पेज

प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

20230622

Swantah Sukhay - self satisfaction in Arts - Prof. Shailendra Kumar Sharma | स्वान्तः सुखाय या आत्म सन्तुष्टि | प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

Swantah Sukhay - Self Satisfaction in Arts

Prof. Shailendra Kumar Sharma 

Great poets and thinkers have different views about 'Kavya Prayojans'- poetic usage, the purposes of poetry or art.




The word 'Prayojana' means purpose or objective. It is believed that nothing is done without purpose or objective. Regarding the purpose of poetry, there are various views of various theorists or critics.

Swantah Sukhay means Personal inner happiness.

The concept of Swantah sukhaya is given by Goswami Tulsidas. 

He wrote,  Swantah sukhaya Tulasi Raghunath Gatha.

नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् 

रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि। 

स्वांत:सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा

भाषानिबंधमतिमंजुलमातनोति॥

Means, According to many Puranas, Vedas and Shastras and which is described in Ramayana and also available from some other places, Tulsidas composes the story of Raghunath in a very beautiful language for the pleasure of his conscience.


Goswmi Tulsidas was a great Hindi poet who wrote „Ramacharit Manas‟. He said that he wrote it for his personal happiness and joy. Great poem, fame and wealth are the best when they create welfare of all like the river of the River Ganga. He connects the purity and sacredness of the River Ganga with poetry. He believed that Loka-Mangal (welfare of the people) is the ultimate goal of poetry.


**** 


स्वान्तः सुखाय - कला में आत्म संतुष्टि

प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा 

काव्य प्रयोग, कविता या कला के उद्देश्यों के बारे में महान कवियों के विभिन्न विचार हैं। शब्द 'प्रयोग' का अर्थ उद्देश्य या उद्देश्य है। ऐसा माना जाता है कि बिना उद्देश्य या उद्देश्य के कुछ भी नहीं किया जाता है। काव्य के प्रयोजन के सम्बन्ध में विभिन्न सिद्धांतकारों या कवियों के भिन्न-भिन्न मत हैं।

स्वान्तः सुखाय का अर्थ है व्यक्तिगत आंतरिक प्रसन्नता।

स्वान्त सुखाय (स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा) की अवधारणा गोस्वामी तुलसीदास द्वारा दी गई है।

उन्होंने लिखा है, 

नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् 

रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि। 

स्वांत:सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा

भाषानिबंधमतिमंजुलमातनोति॥  (बालकांड / 7)


अनेक पुराण, वेद और शास्त्र से सम्मत तथा जो रामायण में वर्णित है और कुछ अन्यत्र से भी उपलब्ध रघुनाथ की कथा को तुलसीदास अपने अंत:करण के सुख के लिए अत्यंत मनोहर भाषा रचना में निबद्ध करता है।

गोस्वामी तुलसीदासजी ऐसे कवि थे, जिन्होंने जीवन को इस ढंग से स्पर्श किया कि कवि से ऊंचे उठकर ऋषि हो गए। उन्होंने लिखा है- 'स्वांत: सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा। ' इसका सीधा-सा अर्थ है मैं अपने सुख के लिए कथा कर रहा हूं। लेकिन, दूसरों को सुख मिले इसके लिए भी उन्होंने काव्य सर्जना की।

गोस्वामी तुलसीदास एक महान हिंदी कवि थे जिन्होंने 'रामचरित मानस' लिखा था। उन्होंने कहा कि उन्होंने इसे अपनी निजी खुशी और खुशी के लिए लिखा है। महान कविता, प्रसिद्धि और धन तब श्रेष्ठ होते हैं जब वे गंगा नदी की तरह सभी का कल्याण करते हैं। वे गंगा नदी की पवित्रता और पवित्रता को काव्य से जोड़ते हैं। उनका मानना था कि लोक-मंगल (लोगों का कल्याण) कविता का अंतिम लक्ष्य है।

20230120

Indian Freedom Movement: Perspective of Literature and Education - Prof. Shailendra Kumar Sharma | भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन : साहित्य और शिक्षा का परिप्रेक्ष्य - प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन : साहित्य और शिक्षा के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में देश के कोने कोने के असंख्य साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों, कलाकारों और शिक्षकों ने निभाई अविस्मरणीय भूमिका - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

शिक्षाविद श्री ब्रजकिशोर शर्मा का सारस्वत सम्मान हुआ

मारोह में संचेतना समाचार के गणतंत्र दिवस एवं बसंत पर्व विशेषांक का विमोचन हुआ


प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा प्रेस क्लब, उज्जैन में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन : साहित्य और शिक्षा के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। आयोजन में वरिष्ठ शिक्षाविद एवं साहित्यकार श्री ब्रजकिशोर शर्मा को शॉल, श्रीफल और पुष्पगुच्छ अर्पित कर उनका सारस्वत सम्मान तथा संचेतना समाचार के गणतंत्र दिवस एवं बसंत पर्व विशेषांक का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया।


समारोह के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शिव चौरसिया, उज्जैन, प्रमुख अतिथि वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा थे। कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि श्री ब्रजकिशोर शर्मा, राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं प्रो बी एल आच्छा, चेन्नई थे। अध्यक्षता श्री यशवंत भंडारी, राष्ट्रीय संयोजक, झाबुआ ने की।

मुख्य अतिथि डॉ शिव चौरसिया ने कहा कि भारत में आजादी का संघर्ष अनेक शताब्दियों पहले शुरु हो गया था। उसमें महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, रानी दुर्गावती आदि ने अविस्मरणीय योगदान दिया। आधुनिक युग में स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, रवींद्रनाथ टैगोर आदि ने शिक्षा, संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में नव चेतना का प्रसार किया। मैथिलीशरण गुप्त, निराला, प्रसाद, सुभद्राकुमारी चौहान जैसे अनेक रचनाकारों ने स्वाधीनता आंदोलन में महत्वपूर्ण आधार दिया। उस दौर के कई लेखकों ने प्राचीन वैभव का स्मरण कराते हुए राष्ट्रप्रेम जगाने की कोशिश अपनी रचनाओं के माध्यम से की।

