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20210621

भारतीय साहित्य और संस्कृति में नदियों की महिमा और संरक्षण के उपाय - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Glory and Conservation Measures of Rivers in Indian Literature and Culture - Prof. Shailendra Kumar Sharma

भारतीय जनमानस गंगा का रूप देखता है नदियों और जल स्रोतों में – प्रो. शर्मा 

भारतीय साहित्य और संस्कृति में नदियों की महिमा और संरक्षण के उपाय पर अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ मंथन  


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी भारतीय साहित्य और संस्कृति में नदियों की महिमा और संरक्षण के उपाय पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन के विशिष्ट अतिथि हिंदी परिवार के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, प्रो विमल चन्द्र जैन, इंदौर, प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ गरिमा गर्ग, पंचकूला एवं महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन श्रीमती लता जोशी, मुंबई ने किया। 




मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि नदी जल संरक्षण का प्रथम उदाहरण गंगा नदी के अवतरण प्रसंग में शिव जी द्वारा अपनी जटा में गंगा को धारण करने के रूप में मिलता है। अनादि काल से भारतीय संस्कृति के विकास में गंगा की भूमिका रही है। भारतीय संस्कृति और जनमानस सभी नदियों और जल स्रोतों में गंगा का रूप देखता है। जितना भी निर्मल जल है, वह पवित्र करने वाला है और वह सब गंगा के समान है। नदियों को सदानीरा तभी रखा जा सकता है, जब हम उनका मूल परिवेश लौटाएंगे। नदियों के तट को वनों से आच्छादित किया जाए। पारिस्थितिक तंत्र को लौटाने से ही नदियों का समुचित संरक्षण और संवर्धन हो सकता है। नई बस्तियों की बसाहट नदी तट से दूर की जानी चाहिए। नदियों के गहरीकरण और चौड़ीकरण के साथ तटों की मिट्टी के कटाव को रोकने की मुहिम चलानी होगी। नदियों में अलग अलग रोगों को नष्ट करने की क्षमता है, जिनके लिए व्यापक चेतना जाग्रत करने की जरूरत है।




विशिष्ट अतिथि साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि नदी घाटी सभ्यता से मनुष्य का गहरा नाता है। नदियां हमारी संस्कृति और आस्था की प्रतीक हैं। रामचरितमानस में श्रीराम द्वारा गंगा में स्नान का वर्णन किया गया है। सीता को गंगा मैया आशीष देती हैं। नदियों के जल को प्रदूषित कर हम बहुत बड़ा अपराध कर रहे हैं। नदियों को पुनर्जीवन देने के लिए व्यापक प्रयास जरूरी हैं।




अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि नदियों को मनुष्यों के द्वारा दूषित किया जा रहा है। गंगा एवं अन्य नदियों की पवित्रता को सुरक्षित रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। गायत्री को वेदों की जननी माना गया है। उनकी आराधना से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।




प्रवासी साहित्यकार सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि हम नदियों को माता मानने के बावजूद उन्हें प्रदूषित करते हैं। इसके लिए लोगों की मानसिकता में बदलाव आवश्यक है। नार्वे में दो बड़ी नदियाँ हैं, जिन्हें स्वच्छता का प्रतीक माना जाता है। भारत में नदियों को बचाना है तो बोतल बंद पानी की बिक्री बंद करना होगा, जिससे लोग जल के शुद्धीकरण की महिमा जान सकेंगे।


प्रो विमल चंद्र जैन, इंदौर ने कहा कि गंगा, यमुना जैसी नदियों के दर्शन मात्र से हमें स्वर्गीय आनंद प्राप्त होता है। साहित्य में गंगा का व्यापक वर्णन किया गया है। नर्मदा, शिप्रा जैसी महान नदियों के साथ हमारा सम्मान का भाव जुड़ा हुआ है।


श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि नदियां हजारों लोगों के जीवन में भूख और प्यास मिटाने का कार्य करती हैं। भारत को नदियों की देन अनुपम है। इस देश की प्राचीन संस्कृतियाँ नदी तट पर विकसित हुई हैं। कारखानों और आवासीय इलाकों का प्रदूषित जल नदियों में जाने से रोकना होगा।



