पेज

भर्तृहरि लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
भर्तृहरि लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

20161128

जीवन के शाश्वत, किन्तु अनुत्तरित प्रश्नों के बीच कैलाश वाजपेयी की कविता भर्तृहरि : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

कैलाश वाजपेयी  की कविता: भर्तृहरि
प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
जीवन के शाश्वत, किन्तु अनुत्तरित प्रश्नों के बीच राजयोगी भर्तृहरि से संवाद करती कैलाश वाजपेयी  की इस कविता को पढ़ना-सुनना विलक्षण अनुभव देता है। कैलाश वाजपेयी  (11 नवंबर 1936 - 01 अप्रैल, 2015) अछोर कविमाला के अनुपम रत्न हैं। उनका जन्म हमीरपुर उत्तर-प्रदेश में हुआ। उनके कविता संग्रह ‘हवा में हस्ताक्षर’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था। उनकी प्रमुख कृतियों में 'संक्रांत', 'देहात से हटकर', 'तीसरा अंधेरा', 'सूफीनामा', 'भविष्य घट रहा है', 'हवा में हस्ताक्षर', 'शब्द संसार', 'चुनी हुई कविताएँ', 'भीतर भी ईश्वर' आदि प्रमुख हैं। 

कैलाश वाजपेयी की कविताओं में जहां एक ओर अपने समय और समाज से संवादिता दिखाई देती है, वहीं वे निजी सुख-दुख, हर्ष - पीड़ा के साथ दार्शनिक प्रश्नों को अभिव्यक्ति देते हैं। श्री वाजपेयी ने जहां एक ओर भारतीय दर्शन, इतिहास और पुराख्यानों के साथ वैचारिक रिश्ता बनाया था, वहीं वे पश्चिम से आने वाली चिंतन धाराओं से भी मुठभेड़ करते रहे। 

व्यक्ति और समाज की सापेक्षता को उन्होंने कभी ओझल न होने दिया। वे लिखते हैं-  मेरा ऐसा मानना रहा है कि व्यक्ति और समाज बुद्ध के प्रतीत्यसमुत्पाद की तरह ओतप्रोत है। रचनाकार व्यक्ति भी है समाज भी। समाज उसे क्या क्या नहीं देता - सभी कुछ समाज की ही देन है, तब भी जहां तक आंतरिकता का प्रश्न है वहां रचनाकार बहुत अकेला है। प्रश्न यह उठता है कि क्या व्यक्ति समाज अथवा विचारधाराओं का साधन मात्र है? तब फिर उसके निजत्व का क्या किया जाए? देखा यह गया है कि विचारधाराएं जाने अनजाने व्यक्ति को एक कठपुतली की तरह नचाने लगती  हैं। परिणाम यह होता है कि रचना के क्षेत्र में स्वतः स्फूर्ति आंतरिक बेमानी होने लगती है। दूसरे दर्जे की कला को अधिक महत्व मिलने लगता है। पंथपरकता अथवा विचारधाराओं ने इस दृष्टि से कलाओं को गंभीर क्षति पहुंचाई है। समाज का अर्थ है पारस्परिक प्रेम संबंध। मगर हम यदि अपने आसपास निगाह दौड़ा कर देखें तो पाएंगे कि हम आपस में तरह-तरह से विभक्त हैं। एक ही समाज में रहते हुए अपने अपने विश्वासों, अपनी धारणाओं के कारण, हर उस व्यक्ति के प्रति विद्वेष रखते हैं जो हमारी मान्यताओं के विपरीत स्वतंत्रचेता है, अपने ढंग से रचना है (संक्रांत की भूमिका से)। जाहिर है कैलाश वाजपेयी की ये चिंताएं आज भी बरकरार हैं।

