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20230622

Swantah Sukhay - self satisfaction in Arts - Prof. Shailendra Kumar Sharma | स्वान्तः सुखाय या आत्म सन्तुष्टि | प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

Swantah Sukhay - Self Satisfaction in Arts

Prof. Shailendra Kumar Sharma 

Great poets and thinkers have different views about 'Kavya Prayojans'- poetic usage, the purposes of poetry or art.




The word 'Prayojana' means purpose or objective. It is believed that nothing is done without purpose or objective. Regarding the purpose of poetry, there are various views of various theorists or critics.

Swantah Sukhay means Personal inner happiness.

The concept of Swantah sukhaya is given by Goswami Tulsidas. 

He wrote,  Swantah sukhaya Tulasi Raghunath Gatha.

नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् 

रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि। 

स्वांत:सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा

भाषानिबंधमतिमंजुलमातनोति॥

Means, According to many Puranas, Vedas and Shastras and which is described in Ramayana and also available from some other places, Tulsidas composes the story of Raghunath in a very beautiful language for the pleasure of his conscience.


Goswmi Tulsidas was a great Hindi poet who wrote „Ramacharit Manas‟. He said that he wrote it for his personal happiness and joy. Great poem, fame and wealth are the best when they create welfare of all like the river of the River Ganga. He connects the purity and sacredness of the River Ganga with poetry. He believed that Loka-Mangal (welfare of the people) is the ultimate goal of poetry.


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स्वान्तः सुखाय - कला में आत्म संतुष्टि

प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा 

काव्य प्रयोग, कविता या कला के उद्देश्यों के बारे में महान कवियों के विभिन्न विचार हैं। शब्द 'प्रयोग' का अर्थ उद्देश्य या उद्देश्य है। ऐसा माना जाता है कि बिना उद्देश्य या उद्देश्य के कुछ भी नहीं किया जाता है। काव्य के प्रयोजन के सम्बन्ध में विभिन्न सिद्धांतकारों या कवियों के भिन्न-भिन्न मत हैं।

स्वान्तः सुखाय का अर्थ है व्यक्तिगत आंतरिक प्रसन्नता।

स्वान्त सुखाय (स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा) की अवधारणा गोस्वामी तुलसीदास द्वारा दी गई है।

उन्होंने लिखा है, 

नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् 

रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि। 

स्वांत:सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा

भाषानिबंधमतिमंजुलमातनोति॥  (बालकांड / 7)


अनेक पुराण, वेद और शास्त्र से सम्मत तथा जो रामायण में वर्णित है और कुछ अन्यत्र से भी उपलब्ध रघुनाथ की कथा को तुलसीदास अपने अंत:करण के सुख के लिए अत्यंत मनोहर भाषा रचना में निबद्ध करता है।

गोस्वामी तुलसीदासजी ऐसे कवि थे, जिन्होंने जीवन को इस ढंग से स्पर्श किया कि कवि से ऊंचे उठकर ऋषि हो गए। उन्होंने लिखा है- 'स्वांत: सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा। ' इसका सीधा-सा अर्थ है मैं अपने सुख के लिए कथा कर रहा हूं। लेकिन, दूसरों को सुख मिले इसके लिए भी उन्होंने काव्य सर्जना की।

गोस्वामी तुलसीदास एक महान हिंदी कवि थे जिन्होंने 'रामचरित मानस' लिखा था। उन्होंने कहा कि उन्होंने इसे अपनी निजी खुशी और खुशी के लिए लिखा है। महान कविता, प्रसिद्धि और धन तब श्रेष्ठ होते हैं जब वे गंगा नदी की तरह सभी का कल्याण करते हैं। वे गंगा नदी की पवित्रता और पवित्रता को काव्य से जोड़ते हैं। उनका मानना था कि लोक-मंगल (लोगों का कल्याण) कविता का अंतिम लक्ष्य है।

20211205

रामाश्रयी काव्य धारा और तुलसीदास - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Ramashrayi Kavya Dhara and Tulsidas - Prof. Shailendra Kumar Sharma

रामाश्रयी काव्य धारा और गोस्वामी तुलसीदास - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा


विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज द्वारा वेब पटल पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। इस संगोष्ठी में अनेक वक्ताओं ने अपने विचार प्रकट किए। 






 भारतीय साहित्य को रामाश्रयी काव्यधारा और गोस्वामी तुलसीदास का योगदान अविस्मरणीय है। रामकाव्यधारा का प्रवर्तन वैष्णव संप्रदाय के स्वामी रामानंद से स्वीकार किया जाता है। रामकाव्यधारा में शील, शक्ति और सौंदर्य का अद्भुत समन्वय पाया जाता है। ये विचार मुख्य अतिथि तथा विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, म. प्र. के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने व्यक्त किये। 