डॉ प्रभु चौधरी ने कहा कि गंगाजल सभी को पावन करने वाला है। उसकी महिमा अपार है। लोक संस्कृति में गंगा उद्यापन की परंपरा रही है। गंगा शुद्धीकरण के लिए व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं। दशकों पहले श्रीराम शर्मा आचार्य ने गायत्री परिवार और शांतिकुंज की स्थापना की थी, जिसका व्यापक प्रभाव हुआ। मेरे पिताश्री माधवलाल  चौधरी अनुशासित और समय पालन में कटिबद्ध थे।



डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा ने कहा कि नीर, नदी और नारी तीनों को समाज के लिए पोषक माना गया है। नदी के समीप बड़ी तादाद में वृक्षारोपण किया जाना चाहिए, जिससे मिट्टी का कटाव नहीं होगा। कार्यक्रम में डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई ने भी अपने विचार व्यक्त किए।


सरस्वती वंदना कवि श्री राम शर्मा परिंदा, मनावर ने की। स्वागत भाषण डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने प्रस्तुत किया। आयोजन की प्रस्तावना डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने प्रस्तुत की।


आयोजन में डॉ देवनारायण गुर्जर, जयपुर, डॉ उर्वशी उपाध्याय, प्रयागराज, रिया तिवारी, डॉ सुनीता चौहान मुंबई, डॉ विमल चंद्र जैन, इंदौर, पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, बजरंग गर्ग, बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई, डॉ ममता झा, मुंबई, शीतल वाही, श्री राम शर्मा परिंदा, मनावर, डॉ शैल चंद्रा, धमतरी, भुवनेश्वरी जायसवाल, भिलाई आदि सहित अनेक साहित्यकार, शिक्षाविद, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।




संगोष्ठी का संचालन श्रीमती लता जोशी मुंबई ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ प्रभु चौधरी, उज्जैन ने किया।

















20210606

भारतीय व्रत, पर्व और उत्सव : पर्यावरणीय और मूल्य चेतना के परिप्रेक्ष्य में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Indian Fasts and Festivals: Perspective of Environmental and Value Consciousness - Prof. Shailendrakumar Sharma

पर्यावरण अनुकूल व्यवहार सच्ची ईश्वर आराधना है – प्रो. शर्मा 

अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ भारतीय व्रत, पर्व और उत्सव : पर्यावरणीय और मूल्य चेतना के परिप्रेक्ष्य में पर मंथन 

सृजनधर्मियों की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी भारतीय व्रत, पर्व और उत्सव : पर्यावरणीय और मूल्य चेतना पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। मुख्य वक्ता वरिष्ठ पर्यावरणविद् डॉ ओमप्रकाश जोशी, इंदौर थे। अध्यक्षता प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ऑस्लो, नॉर्वे ने की। आयोजन की विशिष्ट अतिथि डॉ अनुसूया अग्रवाल, महासमुंद, छत्तीसगढ़, योगाचार्य निशा जोशी, इंदौर, डॉ संजीव कुमारी गुर्जर, हिसार, डॉ ख्याति पुरोहित, अहमदाबाद, डॉ अरुणा राजेंद्र शुक्ला, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ सुनीता चौहान, मुंबई ने किया।








मुख्य अतिथि  विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि भारत के लोक और जनजातीय समुदायों में प्रकृति के प्रति गहरा अनुराग और आस्था दिखाई देती है। वृक्षों के नाम के आधार पर गांव और गोत्रों का नामकरण किया जाता है। व्रत,   पर्वोत्सवों का रिश्ता गहरी पर्यावरणीय और मूल्य चेतना से है। उपासना के अनेक स्थलों पर पेड़ों को बहुतायत से देखा जा सकता है। मातृका के रूप में नदियाँ जनजातीय एवं लोक समुदाय में विशेष स्थान रखती हैं। हमारा पर्यावरण अनुकूल व्यवहार सच्ची ईश्वर आराधना है। व्रत का संबंध विशिष्ट आध्यात्मिक एवं मानसिक अवस्था से है, जिसके माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का कार्य सहज ही हो जाता है। ऋग्वेद में ईश्वर की परिकल्पना में मनुष्य और प्रकृति के समस्त उपादानों का समावेश किया गया है। सृष्टि की रचना के साथ ही पर्यावरण और प्राणियों का परस्पर पूरक संबंध माना गया है। भारत में परमेश्वर की उपासना स्वाभाविक कर्मों के माध्यम से करने पर बल दिया गया है। भारत की पर्यावरणीय दृष्टि दुनिया के तमाम देशों के लिए प्रेरणा का विषय है।

