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20201219

माच : सम्पूर्ण लोक नाट्य के रूप में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Mach : As a Total Theater - Shailendra Kumar Sharma

दुनिया के प्रमुख लोक नाट्यों के बीच अद्वितीय है मालवा का माच – प्रो शर्मा

सम्पूर्ण लोक नाट्य के रूप में मालवा के माच पर केंद्रित विशेष व्याख्यान 

अभिनव रंगमंडल द्वारा मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय, भोपाल के सहयोग से विस्तार कार्यक्रम के अंतर्गत आयोजित तीस दिवसीय प्रस्तुतिपरक कार्यशाला में रंग समीक्षक और विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने सम्पूर्ण लोक नाट्य के रूप में मालवा के माच पर विशिष्ट व्याख्यान दिया। कार्यशाला के समन्वयक अभिनव रंगमंडल के संस्थापक – अध्यक्ष श्री शरद शर्मा ने प्रास्ताविक वक्तव्य दिया। यह कार्यशाला कालिदास संस्कृत अकादमी के अभिरंग नाट्यगृह में आयोजित की जा रही है। 






मध्यप्रदेश के प्रतिनिधि लोकनाट्य माच पर अभिकेंद्रित विशेष व्याख्यान में विचार व्यक्त करते हुए प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि विश्व रंगमंच को भारतीय लोक नाट्य परम्परा की देन बहुमुखी है। सुदूर अतीत से एशियाई रंगकर्म को हमारी शास्त्रीय और लोक नाट्य परम्पराएँ प्रभावित करती आ रही हैं। दुनिया के प्रमुख लोक नाट्यों के बीच अद्वितीय विधा माच ने विगत लगभग सवा दो सौ वर्षों से रंगमंच के बहुत बड़े दर्शक वर्ग को प्रभावित किया है। लोक संगीत, नृत्य - रूपों, कथा, अभिनय, गीतों के जीवन्त समावेश से यह एक सम्पूर्ण नाट्य का रूप ले लेता है। भरत मुनि का नाट्यशास्त्र विश्व संस्कृति को भारत की अनुपम देन है। माच में सुदूर अतीत से चली आ रही रंगमंच की विशिष्ट प्रवृत्तियों के दर्शन होते हैं। माच के खेलों में जीवन के कई रंगों की अभिव्यक्ति होती है। यह लोक विधा मात्र मनोरंजन का माध्यम नहीं है। व्यापक लोक समुदाय में चिरन्तन सत्य, उच्च आदर्शों और मूल्यों की प्रतिष्ठा के साथ सामाजिक बदलाव में माच ने अविस्मरणीय भूमिका निभाई है। इस विधा के विकास में गुरु गोपाल जी, गुरु बालमुकुंद जी, गुरु राधाकिशन जी, गुरु कालूराम जी, श्री सिद्धेश्वर सेन, श्री ओमप्रकाश शर्मा जैसे कई माचकारों ने योगदान दिया है। 


प्रो शर्मा ने माच के शिल्प और प्रदर्शन शैली पर प्रकाश डालते हुए कहा कि माच खुले मंच की विधा है। अनायास नाटकीयता और लचीलापन माच की शक्ति है। माच का मधुर संगीत इसे प्रभावी आधार देता है। इसके कलाकार मात्र अभिनेता नहीं, वे गायक – नर्तक - अभिनेता होते हैं। सामूहिक रूप से टेक झेलने और बोलों को दुहराने की क्रिया माच की खास पहचान है। माच कोरे यथार्थ के आग्रह को तोड़ता है। माच के रसिया स्वयं भैरव जी हैं। गुरु परम्परा के प्रति निष्ठा इस विधा में निरंतर बनी हुई है। कृषक और श्रमजीवी वर्ग के लोगों ने इस विधा को कला का दर्जा दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।   