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज, उ. प्र. के तत्वावधान में ' रामाश्रयी काव्यधारा : तुलसीदास' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वे उद्बोधन दे रहे थे। डाॅ. शर्मा ने आगे कहा कि सभी रामभक्त कवि विष्णु के अवतार दशरथ पुत्र राम के उपासक हैं। उनके राम परब्रह्म स्वरूप भी है। रामचरितमानस में तुलसी ने आदर्श गृहस्थ, आदर्श समाज और आदर्श राज्य की कल्पना की है।रामकाव्य में ज्ञान,कर्म और भक्ति की अलग अलग महत्ता स्वीकार करते हुए भक्ति को उत्कृष्ट बताया गया है। रामाश्रयी कवियों की भारतीय संस्कृति में पूर्ण आस्था रही है। लोकहित के साथ उनकी भक्ति स्वांत:सुखाय थी। 

विशिष्ट अतिथि डाॅ. चंद्रशेखर सिंह, मुंगेली, छत्तीसगढ ने कहा कि तुलसीदास ने रामचरित मानस को बोली के रूप में मानीजानेवाली अवधी में रचा। मानस में लोकतंत्र की बात निहित है। जीवन जीने का सही रास्ता मानस में बताया गया है। रामचरितमानस को पूरे विश्व में श्रद्धापूर्वक पढा जाता है।

डाॅ. अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, पटना, बिहार ने कहा कि रामाश्रयी शाखा के समस्त कवियों में तुलसीदास जी का स्थान अनुपम है। भारतीय संस्कृति को आधार बनाकर मानस की रचना हुई है। तुलसीदास जी की राम के प्रति दासभक्ति थी। प्रो. स्मिता बहन मिस्री, नवसारी गुजरात ने मंतव्य में कहा कि भारतीय संस्कृति में तुलसी का पौधा और महाकवि तुलसीदास दोनों का गौरवपूर्ण, अद्वितीय और अभूतपूर्व स्थान है। भारतीय जनमानस की नब्ज को पकडकर उनका सटीक उपचार बताने वाले तुलसीदास समाज में व्याप्त विसंगतियों को दूर करके एक स्वस्थ समाज की स्थापना करते हैं। 

रामकथा का सानिध्य गंगास्नान समान अतुल्य है।अत: तुलसी साहित्य आज भी प्रासंगिक है। डाॅ. भारती दोडमनी, कारवार, कर्नाटक ने अपने उद्बोधन में कहा कि तुलसीदास जी की रचनाएँ स्वांत: सुखाय और बहुजन हिताय दोनों में प्रस्तुत है। मानस के सात खंडों में मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को व्यक्त किया गया है। उनकी अधिकांश रचनाएँ लोक कल्याण की कामना व्यक्त करती है।

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उ.प्र. के सचिव डाॅ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने अपने प्रास्तविक भाषण में  गोष्ठी के विषय की महत्ता प्रतिपादित करते हुए संस्थान की गतिविधियों पर विस्तार से प्रकाश डाला। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उ. प्र. के अध्यक्ष डाॅ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि रामाश्रयी काव्यधारा में तुलसीदास जी के पश्चात उनके समक्ष अन्य कोई कवि दिखाई नहीं देता। वे जीवन की समग्रता के गायक थे। रामचरितमानस एक संपूर्ण समाजदर्शन है। 

तुलसीदासजी महान चिंतक, बहुत बडे संत तथा कालजयी महाकवि थे। उनका मानस भारतीय दर्शन का अक्षय भंडार है।
गोष्ठी का शुभारंभ श्रीमती ज्योति तिवारी, इंदौर की सरस्वती वंदना से हुआ। प्रा. रोहिणी बालचंद डावरे, अकोले, अहमदनगर, महाराष्ट्र ने स्वागत भाषण दिया। गोष्ठी का संयोजन श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव 'शैली', रायबरेली ने किया। गोष्ठी का सफल व कुशल संचालन व नियंत्रण  डाॅ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया तथा श्रीमती रश्मि संजय श्रीवास्तव 'लहर' लखनऊ ने आभार प्रदर्शित किया।

