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20210131

महात्मा गांधी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण | Scientific view of Mahatma Gandhi | Shailendra Kumar Sharma

वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ आजीवन प्रयोग किए महात्मा गांधी ने

महात्मा गांधी और उनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर विशिष्ट व्याख्यान 

मौन श्रद्धांजलि, गांधी जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि और उनके प्रिय भजनों की प्रस्तुति

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में गांधी जी की पुण्यतिथि पर महात्मा गांधी और उनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर केंद्रित विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन 30 जनवरी को प्रातः काल महाराजा जीवाजीराव पुस्तकालय परिसर में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर पुस्तकालय प्रांगण में सामूहिक मौन धारण किया गया एवं गांधी जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की गई।  

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में आयोजित कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के पूर्व कुलपति प्रो आर सी वर्मा थे। अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने की। आयोजन के विशिष्ट अतिथि प्रभारी कुलसचिव डा डी के बग्गा थे। विषय प्रवर्तन कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने किया।




कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो आर सी वर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि गांधीजी ने आजीवन वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ प्रयोग किए। उनकी पुस्तकें हिंद स्वराज और आत्मकथा सत्य के प्रयोग यह सिद्ध करती हैं कि उनके विचार और समस्त प्रयोग वैज्ञानिक तर्क दृष्टि पर आधारित हैं। गांधी जी को कुछ लोगों ने विज्ञान और टेक्नोलॉजी विरोधी कहा, जो उचित नहीं है। गांधीजी चाहते थे कि विज्ञान के लाभ गांव-गांव तक पहुंचे। वे शस्त्रों की अंधी दौड़ के विरुद्ध थे। उन्होंने जे सी बोस, पी सी रे जैसे अनेक वैज्ञानिकों के साथ विज्ञान को जन जन तक पहुंचाने की योजना बनाई थी। गांधीजी चाहते थे कि वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए जीव हत्या न की जाए। वे विज्ञान के क्षेत्र में भौतिकवादी दृष्टिकोण के विरुद्ध थे। उनकी मान्यता है कि विज्ञान का उपयोग  धनोपार्जन के लिए न किया जाए।







अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि विज्ञान और अध्यात्म के बिना समाज का उद्धार संभव नहीं है। गांधी जी ने गीता को विशेष महत्व दिया था। उनकी दृष्टि में गीता सामाजिक वैमनस्य और अशांति से मुक्ति दिला सकती है। वर्तमान में प्रकृति और संस्कृति में असंतुलन से हम विकास के बजाय विनाश की ओर जा रहे हैं।  आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बहुत बड़ी चुनौती के रूप में आ रही है। ऐसे में महात्मा गांधी का चिंतन हमें नया प्रकाश देता है। टेक्नोलॉजी से कई प्रकार की जटिलताएं आज पैदा हो रही हैं। उनका ईमानदार प्रयोग आवश्यक है। विक्रम विश्वविद्यालय का इस वर्ष का ध्येय सूत्र नशा मुक्ति, स्वच्छता और पर्यावरण के प्रति समर्पण रहेगा। 



अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर पांडेय




प्रभारी कुलसचिव डॉ डी के बग्गा ने कहा कि गांधी जी ने जन समुदाय के मध्य कुष्ठ रोग एवं अन्य बीमारियों के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने का कार्य किया। उनका दुनिया के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के साथ संपर्क था।




विषय प्रवर्तन करते हुए कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि गांधी जी ने विज्ञान और टेक्नोलॉजी के साथ नैतिकता एवं पर्यावरणीय दृष्टिकोण को आवश्यक माना। विज्ञान के क्षेत्र की मानक पत्रिका नेचर ने महात्मा गांधी के 150 वें जयंती वर्ष पर महात्मा गांधी एंड सस्टेनेबल साइंस शीर्षक संपादकीय प्रकाशित किया, जिसमें विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में गांधी जी द्वारा किए गए नवाचारी प्रयत्नों का उल्लेख किया गया है। अल्बर्ट आइंस्टाइन पर गांधीजी का गहरा प्रभाव था। गांधीजी प्रकृति और मानव समुदाय पर उद्योगों और अंध भौतिकता से पड़ने वाले दुष्प्रभावों को लेकर चिंतित थे, जो आज अधिक प्रासंगिक हो गया है। परमाण्विक विभीषिका के दौर में उन्होंने मनुष्य और प्रकृति के मध्य आपसदारी की राह पर लौटने की जरूरत बताई।





