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20221026

All India Kalidas Festival 2022 : National Seminar |अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : राष्ट्रीय संगोष्ठी

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 4 से 10 नवम्बर 2022 : उज्जैन 

सारस्वत आयोजन : कालिदास साहित्य के विविध पक्षों पर राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के चार सत्र

अखिल भारतीय अंतरविश्वविद्यालयीन संस्कृत वादविवाद के साथ राज्य स्तरीय अन्तरमहाविद्यालयीन कालिदास काव्य पाठ और हिंदी वादविवाद प्रतियोगिताएँ 



समस्त सारस्वत एवं सांस्कृतिक आयोजनों में आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थनीय है। 

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : आमंत्रण पत्र 

https://drive.google.com/file/d/1Ahh-k1yQ6XrBdobWiISB9cFFEdqbEsGV/view?usp=drivesdk


मध्यप्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन का संयुक्त आयोजन  अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 दिनांक 4 से 10 नवम्बर तक सम्पन्न होगा। समारोह के सारस्वत आयोजनों के अंतर्गत विक्रम विश्वविद्यालय की कालिदास समिति द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी के चार सत्रों के साथ विद्यार्थियों की स्पर्धाओं के अंतर्गत अंतरविश्वविद्यालयीन संस्कृत वाद विवाद, राज्य स्तर की अंतर महाविद्यालयीन कालिदास काव्य पाठ और हिंदी वाद विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन होगा। 


अखिल भारतीय स्तर की अंतरविश्वविद्यालयीन कालिदास संस्कृत वाद विवाद प्रतियोगिता का विषय  कालिदासस्य काव्येषु राजवैभववर्णनम्, संदृश्यते यथा स्पष्टं न तथा लोकजीवनम् रखा गया है। राज्य स्तर की अंतर महाविद्यालयीन कालिदास हिंदी वाद विवाद प्रतियोगिता का विषय है, महाकवि कालिदास की रचनाओं में राजवैभव का स्पष्ट वर्णन हुआ है, लोकजीवन का नहीं। राज्य स्तर की कालिदास काव्य पाठ  प्रतियोगिता में विद्यार्थियों को श्लोकों का चयन महाकवि कालिदास की अमर कृति मालविकाग्निमित्रम् से करना होगा।


यह जानकारी देते हुए विक्रम विश्वविद्यालय की कालिदास समिति के सचिव एवं कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा Shailendrakumar Sharma  ने बताया कि अकादमिक आयोजनों में देश के दस से अधिक राज्यों के विद्वान, शिक्षक, शोधकर्ता और विद्यार्थी भाग लेने के लिए उज्जैन आ रहे हैं। राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में भाग लेने के लिए देश के विभिन्न प्रांतों के प्राध्यापक, शिक्षाविद् एवं शोधकर्ताओं से कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र आमंत्रित किए गए हैं। 

शोध संगोष्ठी के चार सत्रों का आयोजन विश्वविद्यालय मार्ग, उज्जैन स्थित अभिरंग नाट्यगृह, कालिदास संस्कृत अकादमी में होगा। इनमें से एक विशेष सत्र विक्रम कालिदास पुरस्कार विजेता शोधपत्रों की प्रस्तुति का होगा। शोध पत्र प्रस्तुतकर्ता पंजीयन एवं शोध पत्र प्रेषण के लिए कालिदास समिति कार्यालय, सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान, विक्रम विश्वविद्यालय, देवास मार्ग, उज्जैन में सम्पर्क कर सकते हैं। 






Kalidas


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अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : 4 से 10 नवम्बर 2022

मध्यप्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन का संयुक्त आयोजन 

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : सारस्वत आयोजन 

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 के समस्त सांस्कृतिक एवं सारस्वत आयोजनों में आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थनीय है। राष्ट्रीय संगोष्ठी के साथ स्पर्धाओं के अंतर्गत संस्कृत वाद विवाद, संस्कृत श्लोक पाठ और हिंदी वाद विवाद में सहभागिता का अनुरोध है। विस्तृत जानकारी के लिए लिंक पर जाएँ। 


https://www.facebook.com/100001476965950/posts/5669747819751061/


राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी :

सुधी प्राध्यापक / शिक्षाविद् / शोधकर्ता कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र प्रस्तुति के लिए सादर आमंत्रित हैं।शोध पत्र साहित्य, कला, वास्तु, संस्कृति, इतिहास, पुरातत्व, विज्ञान, पर्यावरण, दर्शन,  जीवन मूल्य, शिक्षा,  समाजविज्ञान, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र आदि के परिप्रेक्ष्य में कालिदास साहित्य के किसी पक्ष से जुड़े हो सकते हैं। सभी सुधीजन कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र प्रस्तुति के लिए सादर आमंत्रित हैं।


शोध पत्र वाचन के लिए राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के चार सत्र अभिरंग नाट्यगृह, कालिदास संस्कृत अकादमी, कोठी रोड, उज्जैन में निम्नानुसार तिथियों एवं समय पर होंगे :


राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी 

प्रथम सत्र 5 नवम्बर 2022 दोपहर 2:30

द्वितीय सत्र 6 नवम्बर 2022 दोपहर 2:30 बजे 

तृतीय सत्र 7 नवम्बर 2022 दोपहर 2:30 बजे 

(विक्रम कालिदास पुरस्कार के लिए चयनित शोध पत्रों की प्रस्तुति)

चतुर्थ सत्र 8 नवम्बर 2022 प्रातः 10:00 बजे

संगोष्ठी स्थान : 

अभिरंग नाट्यगृह

कालिदास संस्कृत अकादमी

विश्वविद्यालय मार्ग, उज्जैन



शोध पत्र प्रस्तुति हेतु पंजीयन के लिए सम्पर्क : 

प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा 

सचिव 

कालिदास समिति 

कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक

विक्रम विश्वविद्यालय

 सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान

 देवास रोड 

उज्जैन मध्य प्रदेश

पिन कोड 456010


ईमेल : 

shailendrakumarsharmaprof@gmail.com



विक्रम पत्रिका के कालिदास विशेषांक के लिए लिंक पर जाएं :




20221005

Awarded Ph. D. Hindi Degree From Vikram University, Ujjain | विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से पीएच डी हिंदी उपाधि प्राप्त शोधकर्ता (2015 - 2022)

