पेज

Kalidas लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Kalidas लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

20231110

All India Kalidas Festiva : National Seminar, Debut and Shlok Path | अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2023 : राष्ट्रीय संगोष्ठी, वादविवाद एवं श्लोक पाठ

अखिल भारतीय कालिदास समारोह : सारस्वत आयोजन : उत्कृष्ट शोध पत्र के लिए विक्रम कालिदास पुरस्कार 2023 | अखिल भारतीय संस्कृत वाद विवाद प्रतियोगिता | राज्य स्तरीय हिंदी वाद विवाद प्रतियोगिता | राज्य स्तरीय श्लोक पाठ प्रतियोगिता


विक्रम कालिदास पुरस्कार 2023 हेतु गुणवत्तापूर्ण शोध पत्र आमंत्रित : अंतिम तिथि : 20 नवम्बर 2023

कालिदास समिति, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन द्वारा जारी सभी कार्यक्रमों के विस्तृत नियम - निर्देश यहाँ दिए गए हैं।

अखिल भारतीय कालिदास समारोह का आयोजन दिनांक 23 से 29 नवंबर 2023 तक किया जा रहा है।


अकादमिक कार्यक्रमों के अंतर्गत शोध संगोष्ठी के चार सत्र आयोजित किए जाएंगे। विक्रम कालिदास पुरस्कार हेतु प्रविष्टि के अलावा कालिदास साहित्य के विविध पक्षों पर केंद्रित शोध पत्र प्रस्तुति के लिए सुधी विद्वान, प्राध्यापक और शोधकर्ता आमंत्रित हैं।

 

महाकवि कालिदास 



विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन 

*** 

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 23 से 29 नवम्बर 2023 : उज्जैन 

सारस्वत आयोजन : विस्तृत विवरण

● कालिदास साहित्य के विविध पक्षों पर राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के चार सत्र


● अखिल भारतीय अंतरविश्वविद्यालयीन संस्कृत वादविवाद प्रतियोगिता


● राज्य स्तरीय अन्तरमहाविद्यालयीन कालिदास काव्य पाठ प्रतियोगिता

 

●  राज्य स्तरीय हिंदी वादविवाद प्रतियोगिता 


मध्यप्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन का संयुक्त आयोजन  अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2023 दिनांक 23 से 29 नवम्बर तक सम्पन्न होगा। समारोह के सारस्वत आयोजनों के अंतर्गत विक्रम विश्वविद्यालय की कालिदास समिति द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी के चार सत्रों के साथ विद्यार्थियों की स्पर्धाओं के अंतर्गत अंतरविश्वविद्यालयीन संस्कृत वाद विवाद, राज्य स्तर की अंतर महाविद्यालयीन कालिदास काव्य पाठ और हिंदी वाद विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन होगा।

समारोह में विभिन्न संगोष्ठी सत्रों में कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र प्रस्तुति के लिए आमंत्रित हैं। शोध पत्र साहित्य, कला, वास्तु, संस्कृति, इतिहास, पुरातत्व, ज्ञान - विज्ञान, पर्यावरण, दर्शन, जीवन मूल्य, शिक्षा, समाजविज्ञान, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र आदि के परिप्रेक्ष्य में कालिदास साहित्य के किसी पक्ष से जुड़े हो सकते हैं।

विक्रम कालिदास पुरस्कार : विवरण
















वादविवाद प्रतियोगिता विवरण: 

अखिल भारतीय स्तर की अंतरविश्वविद्यालयीन कालिदास संस्कृत वाद विवाद प्रतियोगिता का विषय “कालिदासीयकाव्येषु यथाऽस्ति सुप्रतिष्ठितम्। तथा मानवमूल्यानां नान्यकाव्येषु गौरवम्॥“ रखा गया है। 




मध्यप्रदेश राज्य स्तर की अंतर महाविद्यालयीन कालिदास हिंदी वाद विवाद प्रतियोगिता का विषय ‘मानवीय मूल्यों का गौरव केवल महाकवि कालिदास की रचनाओं में प्रतिष्ठित है’, रखा गया है। 














कालिदास काव्य पाठ प्रतियोगिता विवरण

मध्यप्रदेश राज्य स्तर की कालिदास काव्य पाठ  प्रतियोगिता में विद्यार्थियों को श्लोकों का चयन महाकवि कालिदास की अमर कृति कुमारसम्भव से करना होगा।


यह जानकारी देते हुए विक्रम विश्वविद्यालय की कालिदास समिति के सचिव प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा Shailendrakumar Sharma  ने बताया कि अकादमिक आयोजनों में देश के विभिन्न क्षेत्रों के विद्वान, शिक्षक, शोधकर्ता और विद्यार्थी भाग लेने के लिए उज्जैन आते हैं। राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में भाग लेने के लिए देश के विभिन्न प्रांतों के प्राध्यापक, शिक्षाविद् एवं शोधकर्ताओं से कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र आमंत्रित किए गए हैं। शोध संगोष्ठी के चार सत्रों का आयोजन विश्वविद्यालय मार्ग, उज्जैन स्थित अभिरंग नाट्यगृह, कालिदास संस्कृत अकादमी में होगा। इनमें से एक विशेष सत्र विक्रम कालिदास पुरस्कार विजेता शोधपत्रों की प्रस्तुति का होगा। शोध पत्र प्रस्तुतकर्ता पंजीयन एवं शोध पत्र प्रेषण के लिए कालिदास समिति कार्यालय, सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान, विक्रम विश्वविद्यालय, देवास मार्ग, उज्जैन में सम्पर्क कर सकते हैं।


पंजीयन के लिए संपर्क :


प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

सचिव

कालिदास समिति

कुलानुशासक

विक्रम विश्वविद्यालय

सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान 

देवास मार्ग, उज्जैन 

ईमेल :

shailendrakumarsharmaprof@gmail.com



विवरण प्रस्तुत है


https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid02i4uTZurUNHEnRThvAPufB2JRiPZh1c2FiMetPbMaP1L81e8VrTDTgbBfkpJnF4Vml&id=100001476965950&mibextid=2JQ9oc


*Kalidasa | Sanskrit Drama | Art | Litreture | History | Special Lecture:* https://www.youtube.com/playlist?list=PLNYnK1eOGDVUhg6pnymIe064n77GvVioJ

20221103

Vagarchan : Worship of Mahakavi Kalidas's Aaradhya Gadkalika |वागर्चन : महाकवि कालिदास की आराध्या गढ़कालिका की समर्चना

