पेज

पर्यावरण लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
पर्यावरण लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

20210618

लोक देवता देवनारायण जी : संस्कृति और पर्यावरण को योगदान - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Lok Dewata Devnarayan ji: Contribution to Culture and Environment Prof. Shailendra Kumar Sharma

प्राणी जगत के मूल आधारों पर कार्य किया लोक देवता देवनारायण जी ने - प्रो शर्मा


अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ लोक देवता देवनारायण जी : संस्कृति और पर्यावरण को योगदान पर मंथन 


प्रतिष्ठित संस्था देव चेतना परिषद, उज्जैन द्वारा  लोक देवता देवनारायण जी : संस्कृति और पर्यावरण को योगदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि पूर्व कैबिनेट मंत्री, राजस्थान श्री कालूलाल गुर्जर, भीलवाड़ा थे। मुख्य अतिथि  विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन में विशिष्ट अतिथि नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली, वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, संस्था के अध्यक्ष डॉ प्रभु चौधरी, डॉ राकेश छोकर आदि ने विषय के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी की अध्यक्षता अखण्ड भारत गुर्जर महासभा, जयपुर के अध्यक्ष श्री देवनारायण गुर्जर ने की। सूत्र संयोजन डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर ने किया। अखण्ड भारत गुर्जर महासभा की साहित्यिक संस्था देव चेतना परिषद द्वारा संगोष्ठी के बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें अनेक निर्णय लिए गए।




संगोष्ठी में पूर्व कैबिनेट मंत्री श्री कालू लाल गुर्जर, भीलवाड़ा ने कहा कि देव नारायण जी ने प्राकृतिक संपदा के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने नीम के वृक्ष को विशेष मान दिया, जो पर्यावरण को शुद्ध रखने के साथ-साथ औषधि के रूप में उपयोग में आता है। उनके परिवार के पास 9 लाख 80 हजार गायें मौजूद थीं। उस दौर में उन्होंने प्रकृति के संरक्षण पर बल दिया। उनके मंदिरों के आसपास पर्याप्त आकार में जंगल छोड़े जाते हैं। देवनारायण जी के  पर्यावरण विचार को जन जन तक पहुंचाने के प्रयास होने चाहिए।



संगोष्ठी में व्याख्यान देते हुए  विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के  कला संकायाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि सदियों से  देवनारायण जी जाग्रत देव के रूप में पश्चिम एवं मध्य भारत के लोक आस्था के केंद्र बने हुए हैं। उन्हें विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाता है। उन्होंने प्राणी जगत के मूल आधारों पर कार्य किया।  वन संपदा, पशुधन, जल स्रोतों और चरागाहों के रक्षक और पोषक के रूप में उनका योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने सिद्ध किया कि अन्न धन और पशुधन ही वास्तविक धन है, जिसकी रक्षा के लिए देवनारायण जी का त्याग, तपस्या और उत्सर्ग आज भी रोमांचित करता है। उनके जीवन चरित्र पर आधारित अनेक लोक गाथाएं जातीय स्मृतियों और जीवन मूल्यों को प्रतिबिंबित करती हैं। उनकी गाथाएँ भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक भूगोल, इतिहास और जातीय स्मृतियों की जीवंत दस्तावेज हैं। उन्होंने नए प्रकार की सामाजिक संरचना और समतामूलक संस्कृति की आधारशिला रखी। कर्मकांड और बाह्याडंबर का उन्होंने प्रतिरोध किया। समाज के विभिन्न वर्गों को जोड़ते हुए उन्होंने परस्पर प्रेम, भाईचारे और समरसता का संदेश दिया, जो वर्तमान में अत्यंत प्रासंगिक सिद्ध हो रहा है। 


अध्यक्षता करते हुए अखण्ड भारत गुर्जर महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष  डॉ देवनारायण गुर्जर, जयपुर ने कहा कि देवनारायण जी प्रत्यक्ष रूप में विष्णु का अवतार थे। उनके चरित्र और लीलाओं के संदर्भ में सांस्कृतिक योगदान को जानना आवश्यक है। उनकी शिक्षाओं का क्षेत्र व्यापक है। गुर्जर संस्कृति की पहचान है, स्वाभिमान के साथ जीना और अन्य वर्ग के लोगों को भी स्वाभिमान से जोड़ना। देवनारायण जी ने शोषित एवं वंचित वर्ग को सम्मान दिलवाया। उन्होंने आयुर्वेद को महत्व दिया। वर्तमान सांस्कृतिक संक्रमण और पर्यावरणीय संकट के दौर में देवनारायण जी के संदेश की प्रासंगिकता है। देवनारायण जी ने ईटों के रूप में पूजे जाने और पूजा में नीम के पत्तों के प्रयोग पर बल दिया। प्रकृति के साथ जुड़ाव का इस प्रकार का कोई दूसरा उदाहरण देखने को नहीं मिलता है। उन्होंने अत्याचारियों के अन्याय से मुक्त होने के लिए वंचित और पिछड़े वर्ग के लोगों को सम्मान दिलाया। 




