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20200816

राष्ट्र के विकास के लिए समत्व भावना और ऐक्य बन्धन जरूरी - प्रो. शर्मा

देश की प्रकृति और संस्कृति के साथ प्रेम राष्ट्र प्रेम का प्रतीक है – प्रो. शर्मा 

स्वाधीनता दिवस पर हुई अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी 

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी - आजादी के अमर स्वर का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ रचनाकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉ चेतना उपाध्याय, अजमेर,  एवं श्री राव कुलदीप सिंह, भोपाल थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता ओस्लो नॉर्वे के प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ने की।



वरिष्ठ लेखक और आलोचक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि राष्ट्र के विकास के लिए समत्व भावना और ऐक्य बन्धन आवश्यक है। अपने देश की प्रकृति और संस्कृति के साथ प्रेम राष्ट्र प्रेम का प्रतीक है। स्वतंत्रता का महत्त्व राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर आजादी के साथ वैचारिक आजादी प्राप्त करने में है। हमें इतिहास और विरासत को लेकर गौरव का भाव होना चाहिए। 





ओस्लो, नॉर्वे के साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ने अपना चर्चित देशभक्ति गीत सुनाया। गीत की पंक्तियाँ थीं, 

हमारे प्राण सा भारत, हमारा स्वर्ग सा भारत।

 वतन से दूर रहकर भी, हमारे ह्रदय में बसता, 

हमारी संस्कृति श्रद्धा, हमारा स्वर्ग सा भारत। 

प्रेम के धागे पिरोकर, जिसे जयमाल पहनाते, 

वही मेरा सुखद मंदिर, हमारे प्राण सा भारत।





श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि साहित्यकार का दायित्व जन जन में देश प्रेम का भाव भरना है। 

संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रारम्भ में कार्यक्रम की भूमिका प्रस्तुत की। 




डॉक्टर चेतना उपाध्याय ने अपनी रचना लो फिर आ गया पन्द्रह अगस्त से नई ऊर्जा का संचार किया। उनकी पंक्तियां थी, 

हर वर्ष आता है 

इस वर्ष भी आ गया पन्द्रह अगस्त। 

पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे। 

आज अपनी आदतों के गुलाम बने बैठे हैं, 

अपना तो अपना दूसरों का चैन हराम किए बैठे हैं।





अनुराधा अच्छावन ने मेरे अज़ीज मुल्क़ शीर्षक रचना पढ़ी। कविता की पंक्तियाँ थीं, 

अहले वतन तुमको शहीदों की शहादत याद रहे।

 ख़ून से सींचा हैं, उन्होंने इस मिट्टी को ये हकीकत याद रहें।

अद्भुत पराक्रम... अदम्य साहस, बहता था रक्त बनकर। 

देशप्रेम जिनकी रगों में उन शूरवीरों का शौर्य याद रहे 

है दिल -ए - तमन्ना मेरी बस यही कि झुकने न पाए तिरंगा कभी। 

अ! मेरे अज़ीज मुल्क़ तू सदा आबाद रहें।


सुवर्णा जाधव, मुंबई ने भारत मेरा महान शीर्षक कविता सुनाई। कविता की पंक्तियां थीं, 

स्वाती और निधि ने देशप्रेम की मशाल जलाई है,

समस्त नारी जाति के लिए अलग मिसाल बनाई है

और नवचेतना जगाई है। 

भारत मेरा महान, हीरे और सोने की खान।






राकेश छोकर, नई दिल्ली ने फिर से राजतिलक कर दो रचना सुनाई। कविता की पंक्तियाँ थीं,
 अखंड भारत  के वीर सपूतों, 
शौर्य गाथाओं के शिल्पकारों। 
अश्वमेध के बुंदेलों युद्धाभिषेक करो, 
तिरंगे को प्रणाम कर, 
मृत्युंजय आवेग का कर वरण, 
प्रतिकार की क्रोधाग्नि से, 
शत्रुओं के अत्याचार पर, 
अभिमन्यु सा वार कर, 
वज्रघाती पैगाम दो। 
राष्ट्र के हो अभिमान  तुम, 
अर्जुन सरीखे  रणबांकुरे, 
भीष्म प्रतिज्ञा लो, 
माँ के यशोगान को, प्राणों के।



डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद की कविता की पंक्तियाँ थीं, अखंड भारत के आगे, देशी विदेशी नतमस्तक हो जाएं। असली स्वतंत्रता तब होगी। 

 उर्वशी उपाध्याय प्रेरणा,  प्रयागराज ने अपनी कविता के माध्यम से नया उत्साह जगाया, उनकी पंक्तियां थीं,   
केसरिया है जोश जवां का, 
धानी रंग किसान का, 
गंगा-जमुना-सरस्वती और, 
राम और घनश्याम का। 
लहर- लहर लहराए तिरंगा, 
सकल विश्व में मान, 
हमारा प्यारा हिन्दुस्तान - 
              हमारा भारत देश महान।                         



डॉ. शैल चन्द्रा, धमतरी, छत्तीसगढ़ ने अपनी कविता के माध्यम से शहीदों की पूजा का आह्वान किया। उनकी पंक्तियां थीं, न अल्लाह न ईसा न कोई भगवान। शहीदों की करूँगी पूजा, जो हैं महान। पढूंगी बाइबिल न गीता न कुरान। गाऊँगी मैं बस वीरों का यशोगान। जो शहीद हैं मातृभूमि पर, उनसे देश है उजियारा। लहराता रहे तिरंगा स्वतंत्रता का प्यारा।




रागिनी स्वर्णकार (शर्मा), इंदौर की रचना देश भक्ति का जज़्बा जगा गई। उनकी कविता की चंद पंक्तियाँ थीं, दिल मेरा, धड़कन मेरी,मेरी आन है। ये वतन तुझ पर जान मेरी कुर्बान है ...! कलम सदके में सदा ,झुकती रहे। शब्द -शब्द में तेरी, इबादत रहे। भाव मन के हों  सदा  शहादत भरे। अक्षर- अक्षर दिल में तेरा सम्मान है। वतन तुझ पर जान मेरी कुर्बान है...!





डॉ प्रियंका सोनी प्रीत ने अपनी रचना में भारत माँ की बेटियों के सामर्थ्य को अभिव्यक्ति दी, 

मैं बेटों  से नहीं कमतर मैं भारत मां की बेटी हूं, 

करूँ संहार दुश्मन का मैं भारत मां की बेटी हूं।

 मेरा ईमान, मेरा धर्म दुनिया क्या खरीदेगी, 

मैं धन को मार  दूं ठोकर भारत मां की बेटी हूं। 

मैं सरहद पर भी लड़ सकती हूं अपने देश की खातिर, 

नहीं डर मुझ में है कोई मैं भारत मां की बेटी हूं।

 समुंदर की तहों को भी खंगाल आऊंगी पल भर में, 

निकालूंगी नए गोहर मैं भारत मां की बेटी हूं।

कभी यह प्रीत घबराती नहीं दुश्मन की ताकत से, 

दिखाएं लाख वो खंजर मैं भारत मां की बेटी हूं।





प्रियंका द्विवेदी, प्रयागराज की काव्य पंक्तियां थीं, प्राणों से प्‍यारा लगे, भारत  देश महान। चलो बनाएं विश्‍व में, सुन्दर  ‍हिन्दुस्तान। सभी  जन गीता पढ़ें, पढ़ें सभी कुरान। भेदभाव सब दूर हों, मेरा  यह अरमान।


डॉ. प्रवीण बाला, पटियाला, पंजाब देश की प्रगति का आह्वान किया। उनकी कविता की पंक्तियां थीं, 

