नारी सशक्तीकरण के जरूरी है मूल्य प्रणाली में व्यापक बदलाव हो – प्रो. शर्मा
महिला सशक्तीकरण पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी
सृजनधर्मियों की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी महिला सशक्तीकरण और हमारा योगदान पर केंद्रित थी। संगोष्ठी की मुख्य अतिथि साहित्यकार एवं राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई एवं विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन की विशिष्ट अतिथि डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉक्टर मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉक्टर अनुसूया अग्रवाल, महासमुंद, छत्तीसगढ़, डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता संस्था के राष्ट्रीय मुख्य संयोजक प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने किया।
मुख्य अतिथि साहित्यकार और मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि समाज के विकास के लिए पुरुष और स्त्री दोनों को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। स्त्री को स्वयं सक्षम बनना होगा। स्त्री में निर्णय लेने की अपार क्षमता है, इसके साथ उसे अधिकार भी मिलने चाहिए।
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि स्त्री सशक्तीकरण के लिए जरूरी है कि समाज की मूल्य प्रणाली में व्यापक परिवर्तन हो, जो पितृसत्तात्मक समाज से जुड़ी है। निरंतर जटिल होती आर्थिक और सामाजिक संरचना के बीच स्त्री को मुकम्मल पहचान मिलना चाहिए। यह तब ही संभव है जब सभी क्षेत्रों में सहभागिता के साथ स्त्री के पास निर्णय लेने का अधिकार हो। आज भी देश की करोड़ों स्त्रियां शिक्षा से वंचित हैं। नारी सशक्तीकरण के लिए जरूरी है कि स्त्री शिक्षित हो और उसे आर्थिक अधिकार भी मिलें।
अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि भारतीय समाज में संस्कृति में प्राचीन काल से महिलाओं का विशिष्ट स्थान रहा है। प्राचीन ग्रंथों में नारी को देवी का स्थान प्राप्त है। इसलिए जरूरी है कि नारी सशक्तीकरण के साथ ही स्त्री स्वयं अपने महत्व को समझे।
मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने कहा कि बाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक स्त्री ही अपनी विभिन्न भूमिकाओं के माध्यम से पुरुष का आधार बनी रहती है। नारी सृजन शक्ति का प्रतीक है। वर्तमान में राष्ट्र के विकास में महिलाओं की भूमिका को पहचानना आवश्यक है।
महासमुंद, छत्तीसगढ़ की डॉक्टर अनुसूया अग्रवाल ने कहा कि घर, परिवार और समाज में आज भी नारी की स्थिति दोयम दर्जे की है। भारतीय समाज आज भी महिला सशक्तीकरण के संबंध में चिंतित दिखाई देता है। स्त्री जन्म का औचित्य ही इसमें है कि वह संघर्ष के साथ अपना अस्तित्व बनाए रखे।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि स्त्री और पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों के समान सहयोग से ही परिवार, समाज और राष्ट्र का निर्माण संभव है।
कोलकाता की डॉक्टर सुनीता मंडल ने कहा कि यह विडंबना है कि स्त्री पैदा नहीं होती है, वरन उसे बनाया जाता है। आज की नारी शिक्षित तो है पर जब निर्णय की बात आती है तो उसे अलिप्त रखा जाता है।
प्रारंभ में संगोष्ठी का प्रास्ताविक वक्तव्य डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला ने देते हुए नारी चेतना से जुड़े विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला।
राष्ट्रीय संगोष्ठी की प्रस्तावना, विषय वस्तु और संस्था की गतिविधियों पर महासचिव श्री प्रभु चौधरी, उज्जैन ने विस्तार से प्रकाश डाला। सरस्वती वंदना डॉ सुनीता गर्ग ने की। अतिथि परिचय रूली सिंह, मुंबई ने एवं स्वागत भाषण डॉक्टर दिव्या पांडेय ने दिया।
संगोष्ठी का सफल संचालन रायपुर की डॉ पूर्णिमा कौशिक ने किया। आभार अहमदनगर की डॉक्टर रोहिणी डाबरे ने व्यक्त किया।
संगोष्ठी में डॉक्टर उर्वशी उपाध्याय प्रयागराज, डॉ ममता झा, डॉ मनीषा सिंह, डॉ सुनीता यादव, डॉ रूली सिंह, मुंबई, डॉक्टर सुनीता गर्ग, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉक्टर शैल चंद्रा, धमतरी, छत्तीसगढ़, डॉक्टर दीपिका सुतोदिया, गुवाहाटी, असम, श्रीमती आर्यमा सान्याल, वाराणसी, सरस्वती वर्मा, रीना सुरड़कर, डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, डॉक्टर लता जोशी, मुंबई, डॉक्टर रोहिणी डावरे, डॉ सुनीता चौहान आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्य जन उपस्थित थे। संगोष्ठी के साथ संस्था की आगामी कार्य योजना एवं गतिविधियों पर विचार किया गया। बैठक में आगामी सम्मेलन सितंबर माह में प्रयागराज में करने का निर्णय लिया गया। साथ ही स्मारिका प्रकाशन एवं अन्य गतिविधियों के लिए समिति गठन एवं अन्य निर्णय लिए गए।
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