विशिष्ट अतिथि डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली में कहा कि प्राचीन युग से भारत में पर्यावरण को संस्कृति और धर्म के साथ महत्वपूर्ण स्थान मिला है। देवनारायण जी ने समाज में संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। उस दौर में अत्यंत सीमित आर्थिक संसाधन थे, फिर भी अंतःप्रज्ञा के माध्यम से समाज सुधार का कार्य किया गया। विकास के नाम पर आज जंगल काटे जा रहे हैं। कृषि भूमि और चरागाह संकट में हैं। ऐसे में देवनारायण जी द्वारा दिए गए संदेशों को चरितार्थ करने की आवश्यकता है। देवनारायण जी पर केंद्रित साहित्य को नई पीढ़ी के सम्मुख लाने के प्रयास किए जाएं।


वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ऑस्लो, नॉर्वे ने कहा कि श्री देवनारायण जी से संबंधित साहित्य और इतिहास को व्यापक फलक पर प्रसारित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वे देवनारायण जी के जीवन प्रसंगों से जुड़े साहित्यिक अंशों का अनुवाद नार्वेजीयन भाषा में करेंगे।




अतिथि परिचय संस्था के अध्यक्ष डॉक्टर प्रभु चौधरी ने विषय की प्रस्तावना प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि संस्था द्वारा देवनारायण जी के आदर्शों के अनुरूप साहित्य एवं समाजसेवा के क्षेत्र में कार्य किया जा रहा है। 


डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कहा कि देवनारायण जी ने केवल किसी क्षेत्र विशेष ही नहीं, वरन संपूर्ण पृथ्वी लोक के संरक्षण का संदेश दिया। उन्होंने सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में सुप्त अवस्था से लोगों को जगाया और मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा की। वे मानते हैं कि सभी के संरक्षण से सृष्टि का संरक्षण संभव है।


इस अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में देवनारायण पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन, जन्मोत्सव पर समाज के साहित्यकारों और  समाजसेवियों के सम्मान  समारोह, संगठन की स्मारिका प्रकाशन आदि के निर्णय लिये गए।




संगोष्ठी के प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ संगीता पाल, कच्छ, गुजरात ने की। गणेश वंदना मोक्षा लोहारिया ने की। स्वागत भाषण श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर ने प्रस्तुत किया। 


आयोजन में  श्री टीकमचंद अनजाना, पुखराज गुर्जर, डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली, श्री छीतरलाल कंसाना, विक्रमसिंह चौधरी, डॉ पूर्णिमा कौशिक, श्रीकांत पाल, डॉक्टर संजीव कुमारी, हिसार, पुखराज गुर्जर, श्री मोहनलाल वर्मा आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।


संगोष्ठी का संचालन डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली ने किया।




लोक देवता देवनारायण जी

20210606

भारतीय व्रत, पर्व और उत्सव : पर्यावरणीय और मूल्य चेतना के परिप्रेक्ष्य में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Indian Fasts and Festivals: Perspective of Environmental and Value Consciousness - Prof. Shailendrakumar Sharma

पर्यावरण अनुकूल व्यवहार सच्ची ईश्वर आराधना है – प्रो. शर्मा 

अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ भारतीय व्रत, पर्व और उत्सव : पर्यावरणीय और मूल्य चेतना के परिप्रेक्ष्य में पर मंथन 

सृजनधर्मियों की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी भारतीय व्रत, पर्व और उत्सव : पर्यावरणीय और मूल्य चेतना पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। मुख्य वक्ता वरिष्ठ पर्यावरणविद् डॉ ओमप्रकाश जोशी, इंदौर थे। अध्यक्षता प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ऑस्लो, नॉर्वे ने की। आयोजन की विशिष्ट अतिथि डॉ अनुसूया अग्रवाल, महासमुंद, छत्तीसगढ़, योगाचार्य निशा जोशी, इंदौर, डॉ संजीव कुमारी गुर्जर, हिसार, डॉ ख्याति पुरोहित, अहमदाबाद, डॉ अरुणा राजेंद्र शुक्ला, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ सुनीता चौहान, मुंबई ने किया।








