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20200830

लोक देवता देवनारायण जी : इतिहास, संस्कृति और साहित्य के परिप्रेक्ष्य - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

प्रेम और समरसता का व्यापक सन्देश दिया है लोक देवता देवनारायण जी ने
अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में लोक देवता देवनारायण : इतिहास, संस्कृति और साहित्य के संदर्भ में विषय पर हुआ मंथन


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय देव चेतना परिषद द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी लोक देवता देवनारायण : इतिहास, संस्कृति और साहित्य के संदर्भ में विषय पर अभिकेंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि साहित्यकार श्री त्रिपुरारीलाल शर्मा, इंदौर थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के मंत्री डॉ हरिसिंह पाल, ओस्लो, नॉर्वे के साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक एवं श्री टीकम चंद बोहरा, कोटा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता अखंड भारत गुर्जर महासभा के अध्यक्ष श्री देवनारायण गुर्जर, जयपुर ने की। संगोष्ठी की प्रस्तावना संस्था के अध्यक्ष डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।





लोक साहित्यविद् डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय लोकमानस अपने परिवारजनों और पशु संपदा की संरक्षा के लिए लोक देवी-देवताओं की शरण में पहुंचता रहा है। उसने अपने परिवेश के अलौकिक शक्तिसंपन्न महापुरुष को लोकदेवता का दर्जा दिया है। ऐसे ही लोकदेवता भगवान श्री देवनारायण की पशुपालक एवं अन्य समाजों में प्रतिष्ठा  है। उन्होंने पशुपालक समाज को वीरान जंगल में सभी प्रकार की सुरक्षा प्रदान की और उन्हें ईमानदारी एवं सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। देवनारायण के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर गायी जाने वाली लोकगाथा को आम लोगों के लिए उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जिससे नई पीढ़ी अपने महापुरुष के सम्बन्ध में आसानी से जान सके। 





मुख्य वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने व्याख्यान देते हुए कहा कि मध्यकालीन भारतीय इतिहास और संस्कृति में देवनारायण जी का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने जल, वन, पशु और औषधि संरक्षण - संवर्धन में अविस्मरणीय कार्य किए। उनका चरित्र लोक हितकारी है। वे परस्पर प्रेम, भाईचारे और समरसता के माध्यम से समाज के नव निर्माण में जुटे रहे। बगड़ावत गाथा और हीड़ लोक काव्य में उनके चरित्र और कार्यों का प्रभावी अंकन हुआ है। भारतीय विश्वास है कि एक ही परम सत्ता अलग-अलग रूपों में अभिव्यक्त होती है। लोक देवी - देवता उसी परमेश्वर के विभिन्न रूपों के द्योतक हैं। लोक में पूजित देवताओं में देवनारायण जी, तेजाजी, रामदेव जी, पाबू जी, हरबू जी, गोगाजी आदि का विशिष्ट स्थान है। ये सभी परोपकार,  साहस,  वचन निर्वाह, आत्म त्याग जैसे कई लौकिक और अलौकिक गुणों के कारण लोक आस्था के केंद्र सदियों से बने हुए हैं।लोक कण्ठानुकण्ठ में जीवन्त प्रसिद्ध उक्ति है:
पाबू, हरबू, रामदे, मांगळिया मेहा।
पाँचों पीर पधारजो, गोगाजी जेहा।।

पश्चिम एवं मध्य भारत में बहु लोकप्रिय रामदेव जी, पाबू जी, देवनारायण जी, हरबू जी, गोगा जी, तेजा जी, मेहा जी सहित कई लोक देवताओं से जुड़ा लोक साहित्य विपुल मात्रा में वाचिक परम्परा में प्रवहमान हैं। यह साहित्य अनुश्रुति, इतिहास और लोक-संस्कृति की जैविक अंतर्क्रिया का विलक्षण दृष्टांत है। सूक्ष्मता से विचार करें तो लोक साहित्य और संस्कृति अथाह है। लोक-देवता साहित्य और संस्कृति में ऐतिहासिक घटनाओं के साथ युग जीवन और पर्यावरण की विविध छबियां सहज उपलब्ध हैं। कई जाति-समुदायों से जुड़े विशिष्ट प्रसंग और घटनाओं में ऐतिहासिक सन्दर्भ बिखरे पड़े हैं। उनकी सूक्ष्म पड़ताल की आवश्यकता है। लोक में गहराई से उतरे बिना लोक-देवता साहित्य और कलाओं के साथ न्याय संभव नहीं है। इनके माध्यम से इतिहास और जातीय स्मृतियों की अनेकानेक परतें उद्घाटित होती हैं। यह अनुसन्धानकर्ता पर निर्भर है कि वह उनकी कितनी थाह पाता है। 

