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20210615

हिंदी सिनेमा और स्त्री विमर्श - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Hindi Cinema and Women Discourse - Prof. Shailendra Kumar Sharma

सामाजिक रूढ़ियों और जड़ताओं से मुक्त हो रही हैं हिंदी सिनेमा की नायिकाएँ - प्रो शर्मा

अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ हिंदी सिनेमा और स्त्री विमर्श पर मंथन 


हिंदी सिनेमा और स्त्री विमर्श पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन मंगलवार को क्रैडेंट टीवी  एवं राजकीय स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय चौंमू, जयपुर के संयुक्त तत्त्वावधान में  किया गया। संगोष्ठी के विशेषज्ञ वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन में मास्को, रूस से डॉ इंद्रजीत सिंह, गांधीनगर, गुजरात से प्रोफेसर संजीव दुबे एवं जयपुर से प्रोफेसर संजीव भानावत ने विषय के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।





संगोष्ठी में व्याख्यान देते हुए  विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के  कला संकायाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा  कि हिंदी फिल्में नारी सशक्तीकरण की अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण माध्यम सिद्ध हो रही हैं।  फिल्मों में नायिका की विशिष्ट भूमिका यह तय करती है कि सिनेमा हमेशा महिलाओं का हितैषी रहा है। नवजागरण कालीन मूल्यों को शुरुआती दौर के सिनेकारों ने बड़ी शिद्दत से उभारा। मदर इंडिया, सुजाता, बंदिनी जैसी फिल्मों ने नारी की समर्थ भूमिका को रेखांकित किया। नारीवाद और  उदारीकरण के माहौल में हिंदी सिनेमा की नायिकाएँ सामाजिक रूढ़ियों और जड़ताओं से मुक्त होती दिखाई दे रही हैं। पिंक, क्वीन, नो वन किल्ड जेसिका, मैरीकाम, इंग्लिश विंग्लिश, गुलाब गैंग, फैशन जैसी फिल्मों के जरिए नए दौर का सिनेमा नारी अस्मिता से जुड़े मुद्दों को लेकर महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहा है। फिल्मकारों ने नारी संवेदनाओं को गहराई से समझा है और समाज के सामने प्रस्तुत किया है। सामाजिक सरोकारों के साथ हिन्दी सिनेमा के रिश्ते निरन्तर प्रश्नांकित होते रहे हैं, लेकिन अनेक पुरुष सिनेकारों के साथ स्त्री निर्देशिकाओं ने इस स्थिति को बदला है। 



राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के जनसंचार विभाग के पूर्व अध्यक्ष एवं जाने-माने मीडिया विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर संजीव भाणावत ने रंगमंच और थिएटर के शुरुआती दौर का जिक्र करते हुए  स्त्री विमर्श की शुरुआत फिल्मों में कहीं बेहतर ढंग से मानते हैं। उनका कहना था कि फिल्में नई संभावनाओं को जन्म देती हैं, नए विचारों को जन्म देती हैं। स्त्री संघर्ष, आकांक्षा, अस्तित्वबोध फिल्मों में बखूबी देखा जा सकता है।

 


केंद्रीय विश्वविद्यालय, गांधीनगर, गुजरात से उपस्थित प्रोफेसर संजीव दुबे ने चर्चा की शुरुआत हिंदी की पहली सवाक फ़िल्म आलमआरा से करते हुए कहा कि एक दौर में कई फिल्मों के शीर्षक स्त्री के नाम पर होते थे। हंटरवाली से शुरू हुआ यह विमर्श क्वीन, पिंक,  थप्पड़ तक आता है। उनका कहना था कि  फिल्मों का यह वातावरण न केवल स्त्री चरित्र को उठाता है अपितु नारी स्वतंत्रता व सशक्तीकरण की भूमिका भी तय करता है।




मास्को, रूस  से जुड़े जाने-माने फिल्म एवं गीत विश्लेषक डॉ इंद्रजीत सिंह ने विशेष रुप से गाइड और रजनीगंधा फिल्म की स्त्री विषयक बातों को उठाया। उन्होंने राज कपूर की फिल्मों और गीतों  के परिवेश पर दृष्टि डालते हुए रूस और भारतीय फिल्मों के अंतः सम्बन्धों को स्पष्ट किया। 




प्रारम्भ में प्राचार्य डॉ कविता गौतम ने सभी वक्ताओं का आभार व्यक्त करते हुए स्वागत किया। इस ऑनलाइन आयोजन में देश दुनिया के सैकड़ों दर्शक जुड़े। 




कार्यक्रम की संयोजिका डॉ प्रणु शुक्ला ने संगोष्ठी का संचालन किया। कॉलेज के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ राजेंद्र कुमार ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।


सामाजिक रूढ़ियों और जड़ताओं से मुक्त हो रही हैं हिंदी सिनेमा की नायिकाएँ - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | क्रेडेंट टीवी और राजकीय महाविद्यालय, चौमूं, जयपुर की अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ हिंदी सिनेमा और स्त्री विमर्श पर मंथन

https://youtu.be/R4PaOVmdoGE

यूट्यूब चैनल :

https://youtu.be/R4PaOVmdoGE






20200512

स्त्री विमर्श : परंपरा और नवीन आयाम - प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, डॉ. मोहन बैरागी

स्त्री विमर्श : परंपरा और नवीन आयाम - संपादक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, डॉ. मोहन बैरागी 

Stri Vimarsh : Parampra Aur Naveen Ayam - Prof. Shailendrakumar Sharma, Dr. Mohan Bairagi