मुख्य अतिथि  विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि भारत के लोक और जनजातीय समुदायों में प्रकृति के प्रति गहरा अनुराग और आस्था दिखाई देती है। वृक्षों के नाम के आधार पर गांव और गोत्रों का नामकरण किया जाता है। व्रत,   पर्वोत्सवों का रिश्ता गहरी पर्यावरणीय और मूल्य चेतना से है। उपासना के अनेक स्थलों पर पेड़ों को बहुतायत से देखा जा सकता है। मातृका के रूप में नदियाँ जनजातीय एवं लोक समुदाय में विशेष स्थान रखती हैं। हमारा पर्यावरण अनुकूल व्यवहार सच्ची ईश्वर आराधना है। व्रत का संबंध विशिष्ट आध्यात्मिक एवं मानसिक अवस्था से है, जिसके माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का कार्य सहज ही हो जाता है। ऋग्वेद में ईश्वर की परिकल्पना में मनुष्य और प्रकृति के समस्त उपादानों का समावेश किया गया है। सृष्टि की रचना के साथ ही पर्यावरण और प्राणियों का परस्पर पूरक संबंध माना गया है। भारत में परमेश्वर की उपासना स्वाभाविक कर्मों के माध्यम से करने पर बल दिया गया है। भारत की पर्यावरणीय दृष्टि दुनिया के तमाम देशों के लिए प्रेरणा का विषय है।

पूर्व प्राचार्य डॉ ओम प्रकाश जोशी, इंदौर ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है। यहां कृषि कार्य, ऋतु परिवर्तन, जन्मोत्सव, सूर्य, चंद्र आदि से जुड़े अनेक पर्व मनाए जाते हैं। भारत में पर्यावरण के दोनों भागों - जीवित और अजीवित की पूजा की जाती है। वर्तमान दौर में हमारी जीवन शैली में बाजारवाद हावी होता जा रहा है। हम उपयोग से उपभोग की ओर जा रहे हैं। ऐसे में त्योहारों और पर्यावरण के बीच सामंजस्य रखना जरूरी है। उन्होंने अनेक पर्वों का उल्लेख करते हुए कहा कि इन सबका प्रकृति के साथ गहरा नाता है। 

अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री सुरेश चंद्र शुक्ला शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए नदी  एवं अन्य जल स्रोतों के समीप रहने वाले लोगों को व्यापक प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। शिक्षा के क्षेत्र में पर्यावरण के अध्ययन को महत्त्व मिलना चाहिए। वर्तमान में कई देशों में पर्यावरण राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है। उन्होंने पर्यावरण से जुड़ी अपनी कविता प्रस्तुत की। जिसकी पंक्तियां थीं, जब  बसे  होंगे  ये  नगर, हरे- भरे  जंगल  होंगे। आरों ने काट गिराये होंगे, भारी भरकम वृक्ष, चीटियों से मसले गये होंगे नन्हे - नन्हे पौधे।

डॉ अनुसूया अग्रवाल, महासमुंद ने कहा कि पर्व और उत्सव हमारी सांस्कृतिक चेतना को आधार देते हैं। भारत की संस्कृति के निर्माण में पर्यावरण का महत्वपूर्ण योगदान है। सूर्य, चंद्र, वनस्पति, जल  सब मिलकर समन्वित जीवन को आधार देते हैं। अनेक समुदायों में वृक्षों को घर के वरिष्ठ जन के रूप में माना जाता है। प्रकृति के साथ हमारा आत्मीय रिश्ता बना रहे, यह जरूरी है।

डॉ ख्याति पुरोहित, अहमदाबाद ने कहा कि विश्व स्तर पर हमें पर्यावरण को लेकर पुनर्विचार करना होगा। भारत की संस्कृति अरण्य संस्कृति रही है। प्राचीन काल से ऋषि मुनि इन बातों को जानते थे कि प्रकृति का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। भारत में सभी उपयोगी पौधों को विभिन्न देवी-देवताओं से जोड़ दिया गया है। 

योगाचार्य डॉक्टर निशा जोशी ने कहा कि पर्यावरण हमारे चारों ओर का आवरण है। मनुष्य के द्वारा निरंतर पर्यावरण का विध्वंस किया जा रहा है। पर्यावरण संरक्षण के लिए ठोस प्रयास आवश्यक हैं। व्रत हमें आंतरिक शुचिता प्रदान करते हैं।

डॉ संजीव कुमारी गुर्जर, हिसार ने कहा कि पर्यावरण समस्त जीवित और निर्जीव वस्तुओं से बना है, लेकिन जीवित प्राणियों में मनुष्य पर्यावरण का निरंतर विध्वंस कर रहा है। उन्होंने सात आर के सूत्र को अंगीकार करने पर बल दिया। इनमें रीसायकल, रिड्यूस, रीयूज, रिड्यूस, रीथिंकिंग, रिपेयर, रीसायकल और रॉट महत्वपूर्ण हैं।

संस्था परिचय देते हुए साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि मानव के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए संस्था द्वारा महत्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है। मन और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए साहित्य की आवश्यकता है। धरती, आकाश, सागर, जल और वायु ये सभी प्रकृति के अनुपम उपहार हैं।

विशिष्ट अतिथि डॉक्टर मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने कहा कि भारत के व्रत पर्व और उत्सवों में वैज्ञानिकता अंतर्निहित है। लोक संस्कृति के साथ  इनका गहरा रिश्ता है। हमें मूल्य चेतना को पुनर्जीवित करना होगा। यह सब की जिम्मेदारी है।

