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20210606

हिंदी नाटक, निबन्ध तथा स्फुट गद्य विधाएँ एवं मालवी भाषा साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Hindi Drama, Essay and Other Prose genres and Malvi language - literature : Prof. Shailendra Kumar Sharma

हिंदी नाटक, निबन्ध तथा स्फुट गद्य विधाएँ एवं मालवी भाषा साहित्य : सम्पादक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Shailendrakumar Sharma  


सुधी प्राध्यापकों के सहकार से मेरे द्वारा संपादित - प्रणीत ग्रंथ 'हिन्दी नाटक, निबंध तथा स्फुट गद्य रचनाएँ एवं मालवी भाषा-साहित्य' म प्र हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल से प्रकाशित हुआ है। हिंदी के प्रतिनिधि एकांकी, निबन्ध और अन्य गद्य विधाओं का समावेश किया गया। पुस्तक में विविध विधाओं और उनके प्रमुख लेखकों का परिचय दिया गया है। ग्रंथ में देश के हृदय मालवा की मर्म मधुर मालवी-निमाड़ी भाषा के साहित्य का अद्यतन इतिहास समाहित है। पुस्तक म प्र के भोपाल, इंदौर और उज्जैन स्थित विश्वविद्यालयों में  स्नातक स्तर पर निर्धारित रही है। 




इसी पुस्तक की भूमिका से..

मानव सभ्यता से जुड़ा कोई भी उपादान इतिहास से निरपेक्ष नहीं है। इस दृष्टि से भाषा और साहित्य का भी अपना इतिहास होता है। मूलतः साहित्य की सत्ता एक और अखंड सत्ता है। फिर भी अध्ययन सुविधा की दृष्टि से साहित्येतिहास को लेकर पर्याप्त मंथन होता आ रहा है। किसी भी क्षेत्र के साहित्य का लोकमानस और जीवन से घनिष्ठ संबंध होता है। जहाँ बिना सामाजिक संदर्भ के साहित्येतिहास लेखन संभव नहीं है, वही रचनाकार की सर्जनात्मक अनुभूतियों की उपेक्षा भी उचित नहीं कहीं जा सकती है। पुस्तक में मालवी-निमाड़ी  भाषा और साहित्य के इतिहास-लेखन में इन बातों को विशेषतः दृष्टिपथ में रखा गया है। साथ ही साहित्यिक-सांस्कृतिक परम्परा के साथ वातावरण के अंतःसंबंधों का भी समावेश किया गया है। साहित्येतिहास लेखन में कई नवीन तथ्यों और सामग्री का समावेश करने की दिशा में अनेक विद्वज्जनों, साहित्यानुरागियों और ग्रंथागारों का सहयोग मिला है। 


साहित्येतिहास लेखन एक अविराम प्रक्रिया है। इस पुस्तक में संचित मालवी साहित्य के इतिहास को उसी प्रक्रिया में एक विनम्र प्रयास कहा जा सकता है। लोकभाषा में रचित साहित्य के इतिहास लेखन की दिशा में हाल ही में गति आई है। ऐसे प्रयासों से बोली में रचे साहित्य पर पुनर्विचार और प्रसार की संभावनाएँ भी महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो रही है। पिछले दशक में मध्यप्रदेश के हृदय अंचल मालवा की मर्म मधुर मालवी-निमाड़ी  और उसके साहित्य के अध्ययन-अध्यापन की भूमिका बनी है। 


प्रस्तुत पुस्तक में संचित मालवी से संबंधित सामग्री के लिए मालवा के प्रमुख मनीषियों-वरिष्ठ कवि डाॅ. शिव चौरसिया, डाॅ. भगवतीलाल राजपुरोहित (निदेशक,विक्रमादित्य शोध पीठ, उज्जैन), डाॅ. पूरन सहगल (मनासा), डाॅ. जगदीशचंद्र शर्मा ( विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन), मालवीमना साहित्यकार स्व. श्री झलक निगम एवं अर्धांगिनी प्रो. राजश्री शर्मा ने सत्परामर्श, युवा कवि डाॅ. राजेश रावल सुशील ने स्मरणीय सहकार दिया है, एतदर्थ आभार। 


प्रस्तुत पुस्तक में साहित्यरसिक और अध्येता हिंदी के साथ मालवी और निमाड़ी  साहित्य की प्रतिनिधि रचनाओं की झलक पा सकेंगे।


पुस्तक का नाम : हिन्दी नाटक, निबंध तथा स्फुट गद्य रचनाएँ एवं मालवी भाषा-साहित्य

प्रकाशक : म प्र हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल 

मूल्य : 100 ₹

पृष्ठ : 440


20210303

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष नियुक्त | Prof. Shailendrakumar Sharma Appointed as the Dean of Faculty of Arts, Vikram University

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष नियुक्त | Prof. Shailendrakumar Sharma appointed as the Dean of Faculty of Arts, Vikram University


मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 के प्रावधान के अंतर्गत कुलाधिपति जी, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के द्वारा प्रो  शैलेंद्रकुमार शर्मा आचार्य एवं हिंदी विभागाध्यक्ष को दो वर्ष की कालावधि के लिए विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकाय का संकायाध्यक्ष  नियुक्त किया गया है। कई ख्यात सम्मानों और पुरस्कारों से विभूषित डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा वर्तमान में हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म. प्र.) के हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए अनेक नवाचारी प्रयत्न किए हैं, जिनमें विश्व हिंदी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र, मालवी लोक साहित्य एवं संस्कृति केन्द्र, भारतीय जनजातीय साहित्य एवं संस्कृति केन्द्र एवं भारतीय भक्तिकालीन साहित्य एवं संस्कृति केंद्र की संकल्पना एवं स्थापना प्रमुख हैं।

 



प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा ने भाषा और साहित्य से संबंधित उच्च स्तरीय पुस्तकों का लेखन और संपादन किया है। उनकी देश-विदेश की महत्वपूर्ण और श्रेष्ठतम संस्थाओं से सम्बद्धता रही है। उन्होंने देश-विदेशों में विभिन्न विषयों पर सैकड़ों व्याख्यान और परिसंवाद में शोध आलेख प्रस्तुति की है। उन्होंने पचहत्तर से अधिक विद्यार्थियों का शोध निर्देशन किया है। प्रो शर्मा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य शोध पत्रिका अक्षरवार्ता के प्रधान संपादक हैं। आलोचना, निबंध लेखन, संस्मरण, इंटरव्यू, नाटक तथा रंगमंच समीक्षा, लोकसाहित्य एवं संस्कृति विमर्श, राजभाषा हिन्दी एवं देवनागरी के विविध पक्षों पर लेखन एवं अनुसंधान कार्य में निरंतर सक्रिय प्रो शर्मा ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की शोध परियोजना के अन्तर्गत 'साठोत्तर हिन्दी नाट्‌य साहित्य और भारतीय रंगचेतना’ विषय पर अनुसंधान किया है।


उनकी मुख्य कृतियाँ हैं  : शब्दशक्ति संबंधी भारतीय और पाश्चात्य अवधारणा तथा हिन्दी काव्यशास्त्र, देवनागरी विमर्श, मालवा का लोकनाट्य माच और अन्य विधाएं, महात्मा गांधी : विचार और नवाचार, सिंहस्थ विमर्श, हिन्दी भाषा संरचना, मालवी भाषा और साहित्य आदि। इनके अलावा अवन्ती क्षेत्र और सिंहस्थ महापर्व, प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य, हिंदी कथा साहित्य, मालव सुत पं सूर्यनारायण व्यास, आचार्य नित्यानंद शास्त्री और रामकथा कल्पलता, हरियाले आंचल का हरकारा : हरीश निगम, हिन्दी नाटक, निबंध तथा स्फुट गद्य विधाएँ एवं मालवी भाषा साहित्य, मालव मनोहर, हिंदी भाषा और नैतिक मूल्य, हरीश प्रधान : व्यक्ति और काव्य, स्त्री विमर्श : परंपरा और नवीन आयाम, मालव मनोहर,  संत शिरोमणि सेनजी आदि प्रमुख ग्रंथों सहित निबंध, आलोचना, भाषाशास्त्र, मालवी भाषा, लोक संस्कृति आदि विषयों पर लगभग 40 पुस्तकों का लेखन एवं संपादन प्रो शर्मा ने किया है। आपने केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा का हिंदी-भीली अध्येता कोश तैयार करने में संपादक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।


उन्हें अर्पित किए गए महत्वपूर्ण एवं ख्यात सम्मान और पुरस्कार हैं :  आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सम्मान, म. प्र. लेखक संघ, भोपाल द्वारा हिन्दी समीक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए डॉ. संतोष तिवारी समीक्षा सम्मान, राष्ट्रीय कबीर सम्मान, हिंदी सेवी सम्मान,  भाषा- भूषण सम्मान, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार, आचार्य विनोबा भावे राष्ट्रीय नागरी लिपि सम्मान, अक्षर आदित्य सम्मान, आलोचना भूषण सम्मान, अभिनव शब्द शिल्पी अलंकरण, साहित्य सिंधु सम्मान, विश्व हिन्दी सेवा सम्मान आदि।


प्रो शर्मा ने थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया, मॉरीशस एवं म्यांमार की अकादमिक यात्राएँ की हैं। मॉरीशस में 2018 में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में उन्होंने शोध पत्र प्रस्तुति एवं आलेख वाचन सत्र की अध्यक्षता की। थाईलैंड में अक्टू 2013 और सिडनी - ऑस्ट्रेलिया में जून 2017 में आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में उन्होंने व्याख्यान दिए, इसके साथ उन्हें क्रमशः विश्व हिन्दी सेवा सम्मान तथा साहित्य सिंधु सम्मान से अलंकृत किया गया।


राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के संरक्षक आचार्य एवं अध्यक्ष हिन्दी अध्ययनशाला प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा को विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष के पद पर कुलाधिपति के निर्देश पर की गई नियुक्ति पर राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के अध्यक्ष ब्रजकिशोर शर्मा, मार्गदर्शक हरेराम वाजपेयी, डॉ. हरिसिंह पाल, महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी, प्रवक्ता सुंदरलाल जोशी सूरज, डॉ. शिवा लोहारिया, गरिमा गर्ग, डॉ. रश्मि चौबे, जी.डी. अग्रवाल, अनिल ओझा, प्रभा बैरागी, प्रो. जगदीशचन्द्र शर्मा, प्रगति बैरागी आदि ने हर्ष व्यक्त किया है।



















20201025

प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा आलोचना भूषण सम्मान से अलंकृत

 

प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा आलोचना भूषण सम्मान से अलंकृत



प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष
हिंदी विभाग 
कुलानुशासक
विक्रम विश्वविद्यालय,
उज्जैन [म.प्र.] 456 010





















विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं प्रसिद्ध समालोचक प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा को आलोचना के क्षेत्र में किए गए अविस्मरणीय योगदान के लिए राष्ट्रभाषा स्वाभिमान न्यास [भारत] एवं यू॰ एस॰ एम॰ पत्रिका द्वारा अखिल भारतीय स्तर के आलोचना भूषण सम्मान से अलंकृत किया गया। उन्हें यह सम्मान संस्था द्वारा हिन्दी भवन , गाजियाबाद में आयोजित बीसवें अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अंतर्गत राष्ट्रस्तरीय नामित सम्मान अलंकरण समारोह में पूर्व केन्द्रीय मंत्री , भारत सरकार एवं राज्यपाल, तमिलनाडु और असम डॉ॰ भीष्मनारायण सिंह एवं पूर्व सांसद डॉ॰ रत्नाकर पांडे के कर-कमलों से अर्पित किया गया। इस सम्मान के अन्तर्गत उन्हें सम्मान-पत्र, स्मृति चिह्‌न, पुस्तकें एवं उत्तरीय अर्पित किए गए। इस महत्त्वपूर्ण समारोह में पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं शिक्षाविद डॉ॰ सरोजिनी महिषी, वरिष्ठ नृतत्वशास्त्री पद्मश्री डॉ॰ श्यामसिंह शशि, लोकसभा टी॰ वी॰ के वरिष्ठ अधिकारी डॉ॰ ज्ञानेन्द्र पांडे ,संस्था के संयोजक श्री उमाशंकर मिश्र आदि सहित पंद्रह से अधिक राज्यों के भारतीय भाषा प्रेमी एवं संस्कृतिकर्मी उपस्थित थे।

प्रो. शर्मा विगत ढाई दशकों से आलोचना, लोकसंस्कृति, रंगकर्म, राजभाषा हिन्दी एवं देवनागरी लिपि से जुड़े शोध एवं लेखन में निरंतर सक्रिय है। देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनके आठ सौ से अधिक समीक्षाएँ एवं आलेख प्रकाशित हुए हैं। 

उनके द्वारा लिखित एवं सम्पादित तीस से अधिक ग्रंथों में प्रमुख रूप से शामिल हैं-शब्द शक्ति संबंधी भारतीय और पाश्चात्य अवधारणा, देवनागरी विमर्श, हिन्दी भाषा संरचना, अवंती क्षेत्र और सिंहस्थ महापर्व, मालवा का लोकनाट्‌य माच एवं अन्य विधाएँ, मालवी भाषा और साहित्य, आचार्य नित्यानन्द शास्त्री और रामकथा कल्पलता, मालवसुत पं. सूर्यनारायण व्यास, हरियाले आँचल का हरकारा : हरीश निगम, मालव मनोहर आदि। 

प्रो. शर्मा को देशभर की अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। उन्हें प्राप्त सम्मानों में संतोष तिवारी समीक्षा सम्मान, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय सम्मान, अक्षरादित्य सम्मान, अखिल भारतीय राजभाषा सम्मान,शब्द साहित्य सम्मान, राष्ट्रभाषा सेवा सम्मान, राष्ट्रीय कबीर सम्मान, हिन्दी भाषा भूषण सम्मान आदि प्रमुख हैं।







20201001

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : वैचारिक प्रवाह से जोड़ती सार्थक पुस्तक | Mahatma Gandhi : Vichar aur Navachar - Prof. Shailendra Kumar Sharma

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : पुस्तक समीक्षा 

 - अरविंद श्रीधर

भारत के दो चरित्र ऐसे हैं जिनके बारे में  सबसे अधिक लिखा - पढ़ा गया और जिनकी चर्चा उनके स्वयं के काल से लगाकर अब तक निरंतर जारी है। समाज एवं संपूर्ण मानव सृष्टि के लिए उनका अवदान है ही ऐसा कि भले ही आप उनसे असहमत हों, आप उन्हें उपेक्षित नहीं कर सकते। एक है भगवान श्रीकृष्ण और दूसरे हैं महात्मा गांधी.  एक अवतारी पुरुष तो दूसरे ने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व की ऐसी छाप छोड़ी  कि अपने जीवन में ही  किवदंती बन गए। यह कोई छोटी मोटी बात नहीं है कि दुनिया के  150 से अधिक देशों में  महात्मा गांधी के नाम पर  कुछ ना कुछ स्मारक हैं  और इतने ही देशों ने  उनके ऊपर  350 से अधिक  डाक टिकट जारी किए हैं।

  

इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि श्रीमद्भगवद्गीता  महात्मा गांधी को अत्यंत प्रिय रही है। निष्काम कर्म  और अनासक्ति योग का पाठ पढ़ाने वाली गीता किसी भी कर्मयोगी के लिए  प्रेरणा पुंज हो सकती है। उनके विशिष्ट अवदान और चिंतन पर केंद्रित पुस्तक महात्मा गांधी : विचार और नवाचार हाल ही में प्रकाशित हुई है, जिसका सम्पादन लेखक और आलोचक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने किया है।




महात्मा गांधी के 150 वें जन्म वर्ष पर विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने वर्ष पर्यंत कार्यक्रम शृंखला आयोजित कर उल्लेखनीय कार्य किया है। दरअसल युवा पीढ़ी को महात्मा गांधी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व  से परिचित कराना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है और विश्वविद्यालय इसके लिए सबसे उपयुक्त स्थल हैं। व्याख्यान  और संगोष्ठियों के आयोजन से सीमित लोगों तक विचार पहुंच पाते हैं, जबकि सरल - सुबोध ग्रंथ निरंतर विचार प्रवाह का काम करते रहते हैं।


कार्यक्रम शृंखला के अंतर्गत विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा के संपादन में महात्मा गांधी : विचार और नवाचार ग्रंथ का प्रकाशन  स्वागत योग्य  है।  इसके लिए मैं परम विचारवान, विद्यानुरागी,  संस्कृति एवं हिंदी साहित्य  के अधिकारी प्रवक्ता प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा को विशेष साधुवाद देना चाहूंगा क्योंकि यह उन्हीं की पहल का सुफल है।


ग्रंथ में सम्मिलित आलेख महात्मा गांधी के जीवन, कार्यों और चिन्तन के विविध पक्षों को उभारने में पूर्णत: सक्षम हैं। पूरी संभावना है कि ग्रंथ का पारायण करने के बाद, युवा महात्मा गांधी के बारे में विस्तार से जानने के प्रति उत्सुक हों,  क्योंकि ग्रंथ उत्सुकता जगाने में भी पूर्णत: सक्षम है।


कुलपति प्रोफ़ेसर बालकृष्ण शर्मा ने महात्मा गांधी के प्रिय भजन 'वैष्णव जन तो तैने कहिए' की  व्याख्या के माध्यम से पूरे गांधी दर्शन को प्रकाशित कर दिया है।


डाॅ  मुक्ता का आलेख गांधीजी के मुख्य सरोकार, जीवन सिंह ठाकुर का आलेख गांधी दर्शन - भारतीय आत्मा का दर्शन, डॉ राकेश पांडेय का आलेख प्रवासी साहित्य, समाज और गांधी, डॉ मंजू तिवारी का आलेख लोकगीतों का अकेला लोकोत्तर नायक गांधी, डॉ पूरन सहगल का लेख अनंत लोक के महानायक महात्मा गांधी, डॉ विनय कुमार पाठक का आलेख छत्तीसगढ़ी लोक और शिष्ट साहित्य में गांधी, डॉ बहादुर सिंह परमार का आलेख बुंदेली लोक साहित्य और महात्मा गांधी, प्रोफेसर सत्यकेतु सांकृत का आलेख महात्मा गांधी और छात्र राजनीति, डॉ पुष्पेंद्र दुबे का आलेख खादी की कहानी और श्रीमती अर्चना त्रिवेदी का आलेख  महात्मा गांधी और सत्याग्रह विचार भी गांधी  के जिज्ञासुओं के लिए उपयोगी है।


गांधी चिंतन की जमीन और साहित्य पर गांधी के प्रभाव पर प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा का आलेख उपलब्धि बना है। गांधी चिंतन के साथ साहित्य और संस्कृति के रिश्तों पर केंद्रित जो सामग्री ग्रंथ में समाहित की गई है, वह तो गागर में सागर की तरह है। इतने संक्षेप में इतनी उपयोगी और प्रामाणिक जानकारी निश्चित रूप से विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए उपयोगी साबित होगी।


यह निर्विवाद सत्य है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए गैर हिंदी भाषी महापुरुषों का बहुत बड़ा योगदान रहा है और महात्मा गांधी उन में अग्रगण्य है. इस पर केन्द्रित डॉ दिग्विजय शर्मा, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ जवाहर कर्नावट, डाॅ प्रतिष्ठा शर्मा के आलेख  भी उपयोगी बन पड़े है। डॉ श्वेता पंड्या ने अपने आलेख में सियारामशरण गुप्त के काव्य पर गांधीजी के प्रभाव का विवेचन किया है।


ऋषिराज उपाध्याय ने एक सफर साधारण से महात्मा के माध्यम से डाक टिकटों और मुद्राओं में गांधी के अंकन पर प्रकाश डाला है। शिशिर उपाध्याय की रचना गांधी बाबा पाछा आओ, रफीक नागौरी की रचना बापू एवं डॉ देवेंद्र जोशी की रचना याद आएंगे गांधी बीसवीं सदी के महानायक का मार्मिकता से स्मरण कराती हैं।

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार पुस्तक का प्रकाशन और भी उपयोगी तथा सार्थक साबित होगा, यदि यह अधिक से अधिक लोगों तक  पहुंचे, और इस पर केंद्रित चर्चाएं भी आयोजित की जाएं। मुझे उम्मीद है कि विक्रम विश्वविद्यालय इस दिशा में अवश्य पहल करेगा।


पुस्तक का नाम : गांधी विचार और नवाचार 

संपादक :  प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा 

प्रकाशक : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

प्रकाशन वर्ष : 2020   


अरविन्द श्रीधर 

arvindshridhar@gmail.com

20200903

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - पुस्तक समीक्षा

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - एक दस्तावेजी ग्रन्थ 

समीक्षक - डाॅ देवेन्द्र जोशी

वक्त गुजर जाता है बातें याद रह जाती हैं। साहित्य को समाज का दर्पण इसलिए कहा जाता है कि समय गुजरने के बाद भी वह तत्कालीन समय की स्मृतियों की सुरभि से समाज को महकाता रहता है। अपनी रचनात्मक सुरभि से समाज को इसी तरह का महकाने का एक उल्लेखनीय कार्य विक्रम विश्वविद्यालय ने  हाल ही में कर दिखाया है। वह है प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा के संपादन में महात्मा गांधी : विचार और नवाचार ग्रंथ का प्रकाशन। 




