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20210618

लोक देवता देवनारायण जी : संस्कृति और पर्यावरण को योगदान - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Lok Dewata Devnarayan ji: Contribution to Culture and Environment Prof. Shailendra Kumar Sharma

प्राणी जगत के मूल आधारों पर कार्य किया लोक देवता देवनारायण जी ने - प्रो शर्मा


अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ लोक देवता देवनारायण जी : संस्कृति और पर्यावरण को योगदान पर मंथन 


प्रतिष्ठित संस्था देव चेतना परिषद, उज्जैन द्वारा  लोक देवता देवनारायण जी : संस्कृति और पर्यावरण को योगदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि पूर्व कैबिनेट मंत्री, राजस्थान श्री कालूलाल गुर्जर, भीलवाड़ा थे। मुख्य अतिथि  विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन में विशिष्ट अतिथि नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली, वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, संस्था के अध्यक्ष डॉ प्रभु चौधरी, डॉ राकेश छोकर आदि ने विषय के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी की अध्यक्षता अखण्ड भारत गुर्जर महासभा, जयपुर के अध्यक्ष श्री देवनारायण गुर्जर ने की। सूत्र संयोजन डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर ने किया। अखण्ड भारत गुर्जर महासभा की साहित्यिक संस्था देव चेतना परिषद द्वारा संगोष्ठी के बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें अनेक निर्णय लिए गए।




संगोष्ठी में पूर्व कैबिनेट मंत्री श्री कालू लाल गुर्जर, भीलवाड़ा ने कहा कि देव नारायण जी ने प्राकृतिक संपदा के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने नीम के वृक्ष को विशेष मान दिया, जो पर्यावरण को शुद्ध रखने के साथ-साथ औषधि के रूप में उपयोग में आता है। उनके परिवार के पास 9 लाख 80 हजार गायें मौजूद थीं। उस दौर में उन्होंने प्रकृति के संरक्षण पर बल दिया। उनके मंदिरों के आसपास पर्याप्त आकार में जंगल छोड़े जाते हैं। देवनारायण जी के  पर्यावरण विचार को जन जन तक पहुंचाने के प्रयास होने चाहिए।



संगोष्ठी में व्याख्यान देते हुए  विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के  कला संकायाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि सदियों से  देवनारायण जी जाग्रत देव के रूप में पश्चिम एवं मध्य भारत के लोक आस्था के केंद्र बने हुए हैं। उन्हें विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाता है। उन्होंने प्राणी जगत के मूल आधारों पर कार्य किया।  वन संपदा, पशुधन, जल स्रोतों और चरागाहों के रक्षक और पोषक के रूप में उनका योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने सिद्ध किया कि अन्न धन और पशुधन ही वास्तविक धन है, जिसकी रक्षा के लिए देवनारायण जी का त्याग, तपस्या और उत्सर्ग आज भी रोमांचित करता है। उनके जीवन चरित्र पर आधारित अनेक लोक गाथाएं जातीय स्मृतियों और जीवन मूल्यों को प्रतिबिंबित करती हैं। उनकी गाथाएँ भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक भूगोल, इतिहास और जातीय स्मृतियों की जीवंत दस्तावेज हैं। उन्होंने नए प्रकार की सामाजिक संरचना और समतामूलक संस्कृति की आधारशिला रखी। कर्मकांड और बाह्याडंबर का उन्होंने प्रतिरोध किया। समाज के विभिन्न वर्गों को जोड़ते हुए उन्होंने परस्पर प्रेम, भाईचारे और समरसता का संदेश दिया, जो वर्तमान में अत्यंत प्रासंगिक सिद्ध हो रहा है। 


