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20210619

महारानी लक्ष्मीबाई और अन्य वीरांगनाएँ : इतिहास एवं संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Maharani Laxmibai and other Brave Women: in the Vontext of History and Culture - Prof. Shailendra Kumar Sharma

विश्व सभ्यता को देशभक्ति का महान संदेश दिया है महारानी लक्ष्मीबाई ने – प्रो. शर्मा 


अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ भारत की वीरांगनाएँ : इतिहास एवं संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर मंथन  


सृजनधर्मियों की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया।  संगोष्ठी भारत की वीरांगनाएँ : इतिहास एवं संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन के विशिष्ट अतिथि प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, साहित्यकार डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई, साहित्यकार श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता, डॉक्टर संगीता इंगले, पुणे, प्रतिभा मगर, पुणे, डॉ भरत शेणकर, अहमदनगर एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने किया। 







मुख्य अतिथि साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि महारानी लक्ष्मीबाई ने स्त्रियों के आत्म स्वाभिमान की रक्षा के लिए अद्वितीय प्रयास किया, जिससे प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। प्रत्येक भारतवासी को देश की आजादी के लिए मर मिटने वाले वीरों के स्मृति स्थलों पर जाकर मत्था टेकने जाना चाहिए। लक्ष्मीबाई को याद करना देश और नारी की अस्मिता के साथ जुड़ना है। वे स्त्रियों को देश की आजादी के साथ पारस्परिक एकता का संदेश देकर गई हैं। 




विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने व्याख्यान देते हुए कहा कि भारत की स्वतंत्रता, स्वदेश के प्रति अनुराग और स्वाभिमान को जगाने के लिए अनेक वीरांगनाओं ने बलिपथ को चुना था, उनमें महारानी लक्ष्मीबाई की शहादत अद्वितीय हैं।  लक्ष्मीबाई ने संपूर्ण विश्व सभ्यता को देशभक्ति की सर्वोपरिता का महान संदेश दिया है। उन्होंने भारतवासियों की सुप्त चेतना को जाग्रत करने का काम किया था। देश की आजादी की पुकार उनके अंतर्मन की आवाज थी। उन्होंने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी, किंतु उनके द्वारा जाग्रत की गई चिंगारी बुझी नहीं। वह नए दौर में राष्ट्र भक्तों के हाथों में ज्वाला बन कर भड़की। उन्होंने वीर शिवाजी की शौर्य गाथाओं से प्रेरणा ली थी और नए दौर में अपने महान कार्यों से सिद्ध कर दिखाया। अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करते हुए उन्होंने घोड़े की रस्सी अपने दाँतों से दबाई हुई थीं। वे रणचण्डी के रूप में दोनों हाथों से तलवार चलाते हुए एक साथ दोनों तरफ़ वार कर रही थीं। उनके अपूर्व शौर्य और वीरता की गाथा को सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी कविता में बहुत मार्मिक ढंग से उतारा है।




कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि भारत की आजादी का इतिहास महान वीरांगनाओं के बिना अधूरा है। उन्होंने रूढ़ पुरुषवादी धारणाओं को ध्वस्त किया। देश के लिए प्राणार्पण करने वाली महारानी लक्ष्मीबाई द्वारा गठित सैनिक दल में स्त्रियां बड़ी संख्या में थीं, जिसे उन्होंने दुर्गा दल नाम दिया था। उन्होंने अंग्रेजों को अपनी दृढ़ता और विद्रोही चेतना का लोहा मनवाया।




विशिष्ट अतिथि श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ऑस्लो, नॉर्वे ने कहा कि लक्ष्मीबाई के चरित्र को सुनकर हृदय में जोश उत्पन्न हो जाता है। उन्होंने जो मार्ग दिखाया है, आज उसके अनुरूप चलने की आवश्यकता है। स्त्रियों को सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में अवसर मिलने चाहिए। वे राष्ट्रीय चेतना जगाकर गई हैं। उन्हें सदैव याद किया जाएगा।




डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता ने कहा कि वीरांगनाओं को याद कर अतीत की प्राणधारा पुनर्जीवित हो जाती है। लक्ष्मीबाई के कार्यों को देश के जन-जन के हृदय में उतारने की आवश्यकता है, तभी हमारा राष्ट्र सुरक्षित रह सकेगा।

राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि महारानी लक्ष्मीबाई ने अपूर्व पराक्रम का परिचय दिया था। उनकी परंपरा इतिहास के पृष्ठों में ही समाप्त नहीं हुई। वे आज भी राष्ट्रप्रेम का प्रतीक बनकर हमारे मध्य जीवित हैं।



डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई ने कहा कि लक्ष्मीबाई भारतीय वसुंधरा को गौरव प्रदान करने वाली महान वीरांगना थीं। वे अपने महान उद्देश्य के प्रति सचेत, निष्ठावान और कर्तव्यपरायण रहीं। उनका पराक्रम सदैव अविस्मरणीय रहेगा।




डॉ प्रतिभा मगर, पुणे ने कहा कि वीरांगनाओं के मध्य जीजामाता या जिजाऊ का अविस्मरणीय योगदान रहा है। वे बालपन से ही शूरवीर और कुशाग्र बुद्धिमती थीं। ममता और न्याय की वे साक्षात देवी थीं। उन्होंने शिवाजी जैसे तेजस्वी पुत्र को संस्कार देकर भारत भूमि के लिए एक नए युग का सूत्रपात किया।


डॉ सविता इंगले, पुणे ने कहा कि भारत भूमि ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए मर मिटने वाले अनेक अमर वीरों को जन्म दिया है। लक्ष्मीबाई ने कोमल हृदय की मनु से शौर्यवान महारानी तक लंबी यात्रा तय की। उन्होंने महिलाओं के लिए व्यायामशाला बनाई थी, जहां युद्ध कौशल सिखाया जाता था। वे भारत की सभ्यता और संस्कृति के लिए समर्पित थीं। लक्ष्मीबाई महिला सशक्तीकरण का श्रेष्ठ उदाहरण हैं।


डॉ भरत शेणकर, अहमदनगर ने कहा कि एक वीरांगना के रूप में लक्ष्मीबाई का योगदान सर्वोपरि रहा है। वे अंग्रेजों के विरुद्ध निरंतर संघर्ष करती रहीं। वे शौर्य की पराकाष्ठा थीं। उनकी राष्ट्रभक्ति को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

आयोजन में अल्पा मेहता, भुवनेश्वरी जायसवाल, कृष्णा श्रीवास्तव ने महारानी लक्ष्मीबाई के पराक्रम पर केंद्रित कविताएं सुनाईं।



प्रारंभ में संगोष्ठी की प्रस्तावना संस्था के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।

सरस्वती वंदना पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने की। स्वागत भाषण एवं अतिथि परिचय डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने प्रस्तुत किया। 


आयोजन में डॉ विमल चंद्र जैन, इंदौर, डॉ रीना सुरड़कर, डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता, डॉ सुषमा कोंडे, पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, प्रतिभा मगर, पुणे, भुवनेश्वरी जायसवाल, श्रीमती गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद आदि सहित अनेक साहित्यकार, शिक्षाविद, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।


संगोष्ठी का संचालन डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने किया।






20210602

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर : राष्ट्रीय और सांस्कृतिक योगदान - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Lokmata Ahilyabai Holkar: National and Cultural Contribution - Prof. Shailendrakumar Sharma

राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और भावात्मक एकीकरण में अहिल्याबाई का योगदान अविस्मरणीय है – प्रो. शर्मा 

