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20210528

गौतम बुद्ध : वैश्विक चिंतन एवं संस्कृति को अवदान - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Gautam Buddha: Contribution to Global Thought and Culture - Prof. Shailendra Kumar Sharma

हिंसा और आतंक से जूझते विश्व को बुद्ध के प्रेम, मैत्री और करुणा की जरूरत है – प्रो. शर्मा 


गौतम बुद्ध : वैश्विक चिंतन एवं संस्कृति को अवदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी आयोजन किया गया। अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी गौतम बुद्ध : वैश्विक चिंतन एवं संस्कृति को अवदान पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ जी डी अग्रवाल, इंदौर ने की। आयोजन के विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय मुख्य संयोजक प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर, डॉक्टर वरुण गुलाटी, नई दिल्ली, सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉक्टर ममता झा, मुंबई, योगाचार्य डॉ निशा जोशी, इंदौर, हिंदी परिवार के संस्थापक श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने किया।







आयोजन के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि गौतम बुद्ध जीवन में शील और बुद्धि की प्रतिष्ठा करते हैं। उनका स्मरण करना अपने जीवन में व्यापक परिवर्तन लाना है। हिंसा, युद्ध और आतंक से जूझते विश्व को बुद्ध के प्रेम, मैत्री और करुणा की जरूरत है। वे हमें सभी प्रकार के पूर्वाग्रह से मुक्त कर सत्य को अंगीकार करने पर बल देते हैं। बुद्ध का संदेश है कि सभी प्रकार के दुखों के कारण तृष्णा को सुखाने से दुख का पूर्ण नाश संभव है। उन्होंने नए प्रकार के मनुष्य और समाज की रचना का उपक्रम किया। वे एक गहरे समाजशास्त्री के रूप में सामाजिक समानता और न्याय का संदेश देते हैं। उन्होंने प्रज्ञा की आंख से धम्म को देखने का आव्हान किया वर्तमान में विश्व को बुद्ध के उपदेशों की आवश्यकता है। उनकी दृष्टि हमें पावन करती है।




प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चन्द्र शुक्ल, शरद आलोक, ऑस्लो, नॉर्वे ने कहा कि बुद्ध ने मनुष्य जीवन के लिए आवश्यक विभिन्न मंगल कर्म बताए हैं। उन्हें अंगीकार कर जीवन को परिवर्तित किया जा सकता है। बुद्ध का संदेश है कि  खुशी बांटने से होती है, संचित करने से नहीं। श्री शुक्ल ने अपनी कविता करुणा के सागर गौतम बुद्ध सुनाई।


विशिष्ट अतिथि डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि बुद्ध ने तृष्णा और आसक्ति को मानव जीवन के दुख के कारण माना।  इनसे मुक्त होना आवश्यक है। वे मध्यम मार्ग को दिखाते हैं। गौतम बुद्ध की दृष्टि वैज्ञानिक थी। उनकी शिक्षा से मनुष्य मानसिक स्वास्थ्य और आत्मिक शांति को प्राप्त कर सकता है। उनकी शिक्षा को व्यवहार में लाकर हम अपना जीवन सफल कर सकते हैं।




कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर ने कहा कि बुद्ध ने युवावस्था में ही सांसारिक आकर्षणों से मुक्ति की राह अपनाई थी। बुद्ध की शिक्षा ग्रहण करने से हमारा जीवन सार्थक हो सकता है। उन्होंने भगवान बुद्ध को समर्पित अपनी कविता सुनाई, जिसकी पंक्तियां थीं, दो ऐसा आशीष सृष्टि यह निर्भय हो, करुणा के अवतार तुम्हारी जय हो।



संस्था की कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि गौतम बुद्ध ने मानव मात्र के कल्याण के उपदेश दिए। उनकी आगमन से वैश्विक क्रांति हुई। गौतम बुद्ध ने आम व्यक्ति को योग से जोड़ा। उन्होंने चार आर्य सत्य एवं अष्टांग मार्ग का उपदेश दिया। बौद्ध धर्म जीवन का चरम लक्ष्य निर्वाण को मानता है। यह आज संपूर्ण विश्व में लोकप्रिय है। बुद्ध ने न अधिक भोग और न अधिक त्याग की बात कर मध्यम मार्ग सुझाया।