देश के लिए वीर जो शहीद हो गए  यहां, 

सर हमारे झुकते हैं नमन करें हम सदा। 

स्वतंत्रता मिली है उन्हीं के प्रयासों से, 

दीप हम जलाएंगे खुशी है आंखों में। 

प्रार्थना यही है देश मेरा फले और फूले, 

फले और फूले आगे बढ़ता चले, 

फले और फूले आगे बढ़ता चले।


कार्यक्रम में संगीता पाल, कच्छ, गुजरात, डॉ रेनु सिरोया, उदयपुर, दीपिका सुतोदिया, गुवाहाटी, असम, लता जोशी, मुंबई, श्री शम्भू पँवार, झुंझुनूं, रश्मि चौबे, गाजियाबाद, तृप्ति शर्मा, बेंगलुरु, डॉ मनीषा शर्मा, अमरकंटक, रचना पांडे, रायपुर आदि ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं।


संचालन कवयित्री रागिनी शर्मा ने किया। आभार डॉ अमृता अवस्थी, इंदौर ने माना।












20200814

राष्ट्रीयता का निर्माण परस्पर प्रेम और आत्म त्याग से सम्भव : प्रो. शर्मा

नार्वे से गूंजा 'हमारा स्वर्ग सा भारत' गीत अंतरराष्ट्रीय वेब काव्य गोष्ठी में

राष्ट्रीय चेतना का जन-जन व्यापी प्रसार संस्कृतिकर्मियों का दायित्व है – प्रो शर्मा 

स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें स्केंडनेवियन देशों के साथ भारत के कई राज्यों के कवियों, विद्वानों और संस्कृतिकर्मियों ने भाग लिया। आयोजन में स्वाधीनता आंदोलन के विभिन्न पक्षों से जुडी रचनाओं के साथ नव निर्माण के गीत भी गूँजे। नार्वे के सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' द्वारा सम्पादित बहुभाषी पत्रिका  स्पाइल-दर्पण और वैश्विका द्वारा आयोजित इस काव्य गोष्ठी में रचनाकारों ने राष्ट्र प्रेम से जुडी सरस रचनाओं का पाठ किया। 




वेब काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए  लेखक एवं समालोचक  प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि परस्पर प्रेम, बन्धुत्व  और आत्म त्याग के बिना राष्ट्रीयता का निर्माण संभव नहीं है। आजादी हमारे अमर सेनानियों का अमूल्य उपहार है। बलिदानियों को याद करते हुए देशवासी आजादी के महत्त्व को समझें। राष्ट्रीय चेतना का जन-जन व्यापी प्रसार संस्कृतिकर्मियों का दायित्व है। नॉर्वे से प्रकाशित स्पाइल दर्पण और वैश्विका पत्रिका इस दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।



प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल, ओस्लो, नॉर्वे ने अपनी रचना 'हमारा स्वर्ग सा भारत' का पाठ किया। इस गीत की पंक्तियाँ थीं,  

"वतन से दूर रहकर भी, हमारे ह्रदय में बसता,

 हमारी संस्कृति श्रद्धा, हमारा स्वर्ग सा भारत।

 प्रेम के धागे पिरोकर, जिसे जयमाल पहनाते, 

वही मेरा सुखद मंदिर, हमारे प्राण सा भारत।"

सुरेश पांडे, स्टॉकहोम, स्वीडन ने अपनी रचना में अंचल की यादों को बुना।



प्रो निर्मला एस मौर्य, चेन्नई ने कविता में पढ़ा, 

'एक वायरस ने मचा रखी तबाही दुनिया में, 

चारों तरफ सन्नाटे का शोर है। 

कोई कानों में फुसफुसा कर कह जाता है, 

डरना मत भारतवासी। 

ये कोरोना मरेगा अपनी मौत एक दिन

और भारत फिर से बन जायेगा। 

तितली सा मनोरम।'