संगोष्ठी के प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में देश के कोने कोने के असंख्य साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों, कलाकारों और शिक्षकों ने अविस्मरणीय भूमिका निभाई। राष्ट्रीय चेतना के प्रसार में बालकृष्ण शर्मा नवीन ने अपनी रचनाओं और पत्रकारिता के माध्यम से अविस्मरणीय योगदान दिया। उन्होंने अनेक आंदोलनों में सक्रियता से भाग लिया। वे अनेक बार जेल गए और अपने जीवन के नौ वर्ष उन्होंने जेल में बिताए। महामना मालवीय जी ने स्वाधीनता आंदोलन के समानांतर शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की संकल्पना की, जिसने अनेक क्रांतिकारियों को स्वाधीनता आंदोलन में योगदान की प्रेरणा दी। महामना ने अपनी कविताओं में ईश्वर से दीनता और दासता से मुक्ति और स्वाधीनता का वरदान मांगा है। उस दौर के कई लेखकों की रचनाओं और पत्रकारिता में राष्ट्र-प्रेम, राष्ट्रीय आंदोलन की चेतना तथा विद्रोह का स्वर मुखरित हुआ है। मालवी सहित अनेक लोकभाषाओं के लोकगीत और गाथाओं में स्वाधीनता आंदोलन में योगदान देने वाले अमर शहीदों और प्रसंगों का चित्रण हुआ है।


शिक्षाविद श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले आदि ने वंचित वर्ग के लोगों को शिक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए। टैगोर ने शांति निकेतन के माध्यम से नवीन चेतना जागृत की। पं मदनमोहन मालवीय ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में महात्मा गांधी को आमंत्रित कर उनका सम्मान किया था।

चेन्नई के साहित्यकार प्रो बी एल आआच्छा ने कहा कि तमिलनाडु में शिक्षा, अनुसंधान और साहित्य के क्षेत्र में हिंदी का पर्याप्त प्रयोग एवं प्रचार हो रहा है। चेन्नई में मासिक साहित्यिक गोष्ठी आयोजित की जाती हैं। चेन्नई सहित तमिलनाडु के कई शहरों में हिंदी अखबार बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंच रहे हैं। वहां के समाचार पत्रों में हिंदी की रचनात्मकता को स्थान मिल रहा है। हिंदी साहित्य के इतिहास में दक्षिण के साहित्यकारों को स्थान मिलना चाहिए।

कार्यक्रम की पीठिका, अतिथि परिचय एवं विशेषांक की जानकारी डॉ. प्रभु चौधरी राष्ट्रीय महासचिव ने दी। समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार श्री नरेंद्र मेहता, श्रीमती रेखा शर्मा, क्षितिज शर्मा, श्री कैलाश चंद्र शर्मा, श्री जे के सोनकर, डॉ शर्मिला पांचाल, किरण पोरवाल, संस्था पदाधिकारी प्रगति बैरागी, राष्ट्रीय सचिव, सुन्दरलाल जोशी 'सूरज', राष्ट्रीय प्रवक्ता, डॉ. निसार फारूकी, प्रदेश कोषाध्यक्ष, मुकेश खेरिया, बसंत जैन, महिदपुर रोड, शोधार्थी युगेश द्विवेदी, गौरव मिश्रा आदि सहित अनेक सुधीजनों और प्रबुद्धजनों ने भाग लिया।
संचालन वरिष्ठ कवि श्री सुंदरलाल जोशी सूरज, नागदा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ निसार फारूकी ने किया।

20221103

Vagarchan : Worship of Mahakavi Kalidas's Aaradhya Gadkalika |वागर्चन : महाकवि कालिदास की आराध्या गढ़कालिका की समर्चना

वागर्चन : महाकवि कालिदास की आराध्या गढ़कालिका की समर्चना

- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 

अखिल भारतीय कालिदास समारोह का शुभारंभ चार नवंबर को होगा। इसके पहले महाकवि कालिदास की आराध्या देवी मां गढ़ कालिका का पूजन ; अर्चन कर वागर्चन किया। इस दौरान कालिदास समारोह समिति के पदाधिकारी मौजूद थे। महाकवि कालिदास की आराध्या गढ़कालिका देवी का पूजन एवं स्तोत्र पाठ बुधवार को किया गया। इस दौरान महाकवि कालिदास विरचित श्यामलादंडकम् का पाठ कर मां गढ़कालिका से कालिदास समारोह निर्विघ्न संपन्न होने की कामना की। कहा जाता है कि वागर्चन महाकवि द्वारा उनकी वाणी से लिखा गया है। मां गढ़कालिका की कृपा से ही कवि कालिदास को वाक् सिद्धि प्राप्त हुई थी। इस दौरान पूर्व कुलपति प्रो. बालकृष्ण शर्मा, कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय, कालिदास समारोह समिति के सचिव प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा, प्रभारी निदेशक संतोष पंडया, उपनिदेशक डॉ योगेश्वरी फिरोजिया आदि उपस्थित थे। 

वागर्चन की विधि सन्त सुन्दरदास सेवा संस्थान एवं युग निर्माण समिति उज्जैन के सहकार से सम्पन्न हुई। प्रो.तुलसीदास परोहा, डॉ.पीयूष त्रिपाठी, डॉ.रमेश शुक्ल, श्री सत्यनारायण नाटानी, श्री मोहन खंडेलवाल मुकुल, श्री आशीष खंडेलवाल आदि गणमान्यजनों ने देवी का पूजन एवं स्तुति की। विद्वानों का स्वागत श्री मोहन खंडेलवाल मुकुल ने किया। 

 















5 नवम्बर को नगर में निकलेगी कलशयात्रा

कालिदास समारोह के शुभारंभ पूर्व देवी गढ़कालिका की आराधना के पश्चात कल गुरूवार को सुबह 10 बजे रामघाट पर मां शिप्रा एवं कलश पूजन होगा। इसके बाद सुबह 10.30 बजे से महाकाल मंदिर से कलशयात्रा प्रारंभ होगी। कलशयात्रा में भावनगर गुजरात के लोक कलाकारों का दल नितिन भाई दवे के मार्गदर्शन में एवं झाबुआ के हिंदूसिंह अमलीयार के पारम्परिक लोक समूह द्वारा लोकनृत्य की प्रस्तुति सम्पूर्ण कलश यात्रा मार्ग पर की जाएगी।