वागर्चन : महाकवि कालिदास की आराध्या गढ़कालिका की समर्चना

- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 

अखिल भारतीय कालिदास समारोह का शुभारंभ चार नवंबर को होगा। इसके पहले महाकवि कालिदास की आराध्या देवी मां गढ़ कालिका का पूजन ; अर्चन कर वागर्चन किया। इस दौरान कालिदास समारोह समिति के पदाधिकारी मौजूद थे। महाकवि कालिदास की आराध्या गढ़कालिका देवी का पूजन एवं स्तोत्र पाठ बुधवार को किया गया। इस दौरान महाकवि कालिदास विरचित श्यामलादंडकम् का पाठ कर मां गढ़कालिका से कालिदास समारोह निर्विघ्न संपन्न होने की कामना की। कहा जाता है कि वागर्चन महाकवि द्वारा उनकी वाणी से लिखा गया है। मां गढ़कालिका की कृपा से ही कवि कालिदास को वाक् सिद्धि प्राप्त हुई थी। इस दौरान पूर्व कुलपति प्रो. बालकृष्ण शर्मा, कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय, कालिदास समारोह समिति के सचिव प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा, प्रभारी निदेशक संतोष पंडया, उपनिदेशक डॉ योगेश्वरी फिरोजिया आदि उपस्थित थे। 

वागर्चन की विधि सन्त सुन्दरदास सेवा संस्थान एवं युग निर्माण समिति उज्जैन के सहकार से सम्पन्न हुई। प्रो.तुलसीदास परोहा, डॉ.पीयूष त्रिपाठी, डॉ.रमेश शुक्ल, श्री सत्यनारायण नाटानी, श्री मोहन खंडेलवाल मुकुल, श्री आशीष खंडेलवाल आदि गणमान्यजनों ने देवी का पूजन एवं स्तुति की। विद्वानों का स्वागत श्री मोहन खंडेलवाल मुकुल ने किया। 

 















5 नवम्बर को नगर में निकलेगी कलशयात्रा

कालिदास समारोह के शुभारंभ पूर्व देवी गढ़कालिका की आराधना के पश्चात कल गुरूवार को सुबह 10 बजे रामघाट पर मां शिप्रा एवं कलश पूजन होगा। इसके बाद सुबह 10.30 बजे से महाकाल मंदिर से कलशयात्रा प्रारंभ होगी। कलशयात्रा में भावनगर गुजरात के लोक कलाकारों का दल नितिन भाई दवे के मार्गदर्शन में एवं झाबुआ के हिंदूसिंह अमलीयार के पारम्परिक लोक समूह द्वारा लोकनृत्य की प्रस्तुति सम्पूर्ण कलश यात्रा मार्ग पर की जाएगी।

कलशयात्रा मार्ग पर संस्कार भारती के रांगोली दल द्वारा रांगोली का निर्माण किया जाएगा। कलशयात्रा गुदरी चौराहा, गोपाल मंदिर, छत्रीचौक, कंठाल, नईसड़क, दौलतगंज, मालीपुरा, देवासगेट, चामुंडा चौराहा, टॉवर चौक, शहीद पार्क, ढक्कन वाला कुआं, गुरुद्वारा, पुलिस कंट्रोल रूम, दशहरा मैदान चौराहा, संजीवनी अस्पताल के सामने से होती हुई अकादमी परिसर पहुंचेगी, जहां मंगल कलश की स्थापना होगी।


------ 


All India Kalidas Samaroh 2022 :  Invitation | अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : आत्मीय आमंत्रण 🏵️


अखिल भारतीय कालिदास समारोह : 4 - 10 नवम्बर 2022 : मध्य प्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 के समस्त सारस्वत एवं सांस्कृतिक आयोजनों में आपकी उपस्थिति  प्रार्थनीय है।


https://drshailendrasharma.blogspot.com/2022/11/all-india-kalidas-samaroh-2022.html


20221101

All India Kalidas Samaroh 2022 : Invitation | अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : आमंत्रण

All India Kalidas Samaroh 2022 :  Invitation | अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : आमंत्रण

अखिल भारतीय कालिदास समारोह : 4 - 10 नवम्बर 2022

मध्य प्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 के समस्त सारस्वत एवं सांस्कृतिक आयोजनों में आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थनीय है। 

आमंत्रण पत्र के लिए लिंक

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : आमंत्रण पत्र 

https://drive.google.com/file/d/1Ahh-k1yQ6XrBdobWiISB9cFFEdqbEsGV/view?usp=drivesdk


राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी : शोध पत्र प्रस्तुति के लिए आमंत्रण 

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : दिनांक 4 से 10 नवंबर : मध्यप्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन का संयुक्त आयोजन। सुधी प्राध्यापक /साहित्यकार/ शिक्षाविद् / शोधकर्ता कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र प्रस्तुति के लिए आमंत्रित हैं। शोध पत्र साहित्य, कला, संस्कृति, इतिहास, पुरातत्व, ज्ञान - विज्ञान, वास्तु, पर्यावरण, दर्शन, जीवन मूल्य, शिक्षा, समाजविज्ञान, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र आदि के परिप्रेक्ष्य में कालिदास साहित्य के किसी पक्ष से जुड़े हो सकते हैं।*

विस्तृत जानकारी के लिए लिंक : 

https://drshailendrasharma.blogspot.com/2022/10/all-india-kalidas-festival-2022.html



















































अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 4 से 10 नवम्बर तक उज्जैन में, देश के बारह से अधिक प्रान्तों के विद्वान, कलाकार और संस्कृतिकर्मी भाग लेंगे

सारस्वत आयोजनों के अंतर्गत होंगे कालिदास साहित्य के विविध पक्षों पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के छह सत्र, व्याख्यानमाला के पाँच सत्र एवं तीन स्पर्धाएं 

अखिल भारती अंतरविश्वविद्यालयीन संस्कृत वादविवाद, राज्य स्तरीय अन्तरमहाविद्यालयीन कालिदास काव्य पाठ और हिंदी वादविवाद प्रतियोगिताएँ होंगी

मध्यप्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन का संयुक्त आयोजन अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 दिनांक 4 से 10 नवम्बर तक सम्पन्न होगा। सारस्वत एवं सांस्कृतिक आयोजनों में भाग लेने के लिए देश के विभिन्न भागों के सैकड़ों विद्वान, संस्कृतिकर्मी, कलाकार, शोधकर्ता और विद्यार्थी उज्जैन आ रहे हैं। समारोह के शुभारंभ के पूर्व 3 नवंबर को मंगल कलश यात्रा प्रातः 10:00 से प्रातः रामघाट से प्रारंभ होकर कालिदास संस्कृत अकादमी पहुंचेगी। इसी रात्रि को नांदी के अंतर्गत महत्वपूर्ण प्रस्तुतियां होंगी। महाकवि कालिदास की विश्वविश्रुत कृति विक्रमोर्वशीय से अनुप्राणित चित्र एवं मूर्ति कलाकृतियों की राष्ट्रीय कालिदास प्रदर्शनी दिनांक 4 नवम्बर को उद्घाटन के पश्चात् से 10 नवंबर तक प्रतिदिन साहित्यप्रेमियों, कलारसिकों और सुधीजनों के अवलोकनार्थ खुली रहेगी। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतर्गत प्रतिदिन संध्या 7:00 बजे नाट्य, नृत्य एवं संगीत की मनोरम प्रस्तुतियां होंगी।