पूर्व प्राचार्य डॉ ओम प्रकाश जोशी, इंदौर ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है। यहां कृषि कार्य, ऋतु परिवर्तन, जन्मोत्सव, सूर्य, चंद्र आदि से जुड़े अनेक पर्व मनाए जाते हैं। भारत में पर्यावरण के दोनों भागों - जीवित और अजीवित की पूजा की जाती है। वर्तमान दौर में हमारी जीवन शैली में बाजारवाद हावी होता जा रहा है। हम उपयोग से उपभोग की ओर जा रहे हैं। ऐसे में त्योहारों और पर्यावरण के बीच सामंजस्य रखना जरूरी है। उन्होंने अनेक पर्वों का उल्लेख करते हुए कहा कि इन सबका प्रकृति के साथ गहरा नाता है। 

अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री सुरेश चंद्र शुक्ला शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए नदी  एवं अन्य जल स्रोतों के समीप रहने वाले लोगों को व्यापक प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। शिक्षा के क्षेत्र में पर्यावरण के अध्ययन को महत्त्व मिलना चाहिए। वर्तमान में कई देशों में पर्यावरण राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है। उन्होंने पर्यावरण से जुड़ी अपनी कविता प्रस्तुत की। जिसकी पंक्तियां थीं, जब  बसे  होंगे  ये  नगर, हरे- भरे  जंगल  होंगे। आरों ने काट गिराये होंगे, भारी भरकम वृक्ष, चीटियों से मसले गये होंगे नन्हे - नन्हे पौधे।

डॉ अनुसूया अग्रवाल, महासमुंद ने कहा कि पर्व और उत्सव हमारी सांस्कृतिक चेतना को आधार देते हैं। भारत की संस्कृति के निर्माण में पर्यावरण का महत्वपूर्ण योगदान है। सूर्य, चंद्र, वनस्पति, जल  सब मिलकर समन्वित जीवन को आधार देते हैं। अनेक समुदायों में वृक्षों को घर के वरिष्ठ जन के रूप में माना जाता है। प्रकृति के साथ हमारा आत्मीय रिश्ता बना रहे, यह जरूरी है।

डॉ ख्याति पुरोहित, अहमदाबाद ने कहा कि विश्व स्तर पर हमें पर्यावरण को लेकर पुनर्विचार करना होगा। भारत की संस्कृति अरण्य संस्कृति रही है। प्राचीन काल से ऋषि मुनि इन बातों को जानते थे कि प्रकृति का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। भारत में सभी उपयोगी पौधों को विभिन्न देवी-देवताओं से जोड़ दिया गया है। 

योगाचार्य डॉक्टर निशा जोशी ने कहा कि पर्यावरण हमारे चारों ओर का आवरण है। मनुष्य के द्वारा निरंतर पर्यावरण का विध्वंस किया जा रहा है। पर्यावरण संरक्षण के लिए ठोस प्रयास आवश्यक हैं। व्रत हमें आंतरिक शुचिता प्रदान करते हैं।

डॉ संजीव कुमारी गुर्जर, हिसार ने कहा कि पर्यावरण समस्त जीवित और निर्जीव वस्तुओं से बना है, लेकिन जीवित प्राणियों में मनुष्य पर्यावरण का निरंतर विध्वंस कर रहा है। उन्होंने सात आर के सूत्र को अंगीकार करने पर बल दिया। इनमें रीसायकल, रिड्यूस, रीयूज, रिड्यूस, रीथिंकिंग, रिपेयर, रीसायकल और रॉट महत्वपूर्ण हैं।