डॉ मंजू मिश्र ने कहा, 

है रश्क जहाँ, मेरे एहले वतन, 

शोभे हिमालय का ताज, और धानी पैरहन। 

है सूरज से बिंदिया और दरिया की करधन। 

सागर पखारे है जिसके चरण, रश्क ऐ जहाँ अहले वतन।


छविन्दर कुमार ने अपनी कविता में कहा, 'तिरंगा मेरी जान है, मिल जुल कर रहना मेरे दोस्त। यही मेरा तीरथ, यही मेरा धाम है।


संगोष्ठी में सम्मिलित कवियों में शिवमंगल सिंह मंगल, डॉ. ऋचा पाण्डेय (लखनऊ विश्वविद्यालय), डॉ रज़िया (चेन्नई), डॉ. लहरी राम मीणा (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय), डॉ राम अवतार बैरवा, अभिषेक सहज, नई दिल्ली,  आदि मुख्य थे।









20200812

राष्ट्रभक्ति देश के कण कण और जन जन से प्रेम है - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

देश के कण-कण और जन-जन से प्रेम राष्ट्रभक्ति है - प्रो. शर्मा

राष्ट्रीय वेब कवि गोष्ठी में गूंजे आजादी के तराने

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्रीय वेब काव्य गोष्ठी - आजादी के तराने का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ रचनाकार श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुम्बई एवं श्री शंभू पँवार, झुंझुनूं, राजस्थान थे। अध्यक्षता संस्था के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने की। संयोजन श्रीमती दीपिका सुतोदिया, गुवाहाटी, असम ने किया। वेब कवि गोष्ठी में प्रस्तुत गीत और कविताओं से ओज के स्वर मुखरित हुए।



कार्यक्रम के मुख्य अतिथि लेखक और आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि देश के कण-कण और जन-जन से प्रेम राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है। भारतीय चिंतन में स्थानीयता, राष्ट्रीयता और वैश्विकता के आयाम परस्पर पूरक भूमिका निभाते आ रहे हैं। राष्ट्र की विराट संकल्पना में भूमि, जन और उनकी संस्कृति - सब कुछ समाहित हैं। स्थानीयता के आग्रहों के बावजूद भारतीय जनमानस में आसेतुहिमालय जैसे विस्तृत भूभाग के प्रति गहरा प्रेम सहस्राब्दियों से रहा है। भारत की अनेक भाषाओं और बोलियों के कवियों ने राष्ट्रीयता के उन्मेष में अविस्मरणीय योगदान दिया है। जयशंकर प्रसाद ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में स्वतंत्रता के स्वयंप्रभा और समुज्ज्वला रूप की महिमा गाई है, जो आज और अधिक प्रासंगिक हो गई है। राष्ट्रीयता के लिए आवश्यक है कि ऊपरी तौर पर दिखाई देने वाले अंतर के बावजूद आंतरिक समभावना और संगठन बना रहे।




विशिष्ट अतिथि श्री शंभू पँवार, झुंझुनूं ने संबोधित करते हुए कहा कि साहित्यकार राष्ट्र के प्रति प्रेम, बन्धुत्व और समर्पण का भाव जाग्रत करें। देश को मजबूती देने के लिए सभी वर्गों के सामूहिक प्रयास जरूरी हैं। 




कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. प्रभु चौधरी ने कहा कि वर्तमान समय में राष्ट्र के गौरव प्रतीकों के प्रति गहरा प्रेम जगाने की जरूरत है। काव्य गोष्ठी के माध्यम से लघु भारत साकार हो गया है। 




विशिष्ट अतिथि श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने रणबांकुरे शीर्षक कविता सुनाई। उसकी पंक्तियाँ थीं, 

आजादी मिली है फिर भी भूखमरी, 

बेकारी से आजाद करना है चमन। 

तभी सभी खुश रहेंगे और देश में रहेगा अमन।

भारत हमारा है महान, उसकी हम रखेंगे शान।


डॉ. प्रवीण बाला, पटियाला ,पंजाब ने कविता के माध्यम से भारत की महिमा का गान किया। उनकी पंक्तियां थीं, 