अध्यक्षता करते हुए अखण्ड भारत गुर्जर महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष  डॉ देवनारायण गुर्जर, जयपुर ने कहा कि देवनारायण जी प्रत्यक्ष रूप में विष्णु का अवतार थे। उनके चरित्र और लीलाओं के संदर्भ में सांस्कृतिक योगदान को जानना आवश्यक है। उनकी शिक्षाओं का क्षेत्र व्यापक है। गुर्जर संस्कृति की पहचान है, स्वाभिमान के साथ जीना और अन्य वर्ग के लोगों को भी स्वाभिमान से जोड़ना। देवनारायण जी ने शोषित एवं वंचित वर्ग को सम्मान दिलवाया। उन्होंने आयुर्वेद को महत्व दिया। वर्तमान सांस्कृतिक संक्रमण और पर्यावरणीय संकट के दौर में देवनारायण जी के संदेश की प्रासंगिकता है। देवनारायण जी ने ईटों के रूप में पूजे जाने और पूजा में नीम के पत्तों के प्रयोग पर बल दिया। प्रकृति के साथ जुड़ाव का इस प्रकार का कोई दूसरा उदाहरण देखने को नहीं मिलता है। उन्होंने अत्याचारियों के अन्याय से मुक्त होने के लिए वंचित और पिछड़े वर्ग के लोगों को सम्मान दिलाया। 




विशिष्ट अतिथि डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली में कहा कि प्राचीन युग से भारत में पर्यावरण को संस्कृति और धर्म के साथ महत्वपूर्ण स्थान मिला है। देवनारायण जी ने समाज में संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। उस दौर में अत्यंत सीमित आर्थिक संसाधन थे, फिर भी अंतःप्रज्ञा के माध्यम से समाज सुधार का कार्य किया गया। विकास के नाम पर आज जंगल काटे जा रहे हैं। कृषि भूमि और चरागाह संकट में हैं। ऐसे में देवनारायण जी द्वारा दिए गए संदेशों को चरितार्थ करने की आवश्यकता है। देवनारायण जी पर केंद्रित साहित्य को नई पीढ़ी के सम्मुख लाने के प्रयास किए जाएं।


वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ऑस्लो, नॉर्वे ने कहा कि श्री देवनारायण जी से संबंधित साहित्य और इतिहास को व्यापक फलक पर प्रसारित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वे देवनारायण जी के जीवन प्रसंगों से जुड़े साहित्यिक अंशों का अनुवाद नार्वेजीयन भाषा में करेंगे।




अतिथि परिचय संस्था के अध्यक्ष डॉक्टर प्रभु चौधरी ने विषय की प्रस्तावना प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि संस्था द्वारा देवनारायण जी के आदर्शों के अनुरूप साहित्य एवं समाजसेवा के क्षेत्र में कार्य किया जा रहा है। 


डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कहा कि देवनारायण जी ने केवल किसी क्षेत्र विशेष ही नहीं, वरन संपूर्ण पृथ्वी लोक के संरक्षण का संदेश दिया। उन्होंने सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में सुप्त अवस्था से लोगों को जगाया और मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा की। वे मानते हैं कि सभी के संरक्षण से सृष्टि का संरक्षण संभव है।


इस अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में देवनारायण पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन, जन्मोत्सव पर समाज के साहित्यकारों और  समाजसेवियों के सम्मान  समारोह, संगठन की स्मारिका प्रकाशन आदि के निर्णय लिये गए।




संगोष्ठी के प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ संगीता पाल, कच्छ, गुजरात ने की। गणेश वंदना मोक्षा लोहारिया ने की। स्वागत भाषण श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर ने प्रस्तुत किया। 


आयोजन में  श्री टीकमचंद अनजाना, पुखराज गुर्जर, डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली, श्री छीतरलाल कंसाना, विक्रमसिंह चौधरी, डॉ पूर्णिमा कौशिक, श्रीकांत पाल, डॉक्टर संजीव कुमारी, हिसार, पुखराज गुर्जर, श्री मोहनलाल वर्मा आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।


संगोष्ठी का संचालन डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली ने किया।




लोक देवता देवनारायण जी

20210602

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर : राष्ट्रीय और सांस्कृतिक योगदान - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Lokmata Ahilyabai Holkar: National and Cultural Contribution - Prof. Shailendrakumar Sharma

राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और भावात्मक एकीकरण में अहिल्याबाई का योगदान अविस्मरणीय है – प्रो. शर्मा 

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर : राष्ट्रीय और सांस्कृतिक योगदान पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी लोकमाता अहिल्याबाई होलकर : राष्ट्रीय और सांस्कृतिक योगदान पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार श्री सुनील गणेश मतकर, इंदौर थे। विशिष्ट वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। मुख्य अतिथि प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे थे। अध्यक्षता नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल ने की। आयोजन के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ ममता झा, मुंबई एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ पूर्णिमा कौशिक रायपुर ने किया।