विशिष्ट अतिथि डॉ वरुण गुलाटी, नई दिल्ली ने कहा कि बुद्ध का उद्देश्य सहज मार्ग दिखाना था। बुद्ध के विचारों से सभी वर्गों के लिए निर्वाण का रास्ता खुल गया। उन्होंने सम्यक् ज्ञान का प्रचार किया, जिससे सामान जन भी उनसे जुड़ गए। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में वे विशिष्ट मानदंड देते हैं। उनका अष्टांग मार्ग कल्याणकारी राज्य के लिए अत्यंत उपादेय है। बुद्ध ने जाति विषमता का निषेध कर समानता का मार्ग सुझाया।


विशिष्ट अतिथि डॉ ममता झा, मुंबई ने कहा कि बुद्ध आज भी सामयिक हैं। उनकी शिक्षा से जीवन में तमाम प्रकार की मुश्किलों और संघर्ष से मुक्त हुआ जा सकता है। बुद्ध की दृष्टि में प्रत्येक दुख के मूल में तृष्णा है। उसे समाप्त कर हमारा जीवन प्रकाशमय बन सकता है। श्रीमती झा ने बुद्ध के जीवन से जुड़ा हुआ एक प्रसंग सुनाया, जिसमें उनकी क्षमा, संयम, त्याग और अहिंसा की प्रवृत्ति का परिचय मिलता है।


वरिष्ठ समाजसेवी श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर ने कहा कि भारत में अस्मिता का संघर्ष चल रहा है। बुद्ध ने जो कुछ कहा आज भी वह प्रासंगिक है। बुद्ध हमारे जीवन में भ्रांतियों के निराकरण का मार्ग दिखाते हैं। पूर्णता की प्राप्ति का ज्ञान गौतम बुद्ध को मिला था। उन्होंने दुख के निवारण के लिए अपने मन को निर्मल करने की आवश्यकता बताई। बुद्ध और महावीर – दोनों  जीवन व्यवहार एवं विस्मृत ज्ञान को पुनः प्राप्त करने की याद दिलाते हैं। 


वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि गौतम बुद्ध का संदेश जीवन में नव चेतना जागृत करने का संदेश है। वे अपने अंदर के दीपक को जलाने की आवश्यकता बताते हैं, जो वर्तमान समय में उपादेय है।


योगाचार्य डॉ निशा जोशी, इंदौर ने कहा कि बुद्ध कभी बनते नहीं है, बुद्ध एक स्थिति है। गौतम बुद्ध की तरह आचरण करते हुए इसे हम सभी प्राप्त कर सकते हैं। बुद्ध जैसे व्यक्तित्व कभी मरते नहीं। जो व्यक्ति सम्यक् ज्ञान को प्राप्त करता है, वह सही अर्थ में बुद्ध है।


प्रस्तावना डॉ शैल चंद्रा, धमतरी, छत्तीसगढ ने प्रस्तुत करते हुए कहा कि गौतम बुद्ध ने लोगों को मध्यम मार्ग का संदेश दिया। उन्होंने हिंसा और पशु बलि का निषेध करते हुए पंचशील का सिद्धांत दिया, जो आज भी प्रासंगिक है। 


कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने की। स्वागत भाषण डॉ गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा ने दिया। संस्था का परिचय कार्यक्रम की संयोजक डॉ लता जोशी, मुंबई ने दिया।




अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉक्टर मुक्ता कान्हा कौशिक रायपुर ने किया। आभार प्रदर्शन श्रीमती प्रभा बैरागी, उज्जैन ने किया।




