पेज

नई शिक्षा नीति 2020 लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
नई शिक्षा नीति 2020 लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

20201015

नई शिक्षा नीति : साहित्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

संस्कृति संरक्षण और संवर्धन को लेकर आत्म सजग करेगी नई शिक्षा नीति – प्रो. शर्मा 

नई शिक्षा नीति 2020 : साहित्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी

प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा नई शिक्षा नीति  2020 : साहित्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि शिक्षाविद् श्री ब्रजकिशोर शर्मा थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि  वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार और अनुवादक श्री शरद चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, संयुक्त संचालक, शिक्षा श्री मनीष वर्मा, इंदौर एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। अध्यक्षता डॉ जी डी अग्रवाल ने की।




मुख्य वक्ता लेखक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि श्रेष्ठ साहित्य और कलाओं के साथ विद्यार्थियों को जोड़ने की जिम्मेदारी  शैक्षिक संस्थानों की है। नई शिक्षा नीति साहित्य और संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और प्रसार के लिए के लिए आत्म सजग करेगी। देश के शिक्षालयों का दायित्व है कि  अपने इतिहास, संस्कृति और साहित्य के प्रति गौरव का भाव जागृत करें। वास्तविक शिक्षा मनुष्य को संकीर्ण दायरे से मुक्त करती है। भारतीय शिक्षा परम्परा मूल्यकेंद्रित जीवन दृष्टि को आधार में लिए हुए हैं। देश की बहुत बड़ी आबादी शिक्षा से संबंध रखती है। नई शिक्षा नीति में सूचना और ज्ञान से आगे जाकर प्रज्ञा और सत्य की खोज पर बल दिया गया है। वैचारिक चिंतन के साथ रचनात्मक कल्पना शक्ति का विकास नई शिक्षा नीति के आधार में है। इस दिशा में कला, साहित्य और संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका है। हमें सभी स्तरों की पाठ्य सामग्री में विज्ञान और गणित के समान भाषाओं, साहित्य, जीवन मूल्य और संस्कृति को महत्त्व देना होगा।








प्रवासी साहित्यकार और अनुवादक श्री शरद चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो ने कहा कि संपूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति को विशेष सम्मान से देखा जाता है। हमें अपनी संस्कृति और साहित्यिक परंपरा के प्रति गौरव का भाव होना चाहिए। शैक्षिक संस्थाओं में कला और साहित्य के प्रति गहन अभिरुचि उत्पन्न करने के प्रयास होने चाहिए। 



मुख्य अतिथि श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन ने कहा कि शिक्षा सर्वांगीण विकास करती है। साहित्य सुख-दुख के अनुभव के स्पंदन को प्रकट करने का काम करता है। मनुष्य को बेहतर मनुष्य बनाने का कार्य शिक्षा करती है। इस दिशा में भाषा, साहित्य और संस्कृति की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।



साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि शिक्षा का मूल उद्देश्य है विद्यार्थी अपने देश, समाज और संस्कृति को लेकर आत्म गौरव करें। संस्कार और संस्कृति के बिना शिक्षा मात्र व्यवसाय बन कर रह जाती है। हमारे विद्यार्थियों को विदेशी शिक्षा संस्थानों के व्यामोह से मुक्त होना होगा।


अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ जी डी अग्रवाल, इंदौर ने कहा कि शिक्षा प्रणाली में साहित्य और जीवन मूल्य की विशेष भूमिका होनी चाहिए। शिक्षकों को विद्यार्थियों के मध्य भारतीय अस्मिता, अस्तित्व और गौरव को स्थापित करना होगा। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना जैसी संस्थाएं शिक्षकों में अंतर्निहित प्रतिभा को प्रकट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। 



संयुक्त संचालक शिक्षा श्री मनीष वर्मा, इंदौर ने कहा कि नई शिक्षा नीति में भाषाओं के अध्ययन पर विशेष बल दिया गया है। आने वाले समय में पूर्व प्राथमिक स्तर पर सरकारी और गैर सरकारी स्कूल - दोनों अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। 


प्रारंभ में आयोजन की रूपरेखा एवं अतिथि परिचय राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने दिया।


युवा कवि श्रीराम शर्मा परिंदा, मनावर ने अपने चुनिंदा मुक्तकों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।

 

सरस्वती वंदना सुनयना सोहनी ने की। स्वागत भाषण डॉ लता जोशी, मुंबई ने दिया।


कार्यक्रम में डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉ लता जोशी, श्री अनिल ओझा, इंदौर, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ वीरेंद्र मिश्रा, इंदौर, अशोक भागवत, डॉ शैल चंद्रा, राम शर्मा, डॉ रश्मि चौबे,  डॉक्टर मुक्ता कौशिक, डॉ श्वेता पंड्या  आदि सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।