प्रारम्भ में प्रास्ताविक वक्तव्य देते हुए संस्था के अध्यक्ष श्री शरद शर्मा ने कहा कि नाट्य संगीत के क्षेत्र में अभिनव रंगमंडल ने विशिष्ट योगदान दिया है। इस कार्यशाला के माध्यम से अभिनय कला के सभी आयामों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जिद और जुनून के बिना किसी भी कला में निष्णात होना असम्भव है।


इस अवसर पर रंगकर्मी वीरेंद्र नथानियल, भूषण जैन, विशाल मेहता आदि सहित रंग प्रशिक्षणार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। 


यूट्यूब चैनल पर माच की प्रस्तुतियाँ





























20201121

दीपावली : आलोक के प्रति आस्था मनुष्य सभ्यता का प्रमुख अंग - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

आलोक के प्रति आस्था मनुष्य सभ्यता का प्रमुख अंग रही है – प्रो शर्मा 

लौकिक जीवन पर अलौकिक आभा का पर्व पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न   

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी एवं काव्य पाठ का आयोजन किया गया, जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ वक्ताओं और साहित्यकारों ने भाग लिया। राष्ट्रीय संगोष्ठी लौकिक जीवन पर अलौकिक आभा का पर्व पर केंद्रित थी। कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट वक्ता शिक्षाविद डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे थे। संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली, वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉ रश्मि चौबे, आगरा, डॉक्टर मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉक्टर लता जोशी, मुंबई, महासचिव डॉ प्रभु चौधरी एवं उपस्थित वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, ने की। यह संगोष्ठी दीपोत्सव पर्व पर आयोजित की गई।




मुख्य अतिथि लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि अनादि काल से आलोक के प्रति आस्था मनुष्य सभ्यता का प्रमुख अंग रही है।


दीपावली लोक से लोकोत्तर को जोड़ने का अनूठा अवसर देती है। दीपावली त्रिविध तापों से ग्रस्त लौकिक जीवन पर अलौकिक आभा का पर्व है। दीपावली  के पाँच दिन अज्ञात अतीत से न जाने कितनी जातीय स्मृतियों, लोक एवं शास्त्र की परम्पराओं और सांस्कृतिक - सामाजिक मूल्यों को लेकर आते हैं और फिर हमारे आसपास से जुड़ी पारिवेशीय चेतना के साथ दोहराए जाते हैं। लक्ष्मी का स्थिर वास वहां माना गया है, जहां परस्पर प्रेम, शुभत्व, स्वच्छता और शुचिता होती है। इस पर्व के पीछे गहरी पर्यावरणीय दृष्टि रही है। लक्ष्मी का संबंध कृषि, वनस्पति, समुद्र एवं जल स्रोतों के साथ माना गया है। उनकी उपासना के लिए इन्हीं स्थानों से प्राप्त उपादानों को अर्पित किया जाता है। यह पर्व परंपरा के साथ आधुनिकता, पुराख्यान के साथ वैज्ञानिकता के समन्वय का पर्व है। दीपावली पर्व अनेक सदियों से सर्वधर्म सद्भाव और लोकोपकार के लिए समर्पित होने की प्रेरणा देता आ रहा है। सही अर्थों में यह समूचेपन का, मनुष्य जीवन के भरे-पूरेपन का उत्सव है।



विशिष्ट वक्ता वरिष्ठ शिक्षाविद डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि दीपावली पर्व भारतीय सभ्यता का सबसे अनूठा और परम पवित्र त्यौहार है। शास्त्र और लोक परंपरा में इस पर्व की विशेष महिमा मानी गई है, जिन पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।


विशिष्ट अतिथि साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि दीपोत्सव अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला पर्व है। अलौकिक आभा के माध्यम से जन समुदाय को सार्थक संदेश मिलते हैं। उन्होंने इस अवसर पर दीप गीत भी प्रस्तुत किया।

 




विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कहा कि दीपावली पुरुषार्थ और बंधुत्व का पर्व है। ज्योति का यह पर्व सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।


कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुम्बई ने कहा कि दीपावली परस्पर स्नेह और सद्भाव का पर्व है। कोविड संकट के बावजूद लोगों ने दीपों के इस पर्व को नई आशा का संचार करते हुए मनाया।

 



दीपोत्सव से जुड़ी कविताएं डॉ रश्मि चौबे, आगरा, डॉक्टर मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉक्टर लता जोशी, मुंबई आदि ने प्रस्तुत कीं।


संस्था का परिचय, संगोष्ठी की संकल्पना एवं स्वागत भाषण राष्ट्रीय महासचिव श्री प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि दीपावली ज्योति का सांस्कृतिक पर्व है। इसका संबंध लक्ष्मी पूजन के साथ भगवान राम के अयोध्या आगमन से भी माना गया है। संस्था की गतिविधियों का प्रतिवेदन डॉ भरत शेणकर, अहमदनगर ने प्रस्तुत किया।  




सरस्वती वंदना साहित्यकार श्री सुंदरलाल जोशी, नागदा ने की। अतिथि परिचय डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने दिया।


कार्यक्रम में डॉक्टर मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, आगरा, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉक्टर लता जोशी, मुंबई, राम शर्मा, मनावर, डॉ आशीष नायक, रायपुर, डॉक्टर गरिमा गर्ग, मथेसुल जयश्री अर्जुन आदि सहित अनेक प्रतिभागी उपस्थित थे। 


कार्यक्रम का संचालन संस्था की डॉक्टर रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने किया। आभार प्रदर्शन राष्ट्रीय उप महासचिव डॉक्टर लता जोशी, मुंबई ने किया।


























दीपावली पर्व पर स्वस्तिकामनाएँ।


20201111

दीपावली : लौकिक जीवन पर अलौकिक आभा का पर्व - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

दीपावली के पाँच दिन : लोक के साथ लोकोत्तर को जोड़ने का पर्व

- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

दीपावली उत्सव के पाँच दिन अज्ञात भूतकाल से न जाने कितनी जातीय स्मृतियों, लोक एवं शास्त्र की परम्पराओं और सांस्कृतिक - सामाजिक मूल्यों को लेकर आते हैं। फिर में सब हमारे आसपास से जुड़ी पयार्वरणीय चेतना के साथ दोहराए जाते हैं। ऋतु, अंचल और कृषि उत्पादों के रंग इस उत्सव को चटकीला बनाते हैं। इसकी उत्सवी आभा में चमके चेहरे अमीर-गरीब, छोटे-बड़े का भेद मिटा देते हैं। आखिर सब उल्लास और उमंग में क्यों  न डूबें, जब मौका महज धन-संपदा ही नहीं, इस जगत् की आधार और साक्षात् पराशक्ति लक्ष्मी के इस लोक में विचरण का हो और जो महल तथा झोंपड़ी के बीच अंतर नही करती। 

लक्ष्मी, जिनके बिना सृष्टि के पालनकर्ता  विष्णु भी श्रीहीन हो जाते हैं, इस दौरान स्वयं अपना बसेरा तलाशने के लिए निकलती हैं। दीपावली पर उनके स्वागत को आतुर श्रद्धालु लोकमानस न सिर्फ  इस उत्सव में रमता है, आगामी वर्ष भर सफल होने की तैयारी भी करता है। या यूँ कहें त्रिविध तापों से ग्रस्त लौकिक जीवन पर अलौकिकता की शीतल छाया का रम्य अनुभव पाता है।






धन तेरस से दिवाली तक : जब तीन दिनों में तीन पगों से नापा गया था ब्रह्माण्ड
- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