कलशयात्रा मार्ग पर संस्कार भारती के रांगोली दल द्वारा रांगोली का निर्माण किया जाएगा। कलशयात्रा गुदरी चौराहा, गोपाल मंदिर, छत्रीचौक, कंठाल, नईसड़क, दौलतगंज, मालीपुरा, देवासगेट, चामुंडा चौराहा, टॉवर चौक, शहीद पार्क, ढक्कन वाला कुआं, गुरुद्वारा, पुलिस कंट्रोल रूम, दशहरा मैदान चौराहा, संजीवनी अस्पताल के सामने से होती हुई अकादमी परिसर पहुंचेगी, जहां मंगल कलश की स्थापना होगी।


------ 


All India Kalidas Samaroh 2022 :  Invitation | अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : आत्मीय आमंत्रण 🏵️


अखिल भारतीय कालिदास समारोह : 4 - 10 नवम्बर 2022 : मध्य प्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 के समस्त सारस्वत एवं सांस्कृतिक आयोजनों में आपकी उपस्थिति  प्रार्थनीय है।


https://drshailendrasharma.blogspot.com/2022/11/all-india-kalidas-samaroh-2022.html


20221101

All India Kalidas Samaroh 2022 : Invitation | अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : आमंत्रण

All India Kalidas Samaroh 2022 :  Invitation | अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : आमंत्रण

अखिल भारतीय कालिदास समारोह : 4 - 10 नवम्बर 2022

मध्य प्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 के समस्त सारस्वत एवं सांस्कृतिक आयोजनों में आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थनीय है। 

आमंत्रण पत्र के लिए लिंक

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : आमंत्रण पत्र 

https://drive.google.com/file/d/1Ahh-k1yQ6XrBdobWiISB9cFFEdqbEsGV/view?usp=drivesdk


राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी : शोध पत्र प्रस्तुति के लिए आमंत्रण 

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : दिनांक 4 से 10 नवंबर : मध्यप्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन का संयुक्त आयोजन। सुधी प्राध्यापक /साहित्यकार/ शिक्षाविद् / शोधकर्ता कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र प्रस्तुति के लिए आमंत्रित हैं। शोध पत्र साहित्य, कला, संस्कृति, इतिहास, पुरातत्व, ज्ञान - विज्ञान, वास्तु, पर्यावरण, दर्शन, जीवन मूल्य, शिक्षा, समाजविज्ञान, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र आदि के परिप्रेक्ष्य में कालिदास साहित्य के किसी पक्ष से जुड़े हो सकते हैं।*

विस्तृत जानकारी के लिए लिंक : 

https://drshailendrasharma.blogspot.com/2022/10/all-india-kalidas-festival-2022.html



















































अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 4 से 10 नवम्बर तक उज्जैन में, देश के बारह से अधिक प्रान्तों के विद्वान, कलाकार और संस्कृतिकर्मी भाग लेंगे

सारस्वत आयोजनों के अंतर्गत होंगे कालिदास साहित्य के विविध पक्षों पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के छह सत्र, व्याख्यानमाला के पाँच सत्र एवं तीन स्पर्धाएं 

अखिल भारती अंतरविश्वविद्यालयीन संस्कृत वादविवाद, राज्य स्तरीय अन्तरमहाविद्यालयीन कालिदास काव्य पाठ और हिंदी वादविवाद प्रतियोगिताएँ होंगी

मध्यप्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन का संयुक्त आयोजन अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 दिनांक 4 से 10 नवम्बर तक सम्पन्न होगा। सारस्वत एवं सांस्कृतिक आयोजनों में भाग लेने के लिए देश के विभिन्न भागों के सैकड़ों विद्वान, संस्कृतिकर्मी, कलाकार, शोधकर्ता और विद्यार्थी उज्जैन आ रहे हैं। समारोह के शुभारंभ के पूर्व 3 नवंबर को मंगल कलश यात्रा प्रातः 10:00 से प्रातः रामघाट से प्रारंभ होकर कालिदास संस्कृत अकादमी पहुंचेगी। इसी रात्रि को नांदी के अंतर्गत महत्वपूर्ण प्रस्तुतियां होंगी। महाकवि कालिदास की विश्वविश्रुत कृति विक्रमोर्वशीय से अनुप्राणित चित्र एवं मूर्ति कलाकृतियों की राष्ट्रीय कालिदास प्रदर्शनी दिनांक 4 नवम्बर को उद्घाटन के पश्चात् से 10 नवंबर तक प्रतिदिन साहित्यप्रेमियों, कलारसिकों और सुधीजनों के अवलोकनार्थ खुली रहेगी। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतर्गत प्रतिदिन संध्या 7:00 बजे नाट्य, नृत्य एवं संगीत की मनोरम प्रस्तुतियां होंगी।

समारोह के सारस्वत आयोजनों के अंतर्गत कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा भारतीय संस्कृति की दीपशिखा कालिदास पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी के दो सत्र एवं विक्रम विश्वविद्यालय की कालिदास समिति द्वारा राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के चार सत्रों का आयोजन किया जाएगा। समारोह के दौरान संस्कृत कवि समवाय के अंतर्गत संस्कृत काव्यपाठ, पंडित सूर्यनारायण व्यास व्याख्यानमाला एवं महाकवि कालिदास व्याख्यानमाला के अंतर्गत अनेक महत्वपूर्ण व्याख्यान होंगे। विद्यार्थियों की स्पर्धाओं के अंतर्गत अंतरविश्वविद्यालयीन संस्कृत वाद विवाद, राज्य स्तर की अंतर महाविद्यालयीन कालिदास काव्य पाठ और हिंदी वाद विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन होगा। 