साहित्यकार श्री त्रिपुरारीलाल शर्मा, इंदौर ने कहा कि मालवा, राजस्थान, गुजरात क्षेत्र में अनेक लोक देवताओं का योगदान रहा है। इन सबके मध्य श्री देवनारायण जी पशु एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए विशिष्ट पहचान रखते हैं। लोक साहित्य और फड़ चित्रों में उनके लोकहितकारी कार्यों को अभिव्यक्ति मिली है। 


            


ओस्लो, नॉर्वे के प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि लोक संस्कृति के क्षेत्र में देवनारायण जी का योगदान अविस्मरणीय है। आज संपूर्ण विश्व पर्यावरण से जुड़ी  चिंताओं से गुजर रहा है। हम देवनारायण जी के दिखाए हुए मार्ग पर चलते हुए जल स्रोतों, वन और पर्यावरण की रक्षा करें। हमें जैविक खेती और जलस्रोतों के विकास के लिए व्यापक प्रयास करने होंगे। श्री शुक्ल ने कहा कि वे लोक देवता देवनारायण जी के जीवन चरित्र से जुड़े हुए काव्यांशों का नॉर्वेजियनन भाषा में अनुवाद करेंगे।



संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ समाजसेवी श्री देवनारायण गुर्जर, जयपुर में कहा कि देवनारायण जी ने पूर्व में धर्म के नाम पर चले आ रहे पाखंड को समाप्त किया। उन्होंने सामाजिक सद्भाव के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए। देवनारायण जी ने आपस में बिछड़े हुए लोगों को जोड़ा था। आज भी उनके आदर्शों पर चलते हुए देशवासियों को जोड़ने की आवश्यकता है। भारतीय समाज को देवनारायण जी के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।




वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी श्री टीकम चंद वोहरा, कोटा ने कहा कि देवनारायण जी का व्यक्तित्व परोपकारी था। उनके पूर्वज बगड़ावतों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दी। बाद में  देवनारायण जी ने उत्कट साहस और पराक्रम से मातृभूमि को पुनः प्राप्त किया। राजस्थान के मालासेरी डूंगरी के पास बगड़ावत और देवनारायण जी के जीवन और कार्यों को केंद्र में रखते हुए बृहद् संग्रहालय बनाया गया है, जिसके माध्यम से हम इतिहास के महत्त्वपूर्ण पक्षों के सम्बंध में जान सकते हैं।



कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि डॉ एम एल वर्मा, जयपुर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि श्री देवनारायण जी की लोक गाथा परंपरा से प्राप्त अखंड भारत के लोक जीवन और दर्शन को अभिव्यक्त करती है। देवनारायण जी की लीला कथा भागवत स्वरूप है। गुर्जर लोक संस्कृति में श्री देवनारायण जी की फड़ और लोक वार्ता अनहद नाद शब्द ब्रह्म रूप है, जिसे बगड़ावतों के कुल भाट छोछू ने श्रुति स्मृति स्वरूप लोक कल्याण के लिए गुर्जरी भाषा में गाया है।




साहित्यकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कहा कि देवनारायण जी अवतारी व्यक्तित्व थे। उन्होंने सृष्टि प्रेम का चिंतन प्रस्तुत किया और लोक कल्याण के कार्यों को करने की प्रेरणा दी।



स्वागत भाषण  संस्था के अध्यक्ष डॉ प्रभु चौधरी ने देते हुए कहा कि संस्था द्वारा देवनारायण जी सम्बन्धी  साहित्य का प्रकाशन किया जाएगा।




संगोष्ठी में डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ मुक्ता कौशिक, डॉ शैल चंद्रा, रायपुर, डॉ भरत शेनेकर, पुणे, डॉ. रोहिणी डकारे, अहमदनगर, जितेंद्र पांडे, डॉ श्वेता पंड्या, विजय शर्मा सहित देश के विभिन्न भागों के प्रतिभागी उपस्थित थे।





