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20210110

दुनिया में हिंदी : इक्कीसवीं सदी में संभावनाओं की तलाश - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Hindi in the World: Exploring Possibilities in the Twenty-first Century - Prof. Shailendra Kumar Sharma

यूनाइटेड नेशंस में हिंदी की प्रतिष्ठा के लिए सौ से अधिक देशों में बसे भारतीय संकल्प लें


स्कैंडिनेवियन देशों में हिंदी में प्रकाशन की राह खुली


दुनिया में हिंदी : इक्कीसवीं सदी में  संभावनाओं की तलाश पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी 


विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर भारत नॉर्वेजियन सांस्कृतिक फोरम, ओस्लो, नॉर्वे, स्पाइल दर्पण और वैश्विका अंतरराष्ट्रीय पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया।  कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली के चेयरमैन प्रोफेसर अवनीश कुमार, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं समालोचक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा एवं विख्यात नृतत्त्वशास्त्री प्रो मोहनकान्त गौतम, नीदरलैंड थे। आयोजन की पीठिका प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार, अनुवादक और मीडिया विशेषज्ञ श्री शरद चन्द्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने प्रस्तुत की। 


दुनिया में हिंदी : इक्कीसवीं सदी की संभावनाओं की तलाश पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी

संगोष्ठी का प्रसारण फेसबुक पर देखा जा सकता है : 

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10224227242325952&id=1149296433







आयोजन की विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती जय वर्मा, यूके, श्री रवि शर्मा, लन्दन, डॉ विनोद कालरा, जालन्धर, श्री सुरेश पांडेय, स्टॉकहोम, स्वीडन, डॉ ऋचा पांडेय, लखनऊ, डॉ मुकेश कुमार मिश्र, बस्ती, श्री अभिषेक त्रिपाठी, बेलफास्ट, आयरलैंड, श्रीमती संगीता शुक्ला दिदरेक्सन, ओस्लो, नॉर्वे आदि ने हिंदी के वैश्विक परिदृश्य पर प्रकाश डाला। यह संगोष्ठी दुनिया में हिंदी : इक्कीसवीं सदी में संभावनाओं की तलाश पर केंद्रित थी।




 


मुख्य वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि हिंदी भारतीय संस्कृति और हमारी अस्मिता को आधार देती है। हिंदी सहित भारतीय भाषाएं सही अर्थों में ऐश्वर्य प्रदान करने का माध्यम हैं। प्रवासी भारतीय अपनी भाषाओं को प्रोत्साहन देते हुए आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। यूनाइटेड नेशंस में हिंदी की प्रतिष्ठा हो, एक सौ दस से अधिक देशों में बसे भारतीय इसका संकल्प लें। दुनिया के विभिन्न भागों में अनेक स्वैच्छिक और साहित्यिक संस्थाएं हिंदी के प्रसार का काम कर रही हैं, उन्हें नए परिवेश के अनुरूप आधार मिलना चाहिए। देवनागरी के साथ हिंदी के नैसर्गिक रिश्ते को व्यापक फलक पर प्रसारित करने की आवश्यकता है। इक्कीसवीं सदी हिंदी की है। शिक्षा, अनुसंधान, सांस्कृतिक - भावात्मक एकता, साहित्यिक अभिव्यक्ति और जनसंचार माध्यमों से  हिंदी की नई संभावनाएं उजागर हो रही हैं। विश्व हिंदी दिवस को मनाते हुए हिंदी के साथ आत्म स्वाभिमान का भाव जगाना होगा।





 
वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली के चेयरमैन प्रो अवनीश कुमार ने कहा कि हिंदी के विकास में विदेशों में बसे भारतीय महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। आभासीय माध्यम से लोग परस्पर जुड़ रहे हैं। नए दौर में दूरियां कम हुई हैं। हिंदी एवं विदेशी भाषाओं के बीच परस्पर अनुवाद कार्य में तेजी आनी चाहिए। भारत सरकार के विभिन्न संस्थानों के द्वारा शब्दावली निर्माण, शब्दकोश एवं विश्वकोश के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया गया है। ये सभी पारस्परिक अनुवाद के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। नई शिक्षा नीति में  मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा पर बल दिया गया है। इससे मौलिक चिंतन में वृद्धि होती है।




वरिष्ठ लेखक एवं नृतत्त्वशास्त्री प्रोफेसर मोहनकांत गौतम, नीदरलैंड ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि प्रवासी भारतीयों ने भारत के बाहर हिंदी के लिए बहुत कार्य किया है। उनके काम को भारत में प्रचार प्रसार मिलना चाहिए। भारत हम लोगों के लिए माता पिता की तरह है, वहां से प्रेरणा और प्रोत्साहन मिले, यह जरूरी है। भारतीय स्कूलों में पाठ्यक्रम के माध्यम से यह बताया जाए कि प्रवासी भारतीयों ने अनेक चुनौतियों के बावजूद बाहर जाकर क्या किया। भारत से बाहर बसे लोग भारत को निरंतर ढूंढते रहते हैं। सांस्कृतिक और भाषाई एकता से सारी दुनिया में बसे भारतवंशी जुड़ें, यह जरूरी है। हिंदी का व्याकरण लेटिन भाषा के अनुसार बना है। संस्कृत का व्याकरण संज्ञा केंद्रित है, जबकि हिंदी का व्याकरण लेटिन भाषा के अनुकरण के कारण क्रिया केंद्रित बन गया है। उन्होंने साउथ एशियन लिटरेचर एंड लैंग्वेज एसोसिएशन जैसी संस्था के निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया, जो हिंदी सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं और साहित्य के विकास के लिए कारगर सिद्ध होगी।




वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने नॉर्वे सहित  स्कैंडिनेवियन देशों में हिंदी की  प्रगति और संभावनाओं पर प्रकाश डाला।  उन्होंने कहा कि स्कैंडिनेवियन देशों में हिंदी में प्रकाशन की राह खुली है। श्री शुक्ल ने विगत दिनों प्रकाशित चर्चित काव्य संग्रह लॉक डाउन की चुनिंदा रचनाओं का पाठ किया।  


वरिष्ठ प्रवासी कवयित्री श्रीमती जय वर्मा, यूके ने अपनी कविता मैं सबकी प्रिय हिंदी हूँ सुनाई। उनकी एक रचना की पंक्तियों ने भरपूर दाद बटोरी, चल निकल चलें तेरे जहां गुलिस्ता से, कौन जानता है कि राह किधर ले जाए। 


डॉ ऋचा पांडेय, लखनऊ ने श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक द्वारा कोविड-19 महामारी के दौर की संवेदनाओं को लेकर दुनिया की किसी भी भाषा में रचित पहली काव्य कृति लॉक डाउन की समीक्षा प्रस्तुत की।




प्रो आशुतोष तिवारी, स्वीडन ने कहा कि प्रवासी भारतीयों के मन में भारत बसता है। वे वैश्विक मंच पर हिंदी को पहुंचा रहे हैं। भाषा लोगों को जोड़ती है उससे सामाजिक दृष्टिकोण विकसित होता है। स्वीडन में हिंदी में प्रकाशन किया जा रहा है।




श्रीमती संगीता शुक्ला दिदरेक्सन, नॉर्वे ने हिंदी शिक्षण के लिए नॉर्वे में उनके द्वारा प्रारंभ किए गए पहले स्कूल के अनुभवों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि हिंदी के जरिए भारतीय संस्कृति से जुड़ाव हो, यह जरूरी है। बच्चों को खेल, कविता, नृत्य, नाटक आदि गतिविधियों के माध्यम से हिंदी से जोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिए। मातृभाषा वास्तविक भावनाओं की भाषा होती है। बच्चे मातृभाषा के माध्यम से जल्दी सीख सकते हैं। पारिवारिक भावना का विकास भी इसके माध्यम से किया जा सकता है।


श्री रवि शर्मा, लंदन ने कहा कि हिंदी के विस्तार में सिनेगीतों का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने अपना गीत सुनाया जिसकी पंक्तियाँ थीं, बिना हम सफर के सफर कम नहीं था, पुरानी थी नैया भंवर कम नहीं था।


डॉक्टर गंगाधर वानोड़े, हैदराबाद ने कहा कि देश विदेश में हिंदी प्रचार - प्रसार के लिए केंद्रीय हिंदी संस्थान महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। लगभग पचास देशों के विद्यार्थी केंद्रीय हिंदी संस्थान में अध्ययन कर रहे हैं। संस्थान द्वारा विभिन्न भाषाओं के अध्येता कोशों और पाठमालाओं का प्रकाशन किया गया है।


कार्यक्रम में डॉ मुकेश मिश्र, बस्ती ने भी विचार व्यक्त किए। 


डॉ विनोद कालरा, जालंधर ने कहा कि हिंदी हमारी अस्मिता के केंद्र में हैं। हमारा हर पल, हर क्षण हिंदी का हो यह आवश्यक है। उन्होंने मैं खुशबू बन कर लौटूंगी शीर्षक कविता सुनाई,  जिसकी पंक्तियां थीं, तुम भले ही मुझे भूल चुके, मैं तेरे जीवन के आंगन में खुशबू बनकर लौटूंगी।


श्री प्रवीण गुप्ता, नॉर्वे, श्री सुरेश पांडेय, स्वीडन एवं श्री गुरु शर्मा ओस्लो ने अपनी कविताएँ सुनाईं। श्री अभिषेक त्रिपाठी, आयरलैंड ने यह जो अपनी हिंदी है और सूरज और दीपक के संवाद पर केंद्रित कविता सुनाईं।

कार्यक्रम का जीवंत प्रसारण सोशल मीडिया के माध्यम से किया गया, जिसे देश दुनिया के सैकड़ों लोगों ने देखा। 


कार्यक्रम का संयोजन वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने किया।


ज्ञातव्य है कि विश्व हिंदी दिवस  प्रत्येक वर्ष 10 जनवरी को पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रस्तुत करना है। देश दुनिया की हिंदी सेवी संस्थाओं और सरकारी विभागों के साथ विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं।

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