संपादकीय :
स्त्री विमर्श महज एक बौद्धिक विमर्श नहीं है, यह व्यापक सामाजिक - सांस्कृतिक - वैचारिक परिवर्तन का माध्यम है। यह इस बात की ओर तीखा संकेत करता है कि यह दुनिया स्त्री के लिए शायद नहीं बनी है और अब स्त्री इसे फिर से बनाना चाहती है। पुरुषवर्चस्ववादी समाज के बीच विलम्ब से ही सही, स्त्री विमर्श को मुकम्मल जगह मिल गई है। समकालीन चैंतनिक परिदृश्य  में यह विमर्श एक महत्त्वपूर्ण उपस्थिति बन गया है। साहित्य और संस्कृति के फलक पर इसकी व्याप्ति जहाँ विचारोत्तेजक रही, वहीं निरंतर जटिल होती सामाजिक - आर्थिक संरचना के बरअक्स इसके कई नए आयाम उभरे हैं।

यह तय बात है कि आज भारतीय समाज में सदियों पुरानी नारी स्थिति से पर्याप्त अंतर आ गया है, किन्तु यह भी सच है कि भारतीय समाज के वैचारिक दायरे में कोई बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं आ सका है। नारी के उद्विकास को पुरुष वर्चस्ववादी समाज ने स्वीकारना भले ही शुरू कर दिया है, किंतु उसकी समस्याएँ कई नए रूप-रंगों में ढलकर सामने आ रही हैं।

शैलेंद्रकुमार शर्मा की पुस्तक स्त्री विमर्श परम्परा और नवीन आयाम Book of Shailendra Kumar Sharma 

वैश्विक परिदृश्य में स्त्रियों के संघर्ष और सशक्तीकरण की दिशा में व्यापक प्रयास हुए हैं। इधर भारत में पुनर्जागरण के दौर में स्त्री अधिकारों के प्रति व्यापक सजगता प्रारंभ हुई, वहीं राष्ट्रीय आंदोलन में सहभागिता के साथ समानांतर शैक्षिक और सांस्कृतिक बदलाव में स्त्रियों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। आधुनिक भारतीय परिप्रेक्ष्य में अनेक स्त्री रत्नों ने व्यापक प्रयास किए, जिनमें सावित्रीबाई फुले, रमाबाई आंबेडकर, एनीबेसेंट,  काशीबाई कानिटकर, भगिनी निवेदिता, भीकाजी कामा, कुमुदिनी मित्रा, लीलावती मित्रा, कस्तूरबा गांधी, सरोजिनी नायडू, सुभद्राकुमारी चौहान, महादेवी वर्मा आदि उल्लेखनीय हैं।

स्त्री विमर्श : परम्परा और नवीन आयाम पुस्तक में स्त्री विमर्श के विविध सरोकारों पर अन्तरानुशासनिक दृष्टि से गम्भीर पड़ताल हुई है। नारी विमर्श को लेकर साहित्यिक, सांस्कृतिक, समाजवैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक, दार्शनिक आदि अनेक दृष्टियों से विचार किया गया है। इस पुस्तक के माध्यम से यह पड़ताल भी सम्भव हुई है कि समकालीन हिन्दी कथा साहित्य में नारी जीवन से जुड़ी विद्रूपताओं और विसंगतियों के विरुद्ध प्रतिरोध के स्वर मुखरित हैं। विवेचना के केंद्र में कृष्णा सोबती, मृदुला गर्ग, प्रभा खेतान, ममता कालिया, चित्रा मुद्गल, सुधा अरोरा, नासिरा शर्मा, कमल कुमार, मेहरून्निसा परवेज, मैत्रेयी पुष्पा, रमणिका गुप्ता आदि का कथा साहित्य रहा है। स्त्री कविता में नारी के अंतर्बाह्य संघर्ष और परिवर्तनकारी प्रयत्नों की आहट को इस पुस्तक में महसूस किया जा सकता है। पुरुष रचनाधर्मिता के परिप्रेक्ष्य में नारी विमर्श के स्वर भी इस पुस्तक में मुखरित हुए हैं।

पुस्तक में यू.एस.ए. की विदुषी डॉ. अम्बा सारा कॉडवेल ने अपने विशेष आलेख 'Shakti and Shakta' के माध्यम से भारत में शक्ति पूजा की परम्परा एवं अनेक दर्शनों के आलोक में नारी विमर्श के विविध आयामों की गम्भीर पड़ताल की है। उन्होंने माना है कि भारत में शक्ति रूप में नारी के महत्त्व और उसके प्रभाव की व्यापक अभिव्यक्ति हुई है। यह संपूर्ण विश्व में अद्वितीय है। दक्षिण एशियाई धर्मों में देवी की उदात्त और सुंदर छबियों को जन्म मिला, जिन्हें दुनिया ने कभी नहीं देखा था। उन्हें हम अत्यधिक रहस्यात्मक और सशक्त कह सकते हैं। मिनिएचर पेंटिंग, मूर्ति शिल्प आदि अनेक माध्यमों से दुर्गा, काली, सीता, राधा आदि की महत्त्वपूर्ण अभिव्यक्ति हुई है। शैव और शाक्त दर्शनों के माध्यम से देवी आराधना के कई रूप प्रकट होते हैं, जहाँ स्त्री को विद्या, विजय, आनन्द और सृजन के स्रोत के रूप में महिमा मिली है।

पुस्तक में स्त्री विमर्श की परंपरा को नए आयामों में रूपांतरित होते हुए देखा जा सकता है। स्त्री विमर्श  पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खिलाफ मुखर होने के बाद  अब व्यापक मनुष्यता की दिशा में गतिशील है। और यह स्त्रियों के लंबे संघर्ष से ही संभव हो सका है।

- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

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