हिंदी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से पीएचडी हिंदी उपाधि प्राप्त शोधकर्ता 

(2015 - 2022)

हिन्दी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण अध्ययन, अध्यापन और अनुसंधान की दृष्टि से विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में  हिन्दी अध्ययनशाला की स्थापना वर्ष 1966 ई में हुई।प्रारम्भ से ही यहाँ प्रतिष्ठित विद्वान, शिक्षक एवं अध्येता सक्रिय रहे हैं। आचार्य विश्वनाथप्रसाद मिश्र, आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी, आचार्य शिवसहाय पाठक, आचार्य पवनकुमार मिश्र आदि जैसे आचार्यों ने यहाँ प्रारंभिक दशकों में शोध कार्य को गति दी थी। बाद के दौर में हिंदी अनुसंधान को निरन्तरता देते हुए प्रो भगीरथ बड़ौले निर्मल, प्रो हरिमोहन बुधौलिया, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो गीता नायक, प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा आदि ने शोध निर्देशन करते हुए इस दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। विभाग को देश भर के प्रख्यात साहित्यकारों, मनीषियों के व्याख्यान, संवाद और रचनापाठ  के अवसर मिले हैं। इनमें प्रमुख हैं- सुश्री महादेवी वर्मा, अज्ञेय, नन्ददुलारे वाजपेयी,  शिवमंगलसिंह सुमन, विद्यानिवास मिश्र, भगवतशरण उपाध्याय, नामवर सिंह, देवेन्द्रनाथ शर्मा, कैलाशचन्द्र भाटिया, विश्वम्भरनाथ उपाध्याय, शिवकुमार मिश्र, श्यामसिंह शशि, अशोक वाजपेयी, प्रो गंगाप्रसाद विमल, प्रो सूर्यप्रकाश दीक्षित, महेंद्र भानावत, असगर वजाहत, सूर्यबाला, प्रो रामबक्ष, विजयदत्त श्रीधर आदि।

हाल के दशकों में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में एक साथ कई दिशाओं में महत्त्वपूर्ण शोध कार्य हुए हैं, जिनमें हिन्दी भाषा-साहित्य एवं संस्कृति के विविध आयामों के साथ ही लोक एवं जनजातीय भाषा, साहित्य और संस्कृति, आलोचनाशास्त्र, भाषाविज्ञान के विविध आयाम, वाचिक-अवाचिक भाषा-रूप, शब्दविज्ञान, तुलनात्मक भाषाविज्ञान, हिन्दी कम्प्यूटिंग, इंटरनेट, वेब पत्रकारिता, दृश्य जनसंचार माध्यम, मशीनी अनुवाद, राजभाषा हिन्दी आदि के अधुनातन संदर्भ विशेषतः उल्लेखनीय हैं। यह संस्थान मध्यप्रदेश के साहित्यिक-सांस्कृतिक विकास के लिए सक्रिय सहभागिता कर रहा है।  

हिंदी अध्ययनशाला द्वारा संयोजित राष्ट्रीय स्तर के आयोजनों में प्रमुख रहे हैं- काव्य प्राध्यापन कार्यशाला, नाट्य प्राध्यापन कार्यशाला, मिथक संगोष्ठी, पुनश्चर्या पाठ्यक्रम, राष्ट्रीय शब्दावली कार्यशाला, सृजन संस्कार वर्ष, देवनागरी लिपि राष्ट्रीय संगोष्ठी, सूचना प्रौद्योगिकी और हिन्दी कार्यशाला, तुलसी पंचशती समारोह, प्रेमचंद जयंती समारोह, महात्मा गांधी 150 वी जयंती वर्ष पर तीन राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी, अनेक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी, छात्र अध्ययन यात्रा आदि। कार्यरत शिक्षकों द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठियों, पुनश्चर्या पाठ्यक्रम, कार्यशालाओं और रचनापाठ के आयोजन में सहयोग-सहकार रहा है। जिन संस्थाओं के साथ विभिन्न अकादमी की गतिविधियां आयोजित की गई, उनमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, भारत सरकार, केंद्रीय हिन्दी निदेशालय, भारत सरकार, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, प्रेमचंद सृजनपीठ, म प्र संस्कृति परिषद, म प्र शासन, नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली, मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा भाषा प्रचार समिति, भोपाल, सप्रे संग्रहालय, भोपाल आदि।

- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 

 


हिंदी अध्ययनशाला में अब तक सैकड़ों की संख्या में शोधार्थियों ने स्तरीय शोध कार्य के माध्यम से इस विभाग के गौरव को बढ़ाया है। यहां वर्ष 2015 से 2022 तक के पीएचडी उपाधि प्राप्त शोधकर्ताओं की सूची प्रस्तुत है।

