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20140527

प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा खांपा रत्न सम्मानोपाधि से विभूषित





  

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं प्रसिद्ध समालोचक प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा को उनकी सुदीर्घ साहित्यिक साधना, हिन्दी एवं मालवी भाषा के व्यापक प्रसार एवं संवर्धन एवं संस्कृति के क्षेत्र में किए महत्वपूर्ण योगदान और के लिए किए गए उल्लेखनीय कार्यों के लिए हल्ला गुल्ला साहित्य मंच, रतलाम द्वारा खांपा रत्न सम्मानोपाधि से अलंकृत किया गया। उन्हें यह सम्मानोपाधि रतलाम में आयोजित 10 वें . भा. खांपा सम्मेलन अर्पित की गई । इस सम्मान के अन्तर्गत उन्हें प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिह्‌न  एवं अंगवस्त्र अर्पित किए गए। उन्हें मुख्त अतिथि इप्का लैब के उपाध्यक्ष श्री दिनेश सियाल, समाजसेवी श्री दिनेश पाटीदार, संस्थापक व्यंग्यकार संजय जोशी सजग, संयोजक अलक्षेन्द्र व्यास, जुझारसिंह भाटी आदि ने सम्मानित किया। इस आयोजन में देश के सैंकड़ों साहित्यकार एवं संस्कृतिकर्मी उपस्थित थे।

     प्रो. शर्मा आलोचना, लोकसंस्कृति, रंगकर्म, राजभाषा हिन्दी एवं देवनागरी लिपि से जुड़े शोध,लेखन एवं नवाचार में विगत ढाई दशकों से निरंतर सक्रिय हैं । उनके द्वारा लिखित एवं सम्पादित पच्चीस से अधिक ग्रंथ एवं आठ सौ से अधिक आलेख एवं समीक्षाएँ प्रकाशित हुई हैं। उनके ग्रंथों में प्रमुख रूप से शामिल हैं- शब्द शक्ति संबंधी भारतीय और पाश्चात्य अवधारणा, देवनागरी विमर्श, हिन्दी भाषा संरचना, अवंती क्षेत्र और सिंहस्थ महापर्व, मालवा का लोकनाट्‌य माच एवं अन्य विधाएँ, मालवी भाषा और साहित्य, मालवसुत पं. सूर्यनारायण व्यास,आचार्य नित्यानन्द शास्त्री और रामकथा कल्पलता, हरियाले आँचल का  हरकारा : हरीश निगम, मालव मनोहर आदि। प्रो.शर्मा को देश – विदेश की अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। उन्हें प्राप्त सम्मानों में थाईलैंड में विश्व हिन्दी सेवा सम्मान, संतोष तिवारी समीक्षा सम्मान, आलोचना भूषण सम्मान आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय सम्मान, अक्षरादित्य सम्मान, शब्द साहित्य सम्मान, राष्ट्रभाषा सेवा सम्मान, राष्ट्रीय कबीर सम्मान, हिन्दी भाषा भूषण सम्मान, विद्यावाचस्पति आदि प्रमुख हैं।
      प्रो. शर्मा को खांपा रत्न सम्मानोपाधि से अलंकृत किए जाने पर म.प्र. लेखक संघ के अध्यक्ष प्रो. हरीश प्रधान, विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जवाहरलाल कौल,  पूर्व कुलपति प्रो. रामराजेश मिश्र, पूर्व कुलपति प्रो. टी.आर. थापक,  कुलसचिव डॉ. बी.एल. बुनकर, विद्यार्थी कल्याण संकायाध्यक्ष डॉ राकेश ढंड , इतिहासविद्‌ डॉ. श्यामसुन्दर निगम, साहित्यकार श्री बालकवि बैरागी, डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित, डॉ. शिव चौरसिया, डॉ. प्रमोद त्रिवेदी, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो गीता नायक, डॉ. जगदीशचन्द्र शर्मा, प्रभुलाल चौधरी, अशोक वक्त, डॉ. अरुण वर्मा, डॉ. जफर मेहमूद, प्रो. बी.एल. आच्छा, डॉ. देवेन्द्र जोशी, डॉ. तेजसिंह गौड़, डॉ. सुरेन्द्र शक्तावत, श्री युगल बैरागी, श्री नरेन्द्र श्रीवास्तव 'नवनीत', श्रीराम दवे, श्री राधेश्याम पाठक 'उत्तम', श्री रामसिंह यादव, श्री ललित शर्मा, डॉ. राजेश रावल सुशील, डॉ. अनिल जूनवाल, डॉ. अजय शर्मा, संदीप सृजन, संतोष सुपेकर, डॉ. प्रभाकर शर्मा, राजेन्द्र देवधरे 'दर्पण', राजेन्द्र नागर 'निरंतर', अक्षय अमेरिया, डॉ. मुकेश व्यास, श्री श्याम निर्मल आदि ने बधाई दी।
                                                                         