मेरा वतन है मेरी आन, मेरा वतन है मेरी शान।

इसके मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, 

राम, अल्लाह, वाहेगुरु पुकारे। 

मिल कर करते सभी प्रणाम, 

जग में ऊँचा इसका नाम। मेरा वतन है मेरी आन। 

धर्म, संस्कृति, शास्त्र का दाता, 

देवभूमि जगत विख्याता। 

योग, वेद का उद्गम स्थान, 

कहते तभी इसे महान। मेरा वतन है मेरी आन। 

यहां सभी हैं आदर पाते, 

पशु, पक्षी, या जलचर भ्राते। 

नदी भी यहाँ है माँ के समान, 

पेड़ ,पर्वत भी देव समान। 

मेरा वतन है मेरी आन, मेरा वतन है मेरी शान।





वरिष्ठ कवि श्री सुंदरलाल जोशी 'सूरज', नागदा ने अपनी रचना के माध्यम से पाकिस्तान को फटकार लगाई, उछल रहा है चीनी दम पर, काम नहीं वह आएगा। गरजेगी भारत की तोपें, नक्शे से मिट जाएगा। ऐ मूरख ऐसे तू कब तक, अपने सैनिक खोएगा। अभी समय है सम्हल जा वरना, खूं के आँसू रोएगा।

कवयित्री शालिनी शर्मा, बरेली ने अपनी रचना से कवि सम्मेलन में जोश जगाया। उनकी पंक्तियां थीं, 

जश्न ए आजादी जुनूँ से मनाइए, 

जरूरत पड़े देश को तो खूं बहाइए। 

एक ही स्वर  बस सुनाई दे अखिल ब्रह्मांड में, 

इस जोश से मां भारती का गान गाइए।





रागिनी शर्मा, इंदौर ने अपनी रचना के माध्यम से देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने का आह्वान किया। उनके गीत की पंक्तियाँ थीं, 

दिल मेरा, धड़कन मेरी, मेरी आन है। 

ये वतन तुझ पर जान मेरी कुर्बान है! 

कलम सदके में सदा, झुकती रहे। 

शब्द - शब्द में तेरी, इबादत रहे। 

भाव  मन के हों सदा शहादत भरे। 

अक्षर- अक्षर दिल में तेरा सम्मान है। 

वतन तुझ पर जान मेरी कुर्बान है...!


डॉ संगीता पाल, कच्छ, गुजरात ने देशभक्ति गीत सुनाया। गीत की पंक्तियां थीं, 

भारत की आन बान शान स्वाभिमान की। 

जय हो जवान की जय हो हिंदुस्तान की। 

सारे जग में लहराएगा शान तिरंगा प्यारा। 

धरा गगन पर गूंज रहा वंदे मातरम नारा। 

राष्ट्रगीत की जय बोलो जय बोलो राष्ट्रगान  की। 

जय हो जवान की जय हो हिंदुस्तान की।


सुश्री कृष्णा श्रीवास्तव, मुंबई ने तिरंगे की  महिमा  को अपने गीत में पिरोया, वतन के शान में जब, गगन लहराता तिरंगा है। झुकाते शीश फरिश्ते भी वफा गाता तिरंगा है। अंग्रेजों के जुल्मों का यह धरा देती गवाही है। झूल गये लाल फांसी पर, वहीं कहता तिरंगा है।


हेमलता शर्मा इंदौर ने अपनी कविता के माध्यम से जवानों के समर्पण को याद किया। उन्होंने कहा देश के जवान है तो वतन है, देश के जवानों को नमन है।

संचालन रागिनी शर्मा, इंदौर ने किया। आभार प्रदर्शन दीपिका सुतोदिया, गुवाहाटी ने किया।







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