आयोजन में पूर्व कुलपति बालकृष्ण  शर्मा, पूर्व कुलपति प्रो पी के वर्मा आदि सहित प्रबुद्ध जनों, शिक्षकों और विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।

अतिथि स्वागत प्रो एच पी सिंह, गांधी अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, अधिष्ठाता, विद्यार्थी कल्याण डॉ आर के अहिरवार, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो अचला शर्मा, प्रो गीता नायक, डॉ सोनल सिंह, डॉ ज्योति उपाध्याय, डॉ एस के मिश्रा, डॉ डी डी बेदिया, डॉ धर्मेंद्र मेहता, डॉ संदीप तिवारी, डॉ एस के जैन, डॉ कनिया मेड़ा, डॉ चित्रलेखा कड़ेल, डॉ प्रीति पांडेय, कौशिक बोस,  श्री कमल जोशी, श्री योगेश शर्मा, श्री जसवंतसिंह आंजना, श्री लक्ष्मीनारायण संगत आदि ने किया। 




इस अवसर पर पूर्व कुलपति प्रो आर सी वर्मा को अतिथियों द्वारा शॉल एवं पुस्तक अर्पित कर उनका सारस्वत सम्मान किया गया।




विक्रम विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार से सहायता प्राप्त संस्था जाग्रति नशामुक्ति केंद्र द्वारा नशा विरोधी प्रदर्शनी लगाई गई। प्रदर्शनी का संयोजन श्री चिंतामणि गेहलोत, विनोद कुमार दवे, श्री राजेश ठाकुर एवं श्री देवीलाल मालवीय ने किया। सामाजिक न्याय विभाग के अंतर्गत कलापथक के कलाकारों द्वारा महात्मा गांधी के प्रिय भजन वैष्णव जन तो तेणे कहिए एवं रघुपति राघव राजाराम और नशा विरोधी गीत की प्रस्तुति की गई। दल के कलाकारों में शैलेंद्र भट्ट, सुश्री अर्चना मिश्रा, सुरेश कुमार, नरेंद्रसिंह कुशवाह, राजेश जूनवाल, सुनील फरण, अनिल धवन, आनंद मिश्रा आदि शामिल थे। कार्यक्रम में कुलपति प्रो पांडेय ने उपस्थित जनों को नशा निषेध की शपथ दिलाई। 


आयोजन का संचालन हिंदी विभाग के डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन छात्र कल्याण विभाग के अधिष्ठाता डॉ आर के अहिरवार ने किया।







महात्मा गांधी पुण्यतिथि


20201014

महात्मा गांधी : शिक्षा और साहित्य के परिप्रेक्ष्य में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

साहित्य वही सार्थक, जो भाषा, देश और संस्कृति  के प्रति सम्मान जाग्रत करे - प्रो शर्मा 

महात्मा गांधी : शिक्षा और साहित्य के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन

प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना एवं स्वामी श्री स्वरूपांनद सरस्वती महाविद्यालय, भिलाई के हिन्दी विभाग के संयुक्त तत्त्वावधान में महात्मा गांधी : शिक्षा और साहित्य के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित  अंतरराष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ शैलेंद्रकुमार शर्मा, अध्यक्ष, हिन्दी अध्ययनशाला विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, विशेष अतिथि डॉ. शहाबुद्दीन शेख, कार्यकारी अध्यक्ष, नागरी लिपि परिषद पुणे, विशिष्ट अतिथि डा प्रभु चौधरी सचिव राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन, मुख्य वक्ता श्री सुरेश चन्द्र शुक्ल शरद आलोक, साहित्यकार और अनुवादक, ओस्लो नार्वे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. दीपक शर्मा, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय ने की। महाविद्यालय की प्राचार्य डा. हंसा शुक्ला विशेष रूप से उपस्थित रहीं। 