                                                                       डॉ. अनिल जूनवाल
                                                             संयोजक, राजभाषा संघर्ष समिति, उज्जैन






              

20130908

हिंदी के विश्व प्रसार पर राष्ट्रीय परिसंवाद और राष्ट्रीय हिंदी सेवा सम्मान 2013 मशहूर सिने गीतकार समीर राष्ट्रीय हिंदी सेवा सम्मान से अलंकृत

हिंदी पखवाड़े के शुभारंभ अवसर पर 1 सितंबर 2013 को उज्जैन स्थित कालिदास अकादेमी में मालवा रंगमंच समिति द्वारा राष्ट्रीय हिंदी सेवा सम्मान एवं परिसंवाद आयोजित किया गया। समारोह में प्रख्यात सिने गीतकार समीर से आत्मीय भेंट का अवसर मिला। उन्हें राष्ट्रीय हिंदी सेवा सम्मान 2013 से सम्मानित किया गया। समीर ने 635 फिल्मों में पाँच  हजार से अधिक गीत रचे हैं। आशिक़ी , साजन, दिल, देवदास , कभी खुशी कभी गम , दिल है के मानता नहीं, हम हैं राही प्यार के, राजा बाबू,  धूम, सन ऑफ सरदार, कुछ-कुछ होता है, दबंग 2 जैसी अनेक लोकप्रिय फिल्मों में समाहित उनके गीतों को देश-दुनिया में बहुत गाया-गुनगुनाया गया। वे अनु मलिक और नदीम-श्रवण से लेकर आनंद-मिलिंद, हिमेश रेशमिया और दिलीप सेन – समीर सेन तक कई संगीतकारों के चहेते गीतकार रहे हैं।  सिने गीतों पर उनसे हुई चर्चा यादगार रहेगी । आयोजक सिने जगत के मीडिया परामर्शक श्री केशव राय ने यह अवसर जुटाया था। फिर हाल ही में अपने मुंबई प्रवास पर समीर जी से सिने गीतों के बदलाव पर  लंबी चर्चा का मौका मिला। समीर जी ने हमें प्रसिद्ध सिने पत्रकार श्री डेरेक बोस द्वारा रचित बहुरंगी पुस्तक ‘sameer : a way with words’ अर्पित की। मेरे साथ मुंबई विद्यापीठ के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. करुणाशंकर उपाध्याय , श्री केशव राय भी थे । समीर उर्फ शीतलाप्रसाद पाण्डेय समीर मूलतः बनारस से हैं। उनके पिता प्रख्यात सिने गीतकार अनजान उर्फ लालजी पाण्डेय ने हिन्दी सिनेमा को खई के पान बनारसी वाला जैसे कई अमर गीत दिये हैं।- प्रो.  डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा                                श्री केशव राय की ओर से राष्ट्रीय हिंदी सेवा सम्मान और परिसंवाद 2013 की रपट पेश है- मालवा रंगमंच समिति द्वारा राष्ट्रीय हिंदी सेवा सम्मान और परिसंवाद आयोजित किया गया। समारोह में प्रख्यात सिने गीतकार श्री समीर को राष्ट्रीय हिंदी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया । कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि समाज चिन्तक प्रो शैलेन्द्र पाराशर , विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो.  डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा, व्यंग्यकार डॉ पिलकेंद्र अरोरा, मालवा रंगमंच समिति के संस्थापक अध्यक्ष श्री केशव राय एवं श्री यू. एस. छाबड़ा ने समीर जी को सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न अर्पित कर उनका आत्मीय सम्मान किया।सिने गीतकार समीर जी ने अपने संबोधन में कहा कि हिन्दी की प्रगति में सिनेमा की अद्वितीय भूमिका रही है। आम आदमी से लेकर बुद्धिजीवी वर्ग तक सभी सिने गीतों का आनंद लेते हैं। गीतों के सृजन के पीछे मेरे सिने गीतकार पिता अनजान की प्रेरणा रही। मुंबई में दो वर्षों का संघर्ष मेरे लिए बहुत उपयोगी रहा। सफलता प्राप्त करने के बाद भी अविराम कर्म जरूरी है। सच्चा प्यार करने वाला व्यक्ति ही फ़िल्म इन्डस्ट्री में टिक सकता है। सिने गीत और कहानी में लफ़्ज़ से ज्यादा महत्व जज्बों का है।