इंटरनेट की दुनिया में शब्द
प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा
इंटरनेट के दौर में पुस्तक का भविष्य महज सुरक्षित ही नहीं, अपितु भली भांति सुरक्षित है। इंटरनेट कभी भी डगमगा सकता है, लेकिन पुस्तक को कभी भी तकिए के नीचे रखा जा सकता और इच्छानुसार कभी भी पुस्तक को पढ़ा जा सकता है। पुस्तक मेले के आंकड़े और बढ़ रहे पुस्तक प्रेमियों की संख्या यह बताते हैं कि पुस्तकों के प्रति आज भी पाठकों का अनुराग जरा भी कम नहीं हुआ है। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत ने संवादहीनता की आई पाठकों के बीच की रिक्तता को कम करने का प्रयास किया है। यही वजह है कि न्यास ने देश के सुदूर इलाकों में अपनी सचल पुस्तक प्रदर्शनी वाहनों के जरिये पुस्तकों को पाठकों तक पहुंचाया है। पुस्तकें आज भी पाठक की एक बेहतर मित्र है, जिनका विकल्प कभी भी नेट नहीं ले सकता। कमाल की बात ये है कि नेट पर जो भी सामग्री ली गई है उनका आरंभिक स्रोत पुस्तकें ही हैं।
यह बात उज्जैन पुस्तक मेले में आयोजित एक महत्वपूर्ण परिचर्चा में प्रसिद्ध लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा ने कही। परिचर्चा के आरम्भ में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के हिंदी संपादक डॉ ललित किशोर मंडोरा ने आमन्त्रित अतिथियों को पुस्तकें भेंट करते हुए न्यास की गतिविधियों से भी सभी आमंत्रितों का परिचय करवाया। सत्र में महत्वपूर्ण वक्ताओं ने हिस्सेदारी की जिसमें प्रोफेसर शैंलेंद्र पाराशर प्रख्यात समाज विज्ञानी एवं स्वतंत्र लेखक-संपादक, संदीप कुलश्रेष्ठ एफएम से, सुशील शर्मा सम्पादक बेब पत्रिका मौजूद रहे।
प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि जो शब्द है वह मनुष्य की पहचान है। व्यक्ति अपने विचारों से अपनी पहचान करवाने में समर्थ हुआ है। इंटरनेट के दौर में आज शब्द के समक्ष संकट है। आज नेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या एक अरब के करीब पहुंच चुकी है। फेसबुक पर एक अरब के करीब युवा पीढ़ी प्रयोग कर रही है। ट्वीटर का उपयोग हो रहा है। आज यू ट्यूब के जरिये प्रति एक मिनट में साठ घण्टे के वीडियो अपलोड किए जा रहे हैं। ये नई पीढ़ी का प्लेटफार्म है। आज 500 वर्षों के वीडियो फेसबुक पर निरंतर देखे जा रहे है। आज परिवेश की कल्पना करें तो कहना न होगा कि पुस्तकों के सामने लोग विजुवल मीडिया की ओर शिफ्ट हो रहे है। आज मीडिया के सामने कई चेनल भी हैं, जिनका उपयोग तेजी से हो रहा है। कई संकट हमारे सामने है।लेकिन वे किस तरह की भाषा हमें परोस रहे है! ये संकट का मामला है। बड़ा विचित्र भरा समय है। आज अखबार या टेलीविजन को लोग कितना समय दे रहे है। आज घरों में बुजुर्ग लोग ही अखबार को समय दे रहे है। नई पीढ़ी के पास अखबार पढ़ने का समय नहीं है। आज शब्द जितना बोला और देखा जा रहा है, पहले कभी नहीं था। इंटरनेट पर शब्द की मौजूदगी है। देखना यह होगा कि पढ़ने वाला शब्द संकट में है या दिखने वाला शब्द