यह पुस्तक महात्मा गांधी के 150 वें  जयंती वर्ष में गांधी जी पर एकाग्र विचारों के साथ विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित विविध नवाचार और गतिविधियों पर केंद्रित है, जो विगत दिनों प्रकाशित हो कर आई है। गांधी डेढ़ शती वर्ष की उपलब्धियों को बहुत सुंदर रूप से इसमें संजोया गया है। इसे एक दस्तावेजी ग्रंथ की संज्ञा देना अधिक उपयुक्त होगा। इस ग्रंथ  में गांधी जी के विचारों को शोध आलेखों और राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों के निष्कर्षों के साथ जिस तरह सुसंपादित किया गया है, वह अपने आप में गांधी पर केन्द्रित 21 वीं सदी का एक ऐसा शब्द गुच्छ बन पडा है, जो रचनात्मक सुरभि से समाज को दिग्दिगंत तक महकाता रहेगा। इसके लिए समूचे आयोजन के परिकल्पनाकार कुलपति  प्रो. बालकृष्ण शर्मा और उस संकल्पना को साकार करने वाले ग्रंथ संपादक, कुलानुशासक एवं गांधी अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा बधाई और साधुवाद के पात्र हैं।  प्रो शर्मा ने बडे मनोयोग से गांधी डेढ शती मनाने की न सिर्फ बृहद् रूपरेखा तैयार की, अपितु  उसे कारगर ढंग से क्रियान्वित भी किया। यही नहीं,  पूरे वर्ष तक चले इस रचनात्मक महायज्ञ का इस महाग्रंथ रूपी पूर्णाहुति के साथ उतना ही गरिमामय  समाहार भी किया।    

इस ग्रंथ का सबसे समृद्ध पक्ष प्रो बालकृष्ण शर्मा, डाॅ  मुक्ता, डाॅ राकेश पाण्डेय और प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा के महत्त्वपूर्ण आलेख हैं। ये आलेख समूची आयोजना और इस ग्रंथ की पीठिका की तरह हैं, जिस पर यह भव्य इमारत खडी की गई है। 

गांधी विचार के विविध पक्षों को लेकर जीवन सिंह ठाकुर, डाॅ मंजु तिवारी, डाॅ  पूरन सहगल, डाॅ  विनय कुमार पाठक, डाॅ पुष्पेन्द्र दुबे, डाॅ जगदीश चन्द्र शर्मा, डाॅ  जवाहर कर्नावट, डाॅ  प्रतिष्ठा शर्मा, डाॅ दिग्विजय शर्मा आदि ने अपने आलेखों से इस दस्तावेजी पुस्तक को यादगार बनाने में कोई कसर बाकी नहीं  छोड़ी है। 

उल्लेखनीय शोधपरक आलेखों के रूप में अर्चना त्रिवेदी एवं डाॅ  पुष्पेन्द्र  दुबे, ॠषिराज उपाध्याय, डाॅ  श्वेता पण्ड्या आदि के आलेखों की चर्चा की जा सकती है। विक्रम विश्वविद्यालय की गांधी 150 वीं जन्म-शती समारोह समिति के तत्त्वावधान में हिन्दी अध्ययनशाला, गांधी अध्ययन केंद्र सहित विभिन्न विभागों में आयोजित  राष्ट्रीय संगोष्ठियों, व्याख्यानों, परिसंवादों की खासियत यह रही कि इन्हें विश्वविद्यालय के अकादमिक परिसर तक सीमित न रखते हुए नगर और देश - प्रदेश के चिन्तनशील सर्जक, कवि और साहित्यकारों से भी जोडा गया। इसकी बानगी गांधी जीवन दर्शन पर बहुभाषी कवि गोष्ठी और भजनांजलि के रूप में देखने को मिली। इस सरस सुमधुर आयोजन में  सुनाई गई रचनाओं में से डाॅ देवेन्द्र जोशी की याद आएंगे गांधी, रफीक नागौरी की बापू और शिशिर उपाध्याय की गांधी बाबा पाछा आओ रचनाएँ इस ग्रंथ में शामिल की गई  हैं। 

इसी क्रम में वर्ष भर चली गांधी चिंतन से जुड़े  नवाचारों और रचनात्मक गतिविधियों के वृत्तांत को बहुरंगी चित्रों के साथ पुस्तक में सहेजा गया है। इस समूची आयोजना के बारे में जानकारी देते हुए संपादक प्रो शैलेन्द्र कुमार  शर्मा ने अपने संपादकीय में लिखा है कि समूचे आयोजन में  कला, साहित्य एवं भाषाओं, समाज विज्ञानों एवं विविध भौतिक एवं जीव विज्ञानों के शिक्षकों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों की सहभागिता सुनिश्चित की गई। इस दिशा में राष्ट्रीय  सेवा योजना और राष्ट्रीय कैडेट कोर के युवाओं की गतिशील हिस्सेदारी ने भी उल्लेखनीय योगदान  दिया। पूरे वर्ष के दौरान गांधी चिन्तन के विविध पहलुओं से जुडी संगोष्ठियों, व्याख्यानों कार्यशालाओं, साहित्य  एवं  संस्कृति कर्म, सामुदायिक एवं युवा गतिविधियों और बहुविध नवाचारों की अविराम शृंखला जारी रही। ..... दुनिया के किसी विश्वविद्यालय या संस्था ने इतनी बडी संख्या में लोगों की सक्रिय भागीदारी  के साथ विविधायामी और नवाचारी गतिविधियां  संयोजित नहीं की हैं, जितनी विक्रम विश्वविद्यालय में  संभव हुई हैं। ..... गांधी जी के 150 वें जयंती वर्ष में विक्रम विश्वविद्यालय के गांधी अध्ययन  केन्द्र  के ग्रंथालय और वाचनालय को आम जनता के लिए के लिए खोल दिया गया है। जहां संपूर्ण गांधी वाङ्मय, संदर्भ सामग्री और पत्र - पत्रिकाएँ बडी संख्या में उपलब्ध हैं। मध्यप्रदेश शासन, उच्च शिक्षा विभाग के सौजन्य से राजनीति विज्ञान अध्ययनशाला में गांधी  चेयर की स्थापना की गई  है। .... विभिन्न भाषाओं के कवियों की गांधी जी के प्रति भावांजलियों और महात्मा गांधी के युगांतरकारी कार्यों और प्रभाव को प्रत्यक्ष करते दुर्लभ फोटोग्राफ्स भी इस ग्रंथ  में  संजोये गये हैं।

इस बहुरंगी पुस्तक का चित्ताकर्षक आवरण अक्षय आमेरिया ने तैयार किया है तथा प्रकाशन यूजीसी की 12 वीं पंचवर्षीय योजना के अनुदान से किया गया है। सरकारी अनुदान से हुए अनेक कार्यों को देखा गया है, लेकिन जितने मनोयोग से विक्रम विश्वविद्यालय ने इस पुस्तकीय दायित्व को अंजाम  दिया है, वह अपने आप में अद्वितीय है। कुल मिलाकर  गांधी डेढ सौ वे जयंती वर्ष में विक्रम विश्वविद्यालय ने गांधी स्मरण के जो कीर्तिमान कायम किए हैं, वे देश दुनिया के अन्य विश्वविद्यालयों और संस्थानों के लिए किसी मील के पत्थर से कम नहीं है। 


डाॅ देवेन्द्र  जोशी 

85, महेशनगर 

अंकपात मार्ग 

उज्जैन 

(मध्यप्रदेश) - 456006


पुस्तक का नाम : गांधी विचार और नवाचार 

संपादक :  प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा 

प्रकाशक : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

प्रकाशन वर्ष : 2020

20200807

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार पुस्तक लोकार्पण

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार पुस्तक का लोकार्पण
गांधी जी के विचारों और नवाचारों पर केंद्रित है प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा द्वारा संपादित पुस्तक

विक्रम विश्वविद्यालय के शलाका दीर्घा सभागार में आयोजित विशेष बैठक में मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा के सम्पादन में हाल ही में प्रकाशित पुस्तक महात्मा गांधी : विचार और नवाचार का विमोचन किया। विक्रम विश्वविद्यालय में महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती पर कुलपति प्रो. बालकृष्ण शर्मा के मार्गदर्शन में लगभग सौ दिवस की विस्तृत और समावेशी कार्ययोजना तैयार की गई थी। इस पुस्तक में गांधी जी के विचारों पर एकाग्र आलेखों के साथ विश्वविद्यालय द्वारा व्यापक सहभागिता के साथ किए गए नवाचारों का समावेश किया गया है। पुस्तक के विमोचन अवसर पर कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा, कुलसचिव डॉ डी के बग्गा एवं पुस्तक के संपादक प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा उपस्थित थे।

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार पुस्तक का लोकार्पण

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार | सम्पादक प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा
महात्मा गांधी : विचार और नवाचार पुस्तक | सम्पादक प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा| Mahatma Gandhi : Vichar aur Navachar |A Book on Gandhi Thought and Innovation 
उच्च शिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव ने बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा कि हम सब संकल्प लें कि विश्वविद्यालय को ऊंचाइयों तक ले जाने का प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि विक्रम विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय में परिवर्तित करने का प्रयास किया जायेगा। चुनौती में ही अवसर मिलते हैं। आने वाले समय में नई संकल्पनाओं के साथ विश्वविद्यालय में नये पाठ्यक्रमों को शामिल कर शिक्षा के माध्यम से युवा पीढ़ी को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जाने का प्रयास किया जायेगा। वर्तमान व्यवस्थाओं के साथ केन्द्र सरकार द्वारा लागू की गई नई शिक्षा नीति से और नये आयाम जुड़ेंगे।


महात्मा गांधी : विचार और नवाचार पुस्तक | सम्पादक प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा |Mahatma Gandhi : Vichar aur Navachar |A Book on Gandhi Thought and Innovation 
 
कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि महात्मा गांधी के 150 वें जयंती वर्ष पर पूरे वर्ष में लगभग अस्सी दिवसों में गांधी जी के कृतित्व, विचार, संदेश और सामुदायिक प्रयत्नों पर केंद्रित विविधायामी गतिविधियों और नवाचारों का संयोजन किया गया, जो देश - दुनिया की किसी भी संस्था के माध्यम से किए गए कार्यक्रमों के मध्य एक विलक्षण उपलब्धि बना है। 



पुस्तक के सम्पादक हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि ‘महात्मा गांधी : विचार और नवाचार’ पुस्तक में गांधी के जीवन, कार्यों और विचारों पर केंद्रित शोधपूर्ण आलेखों, दुर्लभ चित्रों के साथ कला, साहित्य, भाषाओं, समाज विज्ञानों, विविध भौतिक एवं जीवन विज्ञानों के शिक्षकों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों के सहयोग से किए गए नवाचारों को स्थान मिला है। 


प्रारम्भ में उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.मोहन यादव का विक्रम विश्वविद्यालय  द्वारा आत्मीय स्वागत किया। विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बालकृष्ण शर्मा एवं कुलसचिव डॉ. डी के बग्गा ने शाल, श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह भेंटकर उन्हें सम्मानित किया।