1. नेहा नागर 2015

2. रोहन सिंह 2015

3. आभा सक्सेना 2015

4. शेबा सैयद 2015

5. योगेंद्र जोशी 2015

6. महेंद्र रणदा 2015

7. श्वेता परिहार 2015

8.  नरेंद्रपाल शर्मा 2015

9.  संदीप कुमार सिंह  2015

10. नंदिता चौहान 2015

11. ईश्वर सिंह पाटीदार 2015

12. चंदनबाला कोठारी  2015

13. वंदना शर्मा 2015

14. मीनाक्षी पुरोहित 2016

15. दीपक शर्मा 2016

16. गीतांजलि मिश्रा 2016

17. दीपक शर्मा 2016

18. प्रिया गंगापुरकर 2016

19. अल्पना बाकलीवाल 2016

20. रूपा भावसार 2016

21. जगदीश परमार 2016

22. सुशील कुमार सिंह 2016

23.  उल्लास सोपान पाटील  2016

24. पिंकी कोठारे 2016

25.  स्मिता करंजगांवकर 2016

26. नम्रता ओझा 2016

27. चंद्रकांता बड़ोले 2016

28. संगीता गुप्ता 2016

29. श्यामलाल निर्मल 2016

30.  तोफानलाल चौहान 2017

31. कविता सूर्यवंशी 2017

32. अर्चना मेहता 2017

33. शीतल सिंह तोमर 2017

34. रेहाना बेगम 2017

35. उर्मिला पोरवाल 2017

36. प्रेरणा ठाकरे परिहार 2017

37. मुकेश चौहान 2017

38. रमाकांत पाल 2017

39. संध्या राजपूत 2017

40. ज्योतिबाला बैस 2017

41.  निशा शर्मा 2017

42.  भूपेंद्र सिंह भदौरिया 2017

43. प्रियंका शर्मा 2017

44. ममता चंद्रावत 2017

45. ज्योति यादव 2016

46.  संजय कुमार राठौर 2018

47. सतीश कुमार 2018

48. श्वेता पंड्या 2018

48. मेघा गुप्ता 2018

50. गायत्री शर्मा 2018

51. रूपाली सारये 2018

52. कादम्बिनी जोशी 2018

53. प्रतिभा गुर्जर 2018

54. कला मौर्य 2018

55. कैलाश चंद्र बाडोलिया 2018

56.  माधवी भट्ट 2019

57. पूर्णिमा पोरवाल 2019

58.  मीनल मेहना 2019 

59. अमित कुमार 2019

60. मुकेश भार्गव 2019

61. मोनिका वैष्णव 2019

62.  बृजेंद्र सिंह तोमर 2019

63. अर्जुन सिंह पंवार 2019

64. संजय अटेरिया 2019

65. भारती ठाकुर 2019

66. श्रुति पाठक 2019

67. केदार गुप्ता 2020

68. स्वप्नदीप परमार 2020

69. विजय कुमार शर्मा 2020

70. उमेश कुमार गुप्ता 2020

71. आस्था व्यास 2020

72.  पंढरीनाथ देवले 2020

73. संदीप कुमार यादव 2020

74. निरूपा उपाध्याय 2020

75. रीता माहेश्वरी 2020

76. भावना शर्मा 2020

77. राम सिंह सौराष्ट्रीय 2020

78. रिपुदमन तिवारी 2020

79. तारा वाणिया 2020

80. अनामिका कतरोलिया  2021

81. आरती परमार 2021

82. प्रियंका नाग 2021

83. स्वर्णलता ठन्ना 2021

84. श्वेता पाण्डेय 2021

85. प्रियंका परस्ते 2021

86. डॉली सिंह नागर 2021

87. सुदामा सखवार 2021

88. कुलदीप जाट 2021

89. उर्मिला शर्मा 2021

90. ममता सोलंकी 2021

91. मणिकुमार मिमरोट 2021

92. ज्योति नाहर 2021

93. हृदयनारायण तिवारी 2021

94. अभिलाषा तिवारी 2021

95. संजय कुमार 2022

96. संतोष चौहान 2022

97. सीमा सेन 2022

98. अनीता अग्रवाल 2022

99. मधुबाला मारू 2022

100. दयाराम नर्गेश 2022

101. शैलेंद्र प्रताप 2022

102. संदीप सिद्ध 2022

103. दीपशिखा परमार 2022

104. दुर्गा राजलवाल 2022


20210606

हिंदी नाटक, निबन्ध तथा स्फुट गद्य विधाएँ एवं मालवी भाषा साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Hindi Drama, Essay and Other Prose genres and Malvi language - literature : Prof. Shailendra Kumar Sharma

हिंदी नाटक, निबन्ध तथा स्फुट गद्य विधाएँ एवं मालवी भाषा साहित्य : सम्पादक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Shailendrakumar Sharma  


सुधी प्राध्यापकों के सहकार से मेरे द्वारा संपादित - प्रणीत ग्रंथ 'हिन्दी नाटक, निबंध तथा स्फुट गद्य रचनाएँ एवं मालवी भाषा-साहित्य' म प्र हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल से प्रकाशित हुआ है। हिंदी के प्रतिनिधि एकांकी, निबन्ध और अन्य गद्य विधाओं का समावेश किया गया। पुस्तक में विविध विधाओं और उनके प्रमुख लेखकों का परिचय दिया गया है। ग्रंथ में देश के हृदय मालवा की मर्म मधुर मालवी-निमाड़ी भाषा के साहित्य का अद्यतन इतिहास समाहित है। पुस्तक म प्र के भोपाल, इंदौर और उज्जैन स्थित विश्वविद्यालयों में  स्नातक स्तर पर निर्धारित रही है। 




इसी पुस्तक की भूमिका से..

मानव सभ्यता से जुड़ा कोई भी उपादान इतिहास से निरपेक्ष नहीं है। इस दृष्टि से भाषा और साहित्य का भी अपना इतिहास होता है। मूलतः साहित्य की सत्ता एक और अखंड सत्ता है। फिर भी अध्ययन सुविधा की दृष्टि से साहित्येतिहास को लेकर पर्याप्त मंथन होता आ रहा है। किसी भी क्षेत्र के साहित्य का लोकमानस और जीवन से घनिष्ठ संबंध होता है। जहाँ बिना सामाजिक संदर्भ के साहित्येतिहास लेखन संभव नहीं है, वही रचनाकार की सर्जनात्मक अनुभूतियों की उपेक्षा भी उचित नहीं कहीं जा सकती है। पुस्तक में मालवी-निमाड़ी  भाषा और साहित्य के इतिहास-लेखन में इन बातों को विशेषतः दृष्टिपथ में रखा गया है। साथ ही साहित्यिक-सांस्कृतिक परम्परा के साथ वातावरण के अंतःसंबंधों का भी समावेश किया गया है। साहित्येतिहास लेखन में कई नवीन तथ्यों और सामग्री का समावेश करने की दिशा में अनेक विद्वज्जनों, साहित्यानुरागियों और ग्रंथागारों का सहयोग मिला है। 


साहित्येतिहास लेखन एक अविराम प्रक्रिया है। इस पुस्तक में संचित मालवी साहित्य के इतिहास को उसी प्रक्रिया में एक विनम्र प्रयास कहा जा सकता है। लोकभाषा में रचित साहित्य के इतिहास लेखन की दिशा में हाल ही में गति आई है। ऐसे प्रयासों से बोली में रचे साहित्य पर पुनर्विचार और प्रसार की संभावनाएँ भी महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो रही है। पिछले दशक में मध्यप्रदेश के हृदय अंचल मालवा की मर्म मधुर मालवी-निमाड़ी  और उसके साहित्य के अध्ययन-अध्यापन की भूमिका बनी है। 