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मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक और हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय साहित्य को रामाश्रयी काव्यधारा और गोस्वामी तुलसीदास का योगदान अविस्मरणीय है। रामकाव्य धारा का प्रवर्तन वैष्णव संप्रदाय के स्वामी रामानंद से स्वीकार किया जाता है। इस काव्य का आधार संस्कृत साहित्य में उपलब्ध राम-काव्य और नाटक रहे हैं। इस धारा के कवियों ने राम के अवतारी स्वरूप को अंगीकार किया है। सभी रामभक्त कवि विष्णु के अवतार दशरथ - पुत्र राम के उपासक हैं। वे अवतारवाद में विश्वास करते हैं। साथ ही उनके राम परब्रह्म स्वरूप भी हैं। उनमें शील, शक्ति और सौंदर्य का समन्वय है। उनका अवतार लोक-मंगल के लिए हुआ है। रामचरितमानस में तुलसी ने आदर्श गृहस्थ, आदर्श समाज और आदर्श राज्य की कल्पना की है। राम-काव्य में ज्ञान, कर्म और भक्ति की अलग अलग महत्ता स्वीकार करते हुए भक्ति को उत्कृष्ट बताया गया है। तुलसी का मानस विविध मत वाद और समुदायों के बीच समन्वय का सेतु बनाता है। रामाश्रयी कवियों की भारतीय संस्कृति में पूर्ण आस्था रही। लोकहित के साथ-साथ उनकी भक्ति स्वांत: सुखाय थी। तुलसी के काव्य में चिरंतन और सार्वभौमिक जीवन सत्यों की अभिव्यक्ति की अपूर्व क्षमता है। उनके मानस का विश्व मानव पर गहरा प्रभाव पड़ा  है। निजी सम्बन्धों से लेकर समग्र विश्व के प्रति स्नेह-सम्बन्धों की प्रतिष्ठा  राम के समतामूलक जीवन दर्शन के केन्द्र में रही है।  लोकमानस पर अंकित राम का यह बिम्ब सदियों से अखंड मानवता की रक्षा का आधार है।













20200728

गोस्वामी तुलसीदास : वैश्विक परिप्रेक्ष्य में

तुलसी के मानस को विदेशों में बसे भारतीयों ने दिल से लगाया हुआ है
तुलसी जयंती पर नॉर्वेजियन भाषा में तुलसी के मानस के अंशों का अनुवाद बना ऐतिहासिक उपलब्धि
अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ विश्व फलक पर तुलसी की व्याप्ति और प्रभाव पर विमर्श 


भारत की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा तुलसी जयंती पर अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी गोस्वामी तुलसीदास : वैश्विक परिप्रेक्ष्य में पर एकाग्र थी। आयोजन के प्रमुख अतिथि प्रख्यात प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे एवं मुख्य वक्ता समालोचक एवं विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षाविद् श्री बृजकिशोर शर्मा ने की। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली एवं श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर थे। संगोष्ठी की प्रस्तावना संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।



प्रमुख अतिथि ओस्लो, नॉर्वे के श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि तुलसी के रामचरितमानस को विदेशों में बसे भारतीयों ने अपने दिल से लगाया हुआ है। भारतवंशी जहां भी गए हैं, वहाँ अपने साथ भाषा, संस्कार और शिष्टाचार के साथ तुलसी जैसे महान् भक्तों की वाणी को ले गए हैं। उन्होंने नॉर्वेजियन भाषा में तुलसी के रामचरितमानस के चुनिंदा अंशों का अनुवाद प्रस्तुत किया, जो संगोष्ठी की ऐतिहासिक उपलब्धि बना। स्वीडन, डेनमार्क, नॉर्वे जैसे देशों में प्रचलित स्केंडनेवियन भाषाओं के बीच पहला होने के कारण यह अनुवाद ऐतिहासिक महत्त्व का है। श्री शुक्ला ने नॉर्वे में बसे भारतवंशियों के जीवन पर तुलसी साहित्य के प्रभाव की भी चर्चा की।





संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में समालोचक एवं साहित्यकार प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने अपने व्याख्यान में वैश्विक संस्कृति पर तुलसी के मानस के प्रभाव और व्याप्ति पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि तुलसी की विश्व दृष्टि अत्यंत व्यापक है। उनका साहित्य विश्व संस्कृति को बहुत कुछ दे सकता है। दुनिया को पारिवारिक और सामुदायिक जीवन में परस्पर प्रेम, बन्धुत्व और समरसता की दृष्टि की आवश्यकता है, जो तुलसी साहित्य से सहज ही मिल सकती है। विश्व के अनेक देशों में तुलसी की कृतियों की अनुगूंज सुनाई देती है। उनकी रचनाएं देश विदेश के लोगों की जीवन दृष्टि के विकास में सहायक बनी हुई हैं। तुलसी का रामचरितमानस मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद जैसे अनेक देशों में बसे लगभग तीन करोड़ लोगों के बीच सांस्कृतिक धरोहर और प्रेरणा पुंज के रूप में जीवंत है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी, रूसी, फारसी आदि भाषाओं के बाद श्री सुरेश चंद शुक्ल द्वारा नॉर्वेजियन में किया जा रहा रामचरितमानस का अनुवाद नई सदी की उपलब्धि है। तुलसी काव्य में निहित सार्वभौमिक जीवन मूल्यों का प्रादर्श विश्व मानव को उनकी विलक्षण देन है। तुलसी का रामराज्य और जीवन दर्शन महात्मा गांधी के यहां स्वराज्य, सत्याग्रह, अहिंसा, असहयोग, आत्म त्याग के रूप में उतरे हैं, जो वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य हुए। गांधी जी ने तुलसी के साहित्य का प्रयोग व्यापक राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए किया।




विशिष्ट अतिथि श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी कृतियों के द्वारा राम के आदर्श को प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने जन भाषा के माध्यम से उदात्त जीवन मूल्यों को प्रसारित करने का अविस्मरणीय प्रयास किया। 




कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्था के अध्यक्ष श्री बृजकिशोर शर्मा ने कहा कि तुलसी का चिंतन अत्यंत व्यापक है। उनका साहित्य संवेदना और विचार का अथाह सागर है। उनकी रचनाएं शांति और सद्भाव का बोध कराती हैं। तुलसी सही अर्थों में महामानव थे। वे एक साथ परंपराशील और प्रगतिशील दोनों हैं।


प्रारंभ में संगोष्ठी की प्रस्तावना रखते हुए संस्था के महासचिव श्री प्रभु चौधरी ने कहा कि तुलसी का साहित्य सही अर्थों में वैश्विक है। उन्होंने जन जन के मध्य भारतीय जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा की।


आयोजन में श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, एवं श्री सुंदर लाल जोशी, नागदा ने तुलसी के जीवन और व्यक्तित्व से जुड़ी कविताएं प्रस्तुत कीं। श्री हरिराम वाजपेयी की कविता तुलसी में की पंक्तियाँ थीं, तुलसी पर्याय है भावना और पवित्रता का। तुलसी पर्याय है अनेकता में एकता का। तुलसी ही भक्त है तुलसी ही भगवान है। राम में बसा है तुलसी तुलसी में राम है। 




कवि श्री सुंदर लाल जोशी की काव्य पंक्तियां थीं, पथ प्रदर्शक जन जन के, आत्माराम सपूत। चित्रकूट के घाट पर, मिला राम का दूत। तुलसी ने संसार को, दिया अनोखा ग्रंथ। पकड़े इसकी राह जो, मिले स्वर्ग का पंथ।

इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर, डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, शम्भू पँवार, जयपुर, डॉ कविता रायजादा, आगरा, तूलिका सेठ, गाजियाबाद, जी डी अग्रवाल, इंदौर, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, श्री अनिल ओझा, इंदौर आदि सहित देश के विभिन्न राज्यों के विद्वानों और प्रतिभागियों ने भाग लिया।


संगोष्ठी की सूत्रधार निरूपा उपाध्याय, देवास थीं। आभार प्रदर्शन साहित्यकार श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने किया।


कार्यक्रम में डॉ. उर्वशी उपाध्याय, प्रयाग, डॉ. शैल चन्द्रा, रायपुर, डॉ हेमलता साहू, अम्बिकापुर, डॉ कृष्णा श्रीवास्तव, मुंबई, डॉ ज्योति सिंह, इंदौर, श्रीमती प्रभा बैरागी, उज्जैन, डॉ. संगीता पाल, कच्छ, डॉ. सरिता शुक्ला, लखनऊ, प्रियंका द्विवेदी, प्रयाग, विनीता ओझा, रतलाम, पायल परदेशी, महू, जयंत जोशी, धार, अनुराधा गुर्जर, दिल्ली, राम शर्मा परिंदा, मनावर, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ संजीव कुमारी, हिसार, अनुराधा गुर्जर, दिल्ली, डॉ श्वेता पंड्या, विजय कुमार शर्मा, प्रियंका परस्ते, कमल भूरिया, प्रवीण बाला, लता प्रसार, पटना, मधु वर्मा, श्रीमती दिव्या मेहरा, कोटा, डॉ. शिवा लोहारिया, जयपुर, सुश्री खुशबु सिंह, रायपुर आदि सहित देश के विभिन्न राज्यों के साहित्यकार, प्रतिभागी और शोधकर्ता उपस्थित थे।

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