डॉ अरुणा राजेंद्र शुक्ला ने कहा कि हमें प्रकृति की चेतावनी को समझना होगा। कोविड-19 के बाद हमने बहुत कुछ सीखा है। संपूर्ण विश्व में संरचनात्मक परिवर्तन लाना होगा। आपदा और महामारी से रक्षा के लिए प्रकृति को सम्मान देना जरूरी है। 



संगोष्ठी की प्रस्तावना डॉ पूर्णिमा कौशिक रायपुर ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना रूली सिंह, मुंबई ने की। अतिथि परिचय श्रीमती लता जोशी, मुंबई ने दिया। स्वागत भाषण डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा ने दिया।





संगोष्ठी में डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ विमल चंद्र जैन इंदौर, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉ सुनीता चौहान, मुंबई श्री मोहनलाल वर्मा जयपुर, अदिति लांभाटे, भुवनेश्वरी जायसवाल, दिनकर बारापत्रे, शैलेश चतुर्वेदी, डॉ ज्योति वर्मा, श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर, जयमाला देसाई, लता जोशी, मनीषा सिंह, मंजू श्रीवास्तव, मोहम्मद मुकीम, शिल्पा भट्ट, डॉक्टर शैल चंद्रा, छत्तीसगढ़, प्रवीण नायी, परमानंद शर्मा, नेहा राठौर, नरेश जोशी आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।

राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉ सुनीता चौहान मुंबई ने किया। आभार प्रदर्शन  डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने किया।










 








विश्व पर्यावरण दिवस


20200720

पर्यावरण संरक्षण : भारतीय चिंतन और हरियाली अमावस्या - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

भारतीय चिंतन परम्परा में प्रकृति, भगवान के समतुल्य - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

हरियाली अमावस्या पर्व पर राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी 

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा हरियाली अमावस्या पर्व पर अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश - दुनिया के अनेक विद्वानों, शोधकर्ताओं और प्रतिभागियों ने भाग लिया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ सुधांशु शुक्ला, पौलेंड, श्रीमती रमा शर्मा, जापान, डॉ कपिल कुमार, बेल्जियम थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं साहित्यकार प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने की। संगोष्ठी को डॉ कामराज सिंधु, कुरुक्षेत्र, श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने संबोधित किया। यह अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी पर्यावरण संरक्षण : भारतीय चिंतन और हरियाली अमावस्या पर एकाग्र थी।

संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ सुधांशु शुक्ला, पौलेंड ने कहा कि संपूर्ण विश्व आज पर्यावरण को लेकर चिंतित है। भारत अनादि काल से नदियों, पर्वतों, पेड़ और पौधों को लेकर आस्था भाव रखता आ रहा है। भारतीय चिंतन में प्रकृति को भगवान के समतुल्य महत्त्व मिला है, जो हमें सब कुछ देती है। 


मुख्य वक्ता प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि प्रकृति के साथ आत्मीय रिश्ता, लगाव और पूजा भाव भारतीय संस्कृति और परंपरा का महत्त्वपूर्ण अंग है। हमारे जल स्रोतों, प्राकृतिक वास स्थानों, बहुविध व्रत, पर्व, उत्सवों और लोक देवताओं के प्रति आस्था में प्रकृति के प्रति अनुराग सहस्राब्दियों से छलकता रहा है। प्रकृति पर्व हरियाली अमावस्या का हमारी परंपरा में विलक्षण स्थान है। सुदूर अतीत से चले आ रहे पर्यावरण चिंतन, वैज्ञानिक सोच, जातीय चेतना और वैश्विक दृष्टिकोण का संपुंजन हरियाली अमावस्या और इसी प्रकार के अन्य पर्वोत्सवों में दिखाई देता है। यह पर्व चराचर जगत के साथ मनुष्य के रिश्तों को व्यापक विश्व बोध के साथ जानने और क्रियान्वित करने का अवसर देता है। यह पर्व वन्य संस्कृति, गिरि संस्कृति, पशुपालन संस्कृति और कृषि संस्कृति के सातत्य और परस्परावलम्बन का पर्व है।


संगोष्ठी को संबोधित करते हुए श्रीमती रमा शर्मा, जापान ने कहा कि भारत में पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से अनेक उपाय किए जाते हैं। जहां घने वृक्ष होते हैं, उन स्थानों पर लोक आस्था के प्रतीक के रूप में देवालय बनवा दिए जाते हैं। हमारे यहां पीपल में देवताओं का वास माना गया है। 

डॉ कपिल कुमार, बेल्जियम ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय चिंतन में प्रकृति के प्रति गहरी आस्था का भाव रहा है। गुलामी के दौर में हम पर्यावरण विध्वंस में लग गए, जिसके गम्भीर दुष्परिणाम आज झेल रहे हैं। नस्लों को बचाने के लिए पर्यावरण का संरक्षण करना होगा। पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए सजगता लानी होगी। 