प्रस्तुत पुस्तक में संचित मालवी से संबंधित सामग्री के लिए मालवा के प्रमुख मनीषियों-वरिष्ठ कवि डाॅ. शिव चौरसिया, डाॅ. भगवतीलाल राजपुरोहित (निदेशक,विक्रमादित्य शोध पीठ, उज्जैन), डाॅ. पूरन सहगल (मनासा), डाॅ. जगदीशचंद्र शर्मा ( विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन), मालवीमना साहित्यकार स्व. श्री झलक निगम एवं अर्धांगिनी प्रो. राजश्री शर्मा ने सत्परामर्श, युवा कवि डाॅ. राजेश रावल सुशील ने स्मरणीय सहकार दिया है, एतदर्थ आभार। 


प्रस्तुत पुस्तक में साहित्यरसिक और अध्येता हिंदी के साथ मालवी और निमाड़ी  साहित्य की प्रतिनिधि रचनाओं की झलक पा सकेंगे।


पुस्तक का नाम : हिन्दी नाटक, निबंध तथा स्फुट गद्य रचनाएँ एवं मालवी भाषा-साहित्य

प्रकाशक : म प्र हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल 

मूल्य : 100 ₹

पृष्ठ : 440


20210531

हिंदी पत्रकारिता : इक्कीसवीं सदी की चुनौतियां और संभावनाएं - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Hindi Journalism: Challenges and Prospects of the Twenty-First Century : Prof. Shailendra Kumar Sharma

प्रामाणिकता और मौलिकता के कारण निरन्तर आगे बढ़ेगी हिंदी पत्रकारिता – प्रो. शर्मा 

हिंदी पत्रकारिता : इक्कीसवीं सदी की चुनौतियां और संभावनाएं पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी


साहित्य और संस्कृतिकर्म की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी आयोजन किया गया। यह अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी हिंदी पत्रकारिता : इक्कीसवीं सदी की चुनौतियां और संभावनाएं पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार श्री अनिल त्रिवेदी, इंदौर थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने की। आयोजन के विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, श्रीमती हीना तिवारी, पत्रकार डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली, राष्ट्रीय मुख्य संयोजक प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया।






हिंदी पत्रकारिता दिवस पर आयोजित इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार श्री अनिल त्रिवेदी, इंदौर ने कहा कि आज अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर बहुत बड़े बदलाव हो रहे हैं। ऐसे में पत्रकारिता की पुनर्परिभाषा आवश्यक है। समाज और शासन - प्रशासन का दायित्व है कि वे पत्रकारिता पर विश्वास करें। वर्तमान में विपरीत परिस्थितियों में पत्रकार काम कर रहे हैं। उनकी आर्थिक स्थिति भी बहुत चुनौतीपूर्ण है। पत्रकारिता को लेकर विश्वास का वातावरण बनाने के लिए संपादक नामक संस्था को पुनर्जीवित करना आवश्यक है।




आयोजन के मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि नई तकनीक हिंदी पत्रकारिता के समक्ष कई चुनौतियाँ पैदा कर रही है तो इससे नई संभावनाएं भी उद्घाटित हो रही हैं। आने वाले दौर में प्रामाणिकता और मौलिकता के कारण हिंदी पत्रकारिता मजबूती के साथ आगे बढ़ेगी। यद्यपि भारत में इसका आगमन पश्चिम की देन है, किंतु जल्द ही इसने सैकड़ों वर्षों की निद्रा में सोये भारत में नवचेतना का संचार किया और सामाजिक एवं राजनीतिक स्वतंत्रता में अविस्मरणीय भूमिका निभाई है। हिंदी पत्रकारिता ने दशकों पूर्व संघर्षों के बीच से रास्ता निकाला है। यह राजपथ नहीं, लोक पथ पर चलकर ही आगे बढ़ी है। तमाम चुनौतियों के बावजूद विश्वसनीयता, जवाबदेही, गुणवत्ता और सत्यनिष्ठा की संवाहिका बनकर हिंदी पत्रकारिता सदैव जिंदा रहेगी। महात्मा गांधी ने सेवा को पत्रकारिता का एकमात्र लक्ष्य माना था। कोविड-19 के दौर में सेवापथ पर चलते हुए अनेक पत्रकारों और मीडियाकर्मियों ने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया और अनेक इस संक्रमण से जूझते रहे हैं।





विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार एवं मीडिया कर्मी श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि विदेश में हिंदी पत्रकारिता चुनौतियों के बीच से अपनी राह निकाल रही है। विदेशों की हिंदी पत्रकारिता हमें आज पूरे भारत को गौरव दिला रही है। विदेशों में बसे अनेक भारतीय हिंदी पत्रकारिता और सोश्यल मीडिया  में अपना योगदान दे रहे हैं। इस दौर में वैयक्तिक समाचार पत्रकारिता तेजी से बढ़ रही है। इसी प्रकार  फेक न्यूज़ की चुनौतियां भी सामने आ रही हैं।





विशिष्ट अतिथि पत्रकार श्रीमती हीना तिवारी, उज्जैन ने कहा कि हिंदी पत्रकारिता आज विश्व प्रसिद्ध हो गई है। इंटरनेट पत्रकारिता ने बहुत बड़ा आकार ले लिया है। हिंदी में अनेक महत्वपूर्ण वेब पोर्टल संचालित हो रहे हैं। पहले हिंदी अखबार उदंत मार्तंड का संकेत है कि अब हमारा सूर्य उदित हो रहा है। पत्रकारिता का कर्म आसान नहीं है। इन दिनों मिनिट टू मिनिट खबर का सिलसिला चल पड़ा है। वर्तमान दौर में बढ़ते साइबर अटैक पर भी हमें ध्यान केंद्रित करना होगा।




विशिष्ट अतिथि श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि नई तकनीक खबरों को तेजी से फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। अन्याय के विरुद्ध न्याय दिलाने का कार्य पत्रकारिता करती है। सच बोलने के लिए अनेक पत्रकारों ने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया।


