बारिश में केरल : पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश
डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा
अपने ढंग के इस अकेले ग्रह पर प्रकृति का अनुपम उपहार कहीं- कहीं ही समूचे निखार पर नज़र आता है। इनमें ईश्वर के अपने स्वर्ग के रूप में विख्यात केरल का नाम सहसा कौंध जाता है. उत्तर में जम्मू-कश्मीर और दक्षिण में केरल - दोनों अपने - अपने विलक्षण निसर्ग- वैभव से ना जाने किस युग से मनुष्य को चुम्बकीय आकर्षण से खींचते- बांधते आ रहे हैं। केरलकन्या राजश्री से विवाह के बाद प्रायः मेरी अधिकतर केरल यात्राएँ बारिश के आस-पास ही होती रही हैं। केरलवासी इसे सही समय नहीं मानते, लेकिन इसका मुझे कभी अहसास नहीं हुआ। जब पूरा भारत भीषण गरमी - लू से तड़फता है। तब भी केरल का आर्द्र वातावरण लोगों के तन- मन को भिगोए रखता है। ऐसा उसके समुद्रतट और पर्वतमाला से घिरे होने और सघन वनों से संभव होता है। सूखे का कोई नामो निशान नहीं। शायद धरती पर कोई और जगह नहीं है। जहाँ नैसर्गिक हरीतिमा का सर्वव्यापी प्रसार हो। सब ओर हरा ही हरा छाया हो। श्वासों में नई स्फूर्ति, नई चेतना जगाती प्राणवायु हो।
गरमी की इन्तहा होने पर पूरा देश जब आसमान की ओर तकने लगता है, तब केरल के निकटवर्ती अरब सागर से ही काली घटाओं की आमद होती है। मानसून की पहली मेघमाला सबसे पहले केरल को ही नहलाती है। फिर पूरा देश मलय पर्वत से आती हुई वायु के साथ कजरारे बादलों की गति और लय से झूमने लगता है। कभी महाकवि कालिदास ने इन्हीं आषाढ़ी बादलों को देखकर उन्हें विरही यक्ष का सन्देश अलकापुरी में निवासरत प्रिया के पास पहुँचाने का माध्यम बनाया था और सहसा 'मेघदूत' जैसी महान रचना का जन्म हुआ था. केरल पहुंचकर कई दफा इन बादलों की तैयारी को निहारने का मौका मिला है। सुबह खुले आसमान के रहते अचानक उमस बढ़ने लगती है, फिर स्याह बादलों की अटूट शृंखला टूट पड़ती है, केरलवासी पहली बारिश में चराचर जगत के साथ झूम उठते हैं। उस वक्त मनुष्य और इतर प्राणियों का भेद मिटने लगता है।
केरल में कहा जाता है कि जब कौवे कहीं बैठे-बैठे बारिश में भीगते नजर आएँ तो उसका मतलब होता है कि पानी रूकेगा नहीं। आखिरकार वह क्यों न भीगता रहे , गर्वीले बादलों से उसे रार जो ठानना है , देरी का कारण जो जानना है।
बारिश में भीगते केरल के कई रूपों को मैंने अपनी यात्राओं में देखा है। कभी सागर तट पर, कभी ग्राम्य जीवन में , कभी नगरों में , कभी मैदानों में, कभी पर्वतों पर और कभी अप्रवेश्य जंगलों में . हर जगह उसका अलग अंदाज,अलग शैली . वहाँ की बारिश को देखकर कई बार लगता है कि यह आज अपना हिसाब चुकता कर के ही जाएगी, लेकिन थोड़ी ही देर में आसमान साफ़ . कई दफा वह मौसम विज्ञानियों के पूर्वानुमानों को मुँह चिढ़ाती हुई दूर से ही निकल जाती है।
तिरुवनंतपुरम- कोल्लम हो या कालिकट- कोईलांडी , कोट्टायम-पाला हो या थेक्कड़ी या फिर इलिप्पाकुलम-ओच्चिरा हो या गुरुवायूर - सब जगह की बारिश ने अन्दर- बाहर से भिगोया है, लेकिन हर बार का अनुभव निराला ही रहा . वैसे तो केरल की नदियाँ और समुद्री झीलें सदानीरा हैं, लेकिन बारिश में इनका आवेश देखते ही बनता है. लेकिन यह आवेश प्रायः मर्यादा को नहीं तोड़ता . यहाँ की नदियाँ काल प्रवाहिनी कभी नहीं बनती हैं . देश के अधिकतर राज्यों से ज्यादा बारिश के बावजूद प्रलयंकारी बाढ़ के लिए यहाँ कोई जगह नहीं है . छोटी-छोटी नदियाँ केरल की पूर्वी पर्वतमाला से चलकर तीव्र गति से सागर से मिलने को उद्धत हो सकती हैं, लेकिन ये किसी को तकलीफ पहुँचाना नहीं जानतीं।
बारिश में भीगे केरलीय पर्वत मुझे जब-तब निसर्ग के चितेरे सुमित्रानंदन पन्त की रचना 'पर्वत प्रदेश में पावस ' की याद दिलाते रहे हैं :
पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।
अपने सहस्त्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
-जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण सा फैला है विशाल!
गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्तेजित कर
मोती की लडि़यों सी सुन्दर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!
गिरिवर के उर से उठ-उठ करउच्चाकांक्षाओं से तरुवरहै झॉंक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर।
फड़का अपार वारिद के पर!
रव-शेष रह गए हैं निर्झर!
है टूट पड़ा भू पर अंबर!
धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुऑं, जल गया ताल!
-यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल
हे ईश्वर के अपने देश केरल , इसी तरह बारिश में भीगते रहना और सभी प्राणियों की तृप्ति बने रहना।
प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
ब्लॉग लिंक :
कोट्टायम-कुमिली मार्ग का निसर्ग वैभव |
प्रो॰ शैलेन्द्रकुमार शर्मा Pro. Shailendrakumar Sharma |
अंश शर्मा |
प्रो॰ शैलेन्द्रकुमार शर्मा Pro. Shailendrakumar Sharma |
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कोट्टायम-कुमिली मार्ग का निसर्ग वैभव |
Wah-wah chitropam varnan padhkar Keral jakar barsat ka maja lene ki iccha tivra ho gayi hai !!!
जवाब देंहटाएंप्राकृतिक सुषमा की दृष्टि से केरल निश्चय ही अद्वितीय है। मेरा यह प्रिय प्रदेश है और कई यात्राओं के बावजूद, मैं बार-बार यहाँ जाना चाहता हूँ। 'बहुवचन' के जनवरी-मार्च 2013 अंक में मेरा यात्रा-वृत्तांत 'केरल में स्वर्ग : मन्नार' प्रकाशित हुआ है। कई अन्य यात्रा-वृत्तांत अभी अप्रकाशित भी हैं और कई अभी तक लिखे ही नहीं जा सके। मन जब प्रकृति के स्नेह से सराबोर हो तो उसे लिखना असम्भव है--ऐसा मुझे लगता है। 'न जुबां को दिखाई देता है, न नज़र कोई बात कहती है' जैसी स्थिति काफी समय तक बनी रहती है। आपने अपने इस छोटे-से आलेख के द्वारा मेरे मन को पुन: आलोड़ित कर दिया। केरल के सौंदर्य की कोई उपमा नहीं, यह अनुपम है।
जवाब देंहटाएंआत्मीय आभार
जवाब देंहटाएंमेघमाला में समय बिताने के लिये बधाइयाँ. प्रकृति को करीब से देखने का अपना आनंद है.
जवाब देंहटाएंआत्मीय आभार अक्षय आमेरिया।
जवाब देंहटाएंSir आपके लेख को पढ़कर घर बैठे केरल घूमने की इच्छा होने लगी ।।
जवाब देंहटाएंआनंददायक लेख 👌🏻
अनेक धन्यवाद
हटाएंकेवल की प्राकृतिक सुषमा का अति सुन्दर विवेचन
जवाब देंहटाएंअनेक धन्यवाद
हटाएंआनंददायक लेख
जवाब देंहटाएंअनेक धन्यवाद
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