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर : राष्ट्रीय और सांस्कृतिक योगदान पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी लोकमाता अहिल्याबाई होलकर : राष्ट्रीय और सांस्कृतिक योगदान पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार श्री सुनील गणेश मतकर, इंदौर थे। विशिष्ट वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। मुख्य अतिथि प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे थे। अध्यक्षता नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल ने की। आयोजन के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ ममता झा, मुंबई एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ पूर्णिमा कौशिक रायपुर ने किया।




मुख्य वक्ता के रूप में इंदौर के श्री सुनील गणेश मतकर ने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर की दृष्टि अत्यंत व्यापक थी। उन्होंने पर्यावरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया। इसके साथ ही समाज के विभिन्न वर्गों के उत्थान के लिए नई परंपराओं का सूत्रपात किया। प्रजा के दुख दर्द को वे स्वयं सुनती थीं और उनकी जरूरत के अनुसार पर्याप्त सहायता देती थीं। श्री मतकर ने अहिल्या जी के द्वारा किए गए विभिन्न सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया। साथ ही अपने पिताजी डॉ गणेश मतकर द्वारा उनके संदर्भ में लिखी गई पुस्तकों एवं नाट्य प्रदर्शनों का जिक्र किया। श्री सुनील ने अति संक्षेप में महेश्वर, इंदौर, कंपेल, देवगुराडिया के साथ खासगी ट्रस्ट से संबंधित रोचक प्रसंगों की जानकारियां दीं। 




विशिष्ट वक्ता उज्जैन के डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि अहिल्यादेवी होलकर सही अर्थों में राष्ट्रमाता थीं। उन्होंने दशकों पूर्व राष्ट्रीय,  सांस्कृतिक और भावात्मक एकीकरण का अविस्मरणीय प्रयास किया। देवालयों और सांस्कृतिक प्रतीकों के जीर्णोद्धार और नव निर्माण का अत्यंत साहसिक कार्य उन्होंने किया। उनका योगदान ऐतिहासिक है। उन्होंने प्रभावी राज्यशैली, धर्मपरायणता और बुद्धिमत्ता की मिसाल पेश की। उनके अवदान मात्र होलकर राज्य तक सीमित नहीं है, वरन संपूर्ण भारत और विश्व में एक अवतारी नारी के रूप में उनका स्मरण किया जाता है। उन्होंने इस संदर्भ में जान मालकम द्वारा उनके संबंध में लिखे गए प्रसंगों को भी उद्धृत किया। श्री शर्मा ने कहा कि अहिल्या जी को याद करना भारतीय संस्कृति के उदात्त पक्षों को याद करना है, जिनका उन्होंने आजीवन संरक्षण किया। अहिल्यादेवी कर्तव्यपरायण धार्मिक एवं समाजसेवी होने से लोकमाता बनीं।

 

हिंदी परिवार, इंदौर के अध्यक्ष हरेराम वाजपेयी ने कहा कि लोकमाता अहिल्या जी की नगरी में मैं रह कर अपने आप को धन्य समझता हूं। इंदौर शहर हर रोज, हर जगह अहिल्या जी को सादर नमन करता है। उन्होंने उनके नाम से इंदौर में विश्वविद्यालय, हवाई अड्डा, चेंबर ऑफ कॉमर्स, मार्ग, कालोनियों, शासकीय पुस्तकालय, गौशाला आदि सहित करीब डेढ़ दर्जन संस्थाओं के नामों का उल्लेख किया। साथ ही उनके संदर्भ में लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष सुमित्रा ताई महाजन, डॉक्टर गणेश मतकर, अरविंद जवलेकर आदि द्वारा अहिल्या जी पर लिखी गई पुस्तकों के संदर्भ  के साथ अपने उस आलेख का जिक्र किया, जो कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है। अहिल्याजी के नाम से मध्य प्रदेश शासन भारत की उस महिला को सम्मान पत्र और दो लाख की राशि प्रदान करता है, जो समाज सेवा में अग्रणी भूमिका निभाती है। 


