 - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा Shailendrakumar Sharma 

अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी | International Folk Literature Festival

विषय: भारत की लोक और जनजातीय भाषाएँ, साहित्य और संस्कृति : संरक्षण, व्याख्या और प्रासंगिकता

India's Folk and Tribal Languages, Literature and Culture: Preservation, Interpretation and Relevance 

13 - 14 सितम्बर 2025, शनिवार एवं रविवार, उज्जैन

13 - 14 September 2025, Saturday and Sunday,  Ujjain




आत्मीय आमन्त्रण

मान्यवर, 

देश की प्रतिष्ठित संस्था प्रतिकल्पा सांस्कृतिक संस्था, उज्जैन द्वारा प्रतिवर्षानुसार आयोजित संजा लोकोत्सव 07 से 14 सितम्बर 2025 तक संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली, संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश शासन एवं पर्यटन विभाग, मध्यप्रदेश शासन के सहयोग से सम्पन्न होने जा रहा है। इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय लोक साहित्य महोत्सव के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय अन्तरनुशासनिक संगोष्ठी दिनांक 13 - 14 सितम्बर 2025, शनिवार एवं रविवार को भारत की लोक और जनजातीय भाषाएँ, साहित्य और संस्कृति : संरक्षण, व्याख्या और प्रासंगिकता (India's Folk and Tribal Languages, Literature and Culture: Preservation, Interpretation and Relevance) विषय पर संकल्पित है। इस महत्त्वपूर्ण संगोष्ठी में प्रख्यात लोकमनीषी, संस्कृतिकर्मी, साहित्यकार, विशेषज्ञ, शिक्षाविद्, शोधकर्ता आदि द्वारा विशिष्ट व्याख्यान, शोध - आलेख प्रस्तुति और संवाद होगा। इस महत्त्वपूर्ण आयोजन में आपकी सक्रिय सहभागिता का अनुरोध है। शोध आलेख हिंदी / अंग्रेजी में हो सकते हैं। 

आयोजन स्थल : 13 सितम्बर 2025:  मध्यप्रदेश सामाजिक विज्ञान शोध संस्थान उज्जैन (म.प्र.)

14 सितम्बर 2025: कालिदास संस्कृत अकादमी, विश्वविद्यालय मार्ग, उज्जैन (म.प्र.)

● प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा

मुख्य समन्वयक

आचार्य एवं विभागाध्यक्ष, हिन्दी अध्ययनशाला, कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन (म.प्र.)             

मोबाइल 9826047765 (व्हाट्सएप केवल)

Email shailendrakumarsharma66@gmail.com 

● डॉ जगदीश चंद्र शर्मा 

मुख्य समन्वयक

प्रोफेसर, हिंदी अध्ययनशाला, एवं विभागाध्यक्ष, ललित कला संगीत एवं नाट्य अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म प्र) मोबाइल 83198 09715 (व्हाट्सएप केवल) 

● कुमार किशन, सचिव, प्रतिकल्पा सांस्कृतिक संस्था, उज्जैन

● डॉ. पल्लवी किशन

मानसेवी निदेशक, प्रतिकल्पा सांस्कृतिक संस्था, 8, आशा भवन, विश्वविद्यालय मार्ग, फ्रीगंज, उज्जैन

Email:   sanjalokotsav2025@gmail.com 

● सम्पर्क : डॉ धर्मेंद्र सिंह जादौन, समन्वयक, मोबाइल / व्हाट्सएप 94071 31338 Email   sanjalokotsav2025@gmail.com

● संयोजक गण: प्रो. राजश्री शर्मा, डॉ. भेरूलाल मालवीय, डॉ. मोहसिन ख़ान (अलीबाग - महाराष्ट्र), डॉ. मोहन बैरागी, डॉ अजय शर्मा, डॉ. पराक्रम सिंह, डॉ. श्वेता पण्ड्या, डॉ. रूपाली सारये, डॉ राम सौराष्ट्रीय, संगीता मिर्धा, पूजा परमार

● विशेष: विस्तृत जानकारी के लिए डॉ. श्रीराम सौराष्ट्रीय से मोबाइल / व्हाट्सएप 8770801407 पर (प्रातः 8:00 से 10:30 या संध्या 4:00 से 10:00 तक) सम्पर्क करें।

● विस्तृत नियम निर्देश यहां देखे जा सकते हैं।



संजा 


● पंजीयन शुल्क : प्राध्यापक / शिक्षाविद् / वरिष्ठ लोक अध्येता वर्ग 500 रु
               अतिथि शिक्षक/ शोधार्थी / विद्यार्थी वर्ग 400 रु
पंजीयन राशि PRATIKALPA SANSKRITIK SANSTHA  को देय Bank of Baroda A/C No. 57710100011613 IFSC Code  BARB0FREEGA (Fifth character is zero) BRANCH – FREEGUNJ, UJJAIN में दिनांक 13 सितंबर 2025 तक ई- बैंकिंग द्वारा या नगद जमा करवा सकते हैं। उस पर अपना नाम एवं स्थान अवश्य दर्ज करें। प्रमाण पत्र प्राप्त करते समय बैंक की रसीद दिखानी होगी।
Sanja Lokotsav 2025
Lok Sahitya Mohotsav registration link- 
*इस गूगल फार्म लिंक पर अनिवार्य रूप से रजिस्ट्रेशन करें*
 