अध्यक्षीय उद्बोधन में हिंदी परिवार के संस्थापक एवं साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि हिंदी पत्रकारिता सच्चाई के बल पर टिकी रहेगी। अखबारों में सकारात्मक समाचारों के लिए पर्याप्त स्थान होना चाहिए। जब पत्रकारिता सशक्त होगी, तभी समाज स्वस्थ होगा। आज सोशल मीडिया से ज्यादा विश्वास प्रिंट पत्रकारिता में प्रकाशित ख़बर को लेकर किया जाता है।


वरिष्ठ पत्रकार डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कहा कि पत्रकारिता सूचना संप्रेषण का महत्वपूर्ण माध्यम है। यह जनमानस से जुड़ने की विशिष्ट पद्धति है। समय के साथ पत्रकारिता में व्यापक बदलाव आ रहे हैं।


स्वागत भाषण देते हुए प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। लोक कल्याण की भावना ने पत्रकारिता को जन्म दिया है। यह बदलते समय के साथ दूरदर्शिता और भविष्य का नियमन करती है।


कार्यक्रम की प्रस्तावना डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि हिंदी  पत्रकारिता के कारण दुनिया भर में हिंदी भाषा का परचम लहरा रहा है। भारतेंदु युग से हिंदी पत्रकारिता को नई भाषा, नया तेवर मिला। तकनीकी के विकास से पत्रकारिता के क्षेत्र में ई - कम्युनिकेशन का दौरा गया है। 




कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना संयोजक डॉ सुनीता गर्ग, पंचकूला, हरियाणा ने की। अतिथि परिचय संस्था के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने दिया।


संगोष्ठी में डॉक्टर रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ विमल चंद्र जैन इंदौर, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, मुंबई, डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, रजनी तिवारी, अनीता चौहान, डॉ सुनीता गर्ग, डॉ सुनीता चौहान, डॉ श्वेता पंड्या, शुभम माहोर, उमंग पाल आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।


अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन महिला इकाई की मुख्य महासचिव डॉक्टर डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया। आभार प्रदर्शन उप महासचिव डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा ने किया।





हिंदी पत्रकारिता दिवस 




20210521

सुमित्रानंदन पंत : व्यापक पर्यावरणीय चेतना के कवि - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Sumitranandan Pant : Poet of Broad Environmental Consciousness - Prof. Shailendra Kumar Sharma

व्यापक पर्यावरणीय चेतना के कवि हैं पंत  – प्रो. शर्मा 


सुमित्रानंदन पंत की काव्यानुभूति और वर्तमान विश्व पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी और कवि सम्मेलन


भारत की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सुमित्रानंदन पंत की काव्यानुभूति और वर्तमान विश्व पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि हिंदी परिवार, इंदौर के संस्थापक एवं साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी थे। अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने की। मुख्य वक्ता राष्ट्रीय मुख्य संयोजक प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे थे। आयोजन के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं हिंदी सेवी श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ओस्लो नॉर्वे, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ विमल कुमार जैन, इंदौर, श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे।  संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ लता जोशी, मुंबई ने किया। 






मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी ने कहा कि पंत को याद करना प्रकृति की पूजा करना है। प्रकृति का खजाना अखूट है, जिससे कवि प्रेरणा लेता है। पंत जी प्रकृति के चितेरे हैं। पंत जी को पढ़ना अनंत की ओर यात्रा करना है। उनके काव्य से जीवन को प्रकाश मिलता है। 






विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि कविवर सुमित्रानंदन पंत व्यापक पर्यावरणीय चेतना के कवि हैं, जिसे वर्तमान विश्व को जरूरत है। उनके काव्य में कल्पना की स्वच्छंद उड़ान और प्रकृति के प्रति तादात्म्य रिश्ता मिलता है। उन्होंने प्रकृति तथा मनुष्य जीवन के कोमल और कठोर रूपों को अपने काव्य का विषय बनाया। वे कल्पना के सत्य को सबसे बड़ा सत्य मानता हैं। वे अपने युगीन संदर्भों से संपृक्त होकर निरन्तर गतिशील बने रहे। उनके काव्य से गुजरना पिछली सदी के विभिन्न काव्य सोपानों से होकर गुजरना है। उनकी काव्य यात्रा वृत्ताकार दिखाई देती है, जिसमें प्रकृति एवं मनुष्य के रिश्तों के साथ ग्राम्य जीवन, सामाजिक सरोकार, समता, अंतश्चेतना और मानवतावादी दृष्टि का सुमेल हुआ है। उनकी कविताओं में आध्यात्मिकता और भौतिकता के समन्वय की राह दिखाई देती है, जो वर्तमान विश्व के लिए प्रेरक है।


मुख्य वक्ता डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि सुमित्रानंदन पंत छायावाद के अग्रगण्य कवि हैं। निजी अनुभूति का समाजीकरण पंत के काव्य में दिखाई देता है। उनकी कविताएं हृदय को स्पर्श करती हैं। उनके काव्य पर स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, महात्मा गांधी और मार्क्स का प्रभाव दिखाई देता है। वे गांधीजी के प्रभाव से असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हुए थे।




विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने पंत काव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए स्वरचित कविता समय पर आए ना ऋतुराज सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।





विशिष्ट अतिथि कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि पंत जी ने छायावाद को नई गति दी। विषयवस्तु की भिन्नता के बावजूद कल्पना की उड़ान उनके काव्य की विशेषता है। उन्होंने प्रकृति सौंदर्य का जीवंत वर्णन किया है। प्रकृति में मानवीय सत्ता का आरोपण पंत जी ने बहुत सुंदर ढंग से किया।






डॉ विमल कुमार जैन, इंदौर ने पंत की कर्मभूमि कौसानी की यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि कौसानी अत्यंत रमणीय स्थान है। उसी की प्रेरणा से पंत के काव्य में प्रकृति का सुंदर चित्रण मिलता है। उन्होंने पंत संग्रहालय में संकलित पंत जी की कविताओं के अंश सुनाए।


विशिष्ट अतिथि डॉक्टर मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने कहा कि पंत का व्यक्तित्व और कृतित्व - दोनों प्रभावकारी हैं। वे श्रेष्ठ विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी कवि हैं। डॉ कौशिक ने स्वरचित कविता प्रकृति तुम महान हो सुनाई।


