विश्व हिन्दी संग्रहालय एवं अभिलेखन केन्द्र : एक परिचय
प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिन्दी अध्ययनशाला में नव स्थापित विश्व हिन्दी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र में संग्रहकार्य,सर्वेक्षण एवं दस्तावेजीकरण जारी है। विश्वभाषा के रूप में प्रतिष्ठित हिन्दी के बहुकोणीय रेखांकन के लिए 2007 ई. में स्थापित इस संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र में विगत एक हजार से अधिक वर्षों के हिन्दी साहित्य के महत्त्वपूर्ण पक्षों को प्रस्तुत करने के साथ ही साहित्यिक पत्रिकाओं के विशेषांक,देश-विदेश के विभिन्न भागों से प्रकाशित हिन्दी समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ, प्रकाशन सूचियॉं,अनुसंधान सूचनाएं एवं अन्य आधार सामग्री को सॅंजोया गया है।
विक्रम विश्वविद्यालय,उज्जैन के विश्वहिन्दी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र के संस्थापक- समन्वयक प्रो.शैलेन्द्रकुमार शर्मा द्वारा परिकल्पित इस केंद्र में देशांतरीय हिन्दी साहित्य के साथ ही बसव समिति, बेंगलुरु,आंध्रप्रदेश हिन्दी अकादमी, हैदराबाद आदि संस्थाओं द्वारा अर्पित साहित्य, स्त्री एवं दलित विमर्श , राजभाषा एवं प्रयोजनमूलक हिंदी से संबद्ध महत्त्वपूर्ण प्रकाशनों को संग्रहीत किया गया है। प्रदर्शनकारी एवं रूपंकर कलाओं, संस्कृत साहित्य से संबद्ध सामग्री, बालसाहित्य, पर्यटन साहित्य,स्वाधीनता आंदोलन पर केंद्रित साहित्य भी यहां संजोया गया है। हिन्दी की साहित्यिक एवं लघु पत्रिकाओं के दुर्लभ अंकों के साथ ही वर्तमान में प्रकाशित हो रहीं पाँच सौ से अधिक पत्र-पत्रिकाओं के अंक भी अवलोकनार्थ उपलब्ध हैं। यहॉं स्थापित श्री गुरुनानक अध्ययन पीठ की दृष्टि से भारतीय भाषाओं में भक्ति साहित्य एवं गुरुनानक देव के साहित्य के साथ ही श्री गुरु ग्रंथ साहिब महत्त्वपूर्ण पुस्तकें तथा पत्र- पत्रिकाएं संजोयी गई हैं।
अपने ढंग के इस प्रथम विश्व हिन्दी संग्रहालय में हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकारों पर एकाग्र वृत्तचित्रों के साथ ही लोकभाषा में निबद्ध गाथा, कथा तथा गीतों की आडियो-वीडियो, सीडी संजोयी गयी हैं, जिनका समय-समय पर प्रदर्शन किया जाता है।यहॉं प्रमुख साहित्यकारों के चित्र,हस्तलेख, पत्र आदि के डिजिटलीकरण की दिशा में कार्य जारी है। संग्रहालय में विभिन्न संस्थाओं साहित्यकारों एवं साहित्यरसिकों द्वारा भी महत्त्वपूर्ण सामग्री अर्पित की जा रही है। विश्व हिन्दी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र के लोक- संस्कृति प्रभाग में मालवी लोक-संस्कृति के विविध पक्षों पर व्यापक कार्य जारी है। मालवी संस्कृति के समेकित रूपांकन एवं अभिलेखन की दिशा में विशेष प्रयास जारी हैं। यहॉं हिन्दी एवं मालवी के शीर्ष रचनाकारों के परिचयात्मक विवरण, कविता एवं चित्रों की दीर्घा संजोयी गयी है । चित्रावण, संजा, मांडणा, कठपुतली कला सहित मालवा क्षेत्र के विविध कलारूपों और भीली जनजातीय संस्कृति से सम्बद्ध महत्त्वपूर्ण सामग्री को भी इस संग्रहालय में संजोया गया है।हिन्दी और उसकी क्षेत्रीय बोलियों विशेषतः मालवी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के विविध पक्षों से संबद्ध साहित्य, लेख एवं सूचनाओं का दस्तावेजीकरण इस केंद्र में किया जा रहा है।भारत की प्रमुख लोकभाषाओं यथा- मालवी, बुन्देली, हाड़ौती, मेवाडी, मारवाडी, भोजपुरी, हरियाणवी, कन्नौजी, कनपुरिया, अवधी, ब्रजभाषा, निमाडी, भीली, भिलाली, बारेली, सहरिया, गोंडी जैसी बोलियों के अभिलेखन की दिशा में भी कार्य जारी है।