यह जानकारी देते हुए विक्रम विश्वविद्यालय की कालिदास समिति के सचिव प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा एवं कालिदास संस्कृत अकादमी के प्रभारी निदेशक डॉ संतोष पंड्या ने बताया कि विद्यार्थियों के लिए अखिल भारतीय स्तर की अंतरविश्वविद्यालयीन कालिदास संस्कृत वाद विवाद प्रतियोगिता का विषय कालिदासस्य काव्येषु राजवैभववर्णनम्, संदृश्यते यथा स्पष्टं न तथा लोकजीवनम् रखा गया है। राज्य स्तर की अंतर महाविद्यालयीन कालिदास हिंदी वाद विवाद प्रतियोगिता का विषय महाकवि कालिदास की रचनाओं में राजवैभव का स्पष्ट वर्णन हुआ है, लोकजीवन का नहीं, रखा गया है। राज्य स्तर की कालिदास काव्य पाठ  प्रतियोगिता में विद्यार्थियों को श्लोकों का चयन महाकवि कालिदास की अमर कृति मालविकाग्निमित्रम् से करना होगा।

अकादमिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों में देश के बारह से अधिक राज्यों के विद्वान, कलाकार, संस्कृतिकर्मी, शिक्षक, शोधकर्ता और विद्यार्थी भाग लेने के लिए उज्जैन आ रहे हैं। कालिदास संस्कृति अकादमी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के दो सत्र विश्वविद्यालय मार्ग, उज्जैन स्थित अभिरंग नाट्यगृह, कालिदास संस्कृत अकादमी में होंगे, जिनका विषय है भारतीय संस्कृति की दीपशिखा कालिदास। कालिदास समिति द्वारा संयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के चार सत्रों का आयोजन में होगा। इनमें से एक विशेष सत्र विक्रम कालिदास पुरस्कार विजेता शोधपत्रों की प्रस्तुति का होगा। 

राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में भाग लेने के लिए देश के विभिन्न प्रांतों के प्राध्यापक, शिक्षाविद् एवं शोधकर्ताओं से कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र आमंत्रित किए गए हैं। शोध पत्र प्रस्तुतकर्ता पंजीयन एवं शोध पत्र प्रेषण के लिए कालिदास समिति कार्यालय, सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान, विक्रम विश्वविद्यालय, देवास मार्ग, उज्जैन में सम्पर्क कर सकते हैं।

शोध पत्र वाचन के लिए राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के चार सत्र अभिरंग नाट्यगृह, कालिदास संस्कृत अकादमी, कोठी रोड, उज्जैन में निम्नानुसार तिथियों एवं समय पर होंगे :


राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी 

प्रथम सत्र 5 नवम्बर 2022 दोपहर 2:30

द्वितीय सत्र 6 नवम्बर 2022 दोपहर 2:30 बजे 

तृतीय सत्र 7 नवम्बर 2022 दोपहर 2:30 बजे 

(विक्रम कालिदास पुरस्कार के लिए चयनित शोध पत्रों की प्रस्तुति)

चतुर्थ सत्र 8 नवम्बर 2022 प्रातः 10:00 बजे

संगोष्ठी स्थान : 

अभिरंग नाट्यगृह

कालिदास संस्कृत अकादमी

विश्वविद्यालय मार्ग, उज्जैन

शोध पत्र प्रस्तुति हेतु पंजीयन के लिए सम्पर्क : 

प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा 

सचिव 

कालिदास समिति 

कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक

विक्रम विश्वविद्यालय

 सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान

 देवास रोड 

उज्जैन मध्य प्रदेश

पिन कोड 456010


ईमेल : 

shailendrakumarsharmaprof@gmail.com


विक्रम पत्रिका के कालिदास विशेषांक के लिए लिंक पर जाएं :


20221027

Photography is an art that connects you with the divine | फोटोग्राफी एक ऐसी कला जो आपको परमात्मा से जोड़ती है

फोटोग्राफी एक ऐसी कला जो आपको परमात्मा से जोड़ती है   

फोटोग्राफी : कला से पत्रकारिता तक पर केंद्रित कार्यशाला 

विक्रम विश्वविद्यालय की पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला, हिन्दी अध्ययनशाला और गांधी अध्ययन केन्द्र द्वारा एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। फोटोग्राफी : कला से पत्रकारिता विषय पर आधारित कार्यशाला में अंतरराष्ट्रीय फोटोग्राफर श्री कैलाश सोनी, देवास ने युवाओं को फोटोग्राफी के महत्व और फोटोग्राफ में आवश्यक बातों को प्रायोगिक तरीके से समझाया। कार्यशाला में मुख्य अतिथि कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय, अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार जीवनसिंह ठाकुर, देवास एवं कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, प्रो गीता नायक ने फोटोग्राफी कला के विविध आयामों पर प्रकाश डाला। 




अंतरराष्ट्रीय फोटोग्राफर कैलाश सोनी, देवास ने प्रोफेशनल डीएसएलआर और मोबाइल कैमरे दोनों के प्रयोग के माध्यम से विद्यार्थियों को बताया कि फोटोग्राफी करते हुए किन बातों का ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि फोटोग्राफी एक ऐसी कला है जो आपको परमात्मा से जोड़ती है। इस विधा के लिए समय की पाबंदी और फिट रहना बहुत जरूरी है। फोटोग्राफी के क्षेत्र में एक-एक पल जरूरी होता है। उन्होंने अपने जीवन के कई अनुभव साझा करते हुए बताया कि वह 15-16 साल के थे, तब उन्होंने पहला फोटोग्राफ लिया था। जैसे सब सोचते हैं कि हमारी भाषाशैली अच्छी है तो हमें सब आ गया, यह गलत भाव है इससे बचना चाहिए।  एक फोटोग्राफर के मन में हमेशा नया खोजने और सीखने का भाव होना जरूरी है। कुछ भी अच्छा लगे तो उसे कैमरे में जरूर उतार लेना चाहिए। जिस क्षण में फोटो उतारते हैं, वह क्षण दोबारा नहीं आता। विद्यार्थियों के सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि अभ्यास से ही सीखा जाता है। आपकी निगाह 100 प्रतिशत होनी चाहिए। वर्तमान परिस्थिति में फोटोग्राफी का अस्सी प्रतिशत महत्व बढ़ गया है। सभी के हाथ में कैमरा होने से दुरुपयोग भी बढ़ा है। इससे बचने के लिए कई सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं, इनका उपयोग कर गलत फोटोग्राफ से बचा जा सकता है और सही-गलत का पता लगाया जा सकता है। फोटोग्राफी का भविष्य अच्छा है। जिस तरह वर्तमान समय में शादियों में फोटोग्राफ तैयार की जाती है उसने पूरा परिदृश्य ही बदल दिया है। अब एक फोटोग्राफ को आसानी से विश्व स्तर तक ले जाया जा सकता है। इस कार्यशाला के दौरान उन्होने कई फोटो लेकर विद्यार्थियों को रचनात्मक और साधारण फोटोशूट का अंतर भी समझाया।  




कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि फोटोग्राफी विज्ञान युग की देन है, लेकिन इसने बहुत कम समय में एक श्रेष्ठ सृजन माध्यम का रूप ले लिया है। वर्तमान दौर में विद्यार्थी फोटोग्राफी के क्षेत्र में गहन अभ्यास के साथ कौशल विकसित करते हुए व्यावसायिक सफलता प्राप्त कर सकते हैं।









पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला और हिन्दी अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष शैलेन्द्रकुमार शर्मा ने मध्यप्रदेश के कुछ प्रसिद्ध फोटोग्राफरों की कला के सम्बंध  में बताया, जिन्होंने अत्यंत सीमित संसाधनों के बाद भी अपने दौर में इस कला को उच्चतम स्तर तक पहुँचाया। उन्होंने कहा कि फोटोग्राफी ने हमारी संस्कृति और परम्परागत कला को जीवित  रखा है। इस क्षेत्र में उपलब्ध नवीन तकनीकों और उपकरणों का ज्ञान प्राप्त कर अपनी कला को बेहतर बनाया जा सकता है। पत्रकारिता में इस विधा का अब सूचनात्मकता से आगे जाकर सृजनात्मक प्रयोग हो रहा है। इस विधा के माध्यम से हम प्राचीन दौर, परम्पराओं और यादों से रूबरू हो सकते हैं। 


 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार जीवनसिंह ठाकुर ने कहा कि फोटोग्राफ की शुरूआत लेखन से होती है। फोटोग्राफी एक ऐसी कला है जो संगीत लिखने के बराबर है। संगीत में जैसे एक-एक शब्द का ध्यान रखना होता है वैसे ही फोटोग्राफ में दिखाई दे रहे हर बिन्दु का ध्यान रखना जरूरी है।

कार्यक्रम में वरिष्ठ फोटोग्राफर श्री कैलाश सोनी देवास को साहित्य अर्पित करते हुए उनका सम्मान किया गया।

प्रश्नोत्तरी सत्र का संयोजन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा एवं डॉ अजय शर्मा  ने किया। मुख्य वक्ता के रूप में अंतरराष्ट्रीय फोटोग्राफर कैलाश सोनी मौजूद रहे। पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला के शिक्षक डॉ सुशील शर्मा, डॉ अजय शर्मा आदि विशेष रूप से कार्यशाला में उपस्थित रहे। 

कार्यशाला का संचालन डॉ जगदीशचंद शर्मा ने किया। आभार श्रीमती हीना तिवारी ने माना।






20211205

रामाश्रयी काव्य धारा और तुलसीदास - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Ramashrayi Kavya Dhara and Tulsidas - Prof. Shailendra Kumar Sharma

रामाश्रयी काव्य धारा और गोस्वामी तुलसीदास - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा


विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज द्वारा वेब पटल पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। इस संगोष्ठी में अनेक वक्ताओं ने अपने विचार प्रकट किए। 






 भारतीय साहित्य को रामाश्रयी काव्यधारा और गोस्वामी तुलसीदास का योगदान अविस्मरणीय है। रामकाव्यधारा का प्रवर्तन वैष्णव संप्रदाय के स्वामी रामानंद से स्वीकार किया जाता है। रामकाव्यधारा में शील, शक्ति और सौंदर्य का अद्भुत समन्वय पाया जाता है। ये विचार मुख्य अतिथि तथा विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, म. प्र. के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने व्यक्त किये। 

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज, उ. प्र. के तत्वावधान में ' रामाश्रयी काव्यधारा : तुलसीदास' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वे उद्बोधन दे रहे थे। डाॅ. शर्मा ने आगे कहा कि सभी रामभक्त कवि विष्णु के अवतार दशरथ पुत्र राम के उपासक हैं। उनके राम परब्रह्म स्वरूप भी है। रामचरितमानस में तुलसी ने आदर्श गृहस्थ, आदर्श समाज और आदर्श राज्य की कल्पना की है।रामकाव्य में ज्ञान,कर्म और भक्ति की अलग अलग महत्ता स्वीकार करते हुए भक्ति को उत्कृष्ट बताया गया है। रामाश्रयी कवियों की भारतीय संस्कृति में पूर्ण आस्था रही है। लोकहित के साथ उनकी भक्ति स्वांत:सुखाय थी। 

विशिष्ट अतिथि डाॅ. चंद्रशेखर सिंह, मुंगेली, छत्तीसगढ ने कहा कि तुलसीदास ने रामचरित मानस को बोली के रूप में मानीजानेवाली अवधी में रचा। मानस में लोकतंत्र की बात निहित है। जीवन जीने का सही रास्ता मानस में बताया गया है। रामचरितमानस को पूरे विश्व में श्रद्धापूर्वक पढा जाता है।

डाॅ. अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, पटना, बिहार ने कहा कि रामाश्रयी शाखा के समस्त कवियों में तुलसीदास जी का स्थान अनुपम है। भारतीय संस्कृति को आधार बनाकर मानस की रचना हुई है। तुलसीदास जी की राम के प्रति दासभक्ति थी। प्रो. स्मिता बहन मिस्री, नवसारी गुजरात ने मंतव्य में कहा कि भारतीय संस्कृति में तुलसी का पौधा और महाकवि तुलसीदास दोनों का गौरवपूर्ण, अद्वितीय और अभूतपूर्व स्थान है। भारतीय जनमानस की नब्ज को पकडकर उनका सटीक उपचार बताने वाले तुलसीदास समाज में व्याप्त विसंगतियों को दूर करके एक स्वस्थ समाज की स्थापना करते हैं। 