वरिष्ठ साहित्यकार श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर ने कहा कि पंत जी ने बाल्यकाल में काव्य सृजन प्रारंभ कर दिया था। श्री अग्रवाल ने पंत की प्रसिद्ध रचना सुख - दुख सुनाई, जिसमें मनुष्य जीवन में सुख और दुख - दोनों के संतुलन को वर्णित किया गया है।


डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने कहा कि पंत जी कलाकार कवि हैं। वे सदैव विकासोन्मुख रहे। अनेक प्राणवान कविताओं की रचना उन्होंने की। डॉक्टर चौबे ने स्वरचित कविता प्रकृति मां का पाठ किया।


कार्यक्रम में कवि श्रीराम शर्मा परिंदा, मनावर ने अपनी एक व्यंग्य कविता सुनाई, जिसकी पंक्ति थी छोड़ दरख़्त परिंदा अब उड़ने की तैयारी है। डॉक्टर उर्वशी उपाध्याय, प्रयागराज ने अपनी कविता के माध्यम से समकालीन कोरोना महामारी पर टिप्पणी की। कार्यक्रम में डॉक्टर गरिमा गर्ग पंचकूला ने भी अपनी कविता प्रस्तुत की।


कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना श्रीमती रूली सिंह, मुंबई ने की। स्वागत भाषण डॉक्टर सुनीता चौहान मुंबई ने दिया। उन्होंने स्वरचित कविता जो बीत रही मुझ पर किसे बताऊं का पाठ किया। प्रस्तावना डॉ मनीषा सिंह ने प्रस्तुत की।


संगोष्ठी में डॉक्टर गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज, डॉ रूली सिंह, मुंबई, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, मुंबई,  डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉक्टर चेतना उपाध्याय, अजमेर, डॉक्टर उर्वशी उपाध्याय, प्रयाग, श्री जयंत जोशी, धार, डॉक्टर समीर सैयद, अहमदनगर, डॉक्टर बालासाहब तोरस्कर, मुंबई, पूर्णिमा झेंडे, शकुंतला सिंह, सुनील मतकर, डॉ सुनीता चौहान, मुंबई, सुनीता गर्ग, डॉ गायत्री खंडाटे, हुबली, कर्नाटक, डॉ सरोज मैती आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।



अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन श्रीमती लता जोशी मुंबई ने किया। आभार प्रदर्शन संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने किया।









20210303

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष नियुक्त | Prof. Shailendrakumar Sharma Appointed as the Dean of Faculty of Arts, Vikram University

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष नियुक्त | Prof. Shailendrakumar Sharma appointed as the Dean of Faculty of Arts, Vikram University


मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 के प्रावधान के अंतर्गत कुलाधिपति जी, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के द्वारा प्रो  शैलेंद्रकुमार शर्मा आचार्य एवं हिंदी विभागाध्यक्ष को दो वर्ष की कालावधि के लिए विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकाय का संकायाध्यक्ष  नियुक्त किया गया है। कई ख्यात सम्मानों और पुरस्कारों से विभूषित डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा वर्तमान में हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म. प्र.) के हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए अनेक नवाचारी प्रयत्न किए हैं, जिनमें विश्व हिंदी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र, मालवी लोक साहित्य एवं संस्कृति केन्द्र, भारतीय जनजातीय साहित्य एवं संस्कृति केन्द्र एवं भारतीय भक्तिकालीन साहित्य एवं संस्कृति केंद्र की संकल्पना एवं स्थापना प्रमुख हैं।

 



प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा ने भाषा और साहित्य से संबंधित उच्च स्तरीय पुस्तकों का लेखन और संपादन किया है। उनकी देश-विदेश की महत्वपूर्ण और श्रेष्ठतम संस्थाओं से सम्बद्धता रही है। उन्होंने देश-विदेशों में विभिन्न विषयों पर सैकड़ों व्याख्यान और परिसंवाद में शोध आलेख प्रस्तुति की है। उन्होंने पचहत्तर से अधिक विद्यार्थियों का शोध निर्देशन किया है। प्रो शर्मा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य शोध पत्रिका अक्षरवार्ता के प्रधान संपादक हैं। आलोचना, निबंध लेखन, संस्मरण, इंटरव्यू, नाटक तथा रंगमंच समीक्षा, लोकसाहित्य एवं संस्कृति विमर्श, राजभाषा हिन्दी एवं देवनागरी के विविध पक्षों पर लेखन एवं अनुसंधान कार्य में निरंतर सक्रिय प्रो शर्मा ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की शोध परियोजना के अन्तर्गत 'साठोत्तर हिन्दी नाट्‌य साहित्य और भारतीय रंगचेतना’ विषय पर अनुसंधान किया है।


उनकी मुख्य कृतियाँ हैं  : शब्दशक्ति संबंधी भारतीय और पाश्चात्य अवधारणा तथा हिन्दी काव्यशास्त्र, देवनागरी विमर्श, मालवा का लोकनाट्य माच और अन्य विधाएं, महात्मा गांधी : विचार और नवाचार, सिंहस्थ विमर्श, हिन्दी भाषा संरचना, मालवी भाषा और साहित्य आदि। इनके अलावा अवन्ती क्षेत्र और सिंहस्थ महापर्व, प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य, हिंदी कथा साहित्य, मालव सुत पं सूर्यनारायण व्यास, आचार्य नित्यानंद शास्त्री और रामकथा कल्पलता, हरियाले आंचल का हरकारा : हरीश निगम, हिन्दी नाटक, निबंध तथा स्फुट गद्य विधाएँ एवं मालवी भाषा साहित्य, मालव मनोहर, हिंदी भाषा और नैतिक मूल्य, हरीश प्रधान : व्यक्ति और काव्य, स्त्री विमर्श : परंपरा और नवीन आयाम, मालव मनोहर,  संत शिरोमणि सेनजी आदि प्रमुख ग्रंथों सहित निबंध, आलोचना, भाषाशास्त्र, मालवी भाषा, लोक संस्कृति आदि विषयों पर लगभग 40 पुस्तकों का लेखन एवं संपादन प्रो शर्मा ने किया है। आपने केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा का हिंदी-भीली अध्येता कोश तैयार करने में संपादक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।