समारोह के सारस्वत आयोजनों के अंतर्गत कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा भारतीय संस्कृति की दीपशिखा कालिदास पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी के दो सत्र एवं विक्रम विश्वविद्यालय की कालिदास समिति द्वारा राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के चार सत्रों का आयोजन किया जाएगा। समारोह के दौरान संस्कृत कवि समवाय के अंतर्गत संस्कृत काव्यपाठ, पंडित सूर्यनारायण व्यास व्याख्यानमाला एवं महाकवि कालिदास व्याख्यानमाला के अंतर्गत अनेक महत्वपूर्ण व्याख्यान होंगे। विद्यार्थियों की स्पर्धाओं के अंतर्गत अंतरविश्वविद्यालयीन संस्कृत वाद विवाद, राज्य स्तर की अंतर महाविद्यालयीन कालिदास काव्य पाठ और हिंदी वाद विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन होगा। 

यह जानकारी देते हुए विक्रम विश्वविद्यालय की कालिदास समिति के सचिव प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा एवं कालिदास संस्कृत अकादमी के प्रभारी निदेशक डॉ संतोष पंड्या ने बताया कि विद्यार्थियों के लिए अखिल भारतीय स्तर की अंतरविश्वविद्यालयीन कालिदास संस्कृत वाद विवाद प्रतियोगिता का विषय कालिदासस्य काव्येषु राजवैभववर्णनम्, संदृश्यते यथा स्पष्टं न तथा लोकजीवनम् रखा गया है। राज्य स्तर की अंतर महाविद्यालयीन कालिदास हिंदी वाद विवाद प्रतियोगिता का विषय महाकवि कालिदास की रचनाओं में राजवैभव का स्पष्ट वर्णन हुआ है, लोकजीवन का नहीं, रखा गया है। राज्य स्तर की कालिदास काव्य पाठ  प्रतियोगिता में विद्यार्थियों को श्लोकों का चयन महाकवि कालिदास की अमर कृति मालविकाग्निमित्रम् से करना होगा।

अकादमिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों में देश के बारह से अधिक राज्यों के विद्वान, कलाकार, संस्कृतिकर्मी, शिक्षक, शोधकर्ता और विद्यार्थी भाग लेने के लिए उज्जैन आ रहे हैं। कालिदास संस्कृति अकादमी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के दो सत्र विश्वविद्यालय मार्ग, उज्जैन स्थित अभिरंग नाट्यगृह, कालिदास संस्कृत अकादमी में होंगे, जिनका विषय है भारतीय संस्कृति की दीपशिखा कालिदास। कालिदास समिति द्वारा संयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के चार सत्रों का आयोजन में होगा। इनमें से एक विशेष सत्र विक्रम कालिदास पुरस्कार विजेता शोधपत्रों की प्रस्तुति का होगा। 

राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में भाग लेने के लिए देश के विभिन्न प्रांतों के प्राध्यापक, शिक्षाविद् एवं शोधकर्ताओं से कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र आमंत्रित किए गए हैं। शोध पत्र प्रस्तुतकर्ता पंजीयन एवं शोध पत्र प्रेषण के लिए कालिदास समिति कार्यालय, सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान, विक्रम विश्वविद्यालय, देवास मार्ग, उज्जैन में सम्पर्क कर सकते हैं।

शोध पत्र वाचन के लिए राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के चार सत्र अभिरंग नाट्यगृह, कालिदास संस्कृत अकादमी, कोठी रोड, उज्जैन में निम्नानुसार तिथियों एवं समय पर होंगे :


राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी 

प्रथम सत्र 5 नवम्बर 2022 दोपहर 2:30

द्वितीय सत्र 6 नवम्बर 2022 दोपहर 2:30 बजे 

तृतीय सत्र 7 नवम्बर 2022 दोपहर 2:30 बजे 

(विक्रम कालिदास पुरस्कार के लिए चयनित शोध पत्रों की प्रस्तुति)

चतुर्थ सत्र 8 नवम्बर 2022 प्रातः 10:00 बजे

संगोष्ठी स्थान : 

अभिरंग नाट्यगृह

कालिदास संस्कृत अकादमी

विश्वविद्यालय मार्ग, उज्जैन

शोध पत्र प्रस्तुति हेतु पंजीयन के लिए सम्पर्क : 

प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा 

सचिव 

कालिदास समिति 

कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक

विक्रम विश्वविद्यालय

 सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान

 देवास रोड 

उज्जैन मध्य प्रदेश

पिन कोड 456010


ईमेल : 

shailendrakumarsharmaprof@gmail.com


विक्रम पत्रिका के कालिदास विशेषांक के लिए लिंक पर जाएं :


20221026

All India Kalidas Festival 2022 : National Seminar |अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : राष्ट्रीय संगोष्ठी

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 4 से 10 नवम्बर 2022 : उज्जैन 

सारस्वत आयोजन : कालिदास साहित्य के विविध पक्षों पर राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के चार सत्र

अखिल भारतीय अंतरविश्वविद्यालयीन संस्कृत वादविवाद के साथ राज्य स्तरीय अन्तरमहाविद्यालयीन कालिदास काव्य पाठ और हिंदी वादविवाद प्रतियोगिताएँ 



समस्त सारस्वत एवं सांस्कृतिक आयोजनों में आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थनीय है। 

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : आमंत्रण पत्र 

https://drive.google.com/file/d/1Ahh-k1yQ6XrBdobWiISB9cFFEdqbEsGV/view?usp=drivesdk


मध्यप्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन का संयुक्त आयोजन  अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 दिनांक 4 से 10 नवम्बर तक सम्पन्न होगा। समारोह के सारस्वत आयोजनों के अंतर्गत विक्रम विश्वविद्यालय की कालिदास समिति द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी के चार सत्रों के साथ विद्यार्थियों की स्पर्धाओं के अंतर्गत अंतरविश्वविद्यालयीन संस्कृत वाद विवाद, राज्य स्तर की अंतर महाविद्यालयीन कालिदास काव्य पाठ और हिंदी वाद विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन होगा। 