मुख्य अतिथि डा. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने अपने उदृबोधन में कहा कि महात्मा गांधी चाहते थे विद्यार्थियों को मातृभाषा में शिक्षा दी जानी चाहिये। हम अपने भावों एवं विचारों को मातृभाषा में अच्छे से व्यक्त कर सकते है। आज देश में 80 से 90 प्रतिशत आबादी कृषि कार्यों से जुडे़ हुये हैं, पर कृषि पर कोई शिक्षा नहीं दी जाती है।  उन्होंने कहा कि जो साहित्य भाषा, देश, संस्कृति  के प्रति सम्मान जागृत करे, वहीं वास्तविक साहित्य है। पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली हमारे संस्कृति के प्रति हमें तिरस्कार करना सिखाती है। प्रो शर्मा ने महात्मा गांधी विचार और नवाचार के बारे में विस्तृत जानकारी दी।






विशिष्ट अतिथि डा शहाबुद्दीन शेख ने महात्मा गांधी के शिक्षा सिद्धांतों की विवेचना की। उन्होंने कहा  कि महात्मा गांधी की धारणा थी, शिक्षा सरकार की अपेक्षा समाज के अधीन होना चाहिए। 14 वर्ष तक अनिवार्य शिक्षा व शिक्षा का माध्यम मातृ भाषा होनी चाहिए। क्योंकि मातृभाषा में शिक्षा होने से बच्चों का सर्वांगीण विकास होता है। साथ ही शिक्षा ऐसी हो जो बच्चे को आत्म निर्भर बनाये अतः गांधी जी का मत था व्यावहारिक एवं बुनियादी शिक्षा दी जानी चाहिये।





मुख्य वक्ता डा. सुरेशचन्द्र शुक्ल ने कहा नार्वे में स्थान-स्थान पर गांधी की प्रतिभा है व लोग महात्मा गांधी व उनके सिद्धांतों से परिचित हैं। वस्तुतः गांधी युग पुरूश थे प्राणी मात्र के प्रति साकारात्मक चिंतन ही अहिंसा है स्वीकार करते थे। मन, वचन व कर्म से किसी के प्रति हिंसा न करें, यही अहिंसा का सच्चा मार्ग है।



डा. प्रभु चौधरी ने आमंत्रित अतिथियों का परिचय कराया और विषय की उपादेयता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गांधी व्यक्ति नहीं युग थे। आज जब चारों ओर हिंसा की भावना बलवती हो रही है तब हमें गांधी के चिंतन व मूल्य आधारित शिक्षा की आवश्यकता है।


प्राचार्य डा. हंसा शुक्ला ने कहा साहित्य में गांधी जी के विचारों व सिद्धांतों को महत्वपूर्ण स्थान मिला, गांधी के विचारों को हम पढ़ रहें है पर हम उन्हें जी नहीं रहे हैं। जीवन में गांधी के सिद्धांतों को समावेश करना होगा। गांधी जी प्रार्थना पर बहुत भरोसा करते थे। प्रार्थना में बहुत बल होता है। 


डा दीपक शर्मा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में हिन्दी विभाग की सराहना करते हुये कहा गांधी जी ज्ञान आधारित शिक्षा के स्थान पर आचरण आधारित शिक्षा के समर्थक थे। वे शिक्षा को सर्वांगीण विकास के सशक्त माध्यम मानते थे। वर्धा योजना में वे प्रथम सात वर्ष निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा पर बल दिया। प्रारंभिक स्तर पर मातृभाशा में शिक्षा व राश्ट्रीय एकता के लिये कला सात तक हिन्दी भाषा में ही शिक्षा प्रदान करने के पक्ष में थे। वे बुनियादी शिक्षा के द्वारा विद्यार्थियों में कौशल विकसित करना चाहते थे जिससें विद्यार्थी लघु व कुटीर उद्योगों के माध्यम से स्वावलंबी बन सकें। 


कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुये डा. सुनीता वर्मा ने कहा जीवन के विविध पहलुओं पर महात्मा गांधी का चिंतन विशाल था। उन्होंने सत्य के प्रयोग में अपनी भूलों का सार्वजनिक रूप स्वीकार किया है गांधी जी का जीवन चरित्र उन्हें वैरिस्टर मोहनदास गांधी से महात्मा एवं बापू संबोधन तक ले जाता है और यही व्यक्तित्व और जीवन दर्षन की गहरीछाप लगभग सभी भारतीय भाशाओं के साहित्य पर पड़ी। उनका शिक्षा सिद्धांत व्यवहारिक मूल्यों पर आधारित और  स्वरोजगार मूलक था महात्मागांधी अब गुजरते वक्त के साथ प्रासंगिक होते जा रहे है।


