मालवी लोक कथा
सच्चा तपस्वी (सच्चो तपस्वी)
मालवा के छोटे से गाँव में रामू नाम का एक किसान रहता था। उसके गाँव के ही पास एक छोटा सा खेत था। उसकी मेड़ के पास में एक बहुत बड़ा बरगद का वृक्ष था। एक दिन उसने अपने खेत का काम खत्म किया और दोपहर के समय खाना खाने के लिए उस बरगद के पेड़ के नीचे पहुँचा तो उसने देखा कि एक साधु महाराज आँखें बंद किए बैठे हुए हैं। उन्हें देख किसान चुपचाप खड़ा रहा।
जब साधु महाराज ने आँखें खोलीं तो किसान ने उनको प्रणाम करके बहुत ही नम्रता से पूछा कि महाराज जी आप क्या कर रहे थे? साधु बोला कि मैं भगवान का ध्यान लगाकर उन्हें याद कर रहा था। इससे मुझे बहुत शांति मिलती है और भगवान की कृपा भी मुझे प्राप्त होती है। किसान ने कहा कि महाराज मैं एक किसान हूँ। मैं भी ध्यान लगाकर शांति चाहता हूँ लेकिन दिन-रात खेती किसानी के काम से मुझे फुर्सत नहीं मिलती है तो मैं कैसे और कब ध्यान करूँ? साधु ने पूछा- क्या खेती में इतना अधिक काम है कि फुर्सत ही नहीं मिलती ? "जी महाराज! सुबह से शाम तक मुझे बिल्कुल भी समय नहीं मिल पाता है” -किसान ने हाथ जोड़कर कहा।
साधु ने पूछा "खेती का काम करने से तुम्हें क्या मिलता है?" किसान ने उत्तर दिया- "खेती के काम करने से मेरा और मेरे परिवार का लालन-पालन होता है जो उपज बच जाती है उसे बेचने से धन मिलता है उससे कपड़े लत्ते और खाने-पीने के दूसरे सामान की खरीद कर लेते हैं।
क्या तुम्हारा मन खेती है लग जाता है? साधु ने पूछा।
किसान ने कहा "हाँ, जब भी मैं खेती का काम करता हूँ पूरी तरह से उसमें लीन हो जाता हूँ।“
साधु बोला, मेरे भाई खेती का काम ही तुम्हारा ध्यान है, तुम्हारी भक्ति है। तुम्हारा तप है और भगवान की भक्त्ति है। मेरी साधना से तो सिर्फ मेरा ही भला होता है लेकिन तुम्हारी खेती की साधना से तुम्हें और दूसरे को भी शांति मिलती है। इसीलिए तुम्हारा तप मेरे तप से ज्यादा महान है, ज्यादा भलाई करने वाला है। तुम्हारा तप सच्चा है, जनहितकारी है और तुम मुझसे भी महान हो। इतना कह कर साधु आगे अपनी राह पर चल पड़ा और किसान उन्हें देखता रहा गया। आज उसे अपने कर्म के मोल का पता चल गया।
प्रस्तुति - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
मालवी लोक साहित्य पुस्तक से साभार