समालोचक प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिंदी की विश्व व्याप्ति में सिने गीतों की अविस्मरणीय भूमिका रही है। विदेशों में हिन्दी शिक्षण और संस्कृति के प्रसार में हिन्दी सिनेमा कि सशक्त भागीदारी दिखाई दे रही है।हिंदी वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में अपनी विलक्षण पहचान और हैसियत बना चुकी है। हिन्दी भूमंडलीकरण की हमराह  और संवाहिका है। इस दौर में जरूरत इस बात की है कि हम हिन्दी के सामर्थ्य को पहचानें और उसकी विविधमुखी प्रगति के लिये प्रयत्न करें ।आज विश्व में वही भाषा टिक सकती है जो स्वयं को विस्तार दे , संकीर्ण न हो।  हिंदी इस शर्त को पूरा करती है। यह भाषा अचानक  नहीं , सदियों- दर- सदियों से इस देश को एक किए हुए है। राष्ट्रभाषा हिन्दी को हमारे वीर सेनानियों ने आजादी लाने का हथियार  बनाया था । आज यह भाषा दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली विश्व भाषा बन चुकी है। देश-दुनिया के विविध क्षेत्रों में हिंदी का परचम लहरा रहा है। लोकप्रिय सिनेमा , पटकथा लेखन , सिने गीत, अधुनातन संचार माध्यम से लेकर  ब्लोगिंग और माइक्रो ब्लोगिंग आदि के जरिये यह दूर- दूर तक अपनी पहुँच बना चुकी है। इन सभी क्षेत्रों में विश्व पटल पर हिन्दी के बदलते स्वरूप को ध्यान में रखते हुए  व्यापक विमर्श एवं मैदानी प्रयासों की दरकार है। प्रो.  शैलेंद्र पाराशर ने कहा कि वर्तमान दौर में विश्वभाषा हिन्दी हमारी पहचान है। अनेक सिने गीतकारों और कहानी लेखकों ने इसके विकास में योगदान दिया है। समाजसेवी श्री यू एस छाबड़ा, सिने गीतों के संग्राहक श्री सुमन चौरसिया [इंदौर] , श्री लाड़, श्री प्रकाश बांठिया ने भी विचार व्यक्त किये । प्रारम्भ में स्वागत वक्तव्य संस्थाध्यक्ष श्री केशव राय ने दिया। सम्मान पत्र का वाचन श्री महेश शर्मा अनुराग ने किया। उज्जैन की रंग प्रतिभा जगरूप सिंह , कवि सौरभ चातक एवं गीत लेखन स्पर्धा में विजेताओं को गीतकार समीर और मंचासीन अतिथियों ने सम्मानित किया। अतिथि स्वागत श्री राजेश राय, श्री महेश शर्मा अनुराग, श्री पारस चौधरी, श्री प्रमोद राय, डॉ महेश कानूनगो, श्री ऋषि राय आदि ने किया। श्री समीर के गीत की प्रस्तुति कलाकार श्री राहुल राय ने की। संचालन कवि श्री दिनेश दिग्गज और आभार श्री प्रकाश बांठिया ने माना ।  [प्रस्तुति - केशव राय]  




समीर के साथ प्रो डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा एवं केशव राय 
समीर के साथ 
प्रो डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा 

समीर और डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा 
राष्ट्रीय हिंदी सेवा सम्मान 2013 से समीर को सम्मानित करते हुए  
प्रो डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा, प्रो शैलेन्द्र पाराशर
 एवं केशव राय 

राष्ट्रीय हिंदी सेवा सम्मान 2013 से समीर को सम्मानित करते हुए  
प्रो डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा, प्रो शैलेन्द्र पाराशर, केशव राय एवं अन्य।   