अध्यक्षीय उद्बोधन में शिक्षाविद् श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि वर्तमान युग व्यापक पर्यावरणीय चिंताओं का युग है। इस दौर में पर्यावरण संरक्षण  के लिए साहित्यकारों, शिक्षकों और कलाकारों को समाज में संचेतना जगाने के लिए तत्पर होना होगा।



डॉ. कामराज सिंधु, कुरुक्षेत्र ने कहा कि वर्तमान युग में जल, भूमि, वनों का दोहन अनेक समस्याएं पैदा कर रहा है। इनसे पशु - पक्षियों, कीट - पतंगों का नाश हो रहा है। हमें शहरीकरण और अनियोजित विकास पर अंकुश लगाना होगा। 


प्रारंभ में श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कार्यक्रम की संकल्पना एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।   

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए संस्था के महासचिव  डॉ प्रभु चौधरी ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सभी क्षेत्रों में सजगता जरूरी है। वर्षा काल में संस्था द्वारा स्थान - स्थान पर औषधीय और पर्यावरणीय महत्त्व के पौधे लगाए जाएंगे। 


आयोजन में श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, स्वर्णा जाधव, मुंबई ने पर्यावरणीय चिंताओं से जुड़ी कविताएं प्रस्तुत कीं।








इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ सुरेश चंद्र शुक्ल, ऑस्लो, नॉर्वे, डॉ विनोद तनेजा, अमृतसर, श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर, डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे,  शम्भू पँवार, जयपुर, डॉ कविता रायजादा, आगरा, तूलिका सेठ, गाजियाबाद, जी डी अग्रवाल, इंदौर आदि सहित देश के विभिन्न राज्यों के विद्वानों और प्रतिभागियों ने भाग लिया।

संगोष्ठी की सूत्रधार डॉ संजीव कुमारी गुर्जर, हिसार थीं। आभार प्रदर्शन श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने किया। 









कार्यक्रम में डॉ.  उर्वशी उपाध्याय, प्रयाग, डॉ. शैल चन्द्रा, रायपुर, डॉ हेमलता साहू, अम्बिकापुर, डॉ. दर्शनसिंह रावत उदयपुर, डॉ कृष्णा श्रीवास्तव, मुंबई, श्रीमती प्रभा बैरागी, उज्जैन, श्री सुन्दरलाल जोशी ‘सूरज‘ नागदा, हेमलता शर्मा, आगर, श्रीमती रागिनी शर्मा, राऊ, डॉ. संगीता पाल, कच्छ,  डॉ. सरिता शुक्ला, लखनऊ, विनीता ओझा, रतलाम, पायल परदेशी, महू, जयंत जोशी धार, अनुराधा गुर्जर, दिल्ली, राम शर्मा परिंदा, मनावर, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ प्रवीण जोशी, डॉ श्वेता पंड्या, कमल भूरिया,  प्रवीण बाला, लता प्रसार, पटना, मधु वर्मा, श्रीमती दिव्या मेहरा, कोटा, श्रीमती तरुणा पुंडीर, दिल्ली, डॉ. शिवा लोहारिया, जयपुर, सुश्री खुशबु सिंह, रायपुर आदि सहित देश के विभिन्न राज्यों के साहित्यकार, प्रतिभागी और शोधकर्ता उपस्थित रहे। 

डॉ. प्रभु चौधरी
महासचिव
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना
मो. 9893072718

20200518

कोविड संकट से मुक्ति की राह है भारत - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

असमाप्त लिप्सा और दोहन से उपजे कोविड संकट से मुक्ति की राह है भारत - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में प्रो शर्मा का व्याख्यान : 

शोध धारा शोध पत्रिका, शैक्षिक एवं अनुसंधान संस्थान, उरई, उत्तर प्रदेश एवं भारतीय शिक्षण मंडल, कानपुर प्रान्त के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी के समापन दिवस पर  व्याख्यान सत्र की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने की। यह संगोष्ठी वर्तमान वैश्विक परिदृश्य और भारत राष्ट्र : चुनौतियां संभावनाएं और भूमिका पर केंद्रित थी। 



संगोष्ठी में व्याख्यान देते हुए प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि वर्तमान विश्व मनुष्य की असमाप्त लिप्सा और अविराम दोहन से उपजे संकट को झेल रहा है। अंध वैश्वीकरण, असीमित उपभोक्तावाद और अति वैयक्तिकता की कोख से उपजे कोविड - 19 संकट ने भारतीय मूल्य व्यवस्था और जीवन शैली की प्रासंगिकता को पुनः नए सिरे से स्थापित कर दिया है। मनुष्य की जरूरतों की पूर्ति के लिए हमारे पास पर्याप्त संसाधन हैं। प्रकृति के साथ स्वाभाविक रिश्ता बनाते हुए अक्षय विकास के मार्ग पर चलकर ही इस संकट से उबरा जा सकता है। कोई भी महामारी तात्कालिक नहीं होती, उसके दीर्घकालीन परिणाम होते हैं। इस दौर में उपजे बड़ी संख्या में विस्थापन, भूख, बेरोजगारी और बेघर होने के संकट को सांस्थानिक और सामुदायिक प्रयासों से निपटना होगा। अभूतपूर्व विभीषिका के बीच यह सुखद है कि हम भारतीय जीवन शैली, पारिवारिकता और सामुदायिक दृष्टि के अभिलाषी हो रहे हैं।

