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20181205
20181101
Lavani Dance | लावणी नृत्य | महाराष्ट्र: पारम्परिक लोक नृत्य - संगीत
Lavani Dance | लावणी नृत्य |
महाराष्ट्र: पारम्परिक लोक नृत्य - संगीत|
Presented by Prof. Shailendra Kumar Sharma
https://youtu.be/-Yy7eY5_xs0
महाराष्ट्र: पारम्परिक लोक नृत्य - संगीत|
Presented by Prof. Shailendra Kumar Sharma
https://youtu.be/-Yy7eY5_xs0
Nirgun Chetawani Bhajan || Mat le re Jivda Neend Harami | निर्गुणी चेतावनी भजन|| लोक गायक श्री भंवरनाथ भाटी के स्वर में
निर्गुणी चेतावनी भजन|| लोक गायक श्री भंवरनाथ भाटी के स्वर में ||
Presented by
Prof. Shailendra Kumar Sharma
https://youtu.be/SI_i8TjC1Ik
Presented by
Prof. Shailendra Kumar Sharma
https://youtu.be/SI_i8TjC1Ik
Ghoomar Dance घूमर नृत्य
घूमर नृत्य||सुमधुर लोक संगीत पर पारम्परिक घूमर|Ghoomar Dance
घूमर नृत्य|Ghoomar Dance
Presented by Prof. Shailendra Kumar Sharma
https://youtu.be/7r2bFmAplMc
घूमर नृत्य|Ghoomar Dance
Presented by Prof. Shailendra Kumar Sharma
https://youtu.be/7r2bFmAplMc
20180909
हिंदी के अनेक बोली रूप दुनिया में विकासमान हैं
बारह राज्यों के चालीस से अधिक साहित्यकारों का सम्मान हुआ अखिल भारतीय साहित्यकार सम्मेलन में
बोलियों के बिना नहीं है हिंदी का अस्तित्व
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना एवं नागरी लिपि परिषद के सौजन्य से उज्जैन में राष्ट्रीय साहित्यकार सम्मेलन एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस आयोजन में देश के दस राज्यों के साहित्यकारों और हिंदी सेवियों का सम्मान किया गया। कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि वरिष्ठ कवि डॉ प्रमोद त्रिवेदी एवं सारस्वत अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा थे। अध्यक्षता साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने की।
उद्बोधन में डॉ प्रमोद त्रिवेदी ने कहा कि हिंदी का अस्तित्व बोलियों पर टिका हुआ है। उनके बिना हिंदी का अस्तित्व नहीं है। शिक्षा और अनुसंधान कार्यों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ाने के लिए व्यापक प्रयास जरूरी हैं।
प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि विश्वभाषा हिन्दी सही अर्थों में भारतीय संस्कृति और परम्पराओं की समर्थ संवाहिका है। हिंदी विश्व की निर्मिति में दुनिया के कोने-कोने में डेढ़ सौ से अधिक देशों में बसे भारतीय समुदाय, संस्थाओं और व्यक्तियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। हिंदी के अनेक बोली रूप दुनिया के कोने कोने में विकासमान हैं, जिनमें स्थानीय संस्कृति और बोलियों का जैविक संयोग हो रहा है। हिंदी की नई बोलियाँ विश्व-आँगन से लेकर लोक व्यवहार तक अटखेलियाँ कर रही हैं।
आयोजन के विशिष्ट अतिथि डॉ हरिमोहन धवन, डॉ राजीव पाल, आगरा, डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ विद्यासागर मिश्र, लखनऊ थे। प्रारम्भ में स्वागत भाषण एवं कार्यक्रम की संकल्पना पर प्रकाश संस्थाध्यक्ष डॉ प्रभु चौधरी ने डाला।
समापन समारोह पूर्व कुलपति डॉ मोहन गुप्त के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुआ। उन्होंने कहा कि जो भाषा राजकाज के साथ शिक्षित और अभिजात्य वर्ग द्वारा अपनाई जाती है उसके विकास की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। बोलियां का विकास हो किंतु उन्हें हिंदी से काट कर अलग करना उचित नहीं है। देवनागरी लिपि अत्यंत वैज्ञानिक लिपि के रूप में दुनिया की अनेक भाषाओं को आधार दे रही है। आयोजन के सारस्वत अतिथि नागरी लिपि परिषद के मंत्री डॉ हरिसिंह पाल, वरिष्ठ पत्रकार श्री ओमप्रकाश, नई दिल्ली, समीक्षक डॉ जगदीशचंद्र शर्मा, डॉ विकास दवे, श्री विष्णुप्रसाद चौधरी, श्री मानसिंह चौधरी आदि ने भी विचार व्यक्त किए।
आयोजन में दो तकनीकी सत्र भी सम्पन्न हुए। ये सत्र सूचना प्रौद्योगिकी एवं देवनागरी लिपि तथा विश्व फलक पर हिंदी: परम्परा और नवीन आयाम पर केंद्रित थे। इन सत्रों में अनेक वक्ताओं ने आलेख प्रस्तुत किए।
मंचासीन अतिथियों द्वारा चालीस से अधिक साहित्यकारों का सम्मान किया। इनमें शिक्षाविद डॉ बी के शर्मा, कविता भट्ट, श्रीनगर, पूनम गुजराती, सूरत, श्री प्रभु त्रिवेदी, इंदौर, आरतीसिंह एकता, नागपुर, डॉ मीनू पांडेय, भोपाल, सुविधा
पंडित, अहमदाबाद, तारा परमार, दीपा अग्रवाल, अजमेर, हंसा शुक्ला, दुर्ग, सरिता शुक्ला, लखनऊ, डॉ ज्योति मैवाल, डॉ रूपा भावसार, डॉ तृप्ति नागर, डॉ दीपा व्यास, प्रगति बैरागी, डॉ प्रवीण जोशी, महेश नागर शामिल थे।
पंडित, अहमदाबाद, तारा परमार, दीपा अग्रवाल, अजमेर, हंसा शुक्ला, दुर्ग, सरिता शुक्ला, लखनऊ, डॉ ज्योति मैवाल, डॉ रूपा भावसार, डॉ तृप्ति नागर, डॉ दीपा व्यास, प्रगति बैरागी, डॉ प्रवीण जोशी, महेश नागर शामिल थे।
आयोजन में पत्रिका ट्रू मीडिया, नागरी संगम, विश्वरागिनी आदि का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया।
विभिन्न सत्रों का संचालन सुंदरलाल जोशी, नागदा, सुषमा दुबे इंदौर ने किया। आभार डॉ प्रभु चौधरी एवं डॉ अमृता अवस्थी ने माना।
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