समीर के साथ प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा
 एवं प्रो. करुणाशंकर उपाध्याय   
sameer : a way with words


  
sameer : a way with words पुस्तक
 डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा को अर्पित करते हुए समीर। समीप हैं श्री केशव राय।   

20130822

Alochana Bhushan award conferred on Prof Sharma

फ्रीप्रेस द्वारा प्रकाशित आलोचना भूषण सम्मान 2012 की रपट  

Home » Ujjain    October 30, 2012 01:13:54 AM | By FP NEWS SERVICE Ujjain
Alochana Bhushan award conferred on Prof Sharma
Ujjain:Vikram University Proctor and renowned critic Prof Shailendra Kumar Sharma was conferred with Akhil Bharatiya Alochana Bhushan honour for his incredible contribution in the field of criticism during a programme organised in Gaziabad on October 28 under the joint aegis of Rashtra Bhasha Swabhiman Nyas and USM Journal.
Prof Sharma was accorded this honour during national level Samman Alankaran programme under 20th Akhil Bharatiya Sahitya Sammelan by former Union Minister Dr Bhishmnarayan Singh and former Member of Parliament Dr Ratnakar Pandey. Prof Sharma was honoured with citation, memento and books. Former Union Minister and educationist Dr Sarojini Mahishi, senior dance scholar Padma Shree Dr Shyam Singh Shashi, Loksabha TV senior officer Dr Gyanendra Pandey, convener of institute Umashankar Mishra and other Hindi Scholars from more than 15 States were present during the felicitation programme.
Prof Sharma has been active in research and writings related to criticism, folk- culture, stage- art, Rajbhasha Hindi and Devnagari Lipi for last two and half decades. He has written more than 800 reviews in renowned journals of national and international recognition. Some of the most famous books written by Prof Sharma include Shabda Sambandhi Bharatiya and Pashchatya Avdharana, Devnagri Vimarsh, Hindi Bhasha Saranchana, Awanti Kshetra and Simhastha Mahaparva, Malwa ka Loknatya Mach, Malwi Language and Literature and others. Prof Sharma has been felicitated by several organizations earlier.


Prof Shailendra Kumar Sharma conferred by former Union Minister Dr Bhishmnarayan Singh and former Member of Parliament Dr Ratnakar Pandey



20130610

बारिश में केरल - डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा

बारिश में केरल : पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश

डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा 

अपने ढंग के इस अकेले ग्रह  पर प्रकृति का अनुपम उपहार कहीं- कहीं ही समूचे निखार पर नज़र आता है। इनमें ईश्वर के अपने स्वर्ग के रूप में विख्यात केरल का नाम सहसा कौंध जाता है. उत्तर में जम्मू-कश्मीर और दक्षिण में केरल - दोनों अपने - अपने विलक्षण निसर्ग- वैभव से ना जाने किस युग से मनुष्य को चुम्बकीय आकर्षण से खींचते- बांधते आ रहे हैं। केरलकन्या राजश्री से विवाह के बाद   प्रायः मेरी अधिकतर केरल यात्राएँ  बारिश के आस-पास ही होती रही हैं। केरलवासी  इसे सही समय नहीं मानते, लेकिन इसका मुझे कभी अहसास नहीं हुआ। जब पूरा भारत भीषण गरमी - लू से तड़फता है। तब भी केरल का आर्द्र वातावरण लोगों के तन- मन को भिगोए रखता है। ऐसा उसके समुद्रतट और पर्वतमाला से घिरे होने और सघन वनों से संभव होता है। सूखे का कोई नामो निशान नहीं। शायद धरती पर कोई और जगह नहीं है। जहाँ नैसर्गिक हरीतिमा का सर्वव्यापी प्रसार हो।  सब ओर हरा ही हरा छाया हो। श्वासों में  नई स्फूर्ति, नई चेतना जगाती प्राणवायु हो।


