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20210602

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर : राष्ट्रीय और सांस्कृतिक योगदान - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Lokmata Ahilyabai Holkar: National and Cultural Contribution - Prof. Shailendrakumar Sharma

राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और भावात्मक एकीकरण में अहिल्याबाई का योगदान अविस्मरणीय है – प्रो. शर्मा 

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर : राष्ट्रीय और सांस्कृतिक योगदान पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी लोकमाता अहिल्याबाई होलकर : राष्ट्रीय और सांस्कृतिक योगदान पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार श्री सुनील गणेश मतकर, इंदौर थे। विशिष्ट वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। मुख्य अतिथि प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे थे। अध्यक्षता नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल ने की। आयोजन के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ ममता झा, मुंबई एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ पूर्णिमा कौशिक रायपुर ने किया।




मुख्य वक्ता के रूप में इंदौर के श्री सुनील गणेश मतकर ने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर की दृष्टि अत्यंत व्यापक थी। उन्होंने पर्यावरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया। इसके साथ ही समाज के विभिन्न वर्गों के उत्थान के लिए नई परंपराओं का सूत्रपात किया। प्रजा के दुख दर्द को वे स्वयं सुनती थीं और उनकी जरूरत के अनुसार पर्याप्त सहायता देती थीं। श्री मतकर ने अहिल्या जी के द्वारा किए गए विभिन्न सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया। साथ ही अपने पिताजी डॉ गणेश मतकर द्वारा उनके संदर्भ में लिखी गई पुस्तकों एवं नाट्य प्रदर्शनों का जिक्र किया। श्री सुनील ने अति संक्षेप में महेश्वर, इंदौर, कंपेल, देवगुराडिया के साथ खासगी ट्रस्ट से संबंधित रोचक प्रसंगों की जानकारियां दीं। 




विशिष्ट वक्ता उज्जैन के डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि अहिल्यादेवी होलकर सही अर्थों में राष्ट्रमाता थीं। उन्होंने दशकों पूर्व राष्ट्रीय,  सांस्कृतिक और भावात्मक एकीकरण का अविस्मरणीय प्रयास किया। देवालयों और सांस्कृतिक प्रतीकों के जीर्णोद्धार और नव निर्माण का अत्यंत साहसिक कार्य उन्होंने किया। उनका योगदान ऐतिहासिक है। उन्होंने प्रभावी राज्यशैली, धर्मपरायणता और बुद्धिमत्ता की मिसाल पेश की। उनके अवदान मात्र होलकर राज्य तक सीमित नहीं है, वरन संपूर्ण भारत और विश्व में एक अवतारी नारी के रूप में उनका स्मरण किया जाता है। उन्होंने इस संदर्भ में जान मालकम द्वारा उनके संबंध में लिखे गए प्रसंगों को भी उद्धृत किया। श्री शर्मा ने कहा कि अहिल्या जी को याद करना भारतीय संस्कृति के उदात्त पक्षों को याद करना है, जिनका उन्होंने आजीवन संरक्षण किया। अहिल्यादेवी कर्तव्यपरायण धार्मिक एवं समाजसेवी होने से लोकमाता बनीं।

 

हिंदी परिवार, इंदौर के अध्यक्ष हरेराम वाजपेयी ने कहा कि लोकमाता अहिल्या जी की नगरी में मैं रह कर अपने आप को धन्य समझता हूं। इंदौर शहर हर रोज, हर जगह अहिल्या जी को सादर नमन करता है। उन्होंने उनके नाम से इंदौर में विश्वविद्यालय, हवाई अड्डा, चेंबर ऑफ कॉमर्स, मार्ग, कालोनियों, शासकीय पुस्तकालय, गौशाला आदि सहित करीब डेढ़ दर्जन संस्थाओं के नामों का उल्लेख किया। साथ ही उनके संदर्भ में लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष सुमित्रा ताई महाजन, डॉक्टर गणेश मतकर, अरविंद जवलेकर आदि द्वारा अहिल्या जी पर लिखी गई पुस्तकों के संदर्भ  के साथ अपने उस आलेख का जिक्र किया, जो कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है। अहिल्याजी के नाम से मध्य प्रदेश शासन भारत की उस महिला को सम्मान पत्र और दो लाख की राशि प्रदान करता है, जो समाज सेवा में अग्रणी भूमिका निभाती है। 