व्याख्यान सत्र के वक्तागण गोरखपुर के प्रो सच्चिदानंद शर्मा, पर्यावरण वेत्ता एवं दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय, गोरखपुर के वनस्पति विज्ञान विभाग के आचार्य डॉ अनिलकुमार द्विवेदी एवं डॉ संतोषकुमार राय, झांसी थे। 

प्रारम्भ में संगोष्ठी संयोजक डॉ राजेश चन्द्र पांडेय ने अतिथि परिचय एवं स्वागत भाषण दिया।

संचालन डॉ श्रवणकुमार त्रिपाठी ने किया। रिपोर्ट का वाचन डॉ नमो नारायण एवं डॉ अतुल प्रकाश बुधौलिया, उरई एवं आभार प्रदर्शन डॉ राजेश चन्द्र पांडेय ने किया। 



डॉ राजेश चन्द्र पांडेय
संपादक शोध पत्रिका शोध धारा एवं 
शैक्षिक एवं अनुसंधान संस्थान
उरई, उत्तर प्रदेश

20161126

मध्यप्रदेश के पक्षी : एक विश्वकोशीय कार्य - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Birds of Madhya Pradesh: An Encyclopedic Work - Prof. Shailendra Kumar Sharma

मध्य प्रदेश के पक्षी : एक विश्वकोशीय कार्य - प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा 
Birds of Madhya Pradesh: An Encyclopedic Work - Prof. Shailendra Kumar Sharma

विज्ञान ज्ञान का ही सुव्यवस्थित रूप है। यह मानव सभ्यता की अविराम यात्रा का आधार रहा है। न जाने किस सुदूर अतीत से होती आ रहीं वैज्ञानिक गवेषणाएँ हमारे वर्तमान और भावी जीवन की निर्धारक बनी हैं। अनेकानेक शाखा-प्रशाखाओं में विस्तृत विज्ञान और प्रौद्योगिकी हमारे जीवन को सुगम बनाने में महती भूमिका निभा रहे हैं। इस क्षेत्र में होने वाले नित-नए आविष्कारों का लाभ तभी लिया जा सकता है, जब वैज्ञानिक साहित्य हिन्दी सहित सभी जनभाषाओं में सुलभ हो। विशेष तौर पर आम जीवन से जुड़े वैज्ञानिक तथ्य और सूचनाओं को आम व्यक्ति की भाषा में उपलब्ध करवाना अनिवार्य है। तभी विज्ञान-संचार के लक्ष्य को साकार किया जा सकता है। वरिष्ठ प्राणी वैज्ञानिक डॉ जे पी एन पाठक का हाल ही में प्रकाशित ग्रन्थ ‘मध्यप्रदेश के पक्षी’ अपने अध्ययन क्षेत्र में विश्वकोशीय भूमिका के साथ अवतरित हुआ है। यह महाकाय और बहुरंगी ग्रन्थ डॉ. पाठक की वर्षों की शोध-साधना का साकार प्रतिबिम्ब है। जब विश्वभाषा के रूप में अपनी जगह बनाती हिंदी में विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में स्तरीय ग्रंथों की कमी को लेकर चिंता के स्वर उभरते हों, तब डॉ पाठक का यह ग्रन्थ एक नई ज़मीन तैयार करता है।

डॉ पाठक ने सही अर्थों में मशहूर पक्षी वैज्ञानिक सालिम अली के अभियान को आगे बढ़ाया है, जिनकी पुस्तक ‘बुक ऑफ़ इंडियन बर्ड्स’ 1941 ई. में प्रथम प्रकाशन से लेकर आज तक इस क्षेत्र में मील का पत्थर बनी हुई है। डॉ. पाठक से हिन्दी में मौलिक विज्ञान लेखन और अनुवाद को लेकर मेरा गहन विचार-मंथन होता आ रहा है। वे हिन्दी के बेहद सजग विज्ञान लेखक हैं और वैज्ञानिक-तकनीकी शब्दावली से लंबे समय से मुठभेड़ करते आ रहे हैं। जब उन्होंने देखा कि हम पक्षियों के प्राकृतिक क्रियाकलापों को लेकर चर्चा तो बहुत करते हैं, किन्तु जब बात उन पर केन्द्रित किसी प्रामाणिक हिन्दी ग्रंथ की आती है, तो मौन रह जाना पड़ता है। डॉ. पाठक ने इस गहरे मौन को तोड़ने का साहस किया है। जो कार्य बड़े-बड़े संस्थान नहीं कर सकते, वह पक्षियों के अनूठे दीवाने डॉ. पाठक ने कर दिखाया है।