अखिल भारतीय स्तर की अंतरविश्वविद्यालयीन कालिदास संस्कृत वाद विवाद प्रतियोगिता का विषय  कालिदासस्य काव्येषु राजवैभववर्णनम्, संदृश्यते यथा स्पष्टं न तथा लोकजीवनम् रखा गया है। राज्य स्तर की अंतर महाविद्यालयीन कालिदास हिंदी वाद विवाद प्रतियोगिता का विषय है, महाकवि कालिदास की रचनाओं में राजवैभव का स्पष्ट वर्णन हुआ है, लोकजीवन का नहीं। राज्य स्तर की कालिदास काव्य पाठ  प्रतियोगिता में विद्यार्थियों को श्लोकों का चयन महाकवि कालिदास की अमर कृति मालविकाग्निमित्रम् से करना होगा।


यह जानकारी देते हुए विक्रम विश्वविद्यालय की कालिदास समिति के सचिव एवं कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा Shailendrakumar Sharma  ने बताया कि अकादमिक आयोजनों में देश के दस से अधिक राज्यों के विद्वान, शिक्षक, शोधकर्ता और विद्यार्थी भाग लेने के लिए उज्जैन आ रहे हैं। राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में भाग लेने के लिए देश के विभिन्न प्रांतों के प्राध्यापक, शिक्षाविद् एवं शोधकर्ताओं से कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र आमंत्रित किए गए हैं। 

शोध संगोष्ठी के चार सत्रों का आयोजन विश्वविद्यालय मार्ग, उज्जैन स्थित अभिरंग नाट्यगृह, कालिदास संस्कृत अकादमी में होगा। इनमें से एक विशेष सत्र विक्रम कालिदास पुरस्कार विजेता शोधपत्रों की प्रस्तुति का होगा। शोध पत्र प्रस्तुतकर्ता पंजीयन एवं शोध पत्र प्रेषण के लिए कालिदास समिति कार्यालय, सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान, विक्रम विश्वविद्यालय, देवास मार्ग, उज्जैन में सम्पर्क कर सकते हैं। 






Kalidas


=====


अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : 4 से 10 नवम्बर 2022

मध्यप्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन का संयुक्त आयोजन 

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : सारस्वत आयोजन 

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 के समस्त सांस्कृतिक एवं सारस्वत आयोजनों में आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थनीय है। राष्ट्रीय संगोष्ठी के साथ स्पर्धाओं के अंतर्गत संस्कृत वाद विवाद, संस्कृत श्लोक पाठ और हिंदी वाद विवाद में सहभागिता का अनुरोध है। विस्तृत जानकारी के लिए लिंक पर जाएँ। 


https://www.facebook.com/100001476965950/posts/5669747819751061/


राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी :

सुधी प्राध्यापक / शिक्षाविद् / शोधकर्ता कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र प्रस्तुति के लिए सादर आमंत्रित हैं।शोध पत्र साहित्य, कला, वास्तु, संस्कृति, इतिहास, पुरातत्व, विज्ञान, पर्यावरण, दर्शन,  जीवन मूल्य, शिक्षा,  समाजविज्ञान, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र आदि के परिप्रेक्ष्य में कालिदास साहित्य के किसी पक्ष से जुड़े हो सकते हैं। सभी सुधीजन कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र प्रस्तुति के लिए सादर आमंत्रित हैं।


शोध पत्र वाचन के लिए राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के चार सत्र अभिरंग नाट्यगृह, कालिदास संस्कृत अकादमी, कोठी रोड, उज्जैन में निम्नानुसार तिथियों एवं समय पर होंगे :


राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी 

प्रथम सत्र 5 नवम्बर 2022 दोपहर 2:30

द्वितीय सत्र 6 नवम्बर 2022 दोपहर 2:30 बजे 

तृतीय सत्र 7 नवम्बर 2022 दोपहर 2:30 बजे 

(विक्रम कालिदास पुरस्कार के लिए चयनित शोध पत्रों की प्रस्तुति)

चतुर्थ सत्र 8 नवम्बर 2022 प्रातः 10:00 बजे

संगोष्ठी स्थान : 

अभिरंग नाट्यगृह

कालिदास संस्कृत अकादमी

विश्वविद्यालय मार्ग, उज्जैन



शोध पत्र प्रस्तुति हेतु पंजीयन के लिए सम्पर्क : 

प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा 

सचिव 

कालिदास समिति 

कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक

विक्रम विश्वविद्यालय

 सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान

 देवास रोड 

उज्जैन मध्य प्रदेश

पिन कोड 456010


ईमेल : 

shailendrakumarsharmaprof@gmail.com



विक्रम पत्रिका के कालिदास विशेषांक के लिए लिंक पर जाएं :




20211113

All India Kalidas Samaroh Invitation | अखिल भारतीय कालिदास समारोह : आमंत्रण

अखिल भारतीय कालिदास समारोह : 15 - 21 नवम्बर 2021 

समस्त सारस्वत एवं सांस्कृतिक आयोजनों में आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थनीय है। 


राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी : शोध पत्र प्रस्तुति के लिए आमंत्रण 

https://drshailendrasharma.blogspot.com/2021/11/all-india-kalidas-festival-national.html







































वागर्चन





वागर्चन : अखिल भारतीय कालिदास समारोह के अवसर पर शनिवार महाकवि कालिदास की आराध्या भगवती गढ़कालिका का पूजन एवं विविध स्तोत्रों का पाठ गढ़कालिका मंदिर पर किया गया और समारोह के निर्विघ्न सम्पन्न होने की प्रार्थना की गई। 


राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी

15 से 21 नवम्बर 2021, उज्जैन 

मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन और कालिदास संस्कृत अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद द्वारा अखिल भारतीय कालिदास समारोह का आयोजन दिनांक 15 नवंबर से 21 नवंबर 2021 तक उज्जैन में किया जा रहा है। इस अवसर पर कालिदास साहित्य के विविध पक्षों से जुड़े शोध पत्रों की प्रस्तुति के लिए राष्ट्रीय संगोष्ठी के चार सत्र कालिदास समिति, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा अभिरंग नाट्यगृह, कालिदास संस्कृत अकादमी में आयोजित किए जाएंगे।

प्रथम सत्र : दिनांक 16 नवम्बर 2021, दोपहर 2:30 बजे 

द्वितीय सत्र : दिनांक 17 नवम्बर 2021, दोपहर 3:00 बजे

तृतीय सत्र : विक्रम कालिदास पुरस्कार के लिए चयनित शोध पत्र  : दिनांक 18 नवम्बर 2021, दोपहर 3:00 बजे

चतुर्थ सत्र : दिनांक 19 नवम्बर 2021, प्रातः 10:00

शोध पत्र संगोष्ठी के इन महत्त्वपूर्ण सत्रों के लिए सुधी प्राध्यापकों, साहित्यकारों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों से कालिदास साहित्य से सम्बद्ध विषयों पर शोध पत्र आमंत्रित हैं। शोध पत्र साहित्य, कला, वास्तु, संस्कृति, इतिहास, पुरातत्व, विज्ञान, पर्यावरण, दर्शन,  जीवन मूल्य, शिक्षा,  समाजविज्ञान, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र आदि के परिप्रेक्ष्य में कालिदास साहित्य के किसी पक्ष से जुड़े हो सकते हैं। 