उन्हें अर्पित किए गए महत्वपूर्ण एवं ख्यात सम्मान और पुरस्कार हैं :  आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सम्मान, म. प्र. लेखक संघ, भोपाल द्वारा हिन्दी समीक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए डॉ. संतोष तिवारी समीक्षा सम्मान, राष्ट्रीय कबीर सम्मान, हिंदी सेवी सम्मान,  भाषा- भूषण सम्मान, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार, आचार्य विनोबा भावे राष्ट्रीय नागरी लिपि सम्मान, अक्षर आदित्य सम्मान, आलोचना भूषण सम्मान, अभिनव शब्द शिल्पी अलंकरण, साहित्य सिंधु सम्मान, विश्व हिन्दी सेवा सम्मान आदि।


प्रो शर्मा ने थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया, मॉरीशस एवं म्यांमार की अकादमिक यात्राएँ की हैं। मॉरीशस में 2018 में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में उन्होंने शोध पत्र प्रस्तुति एवं आलेख वाचन सत्र की अध्यक्षता की। थाईलैंड में अक्टू 2013 और सिडनी - ऑस्ट्रेलिया में जून 2017 में आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में उन्होंने व्याख्यान दिए, इसके साथ उन्हें क्रमशः विश्व हिन्दी सेवा सम्मान तथा साहित्य सिंधु सम्मान से अलंकृत किया गया।


राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के संरक्षक आचार्य एवं अध्यक्ष हिन्दी अध्ययनशाला प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा को विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष के पद पर कुलाधिपति के निर्देश पर की गई नियुक्ति पर राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के अध्यक्ष ब्रजकिशोर शर्मा, मार्गदर्शक हरेराम वाजपेयी, डॉ. हरिसिंह पाल, महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी, प्रवक्ता सुंदरलाल जोशी सूरज, डॉ. शिवा लोहारिया, गरिमा गर्ग, डॉ. रश्मि चौबे, जी.डी. अग्रवाल, अनिल ओझा, प्रभा बैरागी, प्रो. जगदीशचन्द्र शर्मा, प्रगति बैरागी आदि ने हर्ष व्यक्त किया है।



















20210209

फणीश्वरनाथ रेणु का कथा – साहित्य : युग चेतना और ग्रामीण यथार्थ के परिप्रेक्ष्य में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Phanishwarnath Renu's Fiction: In the Context of Era Consciousness and Rural Reality - Prof. Shailendra Kumar Sharma

रेणु जी ने कथा साहित्य के माध्यम से राष्ट्रीय रूपक तैयार किया  

ग्रामीण भारत के दर्शन होते हैं रेणु जी के कथा साहित्य में 

रेणु हैं आदिम गंध के रचनाकार

कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु जन्म शतवार्षिकी पर  राष्ट्रीय संगोष्ठी


विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रख्यात कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु की जन्म शत वार्षिकी पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी फणीश्वरनाथ रेणु का कथा साहित्य : युग चेतना और ग्रामीण यथार्थ के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित थी। आयोजन के प्रमुख वक्ता इग्नू, नई दिल्ली के समकुलपति और आलोचक  प्रो. सत्यकाम एवं मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई के  विभागाध्यक्ष एवं आलोचक प्रो करुणाशंकर उपाध्याय थे। अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा ने की। आयोजन की विशिष्ट अतिथि  प्रो. प्रेमलता चुटैल, प्रो. गीता नायक, डॉ नरेन्द्रसिंह फौजदार, मथुरा, डॉ जगदीशचंद्र शर्मा, डॉ सी एल शर्मा, रतलाम, डॉ प्रतिष्ठा शर्मा आदि ने  विचार व्यक्त किए। 




मुख्य अतिथि प्रो. सत्यकाम, नई दिल्ली ने कहा कि फणीश्वरनाथ रेणु ने कथा साहित्य के माध्यम से राष्ट्रीय रूपक तैयार किया है। संकट और संक्रांति के काल में उन्होंने जो रचा, वह आज भी प्रासंगिक है। उन्हें भारतीय परंपरा के लेखक के रूप में देखा जाना चाहिए। उनका मैला आंचल भारतीय सांस्कृतिक चेतना का उपन्यास है। वे नव निर्माण और विकास की दृष्टि के बीच नया दृष्टिकोण विकसित कर रहे थे। उनका उपन्यास परती परिकथा पर्यावरणीय कथा के रूप में है।




लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि फणीश्वरनाथ रेणु के कथा साहित्य में युग चेतना के साथ अपनी जमीन पर खड़े ग्रामीण भारत के दर्शन होते हैं। उनके द्वारा चित्रित गांव, लोक समुदाय और संस्कृति जीवंतता  लिए हुए हैं। उनका परती परिकथा कोसी बांध निर्माण की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है, जो एक साथ पर्यावरणीय, सामाजिक और प्रेम संबंधों से जुड़े मुद्दों की ओर ध्यान खींचता है। उनकी कहानी पहलवान की ढोलक महामारी के बीच मृत्यु का साक्षात्कार करते लोगों में संजीवनी का काम करती है। 







आलोचक प्रो. करुणाशंकर उपाध्याय, मुम्बई ने कहा कि रेणु आदिम गंध के रचनाकार हैं। उनका मैला आंचल जयशंकर प्रसाद के उपन्यास कंकाल की परंपरा का उपन्यास है। ग्रामीण अंचल को समुचित सम्मान दिलाने का कार्य रेणु जी ने किया। उन्होंने निरंतर संघर्षरत मनुष्य जीवन के बहुस्तरीय आयामों को प्रकट किया। वे ग्राम्यांचल का चित्र ही नहीं खींचते, उसमें परिवर्तन की बात भी करते हैं। रेणु जी ने कहा है कि वे प्रेम की खेती करना चाहते हैं। वर्तमान में यांत्रिकी प्रभुत्व के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है, उसका प्रभाव मन पर भी पड़ रहा है। रेणु जी उसे सरस बनाना चाहते हैं।

प्रो. प्रेमलता चुटैल ने कहा कि रेणु जी ने अंचल को  नायक बनाया। उनकी कहानी पहलवान की ढोलक तत्कालीन दौर में हैजे की महामारी के मध्य प्रेरणा जगाने का काम करती है, जो आज भी प्रासंगिक है। कहानी में ढोलक की थाप महामारी से जूझ रहे लोगों को प्रेरणा देती है।




