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20201129

विक्रम का कालिदास विशेषांक | सम्पादक : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | The Vikram : Kalidas Special Number | Editor : Prof. Shailendrakumar Sharma

विक्रम का कालिदास विशेषांक | सम्पादक : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 

The Vikram : Kalidas Special Number Volume 19, 2020 Editor : Prof. Shailendrakumar Sharma

अस्मदीयं

महाकवि कालिदास भारत की सांस्कृतिक और वैचारिक अस्मिता के अनन्य चितेरे हैं। सदियों से चली आ रही निगमागम, पुराख्यान और शास्त्र परम्परा को उन्होंने नई अर्थवत्ता दी, वहीं लोक जीवन, राग - ऋतु और प्रकृति के मर्मस्पर्शी चित्रों को उकेरने में उनके जैसा कोई दूसरा समर्थ रचनाकार दिखाई नहीं देता। समाज में आ रहे परिवर्तन भी विश्वकवि के दृष्टिपथ में थे। मानव जीवन के मूल में परम्परा और परिवर्तन, पुरातनता और नवीनता के बीच असमाप्त अंतर्क्रिया जारी है। यही बात किसी भी क्षेत्र से जुड़े  अनुसन्धान और नवाचार पर भी लागू होती है। पुरातन और नवीन में से अधिक महत्त्वपूर्ण और उपादेय कौन है, यह हमारे विवेक पर निर्भर करता है। इसीलिए वे संकेत देते हैं -

पुराणमित्येव न साधु सर्वं न चापि काव्यं नवमित्यवद्यम्।

सन्त: परीक्ष्यान्यतरद्भजन्ते मूढ: परप्रत्ययनेयबुद्धि:॥

अर्थात् पुरानी होने से ही न तो सभी वस्तुएँ अच्छी होती हैं और न नयी होने से बुरी या हेय। विवेकशील व्यक्ति अपनी बुद्धि से परीक्षा करके श्रेष्ठतर वस्तु को अंगीकार कर लेते हैं और मूर्ख जन दूसरों द्वारा बताने पर ग्राह्य या अग्राह्य का निर्णय करते हैं। वर्तमान दौर में उनका यह कथन अत्यंत प्रासंगिक बना हुआ है।


https://drive.google.com/file/d/1k0qL7TEbj1tZV-Zeh-GeBD-l0Rc6c2L1/view?usp=drivesdk


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Vikram Journal - Kalidasa Special Number Vol 19, 2020 pdf | विक्रम शोध पत्रिका | कालिदास विशेषांक

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सम्राट विक्रमादित्य की रत्नसभा के अनूठे रत्न के रूप में विख्यात महाकवि कालिदास (प्रथम शती ई. पू.) की पुण्य कर्मस्थली उज्जयिनी रही है। उन्होंने इस रम्य नगरी के अनेक स्थलों और जनजीवन का जीवंत अंकन किया है।  विशेष तौर पर शिप्रा और महाकालेश्वर मंदिर का वर्णन बड़े मनोयोग से किया है। उनके समय में यह मनोरम नगरी अपार वैभव और सौंदर्य से मंडित थी। इसीलिए वे इसे स्वर्ग के कांतिमान खण्ड के रूप में चिह्नित करते हैं- 'दिवः कान्तिमत्खण्डमेकम्‌'। 

महाकवि कालिदास की समर्चना में मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित अखिल भारतीय कालिदास समारोह राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध महोत्सव है, जिसके अंतर्गत कालिदासीय अध्ययन को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से गुणवत्तापूर्ण शोधपत्रों के लिए अनुसन्धानकर्ताओं को पुरस्कृत किया जाता है। विगत दो समारोहों में विक्रम कालिदास पुरस्कारों से अलंकृत शोधपत्रों का प्रकाशन विक्रम विश्वविद्यालय की शोध पत्रिका विक्रम के कालिदास विशेषांक में करते हुए हमें गौरव की अनुभूति हो रही है। 


महाकवि कालिदास का साहित्य उनकी सूक्ष्म अवलोकन दृष्टि और बहुज्ञता को प्रमाणित करता है। इस पत्रिका में समाहित एक शोध पत्र में श्री शशिकांत द्विवेदी ने कालिदास साहित्य में निरूपित योग दर्शन  की सम्यक् मीमांसा की है। डॉ लक्ष्मी मिश्रा ने कालिदास के रूपकों में आयुर्विज्ञान के संदर्भों को विवेचना का विषय बनाया है। डॉक्टर चंद्र भूषण झा ने राष्ट्र के विषय में कालिदास की अवधारणा का सूक्ष्म विश्लेषण  किया है। डॉ डॉली जैन ने महाकवि कालिदास के काव्य में प्रयुक्त उपमाओं के पौराणिक आधारों का गहन विश्लेषण अपने शोध पत्र में किया है। डॉक्टर योगिनी एच व्यास ने रघुवंश की सीता देहली दीप कल भी - आज भी के माध्यम से महाकवि की उदात्त दृष्टि का निरूपण किया है। 

डॉ रेणु बाला ने अभिज्ञानशाकुंतल के विशेष संदर्भ में कालिदास की अपृथग्यत्ननिर्वर्त्य  अलंकार योजना का समुचित विश्लेषण किया है। इसी प्रकार डॉ सरोज कौशल ने अभिज्ञानशाकुंतलम् के विशेष संदर्भ में महाकवि कालिदास के भाषिक सौंदर्य की पड़ताल की है। डॉ चंद्रकला आर कौंडी ने अपने शोध पत्र के माध्यम से तर्कपूर्ण ढंग से यह सिद्ध किया है कि महाकवि कालिदास के काव्य में निहित दोष सूक्ष्मता से विचार करने पर दोषहीन दिखाई देते हैं। 

विक्रम शोध पत्रिका का यह विशेष अंक इस आशा के साथ समर्पित है कि कालिदासीय अध्ययन, अनुसंधान और नवाचार की परंपरा निरंतर गतिशील बनी रहेगी।


विमोचन : अखिल भारतीय कालिदास समारोह के समापन अवसर पर इस शोध पत्रिका का विमोचन संपन्न हुआ।






प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

सचिव

कालिदास समिति

आचार्य एवं विभागाध्यक्ष

हिंदी अध्ययनशाला

कुलानुशासक

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन


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