संगोष्ठी में डॉ राकेश आर्य, नोएडा, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर एवं डॉ संजीव कुमारी गुर्जर, हिसार ने देवनारायण जी के सामाजिक,  स्त्री शिक्षा एवं पर्यावरण विषयक विचारों की चर्चा की।


कार्यक्रम का संचालन अनुराधा अच्छावन, नई दिल्ली ने किया। आभार साहित्यकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने माना।


20200826

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर : व्यक्तित्व और योगदान

अहिल्याबाई असाधारण शासिका थीं, जिन्हें लोकमाता का दर्जा मिला 

लोकमाता अहिल्याबाई के बहुआयामी अवदान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा लोकमाता अहिल्याबाई के बहुआयामी अवदान पर केंद्रित कर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल एवं सारस्वत अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने की। मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर थे। आयोजन की रूपरेखा संस्था के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।



मुख्य अतिथि डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने संबोधित करते हुए अहिल्याबाई होलकर के जीवन प्रसंगों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर ने अपने जीवन में अनेक सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कार्य किए, जिन्हें आज भी याद किया जाता है। उन्होंने अनेक देवालय, बावड़ी, घाट, जलाशय आदि का निर्माण करवाया।




वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. जी. डी. अग्रवाल, इंदौर ने कार्यक्रम  को संबोधित करते हुए कहा कि  अहिल्याबाई एक असाधारण शासिका थी, जिन्हें लोकमाता का दर्जा मिला। लोकमाता अहिल्याबाई ने अपने आंसूओं को पीकर प्रजा के आँसू पोंछे। अहिल्याबाई का बहुआयामी  व्यक्तित्व इन काव्य पंक्तियों से स्पष्ट होता है, 
बाला बनी, वनिता बनी, विधवा बनी, रानी बनीl 
दानी बनी भक्तिन बनी, ज्ञानी बनी, देवी बनीl 
रानीत्व की बाई अहिल्या, अनुपम कहानी बनीl 
निज दिव्यता से गंगा का पानी बनीl 










सारस्वत अतिथि लेखक एवं आलोचक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने संबोधित करते हुए कहा कि अहिल्याबाई होल्कर ने भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने व्यापक दृष्टि के साथ देश को सांस्कृतिक और भावात्मक एकता के सूत्र में बांधने के लिए अविस्मरणीय प्रयास किए। लोकोपकार, न्याय और प्रजारंजन के साथ उन्होंने तप, त्याग और सेवाव्रत को अपने जीवन में मूर्त किया।







वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि प्रातः स्मरणीय माता अहिल्या बाई होलकर अवतारतुल्य थीं। भगवान शंकर की भक्ति उनकी अपार शक्ति थी, जिसका सदुपयोग उन्होंने अपनी प्रजा के  हित के लिए किया तथा पूरे भारत में ऐसे अनेक कार्य किए, जिसके कारण उनकी सुकीर्ति का ध्वज आज भी फहरा रहा है और फहराता रहेगा। राजमाता होकर भी वह लोक माता के रूप में जानी जाती रहीं और इसी रूप में वह अमर हुईं। उन्होंने बताया कि लोकमाता अहिल्याबाई होलकर शीर्षक उनका एक आलेख कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया था। 




कार्यक्रम की प्रस्तावना एवं स्वागत भाषण संस्था के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने दिया। कार्यक्रम को संस्था अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन एवं डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने भी संबोधित किया।


वरिष्ठ कवि श्री अनिल ओझा, इंदौर ने देवी अहिल्या बाई पर केंद्रित गीत सुनाया, जिसकी पंक्तियाँ थीं, 

माँ अहिल्या को नमन देवी अहिल्या को नमन।

 आपकी यश कीर्ति से नित गूँजते धरती गगन।

कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ. रोहिणी डावरे, अहमदनगर ने प्रस्तुत की।

कार्यक्रम में डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, डॉ रेखा रानी, फतेहगढ़, डॉ भरत शेनेकर, पुणे सहित देश के विभिन्न भागों के प्रतिभागी उपस्थित थे।