https://forms.gle/VTEHKwLAMW88cW9v5 

● शोध पत्र प्रस्तुति :  शोध आलेख हिंदी / अंग्रेजी भाषा में हो सकते हैं। शोध प्रस्तोता लोक भाषा मालवी, निमाड़ी, बुन्देली, बघेली, छत्तीसगढ़ी, मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, मारवाड़ी, हाड़ौती, अवधी, ब्रजी, कश्मीरी, पंजाबी, सिंधी, गुजराती, मराठी, कौरवी, मैथिली, भोजपुरी, हरियाणवी, हिमाचली, डोगरी, ओड़िया, कोंकणी, बांग्ला, असमिया, तमिल, कन्नड़, मलयालम, तेलुगु, तुळु, पूर्वोत्तर भारत आदि सहित देश - देशान्तर के विविध लोकांचलों के लोक साहित्य, लोक संस्कृति और परंपराओं को केंद्र में रख कर शोध पत्र तैयार कर सकते हैं।
इसी प्रकार विविध जनजातीय समुदायों, यथा भील, भिलाला, बारेला, संथाल, गोंड, मुंडा, खड़िया, हो, लेपचा, भूटिया, थारू, बोडो, पारधी, गरासिया, मीणा, उरांव, बिरहोर, सहरिया, कोरकू, बैगा, परधान, मारिया, उरांव, अबूझमाड़िया, गारो, खासी, नागा, कूकी, टोडा, कुरुम्बा आदि सहित देश-देशान्तर की लोक भाषाओं, मौखिक साहित्य, लोक संस्कृति और परम्पराओं के परिप्रेक्ष्य में आलेख तैयार किए जा सकते हैं।
● अंतरराष्ट्रीय अन्तरानुशासनिक संगोष्ठी के प्रमुख विचारणीय विषय :
भारत की लोक भाषाएँ, साहित्य और संस्कृति : संरक्षण, व्याख्या और प्रासंगिकता
भारत की जनजातीय भाषाएँ, साहित्य और संस्कृति : संरक्षण, व्याख्या और प्रासंगिकता
लोक साहित्य और स्वाधीनता संग्राम













Shailendra Kumar Sharma Sharma youtube channel Link प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा यूट्यूब चैनल के लिए लिंक पर जाएँ 












Youtube channel for Music, Dance, Drama, Literature, Painting, Folklore & Tribal Culture
Best Folk & Tribal Dances, Songs, Dramas of India: Rajsthan, Madhya Pradesh, Maharashtra, Gujrat, Karnataka, Uttarakhand| M. P.- Malwa, Nimad, Bundelkhand https://www.youtube.com/c/ShailendrakumarSharma  









20250218

Malvi Folk Tale | True Ascetic | मालवी लोक कथा | सच्चा तपस्वी

 मालवी लोक कथा

सच्चा तपस्वी (सच्चो तपस्वी)

मालवा के छोटे से गाँव में रामू नाम का एक किसान रहता था। उसके गाँव के ही पास एक छोटा सा खेत था। उसकी मेड़ के पास में एक बहुत बड़ा बरगद का वृक्ष था। एक दिन उसने अपने खेत का काम खत्म किया और दोपहर के समय खाना खाने के लिए उस बरगद के पेड़ के नीचे पहुँचा तो उसने देखा कि एक साधु महाराज आँखें बंद किए बैठे हुए हैं। उन्हें देख किसान चुपचाप खड़ा रहा।

जब साधु महाराज ने आँखें खोलीं तो किसान ने उनको प्रणाम करके बहुत ही नम्रता से पूछा कि महाराज जी आप क्या कर रहे थे? साधु बोला कि मैं भगवान का ध्यान लगाकर उन्हें याद कर रहा था। इससे मुझे बहुत शांति मिलती है और भगवान की कृपा भी मुझे प्राप्त होती है। किसान ने कहा कि महाराज मैं एक किसान हूँ। मैं भी ध्यान लगाकर शांति चाहता हूँ लेकिन दिन-रात खेती किसानी के काम से मुझे फुर्सत नहीं मिलती है तो मैं कैसे और कब ध्यान करूँ? साधु ने पूछा- क्या खेती में इतना अधिक काम है कि फुर्सत ही नहीं मिलती ? "जी महाराज! सुबह से शाम तक मुझे बिल्कुल भी समय नहीं मिल पाता है” -किसान ने हाथ जोड़कर कहा।

साधु ने पूछा "खेती का काम करने से तुम्हें क्या मिलता है?" किसान ने उत्तर दिया- "खेती के काम करने से मेरा और मेरे परिवार का लालन-पालन होता है जो उपज बच जाती है उसे बेचने से धन मिलता है उससे कपड़े लत्ते और खाने-पीने के दूसरे सामान की खरीद कर लेते हैं। 

क्या तुम्हारा मन खेती है लग जाता है? साधु ने पूछा।

किसान ने कहा "हाँ, जब भी मैं खेती का काम करता हूँ पूरी तरह से उसमें लीन हो जाता हूँ।“ 

साधु बोला, मेरे भाई खेती का काम ही तुम्हारा ध्यान है, तुम्हारी भक्ति है। तुम्हारा तप है और भगवान की भक्त्ति है। मेरी साधना से तो सिर्फ मेरा ही भला होता है लेकिन तुम्हारी खेती की साधना से तुम्हें और दूसरे को भी शांति मिलती है। इसीलिए तुम्हारा तप मेरे तप से ज्यादा महान है, ज्यादा भलाई करने वाला है। तुम्हारा तप सच्चा है, जनहितकारी है और तुम मुझसे भी महान हो। इतना कह कर साधु आगे अपनी राह पर चल पड़ा और किसान उन्हें देखता रहा गया। आज उसे अपने कर्म के मोल का पता चल गया।

प्रस्तुति - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 

मालवी लोक साहित्य पुस्तक से साभार 


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