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मालवी भाषा और साहित्य - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Malvi Bhasha aur Sahitya - Prof. Shailendra Kumar Sharma

मालवी भाषा और साहित्य Malvi Bhasha aur Sahitya 


प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा  


नई किताबों में  मालवी भाषा और साहित्य आई है। मालवी में ही इसका परिचय दे रहा हूँ।

अपना घर- आँगन की बोलीहुन की तरफ ध्यान देवा की जरुरत है. मालवी का वास्ते घना परयास भोत जरूरी है। म. प्र. ग्रन्थ अकादमी, भोपाल से म्हारा सम्पादन में छपी मालवी भाषा और साहित्य  पोथी में सन्त पीपाजी, सन्त सिंगाजी, आनन्दराव दुबे, बालकवि बैरागी, भावसार बा, नरहरि पटेल, मदनमोहन व्यास, मोहन सोनी, शिव चौरसिया  ने  दादा श्रीनिवास  जोशी जी की  रचना हुन सामल करी है. ई में दादा श्रीनिवास  जोशी जी की चार गद्य  रचना हुन  'धक्का को चमत्कार', 'राखोड्या', 'नाना को नतीजो' ने 'सासू जी रीसाएगा' सामल है। इनी पोथी के  भोपाल , इन्दोर ने उज्जैन -तीन यूनिवर्सिटी में पढायो जई रियो है।
अपना ने सब मिली ने मालवी को मान बड़ानो है. मालवी को इतिहास सन 700 का एरे-मेरे से शुरू होए है। या वात म्हने पोथी मालवी भाषा और साहित्य में परमान का साथ राखी है.




मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

MALVI BHASHA AUR SAHITYA:
PROF. SHAILENDRAKUMAR SHARMA

पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या

Book Review : Dr. Shweta Pandya 


मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई दिशा 

लोक भाषा, लोक साहित्य और संस्कृति का मानव सभ्यता के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है। भाषा मानव समुदाय में परस्पर सम्पर्क और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी प्रकार क्षेत्र-विशेष की भाषा एवं बोलियों का अपना महत्त्व होता है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जुड़े विशाल वाङ्मय में मालवा प्रदेश, अपनी मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति के कारण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ की भाषा एवं लोक-संस्कृति ने  अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मालवी भाषा और साहित्य के विशिष्ट विद्वानों में डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। प्रो. शर्मा हिन्दी आलोचना के आधुनिक परिदृश्य के विशिष्ट समीक्षकों में से एक हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के साथ-साथ मालवी भाषा, लोक एवं शिष्ट साहित्य और संस्कृति की परम्परा को आलोचित - विवेचित करने का महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक प्रयास किया है। उनकी साहित्य-समीक्षा में सुस्पष्ट व्यावहारिक विश्लेषण भी दृष्टिगोचर होता है, जो निश्चित रूप से  सार्थक साहित्य दृष्टि के निर्माण में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।

मालवी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा की पुस्तक मालवी भाषा और साहित्य का अप्रतिम स्थान है। इस पुस्तक के मुख्य सम्पादक एवं लेखक डॉ.  शैलेन्द्रकुमार शर्मा हैं। उनके साथ सम्पादन सहयोग डॉ. दिलीपकुमार चौहान एवं डॉ. अजय गौतम ने किया है। इसका प्रकाशन मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल द्वारा किया गया है।

इस पुस्तक की शताधिक पृष्ठीय सुविस्तृत भूमिका में डॉ. शैलेंद्रकुमार शर्मा द्वारा मालवी भाषा और साहित्य के प्रत्येक पहलू पर विस्तृत विवेचन किया गया है।  प्रथम भाग के अन्तर्गत मालवी भाषा की प्रमुख विशेषताओं, भेद – प्रभेद, मालवी साहित्य के इतिहास, प्रमुख धाराओं और साहित्यकारों के अवदान पर प्रकाश डाला गया है। द्वितीय भाग के अन्तर्गत मालवी के प्रख्यात कवियों के वैशिष्ट्य निरूपण के साथ उनकी प्रतिनिधि रचनाओं को प्रस्तुत किया गया है।

कथित आधुनिकता के दौर में हम अपनी बोली - भाषा, साहित्य-संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं एवं प्रत्येक वर्ष लगभग दस भाषाएँ लुप्त हो रही हैं। यह समस्या मालवी भाषा और उसकी उपबोलियों के साथ भी है। इनके प्रयोक्ताओं की कमी होती जा रही है। इस समस्या के निराकरण हेतु इस पुस्तक की रचना की गई है अर्थात् हमारी भाषा एवं साहित्य-संस्कृति से पाठक और शिक्षार्थी लाभान्वित हों, वे उससे परिचित हों, इसी उद्देश्य से लेखक डॉ शर्मा ने इस पुस्तक का सृजन किया है।

पुस्तक का विषय मालवी भाषा और साहित्य अपने आप में पर्याप्त गुरु गम्भीर है। डॉ शर्मा ने विषय-विवेचन की दृष्टि से प्रथम खण्ड को इन शीर्षकों में विभाजित किया है - मालवा और मालवी, मालवी: उद्भव और विकास, मालवी और उसकी उपबोलियाँ, निमाड़ और निमाड़ी, मालवी साहित्य का इतिहास, नाट्य साहित्य, गद्य साहित्य, निमाड़ी साहित्य की विकास यात्रा इत्यादि। विवेचन के ये शीर्षक विवेच्य विषय की व्यापकता का आभास देते हैं।


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