सभी सुधीजन कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र प्रस्तुति के लिए सादर आमंत्रित हैं।

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
आचार्य एवं कुलानुशासक
हिंदी विभागाध्यक्ष 
सचिव कालिदास समिति
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

विशेष जानकारी एवं पंजीयन के लिए संपर्क करें :

कालिदास समिति कार्यालय,

सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान, विक्रम विश्वविद्यालय, देवास रोड  (ऋषि नगर पेट्रोल पंप के सामने) उज्जैन

मोबाइल : 9630447895

मोबाइल : 9926396081



विक्रम पत्रिका के कालिदास विशेषांक के लिए लिंक पर जाएं







20211111

All India Kalidas Festival | National Seminar |अखिल भारतीय कालिदास समारोह | राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 

राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी

सादर आमंत्रण


15 से 21 नवम्बर 2021, उज्जैन 

मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन और कालिदास संस्कृत अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद द्वारा अखिल भारतीय कालिदास समारोह का आयोजन दिनांक 15 नवंबर से 21 नवंबर 2021 तक उज्जैन में किया जा रहा है। इस अवसर पर कालिदास साहित्य के विविध पक्षों से जुड़े शोध पत्रों की प्रस्तुति के लिए राष्ट्रीय संगोष्ठी के चार सत्र कालिदास समिति, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा अभिरंग नाट्यगृह, कालिदास संस्कृत अकादमी में आयोजित किए जाएंगे।

प्रथम सत्र : दिनांक 16 नवम्बर 2021, दोपहर 2:30 बजे 

द्वितीय सत्र : दिनांक 17 नवम्बर 2021, दोपहर 3:00 बजे

तृतीय सत्र : विक्रम कालिदास पुरस्कार के लिए चयनित शोध पत्र  : दिनांक 18 नवम्बर 2021, दोपहर 3:00 बजे

चतुर्थ सत्र : दिनांक 19 नवम्बर 2021, प्रातः 10:00

शोध पत्र संगोष्ठी के इन महत्त्वपूर्ण सत्रों के लिए सुधी प्राध्यापकों, साहित्यकारों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों से कालिदास साहित्य से सम्बद्ध विषयों पर शोध पत्र आमंत्रित हैं। शोध पत्र साहित्य, कला, वास्तु, संस्कृति, इतिहास, पुरातत्व, विज्ञान, पर्यावरण, दर्शन,  जीवन मूल्य, शिक्षा,  समाजविज्ञान, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र आदि के परिप्रेक्ष्य में कालिदास साहित्य के किसी पक्ष से जुड़े हो सकते हैं। 

सभी सुधीजन कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र प्रस्तुति के लिए सादर आमंत्रित हैं।




अखिल भारतीय कालिदास समारोह के अवसर पर आयोजित समस्त सांस्कृतिक एवं सारस्वत आयोजनों में आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थनीय है।


प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

सचिव, कालिदास समिति एवं 

कुलानुशासक

कला संकायाध्यक्ष

विक्रम विश्वविद्यालय

उज्जैन मध्यप्रदेश

मोबाइल : 9826047765 


विशेष जानकारी एवं पंजीयन के लिए संपर्क करें :

कालिदास समिति कार्यालय,

सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान, विक्रम विश्वविद्यालय, देवास रोड  (ऋषि नगर पेट्रोल पंप के सामने) उज्जैन

मोबाइल : 9630447895

मोबाइल : 9926396081


विक्रम पत्रिका के कालिदास विशेषांक के लिए लिंक पर जाएं

https://drshailendrasharma.blogspot.com/2020/11/vikram-kalidas-special-number-editor.html










20201213

कालिदास मीमांसा : पुस्तक समीक्षा - प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा | Kalidas Mimansa : Book Review Prof. Shailendra Kumar Sharma

कालिदास मीमांसा : महाकवि के रचना विश्व पर दृष्टिपूर्ण मंथन

- प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा


संपूर्ण भारतीय साहित्य ही नहीं, विश्व साहित्य में महाकवि कालिदास अद्वितीय रचनाकार के रूप में सुस्थापित हैं। वे अनेक शताब्दियों से देश के असंख्य कवियों को अजस्र प्रेरणा दे रहे हैं। क्या व्यक्ति और परिवार जीवन, क्या समाज जीवन, क्या राष्ट्र जीवन और क्या विश्व जीवन -  महाकवि की दृष्टि से कुछ भी ओझल नहीं है। कनिष्ठिकाधिष्ठित कालिदास: ऐसे ही नहीं कहा गया और उनकी चर्चा के बाद  अनामिका को सार्थक होना ही था। सदियों से उनके साहित्य का मंथन विश्व के अनेक मनीषियों ने अपनी - अपनी दृष्टियों से किया है। इसी शृंखला में महाकवि के विराट रत्नराशिमय साहित्य सागर और काव्य सौंदर्य के अध्ययन - आकलन - विश्लेषण की दिशा में यशस्वी विद्वान पद्मश्री डॉ केशवराव मुसलगाँवकर का ग्रन्थ कालिदास मीमांसा महत्त्वपूर्ण उपलब्धि बना है। पुस्तक का सुरुचिपूर्ण संपादन उनके सुपुत्र डॉ राजेश्वरशास्त्री मुसलगाँवकर ने किया है। लेखक ने इस बृहद् ग्रंथ के माध्यम से पूरी परम्परा में अनन्य महाकवि के गुणों का अन्वेषण और उसके साहित्य सागर में मग्न होकर बिखरे हुए रत्नों को ढूंढ निकालने का अथक परिश्रम किया है और इसमें वे सफल भी रहे हैं।


                  पुस्तक : कालिदास मीमांसा

लेखक - पद्मश्री डॉ केशवराव मुसलगाँवकर

संपादक – डॉ राजेश्वरशास्त्री मुसलगाँवकर


ग्रन्थ के संपादकीय में डॉ राजेश्वरशास्त्री मुसलगाँवकर ने कालिदास और कालिदासीय काव्य की मीमांसा की जरूरत की ओर सार्थक संकेत किया है -  जो अध्येता काव्य की सतह पर ही संतरण करता है तथा उसके अंतर में पैठने की योग्यता नहीं रखता वह कथमपि अपने उत्तरदायित्व का पूर्ण निर्वाह नहीं कर सकता। किसी भी कवि कर्म की दृढ़ परीक्षा किए बिना, , मार्मिक मीमांसा किए बिना, किसी काव्य के गुण दोष का पूर्णज्ञान हमें नहीं हो सकता। ….. मीमांसा की भी इसलिए आवश्यकता है कि सामान्य कवि तथा महाकवि के कर्म का अंतर स्पष्टतः ज्ञात हो सके और इसी कार्य के संपादन की योग्यता से व्यक्ति ही आलोचक का गौरवपूर्ण पद प्राप्त कर सकता है। ग्रंथकार पद्मश्री मुसलगांवकर आलोचक की इस कसौटी पर पूरी तरह खरे उतरे हैं। 