कार्यक्रम की संयोजिका डा. सुनीता वर्मा विभागाध्यक्ष हिन्दी एवं तकनीकी सहयोग स.प्रा. निशा पाठक एवं स.प्रा. टी बबीता ने प्रदान किया।


डा मीता अग्रवाल, रायपुर, डा. मीना सोनी उड़ीसा, डॉ. शमा ए बेग स्वरूपानंद महाविद्यालय भिलाई ने अपने शोध पत्र पढ़े। 500 से अधिक शोधार्थी, विद्यार्थियों ने भाग लिया । कार्यक्रम में मंच संचालन डा सुनीता वर्मा विभागाध्यक्ष हिन्दी व धन्यवाद ज्ञापन डा शमा ए बेग विभागाध्यक्ष माइक्रोबायोलॉजी ने किया। कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राध्यापक शामिल हुए।














20201009

लेखक एवं आलोचक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित

लेखक एवं आलोचक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा सहित दुनिया के विशिष्टजनों को अर्पित किया गया महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार 2020


गांधी जी की 151 वीं जयंती पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार अलंकरण समारोह ओस्लो, नॉर्वे में वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर

सत्याग्रह, विश्वशांति और अहिंसा के महानायक महात्मा गांधी की 151 वीं जयंती पर ओस्लो, नॉर्वे की संस्था भारतीय - नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम द्वारा दुनिया के प्रतिष्ठित समाजसेवियों, संस्कृतिकर्मियों, साहित्यकारों और पत्रकारों को प्रथम महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार 2020 से अलंकृत किया गया। 2 अक्टूबर को दोपहर में आयोजित सम्मान अलंकरण समारोह में समाजसेवा, विश्वशांति, चिंतन, साहित्य, संस्कृति एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में अमूल्य  योगदान के लिए दुनिया के विभिन्न हिस्सों के विशिष्टजनों को सम्मान के रूप में प्रशस्ति पत्र और ताम्र फलक वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर अर्पित किए गए।




साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में अनुपम योगदान के लिए इस वर्ष के अंतरराष्ट्रीय महात्मा गांधी पुरस्कार के लिए चुने गए व्यक्तियों में प्रसिद्ध लेखक,  आलोचक एवं विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा शामिल थे। प्रोफेसर शर्मा ने साहित्य विमर्श, रंगमंच, संस्कृति, गांधी विचार, लोक साहित्य, देवनागरी लिपि सहित विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन एवं संपादन किया है। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर महात्मा गांधी के 150 वें जयंती वर्ष पर विविधायामी नवाचारी गतिविधियां संयोजित कीं।




ओस्लो में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मान समारोह की मुख्य अतिथि नार्वेजीय अरबाइदर पार्टी की राजनेत्री एवं ओस्लो नगर पार्लियामेंट की संस्कृति मंत्री सुश्री रीना मारिआन हानसेन थीं। आयोजन के प्रति ओस्लो की मेयर श्रीमती मारिआने बोर्गेन ने शुभकामनाएं व्यक्त कीं।


कार्यक्रम के अध्यक्ष भारतीय - नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम, ओस्लो के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष, वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं मीडिया विशेषज्ञ श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ने विशिष्ट जनों को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार 2020 अलंकरण की घोषणा की।





समाजसेवा एवं विश्वशांति के क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए चिंतक, समाजसेवी एवं सम्पादक श्री गुलाब कोठारी, जयपुर को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार एवं लाइफ टाइम अचीवमेंट - सर्वोच्च  सम्मान अर्पित किया गया। इस श्रेणी में गोवा की पूर्व राज्यपाल, राजनेत्री एवं लेखिका श्रीमती मृदुला सिन्हा, नई दिल्ली, ओस्लो के समाचार पत्र आकेर्सआवीस ग्रूरुददालेन के सम्पादक एवं समाजसेवी यालमार शेलांद, नॉर्वे एवं यूनाइटेड किंगडम के वरिष्ठ समाजसेवी और राजनीतिज्ञ श्री वीरेन्द्र शर्मा, लन्दन को सम्मानित किया गया। 




साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान के लिए इस वर्ष का अंतरराष्ट्रीय महात्मा गांधी पुरस्कार प्रसिद्ध लेखक एवं आलोचक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, उज्जैन, वरिष्ठ साहित्यकार प्रो निर्मला एस मौर्य, चेन्नई, हिंदी एवं पंजाबी के प्रसिद्ध लेखक प्रो हरमहेन्द्र सिंह बेदी, अमृतसर और नॉर्वेजियन लेखिका इंन्विल्ड क्रिस्तीने हेरजोग, ओस्लो को अर्पित किया गया।






पत्रकारिता के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए वरिष्ठ पत्रकार श्री विजय विनीत, वाराणसी, संपादक श्रीमती सर्वमित्रा सुरजन, नई दिल्ली, सम्पादक राजीव सिंह, लखनऊ, सांस्कृतिक पत्रकार श्री राजेश विक्रान्त, मुंबई एवं मीडिया विश्लेषक प्रो सन्तोष तिवारी, लखनऊ को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार 2020 से सम्मानित किया गया।





संबोधित करते हुए लेखक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि महात्मा गांधी एक असाधारण नेता और महामानव थे। उन्होंने परस्पर प्रेम, मानवता, समानता, न्याय और अहिंसा के लिए आवाज उठाई, जो विश्व फलक पर आज सर्वमान्य है। वे गहरी भारतीय आस्था के लिए जाने जाते हैं, लेकिन उन्होंने सभी धर्मों और विचारों के सम्मान और समन्वय पर बल दिया। उन्होंने मनुष्य द्वारा खींची गई खाइयों को पाटने के लिए अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया।




चिंतक, समाजसेवी एवं सम्पादक श्री गुलाब कोठारी, जयपुर ने संबोधित करते हुए कहा कि सत्य कहने में बहुत साधारण लगता है, किंतु वह एक ही तत्त्व सदैव रहेगा। पशुता के संस्कारों के कारण हिंसा बार - बार उभर आती है। संस्कारों का पूरा परिष्कार होने पर ही हिंसा छूटेगी।



कार्यक्रम को गोवा की पूर्व राज्यपाल एवं वरिष्ठ लेखिका डॉ मृदुला सिन्हा, ब्रिटेन के मेंबर ऑफ पार्लियामेंट श्री वीरेंद्र शर्मा, प्रोफेसर हरमहेंद्र सिंह बेदी, प्रोफेसर निर्मला एस मौर्य आदि ने भी संबोधित किया। 






कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली के श्री दीपक पांडेय थे।

कार्यक्रम सचिव एवं सूत्रधार श्री थूरस्ताइन विंगेर, नॉर्वे एवं संगीता शुक्ला दिदरिक्सेन थीं।














सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
President/ अध्यक्ष
Indisk-Norsk Informasjons -og Kultur Forum 
अध्यक्ष, भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम, ओस्लो, नॉर्वे 
ईमेल : 

20201008

देवनागरी लिपि और महात्मा गांधी : वैश्विक सन्दर्भ में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

देवनागरी लिपि के माध्यम से अंकित की जा सकती हैं देश - विदेश की सभी भाषाएँ

वैश्विक संदर्भ में देवनागरी लिपि और महात्मा गांधी पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी

नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली और राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा वैश्विक संदर्भ में देवनागरी लिपि और महात्मा गांधी  पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार और अनुवादक श्री शरद चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली, डॉ किरण हजारिका, डिब्रूगढ़, असम, डॉक्टर जोराम आनिया ताना, ईटानगर एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। अध्यक्षता डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। यह कार्यक्रम महात्मा गांधी के 151 वें जयंती वर्ष की शुरुआत के अवसर पर आयोजित किया गया।






मुख्य अतिथि श्री शरद चंद्र शुक्ल शरद आलोक के कहा कि देवनागरी लिपि में  विश्व लिपि के रूप में  प्रगति की  अपार संभावनाएं हैं। नॉर्वे से प्रकाशित द्विभाषी पत्रिकाओं में देवनागरी अंकों का प्रयोग किया जाता है। स्कैंडिनेवियन देशों में हिंदी शिक्षण और जनसंचार माध्यमों में देवनागरी लिपि का प्रयोग निरंतर जारी है। 