कार्यक्रम का संचालन निरूपा उपाध्याय, देवास ने किया। आभार प्रवीण बाला, पटियाला, पंजाब ने माना।


20200822

शाश्वत और सम्पूर्ण विश्व मानव के लिए है महाराष्ट्र के सन्तों का सन्देश : प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

सम्पूर्ण विश्व मानव के लिए है महाराष्ट्र के संतों का संदेश - प्रो. शर्मा

आधुनिक सन्दर्भ में महाराष्ट्र की सन्त परम्परा पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा आधुनिक संदर्भ में महाराष्ट्र की संत परंपरा पर अभिकेंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। इस अवसर पर नॉर्वे के प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो ने कबीर की साखियों का नॉर्वेजियन अनुवाद प्रस्तुत किया। संगोष्ठी में विभिन्न वक्ताओं ने महाराष्ट्र की संत परंपरा से जुड़े प्रमुख संतों के योगदान पर प्रकाश डाला। आयोजन की प्रस्तावना संस्था के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।






कार्यक्रम के मुख्य अतिथि लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि महाराष्ट्र के संतों भारतीय संस्कृति, जीवन मूल्यों  और  भक्ति परंपरा के विस्तार में  अविस्मरणीय योगदान दिया। उनका संदेश शाश्वत और संपूर्ण विश्व मानव के लिए है। दक्षिण भारत के आलवार संतों ने जिस भक्ति आंदोलन का प्रवर्त्तन किया था, उसके स्वर को महाराष्ट्र के संतों ने भारत के सुदूर अंचलों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संत ज्ञानेश्वर, नामदेव, तुकाराम, एकनाथ, सेन जी आदि की महिमा की अनुगूंज दूर दूर तक सुनाई देती है। उनका प्रदेय भक्ति की लोक व्याप्ति, सामाजिक समरसता, सहज जीवन दर्शन जैसे अनेक स्तरों पर दिखाई देता है। उन्होंने अध्यात्म और व्यवहार, श्रम और भक्ति के बीच सेतु बनाया। वे सर्वात्मवाद के प्रसारक हैं। उन्होंने भक्ति के साथ ज्ञान और वैराग्य, हरि के साथ हर और सगुण के साथ निर्गुण के समन्वय पर बल दिया है। उनके द्वारा रोपित मूल्यों ने बहुत बड़े जन समुदाय को प्रभावित किया है। 


प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि महाराष्ट्र के भक्त-कवियों ने न केवल मराठी में भक्तिपरक काव्य की रचना की, हिंदी साहित्य को भी अपनी भक्ति-रचनाओं से समृद्ध किया। नामदेव तो एक तरह से उत्तरी भारत की संत-परम्परा के आदिकवि कहे जा सकते हैं, जिन्होंने महाराष्ट्र से चलकर सम्पूर्ण देश की यात्रा की और भक्ति का पथ प्रशस्त किया। उन्हीं की परम्परा को स्वामी रामानन्द, कबीर, नानक, रैदास, सेन, पीपा, मीरा आदि ने बढ़ाया। 



संगोष्ठी के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि महाराष्ट्र को संतों की भूमि कहा जाता है। महाराष्ट्र के संतों ने प्रायः अद्वैतवादी होते हुए भी भक्ति के महत्व को प्रतिपादित किया। सन्त ज्ञानेश्वर और तुकाराम जी महाराष्ट्र की संस्कृति के नींव के पत्थर हैं। तुकाराम जी ने कहा है कि जो दुखियों और पीड़ितों को अपना मानता है वही सच्चे अर्थों में संत है। संतों ने समाज को प्रबोधित करने का काम किया।




प्रा. डॉ. भरत शेणकर (राजूर, अहमदनगर) ने संत तुकाराम के काव्य की प्रासंगिकता पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि संत तुकाराम के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। आज समाज में परोपकार की भावना लुप्त होती जा रही है। जाति तथा पंथ के नाम पर समाज में जो बिखराव हो रहा है, अगर उसे दूर करना है तो हमें संत तुकाराम के विचारों को अपनाना होगा। नीति और मूल्यों की पुनर्स्थापना तथा संत तुकाराम के विचारों को अपनाकर हम जातिगत और धर्मगत मत-मतांतरों को दूर कर सकते हैं। सामाजिक एकता और समरसता की स्थापना के लिए संत तुकाराम के सामाजिक, धार्मिक, दार्शनिक विचारों को समस्त मानव समाज को अपनाना होगा। 