संगोष्ठी में डॉ विमल चंद्र जैन इंदौर, डॉक्टर जी डी अग्रवाल, इंदौर, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, मुंबई, डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉ मनीषा सिंह, श्री मोहनलाल वर्मा, डॉक्टर रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉक्टर शहनाज अहमद, डॉ सुनीता चौहान, मुंबई, डॉ रामनिवास साहू, बिलासपुर, डॉक्टर पूर्णिमा जेंडे, डाक्टर प्रतिभा जी येरेकर,  डॉक्टर गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।








20201111

दीपावली : लौकिक जीवन पर अलौकिक आभा का पर्व - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

दीपावली के पाँच दिन : लोक के साथ लोकोत्तर को जोड़ने का पर्व

- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

दीपावली उत्सव के पाँच दिन अज्ञात भूतकाल से न जाने कितनी जातीय स्मृतियों, लोक एवं शास्त्र की परम्पराओं और सांस्कृतिक - सामाजिक मूल्यों को लेकर आते हैं। फिर में सब हमारे आसपास से जुड़ी पयार्वरणीय चेतना के साथ दोहराए जाते हैं। ऋतु, अंचल और कृषि उत्पादों के रंग इस उत्सव को चटकीला बनाते हैं। इसकी उत्सवी आभा में चमके चेहरे अमीर-गरीब, छोटे-बड़े का भेद मिटा देते हैं। आखिर सब उल्लास और उमंग में क्यों  न डूबें, जब मौका महज धन-संपदा ही नहीं, इस जगत् की आधार और साक्षात् पराशक्ति लक्ष्मी के इस लोक में विचरण का हो और जो महल तथा झोंपड़ी के बीच अंतर नही करती। 

लक्ष्मी, जिनके बिना सृष्टि के पालनकर्ता  विष्णु भी श्रीहीन हो जाते हैं, इस दौरान स्वयं अपना बसेरा तलाशने के लिए निकलती हैं। दीपावली पर उनके स्वागत को आतुर श्रद्धालु लोकमानस न सिर्फ  इस उत्सव में रमता है, आगामी वर्ष भर सफल होने की तैयारी भी करता है। या यूँ कहें त्रिविध तापों से ग्रस्त लौकिक जीवन पर अलौकिकता की शीतल छाया का रम्य अनुभव पाता है।






धन तेरस से दिवाली तक : जब तीन दिनों में तीन पगों से नापा गया था ब्रह्माण्ड
- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

दीपावली के उद्भव को लेकर कई पौराणिक एवं लोक मान्यताएँ प्रचलित हैं। एक मान्यता का सम्बन्ध देव और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के पौराणिक आख्यान से हैं, जिनके अनुसार इसी दिन समुद्र से लक्ष्मी का आविर्भाव हुआ था और उन्होंने विष्णु का वरण किया था। दीपावली के दो दिन पूर्व मनाए जाने वाले पर्व धनतेरस का संबंध इसी आधार पर विष्णु के एक अवतार धन्वन्तरि से जोड़ा जाता है, जो समुद्र से अर्जित चौदह रत्नों में एक अमृत-कुंभ लेकर प्रकट हुए थे। दूसरी मान्यता का संबंध राजा बलि और विष्णु के वामन अवतार की पौराणिक कथा से हैं। इसके अनुसार असुरराज बलि ने एक बार देवराज इन्द्र को परास्त कर तीनों लोकों में अपना साम्राज्य  स्थापित कर लिया था। विष्णु ने दानवीर बलि से वामन रूप में तीन पग भूमि माँगी और फिर विराट होकर तीनों लोकों को फिर से प्राप्त कर बलि को पाताल में भेज दिया। विष्णु ने दीपावली के दिन ही लक्ष्मी सहित सभी देवी-देवताओं को बंधन से मुक्त कराया था। इसीलिए लक्ष्मी के स्वागत के दीप घर-घर जलाए जाते हैं। 