महाकवि कालिदास की रचना शक्ति के वैशिष्ट्य को कई आलंकारिकों, कवियों और सुभाषितकारों ने विविध रूपों में प्रतिपादित किया है। इस ग्रन्थ के माध्यम से डॉ मुसलगांवकर ने उस महनीय परंपरा से स्वयं को जोड़ते हुए रस, ध्वनि, रीति, अलंकार आदि के महत्त्वपूर्ण उदाहरणों के साक्ष्य पर कालिदास की अनुपम साहित्यिक उपलब्धियों की पड़ताल की है। आचार्य दंडी ने मधुद्रव से लिप्त, महाकवि की निर्विषया वाणी और वैदर्भी रीति की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। ग्रंथकार भी उनके स्वर में स्वर मिलाते हुए कहता है, कालिदास उन महाकवियों में से हैं, जिनकी कोयल के शब्द के समान कर्णेन्द्रिय को सुख देने वाली, रस - अलंकार आदि से युक्त, चमत्कार पैदा करने वाली उक्तियों से अथवा कविता समूहों से विभूषित मुखों में सरस्वती अपनी वीणा बजाती सी सदैव शोभित होती है।


लेखक ने प्रारंभिक अनुच्छेद महाकवित्व कितना सुकर, कितना दुष्कर! के माध्यम से कविता रूपी तपश्चर्या पर खरे उतरे कालिदास के वैशिष्ट्य का हृदयग्राही निरूपण किया है। लेखक ने कालिदास को द्रष्टा और स्रष्टा के रूप में परखा है तो उनके क्रांतिदर्शत्व की भी पड़ताल की है। भारतीय काव्यशास्त्राचार्यों की दृष्टि में कवि के लिए दर्शन और वर्णन दोनों ही अत्यंत आवश्यक गुण हैं। उनका कथन है कि द्रष्टा होने पर भी कोई व्यक्ति तब तक कवि नहीं हो सकता, जब तक वह अपने प्रातिभचक्षु से अनुभूत दर्शन को कमनीय शब्दों में प्रकट नहीं करता। क्योंकि कवि - कर्म में दर्शन और वर्णन दोनों का ही समन्वय रहता है। लेखक ने कालिदास के काव्य से कतिपय उदाहरणों के साक्ष्य पर प्रतिपादित किया है कि अनुरूप अर्थ का अर्थ के अनुरूप शब्द प्रयोग करने की योग्यता महाकवि कालिदास में होने से ही वे आज अखिल विश्व के सहृदय पाठकों के कंठाभरण बने हुए हैं। उनके काव्यों में शब्द और अर्थ दोनों की अन्यूनानतिरिक्त परस्पर स्पर्धापूर्वक मनोहारिणी श्लाघनीय स्थिति देखने को मिलती है। निश्चित ही उस आस्वादमय - रस - भावरूप अर्थतत्व को प्रवाहित करने वाली कालिदास की वाणी उसके अलौकिक, प्रतिभासमान, प्रतिभा (अपूर्ववस्तु निर्माणक्षमा प्रज्ञा) के वैशिष्ट्य को प्रकट करती है। इसीलिए नानाविध कवि परंपराशाली इस संसार में कालिदास आदि दो - तीन अथवा पाँच – छह ही महाकवि गिने जाते हैं। आचार्य आनंदवर्धन के इस हृदयोद्गार का समर्थन लोचनकार आचार्य अभिनव गुप्त ने भी किया है। अभिव्यक्तेन स्फुरता प्रतिभाविशेषेन निमित्तेन  महाकवित्वगणनेति यावत् अर्थात् अभिव्यक्त या स्फुरित होते हुए प्रतिभा - विशेषरूप निमित्त से महाकवित्व की गणना (महाकवियों में गणना) होती है। 


लेखक की दृष्टि में कालिदास के महाकवि होने का एक कारण और है, उनका ऋषि तुल्य क्रांतदर्शित्व। सच्चा कवि क्रांतदर्शी होता है - कवयः क्रांतदर्शिनः। व्यक्तिविवेककार महिमभट्ट के साक्ष्य पर डॉ मुसलगांवकर संकेत करते हैं कि इने गिने भाग्यशालियों की परंपरा में कालिदास को ही पांक्तेय होने का गौरव आज तक प्राप्त है, जिनकी क्रांतिदर्शिता की जड़ें सहस्रों वर्षों की राष्ट्रीय - सांस्कृतिक परंपरा में गहराई तक गई हुई होती हैं और तद्जन्य होने वाली राष्ट्र की समग्रचेतना को अभिव्यक्ति देने की कला पर उनका विलक्षण अधिकार होता है। 


कालिदास के समय को लेकर विद्वानों में पर्याप्त मतभेद रहा है। लेखक डॉ मुसलगांवकर ने उनका आविर्भाव काल चौथी शताब्दी के उत्तरार्ध या पांचवी शताब्दी के आरंभ को माना है। कालिदास के नाम और उनके जीवन से जुड़े विभिन्न गल्पों की सच्चाई पर भी लेखक ने पर्याप्त मंथन किया है। यहां लेखक का स्पष्ट आग्रह है कि कृती पाठक अन्वेषण करने जैसी बेकार बातों में उलझना नहीं चाहते और नहीं हम उन्हें उलझाना चाहते हैं और हमारे अभीष्ट कवि को भी यह रुचिकर नहीं है। कृतीपाठक को छककर कालिदास की कविता - कामिनी के सौंदर्य - रस का पान कराना चाहते हैं। फिर लेखक ने विक्रमोर्वशीय के पुरूरवा - विदूषक के संवाद के साक्ष्य पर निष्कर्ष निकाला है कि  कालिदास स्वयं कृती को ही धन्य मानते हैं। यहीं पर डॉ मुसलगांवकर ने तत्त्वान्वेषण की विडम्बना से मुक्त होने का आग्रह किया है, कवियों की डांट फटकार के बावजूद दुनिया से तत्त्वान्वेषण का कारोबार बंद नहीं हो गया है, वह आज भी निरंतर गतिशील है। निश्चय ही इससे कवि की अंतरात्मा को कष्ट होता होगा। इसलिए हम भी इस तत्त्वान्वेषण के झगड़े में न पड़कर इतना ही कहना चाहते हैं कि कवि के गुप्तकालीन काव्यों में तरलित होती हुई उसकी प्रतिभा को देखकर भी उसे न पहचानने का कोई बहाना न करें इसी से उसे संतोष होगा। 


