पूरी दुनिया में पराक्रम और वीरता की अनूठी मिसाल हैं महाराणा प्रताप – प्रो. शर्मा
अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ स्वातंत्र्य वीर महाराणा प्रताप और उनका योगदान पर मंथन एवं उद्घोष कवि सम्मेलन
सृजनधर्मियों की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलन उद्घोष का आयोजन किया गया। संगोष्ठी स्वातंत्र्य वीर महाराणा प्रताप और उनका योगदान पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन की विशिष्ट अतिथि प्रवासी साहित्यकार डॉ अंजना संधीर, यूएसए, प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता साहित्यकार श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने किया। अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन उद्घोष में देश दुनिया के अनेक रचनाकारों ने महाराणा प्रताप पर केंद्रित कविताएं सुनाईं।
मुख्य अतिथि श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि राणा प्रताप का नाम सुनकर रोम-रोम पुलकित हो जाता है। वे त्याग और बलिदान की प्रत्यक्ष मूर्ति थे। उनकी कथाओं से नई पीढ़ी में वीरता, राष्ट्रभक्ति और पराक्रम की प्रेरणा मिलती है। उन्होंने अपनी कविता सुनाई, जिसकी पंक्ति थी, आंखों में आंखें डाल कर, त्याग में अग्नि की वे मिसाल हैं।
विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने व्याख्यान देते हुए कहा कि पूरी दुनिया में महाराणा प्रताप पराक्रम और वीरता की अनूठी मिसाल हैं। वे राष्ट्रीय चेतना के उन्नायक थे। स्वतंत्रता प्रेमी और स्वाभिमानी राणा प्रताप ने केवल मेवाड़ के लिए अकबर के विरुद्ध युद्ध नहीं छेड़ा, वरन सम्पूर्ण देशवासियों में स्वाभिमान और देशानुराग का भाव जगाने का कार्य किया। वे स्वदेशाभिमान और स्वतंत्रता के लिए तमाम सुख सुविधाओं को त्यागकर आजीवन संघर्षरत रहे। उन्होंने कभी अपमानजनक सन्धि, समझौते या पलायन का मार्ग नहीं चुना। नारी सम्मान और सामाजिक समरसता के लिए उन्होंने आजीवन कार्य किया। बड़ी संख्या में भील और गाडोलिया लुहार उनके संघर्ष के साथी थे। हल्दीघाटी की व्यूह रचना उनके सैन्य कौशल और साहस का साक्ष्य देती है। उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक मुकाबला करते रहे। अकबर की विशाल सेना उन्हें छू भी नहीं पाई। उनकी प्रतिज्ञा थी जब तक मैं शत्रुओं से अपनी पावन मातृभूमि को मुक्त नहीं करा लेता, तब तक न तो मैं महलों में रहूंगा ना शैया पर सोऊंगा और न सोने, चांदी अथवा किसी धातु के पात्र में भोजन करूंगा। उनका अश्व चेतक, तलवार और भाले को भी शक्ति और शौर्य का पर्याय माना जाता है।
डॉ अंजना संधीर, यूएसए ने हल्दीघाटी पुकारती है और महाराणा प्रताप पर केंद्रित कविताएं सुनाईं। उनकी काव्य पंक्ति थी, पवन वेग से उड़ता था जिसका घोड़ा, इतिहास में छपा हुआ नाम बहुत थोड़ा।
संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए संस्था के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने कहा कि राणा प्रताप ने अपने देश और संस्कृति के लिए प्राण को न्यौछावर किया। उद्घोष के माध्यम से संस्था का उद्देश्य है कि देश को लेकर हम क्या कर सकते हैं, इस बात का संकल्प लें। मां पन्नाधाय के महान उत्सर्ग को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।
साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि महाराणा प्रताप का स्मरण आते ही मन में जोश उमड़ता है। उन्होंने अपनी काव्य पंक्ति सुनाईं, हारा नहीं कभी जो रण में वही तो राणा प्रताप है। उन्होंने कहा कि देश के शिक्षण संस्थानों में पाठ्यक्रमों के माध्यम से राणा प्रताप, शिवाजी जैसे महान सेनानियों पर केंद्रित सामग्री जोड़ी जानी चाहिए, जिनसे देशभक्ति की प्रेरणा मिलती है।