दीपावली के उद्भव को लेकर कई पौराणिक एवं लोक मान्यताएँ प्रचलित हैं। एक मान्यता का सम्बन्ध देव और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के पौराणिक आख्यान से हैं, जिनके अनुसार इसी दिन समुद्र से लक्ष्मी का आविर्भाव हुआ था और उन्होंने विष्णु का वरण किया था। दीपावली के दो दिन पूर्व मनाए जाने वाले पर्व धनतेरस का संबंध इसी आधार पर विष्णु के एक अवतार धन्वन्तरि से जोड़ा जाता है, जो समुद्र से अर्जित चौदह रत्नों में एक अमृत-कुंभ लेकर प्रकट हुए थे। दूसरी मान्यता का संबंध राजा बलि और विष्णु के वामन अवतार की पौराणिक कथा से हैं। इसके अनुसार असुरराज बलि ने एक बार देवराज इन्द्र को परास्त कर तीनों लोकों में अपना साम्राज्य  स्थापित कर लिया था। विष्णु ने दानवीर बलि से वामन रूप में तीन पग भूमि माँगी और फिर विराट होकर तीनों लोकों को फिर से प्राप्त कर बलि को पाताल में भेज दिया। विष्णु ने दीपावली के दिन ही लक्ष्मी सहित सभी देवी-देवताओं को बंधन से मुक्त कराया था। इसीलिए लक्ष्मी के स्वागत के दीप घर-घर जलाए जाते हैं। 

एक अन्य  मान्यता है कि इस दिन विष्णु ने राजा बलि से प्रसन्न होकर उसका राज्य लौटाया था। तब बलि ने विष्णु से वरदान माँगा था कि दीपावली के तीन दिनों में जो व्यक्ति दीपदान करेगा वह यम की यातना से मुक्त रहेगा और उसके घर लक्ष्मी सदा निवास करेगी। इसी के आधार पर देश के कई भागों में धनतेरस की रात्रि को यम को दीपदान की प्रथा प्रचलन में है। एक मान्यता यह भी है कि विष्णु ने धनतेरस, नरक चतुदर्शी (या रूपचौदस) और दीपावली इन तीनों दिनों में ही तीन लोकों को अपने तीन पगों से नापा था, उसी महत्त्वपूर्ण प्रसंग की स्मृति को समर्पित होते हैं ये दिन। कुछ क्षेत्रों में गोबर से राजा बलि की मूर्ति बनाकर पूजने के पीछे भी यही आख्यान है । 



रूप चौदस- रूप चतुर्दशी 

मालवा चित्रावण शैली में अखिलेश धूलजी बा की एक कृति 




मांडणे का रचाव

सदियों से मांडना मंगल प्रतीक रहा है। परम्परा के साथ नवाचार ने इस विधा को व्यापक धरातल दिया है। दीपपर्व के साथ साथ यह अब अनेक मांगलिक अवसरों पर बनाया जा रहा है। घर - आँगन से चलकर अब यह बड़ी तादाद में प्रमुख स्थानों और मार्गों की भित्तियों पर भी उकेरा जा रहा है।
 

मांडना अंकन : डॉ. अर्चना गर्गे Archna Garge 








मांडना अंकन : लोक कलाकार श्रीमती द्रौपदी देवी (मेरी पूज्य बुआ जी)





मांडना अंकन : नीतेश पांचाल 




Shailendrakumar Sharma
Mandana Art| मांडना कला 

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Mandana Art | परम्परागत मांडना कला | 
Traditional Art & Craft of India : Mandana, Fad Art, Kawad Art, Kathputali Art, Gavari
पारम्परिक कला और शिल्प रूप : मांडना, फड़, कावड़, कठपुतली, गवरी 

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Mandana Art| मांडना : मंगल प्रतीक| Music Sarita Mcharg | Sarita Borliya 

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Mandana Art | परम्परागत मांडना कला | 
Traditional Art & Craft of India : Mandana, Fad Art, Kawad Art, Kathputali Art, Gavari

पारम्परिक कला और शिल्प रूप : मांडना, फड़, कावड़, कठपुतली, गवरी
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संगीत, नृत्य, नाट्य, साहित्य, चित्रकला, लोक और जनजातीय संस्कृति पर एकाग्र वीडियोज् के लिए एक उपक्रम 