ग्रंथ का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय कविता कामिनी के शृंगार पर केंद्रित है। लेखक ने यहाँ ऐसे तमाम विषयों का उल्लेख किया है, जिनका कवि ने अपनी कविता कामिनी के शृंगार के लिए उपयोग किया है। लेखक ने अनेक प्रसंगों के साक्ष्य पर उनकी बहुज्ञता प्रतिपादित की है। उदाहरण के लिए उदात्त आदि स्वरों के उल्लेख, अश्वमेध यज्ञ, अध्यात्मविद्या की ओर प्रवृत्ति से सिद्ध होता है कि कालिदास की व्युत्पत्ति वेद और वेदांग में बड़ी गहरी है। इसी तरह कालिदास स्मृतियों द्वारा प्रस्तुत राजधर्म, योगशास्त्र द्वारा प्रतिपादित ध्यान, आसन आदि, मीमांसाशास्त्रीय न्याय एवं धर्म के वास्तविक स्वरूप के निरूपण में भी निष्णात हैं। यहीं पर लेखक ने अनेकविध उदाहरणों से महाकवि कालिदास की सांख्यशास्त्र, न्याय एवं वैशेषिक दर्शन, गृह्यसूत्र, राजनीतिशास्त्र, कामशास्त्र, नाट्यशास्त्र, आयुर्वेद, धनुर्वेद, सामुद्रिक शास्त्र, संगीत, चित्रकला, इतिहास एवं भूगोल में गति का सविस्तार परिचय दिया है। 


लेखक ने महाकवि की कला सम्बन्धी मान्यताओं का भी सविस्तार निरूपण किया है। लेखक की दृष्टि में महाकवि कालिदास की कला विषयक मान्यताएं त्रिकालाबाधित और सार्वत्रिक मान्यता प्राप्त की हुई हैं। कला सृजन में विनिवेशन, अन्यथाकरण और अन्वयन की महिमा से कालिदास न केवल अवगत थे, वरन उनके लेखन से स्पष्ट संकेत मिलता है कि वे स्वयं बड़े कलानिष्णात थे। इसी प्रकार विभिन्न रचनाओं में भावाभिनिवेश, भावानुप्रवेश और यथालिखितानुभाव जैसे शब्दों का अर्थपूर्ण प्रयोग चित्रकला, नृत्य और अभिनय कला के क्षेत्र में कालिदास की विशेषज्ञता को सिद्ध करता है।


लेखक ने कालिदास की सातों रचनाओं ऋतुसंहार, कुमारसम्भव, मेघदूत, रघुवंश, मालविकाग्निमित्र, विक्रमोर्वशीय और शाकुन्तल के वैशिष्ट्य की विशद पड़ताल इस ग्रंथ में की है। इन रचनाओं से जुड़ा हुआ कोई भी महत्वपूर्ण पक्ष लेखक की आंखों से ओझल नहीं है। चाहे ऋतुसंहार में अनुस्यूत महाकवि की मार्मिक निरीक्षण सृष्टि और उज्ज्वल नैसर्गिक प्रतिभा हो, चाहे मेघदूत की कलात्मक चारुता और मेघाच्छन्न प्रकृति के साथ प्राणिमात्र के अद्भुत रहस्यमय सम्बन्धों का अंकन या फिर कुमारसंभव के माध्यम से कालिदास द्वारा अपने जीवन दर्शन को विस्तृत कथा फलक पर अंकित करने का समर्थ प्रयत्न हो अथवा रघुवंश के माध्यम से राग और विराग, भोग और त्याग का संतुलित चित्र अंकित करने का प्रयास – ये सभी पहलू इस ग्रंथ में सहज ही उद्घाटित हो गए हैं। इसी प्रकार ग्रंथकार ने कालिदास की नाट्यत्रयी को उनकी नाट्य कला के क्रमशः विकासमान होने के क्रम में दिखाया है। वे लिखते हैं,  मालविकाग्निमित्रम् में कवि की नाट्यकला का अंकुर प्रस्फुटित होकर विक्रमोर्वशीय में वह पुष्पित होता हुआ अभिज्ञानशाकुंतल में पूर्ण रूप से संस्कृत नाट्यकला के मधुरतम फल के रूप में परिणत हुआ है। तीनों नाटकों की संविधानक रचना, पात्र – स्वभाव चित्रण, रस व्यंजना आदि की गम्भीर विवेचना इस ग्रंथ की उपलब्धि है। 


लेखक की दृष्टि में कालिदास का काव्य उत्तरकालीन सभी काव्यों से, सभी काव्य - क्षेत्रों में, अतिशय (बढ़ा – चढ़ा) है - किं बहुना अतिशेते सर्वमतो विशिष्ट:, इसलिए उनका काव्य विशिष्ट है। एक प्रकार से वे अपने काव्यप्रभाव से उन उत्तरवर्ती कवियों पर शासन करते हैं, इसलिए वे शिष्टकृत् भी हैं - शिष्टं शासनं तत् करोतीति शिष्टकृत्, काव्य कवि की आत्मा से प्रसूत होने से एक प्रकार से वह आत्मजन्मा होता है। (आत्मनो जन्म यस्य) उन दोनों में अभेद होता है। उसका काव्य कवि की चैतन्यमूर्ति होती है। दोनों एकाकार होते हैं। जब वह समाधिस्थ होता है, उसकी चित्तवृत्ति बाह्य विषयों से हटकर अंतर्मुखी हो जाती है। ऐसी दशा में कहां कवि कालिदास और कहां उसका प्रसूत काव्य। द्वैतभावना से मुक्त।


इस ग्रन्थ के माध्यम से लेखक ने स्थान स्थान पर कतिपय विद्वानों की सीमाबद्ध मान्यताओं का भी तर्कपूर्वक खंडन किया है। जैसे एक मान्यता रही है कि कालिदास कवि हैं, नाटककार नहीं। लेखक की दृष्टि में संस्कृत साहित्य का यह शलाका पुरुष मूर्धन्य नाटककार तथा कवि दोनों ही है। इसकी पुष्टि विक्रमोर्वशीय और शाकुंतल में रचित कथावस्तु विनियोग द्वारा हो जाती है। उन्होंने जीवन के गत्यात्मक चित्र का निर्वाह बड़ी कुशलता से किया है। इस दृष्टि से उत्तरकालीन विशाखदत्त नाटककार ही उनके समकक्ष प्रतीत होता है। भवभूति को जिन्होंने दांपत्य जीवन के आदर्श बीज को करुण रस से सींच कर उत्तररामचरित में पल्लवित किया है, नाटकीय दृष्टि से सफल नाटककार नहीं कहा जा सकता। महाकवि कालिदास की एक नाटककार के रूप में सफलता की वजह है कि वे अपने कवित्व के भार से नाटक की कथावस्तु को कहीं भी आक्रांत कर, गतिहीन नहीं करते हैं। विक्रमोर्वशीय के चतुर्थ अंक में अनुस्यूत पुरूरवा की भावात्मक उक्तियाँ भी प्रसंग के अनुरूप ही हैं, क्योंकि वहां पुरूरवा की विक्षिप्त दशा का संकेत देना कवि का अभीष्ट है।