मुख्य वक्ता के रूप में इंदौर के श्री सुनील गणेश मतकर ने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर की दृष्टि अत्यंत व्यापक थी। उन्होंने पर्यावरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया। इसके साथ ही समाज के विभिन्न वर्गों के उत्थान के लिए नई परंपराओं का सूत्रपात किया। प्रजा के दुख दर्द को वे स्वयं सुनती थीं और उनकी जरूरत के अनुसार पर्याप्त सहायता देती थीं। श्री मतकर ने अहिल्या जी के द्वारा किए गए विभिन्न सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया। साथ ही अपने पिताजी डॉ गणेश मतकर द्वारा उनके संदर्भ में लिखी गई पुस्तकों एवं नाट्य प्रदर्शनों का जिक्र किया। श्री सुनील ने अति संक्षेप में महेश्वर, इंदौर, कंपेल, देवगुराडिया के साथ खासगी ट्रस्ट से संबंधित रोचक प्रसंगों की जानकारियां दीं। 




विशिष्ट वक्ता उज्जैन के डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि अहिल्यादेवी होलकर सही अर्थों में राष्ट्रमाता थीं। उन्होंने दशकों पूर्व राष्ट्रीय,  सांस्कृतिक और भावात्मक एकीकरण का अविस्मरणीय प्रयास किया। देवालयों और सांस्कृतिक प्रतीकों के जीर्णोद्धार और नव निर्माण का अत्यंत साहसिक कार्य उन्होंने किया। उनका योगदान ऐतिहासिक है। उन्होंने प्रभावी राज्यशैली, धर्मपरायणता और बुद्धिमत्ता की मिसाल पेश की। उनके अवदान मात्र होलकर राज्य तक सीमित नहीं है, वरन संपूर्ण भारत और विश्व में एक अवतारी नारी के रूप में उनका स्मरण किया जाता है। उन्होंने इस संदर्भ में जान मालकम द्वारा उनके संबंध में लिखे गए प्रसंगों को भी उद्धृत किया। श्री शर्मा ने कहा कि अहिल्या जी को याद करना भारतीय संस्कृति के उदात्त पक्षों को याद करना है, जिनका उन्होंने आजीवन संरक्षण किया। अहिल्यादेवी कर्तव्यपरायण धार्मिक एवं समाजसेवी होने से लोकमाता बनीं।

 

हिंदी परिवार, इंदौर के अध्यक्ष हरेराम वाजपेयी ने कहा कि लोकमाता अहिल्या जी की नगरी में मैं रह कर अपने आप को धन्य समझता हूं। इंदौर शहर हर रोज, हर जगह अहिल्या जी को सादर नमन करता है। उन्होंने उनके नाम से इंदौर में विश्वविद्यालय, हवाई अड्डा, चेंबर ऑफ कॉमर्स, मार्ग, कालोनियों, शासकीय पुस्तकालय, गौशाला आदि सहित करीब डेढ़ दर्जन संस्थाओं के नामों का उल्लेख किया। साथ ही उनके संदर्भ में लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष सुमित्रा ताई महाजन, डॉक्टर गणेश मतकर, अरविंद जवलेकर आदि द्वारा अहिल्या जी पर लिखी गई पुस्तकों के संदर्भ  के साथ अपने उस आलेख का जिक्र किया, जो कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है। अहिल्याजी के नाम से मध्य प्रदेश शासन भारत की उस महिला को सम्मान पत्र और दो लाख की राशि प्रदान करता है, जो समाज सेवा में अग्रणी भूमिका निभाती है। 


मुख्य अतिथि पुणे के प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख ने अहिल्या जी के कृतित्व, व्यक्तित्व तथा उनके धार्मिक - सामाजिक कार्यों के संदर्भ में अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि देवी अहिल्या ने भारत के गौरव को बढ़ाया। उन्होंने जीवन भर दुख एवं संकट के क्षणों के बीच प्रभु की इच्छा के अनुरूप अपना कार्य किया। उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रेरणादायी था। उन्होंने सामाजिक क्रांति की। वे न्याय, प्रशासन और वीरता की मिसाल थीं। उन्होंने अपनी आत्मशक्ति के बल पर लोक कल्याण का कार्य किया। उनकी राज्य व्यवस्था न्याय और क्षमता पर आधारित थी उन्होंने देश में अनेक शिव मंदिरों की स्थापना की। युगों युगों तक देवी अहिल्या को याद किया जाएगा। 



संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने कहा कि देवी अहिल्या भारतीय परंपरा में नारी सशक्तीकरण की मिसाल हैं। वे सर्व धर्म समभाव के लिए आजीवन समर्पित रहीं। उनके योगदान से नई पीढ़ी को जोड़ने का कार्य किया जाना चाहिए। वरिष्ठ इतिहासकार डॉ गणेश मतकर अहिल्यादेवी पर केंद्रित नाटक का मंचन करते थे, जो बहुत लोकप्रिय हुआ।


मुंबई की श्रीमती सुवर्णा जाधव ने कहा कि महाराष्ट्र की बेटी को मालवांचल ने जो सम्मान दिया, वह अद्वितीय है। अहिल्याबाई होलकर न्यायप्रिय और बहादुर थीं। वे सही अर्थों में महिला शक्ति की प्रतीक हैं। उन्होंने अनेक धार्मिक कार्य किए। सामान्य परिवार में जन्मी अहिल्यादेवी ने बाल्यावस्था से ही दया और सेवा भावना के उदाहरण प्रस्तुत किए। उन्होंने स्त्रियों की सेना बनाई। वे धार्मिक सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति थीं।



संगोष्ठी में संस्था के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर ने स्थान स्थान पर मंदिर, जलाशय, घाट, अन्नक्षेत्र आदि प्रारंभ करवाए। वे शिव भक्त थीं। उनके ही संरक्षण में उन्होंने राज्य किया। संस्था के द्वारा देवी अहिल्या स्मृति नारी शक्ति सम्मान घोषित किया गया है, जो प्रतिवर्ष समाज में नारी सशक्तीकरण के क्षेत्र में कार्य करने वाली महिला को दिया जाता है। 






डॉक्टर ममता झा, मुंबई ने कहा कि अहिल्याबाई होलकर ने अपने कार्यों से शक्ति और बुद्धिमत्ता के तालमेल की मिसाल प्रस्तुत की। उनका व्यक्तित्व दो सौ वर्ष पूर्व स्त्री सशक्तीकरण का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने माहेश्वरी साड़ी की कला को विश्व ख्याति दिलाई।


आयोजन की संयोजिका डॉ पूर्णिमा कौशिक रायपुर में अहिल्याबाई होल्कर पर केंद्रित  गीतमय स्लाइड प्रेजेंटेशन किया।


कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉक्टर संगीता पाल, कच्छ, गुजरात ने की। अतिथि परिचय साहित्यकार श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर ने दिया। स्वागत भाषण डॉक्टर शिवा लोहारिया जयपुर ने प्रस्तुत किया।



संगोष्ठी में डॉक्टर ममता झा, मुंबई, डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ विमल चंद्र जैन इंदौर, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, मुंबई, डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉ सुनीता चौहान, डॉ सुनीता गर्ग, डॉ ख्याति पुरोहित, अहमदाबाद, श्री अशोक भागवत, श्री बलजीत पाल, श्री बलवंत पाल, नीतू पांचाल, पल्लवी पाटील आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।


राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने किया। आभार प्रदर्शन  डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया।







 


 












देवी अहिल्या जन्मोत्सव

20201130

गुरु नानक : सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Guru Nanak : Social - Cultural Context - Prof. Shailendra Kumar Sharma

अखिल विश्व के प्रति उत्कट अनुराग निहित है गुरु नानक  की वाणी में  – प्रो शर्मा 

गुरु नानक देव जी : सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी 

   

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा गुरु नानक देव जी : सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश - दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के विद्वान वक्ताओं और साहित्यकारों ने भाग लिया।  कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि सरदार जसवंत सिंह अमन, लुधियाना, प्रो हरपालसिंह पन्नू, बठिंडा सरदार डॉ बलविंदरपाल सिंह, लुधियाना, पंजाब, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, पंजाब, डॉ शिवा लोहारिया जयपुर, डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली, साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉक्टर गरिमा गर्ग, चंडीगढ़, महासचिव डॉ प्रभु चौधरी एवं उपस्थित वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षाविद् डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की।