एक अन्य  मान्यता है कि इस दिन विष्णु ने राजा बलि से प्रसन्न होकर उसका राज्य लौटाया था। तब बलि ने विष्णु से वरदान माँगा था कि दीपावली के तीन दिनों में जो व्यक्ति दीपदान करेगा वह यम की यातना से मुक्त रहेगा और उसके घर लक्ष्मी सदा निवास करेगी। इसी के आधार पर देश के कई भागों में धनतेरस की रात्रि को यम को दीपदान की प्रथा प्रचलन में है। एक मान्यता यह भी है कि विष्णु ने धनतेरस, नरक चतुदर्शी (या रूपचौदस) और दीपावली इन तीनों दिनों में ही तीन लोकों को अपने तीन पगों से नापा था, उसी महत्त्वपूर्ण प्रसंग की स्मृति को समर्पित होते हैं ये दिन। कुछ क्षेत्रों में गोबर से राजा बलि की मूर्ति बनाकर पूजने के पीछे भी यही आख्यान है । 



रूप चौदस- रूप चतुर्दशी 

मालवा चित्रावण शैली में अखिलेश धूलजी बा की एक कृति 




मांडणे का रचाव

सदियों से मांडना मंगल प्रतीक रहा है। परम्परा के साथ नवाचार ने इस विधा को व्यापक धरातल दिया है। दीपपर्व के साथ साथ यह अब अनेक मांगलिक अवसरों पर बनाया जा रहा है। घर - आँगन से चलकर अब यह बड़ी तादाद में प्रमुख स्थानों और मार्गों की भित्तियों पर भी उकेरा जा रहा है।
 

मांडना अंकन : डॉ. अर्चना गर्गे Archna Garge 








मांडना अंकन : लोक कलाकार श्रीमती द्रौपदी देवी (मेरी पूज्य बुआ जी)





मांडना अंकन : नीतेश पांचाल 




Shailendrakumar Sharma
Mandana Art| मांडना कला 

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Mandana Art | परम्परागत मांडना कला | 
Traditional Art & Craft of India : Mandana, Fad Art, Kawad Art, Kathputali Art, Gavari
पारम्परिक कला और शिल्प रूप : मांडना, फड़, कावड़, कठपुतली, गवरी 

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Mandana Art| मांडना : मंगल प्रतीक| Music Sarita Mcharg | Sarita Borliya 

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Mandana Art | परम्परागत मांडना कला | 
Traditional Art & Craft of India : Mandana, Fad Art, Kawad Art, Kathputali Art, Gavari

पारम्परिक कला और शिल्प रूप : मांडना, फड़, कावड़, कठपुतली, गवरी
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संगीत, नृत्य, नाट्य, साहित्य, चित्रकला, लोक और जनजातीय संस्कृति पर एकाग्र वीडियोज् के लिए एक उपक्रम 


अंदर बाहर के अंधकार से मुक्ति का पर्व: दीपोत्सव के पाँच दिन - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 
पत्रिका, परिशिष्ट परिवार, समस्त संस्करण, 8 नवम्बर 2023, बुधवार 

















दीपावली उत्सव के पाँच दिन  - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 



अर्थ की देवी का क्या है अर्थ 
- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा



आखिर अर्थ की देवी लक्ष्मी का अर्थ क्या है। लक्ष्मी जगत् के पालनकर्ता विष्णु की शक्ति हैं। उनका विष्णु के साथ अपृथक् संबंध माना गया है। लक्ष्मी शक्ति हैं तो विष्णु शक्तिमान्, लक्ष्मी धर्म हैं तो विष्णु उन्हें धारण करने वाले अर्थात् धर्मी। श्रीसूक्त, लक्ष्मीतन्त्र आदि में लक्ष्मी के तिरेपन नाम मिलते हैं, जिनमें श्री, देवी, ऋद्धि, ईश्वरी, माता, हेममालिनी, पद्मस्थिता, हिरण्यमयी आदि सम्मिलित हैं। आज अर्थ या धन की देवी की रूप में लोक में पूजित लक्ष्मी के शाब्दिक अर्थ अनेक और व्यापक हैं। वैदिक साहित्य में श्री और लक्ष्मी दोनों अलग-अलग शब्द हैं, कालांतर में दोनों का समन्वय हुआ। लक्ष्मी शब्द के मूल में ‘लक्ष्’ धातु है, जिसका अर्थ है- दर्शन और अंकन इसके आधार पर लक्ष्मी का अर्थ हुआ- सब प्राणियों को साक्षात् करने वाली, उनके शुभ-अशुभ, अच्छे-बुरे को देखने वाली। वे ईश्वर की सवर्सम्पद् हैं अन्य मतों से लक्ष्मी के मूल में ‘ला’ और ‘क्षिप्’ धातुएँ हैं, जिनसे लक्ष्मी शब्द के कई अर्थ निकलते हैं। इनके आधार पर लक्ष्मी दान करने वाली देवी हैं। लक्ष्मी उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय में प्रकृति को प्रेरित करने वाली है। लक्ष्मी लक्षण के योग्य अर्थात् लक्ष्य पदार्थों की अवस्थामयी हैं। एक अन्य व्याख्या से वे प्रकृति, पुरुष, महत् आदि में स्थित होकर उन्हें प्रेरित करती हैं। वे जगत् निर्माण करती हैं, उसे जानती हैं और सबका मापन भी करती हैं। 