कार्यक्रम में पूर्व कुलपति प्रो. रामराजेश मिश्र, प्रो. पी के वर्मा, डॉ. आर के अहिरवार, डॉ. सत्येंद्र किशोर मिश्रा आदि ने भी विचार व्यक्त किए।















20200522

हरियाले आँचल का हरकारा हरीश निगम – डॉ. शैलेंद्रकुमार शर्मा

हरियाले आँचल का हरकारा हरीश निगम – सम्पा. डॉ. शैलेंद्रकुमार शर्मा Shailendrakumar Sharma

मालवी कविता के प्रतिनिधि स्वर को सहेजती पुस्तक : भूमिका से 

समकालीन भारतीय कविता को लेकर प्रायः यह चिंतातुर स्वर सुनने में आता है कि कविता लोक सामान्य से दूर होती जा रही है। इसके पीछे एक प्रमुख कारण रहा है कि कथ्य, विचार और भाषा - सभी स्तरों पर कविता का लोक, लोक कविता या यूँ कहें समूची लोकधारा से परे होता जा रहा है। इस विलगाव के रहते कथित शिष्ट साहित्य में जटिलता और रूपवादी रुझान उभार पर हैं। देश के विभिन्न अंचलों की बोलियों में रची जा रहीं कविताएँ इस तरह के संकटों से प्रायः मुक्त रही हैं। अन्य आंचलिक बोलियों की तरह भारत के हृदय प्रदेश मालवा की सुगंध और मार्दव को समेटे मालवी की समकालीन कविता का यहाँ की भूमि, जन और संस्कृति से गहरा रिश्ता है, जो उसे वैशिष्ट्य देता है।

मालवी के स्तरीय काव्य मंचों की जो तस्वीरें मेरे मनोमस्तिष्क पर अंकित हैं, उसके सबसे आभामय चेहरों में एक हैं - श्री हरीश निगम (3 मई 1928)। मालव माटी से जुड़ी उनकी सरस अभिव्यक्तियाँ, कर्ण मधुर आवाज, लयपूर्ण गायकी और जीवन के सामान्य से सामान्य क्रियाकलापों और दृश्यों में कविता के कथ्य को खोज लेने की उनकी जन्मजात क्षमता - यह सब मुझे निरंतर आकृष्ट करते रहे हैं। प्रायः समस्त मालवी प्रेमियों की तरह मैं भी उनका श्रोता और दर्शक पहले रहा हूँ, पाठक बाद में। तब से लेकर अब तक लोक मन में उनकी गहरी प्रतिष्ठा को मैंने देखा - महसूस किया है। उनकी छवि लोक जीवन के अत्यंत समर्थ और भावुक हृदय कवि के रूप में लोकमानस में अंकित है। मालवी कविता के प्रमुख स्तम्भ श्री हरीश निगम की चर्चित काव्य कृतियाँ हैं - कुसुम कुंज (1958), हरियालो आंचल (1961 एवं 1980), हिरना सांवली (1982), अपरंच (2004) आदि। उन्होंने संस्कृत - हिंदी की अनेक कृतियों के मालवी रूपांतर किए, जिनमें प्रमुख हैं- भास का स्वप्नवासवदत्ता (सपना में रानी), शूद्रक का मृच्छकटिक (गारा की गाड़ी), तुलसी के रामचरितमानस का नाट्य रूपांतर लोकमानस राम आदि। लोक संस्कृति पर केंद्रित पत्रिका सांझी के संपादक के रूप में उन्होंने अनेक विशेषांक निकाले, जिनमें प्रमुख हैं - भर्तृहरि विशेषांक, तुलसी विशेषांक, लोक संस्कृति विशेषांक, लोक कथा विशेषांक, भेराजी विशेषांक, तुलसी पंचशती विशेषांक, सिंहस्थ विशेषांक आदि।
श्री निगम के काव्य का स्वाभाविक स्वर शृंगार और हास्य - व्यंग्य का रहा है, जिसमें उन्होंने मालवा के आंतरिक राग और उल्लास को काव्यमय निष्पत्ति दी है। उनका यह स्वर एक सजग कवि के रूप में समय-समय पर परिवर्तित - विस्तारित भी होता रहा। चीन या पाकिस्तान से युद्ध का दौर रहा हो या श्रम और निर्माण की नई तस्वीरें गढ़ने का वक्त, कविवर श्री निगम उत्कट चेतनाशीलता के साथ अपने युग का नमक अदा करते रहे। कवि और आस्वादक के बीच बढ़ती संवादहीनता के दौर में भी उन्होंने अपने लोकधर्मी काव्य के माध्यम से साहित्य के लोकमंगल विधान और कांतासम्मित उपदेश जैसे प्रयोजनों को सिद्ध कर दिखाया। 

श्री हरीश निगम लोक मन और लोक छवि के रचनाकार हैं। इसलिए उनके काव्य का वैशिष्ट्य सहज और सामान्य हो जाने में है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार सच्चा कवि वह है, जिसे लोक हृदय की पहचान हो। श्री निगम ऐसे ही कवि हैं, जिन्होंने लोक हृदय के अपार एवं अद्भुत सागर का अवगाहन किया है और उसकी अतल गहराइयों से शब्दार्थ एवं संवेदना रूपी रत्न लाकर साहित्य जगत् को सोपे हैं। कवि की चिंता लोक की चिंता है और कवि का सुख लोक का सुख। यही वजह है कि श्री निगम की कविता की परिव्याप्ति में लोक जीवन के हास – अश्रु, उल्लास - संघर्ष, प्रेम – विरह - सभी कुछ समाहित हैं, वही राष्ट्र जीवन की समस्याएँ भी अनछुई नहीं रही हैं। श्री निगम का मालवा के लोक जीवन से तादात्म्य संबंध है। इसी लोक जीवन से उन्होंने शब्दों का चयन किया है, बिंबों और प्रतीकों को आत्मसात किया है और उसी से छंद और लय प्राप्त किए हैं। उनकी कविताएं आधुनिक होने के बावजूद वाचिक परंपरा से गहरे जुड़ी हैं। 

प्रसिद्ध रचना हरियालो आँचल में मालवा की रंगत को उन्होंने कुछ इस तरह शब्दों में ढाला है: 
दिल्ली तो देखी ली रानी, म्हारे साते चाल वो।
भारत माता का हिरदा में जड्यो रतन सो मालवो।

मालवा सहित मध्यप्रदेश की लोक परम्पराएँ यहाँ पूरी धज के साथ उतरती हैं :
आल्हा - उदल, ताल, ठुमरी, नौटंकी और ब्रह्मानंद। 
गरबा, माच, राम की लीला हुइरिया हे स्वर्गीय आनंद। 
चंद्रसखी का भाव गीत में बाजे कितरा साज वो 
नानी बई का मामेरा में बाजे कितरा साज वो। 
रामदेव को ब्याव गवई रियो, भर्यो हुओ चौपाल वो 
भारत माता का हिरदा में जड्यो रतन सो मालवो।
  
इस कविता को पद्मभूषण पं सूर्यनारायण व्यास ने मालवा की जीवती - जागती झाँकी कहा है :  मेघदूत में जिस तरा हर जगे को वर्णन उना स्थान की खास विशेषता के अपने सामने लई दे है। उनी तरेज हरीश जी की कविता तीर्थ यात्रा में अपना साथ लई जावे हे  प्रत्येक स्थान का वर्णन सरस, मनोहारी और सजीव बनी गयो हे। फिर मालवी को अपनो मीठोपन  ऊ में दूध में शक्कर की तरे घुली मिली के और भी रसमय बनई दियो हे।  पूरी कविता मालव प्रदेश की जीवती जागती झांकी है।

उनकी एक प्रसिद्ध रचना है जिसमें उन्होंने ग्राम बाला के सौंदर्य और गतिमयता को ध्वनि - संगीत और प्रकृति के हृदयग्राही वातावरण के साथ एक रूप कर दिया है: 

गोरड़ी चले मन मोरड़ी चले
रुनक - झुनक बिछिया पे ताल है बजे,
सांवरा की बंसरी पर ख्याल है बजे।
दिवला से बात मिले, तरुवर से पात मिले,
छलिया को प्यार देख, आज है छले, गोरड़ी चले।

आजादी के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था आई और पुरानी परिपाटी समाप्त होने लगी। शोषण और दमन के प्रतीक ढहने लगे, तब उन्होंने जागीरदारी प्रथा पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी लिखी : 

जागीरदार की गयी जागीरी, गयो मूँछ को ताव
अब पड़ेगा मालूम ठाकर लूण, तेल, लकड़ी का भाव।
मोटा-मोटा पोत्या बाँधा, कम्मर में खूँसी तलवार,
छोरा-छोरी खाए जलेबियाँ, गिरवे है आखो घर बार। 

डॉ शैलेंद्रकुमार शर्मा की पुस्तक हरियाले आँचल का हरकारा हरीश निगम


मालवी कवि श्री हरीश निगम इस देश के हरियाले आँचल अर्थात् मालवा के प्रतिनिधि कवि हैं। उन्होंने हरियालो आँचल नाम से एक सुदीर्घ कविता लिखी है, जो देश भर में बहुचर्चित - बहुप्रशंसित रही है। इस कृति में उन्होंने कालिदास के मेघदूत की शृंखला में नई प्रयोगधर्मिता के साथ मालवा की छवि को कल्पनाकुशल ढंग से अंकित किया है। यह छवि मात्र नैसर्गिक या सांस्कृतिक ही नहीं है, उसमें बहुत सारे आयाम अनायास ही समाहित हो गए हैं। इन सारे आयामों को कवि ने एक हरकारे (संदेशवाहक) के रूप में देशवासियों तक संप्रेषित करने के लिए समर्थ प्रयास किया। इसके अतिरिक्त अन्य गीत और कविताओं के माध्यम से भी उन्होंने स्वतंत्र भारत के संवर्धन, सुरक्षा, सद्भाव और सुसंगति के लिए भी जन - जन तक सरस संदेश पहुंचाए हैं, हरियाली आंचल के कर्मनिष्ठ हरकारा बनकर। उनके हरकारा रूप में कालिदास से लेकर कबीर तक और निराला से लेकर नवीन तक अनेक संदेशदाता कवियों की छवियों को महसूस किया जा सकता है।

भारत के लोक सांस्कृतिक परिदृश्य को देखें तो मालवी लोक साहित्य एवं संस्कृति की उत्कृष्टता पद्मभूषण पंडित सूर्यनारायण व्यास, डॉ श्याम परमार, डॉ चिंतामणि उपाध्याय, डॉ बसंतीलाल बम, डॉ प्रह्लादचंद्र जोशी आदि के व्यापक प्रयत्नों से स्थापित तथ्य बन गई है। इधर मालवी की नई रचनाधर्मिता के मूल्यांकन - समीक्षण का अभाव सुधीजनों को खटकता रहा। इस दृष्टि से मालवी के प्रतिनिधि कवि श्री हरीश निगम के विविधायामी व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर पुस्तक की योजना तैयार हुई, जो डॉ शैलेंद्रकुमार शर्मा द्वारा संपादित पुस्तक हरियाले आंचल का हरकारा हरीश निगम के रूप में आपके सम्मुख है।