संचालन श्रीमती रागिनी शर्मा ने किया। अंत में आभार श्री अनिल ओझा, इंदौर ने प्रकट किया।




20200908

विद्यार्थियों में अंतर्दृष्टि विकसित करते हैं शिक्षक : प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका 

राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षक सम्मान से अलंकृत किए गए पाँच शिक्षक

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका विषय पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि शिक्षाविद डॉ. कौशल किशोर पांडे, इंदौर थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉ शंभू पंवार, झुंझुनू एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु  चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने की। 







इस अवसर पर श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में अविस्मरणीय योगदान के लिए प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन, डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख, पुणे, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, श्री अविनाश शर्मा, जयपुर एवं श्रीमती शैल चंद्रा, रायपुर को डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षक सम्मान से अलंकृत किया गया। 






मुख्य अतिथि डॉ कौशल किशोर पांडे ने कहा कि भारतीय चिंतन में विद्या को विशेष महत्त्व मिला है। विद्या और अविद्या में से हमें विद्या को महत्व देना होगा, जो हमें अमरता प्रदान करती है। नई तकनीकी और विज्ञान के बढ़ते प्रभुत्व के बीच शिक्षक और माता-पिता हमें उच्च चिंतन से जोड़ते हैं। 




कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि शिक्षक संस्कारों की पाठशाला में मानव चरित्र का निर्माण करते हैं। वे मात्र पाठ्यक्रम ही नहीं पढ़ाते हैं, मानव व्यक्तित्व को नया आकार देते हैं। 



संगोष्ठी के मुख्य वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन ने कहा कि भारतीय चिंतन में ज्ञान से प्रज्ञा और सत्य की खोज को सर्वोपरि महत्त्व मिला है। श्रेष्ठ शिक्षक वह है, जो विद्यार्थियों में अंतर्दृष्टि विकसित करता है। इसीलिए भारतीय संस्कृति और काव्य परम्परा में शिक्षक की अपार महिमा का वर्णन हुआ है। शिक्षक अनगढ़ शिष्य के व्यक्तित्व का रूपांतरण कर श्रेष्ठ नागरिक और राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 


विशिष्ट अतिथि डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि शिक्षक समाज एवं राष्ट्र के निर्माता हैं। वे प्रामाणिकता और तल्लीनता के साथ राष्ट्र की सेवा करते हैं। शिक्षक का आचरण विद्यार्थियों को संस्कार देता है। पश्चिम की सभ्यता मानव को मनुष्य बनाने के बजाय रोजगार की ओर उन्मुख कर रही है। भारत को विश्वगुरु बनाने में शिक्षकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। 


वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि आदर्श शिक्षक वह है जो विद्यार्थियों को सीमित दायरे से मुक्त करता है। 


संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। आयोजन में डॉ शैल चंद्रा, रायपुर, डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई आदि ने भी विचार व्यक्त किए।  


संगोष्ठी में डॉ लता जोशी, मुंबई, मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, डॉ रोहिणी डाबर, अहमदनगर, डॉ भरत शेणकर, डॉक्टर प्रवीण बाला, पटियाला, सुश्री आभा श्रीवास्तव, डॉ विनीता ओझा, डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ वी के मिश्रा आदि सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।






प्रारंभ में सरस्वती वंदना जय भारती चंद्राकर, रायपुर ने की। कार्यक्रम का संचालन रागिनी शर्मा, पटियाला, पंजाब ने किया। आभार प्रदर्शन श्री अनिल ओझा ने किया।









20200905

सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में शिक्षकों की भूमिका - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित शिक्षा में शिक्षकों का दायित्व बहुत  गहरा 

सूचना क्रांति के दौर में शिक्षक की भूमिका पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा सूचना क्रांति के दौर में शिक्षक की भूमिका विषय पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर, डॉ. रचना पांडेय, रायपुर, डॉ कविता रायजादा, आगरा एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु  चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय विश्वविद्यालय, भटिंडा, पंजाब के डॉ राजिंदर कुमार सेन ने की।