रामकथा का सानिध्य गंगास्नान समान अतुल्य है।अत: तुलसी साहित्य आज भी प्रासंगिक है। डाॅ. भारती दोडमनी, कारवार, कर्नाटक ने अपने उद्बोधन में कहा कि तुलसीदास जी की रचनाएँ स्वांत: सुखाय और बहुजन हिताय दोनों में प्रस्तुत है। मानस के सात खंडों में मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को व्यक्त किया गया है। उनकी अधिकांश रचनाएँ लोक कल्याण की कामना व्यक्त करती है।

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उ.प्र. के सचिव डाॅ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने अपने प्रास्तविक भाषण में  गोष्ठी के विषय की महत्ता प्रतिपादित करते हुए संस्थान की गतिविधियों पर विस्तार से प्रकाश डाला। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उ. प्र. के अध्यक्ष डाॅ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि रामाश्रयी काव्यधारा में तुलसीदास जी के पश्चात उनके समक्ष अन्य कोई कवि दिखाई नहीं देता। वे जीवन की समग्रता के गायक थे। रामचरितमानस एक संपूर्ण समाजदर्शन है। 

तुलसीदासजी महान चिंतक, बहुत बडे संत तथा कालजयी महाकवि थे। उनका मानस भारतीय दर्शन का अक्षय भंडार है।
गोष्ठी का शुभारंभ श्रीमती ज्योति तिवारी, इंदौर की सरस्वती वंदना से हुआ। प्रा. रोहिणी बालचंद डावरे, अकोले, अहमदनगर, महाराष्ट्र ने स्वागत भाषण दिया। गोष्ठी का संयोजन श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव 'शैली', रायबरेली ने किया। गोष्ठी का सफल व कुशल संचालन व नियंत्रण  डाॅ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया तथा श्रीमती रश्मि संजय श्रीवास्तव 'लहर' लखनऊ ने आभार प्रदर्शित किया।

- - - - - - - - - 

मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक और हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय साहित्य को रामाश्रयी काव्यधारा और गोस्वामी तुलसीदास का योगदान अविस्मरणीय है। रामकाव्य धारा का प्रवर्तन वैष्णव संप्रदाय के स्वामी रामानंद से स्वीकार किया जाता है। इस काव्य का आधार संस्कृत साहित्य में उपलब्ध राम-काव्य और नाटक रहे हैं। इस धारा के कवियों ने राम के अवतारी स्वरूप को अंगीकार किया है। सभी रामभक्त कवि विष्णु के अवतार दशरथ - पुत्र राम के उपासक हैं। वे अवतारवाद में विश्वास करते हैं। साथ ही उनके राम परब्रह्म स्वरूप भी हैं। उनमें शील, शक्ति और सौंदर्य का समन्वय है। उनका अवतार लोक-मंगल के लिए हुआ है। रामचरितमानस में तुलसी ने आदर्श गृहस्थ, आदर्श समाज और आदर्श राज्य की कल्पना की है। राम-काव्य में ज्ञान, कर्म और भक्ति की अलग अलग महत्ता स्वीकार करते हुए भक्ति को उत्कृष्ट बताया गया है। तुलसी का मानस विविध मत वाद और समुदायों के बीच समन्वय का सेतु बनाता है। रामाश्रयी कवियों की भारतीय संस्कृति में पूर्ण आस्था रही। लोकहित के साथ-साथ उनकी भक्ति स्वांत: सुखाय थी। तुलसी के काव्य में चिरंतन और सार्वभौमिक जीवन सत्यों की अभिव्यक्ति की अपूर्व क्षमता है। उनके मानस का विश्व मानव पर गहरा प्रभाव पड़ा  है। निजी सम्बन्धों से लेकर समग्र विश्व के प्रति स्नेह-सम्बन्धों की प्रतिष्ठा  राम के समतामूलक जीवन दर्शन के केन्द्र में रही है।  लोकमानस पर अंकित राम का यह बिम्ब सदियों से अखंड मानवता की रक्षा का आधार है।













20211127

मालवी लोकोक्ति और मुहावरे : सदियों के अनुभव और ज्ञान की अक्षय निधि - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Malvi Proverbs and Idioms: A Treasure Trove of Centuries of Experience and Knowledge - Prof. Shailendra Kumar Sharma

मालवी लोकोक्ति और मुहावरे :  सदियों के अनुभव और ज्ञान की अक्षय निधि

प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा


भारत की बहुविध परम्पराओं की गहरी जड़ें लोक संस्कृति में मौजूद हैं। लोक-संस्कृति अतीत की भूली हुई कड़ी या आदिम न होकर सतत वर्तमान है, आज भी हमारे जीवन का अविभाज्य अंग है। लोक-चेतना की यह धारा अविच्छिन्न रूप से सतत प्रवहमान है। वैसे तो परिवर्तन इस जगत् का शाश्वत नियम है, इससे लोक-संस्कृति कैसे अनछुई रह सकती है? उसमें भी पुनराविष्कार और संशोधन का क्रम निरंतर चलता आया है, किंतु उसकी मूल चेतना में सहजता, पारदर्शिता और तरलता सदैव बने रहे हैं। वह समय-समय पर बाहर से आगत तत्त्वों से भी अंतर्क्रिया करती आ रही है। ऐसा करते हुए वह स्वयं को और अधिक व्यापक बनाती चलती है। जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, चाहे वह भाषा हो या साहित्य, विविध कला रूप, आचार-विचार हो या रीति-रिवाज, वस्त्रभूषा हो या खानपान के तरीके, इनमें से कुछ भी लोक परम्परा से विच्छिन्न नहीं है। भारत की लोक और जनजातीय संस्कृति में गहरी संवेदना और ऊर्जा व्याप्त है। उनसे दूरी के दुष्परिणाम आधुनिक समाज के विभिन्न घटकों पर दिखाई दे रहे हैं। इसके अभाव में संस्कृति की नैसर्गिकता खो रही है।