मुख्य अतिथि पुणे के प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख ने अहिल्या जी के कृतित्व, व्यक्तित्व तथा उनके धार्मिक - सामाजिक कार्यों के संदर्भ में अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि देवी अहिल्या ने भारत के गौरव को बढ़ाया। उन्होंने जीवन भर दुख एवं संकट के क्षणों के बीच प्रभु की इच्छा के अनुरूप अपना कार्य किया। उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रेरणादायी था। उन्होंने सामाजिक क्रांति की। वे न्याय, प्रशासन और वीरता की मिसाल थीं। उन्होंने अपनी आत्मशक्ति के बल पर लोक कल्याण का कार्य किया। उनकी राज्य व्यवस्था न्याय और क्षमता पर आधारित थी उन्होंने देश में अनेक शिव मंदिरों की स्थापना की। युगों युगों तक देवी अहिल्या को याद किया जाएगा। 



संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने कहा कि देवी अहिल्या भारतीय परंपरा में नारी सशक्तीकरण की मिसाल हैं। वे सर्व धर्म समभाव के लिए आजीवन समर्पित रहीं। उनके योगदान से नई पीढ़ी को जोड़ने का कार्य किया जाना चाहिए। वरिष्ठ इतिहासकार डॉ गणेश मतकर अहिल्यादेवी पर केंद्रित नाटक का मंचन करते थे, जो बहुत लोकप्रिय हुआ।


मुंबई की श्रीमती सुवर्णा जाधव ने कहा कि महाराष्ट्र की बेटी को मालवांचल ने जो सम्मान दिया, वह अद्वितीय है। अहिल्याबाई होलकर न्यायप्रिय और बहादुर थीं। वे सही अर्थों में महिला शक्ति की प्रतीक हैं। उन्होंने अनेक धार्मिक कार्य किए। सामान्य परिवार में जन्मी अहिल्यादेवी ने बाल्यावस्था से ही दया और सेवा भावना के उदाहरण प्रस्तुत किए। उन्होंने स्त्रियों की सेना बनाई। वे धार्मिक सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति थीं।



संगोष्ठी में संस्था के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर ने स्थान स्थान पर मंदिर, जलाशय, घाट, अन्नक्षेत्र आदि प्रारंभ करवाए। वे शिव भक्त थीं। उनके ही संरक्षण में उन्होंने राज्य किया। संस्था के द्वारा देवी अहिल्या स्मृति नारी शक्ति सम्मान घोषित किया गया है, जो प्रतिवर्ष समाज में नारी सशक्तीकरण के क्षेत्र में कार्य करने वाली महिला को दिया जाता है। 






डॉक्टर ममता झा, मुंबई ने कहा कि अहिल्याबाई होलकर ने अपने कार्यों से शक्ति और बुद्धिमत्ता के तालमेल की मिसाल प्रस्तुत की। उनका व्यक्तित्व दो सौ वर्ष पूर्व स्त्री सशक्तीकरण का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने माहेश्वरी साड़ी की कला को विश्व ख्याति दिलाई।


आयोजन की संयोजिका डॉ पूर्णिमा कौशिक रायपुर में अहिल्याबाई होल्कर पर केंद्रित  गीतमय स्लाइड प्रेजेंटेशन किया।


कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉक्टर संगीता पाल, कच्छ, गुजरात ने की। अतिथि परिचय साहित्यकार श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर ने दिया। स्वागत भाषण डॉक्टर शिवा लोहारिया जयपुर ने प्रस्तुत किया।



संगोष्ठी में डॉक्टर ममता झा, मुंबई, डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ विमल चंद्र जैन इंदौर, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, मुंबई, डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉ सुनीता चौहान, डॉ सुनीता गर्ग, डॉ ख्याति पुरोहित, अहमदाबाद, श्री अशोक भागवत, श्री बलजीत पाल, श्री बलवंत पाल, नीतू पांचाल, पल्लवी पाटील आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।


राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने किया। आभार प्रदर्शन  डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया।







 


 












देवी अहिल्या जन्मोत्सव

20200826

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर : व्यक्तित्व और योगदान

अहिल्याबाई असाधारण शासिका थीं, जिन्हें लोकमाता का दर्जा मिला 

लोकमाता अहिल्याबाई के बहुआयामी अवदान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा लोकमाता अहिल्याबाई के बहुआयामी अवदान पर केंद्रित कर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल एवं सारस्वत अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने की। मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर थे। आयोजन की रूपरेखा संस्था के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।



मुख्य अतिथि डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने संबोधित करते हुए अहिल्याबाई होलकर के जीवन प्रसंगों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर ने अपने जीवन में अनेक सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कार्य किए, जिन्हें आज भी याद किया जाता है। उन्होंने अनेक देवालय, बावड़ी, घाट, जलाशय आदि का निर्माण करवाया।




वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. जी. डी. अग्रवाल, इंदौर ने कार्यक्रम  को संबोधित करते हुए कहा कि  अहिल्याबाई एक असाधारण शासिका थी, जिन्हें लोकमाता का दर्जा मिला। लोकमाता अहिल्याबाई ने अपने आंसूओं को पीकर प्रजा के आँसू पोंछे। अहिल्याबाई का बहुआयामी  व्यक्तित्व इन काव्य पंक्तियों से स्पष्ट होता है, 
बाला बनी, वनिता बनी, विधवा बनी, रानी बनीl 
दानी बनी भक्तिन बनी, ज्ञानी बनी, देवी बनीl 
रानीत्व की बाई अहिल्या, अनुपम कहानी बनीl 
निज दिव्यता से गंगा का पानी बनीl 










सारस्वत अतिथि लेखक एवं आलोचक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने संबोधित करते हुए कहा कि अहिल्याबाई होल्कर ने भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने व्यापक दृष्टि के साथ देश को सांस्कृतिक और भावात्मक एकता के सूत्र में बांधने के लिए अविस्मरणीय प्रयास किए। लोकोपकार, न्याय और प्रजारंजन के साथ उन्होंने तप, त्याग और सेवाव्रत को अपने जीवन में मूर्त किया।







वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि प्रातः स्मरणीय माता अहिल्या बाई होलकर अवतारतुल्य थीं। भगवान शंकर की भक्ति उनकी अपार शक्ति थी, जिसका सदुपयोग उन्होंने अपनी प्रजा के  हित के लिए किया तथा पूरे भारत में ऐसे अनेक कार्य किए, जिसके कारण उनकी सुकीर्ति का ध्वज आज भी फहरा रहा है और फहराता रहेगा। राजमाता होकर भी वह लोक माता के रूप में जानी जाती रहीं और इसी रूप में वह अमर हुईं। उन्होंने बताया कि लोकमाता अहिल्याबाई होलकर शीर्षक उनका एक आलेख कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया था। 




कार्यक्रम की प्रस्तावना एवं स्वागत भाषण संस्था के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने दिया। कार्यक्रम को संस्था अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन एवं डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने भी संबोधित किया।


वरिष्ठ कवि श्री अनिल ओझा, इंदौर ने देवी अहिल्या बाई पर केंद्रित गीत सुनाया, जिसकी पंक्तियाँ थीं, 

माँ अहिल्या को नमन देवी अहिल्या को नमन।

 आपकी यश कीर्ति से नित गूँजते धरती गगन।

कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ. रोहिणी डावरे, अहमदनगर ने प्रस्तुत की।

कार्यक्रम में डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, डॉ रेखा रानी, फतेहगढ़, डॉ भरत शेनेकर, पुणे सहित देश के विभिन्न भागों के प्रतिभागी उपस्थित थे।



कार्यक्रम का संचालन निरूपा उपाध्याय, देवास ने किया। आभार प्रवीण बाला, पटियाला, पंजाब ने माना।


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