संगोष्ठी के मुख्य अतिथि लेखक एवं आलोचक प्रोफ़ेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी व्यापक रूप से सूचना और ज्ञान के विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। शिक्षकों और विद्यार्थियों को इस दौर में सूचना के संचालन में उपयोगी सभी पद्धतियों, विधियों और उपकरणों से जुड़ना होगा। प्रौद्योगिकी पर आधारित शिक्षा में शिक्षकों का दायित्व बहुत  अधिक बढ़ गया है। एक ओर उन्हें विद्यार्थियों को योजनाबद्ध ढंग से इलेक्ट्रॉनिक पाठ्य सामग्री को उपलब्ध कराना है। इसके साथ ही शिक्षक और विद्यार्थी के मध्य बेहतर मानवीय संबंधों का निर्माण भी करना है, जो विद्यार्थियों को आंतरिक रूप से मजबूत कर सके। ज्ञान एवं विवेक आधारित समाज के निर्माण के लिए शिक्षक अपने विद्यार्थियों को सूचना - संचार क्रांति का अर्थपूर्ण और समुचित प्रयोग करना सिखाएँ। सूचना क्रांति के दौर में शिक्षकों की मार्गदर्शक और उत्प्रेरक के रूप में भूमिका बढ़ती जा रही है। विद्यार्थीगण इंटरनेट पर उपलब्ध अपार सामग्री का विवेकपूर्ण इस्तेमाल करें, इसके लिए शिक्षकों को उन्हें सचेत करना होगा। नए दौर में शिक्षक अपने विद्यार्थियों को तथ्यों, विचारों और धारणाओं के तर्कसंगत एवं प्रायोगिक परिणामों से जोड़ने के लिए निरन्तर प्रयास करें। ज्ञान के स्रोत निरंतर बदल रहे हैं, ऐसे में शिक्षकों को शिक्षण प्रक्रिया में सार्थक परिवर्तन लाना होगा। 






डॉ. राजिंदर कुमार सेन, भटिंडा, पंजाब ने कहा कि भारतीय परंपरा में गुरु और शिक्षक को पर्याय माना गया है। शिक्षक हमारे शरीर, मस्तिष्क और आत्मा तीनों को प्रभावित करता है। वह विद्यार्थियों के चारित्रिक, भावात्मक और बौद्धिक उन्नयन के लिए योगदान देता है। शिक्षक नई शिक्षा नीति 2020 के प्रावधानों का अनुसरण करते हुए स्वयं को नई टेक्नोलॉजी से जोड़ें। साथ ही छात्रों में मूल्यों के प्रसार के लिए प्रयास करें। 





विशिष्ट अतिथि डॉ शहाबुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि केवल जीविका के निर्वाह के लिए शिक्षक कर्म को अंगीकार करना उचित नहीं है। यह बहुत बड़े दायित्व का कार्य है।


















मुख्य वक्ता श्री मोहन लाल वर्मा, जयपुर ने कहा कि विद्या और ज्ञान में पर्याप्त अंतर है। शिक्षक का कार्य केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं, वरन विद्यार्थियों के मध्य विद्या का प्रसार भी है, जो उन्हें सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त करती है।  



















विशिष्ट अतिथि डॉ. कविता रायजादा, आगरा ने पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा में शिक्षकों की जिम्मेदारी बढ़ गई है। विद्यार्थियों के साथ उनके माता - पिता भी इस प्रकार के शिक्षण से जुड़ रहे हैं।


संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। संगोष्ठी में श्री दर्शन सिंह रावत, उदयपुर, डॉ लता जोशी, मुंबई, मुक्ता कौशिक, रायपुर, ब्रजबाला शर्मा, प्रभा बैरागी, उज्जैन, मंजू भारती, निर्मल कौर, धीरज कुमार, पंजाब सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।












कार्यक्रम का संचालन पंजाब प्रांतीय इकाई की महासचिव डॉक्टर प्रवीण बाला, पटियाला, पंजाब ने किया। प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ डिंपल शर्मा ने की। आभार प्रदर्शन डॉ रश्मि रानी ने किया।


20200901

नई शिक्षा नीति 2020 : सरोकार और संभावनाएँ - प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

इक्कीसवीं सदी की जरूरतों के अनुरूप है नई शिक्षा नीति 2020

नई शिक्षा नीति 2020 : सरोकार और संभावनाएँ विषय पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी 

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी नई शिक्षा नीति 2020 : सरोकार और संभावनाएं विषय पर अभिकेंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि ओस्लो, नॉर्वे के वरिष्ठ साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् श्री भरत व्यास, डॉ रीता सिंह, हिमाचल प्रदेश एवं श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई थीं। अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने की। संगोष्ठी की रूपरेखा संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।





इस अवसर पर संबोधित करते हुए श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि भारत की नई शिक्षा नीति 2020 की अवधारणा अत्यंत सार्थक है। इसके क्रियान्वयन में माता-पिता और स्थानीय लोगों को जोड़ा जाना चाहिए। तीन वर्ष के बच्चों को पूर्व बेसिक शिक्षा में सम्मिलित करने की सरकारी तैयारी एक सी और सभी के लिए जरूरी और संभव हो। कोई भी बच्चा स्कूल जाने से वंचित न हो, इसकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। जरूरी है कि इसमें सभी समुदायों, स्वयंसेवी एवं शैक्षिक संस्थानों को जोड़ा जाए। तभी सरकार अपना लक्ष्य जल्द प्राप्त कर लेगी। इसके साथ ही आधारभूत ढांचा बेहतर किया जाना चाहिए। 