लोक वस्तुतः जीवन्त और ठोस आधार पर गतिशील जन समुदाय का बोधक है। पाश्चात्य लोक तत्त्व विवेचकों ने प्रायः लोक को अविकसित या आदिम या रूढ़िग्रस्त जनसमूह के रूप में देखा है, किन्तु भारतीय संदर्भ में देखें तो ‘लोके वेदे च’ सूत्र का संकेत साफ है कि वेद या शास्त्र के समानांतर, किन्तु पूरक रूप में एक लोकधारा भी यहाँ सतत प्रवाहमान रही है, जो वेद से किसी भी आधार पर हीन नहीं है। इन दोनों धाराओं को समन्वय से ही भारत की पहचान बनी है।


मालवा लोक-साहित्य और संस्कृति की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। यहाँ का लोकमानस अनेक सदियों से कथा-वार्ता, गाथा, गीत, नाट्य, पहेली, लोकोक्ति, मुहावरे आदि के माध्यम से अभिव्यक्ति पाता आ रहा है। जीवन का ऐसा कोई प्रसंग नहीं है, जब मालवजन अपने हर्ष-उल्लास, सुख-दुःख को दर्ज करने के लिये बहुवर्णी लोक-साहित्य का सहारा न लेता हो।  हाल के दशकों में मालवी लोक साहित्य और संस्कृति के विविध पहलुओं पर अनेक शोध, संकलन और प्रकाशन हुए हैं। इसी तरह नए मीडिया पर भी बहुत सी सामग्री उपलब्ध हो रही है। 

 



यह अत्यंत सुखद है कि मालवीमना रचनाकार और मनस्वी हेमलता शर्मा भोली बेन ने मालवा की समृद्ध लोक संपदा के संकलन - संपादन के साथ उसके गहन शोध में पहलकदमी की। वे लेखन, दृश्य श्रव्य माध्यम, ब्लॉग, यूट्यूब चैनल,  सोश्यल मीडिया जैसे अनेक माध्यमों से मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति की सेवा, संरक्षण और संवर्धन में जुटी हैं। उन्होंने हाल ही में मालवा क्षेत्र में प्रचलित लगभग एक हजार लोकोक्तियों और मुहावरों का संचयन किया है। पूर्व में मालवी लोकोक्ति और मुहावरों के कुछ संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और कुछ शोधकर्ताओं ने इनका विविध दृष्टियों से अनुशीलन भी किया है। हेमलता शर्मा का यह प्रयास इस दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण है कि उन्होंने अनेक बुजुर्गों और परिवारजनों से मिलकर बड़े परिश्रमपूर्वक इन लोकोक्ति और मुहावरों को जुटाया है और उनके अर्थ एवं प्रयोग भी प्रस्तुत किए हैं।  


लोकाक्ति या कहावत सुंदर रीति से कही गई उक्ति या कथन है, जिसकी लोक व्याप्ति कन्ठानुकंठ होती है। ये यूं ही नहीं गढ़ ली जातीं, बल्कि इनके पीछे अनेक सदियों का अनुभव और ज्ञान सन्निहित है। लोकोक्ति के पीछे कोई विशेष प्रसंग, कहानी या घटना होती है, उससे निकली बात बाद में लोगों की जु़बां पर चढ़ जाती हैं। घर - आँगन, खेत - खलिहान, चौपाल - चौबारे, पर्व - त्‍यौहार, मेले और बैठक लोकोक्तियों को अनायास आकार दे देते हैं और फिर ये वाचिक परम्परा का आधार पाकर काल और देश के दायरे से मुक्त हो जाती हैं। कई बार ये अन्य बोली और भाषा में सहज ही रूप परिवर्तन कर प्रचलित होने लगती हैं। लोकोक्तियाँ दिखने मेँ छोटी लगती हैँ, परन्तु उनमेँ गम्भीर विचार और भाव रहते हैं। लोकोक्तियोँ के प्रयोग से आम कथन से लेकर साहित्यिक रचना मेँ भाव एवं विचारगत विशेषता आ जाती है। मालवी लोकोक्तियों में जीवन का मर्म और अनुभव का सार देखने को मिलता है। इनके माध्‍यम से हम मालवा अंचल में वास करने वाले समुदायों की जीवन शैली का सम्यक् अध्‍ययन कर सकते हैं। इनमें लोक मानस के आस्था - विश्‍वास, लोक मान्यताएँ, रीति-रिवाज, खान - पान, रहन - सहन, स्‍वास्‍थ्‍य, लोक पर्व - उत्सव, लोक दर्शन सहित संस्‍कृति के विविध आयाम स्‍पष्‍ट छलकते हैं। मालवा क्षेत्र में प्रचलित कुछ रंजक लोकोक्तियाँ देखिए –

बोलता का बुरा भी बिकी जावे ने बिना बोलता कि जुवार भी नी बिके।

माल खाय माटी को ने गीत गाय बीरा का

शक्कर गरे तो हगरा भेरा वइ जा ने खाल गरे तो कोई नी

माल का मालिक सगला, खाल को कोई नी

जिको मांडवो बिगड़े उको ब्याव बिगड़े

आली लाकडी नमे ने सूख्यां पाछे टूटे

गरीब की जोरू आखा गाम की भाभी।


लोक जीवन में मुहावरों का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। वस्तुतः मुहावरा अरबी भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'अभ्यास'। इनके प्रयोग से भाषा रोचक, रसपूर्ण एवं प्रभावी बन जाती है। इनके मूल रूप मेँ कभी परिवर्तन नहीँ होता अर्थात् इनमेँ से किसी भी शब्द का पर्यायवाची शब्द प्रयुक्त नहीँ किया जा सकता। इसके क्रिया पद मेँ काल, पुरुष, वचन आदि के अनुरूप परिवर्तन अवश्य होता है। मुहावरा अपूर्ण वाक्य होता है। वाक्य प्रयोग करते समय यह वाक्य का अभिन्न अंग बन जाता है। इसीलिए इसका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं किया जा सकता है। दूसरी ओर लोकोक्तियाँ पूर्ण वाक्य के रूप में होती हैं और किसी बात की पुष्टि करते हुए इनका स्वतंत्र रूप से प्रयोग किया जा सकता है। मालवा में बहुप्रचलित कुछ मुहावरे देखिए, जिनकी अपनी खास भंगिमा है : 