प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि गुरु नानक जी ने मानवीय जीवन से जुड़े अनेक व्यावहारिक सन्देश दिए हैं। उन्होंने गुरु नानक देव जी द्वारा दिए गए दस प्रमुख संदेशों का नॉर्वेजियन भाषा में अनुवाद प्रस्तुत किया।






मुख्य वक्ता प्रसिद्ध लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि विश्व संस्कृति को गुरु नानक देव जी की देन अद्वितीय है। उनका सामाजिक और सांस्कृतिक चिंतन गहरी आध्यात्मिक दृष्टि पर टिका है। उनकी वाणी के केंद्र में  परमात्मा की व्यापकता और  अखिल विश्व के प्रति उत्कट अनुराग अंतर्निहित है। इस संसार में सत्य एक ही है, उसका विभिन्न रूप और विधियों के माध्यम से अलग-अलग दर्शन और अलग-अलग वर्णन सदियों से किया जा रहा है। गुरु नानक जी उन सब के मध्य समन्वय का मार्ग सुझाते हैं। वे सभी पंथियों का आह्वान करते हैं कि एक बार मन को जीत लें तो सारा संसार जीता जा सकता है। उन्होंने न केवल व्यापक लोक समुदाय को प्रभावित किया, वरन उसे नए ढंग से जीने और दुनिया को देखने का नजरिया दिया। उनका मुख्य सन्देश है कि परमात्मा एक है, उसी ने हम सबको बनाया है। सभी मत, पंथ और संप्रदायों के अनुयायी एक ही परमात्मा की संतानें हैं। गुरु नानक जी परमात्म तत्त्व के साक्षात्कार के लिए भटकते हुए लोगों को सही राह दिखाते हैं। उन्होंने सभी पंथों के लोगों से बाह्याडंबरों को त्याग कर मूल्यों पर दृढ़ रहने की प्रेरणा दी। उनका मार्ग पलायन और निष्कर्म से परे गहरे दायित्वबोध का मार्ग है। संन्यास लेने भर से मुक्ति नहीं मिलती, वह तो स्वभाव की प्राप्ति से सम्भव है। स्वयं को पहचाने बगैर भ्रम की काई नहीं मिटेगी।




विशिष्ट अतिथि सरदार डॉ बलविंदरपाल सिंह, लुधियाना, पंजाब ने गुरु नानक देव की वाणी में निहित आर्थिक दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज दुनिया भर में लंगर चल रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि गुरु नानक जी ने बीस रुपये से जो पहली बार लंगर करवाया था, उसकी एफ डी इस तरह हुई थी कि आज भी वह लंगर जारी है। गुरु नानक जी की मान्यता है कि समस्त प्रकार के भौतिक संसाधन और बौद्धिक क्षमता ईश्वर द्वारा दिया गया उपहार है। दुनिया में प्राप्त सभी पदार्थ सभी के लिए हैं। गुरु नानक जी मानते हैं कि जरूरतमंद लोगों को केवल दान देने से लाभ नहीं होगा, वरन उन्हें कौशल सिखाया जाए, जिससे वे स्वयं धन उपार्जन कर सकें। वास्तविक रत्न और जवाहर बुद्धि में है, गुरु नानक जी ने इस बात पर बल दिया है। नानकदेव जी ने करतारपुर में स्वयं अपने हाथों से खेती की थी। कितनी भी तरक्की हो जाए, किंतु हम ईश्वर को न भूलें, यह गुरु नानक जी का संदेश है। गुरु नानक जी  निरपेक्ष गरीबी रखने वालों के साथ खड़े होने का आह्वान करते हैं। उन्होंने अनेक नए शहर बसाए, जो आर्थिक प्रगति में सहायक सिद्ध हुए।