अंदर बाहर के अंधकार से मुक्ति का पर्व: दीपोत्सव के पाँच दिन - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 
पत्रिका, परिशिष्ट परिवार, समस्त संस्करण, 8 नवम्बर 2023, बुधवार 

















दीपावली उत्सव के पाँच दिन  - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 



अर्थ की देवी का क्या है अर्थ 
- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा



आखिर अर्थ की देवी लक्ष्मी का अर्थ क्या है। लक्ष्मी जगत् के पालनकर्ता विष्णु की शक्ति हैं। उनका विष्णु के साथ अपृथक् संबंध माना गया है। लक्ष्मी शक्ति हैं तो विष्णु शक्तिमान्, लक्ष्मी धर्म हैं तो विष्णु उन्हें धारण करने वाले अर्थात् धर्मी। श्रीसूक्त, लक्ष्मीतन्त्र आदि में लक्ष्मी के तिरेपन नाम मिलते हैं, जिनमें श्री, देवी, ऋद्धि, ईश्वरी, माता, हेममालिनी, पद्मस्थिता, हिरण्यमयी आदि सम्मिलित हैं। आज अर्थ या धन की देवी की रूप में लोक में पूजित लक्ष्मी के शाब्दिक अर्थ अनेक और व्यापक हैं। वैदिक साहित्य में श्री और लक्ष्मी दोनों अलग-अलग शब्द हैं, कालांतर में दोनों का समन्वय हुआ। लक्ष्मी शब्द के मूल में ‘लक्ष्’ धातु है, जिसका अर्थ है- दर्शन और अंकन इसके आधार पर लक्ष्मी का अर्थ हुआ- सब प्राणियों को साक्षात् करने वाली, उनके शुभ-अशुभ, अच्छे-बुरे को देखने वाली। वे ईश्वर की सवर्सम्पद् हैं अन्य मतों से लक्ष्मी के मूल में ‘ला’ और ‘क्षिप्’ धातुएँ हैं, जिनसे लक्ष्मी शब्द के कई अर्थ निकलते हैं। इनके आधार पर लक्ष्मी दान करने वाली देवी हैं। लक्ष्मी उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय में प्रकृति को प्रेरित करने वाली है। लक्ष्मी लक्षण के योग्य अर्थात् लक्ष्य पदार्थों की अवस्थामयी हैं। एक अन्य व्याख्या से वे प्रकृति, पुरुष, महत् आदि में स्थित होकर उन्हें प्रेरित करती हैं। वे जगत् निर्माण करती हैं, उसे जानती हैं और सबका मापन भी करती हैं। 

लक्ष्मी के एक प्रमुख नाम श्री के भी कई अर्थ हैं इन अर्थों में लक्ष्मी करुण वाणी को सुनने वाली, सज्जनों के पापों को नष्ट करने वाली तथा गुणों से विश्व को व्याप्त करने वाली हैं। वे हरि अर्थात् विष्णु का शरीर हैं। वे शरणागत के पापों को नष्ट करती हैं और सभी कामनाएँ पूरी करती हैं। ऊपरी तौर पर धन-संपदा की देवी लक्ष्मी वस्तुत: साक्षात् ब्रह्म की ही शक्ति हैं, यह जगत् उनका ही रूप माना गया है।








दीपावली: लोक के साथ लोकोत्तर को जोड़ने का पर्वोत्सव - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 

दक्षिण एशिया उपमहाद्वीप अनादिकाल  से व्रत-पर्व-उत्सवों  की पारम्परिक भूमि रहा है । यहाँ के व्रत-पर्व-उत्सव  न जाने कितनी सभ्यताओं, संस्कृतियों और जातीय स्मृतियों को अपने अंदर समाए हुए हैं, जिनमें अलग-अलग अंचलों  की स्थानीय  गंध के साथ-साथ एकात्मता के अनोखे सूत्र उपस्थित हैं। अपने ढ़ंग के इस निराले उपमहाद्वीप का प्रतिनिधि और अनूठा त्यौहार है –दीपावली , जो एक साथ व्रत, पर्व  और उत्सव को अपने में समाहित किए हुए है। 