हाल के दशकों में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में एक साथ कई दिशाओं में शोध कार्य हुआ है, जिनमें हिन्दी भाषा-साहित्य एवं संस्कृति के विविध आयामों के साथ ही हिन्दी कम्प्यूटिंग,वेब पत्रकारिता, दृश्य जनसंचार-माध्यम,मशीनी अनुवाद, राजभाषा हिन्दी आदि के अधुनातन संदर्भ उल्लेखनीय हैं। यहॉं विश्वभाषा हिन्दी के साथ ही लोकभाषा मालवी के साहित्य एवं संस्कृति को लेकर महत्त्वपूर्ण काम हुआ है और आज भी जारी हैं। यहॉं स्थापित मालवी लोक साहित्य एवं संस्कृति केंद्र के अंतर्गत मालवी और उसकी उपबोलियों-सोंधवाड़ी, रजवाडी, दशोरी, उमठवाडी, निमाडी आदि पर महत्त्वपूर्ण कार्य हुआ है। यहॉं स्थापित भारतीय लोक एवं जनजातीय संस्कृति केंद्र के अंतर्गत बुन्देली, हाडौती, मेवाडी, भोजपुरी, हरियाणवी, अवधी, ब्रजभाषा, निमाडी, भीली, बारेली, सहरिया, गोंडी आदि पर भी उल्लेखनीय कार्य हुआ है। मालवी लोक-संस्कृति के विविध पक्षों, यथा-व्रत पर्व उत्सव पर केंद्रित लोक साहित्य, लोकदेवता, साहित्य, पर्यावरण, शृंगारपरक लोकगीत, हीड काव्य, माच परम्परा, संजा पर्व, चित्रावण, मांडणा, विरद बखाण, गाथा साहित्य, लोकोक्ति आदि पर भी महत्त्वपूर्ण अनुसंधान एवं अभिलेखन जारी है। हिन्दी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन हिन्दी के साथ ही भारत की विविध बोलियों के लोक-साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में कार्य के लिए कृत- संकल्पित है। इसदिशा में रचनात्मक सुझावों का सदैव स्वागत रहेगा। इस प्रथम विश्व हिन्दी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र के समुचित विकास की दिशा में संभावनाओं के द्वार खुले हुए हैं। इस हेतु देश-विदेश की अकादमिक संस्थाओं, साहित्यकारों तथा विद्वानों से सहयोग का अनुरोध है।
प्रो. डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा
संस्थापक-समन्वयक
विश्व हिन्दी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र
हिन्दी अध्ययनशाला
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन
[म.प्र.] भारत
संग्रहालय का अवलोकन करते हुए अशोक वाजपेयी |
अशोक वाजपेयी को संग्रहालय का अवलोकन कराते हुए डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा |
संग्रहालय का अवलोकन करते हुए अशोक चक्रधर |
अशोक चक्रधर को संग्रहालय का अवलोकन कराते हुए डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा |
सृजन संस्कार वर्ष 2007-08: एक शताब्दी हिन्दी के सात स्वरों की के अवसर पर जारी पोस्टर |
महोदय, मैं अभी दिल्ली में हूँ I बेगुसराय जाने पर रंग - अभियान की प्रतियाँ और अपनी नाट्य कृतियाँ भेजूंगा I
जवाब देंहटाएंअनिल पतंग , संपादक - रंग- अभियान I
धन्यवाद। प्रतीक्षा रहेगी।
हटाएं