मुख्य वक्ता प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि देवनागरी लिपि के माध्यम से देश विदेश की सभी भाषाओं को कतिपय परिवर्द्धन के साथ सटीक ढंग से अंकित किया जा सकता है। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में भारत का प्रथम शिक्षा आयोग गठित किया गया था, जिसमें जनजातीय भाषाओं के लिए रोमन के स्थान पर नागरी लिपि को अंगीकार करने का निर्णय लिया गया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से सामान्य लिपि के रूप में देवनागरी को अपनाने के प्रबल पक्षधर थे। उनकी दृष्टि में भिन्न-भिन्न लिपियों का होना कई तरह से बाधक है। वह ज्ञान की प्राप्ति में बड़ी बाधा है। उनका दृढ़ विश्वास था कि भारत की तमाम भाषाओं के लिए एक लिपि का होना फ़ायदेमंद है और वह लिपि देवनागरी ही हो सकती है। उनकी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए आचार्य विनोबा भावे ने नागरी लिपि के महत्व को स्वीकार किया। उन्होंने यह तक कहा कि हिंदुस्तान की एकता के लिए हिंदी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी देगी। इसलिए मैं चाहता हूँ कि सभी भाषाएं देवनागरी में भी लिखी जाएं।






विशिष्ट अतिथि डॉक्टर हरिसिंह पाल ने नागरी लिपि परिषद द्वारा किए जा रहे कार्यों का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि संपूर्ण देश के विविध क्षेत्रों में नागरी लिपि के प्रचार प्रसार के लिए कार्य किया जा रहा है। अनेक लोक बोलियों के लिए देवनागरी लिपि के प्रयोग की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य हुए हैं। नागरी लिपि का प्रयोग अधिकाधिक हो, इस दिशा में व्यापक संचेतना जाग्रत करने की आवश्यकता है।





कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर शहाबुउद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि विश्व पटल पर देवनागरी लिपि  तेजी से आगे बढ़ रही है। महात्मा गांधी जैसे तेजस्वी व्यक्तित्व देवनागरी लिपि के साथ हैं। आचार्य विनोबा भावे ने क्षेत्रीय भाषाओं की लिपि के साथ देवनागरी लिपि के भी प्रयोग पर बल दिया। वे बहुभाषी देश में सभी भाषाओं को जोड़ने के लिए देवनागरी लिपि को योग्य मानते थे। बच्चों को कोई भी भाषा सिखाएँ, परंतु देवनागरी लिपि के साथ उनका संबंध रहे। यह आवश्यक है। देवनागरी लिपि सर्वगुण संपन्न है और राष्ट्रीय एकता में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।




प्रारंभ में आयोजन की रूपरेखा एवं अतिथि परिचय राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने दिया।


इस अवसर पर डॉ किरण हजारिका, डिब्रूगढ़ और जोराम आनिया ताना, ईटानगर ने पूर्वोत्तर भारत में देवनागरी लिपि की संभावनाओं पर प्रकाश डाला।



सरस्वती वंदना डॉक्टर लता जोशी ने की। स्वागत भाषण श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने दिया।


कार्यक्रम में श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ वीरेंद्र मिश्रा, इंदौर, श्री गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, डॉ अशोक सिंह, डॉ आशीष नायक, डॉक्टर राजलक्ष्मी कृष्णन, डॉ अशोक गायकवाड, डॉ पूर्णिमा जेंडे, डॉ शैल चंद्रा, सुनीता चौहान, राम शर्मा, वंदना तिवारी, निरूपा उपाध्याय, डॉ उमा गगरानी, अनिल काले, बालासाहेब बचकर, डॉ दीपाश्री गडक, ललिता गोडके, मनीषा सिंह, डॉ रश्मि चौबे, डॉ भरत शेणकर, डॉक्टर मुक्ता कौशिक, डॉक्टर रोहिणी डाबरे, डॉक्टर लता जोशी, डॉक्टर तूलिका सेठ, डॉक्टर शिवा लोहारिया, डॉक्टर समीर सैयद आदि सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।


संचालन डॉ रागिनी शर्मा ने किया। अंत में आभार डॉ आशीष नायक, रायपुर ने प्रकट किया।


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