पुस्तक में पद्मभूषण सूर्यनारायण व्यास, पद्मभूषण डॉ शिवमंगलसिंह सुमन, श्री गोपालदास नीरज, सुल्तान मामा, डॉ चिंतामणि उपाध्याय, श्री बालकवि बैरागी, श्री मदनमोहन व्यास, डॉ शिव शर्मा, डॉ प्रभातकुमार भट्टाचार्य, श्री बटुक चतुर्वेदी, प्रो कलानिधि चंचल, डॉ बसंतीलाल बम, डॉ श्यामसुंदर निगम, आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी, डॉ शिवसहाय पाठक, आचार्य श्री निवास रथ, डॉ मोहन गुप्त आदि की टिप्पणियाँ और संस्मरण संकलित हैं।

सुधी साहित्यकार डॉ प्रहलादचंद्र जोशी, डॉ शिवकुमार मधुर, श्री नटवरलाल स्नेही, श्री राजशेखर व्यास, श्री रामरतन ज्वेल, श्री हरिनारायण व्यास, डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित, श्री मोहन सोनी, डॉ शिव चौरसिया, डॉ विष्णु भटनागर, श्री नरहरि पटेल, श्री चंद्रशेखर दुबे, श्री ललितनारायण उपाध्याय, प्रो हरीश प्रधान, अशोक वक्त, डॉ पूरन सहगल, डॉ विनय कुमार पाठक, डॉ भगीरथ बड़ोले, डॉ शैलेंद्रकुमार शर्मा, श्री बसंत निरगुणे,  श्री नर्मदाप्रसाद उपाध्याय, डॉ जगदीशचंद्र शर्मा, डॉ हरीशकुमार सिंह, श्री वेद हिमांशु, डॉ रश्मिकांत व्यास, डॉ विलास गुप्ते, श्री झलक निगम, डॉ विवेक चौरसिया, श्रीमती उर्मिला निरखे, श्रीमती जयश्री भटनागर, डॉ राजी अशोक, श्रीमती मंजू निगम, श्री प्रदीप बैस, सीमा निगम आदि के आलेख, संस्मरण एवं टिप्पणियां इस पुस्तक में समाहित हैं। 

- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
हरियाले आँचल का हरकारा हरीश निगम
संपादक : डॉ. शैलेंद्रकुमार शर्मा
ऋषि मुनि प्रकाशन

20200515

मालव सुत पं सूर्यनारायण व्यास - सम्पादक हरीश निगम, डॉ शैलेंद्रकुमार शर्मा, डॉ हरीश प्रधान

मालव सुत पं सूर्यनारायण व्यास : सम्पा हरीश निगम, डॉ शैलेंद्रकुमार शर्मा, डॉ हरीश प्रधान
Malav Sut Pt. Suryanarayan Vyas : Edited by Harish Nigam, Dr Shailendra kumar Sharma, Dr Harish Pradhan 

पं सूर्यनारायण व्यास के विलक्षण अवदान को सहेजती एक पुस्तक 

पुण्यश्लोक पं सूर्यनारायण व्यास ( 2 मार्च 1902 ई. - 22 जून 1976 ई.) विलक्षण व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे साथ कई रूपों - प्राच्यविद्या विद्, साहित्य मनीषी, इतिहासकार, सर्जक, पत्रकार, ज्योतिर्विद् और राष्ट्रीय आंदोलन के अनन्य स्तम्भ के रूप में सक्रिय रहे। महाकालेश्वर के समीपस्थ उनका निवास भारती भवन क्रांतिकारियों से लेकर संस्कृतिकर्मियों की गतिविधियों का केंद्र रहा। पं व्यास जी के विविधायामी अवदान पर केंद्रित महत्त्वपूर्ण पुस्तक ‘मालव सुत पं सूर्यनारायण व्यास’ साहित्यकार श्री हरीश निगम, डॉ शैलेंद्रकुमार शर्मा एवं डॉ हरीश प्रधान के सम्पादन में प्रकाशित हुई थी।



लोकमानस अकादमी एवं साँझी पत्रिका द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक के प्रथम खंड में पंडित सूर्यनारायण व्यास के व्यक्तित्व और विविधमुखी अवदान पर केंद्रित महत्वपूर्ण आलेखों का समावेश किया गया है। इस खंड के प्रमुख लेखक हैं -  कविवर डॉ शिवमंगल सिंह सुमन, पुरातत्त्ववेत्ता श्री विष्णु श्रीधर वाकणकर, आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी, श्री परिपूर्णानंद वर्मा, आचार्य श्रीनिवास रथ, श्री बालकवि बैरागी, डॉ प्रभाकर श्रोत्रिय, पंडित व्यास के सुपुत्र श्री राजशेखर व्यास, डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित, आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी, डॉ बसंतीलाल बम, डॉ प्रहलादचंद्र जोशी, डॉ शिव चौरसिया, इब्बार रब्बी, श्री हरीश निगम, डॉ शैलेंद्रकुमार शर्मा, श्री मोहन सोनी, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, श्री परमात्मानंद पांडेय, श्री रमेश निर्मल, प्रो कलानिधि चंचल, डॉ रश्मिकांत व्यास, श्री राजपाल आर्य, शिवनारायण उपाध्याय शिव, अभिमन्यु डिब्बेवाला, डॉ विवेक चौरसिया आदि। 

दूसरे खंड में पंडित व्यास की कुछ प्रतिनिधि रचनाओं का संकलन है। इनमें उनके चर्चित व्यंग्य आंखों देखी अपनी मौत, मूर्ति का मसला, अपनी आत्मकथा लिखना चाहता हूं - - - पर, कविता यह हिमशैल हमारा है आदि का समावेश किया गया है। इस खंड से स्पष्ट दिखाई देता है कि दशकों पहले हिंदी व्यंग्य को समर्थ बनाने में पं व्यास जी के प्रयत्न आज रंग ला रहे हैं। 

शैलेंद्रकुमार शर्मा की पुस्तक मालव सुत पं सूर्यनारायण व्यास Book of Shailendra Kumar Sharma 



अनवरत यात्रा : सूर्योदय से सूर्यास्त तक के माध्यम से डॉ प्रभाकर श्रोत्रिय एवं श्री राजशेखर व्यास ने पंडित व्यास जी की जीवन यात्रा के पड़ावों और उनके अवदान का रूपांकन किया है। श्री राजशेखर व्यास ने अपने लेख एक पत्र जिसने एक शहर बनाया के माध्यम से पंडित जी द्वारा स्थापित एवं संपादित मासिक पत्र विक्रम के अवदान की चर्चा की है। उन्होंने लिखा है, जी हां, विक्रम नाम से सुशोभित यह मासिक पत्र उज्जैन से प्रकाशित हुआ था और न केवल प्रकाशित हुआ था, अपितु तत्कालीन मासिक सरस्वती, चांद, माधुरी, हंस, विश्वमित्र के स्तर से विक्रम का कोई भी अंक उन्नीस नहीं होता था। विक्रम के जन्म का श्रेय स्वर्गीय पांडेय बेचन शर्मा उग्र को दिया जाता है, जो 1942 में उज्जयिनी के भास्कर स्वर्गीय पंडित सूर्यनारायण व्यास के आवास भारती भवन में आकर ठहरे थे। उज्जैन उनको भा गया था। व्यास जी के एक मित्र सुपरिचित कन्हैयालाल चौरसिया का प्रेस था। चौरसिया जी प्रायः भारती भवन आते रहते थे। एक रोज अचानक पत्र की चर्चा चल पड़ी। वार्तालाप के दौरान चौरसिया जी उग्र जी से बहुत प्रभावित हुए और पत्र निकालने को राजी हो गए। व्यास जी संरक्षक बने, संपादक उग्र जी एवं संचालक चौरसिया जी बने और इस तरह अप्रैल 1942 को प्रथम अंक का प्रकाशन हुआ। इस लेख में श्री राजशेखर व्यास ने विक्रम में पं व्यास जी के सोलह पृष्ठीय संपादकीय की चर्चा की है, वहीं इस पत्र के संघर्षों, प्रेरणाओं और योगदान को बड़ी मार्मिकता से उद्घाटित किया है। 




प्रख्यात कवि डॉ शिवमंगल सिंह सुमन ने अपने लेख पुण्यश्लोक  प्रियदर्शी पंडित सूर्यनारायण व्यास  में पंडित व्यास की बहुमुखी प्रतिभा की चर्चा की है। उन्होंने ठीक ही लिखा है, जैसे जैसे समय बीत रहा है, लगता है कि व्यास जी के बिना उज्जयिनी की कल्पना नहीं की जा सकती। इस पुण्यतीर्थ के वे प्रबुद्ध प्रचेतस थे, रामझरोखे में बैठकर हरसिद्धि प्राप्ति में आने वालों का दर्शन करने वाले। मालव भूमि के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का ऐसा एक प्रहरी सदियों बाद अवतरित हुआ था। आज का विक्रम विश्वविद्यालय, विक्रम कीर्ति मंदिर और कालिदास स्मृति मंदिर के अप्रतिहत अनुष्ठान के प्रतीक हैं। कौन जान पाएगा कि  अवंती जनपद के स्वर्णिम अतीत को वर्तमान में ढालने के उसने क्या-क्या सपने संजोए थे।  प्रथम अखिल भारतीय कालिदास समारोह के ऐतिहासिक अधिवेशन का पुण्य पर्व आज भी प्रभात के सपने की स्मृति में सजीव बना हुआ है। पुष्यमित्र शुंग के बाद शायद ही ऐसी यज्ञ की वेदी इस भूमि में अवतरित हुई हो। अद्भुत दृश्य था, जब भारत का चक्रवर्ती सम्राट राष्ट्रपति राजेंद्रप्रसाद अपनी गरिमा के समस्त विधि - विधानों को भूलकर महर्षि व्यास की पीठ को नमन करने पहुंच गया था। 





पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर ने व्यास जी : अनेक मुखड़े - सभी उज्जवल निबन्ध के माध्यम से उनके जीवन के महत्त्वपूर्ण पक्षों पर प्रकाश डाला है। आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी ने पंडित व्यास से जुड़े कुछ भीगे संस्मरण प्रस्तुत किए हैं। आचार्य श्रीनिवास रथ, डॉ बसंतीलाल बम,  डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित, प्रो कलानिधि चंचल, डॉ प्रह्लादचंद्र जोशी, श्री परिपूर्णानंद वर्मा, बालकवि बैरागी, आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी आदि ने व्यास जी के बहुआयामी व्यक्तित्व, कृतित्व और संस्मरणों को अपने आलेखों में प्रस्तुत किया है। मालवी कवि श्री हरीश निगम ने मालवी भाषा और साहित्य के उन्नायक के रूप में पंडित व्यास के योगदान की चर्चा की है। डॉक्टर जगदीश चंद्र शर्मा ने पंडित व्यास के व्यंग्य विनोद लेखन के वैशिष्ट्य पर प्रकाश डाला है।




