साहित्य वही सार्थक, जो भाषा, देश और संस्कृति के प्रति सम्मान जाग्रत करे - प्रो शर्मा
महात्मा गांधी : शिक्षा और साहित्य के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन
प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना एवं स्वामी श्री स्वरूपांनद सरस्वती महाविद्यालय, भिलाई के हिन्दी विभाग के संयुक्त तत्त्वावधान में महात्मा गांधी : शिक्षा और साहित्य के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ शैलेंद्रकुमार शर्मा, अध्यक्ष, हिन्दी अध्ययनशाला विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, विशेष अतिथि डॉ. शहाबुद्दीन शेख, कार्यकारी अध्यक्ष, नागरी लिपि परिषद पुणे, विशिष्ट अतिथि डा प्रभु चौधरी सचिव राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन, मुख्य वक्ता श्री सुरेश चन्द्र शुक्ल शरद आलोक, साहित्यकार और अनुवादक, ओस्लो नार्वे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. दीपक शर्मा, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय ने की। महाविद्यालय की प्राचार्य डा. हंसा शुक्ला विशेष रूप से उपस्थित रहीं।
मुख्य अतिथि डा. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने अपने उदृबोधन में कहा कि महात्मा गांधी चाहते थे विद्यार्थियों को मातृभाषा में शिक्षा दी जानी चाहिये। हम अपने भावों एवं विचारों को मातृभाषा में अच्छे से व्यक्त कर सकते है। आज देश में 80 से 90 प्रतिशत आबादी कृषि कार्यों से जुडे़ हुये हैं, पर कृषि पर कोई शिक्षा नहीं दी जाती है। उन्होंने कहा कि जो साहित्य भाषा, देश, संस्कृति के प्रति सम्मान जागृत करे, वहीं वास्तविक साहित्य है। पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली हमारे संस्कृति के प्रति हमें तिरस्कार करना सिखाती है। प्रो शर्मा ने महात्मा गांधी विचार और नवाचार के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
मुख्य वक्ता डा. सुरेशचन्द्र शुक्ल ने कहा नार्वे में स्थान-स्थान पर गांधी की प्रतिभा है व लोग महात्मा गांधी व उनके सिद्धांतों से परिचित हैं। वस्तुतः गांधी युग पुरूश थे प्राणी मात्र के प्रति साकारात्मक चिंतन ही अहिंसा है स्वीकार करते थे। मन, वचन व कर्म से किसी के प्रति हिंसा न करें, यही अहिंसा का सच्चा मार्ग है।
डा. प्रभु चौधरी ने आमंत्रित अतिथियों का परिचय कराया और विषय की उपादेयता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गांधी व्यक्ति नहीं युग थे। आज जब चारों ओर हिंसा की भावना बलवती हो रही है तब हमें गांधी के चिंतन व मूल्य आधारित शिक्षा की आवश्यकता है।
प्राचार्य डा. हंसा शुक्ला ने कहा साहित्य में गांधी जी के विचारों व सिद्धांतों को महत्वपूर्ण स्थान मिला, गांधी के विचारों को हम पढ़ रहें है पर हम उन्हें जी नहीं रहे हैं। जीवन में गांधी के सिद्धांतों को समावेश करना होगा। गांधी जी प्रार्थना पर बहुत भरोसा करते थे। प्रार्थना में बहुत बल होता है।
डा दीपक शर्मा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में हिन्दी विभाग की सराहना करते हुये कहा गांधी जी ज्ञान आधारित शिक्षा के स्थान पर आचरण आधारित शिक्षा के समर्थक थे। वे शिक्षा को सर्वांगीण विकास के सशक्त माध्यम मानते थे। वर्धा योजना में वे प्रथम सात वर्ष निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा पर बल दिया। प्रारंभिक स्तर पर मातृभाशा में शिक्षा व राश्ट्रीय एकता के लिये कला सात तक हिन्दी भाषा में ही शिक्षा प्रदान करने के पक्ष में थे। वे बुनियादी शिक्षा के द्वारा विद्यार्थियों में कौशल विकसित करना चाहते थे जिससें विद्यार्थी लघु व कुटीर उद्योगों के माध्यम से स्वावलंबी बन सकें।
कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुये डा. सुनीता वर्मा ने कहा जीवन के विविध पहलुओं पर महात्मा गांधी का चिंतन विशाल था। उन्होंने सत्य के प्रयोग में अपनी भूलों का सार्वजनिक रूप स्वीकार किया है गांधी जी का जीवन चरित्र उन्हें वैरिस्टर मोहनदास गांधी से महात्मा एवं बापू संबोधन तक ले जाता है और यही व्यक्तित्व और जीवन दर्षन की गहरीछाप लगभग सभी भारतीय भाशाओं के साहित्य पर पड़ी। उनका शिक्षा सिद्धांत व्यवहारिक मूल्यों पर आधारित और स्वरोजगार मूलक था महात्मागांधी अब गुजरते वक्त के साथ प्रासंगिक होते जा रहे है।
कार्यक्रम की संयोजिका डा. सुनीता वर्मा विभागाध्यक्ष हिन्दी एवं तकनीकी सहयोग स.प्रा. निशा पाठक एवं स.प्रा. टी बबीता ने प्रदान किया।
डा मीता अग्रवाल, रायपुर, डा. मीना सोनी उड़ीसा, डॉ. शमा ए बेग स्वरूपानंद महाविद्यालय भिलाई ने अपने शोध पत्र पढ़े। 500 से अधिक शोधार्थी, विद्यार्थियों ने भाग लिया । कार्यक्रम में मंच संचालन डा सुनीता वर्मा विभागाध्यक्ष हिन्दी व धन्यवाद ज्ञापन डा शमा ए बेग विभागाध्यक्ष माइक्रोबायोलॉजी ने किया। कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राध्यापक शामिल हुए।