लुधियाना, पंजाब के सरदार डॉ जसवंत सिंह अमन ने गुरु नानक देव जी के राजनीतिक विचारों पर व्याख्यान देते हुए कहा कि गुरु नानक जी के दौर में धर्म का स्वरूप विकृत हो गया था। नैतिकता के क्षरण के दौर में उन्होंने नई दिशा दिखाई। शासक और प्रशासक, प्रजा विरोधी रवैया अपनाए हुए थे। गुरु नानक जी परमेश्वर को सर्वोच्च शासक मानते हैं। उनके बिना संसार में कुछ भी नहीं है। वे शासकों में परमेश्वर के गुण चाहते हैं। वे प्रजा में भी ज्ञानयुक्त होने की अपेक्षा करते हैं। भ्रष्ट शासन व्यवस्था के लिए वे प्रजा को भी जिम्मेदार मानते हैं। गुरु नानक जी राजनीति को धर्म के अधीन रखते हैं, तभी अत्याचारों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।



अध्यक्षीय उद्बोधन में शिक्षाविद् डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि गुरु नानक जी के विचार अनेक संदर्भों में आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने सभी पंथों और धर्मों के लिए महत्वपूर्ण उपदेश दिए हैं। वे योगी, समाज सुधारक, उपदेशक और  देशभक्त थे। उनकी दृष्टि में मानव मात्र की सेवा सबसे बड़ी ईश्वर भक्ति है। संसार की प्रमुख समस्याओं के निराकरण के लिए नानक वाणी में कई महत्वपूर्ण संदेश मिलते हैं।





डॉ प्रवीण बाला, लुधियाना में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गुरु नानक जी ने संपूर्ण समाज को बाह्य आडंबर और भेदभाव से मुक्त किया। उन्होंने बाल्यकाल से ही अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया था। उनके जीवन से जुड़ी अनेक चमत्कारिक घटनाएं आज भी याद की जाती हैं। उनके संदेश तीन आधारों  पर टिके हैं कीरत करो, नाम जपो और लंगर छको।





समाजसेवी  डॉ. शिवा लोहारिया, जयपुर ने कहा कि समाज की आत्मनिर्भरता और आध्यात्मिक उन्नति के लिए गुरु नानक के संदेश अत्यंत प्रासंगिक हैं। उन्होंने तत्कालीन धर्म के उपदेशकों की सीमाएं बताईं और लोगों को सद्धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश दिया।



कार्यक्रम की संकल्पना और  संस्था का प्रतिवेदन  महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत किया। 





इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली एवं  साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी ने भी विचार व्यक्त किए। श्री वाजपेयी ने इंदौर क्षेत्र में स्थित विभिन्न गुरुद्वारों का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि गुरुद्वारों के माध्यम से अपूर्व शांति प्राप्त होती है।



प्रारंभ में संगीतमय गुरुवाणी अलका वर्मा  ने प्रस्तुत की। स्वागत भाषण साहित्यकार डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर ने दिया। अतिथि परिचय वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राजेंद्र साहिल, पटियाला ने दिया। 




अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में  संस्था की राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष डॉक्टर सुवर्णा यादव, मुंबई, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ आशीष नायक, रायपुर, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली, डॉ मधुकर देशमुख, नागपुर, डॉ रुपिंदर शर्मा, पटियाला, डॉ  रिधिमा जोशी, डॉ राजेंद्र कुमार सेन, भटिंडा, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉक्टर राजेंद्र साहिल, लुधियाना, डॉ राधा दुबे, जबलपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ श्वेता पंड्या, उज्जैन, श्रीराम सौराष्ट्रीय आदि सहित अनेक प्रतिभागियों ने भाग लिया।




अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद एवं डॉ राजेंद्र साहिल, लुधियाना ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ राजेंद्र कुमार सेन, भटिंडा ने किया।



























गुरुनानक जयंती पर स्वस्तिकामनाएँ




20201121

दीपावली : आलोक के प्रति आस्था मनुष्य सभ्यता का प्रमुख अंग - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

आलोक के प्रति आस्था मनुष्य सभ्यता का प्रमुख अंग रही है – प्रो शर्मा 

लौकिक जीवन पर अलौकिक आभा का पर्व पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न   

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी एवं काव्य पाठ का आयोजन किया गया, जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ वक्ताओं और साहित्यकारों ने भाग लिया। राष्ट्रीय संगोष्ठी लौकिक जीवन पर अलौकिक आभा का पर्व पर केंद्रित थी। कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट वक्ता शिक्षाविद डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे थे। संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली, वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉ रश्मि चौबे, आगरा, डॉक्टर मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉक्टर लता जोशी, मुंबई, महासचिव डॉ प्रभु चौधरी एवं उपस्थित वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, ने की। यह संगोष्ठी दीपोत्सव पर्व पर आयोजित की गई।