परवर्ती साहित्य पर  महाकवि कालिदास के प्रभाव का भी पर्याप्त निरूपण इस ग्रंथ में किया गया है। भवभूति, हर्ष, राजशेखर, बिल्हण, माघ जैसे अनेक रचनाकारों ने कालिदास के दाय को किसी न किसी रूप में अंगीकार किया है। 


कालिदासीय साहित्य के सूक्ष्म पर्यालोचन के आधार पर लेखक ने संकेत दिया है कि महाकवि  ने अनेक शास्त्रों का अध्ययन तथा विविध विषयों का सूक्ष्म अवलोकन कर व्युत्पन्नता प्राप्त कर ली थी। धर्म, दर्शन, राजतंत्र, शिक्षा, नाट्यकला, चित्रकला आदि अनेक विषयों पर उन्होंने मननपूर्वक तद्विषयक अपने मत को निर्धारित करके अपने ग्रंथों में उनका यथास्थान उपयोग किया है। लेखक ने उनके काव्य में अंतर्निहित समन्वयवादी दृष्टिकोण को अनेक उदाहरणों के साक्ष्य पर स्पष्ट किया है। महाकवि कालिदास के लोकचरित्र, राजा और राजधर्म, यज्ञ कर्म, शिक्षा, व्रत - नियम, प्रसाधन, कहावतों, उक्ति वैचित्र्य आदि अनेक पक्षों की विशद चर्चा ग्रन्थकार ने की है। 


ग्रंथकार ने प्रारंभ में आचार्य श्रीनिवास रथ और डॉ विंध्येश्वरीप्रसाद मिश्र विनय द्वारा प्रणीत महाकवि कालिदास पर केंद्रित दो रचनाओं क्रमशः कालिदास कविता एवं नन्वहं कालिदासो ब्रवीमि को प्ररोचना के रूप में प्रस्तुत किया है, जो महाकवि की महिमा का सरस अनुकीर्तन करती हैं। 


ग्रंथ के अंत में परिशिष्ट में लेखक ने कालिदास के विश्वप्रसिद्ध सुभाषितों का संचयन किया है, जो काव्य रसिकों कालिदास साहित्य के जिज्ञासुओं और शोधकर्ताओं के लिए उपादेय सिद्ध होंगे। 



विगत लगभग छह दशकों से लेखनरत ग्रंथकार डॉ मुसलगांवकर ने अपने पिता और गुरु पं महामहोपाध्याय सदाशिव शास्त्री मुसलगांवकर से व्याकरण, न्याय, धर्मशास्त्र और मीमांसा तथा पं महामहोपाध्याय हरि रामचन्द्र शास्त्री दिवेकर से काव्यशास्त्र का गहन अध्ययन किया था। वे मीमांसकों की परंपरा के समर्थ  संवाहक हैं। उन्होंने तीस से अधिक ग्रंथों का प्रणयन किया है, जिनमें प्रमुख हैं संस्कृत नाट्य मीमांसा - दो खण्डों में, रस मीमांसा, नाट्यशास्त्र पर्यालोचन, आधुनिक संस्कृत काव्य परम्परा, संस्कृत महाकाव्य की परंपरा, कालिदास मीमांसा आदि। इसके साथ ही उन्होंने अनेकानेक टीकाओं और विवेचनात्मक ग्रन्थों से जिज्ञासुजनों और शोधकर्ताओं को महत्त्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध करवाई है। इनमें प्रमुख हैं - शिशुपालवधमहाकाव्यम्, हर्षचरितम्, दशरूपकम्, नैषधीयचरितम्, विक्रमांकदेवचरितम्, रघुवंशम् आदि। उन्होंने प्रसिद्ध विद्वान डॉ वी वी मिराशी कृत ग्रंथ भवभूति का मराठी से हिंदी में अनुवाद किया है। उनके द्वारा प्रणीत संस्कृत व्याकरण प्रवेशिका का लाभ अनेक विद्यार्थी ले रहे हैं। उनका योगसूत्र पर सविवेचन भाष्य पूर्णता पर है, जिसके 2000 से अधिक पृष्ठ वे हाथ से लिख चुके हैं। इसका प्रकाशन चौखंभा प्रकाशन, वाराणसी से होगा।  उनके यशस्वी सुपुत्र डॉ. राजेश्वर शास्त्री मुसलगांवकर स्वयं अनेक ग्रन्थों के प्रणयनकर्ता और मीमांसक हैं।


समग्रतः डॉ मुसलगांवकर का ग्रंथ कालिदास मीमांसा महाकवि के कृतित्व के विभिन्न पहलुओं को उद्घाटित करने में तो सफल है ही, कई नवीन स्थापनाओं के लिए भी उल्लेखनीय बन पड़ा है। लेखक ने कालिदास को भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों के आलोक में देखा परखा है और उनकी रचनात्मक उपलब्धियों की बहुविध मीमांसा कर एक नई दिशा का भी सन्धान किया है। कालिदास साहित्य के जिज्ञासुओं से लेकर विशेषज्ञों तक सभी इस पुस्तक से लाभन्वित होंगे, ऐसी आशा व्यर्थ नहीं होगी। 


पुस्तक : कालिदास मीमांसा

लेखक : डॉ. केशवराव मुसलगाँवकर 

संपादक : डॉ. राजेश्वरशास्त्री मुसलगाँवकर

प्रकाशक : चौखंबा संस्कृत संस्थान, वाराणसी 

मूल्य :  रुपए 525

पृष्ठ :  324 

-----------------------------------------------

प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा 
आचार्य एवं अध्यक्ष 
हिंदी अध्ययनशाला 
कुलानुशासक 
विक्रम विश्वविद्यालय 
उज्जैन मध्य प्रदेश

Featured Post | विशिष्ट पोस्ट

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : वैचारिक प्रवाह से जोड़ती सार्थक पुस्तक | Mahatma Gandhi : Vichar aur Navachar - Prof. Shailendra Kumar Sharma

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : पुस्तक समीक्षा   - अरविंद श्रीधर भारत के दो चरित्र ऐसे हैं जिनके बारे में  सबसे...

हिंदी विश्व की लोकप्रिय पोस्ट