मुख्य अतिथि पुणे के प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख ने अहिल्या जी के कृतित्व, व्यक्तित्व तथा उनके धार्मिक - सामाजिक कार्यों के संदर्भ में अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि देवी अहिल्या ने भारत के गौरव को बढ़ाया। उन्होंने जीवन भर दुख एवं संकट के क्षणों के बीच प्रभु की इच्छा के अनुरूप अपना कार्य किया। उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रेरणादायी था। उन्होंने सामाजिक क्रांति की। वे न्याय, प्रशासन और वीरता की मिसाल थीं। उन्होंने अपनी आत्मशक्ति के बल पर लोक कल्याण का कार्य किया। उनकी राज्य व्यवस्था न्याय और क्षमता पर आधारित थी उन्होंने देश में अनेक शिव मंदिरों की स्थापना की। युगों युगों तक देवी अहिल्या को याद किया जाएगा। 



संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने कहा कि देवी अहिल्या भारतीय परंपरा में नारी सशक्तीकरण की मिसाल हैं। वे सर्व धर्म समभाव के लिए आजीवन समर्पित रहीं। उनके योगदान से नई पीढ़ी को जोड़ने का कार्य किया जाना चाहिए। वरिष्ठ इतिहासकार डॉ गणेश मतकर अहिल्यादेवी पर केंद्रित नाटक का मंचन करते थे, जो बहुत लोकप्रिय हुआ।


मुंबई की श्रीमती सुवर्णा जाधव ने कहा कि महाराष्ट्र की बेटी को मालवांचल ने जो सम्मान दिया, वह अद्वितीय है। अहिल्याबाई होलकर न्यायप्रिय और बहादुर थीं। वे सही अर्थों में महिला शक्ति की प्रतीक हैं। उन्होंने अनेक धार्मिक कार्य किए। सामान्य परिवार में जन्मी अहिल्यादेवी ने बाल्यावस्था से ही दया और सेवा भावना के उदाहरण प्रस्तुत किए। उन्होंने स्त्रियों की सेना बनाई। वे धार्मिक सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति थीं।



संगोष्ठी में संस्था के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर ने स्थान स्थान पर मंदिर, जलाशय, घाट, अन्नक्षेत्र आदि प्रारंभ करवाए। वे शिव भक्त थीं। उनके ही संरक्षण में उन्होंने राज्य किया। संस्था के द्वारा देवी अहिल्या स्मृति नारी शक्ति सम्मान घोषित किया गया है, जो प्रतिवर्ष समाज में नारी सशक्तीकरण के क्षेत्र में कार्य करने वाली महिला को दिया जाता है। 






डॉक्टर ममता झा, मुंबई ने कहा कि अहिल्याबाई होलकर ने अपने कार्यों से शक्ति और बुद्धिमत्ता के तालमेल की मिसाल प्रस्तुत की। उनका व्यक्तित्व दो सौ वर्ष पूर्व स्त्री सशक्तीकरण का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने माहेश्वरी साड़ी की कला को विश्व ख्याति दिलाई।


आयोजन की संयोजिका डॉ पूर्णिमा कौशिक रायपुर में अहिल्याबाई होल्कर पर केंद्रित  गीतमय स्लाइड प्रेजेंटेशन किया।


कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉक्टर संगीता पाल, कच्छ, गुजरात ने की। अतिथि परिचय साहित्यकार श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर ने दिया। स्वागत भाषण डॉक्टर शिवा लोहारिया जयपुर ने प्रस्तुत किया।



संगोष्ठी में डॉक्टर ममता झा, मुंबई, डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ विमल चंद्र जैन इंदौर, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, मुंबई, डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉ सुनीता चौहान, डॉ सुनीता गर्ग, डॉ ख्याति पुरोहित, अहमदाबाद, श्री अशोक भागवत, श्री बलजीत पाल, श्री बलवंत पाल, नीतू पांचाल, पल्लवी पाटील आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।


राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने किया। आभार प्रदर्शन  डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया।







 


 












देवी अहिल्या जन्मोत्सव

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