मुख्य अतिथि लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि अनादि काल से आलोक के प्रति आस्था मनुष्य सभ्यता का प्रमुख अंग रही है।


दीपावली लोक से लोकोत्तर को जोड़ने का अनूठा अवसर देती है। दीपावली त्रिविध तापों से ग्रस्त लौकिक जीवन पर अलौकिक आभा का पर्व है। दीपावली  के पाँच दिन अज्ञात अतीत से न जाने कितनी जातीय स्मृतियों, लोक एवं शास्त्र की परम्पराओं और सांस्कृतिक - सामाजिक मूल्यों को लेकर आते हैं और फिर हमारे आसपास से जुड़ी पारिवेशीय चेतना के साथ दोहराए जाते हैं। लक्ष्मी का स्थिर वास वहां माना गया है, जहां परस्पर प्रेम, शुभत्व, स्वच्छता और शुचिता होती है। इस पर्व के पीछे गहरी पर्यावरणीय दृष्टि रही है। लक्ष्मी का संबंध कृषि, वनस्पति, समुद्र एवं जल स्रोतों के साथ माना गया है। उनकी उपासना के लिए इन्हीं स्थानों से प्राप्त उपादानों को अर्पित किया जाता है। यह पर्व परंपरा के साथ आधुनिकता, पुराख्यान के साथ वैज्ञानिकता के समन्वय का पर्व है। दीपावली पर्व अनेक सदियों से सर्वधर्म सद्भाव और लोकोपकार के लिए समर्पित होने की प्रेरणा देता आ रहा है। सही अर्थों में यह समूचेपन का, मनुष्य जीवन के भरे-पूरेपन का उत्सव है।



विशिष्ट वक्ता वरिष्ठ शिक्षाविद डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि दीपावली पर्व भारतीय सभ्यता का सबसे अनूठा और परम पवित्र त्यौहार है। शास्त्र और लोक परंपरा में इस पर्व की विशेष महिमा मानी गई है, जिन पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।


विशिष्ट अतिथि साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि दीपोत्सव अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला पर्व है। अलौकिक आभा के माध्यम से जन समुदाय को सार्थक संदेश मिलते हैं। उन्होंने इस अवसर पर दीप गीत भी प्रस्तुत किया।

 




विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कहा कि दीपावली पुरुषार्थ और बंधुत्व का पर्व है। ज्योति का यह पर्व सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।


कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुम्बई ने कहा कि दीपावली परस्पर स्नेह और सद्भाव का पर्व है। कोविड संकट के बावजूद लोगों ने दीपों के इस पर्व को नई आशा का संचार करते हुए मनाया।

 



दीपोत्सव से जुड़ी कविताएं डॉ रश्मि चौबे, आगरा, डॉक्टर मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉक्टर लता जोशी, मुंबई आदि ने प्रस्तुत कीं।


संस्था का परिचय, संगोष्ठी की संकल्पना एवं स्वागत भाषण राष्ट्रीय महासचिव श्री प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि दीपावली ज्योति का सांस्कृतिक पर्व है। इसका संबंध लक्ष्मी पूजन के साथ भगवान राम के अयोध्या आगमन से भी माना गया है। संस्था की गतिविधियों का प्रतिवेदन डॉ भरत शेणकर, अहमदनगर ने प्रस्तुत किया।  




सरस्वती वंदना साहित्यकार श्री सुंदरलाल जोशी, नागदा ने की। अतिथि परिचय डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने दिया।


कार्यक्रम में डॉक्टर मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, आगरा, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉक्टर लता जोशी, मुंबई, राम शर्मा, मनावर, डॉ आशीष नायक, रायपुर, डॉक्टर गरिमा गर्ग, मथेसुल जयश्री अर्जुन आदि सहित अनेक प्रतिभागी उपस्थित थे। 


कार्यक्रम का संचालन संस्था की डॉक्टर रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने किया। आभार प्रदर्शन राष्ट्रीय उप महासचिव डॉक्टर लता जोशी, मुंबई ने किया।


























दीपावली पर्व पर स्वस्तिकामनाएँ।


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