गरमी की इन्तहा होने पर पूरा देश जब आसमान की ओर तकने लगता है, तब केरल के निकटवर्ती अरब सागर से ही काली घटाओं की आमद होती है। मानसून की पहली मेघमाला सबसे पहले केरल को ही नहलाती है। फिर पूरा देश मलय पर्वत से आती हुई वायु के साथ कजरारे बादलों की गति और लय से झूमने लगता है। कभी महाकवि कालिदास ने इन्हीं आषाढ़ी बादलों को देखकर उन्हें विरही यक्ष का सन्देश अलकापुरी में निवासरत प्रिया के पास पहुँचाने का माध्यम बनाया था और सहसा 'मेघदूत' जैसी महान रचना का जन्म हुआ था. केरल पहुंचकर कई दफा इन बादलों की तैयारी को निहारने का मौका मिला है। सुबह खुले आसमान के रहते अचानक उमस बढ़ने लगती है, फिर स्याह बादलों की अटूट शृंखला टूट पड़ती है,  केरलवासी  पहली बारिश में चराचर जगत के साथ झूम उठते हैं। उस वक्त मनुष्य और इतर प्राणियों का भेद मिटने लगता है। 


केरल में कहा जाता है कि जब कौवे कहीं बैठे-बैठे बारिश में भीगते नजर आएँ तो उसका मतलब होता है कि पानी रूकेगा नहीं। आखिरकार  वह क्यों न भीगता रहे , गर्वीले बादलों से उसे रार जो ठानना है , देरी का कारण जो जानना है।


बारिश में भीगते केरल के कई रूपों को मैंने अपनी यात्राओं में देखा है। कभी सागर तट पर, कभी ग्राम्य जीवन में , कभी नगरों में , कभी  मैदानों में, कभी पर्वतों पर और कभी अप्रवेश्य जंगलों में . हर जगह उसका अलग अंदाज,अलग शैली . वहाँ की बारिश को देखकर कई बार लगता है  कि यह आज अपना हिसाब चुकता कर के  ही जाएगी, लेकिन थोड़ी ही देर में आसमान साफ़ . कई दफा वह मौसम विज्ञानियों के पूर्वानुमानों को मुँह चिढ़ाती हुई दूर से ही निकल जाती है।


तिरुवनंतपुरम- कोल्लम  हो या कालिकट- कोईलांडी , कोट्टायम-पाला  हो या थेक्कड़ी या फिर इलिप्पाकुलम-ओच्चिरा  हो या गुरुवायूर - सब जगह की बारिश ने अन्दर- बाहर से भिगोया है, लेकिन हर बार का अनुभव निराला ही रहा . वैसे तो केरल की नदियाँ और समुद्री झीलें सदानीरा हैं, लेकिन बारिश में इनका आवेश देखते ही बनता है. लेकिन यह आवेश प्रायः मर्यादा को नहीं तोड़ता . यहाँ की नदियाँ काल प्रवाहिनी कभी नहीं बनती हैं . देश के अधिकतर राज्यों से ज्यादा बारिश के बावजूद प्रलयंकारी बाढ़ के लिए यहाँ कोई जगह नहीं है . छोटी-छोटी नदियाँ केरल की पूर्वी पर्वतमाला से चलकर तीव्र गति से सागर से मिलने को उद्धत हो सकती हैं, लेकिन ये किसी को तकलीफ पहुँचाना नहीं जानतीं।

 

बारिश में भीगे केरलीय पर्वत मुझे जब-तब निसर्ग के चितेरे सुमित्रानंदन पन्त की रचना 'पर्वत प्रदेश में पावस ' की याद दिलाते रहे हैं :   


 पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।

मेखलाकर पर्वत अपार
अपने सहस्‍त्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,

-जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण सा फैला है विशाल!

गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्‍तेजित कर
मोती की लडि़यों सी सुन्‍दर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!

गिरिवर के उर से उठ-उठ करउच्‍चाकांक्षाओं से तरुवरहै झॉंक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर।

उड़ गया, अचानक लो, भूधर
फड़का अपार वारिद के पर!
रव-शेष रह गए हैं निर्झर!
है टूट पड़ा भू पर अंबर!

धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुऑं, जल गया ताल!
-यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल 

हे ईश्वर के अपने देश केरल , इसी तरह बारिश में भीगते रहना और सभी प्राणियों की तृप्ति बने रहना।

 

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा


कोट्टायम-कुमिली मार्ग का निसर्ग वैभव 


प्रो॰ शैलेन्द्रकुमार शर्मा Pro. Shailendrakumar Sharma



अंश शर्मा




प्रो॰ शैलेन्द्रकुमार शर्मा Pro. Shailendrakumar Sharma







कोट्टायम-कुमिली मार्ग का निसर्ग वैभव 

20130410

नए विमर्शों के बीच साहित्य की सत्ता के सवाल

नए विमर्शों के बीच साहित्य की सत्ता के सवाल पर आलेख अपनी माटी पर पढ़ सकते हैं....
                साहित्य की सत्ता मूलतः अखण्ड और अविच्छेद्य सत्ता है। वह जीवन और जीवनेतर सब कुछ को अपने दायरे में समाहित कर लेता है। इसीलिए उसे किसी स्थिर सैद्धांतिकी की सीमा में बाँधना प्रायः असंभव रहा है। साहित्य को देखने के लिए नजरिये भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, जो हमारी जीवन-दृष्टि पर निर्भर करते हैं। एक ही कृति को देखने-पढ़ने की कई दृष्टियाँ हो सकती हैं। उनके बीच से रचना की समझ को विकसित करने के प्रयास लगभग साहित्य-सृजन की शुरूआत के साथ ही हो गए थे। आदिकवि वाल्मीकि जब क्रौंच युगल के बिछोह के शोक से अनायास श्लोक की रचना कर देते हैं, तब उन्हें स्वयं आश्चर्य होता है कि यह क्या रचा गया  इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक तक आते-आते साहित्य से जुड़े क्या, क्यों और कैसे जैसे प्रश्न अब भी ताजा बने हुए लगते हैं, तो यह आकस्मिक नहीं हैं।
     आज का दौर भूमण्डलीकरण और उसे वैचारिक आधार देने वाले उत्तर आधुनिक विमर्श और मीडिया की विस्मयकारी प्रगति का दौर है। इस दौर में साहित्य और उसके मूल में निहित संवेदनाओं के छीजते जाने की चुनौती अपनी जगह है ही, साहित्य और सामाजिक कर्म के बीच का रिश्ता भी निस्तेज किया जा रहा है। ऐसे में साहित्य की ओर से प्रतिरोध बेहद जरूरी हो जाता है। इधर साहित्य में आ रहे बदलाव नित नए प्रतिमानों और उनसे उपजे विमर्शों के लिए आधार बन रहे हैं। वस्तुतः कोई भी प्रतिमान प्रतिमेय से ही निकलता है और उसी प्रतिमान से प्रतिमेय के मूल्यांकन का आधार बनता है। फिर एक प्रतिमेय से निःसृत प्रतिमान दूसरे नव-निर्मित प्रतिमेय पर लागू करने पर मुश्किलें आना सहज है। पिछले दशकों में शीतयुद्ध की राजनीति ने वैश्विक चिंतन को गहरे आन्दोलित किया, जिसका प्रभाव भारतीय साहित्य एवं कलाजगत् पर सहज ही देखा जाने लगा। इसी प्रकार भूमण्डलीकरण और बाजारवाद की वर्चस्वशाली उपस्थिति ने भी मनुष्य जीवन से जुड़े प्रायः सभी पक्षों पर अपना असर जमाया। इनसे साहित्य का अछूता रह पाना कैसी संभव था? उत्तर आधुनिकता, फिर उत्तर संरचनावाद और विखंडनवाद के प्रभावस्वरूप पाठ के विखंडन का नया दौर शुरू हुआ। इसी दौर में नस्लवादी आलोचना, नारी विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श , सांस्कृतिक-ऐतिहासिक बोध जैसी विविध विमर्श धाराएँ विकसित हुईं। केन्द्र के परे जाकर परिधि को लेकर नवविमर्श की जद्दोजहद होने लगी। ऐसे समय में मनुष्य और साहित्य की फिर से बहाली पर भी बल दिया जाने लगा। पिछले दो-तीन दशकों में एक साथ बहुत से विमर्शों ने साहित्य, संस्कृति और कुल मिलाकर कहें तो समूचे चिंतन जगत् को मथा है। हिन्दी साहित्य में हाल के दशकों में उभरे प्रमुख विमर्शों में स्त्री विमर्शदलित विमर्श,  आदिवासी विमर्श,  वैश्वीकरण, बहुसांस्कृतिकतावाद  आदि को देखा जा सकता है। ये विमर्श साहित्य को देखने की नई दृष्टि देते हैं, वहीं इनका जैविक रूपायन रचनाओं में भी हो रहा है।-प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा 

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