संकट है। आज भाषा की पहचान के लिए दिमाग नहीं लगाना है। शब्दों को ताकत देने का काम भी इंटरनेट दे रहा है। शब्द की पहचान और एक सार्थक प्लेटफार्म देने में भी इंटरनेट अग्रणी भूमिका निभा रहा है। इंटरनेट ने आज व्यापक स्तर पर बदलाव किया है चाहे वह व्यक्तिगत जीवन हो या व्यावसायिक हो। मनोरंजन, कला,पुस्तकें सब ई मार्किट के रूप में बदल चुके हैं। व्हाट्सएप पर भी अनेक ग्रुप ज्ञान की उपलब्धता करा रहे है। आज कुछ ही सेकिंड में आप बड़ी से बड़ी फाइल डाउनलोड कर लेते हैं।
प्रोफेसर शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने बताया अब सम्पादन मुक्त सत्ता हमारे सामने है,जितनी हिस्सेदारी पहले थी। अब स्थिति पाठक की है, वह समाचार जगत में फोटो भी लेता है, यानी वह स्वतंत्र पत्रकारिता की भूमिका में आ गया है।एक अलग तरह का संसार इंटरनेट ने हमें सौंप दिया है।
सुशील शर्मा, बेब पत्रिका के संपादक ने कहा कि आज शब्द के सामने शब्द की बड़ी व्यापक भूमिका है, आज हिंदी के सामने बड़ा संकट है। हर भाषा में अपनी तरह की समस्या है। आज समस्या हिंदी के शब्द की उत्पत्ति को लेकर उसके प्रचलन की भी है। आज फॉन्ट की भी समस्या है। आप कृतिदेव में टाइप कर रहे है तो मंगल में बदलने पर शब्द बदल जाते है या टूट जाते है। ये भी समस्या हमारे सामने है।
स्थानीय एफएम के संपादक संदीप कुलश्रेष्ठ ने कहा कि आज का विषय बड़ा महत्वपूर्ण है। शब्द आपकी बात को पहुंचाने का काम करते है। निश्चित तौर पर इंटरनेट से शब्द की पहुंच व्यापक स्तर तक पहुंचने लगा है। इस माध्यम से किसी भी तरह का संकट नहीं है। बल्कि भाषा का विस्तार हुआ है। प्रिंट से अब इंटरनेट के समय में शब्द का महत्व बढ़ा है। एक प्रकार से शब्द से 13 करोड़ पाठक बढ़े है। अब पत्रकारिता में समांतर सत्ता बन गई है।
प्रोफेसर शैलेन्द्र पाराशर ने कहा कालिदास की स्मृति को याद करते हुए उन्होंने कहा कि शब्द और अर्थ को समझने के लिए उन्होंने शिव-पार्वती से व्याख्या की। आज देखे कि शब्द क्या है! उसको समझना होगा।तीसरी बात कि इंटरनेट क्या है! ध्वनि व शब्द से पृथ्वी का जन्म हुआ है। इनके जरिये निरंतर विकास होता गया है।जब से शब्द बना है उसके आरम्भ से ही शब्द हमें ज्ञान से भर देता है। बिना शब्द के आज कल्पना करना ही व्यर्थ है। श्रुति परम्परा में भी शब्द की भूमिका बड़ी गहरी है। इसकी लम्बी यात्रा है। मानवीय मूल्यों को बचाने में शब्द की भूमिका है। मानसिक प्रतीति का जो अनिवार्य आकार व आयाम है वह शब्द है। शब्द नश्वर है,यह एक पूरी प्रक्रिया है जो मनुष्य को बनाने में अपना योगदान कर रही है।
कार्यक्रम में एनबीटी के सम्पादक एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री लालित्य ललित, नई दिल्ली, प्रकाश रघुवंशी, शिव चौरसिया, लोक गायक सुंदरलाल मालवीय, डॉ देवेंद्र जोशी, शंकर सोनाने, पिलकेन्द्र अरोड़ा, पुष्पा चैरसिया, डॉ वंदना गुप्ता, संदीप सृजन भी मौजूद रहे।
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