लक्ष्मी के एक प्रमुख नाम श्री के भी कई अर्थ हैं इन अर्थों में लक्ष्मी करुण वाणी को सुनने वाली, सज्जनों के पापों को नष्ट करने वाली तथा गुणों से विश्व को व्याप्त करने वाली हैं। वे हरि अर्थात् विष्णु का शरीर हैं। वे शरणागत के पापों को नष्ट करती हैं और सभी कामनाएँ पूरी करती हैं। ऊपरी तौर पर धन-संपदा की देवी लक्ष्मी वस्तुत: साक्षात् ब्रह्म की ही शक्ति हैं, यह जगत् उनका ही रूप माना गया है।








दीपावली: लोक के साथ लोकोत्तर को जोड़ने का पर्वोत्सव - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 

दक्षिण एशिया उपमहाद्वीप अनादिकाल  से व्रत-पर्व-उत्सवों  की पारम्परिक भूमि रहा है । यहाँ के व्रत-पर्व-उत्सव  न जाने कितनी सभ्यताओं, संस्कृतियों और जातीय स्मृतियों को अपने अंदर समाए हुए हैं, जिनमें अलग-अलग अंचलों  की स्थानीय  गंध के साथ-साथ एकात्मता के अनोखे सूत्र उपस्थित हैं। अपने ढ़ंग के इस निराले उपमहाद्वीप का प्रतिनिधि और अनूठा त्यौहार है –दीपावली , जो एक साथ व्रत, पर्व  और उत्सव को अपने में समाहित किए हुए है। 

यह पर्व परम्परा के साथ वैज्ञानिकता,  प्राचीन के साथ आधुनिक, वेद के साथ पुराण-आख्यान, शास्त्र के साथ लोक, संस्कृति के साथ सभ्यता,  देवता के साथ मनुष्य  और जातीय  स्मृतियों के साथ सामाजिक गतिशीलता के अन्त: संवाद का पर्व है। यह लोक के साथ लोकोत्तर को जोड़ने का व्रत है और अनेक माध्यमों से छलकते उल्लास का उत्सव है। दीप पर्व से भारतीय  संस्कृति के विविध तत्वों का संवाद इतना सहज और जैविक है कि यह पता लगाना मुश्किल  लगता है कि किसकी, कहाँ और कितनी हिस्सेदारी है। सही अथों  में यह समूचेपन का, मनुष्य  के भरे-पूरेपन का उत्सव है।


- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
आचार्य एवं अध्यक्ष
हिन्दी विभाग
कुलानुशासक
पूर्व कला संकायाध्यक्ष
विक्रम विश्वविद्यालय
उज्जैन

20201025

शक्ति उपासना : प्रतीकार्थ और चिंतन - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

सृष्टि का कोई भी कण अछूता नहीं है शक्ति से – प्रो शर्मा 

अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ शक्ति आराधना के प्रतीकार्थ और चिंतन पर गहन मंथन   