उन्होंने दिल्ली दूरदर्शन के लिए कबीर, सूरदास, जे कृष्णमूर्ति, रामकृष्ण परमहंस के जीवन पर फिल्में भी बनाई थीं। स्वामी विवेकानंद के जीवन पर आधारित नाटक 'युवा संन्यासी' उनका प्रसिद्ध नाटक है। उन्हें प्राप्त सम्मानों में उल्लेखनीय हैं- हिंदी अकादमी सम्मान, वर्ष 2000 में एसएस मिलेनियम अवॉर्ड, वर्ष 2002 में प्रतिष्ठित व्यास सम्मान, वर्ष 2005 में ह्यूमन केयर ट्रस्ट अवॉर्ड, वर्ष 2008 में अक्षरम् का विश्व हिन्दी साहित्य शिखर सम्मान आदि। मेरी  प्रिय कविताओं में से एक भर्तृहरि का आस्वाद लीजिए : 


भर्तृहरि / कैलाश वाजपेयी

चिड़ियाँ बूढ़ी नहीं होतीं
मरखप जाती हैं जवानी में
ज़्यादा से ज़्यादा छह-सात दिन
तितली को मिलते हैं पंख
इन्हीं दिनों फूलों की चाकरी
फिर अप्रत्याशित
झपट्टा गौरेया का
एक ही कहानी है
खाने या खाए जाने की
तुम सहवास करो या आलिंगन राख का
भर्तृहरि! देही को फ़र्क नहीं पड़ता
और कोई दूसरी पृथ्वी भी नहीं है

भर्तृहरि! यों ही मत खार खाओ शरीर पर
यही यंत्र तुमको यहाँ तक लाया है
भर्तृहरि! यह लो एक अदद दर्पण
चूरचूर कर दो
प्रतिबिंबन तब भी होगा ही होगा
भर्तृहरि! अलग से बहाव नहीं कोई
असल में हम खुद ही बहाव हैं
लगातार नष्ट होते अनश्वर
अभी-अभी भूख, पल भर तृप्ति, अभी खाद
भर्तृहरि! हममें हर दिन कुछ मरता है
शेष को बचाए रखने के वास्ते
मौसम बदलता है भीतर
भर्तृहरि! तुमने मरता नहीं देखा प्यासा कोई
वह पैर लेता है, आमादा
पीने को अपना ही ख़ून
भर्तृहरि! तुमने मरुथल नहीं देखा
भर्तृहरि समय का मरुथल क्षितिजहीन है
और वहाँ पर ‘वहाँ’ जैसा कुछ भी नहीं
भर्तृहरि! भाषा की भ्रांति समझो
सूर्य नहीं, हम उदय अस्त हुआ करते हैं
युगपत् उगते मुरझते
भर्तृहरि! भाषा का पिछड़ापन समझो
जो भी हैं बंधन में पशु है
निसर्गतः फर्क नहीं कोई
राजा और गोभी में
छाया देता है वृक्ष आँख मूँदकर
सुनता है, धड़ पर, चलते आरे की
अर्रर्र, किस भाषा में रोता है पेड़
भर्तृहरि! तुमने उसकी सिसकी सुनी?

भर्तृहरि! तुम्हीं नहीं, सबको तलाश है
उस फूल की
जो भीतर की ओर खिलता है
भर्तृहरि! लगने जब लगता है
मिला अभी मिला
आ रही है सुगंध
दृश्य बदल जाता है।

(फ़ोटो भरत तिवारी Bharat Tiwari सौजन्य विकिपीडिया)


श्री कैलाश वाजपेयी को 18 अगस्त 2013, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में भारतीय ज्ञानपीठ के कार्यक्रम में अपनी कविता 'भर्तृहरि' का पाठ करते हुए यूट्यूब पर भी देखा जा सकता है। लिंक है: 
Watch "Bhartrihari भर्तृहरि Poem by Kailash Vajpeyi" on YouTube




Featured Post | विशिष्ट पोस्ट

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : वैचारिक प्रवाह से जोड़ती सार्थक पुस्तक | Mahatma Gandhi : Vichar aur Navachar - Prof. Shailendra Kumar Sharma

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : पुस्तक समीक्षा   - अरविंद श्रीधर भारत के दो चरित्र ऐसे हैं जिनके बारे में  सबसे...

हिंदी विश्व की लोकप्रिय पोस्ट