पुस्तक के संपादक डॉ शैलेंद्रकुमार शर्मा ने मालवा की पत्रकारिता और विक्रम संपादक पंडित सूर्यनारायण व्यास  आलेख के माध्यम से  पंडित व्यास के  पत्रकारिता  कर्म  पर सविस्तार प्रकाश डाला है। डॉ शर्मा के अनुसार यद्यपि भारत में पत्रकारिता का आगमन पश्चिम की देन है, किंतु शीघ्र ही यह सैकड़ों वर्षों की निद्रा में सोये भारत की जाग्रति का माध्यम सिद्ध हुई। विश्वजनीन सूचना-संचार के इस विलक्षण माध्यम ने पिछली दो शताब्दियों में अद्भुत प्रगति की है। वहीं भारतीय परिदृश्य में देखें, तो हमारी जातीय चेतना के अभ्युदय, आधुनिक विश्व के साथ हमकदमी, स्वातंत्र्य की उपलब्धि और राजनैतिक-सामाजिक चेतना के प्रसार में हिन्दी पत्रकारिता की अहम भूमिका रही है। पत्रकारिता और साहित्य की परस्परावलंबी भूमिका और दोनों की समाज के प्रतिबिम्ब के रूप में स्वीकार्यता आधुनिक भारत का अभिलक्षण बन कर उभरी है, तो उसके पीछे जो स्पष्ट कारण नज़र आता है, वह है महनीय व्यक्तित्वों की साहित्य एवं पत्रकारिता के बीच स्वाभाविक चहलकदमी। ऐसे साहित्यिकों की सुदीर्घ परम्परा में विविधायामी कृतित्व के पर्याय पद्मभूषण पं. सूर्यनारायण व्यास (1902 - 1976 ई.) का नाम अविस्मरणीय है, जिन्होंने देश के हृदय अंचल ‘मालवा’ की पुरातन और गौरवमयी नगरी उज्जैन से ‘विक्रम’ मासिक के सम्पादन-प्रकाशन के माध्यम से पत्रकारिता की ऊर्जा को समर्थ ढंग से रेखांकित किया। पं व्यास की पत्रकारिता की उपलब्धि अपने नगर, अंचल और राष्ट्र के पुनर्जागरण और सांस्कृतिक अभ्युदय से लेकर हिन्दी पत्रकारिता को नए तेवर, नई भाषा और नए औजारों से लैस करने में दिखाई देती है, जहाँ पहुँचकर राजनीति, साहित्य, संस्कृति और पत्रकारिता के बीच की भेदक रेखाएँ समाप्त हो गईं। लगभग छह दशक पहले मालवा की हिन्दी पत्रकारिता के खास स्वभाव को गढ़ने से लेकर राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में आज उसकी अलग पहचान को निर्धारित करवाने में पं. व्यासजी और उनके ‘विक्रम’ की विशिष्ट भूमिका रही है।




डॉ शिव चौरसिया, शिवनारायण उपाध्याय शिव, अभिमन्यु डिब्बेवाला और मोहन सोनी ने अपनी कविताओं के माध्यम से पंडित व्यास जी को काव्यांजलि दी है। इस पुस्तक में श्री राजशेखर व्यास द्वारा उपलब्ध करवाए गए पं व्यास जी के अनेक दुर्लभ चित्र संजोए गए हैं। वस्तुतः व्यास जी की जन्मशती पर विविध प्रकल्पों के माध्यम से प्रसिद्ध लेखक और मीडिया विशेषज्ञ पं राजशेखर व्यास ने पितृ ऋण से अधिक राष्ट्र ऋण चुकाने का कार्य किया था। पण्डित व्यास जी के सम्बंध में ठीक ही कहा जाता है कि उनके जैसे वे ही थे। 




पुस्तक: मालव सुत पं सूर्यनारायण व्यास

सम्पादक: श्री हरीश निगम, डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा एवं डॉ. हरीश प्रधान
प्रकाशक: लोक मानस अकादेमी एवम् साँझी पत्रिका

20200512

स्त्री विमर्श : परंपरा और नवीन आयाम - प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, डॉ. मोहन बैरागी

स्त्री विमर्श : परंपरा और नवीन आयाम - संपादक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, डॉ. मोहन बैरागी 

Stri Vimarsh : Parampra Aur Naveen Ayam - Prof. Shailendrakumar Sharma, Dr. Mohan Bairagi

संपादकीय :
स्त्री विमर्श महज एक बौद्धिक विमर्श नहीं है, यह व्यापक सामाजिक - सांस्कृतिक - वैचारिक परिवर्तन का माध्यम है। यह इस बात की ओर तीखा संकेत करता है कि यह दुनिया स्त्री के लिए शायद नहीं बनी है और अब स्त्री इसे फिर से बनाना चाहती है। पुरुषवर्चस्ववादी समाज के बीच विलम्ब से ही सही, स्त्री विमर्श को मुकम्मल जगह मिल गई है। समकालीन चैंतनिक परिदृश्य  में यह विमर्श एक महत्त्वपूर्ण उपस्थिति बन गया है। साहित्य और संस्कृति के फलक पर इसकी व्याप्ति जहाँ विचारोत्तेजक रही, वहीं निरंतर जटिल होती सामाजिक - आर्थिक संरचना के बरअक्स इसके कई नए आयाम उभरे हैं।

यह तय बात है कि आज भारतीय समाज में सदियों पुरानी नारी स्थिति से पर्याप्त अंतर आ गया है, किन्तु यह भी सच है कि भारतीय समाज के वैचारिक दायरे में कोई बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं आ सका है। नारी के उद्विकास को पुरुष वर्चस्ववादी समाज ने स्वीकारना भले ही शुरू कर दिया है, किंतु उसकी समस्याएँ कई नए रूप-रंगों में ढलकर सामने आ रही हैं।

शैलेंद्रकुमार शर्मा की पुस्तक स्त्री विमर्श परम्परा और नवीन आयाम Book of Shailendra Kumar Sharma 

वैश्विक परिदृश्य में स्त्रियों के संघर्ष और सशक्तीकरण की दिशा में व्यापक प्रयास हुए हैं। इधर भारत में पुनर्जागरण के दौर में स्त्री अधिकारों के प्रति व्यापक सजगता प्रारंभ हुई, वहीं राष्ट्रीय आंदोलन में सहभागिता के साथ समानांतर शैक्षिक और सांस्कृतिक बदलाव में स्त्रियों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। आधुनिक भारतीय परिप्रेक्ष्य में अनेक स्त्री रत्नों ने व्यापक प्रयास किए, जिनमें सावित्रीबाई फुले, रमाबाई आंबेडकर, एनीबेसेंट,  काशीबाई कानिटकर, भगिनी निवेदिता, भीकाजी कामा, कुमुदिनी मित्रा, लीलावती मित्रा, कस्तूरबा गांधी, सरोजिनी नायडू, सुभद्राकुमारी चौहान, महादेवी वर्मा आदि उल्लेखनीय हैं।

स्त्री विमर्श : परम्परा और नवीन आयाम पुस्तक में स्त्री विमर्श के विविध सरोकारों पर अन्तरानुशासनिक दृष्टि से गम्भीर पड़ताल हुई है। नारी विमर्श को लेकर साहित्यिक, सांस्कृतिक, समाजवैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक, दार्शनिक आदि अनेक दृष्टियों से विचार किया गया है। इस पुस्तक के माध्यम से यह पड़ताल भी सम्भव हुई है कि समकालीन हिन्दी कथा साहित्य में नारी जीवन से जुड़ी विद्रूपताओं और विसंगतियों के विरुद्ध प्रतिरोध के स्वर मुखरित हैं। विवेचना के केंद्र में कृष्णा सोबती, मृदुला गर्ग, प्रभा खेतान, ममता कालिया, चित्रा मुद्गल, सुधा अरोरा, नासिरा शर्मा, कमल कुमार, मेहरून्निसा परवेज, मैत्रेयी पुष्पा, रमणिका गुप्ता आदि का कथा साहित्य रहा है। स्त्री कविता में नारी के अंतर्बाह्य संघर्ष और परिवर्तनकारी प्रयत्नों की आहट को इस पुस्तक में महसूस किया जा सकता है। पुरुष रचनाधर्मिता के परिप्रेक्ष्य में नारी विमर्श के स्वर भी इस पुस्तक में मुखरित हुए हैं।

पुस्तक में यू.एस.ए. की विदुषी डॉ. अम्बा सारा कॉडवेल ने अपने विशेष आलेख 'Shakti and Shakta' के माध्यम से भारत में शक्ति पूजा की परम्परा एवं अनेक दर्शनों के आलोक में नारी विमर्श के विविध आयामों की गम्भीर पड़ताल की है। उन्होंने माना है कि भारत में शक्ति रूप में नारी के महत्त्व और उसके प्रभाव की व्यापक अभिव्यक्ति हुई है। यह संपूर्ण विश्व में अद्वितीय है। दक्षिण एशियाई धर्मों में देवी की उदात्त और सुंदर छबियों को जन्म मिला, जिन्हें दुनिया ने कभी नहीं देखा था। उन्हें हम अत्यधिक रहस्यात्मक और सशक्त कह सकते हैं। मिनिएचर पेंटिंग, मूर्ति शिल्प आदि अनेक माध्यमों से दुर्गा, काली, सीता, राधा आदि की महत्त्वपूर्ण अभिव्यक्ति हुई है। शैव और शाक्त दर्शनों के माध्यम से देवी आराधना के कई रूप प्रकट होते हैं, जहाँ स्त्री को विद्या, विजय, आनन्द और सृजन के स्रोत के रूप में महिमा मिली है।

पुस्तक में स्त्री विमर्श की परंपरा को नए आयामों में रूपांतरित होते हुए देखा जा सकता है। स्त्री विमर्श  पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खिलाफ मुखर होने के बाद  अब व्यापक मनुष्यता की दिशा में गतिशील है। और यह स्त्रियों के लंबे संघर्ष से ही संभव हो सका है।

- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

20200510

मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Malvi Language and Literature : Prof. Shailendra Kumar Sharma

मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

Malvi Bhasha Aur Sahitya:
Prof. Shailendrakumar Sharma

पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या

Book Review : Dr. Shweta Pandya 

मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई दिशा 

लोक भाषा, लोक साहित्य और संस्कृति का मानव सभ्यता के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है। भाषा मानव समुदाय में परस्पर सम्पर्क और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी प्रकार क्षेत्र-विशेष की भाषा एवं बोलियों का अपना महत्त्व होता है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जुड़े विशाल वाङ्मय में मालवा प्रदेश, अपनी मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति के कारण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ की भाषा एवं लोक-संस्कृति ने  अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मालवी भाषा और साहित्य के विशिष्ट विद्वानों में डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। प्रो. शर्मा हिन्दी आलोचना के आधुनिक परिदृश्य के विशिष्ट समीक्षकों में से एक हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के साथ-साथ मालवी भाषा, लोक एवं शिष्ट साहित्य और संस्कृति की परम्परा को आलोचित - विवेचित करने का महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक प्रयास किया है। उनकी साहित्य-समीक्षा में सुस्पष्ट व्यावहारिक विश्लेषण भी दृष्टिगोचर होता है, जो निश्चित रूप से  सार्थक साहित्य दृष्टि के निर्माण में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।

मालवी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा की पुस्तक मालवी भाषा और साहित्य का अप्रतिम स्थान है। इस पुस्तक के मुख्य सम्पादक एवं लेखक डॉ.  शैलेन्द्रकुमार शर्मा हैं। उनके साथ सम्पादन सहयोग डॉ. दिलीपकुमार चौहान एवं डॉ. अजय गौतम ने किया है। इसका प्रकाशन मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल द्वारा किया गया है।

शैलेंद्रकुमार शर्मा की पुस्तक मालवी भाषा और साहित्य Book of Shailendra Kumar Sharma

इस पुस्तक की शताधिक पृष्ठीय सुविस्तृत भूमिका में डॉ. शैलेंद्रकुमार शर्मा द्वारा मालवी भाषा और साहित्य के प्रत्येक पहलू पर विस्तृत विवेचन किया गया है।  प्रथम भाग के अन्तर्गत मालवी भाषा की प्रमुख विशेषताओं, भेद – प्रभेद, मालवी साहित्य के इतिहास, प्रमुख धाराओं और साहित्यकारों के अवदान पर प्रकाश डाला गया है। द्वितीय भाग के अन्तर्गत मालवी के प्रख्यात कवियों के वैशिष्ट्य निरूपण के साथ उनकी प्रतिनिधि रचनाओं को प्रस्तुत किया गया है।

कथित आधुनिकता के दौर में हम अपनी बोली - भाषा, साहित्य-संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं एवं प्रत्येक वर्ष लगभग दस भाषाएँ लुप्त हो रही हैं। यह समस्या मालवी भाषा और उसकी उपबोलियों के साथ भी है। इनके प्रयोक्ताओं की कमी होती जा रही है। इस समस्या के निराकरण हेतु इस पुस्तक की रचना की गई है अर्थात् हमारी भाषा एवं साहित्य-संस्कृति से पाठक और शिक्षार्थी लाभान्वित हों, वे उससे परिचित हों, इसी उद्देश्य से लेखक डॉ शर्मा ने इस पुस्तक का सृजन किया है।

पुस्तक का विषय मालवी भाषा और साहित्य अपने आप में पर्याप्त गुरु गम्भीर है। डॉ शर्मा ने विषय-विवेचन की दृष्टि से प्रथम खण्ड को इन शीर्षकों में विभाजित किया है - मालवा और मालवी, मालवी: उद्भव और विकास, मालवी और उसकी उपबोलियाँ, निमाड़ और निमाड़ी, मालवी साहित्य का इतिहास, नाट्य साहित्य, गद्य साहित्य, निमाड़ी साहित्य की विकास यात्रा इत्यादि। विवेचन के ये शीर्षक विवेच्य विषय की व्यापकता का आभास देते हैं।

मालवी भाषा, साहित्य और उसका इतिहास के अन्तर्गत सर्वप्रथम मालवा और मालवी को लेकर विवेचन किया है। यहाँ डॉ शर्मा ने मालवा शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के ‘माल’ शब्द से बताई है। मालवा के परिचय को जनश्रुति के अनुसार कबीर के माध्यम से इस प्रकार व्यक्त किया है -

‘देश मालवा गहन, गम्भीर, डग-डग रोटी पग-पग नीर।’

मालवा क्षेत्र के विस्तार को लोक में चर्चित उक्ति के माध्यम से नदियों के प्रवाह क्षेत्र के आधार पर निरूपित किया गया है :
 इत चम्बल उत बेतवा मालव सीम सुजान।
 दक्षिण दिसि है नर्मदा यह पूरी पहचान।।

इसका विस्तार मध्यप्रदेश और राजस्थान के लगभग बाईस जिलों में बताया गया है। साथ ही मालवी भाषा एवं इसकी सहोदरा निमाड़ी भाषा का प्रयोग करने वाले सभी जिलों, जैसे-वर्तमान में मालवी भाषा का प्रयोग, मध्यप्रदेश के उज्जैन सम्भाग के नीमच, मन्दसौर, रतलाम, उज्जैन, देवास, आगर एवं शाजापुर जिलों; भोपाल संभाग के सीहोर, राजगढ़, भोपाल, रायसेन और विदिशा जिलों; इंदौर संभाग के धार, इंदौर, हरदा, झाबुआ, अलीराजपुर जिले ; ग्वालियर संभाग के गुना जिले, राजस्थान के झालावाड़, प्रतापगढ़, बाँसवाड़ा एवं चित्तौड़गढ़ आदि जिलों के सीमावर्ती क्षेत्रों में होता है। इनके अलावा कुछ जिलों में मालवी के साथ बुंदेली, निमाड़ी एवं जनजातीय बोलियों के मिश्रित रूप प्रचलित हैं। मालवी की सहोदरा निमाड़ी भाषा का प्रयोग बड़वानी, खरगोन, खण्डवा, हरदा और बुरहानपुर जिलों में उल्लेखित किया गया है। मालवा-निमाड़ क्षेत्र को मानचित्र के माध्यम से दर्शाया गया है। निमाड़ शब्द की व्युत्पत्ति, भाषा एवं संस्कृति की दृष्टि से मालवी और निमाड़ी का अन्तः सम्बन्ध भी बताया है। विभिन्न कालों में परिस्थितियों में परिवर्तन के बावजूद मालवा के लोकजीवन और लोकमानस में मालवीपन की अक्षुण्णता को जीवन्त बताते हुए मालवी भाषा को अपने आप में एक विलक्षण भाषा के रूप में स्थापित किया है। प्रो शर्मा ने मालवी लोक-संस्कृति, लोक-परम्पराएँ, मालवा क्षेत्र में विविध ज्ञान और कला रूपों के विकास, लोक-साहित्य इत्यादि के आधार पर इसका महत्त्व एवं मालवी लोक भाषा और संस्कृति के संरक्षण-संवर्द्धन में किए गए प्रयत्नों की विवेचना की है। भारतीय लोक-नाट्य परम्परा में मालवा के ‘माच’ का विशिष्ट स्थान प्रतिपादित बताते हुए इसके वैशिष्ट्य और परम्परा के साथ ही मालवी साहित्य की परम्परा को समृद्ध करने वाले साहित्यकारों का उल्लेख किया गया है।

 प्रो शर्मा ने मालवी: उद्भव और विकास शीर्षक के अन्तर्गत वर्तमान मालवी का उद्भव क्रमशः आवन्ती एवं पैशाची प्राकृत तथा आवन्ती एवं पैशाची अपभ्रंश के मिश्रित रूप से बताया है। मालवी भाषा का उद्भव 700 ई. के आसपास से माना  है। मालवी का क्रम विकास तालिका के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। विभिन्न युगों में अन्य भाषाओं का मालवी भाषा पर प्रभाव तथा हिन्दी भाषा से इसकी समृद्धि का निरूपण किया गया है। मालवी और उसकी उपबोलियाँ शीर्षक के अन्तर्गत केन्द्रीय या आदर्श मालवी, सोंधवाड़ी, रजवाड़ी, दशोरी या दशपुरी, उमठवाड़ी, भीली सभी उपबोलियों के रूप का परिचय देते हुए इनकी व्याकरणिक विशेषताओं का भी उदाहरण सहित विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया गया है।

निमाड़ और निमाड़ी शीर्षक के अंतर्गत निमाड़ क्षेत्र के नामकरण को लेकर विभिन्न मान्यताओं को उद्धृत किया है। इस क्षेत्र का विस्तार- खण्डवा, बुरहानपुर, खरगोन, बड़वानी और हरदा जिलों में बताया है। यहाँ पर विभिन्न शासकों के आधिपत्य का भी वर्णन किया है। निमाड़ी भाषा की व्याकरणिक विशेषताएँ और विशेष रूप से मालवी एवं निमाड़ के पुरुषवाची, क्रिया रूप आदि की तुलना तीनों कालों में तालिका द्वारा स्पष्ट की है।

मालवी साहित्य का इतिहास शीर्षक के अन्तर्गत मालवी साहित्य के इतिहास को तीन भागों प्राचीनकाल (700 ई. से 1350 ई.), मध्यकाल (1351 ई. से 1850 ई.) एवं आधुनिक काल (1851 ई. से निरन्तर) में विभाजित किया है। प्राचीन युगीन मालवी साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियों में सिद्ध, नाथ एवं जैन काव्यधारा का लोकव्यापी विस्तार स्पष्टतः परिलक्षित किया गया है, जैसे- मुनि देवसेन के दर्शनसार, महाकवि स्वयंभू के स्वयंभूछन्द, महाकवि धनपाल के पाइअलच्छी इत्यादि ग्रन्थों में मालवी भाषा से साम्य रखते हुए दोहों तथा डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित द्वारा किए गए इन दोहों के मालवी रूपान्तर भी प्रस्तुत किए हैं।
प्रो शर्मा के अनुसार मालवी का मध्ययुगीन काव्य भक्ति एवं दर्शन के सूत्रों से आप्लावित था। इस दौर में निर्गुण-सगुण भक्तिधारा का प्रवाह तथा उत्तर मध्यकाल में शृंगारपरक काव्यधारा का प्रवाह बताया है। इस युग में मालवी में भक्ति काव्य की धारा प्रबल रूप लेती हुई दर्शाई गई है,  जिसका महत्त्व भारतीय चिन्तनधारा के परिप्रेक्ष्य के साथ जुड़ने तथा उसे लोक-व्याप्ति और विस्तार देने में भी परिलक्षित किया गया है। साथ ही यहाँ के सन्तों पर अनेक तत्कालीन धार्मिक आन्दोलनों, नाथपंथियों, निर्गुण भक्त कवियों तथा मत-मतान्तरों का प्रभाव बताया है। इसी युग में निर्गुणोपासक के रूप में संत कवि पीपाजी, सगुण भक्ति काव्यधारा को समृद्ध करने में चन्द्रसखी और शृंगारपरक काव्य सृजन के लिए रानी रूपमती के अप्रतिम योगदान को उदाहरण सहित विस्तार से उद्घाटित किया है।