इस बृहद् ग्रंथ में मध्यप्रदेश के 338 प्रकार के पक्षियों की सचित्र-प्रामाणिक जानकारी दी गई है। इनमें स्थानीय और प्रवासी, उड़न और जलीय,बड़े और छोटे [पैसेराइन] – सभी प्रकार के पाखी हैं। डॉ. पाठक ने शुरुआत में पक्षियों की संरचना और लक्षण दिये हैं, जो पक्षियों के अभिज्ञान में सहायक हैं। साथ ही राष्ट्रीय पार्कों, पक्षियों की उत्पत्ति, उनके प्रवास सहित विभिन्न राज्यों के प्रतीक पक्षियों का विवरण दिया है। विश्वास किया जा सकता है कि यह ग्रन्थ पक्षी निहारकों और अध्यापकों के साथ ही विद्वानों और शोधकर्ताओं के लिए भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा। इस पुस्तक के लिए फ़ोटोग्राफ्स डॉ. पाठक के सुशिष्य ललित चौधरी ने जुटाए हैं। ग्रन्थ के सुरुचिपूर्ण प्रकाशन के लिए डॉ. पाठक के साथ मध्यप्रदेश राज्य जैवविविधता बोर्ड, भोपाल की जितनी प्रशंसा की जाए कम ही होगी।

कविवर भवानीप्रसाद मिश्र ने भारत के हृदय पटल पर स्थित सतपुड़ा के जंगल को कभी अपनी रम्य रचना में उकेरा था, यह ग्रंथ उसका रोचक साक्ष्य देता है।

लाख पंछी सौ हिरन-दल,
चाँद के कितने किरन दल,
झूमते बन-फ़ूल, फ़लियाँ,
खिल रहीं अज्ञात कलियाँ,
हरित दूर्वा, रक्त किसलय,
पूत, पावन, पूर्ण रसमय
सतपुड़ा के घने जंगल,
 लताओं के बने जंगल।

-------------------------------------------------


ग्रंथ- मध्यप्रदेश के पक्षी
लेखक- डॉ. जे. पी. एन . पाठक
फोटोग्राफ्स- ललित चौधरी
प्रकाशन- मध्यप्रदेश राज्य जैवविविधता बोर्ड,भोपाल

वेबसाइट http://www.mpsbb.nic.in/
प्रथम संस्करण 2014 ई
आवरण- ‘दूधराज’ म प्र का राज्य पक्षी, सौजन्य- वन विभाग
पृष्ठ 372+40


प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा
आचार्य एवं विभागाध्यक्ष
हिंदी अध्ययनशाला
कुलानुशासक
विक्रम विश्वविद्यालय
उज्जैन

 

20130610

बारिश में केरल - डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा

बारिश में केरल : पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश

डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा 

अपने ढंग के इस अकेले ग्रह  पर प्रकृति का अनुपम उपहार कहीं- कहीं ही समूचे निखार पर नज़र आता है। इनमें ईश्वर के अपने स्वर्ग के रूप में विख्यात केरल का नाम सहसा कौंध जाता है. उत्तर में जम्मू-कश्मीर और दक्षिण में केरल - दोनों अपने - अपने विलक्षण निसर्ग- वैभव से ना जाने किस युग से मनुष्य को चुम्बकीय आकर्षण से खींचते- बांधते आ रहे हैं। केरलकन्या राजश्री से विवाह के बाद   प्रायः मेरी अधिकतर केरल यात्राएँ  बारिश के आस-पास ही होती रही हैं। केरलवासी  इसे सही समय नहीं मानते, लेकिन इसका मुझे कभी अहसास नहीं हुआ। जब पूरा भारत भीषण गरमी - लू से तड़फता है। तब भी केरल का आर्द्र वातावरण लोगों के तन- मन को भिगोए रखता है। ऐसा उसके समुद्रतट और पर्वतमाला से घिरे होने और सघन वनों से संभव होता है। सूखे का कोई नामो निशान नहीं। शायद धरती पर कोई और जगह नहीं है। जहाँ नैसर्गिक हरीतिमा का सर्वव्यापी प्रसार हो।  सब ओर हरा ही हरा छाया हो। श्वासों में  नई स्फूर्ति, नई चेतना जगाती प्राणवायु हो।


