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20200711

पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर | संवाद |प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | दिलीप जोशी | केशव राय | Padmashree Dr V S Wakankar | Sansthan |Dilip Joshi |Shailendra Kumar Sh...





पद्मश्री डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर : पुरातिहासविद्, लिपिशास्त्री और अन्वेषक | संवाद : दिलीप जोशी | प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा | केशव राय 
Padmashri Vishnu Shridhar Wakankar : The Great Archeologist, Historian & Paleographist | Conversation with Dilip Joshi & Prof. Shailendra Kumar Sharma by Shri Keshav Rai
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पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर : पुरातिहास के विलक्षण अन्वेषक
- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 
पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर (उपाख्य : हरिभाऊ वाकणकर ; 4 मई 1919 – 3 अप्रैल 1988) किंवदंती पुरुष हैं। उन्होंने मालवा सहित भारत के पुरातत्त्व और इतिहास के अनेक अनछुए पहलुओं को उद्घाटित किया। 23 मार्च को उन्होंने भोपाल के समीप भीमबेटका के प्रागैतिहासिक शैलाश्रयों और चित्र शृंखला की खोज के साथ ही उनका गहन विश्लेषण किया। उनके द्वारा किए गए इस ऐतिहासिक कार्य के कारण आज भीमबेटका विश्व धरोहर के रूप में सुस्थापित है। अनुमान है कि यह चित्र शृंखला 175000 वर्ष पुरातन है। इन चित्रों का परीक्षण कार्बन-डेटिंग पद्धति से किया गया है, इसी के परिणामस्वरूप इन चित्रों के काल-खंड का ज्ञान होता है। इससे यह भी सिद्ध हुआ कि उस समय रायसेन जिले में स्थित भीम बैठका गुफाओं में मनुष्य रहता था और वे लोग चित्र, नृत्य, अभिनय आदि कलाओं के माध्यम से आत्माभिव्यक्ति करते थे। वैदिक सरस्वती नदी के साथ कायथा, दंगवाड़ा, मनोटी, इन्दरगढ़,  रूणिजा, नागदा आदि जैसे अनेक प्रागैतिहासिक स्थलों के अन्वेषण सहित भारतीय पुरातिहास की दिशा में उनके द्वारा किए गए कार्य मील का पत्थर सिद्ध हो गए हैं। उनके विलक्षण अवदान के लिए सन 1975 ई. में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था।

वाकणकर जी द्वारा अन्वेषित भीमबेटका में  600 शैलाश्रय हैं, जिनमें 275 शैलाश्रय चित्रों द्वारा सज्जित हैं। पूर्व पाषाण काल से मध्य ऐतिहासिक काल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का महत्त्वपूर्ण केंद्र रहा। यह बहुमूल्य धरोहर अब पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। यहाँ के शैल चित्रों के विषय सामूहिक नृत्य,  मानवाकृतियाँ, शिकार, पशु-पक्षी, युद्ध और प्राचीन मानव जीवन के दैनन्दिन क्रियाकलापों से जुड़े हैं। चित्रों में प्रयोग किये गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ, लाल और सफेद हैं और कहीं-कहीं पीला और हरा रंग भी प्रयोग हुआ है। भीमबेटका की विलक्षण शैलाश्रय शृंखला डॉ वाकणकर जी की अन्वेषण दृष्टि से दुनिया की निगाह में आई। 

- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
Shailendrakumar Sharma

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