आधुनिक काल में श्री नारायण व्यास ने मालवी में रामायण की रचना की थी। पद्मभूषण पं सूर्यनारायण व्यास ने स्वयं मालवी में लेखन किया और इसकी प्रगति के लिए निरंतर सक्रिय रहे। पन्नालाल शर्मा ‘नायाब’ ने मालवी में एकांकी एवं कविताएं रचीं। मालवी कवि एवं गीतकारों में प्रमुख रूप से आनन्दराव दुबे, पूनमचन्द सोनी, गिरवरसिंह भँवर, नरेन्द्रसिंह तोमर, हरीश निगम, मदनमोहन व्यास, बालकवि बैरागी, नरहरि पटेल, सुल्तान मामा, पुखराज पांडे, मोहन सोनी, डॉ शिव चौरसिया, जगन्नाथ विश्व, झलक निगम, नरेंद्र श्रीवास्तव नवनीत, मनोहरलाल कांठेड़, परमानन्द शर्मा अमन, हास्य-व्यंग्यपरक काव्यधारा में भावसार बा, प्रकृतिपरक खण्डकाव्य के रचनाकार डॉ. राजेश रावल ‘सुशील’, मालवी में रेडियो नाटक और सामयिक लेख लिखने वाले वरिष्ठ कवि सतीश श्रोत्रिय, मालवी गीत-गज़ल के साथ-साथ मुक्त छंद और हाइकू में भी सिद्धहस्त बंसीधर बंधु, अशोक आनन, डॉ देवेंद्र जोशी आदि,  मालवी हाइकू के आरम्भकर्ता सतीश दुबे एवं इसे समृद्ध करने वाले रचनाकारों में ललिता रावल और रामप्रसाद सहज इत्यादि मालवी के प्रख्यात कवियों एवं साहित्यकारों की रचनाओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी प्रस्तुत की है, जिनसे इन रचनाकारों का मालवी भाषा को विशिष्ट अवदान ज्ञात होता है। उपर्युक्त साहित्यकारों के अतिरिक्त शताधिक मालवी रचनाकारों, मालवा क्षेत्र में रहकर शोध करने वाले अध्येताओं एवं गद्यकारों का भी उल्लेख समीक्षक डॉ शर्मा ने किया है।

नाट्य-साहित्य शीर्षक के अन्तर्गत मालवा क्षेत्र का प्रतिनिधि लोक-नाट्य ‘माच’ को माना है। यह लोक-नाट्य, लोकरंजन और लोकमंगल के प्रभावी माध्यम के रूप में स्थापित है। इसकी उत्सभूमि उज्जैन एवं इसके उद्भव और विकास में मालवा की अनेक लोकानुरंजक कला प्रवृत्तियों का योगदान लेखक ने प्रतिपादित किया है। माच के प्रवर्तक गुरु गोपाल जी हैं। इनके द्वारा प्रणीत लोकप्रिय खेलों में गोपीचन्द, प्रहलाद चरित्र और हीर-रांझा का उल्लेख किया गया है। इनके अतिरिक्त माच परम्परा को आगे बढ़ाने वाले गुरुओं के नाम के साथ ही इनके द्वारा निर्मित माच के नाम भी उद्धृत किए गए हैं, जैसे- गुरु बालमुकुन्द जी- गेंन्दापरी, राजा हरिश्चन्द्र, रामलीला, ढोला मारूनी, राजा भरथरी आदि; गुरु रामकिशन जी- मधुमालती, पुष्पसेन, विक्रमादित्य, सिंहासन बत्तीसी, गोपीचन्द आदि; श्री सिद्धेश्वर सेन- राजा रिसालू, प्रणवीर तेजाजी, राजा भरथरी, सत्यवादी हरिश्चन्द्र इत्यादि। इस प्रकार लोक-नाट्य ‘माच’ का विस्तृत विवेचन किया गया है।

गद्य-साहित्य शीर्षक के अन्तर्गत आधुनिक युग में मालवी गद्य के पुरोधा के रूप में पन्नालाल नायाब का नाम विशेष रूप से एकांकी विधा में अविस्मरणीय योगदान के लिए उद्घाटित किया है। पुस्तक में मालवी के कई गद्यकारों द्वारा कहानी, लघुकथा, निबन्ध, उपन्यास इत्यादि विधाओं के विकास में विशिष्ट भूमिका निभाने का उल्लेख मिलता है। मालवी में आधुनिक कथा-साहित्य के  विकास पर विस्तार से चर्चा करते हुए मालवी गद्य को श्रीनिवास जोशी के अद्वितीय अवदान को प्रतिपादित किया है। पद्मभूषण पं सूर्यनारायण व्यास के मालवी काव्य एवं गद्य तथा श्रीनिवास जोशी की कथा परम्परा को आगे बढ़ाने वाले साहित्यकारों में चन्द्रशेखर दुबे, ललिता रावल, डॉ. पूरन सहगल, डॉ. तेजसिंह गौड़, विश्वनाथ पोल, अरविन्द नीमा ‘जय’, राधेश्याम पाठक ‘उत्तम’, रचनानन्दिनी सक्सेना, सतीश श्रोत्रिय, राधेश्याम परमार ‘बन्धु’ इत्यादि का उल्लेख किया है। इन रचनाकारों ने  उपन्यास, कहानी, कविता, लघुकथा, व्यंग्य, प्रहसन, निबन्ध, समीक्षा आदि विधाओं में सक्रिय भूमिका निभाई है। साथ ही मालवी भाषा में लेख, टिप्पणी, अनुवाद तथा पत्र-पत्रिकाओं में भी लेख उपलब्ध होने का उल्लेख किया है। मालवी भाषा, साहित्य, संस्कृति के क्षेत्र में योगदान देने वाले एवं मालवी में वैचारिक और समीक्षात्मक निबन्ध की प्रगति में योगदान देने वाले सुधी विद्वानों के नाम भी उल्लेखित किए हैं।

निमाड़ी साहित्य शीर्षक को लेकर निमाड़ी भाषा के शुरूआती रचनाकारों में सन्त लालनाथ गीर (1400 ई. के आसपास), सन्त जगन्नाथ गीर (1440 ई. के आसपास), सन्त ब्रह्मगीर (1470 ई. के आसपास) एवं सन्त मनरंगगीर (सन् 1500 ई. के आसपास), सन्त कवि सिंगाजी इत्यादि की रचनाओं से उदाहरण प्रस्तुत करते हुए इनकी परम्परा को आगे बढ़ाने वाले कवियों का उल्लेख किया है। आधुनिक युग में निमाड़ी लोक-साहित्य, संस्कृति, इतिहास से परिचित करवाने के लिए पं. रामनारायण उपाध्याय के योगदान का विशेष रूप से उल्लेख किया है। निमाड़ी कविता, निमाड़ी अनुवाद, व्यंग्यात्मक कविता, गीत, निमाड़ी-हिन्दी शब्दकोश, निमाड़ी व्याकरण एवं निमाड़ी में पद्यानुवाद करने वाले सभी विद्वानों के योगदान पर प्रकाश डाला गया है।

स्वातंत्र्योत्तर दौर में निमाड़ी साहित्य को अनेक कवि, गद्यकार और शोधकर्ताओं ने समृद्ध किया है, उनमें गौरीशंकर शर्मा गौरीश, प्रभाकर दुबे, बाबूलाल सेन, जगदीश विद्यार्थी, ललितनारायण उपाध्याय, गेंदालाल जोशी ‘अनूप’, वसन्त निरगुणे, डॉ. श्रीराम परिहार, शिशिर उपाध्याय, जगदीश जोशीला, कुंवर उदयसिंह अनुज, सदाशिव कौतुक, हेमन्त उपाध्याय, प्रमोद त्रिवेदी पुष्प इत्यादि का विभिन्न विधाओं में योगदान बताते हुए अनेक समकालीन निमाड़ी कवियों के नाम उल्लेखित किए हैं। अन्त में स्वयं का निष्कर्ष प्रस्तुत किया है।

पुस्तक के द्वितीय भाग में संत पीपा, संत सिंगाजी, आनन्दराव दुबे, मदनमोहन व्यास, मोहन सोनी, बालकवि बैरागी, भावसार बा, नरहरि पटेल, शिव चौरसिया एवं श्रीनिवास जोशी आदि रचनाकारों के अवदान एवं उनकी चयनित रचनाओं का समावेश किया गया है।

प्रस्तुत पुस्तक में मालवी भाषा, साहित्य एवं इतिहास का जैसा बहुआयामी, विशद, गम्भीर और वस्तुनिष्ठ विवेचन दिखाई देता है, वैसा मालवी साहित्य विषयक किसी अन्य पुस्तक में  उपलब्ध नहीं है। मालवी भाषा और साहित्य के विविध पक्षों पर चर्चा करते हुए एवं स्थान-स्थान पर प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग करते हुए  डॉ. शर्मा अपने मौलिक एवं गम्भीर चिन्तन का परिचय देते हैं। डॉ. शर्मा की अतिसूक्ष्म विश्लेषण पद्धति ने इसे मालवी साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण कृति के रूप में स्थापित कर दिया है।

दो भागों में विभक्त यह पुस्तक मालवी  साहित्य से सम्बद्ध समस्त पक्षों का न सिर्फ अन्वेषण करती है, वरन् तर्कपूर्ण ढंग से उसका समग्र भी मूर्त कर देती है। मालवी भाषा और साहित्य विषय के विवेचन हेतु लेखक द्वारा अपेक्षित सभी शीर्षकों पर विस्तार से चर्चा की गई है।  लेखक मालवी भाषा और साहित्य के सभी पक्षों पर महत्त्वपूर्ण विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए विषय के साथ न्याय करने में  पूर्णतः सफल रहे हैं।

लेखक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने पुस्तक को सरल एवं सरस स्वरूप प्रदान करने की दृष्टि से परिनिष्ठित खड़ी बोली एवं मुहावरों, दोहों एवं कहावतों में मालवी भाषा का भी प्रयोग किया है तथा स्थान स्थान पर वर्णनात्मक, विवरणात्मक एवं विश्लेषणात्मक शैली का प्रयोग करते हुए अपनी पुस्तक को सरस एवं आकर्षण स्वरूप में उपस्थित कर दिया है।

इस पुस्तक की मुख्य उपलब्धि मालवी भाषा को अपने आप में एक विलक्षण भाषा के रूप में स्थापित करना है। पुस्तक के अन्त में मूल्यवान सन्दर्भ ग्रन्थ सूची दी गई है, जो पाठकों और शोधकर्ताओं के लिए दिशा-निर्देश का कार्य करेगी। इसमें मालवी भाषा और उसके साहित्य के विभिन्न आयामों को लेकर विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया गया है, जो इस क्षेत्र के सभी पक्षों को उजागर करता है। मालवी भाषा के प्रख्यात रचनाकारों के अवदान और उनके उत्कृष्ट काव्य को इस पुस्तक के माध्यम से आस्वाद कर पाना एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।

पुस्तक का नाम : मालवी भाषा और साहित्य
लेखक एवं सम्पादक : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
प्रकाशक : मध्यप्रदेश हिंदी ग्रन्थ अकादमी,
              भोपाल
मालवी भाषा और साहित्य : शैलेंद्रकुमार शर्मा

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