प्रमुख वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि शिक्षा एक अविराम प्रक्रिया है, उसे समय, जरूरत और क्षेत्र के अनुरूप अद्यतन होते रहना चाहिए। नई शिक्षा नीति व्यापक परिवर्तन के साथ हमकदमी कर रही है। यह नीति  इक्कीसवीं सदी की  आवश्यकताओं के अनुरूप है। विद्यार्थी तेजी से परिवर्तनशील स्थितियों के मध्य सीखें ही नहीं, सतत सीखते रहने की कला को भी जानें, नई शिक्षा नीति में इस बात पर विशेष बल दिया गया है। इसके माध्यम से विद्यार्थियों में चरित्र निर्माण, तार्किकता और व्यावसायिक कौशल के साथ अंतरानुशासनिक क्षमता का विकास होगा। यह जरूरी है कि शिक्षण प्रणाली शिक्षार्थी केंद्रित हो। साथ ही उसमें लचीलापन हो तथा समग्रता और समन्वित रूप से देखने - समझने में सक्षम बनाने वाली हो। नई शिक्षा नीति में इन बातों का ध्यान रखा गया है। नई शिक्षा नीति स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक आवश्यकताओं को दृष्टि में रखकर बनाई गई है। इसका सफल क्रियान्वयन शिक्षा से जुड़े हुए सभी पक्षों का दायित्व है।






विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् श्री भरत व्यास ने कहा कि विद्या वह है, जो बंधनों से मुक्त कर सके। वर्तमान में स्मृति आधारित शिक्षा पद्धति अस्तित्व में है। नई शिक्षा नीति इसमें परिवर्तन लाने के लिए महत्त्वपूर्ण उपाय कर रही है, जहां क्रिया आधारित शिक्षण पर बल दिया गया है। हमारी ज्ञान परंपरा अत्यंत समृद्ध रही है। मौलिक चिंतन के लिए जरूरी है कि मातृभाषा के माध्यम से ज्ञान प्राप्त हो। इसके साथ ही शिक्षा में भारतीयता का तत्त्व हो और व्यावसायिक कौशल का भी विकास हो। इन सभी दृष्टियों से नई शिक्षा नीति में विशेष प्रावधान किए गए हैं।






अध्यक्षीय उद्बोधन में शिक्षाविद् श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति में कक्षाओं और पाठ्यक्रम की सरंचना में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए हैं। इसमें कौशल विकास को पर्याप्त महत्त्व मिला है। शैक्षिक संस्थाओं की फीस सरकार द्वारा नियंत्रित होगी। शिक्षा एक बड़ी संघटना है। हमारे जीडीपी का छह प्रतिशत व्यय शिक्षा के लिए किया जाएगा, जिससे शैक्षिक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण सुधार होंगे। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नामकरण शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है, जो स्वागत योग्य है।






विशिष्ट अतिथि डॉ रीता सिंह, हिमाचल प्रदेश ने कहा कि नई शिक्षा नीति में कौशल विकास पर बल दिया गया है। यह नीति व्यावहारिक दृष्टिकोण के साथ आई है। इसमें मातृभाषा के महत्त्व को स्वीकार किया गया है।




प्रारंभ में संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए डॉ. प्रभु चौधरी ने कहा कि ब्रिटिश शासकों ने गुरुकुल पद्धति की शिक्षा पर प्रहार किया था, जिससे हमारा मौलिक चिंतन नष्ट होने लगा था। नई शिक्षा नीति भारतीय चिंतन को केंद्र में रखकर तैयार की गई है।






संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि  श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुम्बई एवं डॉ लता जोशी, मुम्बई ने भी संबोधित किया। आयोजन में डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर, डॉ कौशल किशोर पांडेय, इंदौर, डॉ मुक्ता कौशिक, डॉ रश्मि चौबे, श्रीमती शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ शैल चंद्रा, रायपुर, डॉ भरत शेनेकर, पुणे, डॉ. रोहिणी डकारे, अहमदनगर, ममता झा, मुम्बई, श्री दिनेश परमार, पुष्पा गरोठिया, डॉ अशोक सिंह, डॉ श्वेता पंड्या, कमल भूरिया, विजय शर्मा आदि सहित देश के विभिन्न भागों के प्रतिभागी उपस्थित थे।















संगोष्ठी का संचालन रागिनी शर्मा, इंदौर ने किया। आभार साहित्यकार डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर ने माना।


Featured Post | विशिष्ट पोस्ट

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : वैचारिक प्रवाह से जोड़ती सार्थक पुस्तक | Mahatma Gandhi : Vichar aur Navachar - Prof. Shailendra Kumar Sharma

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : पुस्तक समीक्षा   - अरविंद श्रीधर भारत के दो चरित्र ऐसे हैं जिनके बारे में  सबसे...

हिंदी विश्व की लोकप्रिय पोस्ट