संस्था परिचय देते हुए साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि मानव के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए संस्था द्वारा महत्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है। मन और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए साहित्य की आवश्यकता है। धरती, आकाश, सागर, जल और वायु ये सभी प्रकृति के अनुपम उपहार हैं।

विशिष्ट अतिथि डॉक्टर मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने कहा कि भारत के व्रत पर्व और उत्सवों में वैज्ञानिकता अंतर्निहित है। लोक संस्कृति के साथ  इनका गहरा रिश्ता है। हमें मूल्य चेतना को पुनर्जीवित करना होगा। यह सब की जिम्मेदारी है।

डॉ अरुणा राजेंद्र शुक्ला ने कहा कि हमें प्रकृति की चेतावनी को समझना होगा। कोविड-19 के बाद हमने बहुत कुछ सीखा है। संपूर्ण विश्व में संरचनात्मक परिवर्तन लाना होगा। आपदा और महामारी से रक्षा के लिए प्रकृति को सम्मान देना जरूरी है। 



संगोष्ठी की प्रस्तावना डॉ पूर्णिमा कौशिक रायपुर ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना रूली सिंह, मुंबई ने की। अतिथि परिचय श्रीमती लता जोशी, मुंबई ने दिया। स्वागत भाषण डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा ने दिया।





संगोष्ठी में डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ विमल चंद्र जैन इंदौर, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉ सुनीता चौहान, मुंबई श्री मोहनलाल वर्मा जयपुर, अदिति लांभाटे, भुवनेश्वरी जायसवाल, दिनकर बारापत्रे, शैलेश चतुर्वेदी, डॉ ज्योति वर्मा, श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर, जयमाला देसाई, लता जोशी, मनीषा सिंह, मंजू श्रीवास्तव, मोहम्मद मुकीम, शिल्पा भट्ट, डॉक्टर शैल चंद्रा, छत्तीसगढ़, प्रवीण नायी, परमानंद शर्मा, नेहा राठौर, नरेश जोशी आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।

राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉ सुनीता चौहान मुंबई ने किया। आभार प्रदर्शन  डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने किया।










 








विश्व पर्यावरण दिवस


20161126

मध्यप्रदेश के पक्षी : एक विश्वकोशीय कार्य - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Birds of Madhya Pradesh: An Encyclopedic Work - Prof. Shailendra Kumar Sharma

मध्य प्रदेश के पक्षी : एक विश्वकोशीय कार्य - प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा 
Birds of Madhya Pradesh: An Encyclopedic Work - Prof. Shailendra Kumar Sharma

विज्ञान ज्ञान का ही सुव्यवस्थित रूप है। यह मानव सभ्यता की अविराम यात्रा का आधार रहा है। न जाने किस सुदूर अतीत से होती आ रहीं वैज्ञानिक गवेषणाएँ हमारे वर्तमान और भावी जीवन की निर्धारक बनी हैं। अनेकानेक शाखा-प्रशाखाओं में विस्तृत विज्ञान और प्रौद्योगिकी हमारे जीवन को सुगम बनाने में महती भूमिका निभा रहे हैं। इस क्षेत्र में होने वाले नित-नए आविष्कारों का लाभ तभी लिया जा सकता है, जब वैज्ञानिक साहित्य हिन्दी सहित सभी जनभाषाओं में सुलभ हो। विशेष तौर पर आम जीवन से जुड़े वैज्ञानिक तथ्य और सूचनाओं को आम व्यक्ति की भाषा में उपलब्ध करवाना अनिवार्य है। तभी विज्ञान-संचार के लक्ष्य को साकार किया जा सकता है। वरिष्ठ प्राणी वैज्ञानिक डॉ जे पी एन पाठक का हाल ही में प्रकाशित ग्रन्थ ‘मध्यप्रदेश के पक्षी’ अपने अध्ययन क्षेत्र में विश्वकोशीय भूमिका के साथ अवतरित हुआ है। यह महाकाय और बहुरंगी ग्रन्थ डॉ. पाठक की वर्षों की शोध-साधना का साकार प्रतिबिम्ब है। जब विश्वभाषा के रूप में अपनी जगह बनाती हिंदी में विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में स्तरीय ग्रंथों की कमी को लेकर चिंता के स्वर उभरते हों, तब डॉ पाठक का यह ग्रन्थ एक नई ज़मीन तैयार करता है।