गेले आणों, गेले जाणो

काम ती काम राखणो

दूसरा की पंचायती नी करनी

नाना मोटा को कण कयदो राखणो

चारी आड़ी का हापटा नी भरणा

मुंडा हामें को काम पेला करणो

सोची हमजी ने पग रखणो

फाटा में पग नी फसाणो

रोज ढांकी ने खाणो

जतरो पचे वतरो खाणो

हुणनी सबकी ने करनी मन की

दाँत काड़ी ने हामे आणो 

वगर काम के नी बोलणो

बीच-बीच में लाड़ा की भुवा नी वणनो

दूसरा की मजाक नी उड़ानी

वस्तुतः भाषा और बोलियाँ मनुष्य होने की पहचान हैं। वे मनुष्य के आन्तरिक और बाह्य जीवन को जोड़ती हैं। इस संसार को समझने और अभिव्यक्त करने के लिए माध्यम का काम करती हैं। मातृभाषा बच्चे अपने आप सीख लेते हैं, यद्यपि उसके साहित्यिक पक्ष का ज्ञान उन्हें अधिकतर औपचारिक शिक्षा के जरिए होता है। वर्तमान में अंग्रे़ज़ी हमारी शिक्षा - व्यवस्था में प्रमुख भाषा बनती जा रही है। अंग्रेज़ी का ज्ञान शिक्षित होने का पर्याय बनता जा रहा है। ऐसे में भारतीय भाषाओं और बोलियों की उपेक्षा हो रही है और उन्हें हीन भाव से देखा जा रहा है। हम यह भूल जाते हैं कि अंग्रेज़ी जानने वाला व्यक्ति भी अज्ञानी हो सकता है। इधर लोक बोली का प्रयोक्ता भी ज्ञान और अनुभव सम्पन्न हो सकता है, किंतु कई बार उन्हें अनदेखा किया जाता है। अंग्रेजी पर अतिनिर्भरता के कारण आज हमारा देश सभी क्षेत्रों में नकलचियों का देश बनकर रह गया है। महर्षि अरविन्द अपनी पुस्तक भारतीय संस्कृति के आधार में कहते हैं, प्राचीन भारत में जीवन के प्रत्येक पक्ष पर गंभीर सृजनात्मक कार्य हुआ था जो आज भी हमारे लिए आदर्श है। अंग्रेजी पर अनावश्यक निर्भरता के कारण हम अपनी भाषाओं में संचित ज्ञान संपदा से दूर हो रहे हैं। एक बार जे. कृष्णमूर्ति ने हताशा के स्वर में पूछा था, "इस देश की सृजनशीलता को क्या हो गया है।" प्राचीन काल में जब संसार के अधिकांश देशों का अस्तित्व भी नहीं था, न विकास का कोई मॉडल विद्यमान था, हमारे पूर्वजों ने अपनी भाषा संस्कृत और उसके स्थानीय रूपों के माध्यम से मानव जीवन के गहनतम रहस्यों को खोज लिया था, जो आज भी हमारे ही नहीं, समूची मानव जाति के लिए मार्गदर्शक हैं। एक विदेशी भाषा के अनुपातहीन महत्त्व से हमारी अपनी भाषाओं की उपेक्षा की हुई है और परिणामस्वरूप भारतीय मेधा का विकास अवरुद्ध हो गया है।


मालवी, निमाड़ी, मेवाड़ी सहित विविध भाषाएँ और बोलियाँ सदियों से हमारे घर – आँगन में संवेदना, ज्ञान, संस्कृति और परम्पराओं की संवाहिका बनी हुई हैं। हिंदी की विविध बोलियाँ सदियों से हिंदी की सहज संगिनी और आधार रही हैं और आगे भी रहेंगी।  इन्हें इसी रूप में जीवन्त बने रहना चाहिए, न कि राष्ट्रभाषा हिन्दी की विरोधिनी के रूप में उन्हें खड़े करना चाहिए। फिर इन बोलियों के कई स्थानीय रूप भी हैं, उनमें से किसे मानक भाषा का दर्जा दिया जाएगा, यह तय करना भी चुनौतीपूर्ण होगा। किसी भी एक बोली के अलग होने से निकटवर्ती बोलियाँ भी कमजोर होंगी और हिन्दी भी। पड़ोसी बोलियों के मध्य रिश्तों में कटुता आएगी और हिन्दी का तो इससे बहुत अधिक अहित होगा। भारतीय भाषाओं और बोलियों के ऐक्य बन्धन को अधिक मजबूती के साथ निरन्तर बने रहना चाहिए, इसी में सबका हित है। 


वर्तमान में मालवी लोक संपदा के संरक्षण – संवर्द्धन  की दिशा में व्यापक प्रयत्नों की दरकार है। हेमलता शर्मा ने विविध रूपों में मालवी की सेवा का दृढ़ संकल्प लिया है, जिसके एक पुष्प के रूप में अपणो मालवो के अंतर्गत मालवी कहावतों और मुहावरों का संग्रह प्रकाश में आया है। विश्वास है लोक भाषा के प्रेमी इसका अंतर्मन से स्वागत करेंगे और अपने जीवन में इस लोक संपदा के भाषिक प्रयोगों के लिए सदैव तत्पर रहेंगे। 


प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

विभागाध्यक्ष

हिंदी विभाग 

कुलानुशासक 

विक्रम विश्वविद्यालय 

उज्जैन मध्यप्रदेश 


Featured Post | विशिष्ट पोस्ट

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : वैचारिक प्रवाह से जोड़ती सार्थक पुस्तक | Mahatma Gandhi : Vichar aur Navachar - Prof. Shailendra Kumar Sharma

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : पुस्तक समीक्षा   - अरविंद श्रीधर भारत के दो चरित्र ऐसे हैं जिनके बारे में  सबसे...

हिंदी विश्व की लोकप्रिय पोस्ट