प्रो. गीता नायक ने कहा कि ग्रामीण आत्मीयता की गंध रेणु के साहित्य में मिलती है। उनका उपन्यास परती परिकथा रंगमंच की तरह दिखाई देता है। वह स्वतंत्रता के बाद के यथार्थ का जीवंत दस्तावेज है। संयुक्त परिवार की सुंदरता उनके उपन्यासों में मिलती है।



डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि रेणु जी ने कथा साहित्य में एक नई जमीन तोड़ी। आलोचकों ने उनकी उपलब्धि और सीमाओं दोनों को प्रकट किया, किंतु यह जरूरी है कि उन्हें समग्रता से देखा जाए।  


डॉ सी एल शर्मा, रतलाम ने कहा कि रेणु जी के उपन्यासों में प्रस्तुत चरित्र हमारे आसपास के समाज में आज भी मौजूद हैं। वे हमें वास्तविक जीवन से  भटकाते नहीं हैं। 


डॉ प्रतिष्ठा शर्मा ने कहा कि कृषि हमारे देश की रीढ़ है। रेणु जी ने सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक सभी क्षेत्रों में गांव की विशिष्ट भूमिका को अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया।




आयोजन में प्रोफेसर सत्यकाम  का सारस्वत सम्मान प्रो शर्मा, प्रो चुटैल, प्रो नायक आदि द्वारा उन्हें शॉल, साहित्य एवं स्मृति चिन्ह अर्पित कर किया गया।



आयोजन के पूर्व गांधी अध्ययन केंद्र में महात्मा गांधी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। साथ ही महात्मा गांधी चित्र दीर्घा और ग्रंथालय एवं विश्व हिंदी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र का अवलोकन अतिथियों ने किया।




इस अवसर पर प्रोफेसर हरिमोहन बुधौलिया, श्रीमती हीना तिवारी आदि सहित अनेक शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।




संचालन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ नरेन्द्रसिंह फौजदार एवं डॉ गीता नायक ने किया।













रेणु जन्मशती प्रसंग

20210207

फणीश्वरनाथ रेणु का कथा - साहित्य और लोक संपृक्ति - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Phanishwarnath Renu's Association with Folk in Fiction - Prof. Shailendra Kumar Sharma

फणीश्वरनाथ रेणु का कथा - साहित्य और लोक संपृक्ति

कथा साहित्य के क्षेत्र में नवीन परंपरा स्थापित की रेणु ने

फणीश्वरनाथ रेणु जन्मशती पर राष्ट्रीय परिसंवाद


विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रख्यात कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु की जन्म शताब्दी आयोजन के शुभारंभ पर राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन हुआ। यह परिसंवाद फणीश्वरनाथ रेणु का कथा - साहित्य और लोक संपृक्ति पर केंद्रित था। आयोजन के प्रमुख वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार और भाषाविद् प्रो. त्रिभुवननाथ शुक्ल थे। अध्यक्षता हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा ने की। विशिष्ट अतिथि  प्रो. प्रेमलता चुटैल, प्रो. गीता नायक, डॉक्टर जगदीशचंद्र शर्मा, डॉ प्रतिष्ठा शर्मा आदि ने  विचार व्यक्त किए। 



मुख्य अतिथि प्रो. त्रिभुवननाथ शुक्ल,  जबलपुर ने कहा कि फणीश्वरनाथ रेणु ने कथा साहित्य के क्षेत्र में स्वयं एक नवीन परंपरा स्थापित की। लोक जीवन के साथ गहरे साहचर्य के कारण उनके यहां अनेक देशज मुहावरे मिलते हैं। वे हिंदी के आंचलिक उपन्यासों के मानक हैं। रेणु के साहित्य में उनके समय की महामारी की पीड़ा और संघर्ष को देखा जा सकता है। उन्होंने देश एवं  समाज की स्थिति को भारतीय लोक तत्व के साथ जोड़कर प्रस्तुत किया। भौतिक संसाधन से ही कोई बड़ा नहीं होता, इसे रेणु जी ने अपने जीवन और कृतित्व के माध्यम से स्थापित किया। साहित्य में सहज भाषा का प्रयोग किस प्रकार किया जा सकता है, यह रेणु जी सिखाते हैं। उन्होंने मौलिक औपन्यासिक शिल्प और भाषा के माध्यम से कथा साहित्य को नवीन दिशा दी।



लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यासों और कहानियों में भारत की आत्मा प्रकट हुई है। लोक मानस और संस्कृति के प्रति गहरी संपृक्ति उनके साहित्य को वैशिष्ट्य देती है। उन्होंने  भारतीय  उपन्यास का मौलिक ढांचा तैयार किया। उनकी रचनाओं में अंचल के रूप, रस, बिम्ब, गंध और शब्द का जीवन्त रूपायन हुआ है। स्वाधीनता संग्राम और स्वातंत्र्योत्तर भारत की अनेकविध छबियों के साथ सामाजिक परिवर्तन का स्वर उनके साहित्य में मिलता है।



प्रो. प्रेमलता चुटैल ने कहा कि रेणु जी के उपन्यास अंचल की सोंधी मिट्टी की गंध के लिए जाने जाते हैं। कोविड महामारी के दौर में रेणु जी का मैला आंचल याद आता है। गांव के जन का निश्छल और सहज मन उनकी मारे गए गुलफाम उर्फ तीसरी कसम जैसी चर्चित कहानी के माध्यम से जीवंत होता है।  




आयोजन में प्रोफेसर शुक्ल का सारस्वत सम्मान प्रो शर्मा, प्रो चुटैल, प्रो नायक, डॉ जगदीश शर्मा एवं डॉ शर्मा द्वारा उन्हें शॉल एवं स्मृति चिन्ह अर्पित कर किया गया।




इस अवसर पर प्रोफेसर हरिमोहन बुधौलिया, डॉक्टर ज्ञानचंद खिमेसरा, मंदसौर आदि सहित अनेक शिक्षक शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।


संचालन डॉक्टर जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ गुणमाला खिमेसरा, मंदसौर ने किया।





















रेणु जन्मशती प्रसङ्ग


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