श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना, जयपुर ने कहा कि राणा प्रताप त्याग और पराक्रम की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने महाराणा प्रताप पर केंद्रित कविता सुनाई। जिसकी पंक्ति थी, वीर शिरोमणि अमर सपूत महाराणा प्रताप कहलाता था। प्रियंका सोनी, प्रयागराज ने मुक्तक प्रस्तुत किए। उनकी काव्य पंक्तियां थीं, हर दिल अजीज ही नहीं, अरमान बन गए। आप महाराणा राष्ट्र की पहचान बन गए।
डॉ शैल चंद्रा, धमतरी ने राणा प्रताप पर केंद्रित कविता सुनाई, जिसकी पंक्तियां थीं, हे महान राणा प्रताप तुम्हारा प्रताप प्रबल है तुम्हें शत-शत नमन है। हे भारत के वीरो तुम्हें शत-शत नमन, तुमने ही बचाया है देश का अमन।
डॉ रश्मि चौबे गाजियाबाद में शहीदों पर केंद्रित कविताएँ सुनाईं। उनकी पंक्ति थी, आज फिर याद शहीदों की आई है, जिनके दम पर वसुंधरा मुस्काई है। उनके मन में हिंदुस्तान है वही हमारे गौरव का गान है।
भुवनेश्वरी जायसवाल, भिलाई ने अपनी कविता महाराणा प्रताप सुनाई। उसकी पंक्तियां थीं, तज दें खुशियाँ कर्तव्य मार्ग में वीर ऐसे चाहिए, सुख स्वप्नों में डूबे तरुणों में रणवीर ऐसे चाहिए। प्राणों की आहुति दे दे, मस्तक दुष्ट का विदीर्ण करे, शत्रु का साहस भी हर ले अब तीर ऐसे चाहिए। चेतक सवार महाराणा से महावीर ऐसे चाहिए, देशप्रेम हेतु हर प्रेम निछावर युवा गंभीर ऐसे चाहिए।
डॉक्टर ममता झा, मुंबई ने पुनरावर्तन शीर्षक अपनी कविता सुनाई। उसकी पंक्तियां थीं, यह बाहर से भीतर जाने का योग है, प्रकृति का दिया ये कैसा संजोग है। परावलंबी से स्वावलंबी बनने का दौर है, वस्तु नहीं ,इंसान के मोल को समझने का दौर है। सब कुछ धारा रह जाएगा, आत्मसात करने का दौर है।
डॉ अपर्णा जोशी, इंदौर ने महाराणा प्रताप पर केंद्रित कविता सुनाई, जिसकी पंक्ति थी धन्य धरा वह वीर प्रसूता अद्भुत शोणित माटी है।
डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर की काव्य पंक्तियां थीं, नन्ना सा फूल हूं मेरे जीवन की यही परिभाषा। वीरों की गाथा बन जाऊं उनकी वेदी पर गिर जाऊँ।
श्रीमती अनीता मंदिलवार, छत्तीसगढ़ ने आल्हा छंद में राणा प्रताप पर केंद्रित कविता सुनाई।
नीतू पांचाल, नई दिल्ली की कविता थी क्या वह हमें भी याद हैं।
डॉक्टर मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर की राष्ट्रभक्ति पर केंद्रित कविता की पंक्ति थी, संघर्ष के मार्ग पर जो वीर चलता है, वही इस संसार पर राज करता है।
आयोजन में अल्पा मेहता, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, नीतू पांचाल, नई दिल्ली आदि ने भी राणा प्रताप के पराक्रम और वीर रस प्रधान कविताएं सुनाईं।
संगोष्ठी के प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने की। स्वागत भाषण एवं स्वागत गीत डॉ रूली सिंह, मुंबई ने प्रस्तुत किया।
आयोजन में डॉ शैल चंद्रा, धमतरी, श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना, जयपुर, रूली सिंह, मुंबई, अनीता मंदिलवार, पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, राजकुमार यादव, मुंबई, प्रियंका सोनी, प्रयागराज, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, प्रतिभा मगर, पुणे, डॉ चेतना उपाध्याय, अजमेर, भुवनेश्वरी जायसवाल, भिलाई, योगेश द्विवेदी, रीवा, मंजू साहू, श्रीमती गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ सुनीता गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, अर्पणा जोशी, इंदौर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।
संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलन का संचालन डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई ने किया।