प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश - दुनिया के विद्वान वक्ताओं ने भाग लिया। यह संगोष्ठी शक्ति उपासना : प्रतीकार्थ और चिंतन पर केंद्रित थी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् डॉ जी डी अग्रवाल, इंदौर, प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री शरद चन्द्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, डॉ अनिता मांदिलवार, डॉ अशोक सिंह, मुंबई, शिवा लोहारिया, जयपुर एवं महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ भरत शेणकर, अहमदनगर ने की।




लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय चिंतन परंपरा और लोक व्यवहार में शक्ति के विषय में अत्यंत महत्वपूर्ण विचार उपलब्ध हैं। शक्ति से सृष्टि का कोई भी कण अछूता नहीं है। कारण वस्तु में कार्य के उत्पादन में उपयोगी अपृथक् धर्म विशेष होता है, उसे शक्ति के रूप में मान्यता मिली है। शक्ति आराधना के विशिष्ट दार्शनिक आधार हैं। अधिकांश भारतीय दर्शनों में  सृष्टि के मूल तत्त्वों के बीच शक्ति की स्वतंत्र सत्ता स्वीकार की गई है। कार्यों की अनंतता के कारण शक्ति की भी अनंतता मानी गई है। शाक्त दर्शन और लोक मान्यता के अनुसार शक्ति सर्वव्यापक और सर्वोपरि है। मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति बिना शक्ति की कृपा से संभव नहीं है। भारत में सदियों से नगर, ग्राम, दुर्ग, वन, पर्वत, द्वार आदि सभी प्रमुख स्थानों पर देवी उपासना के साक्ष्य मिलते हैं। वस्तुतः शक्ति एक ही है, किंतु उपासकों के दृष्टि भेद से शक्ति के नाम और रूपों में भेद पाया जाता है। 





मुख्य अतिथि श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि भारतीय संस्कृति में नारी का सम्मान उसके विशिष्ट गुण और संस्कारों के कारण होता आ रहा है। मातृ शक्ति के त्याग, तपस्या और साधना से ही यह संपूर्ण सृष्टि संचालित है। शक्ति आराधना का विशिष्ट आध्यात्मिक महत्त्व है।




विशिष्ट अतिथि डॉ प्रभु चौधरी ने कहा कि नवरात्रि शक्ति आराधना का अद्वितीय पर्व है। शक्ति साधना के अनेक आयाम हैं, जिनमें व्रत, उपवास, अनुष्ठान, यज्ञ आदि का विशेष महत्व है। गायत्री आदि वैदिक मंत्रों के जाप से इष्ट फल की सिद्धि होती है।




अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉक्टर भरत शेणकर, अहमदनगर ने कहा कि शक्ति आराधना की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। इसमें परिवेश और  युगानुकूल परिवर्तन होता रहा है।




विशिष्ट अतिथि प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, डॉ अशोक सिंह, मुंबई, डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ अनिता मांदिलवार एवं डॉ सुनीता चौहान, मुंबई ने देवी आख्यान और उपासना से जुड़े विभिन्न प्रसंगों और उनके मर्म की चर्चा की।


विशिष्ट अतिथि डॉ जी डी अग्रवाल, इंदौर ने मधुर स्वर में आई रे आई दुर्गा महारानी शेर पर होकर सवार गीत की प्रस्तुति की।



अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ आशीष नायक, रायपुर डॉक्टर समीर सैयद, अहमदनगर, डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई,  डॉक्टर कामिनी बल्लाल,  रश्मि चौबे, आगरा, पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ लता जोशी, मुंबई, डॉ श्वेता पंड्या आदि सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे। 




प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ रश्मि चौबे ने की। संस्था का परिचय एवं प्रतिवेदन डॉ लता जोशी, मुंबई ने प्रस्तुत किया।  


आयोजन की संकल्पना एवं स्वागत भाषण डॉ प्रभु चौधरी की ने दिया।


राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का संचालन डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने किया। आभार प्रदर्शन संस्था के शिक्षाविद डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने किया। 











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