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20201025

शक्ति उपासना : प्रतीकार्थ और चिंतन - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

सृष्टि का कोई भी कण अछूता नहीं है शक्ति से – प्रो शर्मा 

अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ शक्ति आराधना के प्रतीकार्थ और चिंतन पर गहन मंथन   


प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश - दुनिया के विद्वान वक्ताओं ने भाग लिया। यह संगोष्ठी शक्ति उपासना : प्रतीकार्थ और चिंतन पर केंद्रित थी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् डॉ जी डी अग्रवाल, इंदौर, प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री शरद चन्द्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, डॉ अनिता मांदिलवार, डॉ अशोक सिंह, मुंबई, शिवा लोहारिया, जयपुर एवं महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ भरत शेणकर, अहमदनगर ने की।




लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय चिंतन परंपरा और लोक व्यवहार में शक्ति के विषय में अत्यंत महत्वपूर्ण विचार उपलब्ध हैं। शक्ति से सृष्टि का कोई भी कण अछूता नहीं है। कारण वस्तु में कार्य के उत्पादन में उपयोगी अपृथक् धर्म विशेष होता है, उसे शक्ति के रूप में मान्यता मिली है। शक्ति आराधना के विशिष्ट दार्शनिक आधार हैं। अधिकांश भारतीय दर्शनों में  सृष्टि के मूल तत्त्वों के बीच शक्ति की स्वतंत्र सत्ता स्वीकार की गई है। कार्यों की अनंतता के कारण शक्ति की भी अनंतता मानी गई है। शाक्त दर्शन और लोक मान्यता के अनुसार शक्ति सर्वव्यापक और सर्वोपरि है। मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति बिना शक्ति की कृपा से संभव नहीं है। भारत में सदियों से नगर, ग्राम, दुर्ग, वन, पर्वत, द्वार आदि सभी प्रमुख स्थानों पर देवी उपासना के साक्ष्य मिलते हैं। वस्तुतः शक्ति एक ही है, किंतु उपासकों के दृष्टि भेद से शक्ति के नाम और रूपों में भेद पाया जाता है। 





मुख्य अतिथि श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि भारतीय संस्कृति में नारी का सम्मान उसके विशिष्ट गुण और संस्कारों के कारण होता आ रहा है। मातृ शक्ति के त्याग, तपस्या और साधना से ही यह संपूर्ण सृष्टि संचालित है। शक्ति आराधना का विशिष्ट आध्यात्मिक महत्त्व है।




विशिष्ट अतिथि डॉ प्रभु चौधरी ने कहा कि नवरात्रि शक्ति आराधना का अद्वितीय पर्व है। शक्ति साधना के अनेक आयाम हैं, जिनमें व्रत, उपवास, अनुष्ठान, यज्ञ आदि का विशेष महत्व है। गायत्री आदि वैदिक मंत्रों के जाप से इष्ट फल की सिद्धि होती है।




अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉक्टर भरत शेणकर, अहमदनगर ने कहा कि शक्ति आराधना की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। इसमें परिवेश और  युगानुकूल परिवर्तन होता रहा है।




विशिष्ट अतिथि प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, डॉ अशोक सिंह, मुंबई, डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ अनिता मांदिलवार एवं डॉ सुनीता चौहान, मुंबई ने देवी आख्यान और उपासना से जुड़े विभिन्न प्रसंगों और उनके मर्म की चर्चा की।


विशिष्ट अतिथि डॉ जी डी अग्रवाल, इंदौर ने मधुर स्वर में आई रे आई दुर्गा महारानी शेर पर होकर सवार गीत की प्रस्तुति की।



अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ आशीष नायक, रायपुर डॉक्टर समीर सैयद, अहमदनगर, डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई,  डॉक्टर कामिनी बल्लाल,  रश्मि चौबे, आगरा, पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ लता जोशी, मुंबई, डॉ श्वेता पंड्या आदि सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे। 




प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ रश्मि चौबे ने की। संस्था का परिचय एवं प्रतिवेदन डॉ लता जोशी, मुंबई ने प्रस्तुत किया।  


आयोजन की संकल्पना एवं स्वागत भाषण डॉ प्रभु चौधरी की ने दिया।


राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का संचालन डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने किया। आभार प्रदर्शन संस्था के शिक्षाविद डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने किया। 











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