यह पर्व परम्परा के साथ वैज्ञानिकता,  प्राचीन के साथ आधुनिक, वेद के साथ पुराण-आख्यान, शास्त्र के साथ लोक, संस्कृति के साथ सभ्यता,  देवता के साथ मनुष्य  और जातीय  स्मृतियों के साथ सामाजिक गतिशीलता के अन्त: संवाद का पर्व है। यह लोक के साथ लोकोत्तर को जोड़ने का व्रत है और अनेक माध्यमों से छलकते उल्लास का उत्सव है। दीप पर्व से भारतीय  संस्कृति के विविध तत्वों का संवाद इतना सहज और जैविक है कि यह पता लगाना मुश्किल  लगता है कि किसकी, कहाँ और कितनी हिस्सेदारी है। सही अथों  में यह समूचेपन का, मनुष्य  के भरे-पूरेपन का उत्सव है।


- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
आचार्य एवं अध्यक्ष
हिन्दी विभाग
कुलानुशासक
कला संकायाध्यक्ष
विक्रम विश्वविद्यालय
उज्जैन

20200915

लोक एवं जनजातीय साहित्य और संस्कृति : सार्वभौमिक मानव मूल्य - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

लोक एवं जनजातीय संस्कृति का संरक्षण इस धरती के हित में है - प्रो. शर्मा

लोक एवं जनजातीय साहित्य और संस्कृति : सार्वभौमिक मानव मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी

संजा लोकोत्सव 2020 : अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ दुनिया के कई देशों की लोक संस्कृति पर विमर्श

देश की प्रतिष्ठित संस्था प्रतिकल्पा सांस्कृतिक संस्था, उज्जैन द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित संजा लोकोत्सव के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन रविवार को किया गया। यह संगोष्ठी लोक एवं जनजातीय साहित्य और संस्कृति : सार्वभौमिक जीवन मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में अभिकेंद्रित थी। संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। संगोष्ठी की अध्यक्षता चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं आईसीसीआर हिंदी चेयर, सुसु, चीन के पूर्व आचार्य डॉ नवीनचंद्र लोहनी ने की। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक , हिंदी विभागाध्यक्ष एवं लोक संस्कृतिविद् प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा तथा विशिष्ट अतिथि महात्मा गांधी संस्थान, मॉरीशस की वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ अलका धनपत एवं जनजातीय संस्कृति की अध्येता डॉ हीरा मीणा, नई दिल्ली थीं। संस्था की निदेशक डॉ पल्लवी किशन ने संजा लोकोत्सव एवं संगोष्ठी की संकल्पना और रूपरेखा पर प्रकाश डाला।








मुख्य अतिथि प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने संबोधित करते हुए कहा कि नॉर्वे में जनजातीय समुदाय के लोग भी बड़ी संख्या में रहते हैं। उत्तरी नॉर्वे में रहने वाले सामी जाति के लोगों की विशिष्ट भाषा है। सामी लोग एशियाई  मूल के हैं। नॉर्वे और रूस के उत्तरी क्षेत्र के जनजातीय समुदाय के लोगों ने देशों की राजनीतिक दूरी के बावजूद सरहदों के आर पार मानवीय रिश्ता बनाया हुआ है। उनका गहरा रिश्ता प्रकृति और जीव - जंतुओं के साथ बना हुआ है। सामी लोक संगीत आज भी जीवित है।









कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. नवीन चंद्र लोहनी ने कहा कि उत्तराखंड एवं कौरवी क्षेत्र में अनेक लोक और जनजातीय समुदायों के लोग रहते हैं, जिनकी विशिष्ट परम्पराएँ आज भी प्रासंगिक हैं। चीन में हक्का सहित कई जनजातीय समुदायों की संस्कृति के संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं। वहाँ की जनजातियों के प्राकृतिक वास स्थान को यूनेस्को ने विश्व की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में महत्त्व दिया है। चीन के दर्शन के अनुरूप लकड़ी के ये क्लस्टर बनाए गए हैं। चीन में अनेक प्रकार की चाय मिलती है, जिन्हें जनजातीय समुदाय के लोगों ने संरक्षित किया है। वहाँ की जनजातियां पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती हैं।








मुख्य वक्ता लोक संस्कृतिविद् प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि लोक एवं जनजातीय संस्कृति का संरक्षण और अंगीकार इस धरती के हित में है। मानवीय लोक संस्कृतियों में वैविध्य है, लेकिन वह अंतर बाहरी है। सभी को एक समान जीवन मूल्य आधार देते हैं। सत्य, शांति, अहिंसा, प्रेम, सह अस्तित्व और पर्यावरण संरक्षण जैसे सार्वभौमिक मानव मूल्यों और मानवीय संवेदनाओं का संदेश लोक और जनजातीय संस्कृतियों से मिलता है। संजा जैसे लोक पर्व हमारे व्यावहारिक और ब्रह्मांडीय जीवन को जोड़ते हैं। यह लोक पर्व मनुष्य और प्रकृति के सह अस्तित्व और मानवीय रिश्तों की ऊष्मा के साथ इस धरती के स्त्री पक्ष के सम्मान का सन्देश देता है। हमारे प्राकृतिक संसाधन छीजते जा रहे हैं। परस्पर प्रेम, सद्भाव और समरसता का संसार संकट में है। ऐसे में लोक और जनजातीय संस्कृति के मूल्य, जीवन दृष्टि, संवेदना और जीवन शैली इन संकटों का मुकाबला करने की सामर्थ्य देते हैं।







महात्मा गांधी संस्थान, मॉरीशस की वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ अलका धनपत ने कहा कि मॉरीशस के लोग अपनी संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए चिंतित हैं। सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण के लिए मॉरीशस वासी निरन्तर प्रयासरत हैं। गौवंश के प्रति गहरी निष्ठा मॉरीशस वासियों में है। मॉरीशस के लोक समुदाय सिद्ध करते हैं कि श्रेष्ठ संस्कार जीवन भर बने रहते हैं। उनकी जड़ें बहुत गहरी हैं। आज भी वहाँ पदयात्रा करते हुए कावड़ यात्रा निकाली जाती है। वर्षा की कामना के लिए भोजपुरी लोकगीत गाए जाते हैं। विवाह के मौके पर हरदी गीत गाए जाते हैं। मॉरीशस के लोगों में लोक संस्कृति अंदर तक रची - बसी है।




जनजातीय संस्कृति की अध्यक्षता डॉ. हीरा मीणा, नई दिल्ली ने कहा कि जनजातीय समुदायों ने सदियों से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया हुआ है। वे मानते हैं कि पूर्वज प्रकृति की रक्षा करते हुए वह धरोहर हमें देकर जाते हैं। इसलिए पुरखों के प्रति श्रद्धा का भाव जनजातीय समुदायों की विशेषता है। वे पुरखों को याद करते हुए पक्षियों और जीवों को भी बुलाते हैं।


संस्था के अध्यक्ष श्री गुलाब सिंह यादव, सचिव कुमार किशन एवं निदेशक डॉ पल्लवी किशन ने वेब पटल पर अतिथियों का स्वागत किया।


संगोष्ठी का संचालन डॉ श्वेता पंड्या ने किया एवं आभार प्रदर्शन संस्था के अध्यक्ष श्री गुलाबसिंह यादव ने किया।

अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का जीवंत प्रसारण प्रतिकल्पा सांस्कृतिक संस्था, उज्जैन के फेसबुक पेज पर किया गया, जिसमें देश - विदेश के सैकड़ों लोक संस्कृतिप्रेमियों, विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और साहित्यकारों ने सहभागिता की। 


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