नांदेड़, महाराष्ट्र की डॉ अरुणा राजेंद्र शुक्ल ने महाराष्ट्र के संत ज्ञानेश्वर एवं भक्त मीरा के भक्तिपरक साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन विषय पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने ज्ञानेश्वर और मीराबाई की प्रेम भक्ति, दोनों के जीवन में आए संघर्ष और उन्हें मिली हुई प्रपंच से मुक्ति पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि दोनों की श्री कृष्ण के प्रति प्रेम भक्ति में पर्याप्त साम्य एवं अंतर के बावजूद सगुण एवं निर्गुणवाद और भक्ति जैसे अनेक स्तरों पर दोनों के काव्य में अंतर की अपेक्षा साम्य ही अधिक है। संत ज्ञानेश्वर की कविता मध्ययुगीन मराठी काव्य की श्रेष्ठ भक्ति कविता है, तो मीराबाई की कविता मध्ययुगीन उत्तर भारत की श्रेष्ठ प्रेम भक्ति कविता है।


डॉ दत्तात्रय टिळेकर, ओतूर (पुणे) ने भक्ति काव्यधारा की  बहुज्ञानी, उपेक्षिता  कवयित्री और अपने स्त्रीत्व पर गर्व करनेवाली संत जनाबाई के अवदान की चर्चा करते हुए कहा कि उन्हें अलौकिक कहलवाने का कोई मोह नहीं था। उन्होंने स्वयं मानवी बनकर अपने आराध्य विठ्ठल को भी मानवीय धरातल पर खडा किया। उन्होंने मीरा की तरह विरहिणी बनकर ईश्वर की आराधना की।




लता जोशी (मुबंई)  ने आधुनिककालीन सिद्ध संत तुकडोजी महाराज के योगदान पर विचार व्यक्त किए, जिन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजेंद्रप्रसाद जी ने राष्ट्रसंत की उपाधि से अलंकृत किया। उन्होंने कहा कि  संत तुकड़ो जी महाराज ने ग्राम की स्वयंपूर्णता,  सुशिक्षा, ग्रामोद्योग, सर्वधर्म समभाव आदि विचार भारतीय जनमानस तक पहुँचाने का प्रयास किया। साथ ही सामाजिक सुधार आंदोलन चलाकर अंधविश्वास, अस्पृश्यता, मिथ्या धर्म, गोवध एवं अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष किया।



डॉ प्रवीण देशमुख, अकोला ने महाराष्ट्र की संत परम्परा में संत तुकड़ोजी के मानवतावादी विचारों पर प्रकाश डालते हुए उनके सामाजिक विचार, सर्वधर्म समभाव की दृष्टि को लेकर बात की। वर्तमान में उनके विचारों की प्रासंगिकता पर बात की। अपने ईश्वर भक्ति को राष्ट्रभक्ति तथा देशप्रेम से जोड़ दिया तथा समाज में नवचेतना जगाने का प्रयास किया।



कार्यक्रम में संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा, डॉ. सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ मनीषा शर्मा, अमरकंटक आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। 




इस अवसर पर श्री शम्भू पँवार, झुंझुनूं, रश्मि चौबे, गाजियाबाद, तृप्ति शर्मा, बेंगलुरु, दिल्ली के वरिष्ठ कवि श्री राकेश छोकर, डॉ सुनीता तिवारी, मुम्बई, डॉ शोभा राणे, नासिक, राजकुमार यादव, मुंबई, डॉ अर्चना दुबे, मुंबई, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ रोहिणी, औरंगाबाद, डॉ रूपाली चौधरी, पुणे, डॉ सुशीला पाल, मुम्बई, प्रभा बैरागी, उज्जैन, डॉ श्वेता पंड्या, सागर चौधरी, विजय शर्मा, पंढरीनाथ देवले, प्रियंका परस्ते आदि सहित देश के अनेक राज्यों के शिक्षाविद, साहित्यकार और अध्येताओं ने भाग लिया।






कार्यक्रम का संचालन डॉ कामिनी बल्लाल, औरंगाबाद ने किया। आभार श्रीमती पुष्पा गरोठिया, भोपाल ने माना।















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