गरमी की इन्तहा होने पर पूरा देश जब आसमान की ओर तकने लगता है, तब केरल के निकटवर्ती अरब सागर से ही काली घटाओं की आमद होती है। मानसून की पहली मेघमाला सबसे पहले केरल को ही नहलाती है। फिर पूरा देश मलय पर्वत से आती हुई वायु के साथ कजरारे बादलों की गति और लय से झूमने लगता है। कभी महाकवि कालिदास ने इन्हीं आषाढ़ी बादलों को देखकर उन्हें विरही यक्ष का सन्देश अलकापुरी में निवासरत प्रिया के पास पहुँचाने का माध्यम बनाया था और सहसा 'मेघदूत' जैसी महान रचना का जन्म हुआ था. केरल पहुंचकर कई दफा इन बादलों की तैयारी को निहारने का मौका मिला है। सुबह खुले आसमान के रहते अचानक उमस बढ़ने लगती है, फिर स्याह बादलों की अटूट शृंखला टूट पड़ती है,  केरलवासी  पहली बारिश में चराचर जगत के साथ झूम उठते हैं। उस वक्त मनुष्य और इतर प्राणियों का भेद मिटने लगता है। 


केरल में कहा जाता है कि जब कौवे कहीं बैठे-बैठे बारिश में भीगते नजर आएँ तो उसका मतलब होता है कि पानी रूकेगा नहीं। आखिरकार  वह क्यों न भीगता रहे , गर्वीले बादलों से उसे रार जो ठानना है , देरी का कारण जो जानना है।


बारिश में भीगते केरल के कई रूपों को मैंने अपनी यात्राओं में देखा है। कभी सागर तट पर, कभी ग्राम्य जीवन में , कभी नगरों में , कभी  मैदानों में, कभी पर्वतों पर और कभी अप्रवेश्य जंगलों में . हर जगह उसका अलग अंदाज,अलग शैली . वहाँ की बारिश को देखकर कई बार लगता है  कि यह आज अपना हिसाब चुकता कर के  ही जाएगी, लेकिन थोड़ी ही देर में आसमान साफ़ . कई दफा वह मौसम विज्ञानियों के पूर्वानुमानों को मुँह चिढ़ाती हुई दूर से ही निकल जाती है।


तिरुवनंतपुरम- कोल्लम  हो या कालिकट- कोईलांडी , कोट्टायम-पाला  हो या थेक्कड़ी या फिर इलिप्पाकुलम-ओच्चिरा  हो या गुरुवायूर - सब जगह की बारिश ने अन्दर- बाहर से भिगोया है, लेकिन हर बार का अनुभव निराला ही रहा . वैसे तो केरल की नदियाँ और समुद्री झीलें सदानीरा हैं, लेकिन बारिश में इनका आवेश देखते ही बनता है. लेकिन यह आवेश प्रायः मर्यादा को नहीं तोड़ता . यहाँ की नदियाँ काल प्रवाहिनी कभी नहीं बनती हैं . देश के अधिकतर राज्यों से ज्यादा बारिश के बावजूद प्रलयंकारी बाढ़ के लिए यहाँ कोई जगह नहीं है . छोटी-छोटी नदियाँ केरल की पूर्वी पर्वतमाला से चलकर तीव्र गति से सागर से मिलने को उद्धत हो सकती हैं, लेकिन ये किसी को तकलीफ पहुँचाना नहीं जानतीं।

 

बारिश में भीगे केरलीय पर्वत मुझे जब-तब निसर्ग के चितेरे सुमित्रानंदन पन्त की रचना 'पर्वत प्रदेश में पावस ' की याद दिलाते रहे हैं :   


 पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।

मेखलाकर पर्वत अपार
अपने सहस्‍त्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,

-जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण सा फैला है विशाल!

गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्‍तेजित कर
मोती की लडि़यों सी सुन्‍दर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!

गिरिवर के उर से उठ-उठ करउच्‍चाकांक्षाओं से तरुवरहै झॉंक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर।

उड़ गया, अचानक लो, भूधर
फड़का अपार वारिद के पर!
रव-शेष रह गए हैं निर्झर!
है टूट पड़ा भू पर अंबर!

धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुऑं, जल गया ताल!
-यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल 

हे ईश्वर के अपने देश केरल , इसी तरह बारिश में भीगते रहना और सभी प्राणियों की तृप्ति बने रहना।

 

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा


कोट्टायम-कुमिली मार्ग का निसर्ग वैभव 


प्रो॰ शैलेन्द्रकुमार शर्मा Pro. Shailendrakumar Sharma



अंश शर्मा




प्रो॰ शैलेन्द्रकुमार शर्मा Pro. Shailendrakumar Sharma







कोट्टायम-कुमिली मार्ग का निसर्ग वैभव 

Featured Post | विशिष्ट पोस्ट

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : वैचारिक प्रवाह से जोड़ती सार्थक पुस्तक | Mahatma Gandhi : Vichar aur Navachar - Prof. Shailendra Kumar Sharma

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : पुस्तक समीक्षा   - अरविंद श्रीधर भारत के दो चरित्र ऐसे हैं जिनके बारे में  सबसे...

हिंदी विश्व की लोकप्रिय पोस्ट