डॉ पाठक ने सही अर्थों में मशहूर पक्षी वैज्ञानिक सालिम अली के अभियान को आगे बढ़ाया है, जिनकी पुस्तक ‘बुक ऑफ़ इंडियन बर्ड्स’ 1941 ई. में प्रथम प्रकाशन से लेकर आज तक इस क्षेत्र में मील का पत्थर बनी हुई है। डॉ. पाठक से हिन्दी में मौलिक विज्ञान लेखन और अनुवाद को लेकर मेरा गहन विचार-मंथन होता आ रहा है। वे हिन्दी के बेहद सजग विज्ञान लेखक हैं और वैज्ञानिक-तकनीकी शब्दावली से लंबे समय से मुठभेड़ करते आ रहे हैं। जब उन्होंने देखा कि हम पक्षियों के प्राकृतिक क्रियाकलापों को लेकर चर्चा तो बहुत करते हैं, किन्तु जब बात उन पर केन्द्रित किसी प्रामाणिक हिन्दी ग्रंथ की आती है, तो मौन रह जाना पड़ता है। डॉ. पाठक ने इस गहरे मौन को तोड़ने का साहस किया है। जो कार्य बड़े-बड़े संस्थान नहीं कर सकते, वह पक्षियों के अनूठे दीवाने डॉ. पाठक ने कर दिखाया है।

इस बृहद् ग्रंथ में मध्यप्रदेश के 338 प्रकार के पक्षियों की सचित्र-प्रामाणिक जानकारी दी गई है। इनमें स्थानीय और प्रवासी, उड़न और जलीय,बड़े और छोटे [पैसेराइन] – सभी प्रकार के पाखी हैं। डॉ. पाठक ने शुरुआत में पक्षियों की संरचना और लक्षण दिये हैं, जो पक्षियों के अभिज्ञान में सहायक हैं। साथ ही राष्ट्रीय पार्कों, पक्षियों की उत्पत्ति, उनके प्रवास सहित विभिन्न राज्यों के प्रतीक पक्षियों का विवरण दिया है। विश्वास किया जा सकता है कि यह ग्रन्थ पक्षी निहारकों और अध्यापकों के साथ ही विद्वानों और शोधकर्ताओं के लिए भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा। इस पुस्तक के लिए फ़ोटोग्राफ्स डॉ. पाठक के सुशिष्य ललित चौधरी ने जुटाए हैं। ग्रन्थ के सुरुचिपूर्ण प्रकाशन के लिए डॉ. पाठक के साथ मध्यप्रदेश राज्य जैवविविधता बोर्ड, भोपाल की जितनी प्रशंसा की जाए कम ही होगी।

कविवर भवानीप्रसाद मिश्र ने भारत के हृदय पटल पर स्थित सतपुड़ा के जंगल को कभी अपनी रम्य रचना में उकेरा था, यह ग्रंथ उसका रोचक साक्ष्य देता है।

लाख पंछी सौ हिरन-दल,
चाँद के कितने किरन दल,
झूमते बन-फ़ूल, फ़लियाँ,
खिल रहीं अज्ञात कलियाँ,
हरित दूर्वा, रक्त किसलय,
पूत, पावन, पूर्ण रसमय
सतपुड़ा के घने जंगल,
 लताओं के बने जंगल।

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ग्रंथ- मध्यप्रदेश के पक्षी
लेखक- डॉ. जे. पी. एन . पाठक
फोटोग्राफ्स- ललित चौधरी
प्रकाशन- मध्यप्रदेश राज्य जैवविविधता बोर्ड,भोपाल

वेबसाइट http://www.mpsbb.nic.in/
प्रथम संस्करण 2014 ई
आवरण- ‘दूधराज’ म प्र का राज्य पक्षी, सौजन्य- वन विभाग
पृष्ठ 372+40


प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा
आचार्य एवं विभागाध्यक्ष
हिंदी अध्ययनशाला
कुलानुशासक
विक्रम विश्वविद्यालय
उज्जैन

 

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