पेज

20201124

अखिल भारतीय कालिदास समारोह

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2020

मध्यप्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन का संयुक्त आयोजन

आमंत्रण पत्र : डाउनलोड करें PDF 

https://drive.google.com/file/d/1hbrXLvcu24yt__ozJcDfLhCeW-5noBcN/view?usp=drivesdk










सारस्वत आयोजन


राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी


सुधी प्राध्यापक / शिक्षाविद् / शोधकर्ता कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र प्रस्तुति के लिए सादर आमंत्रित हैं।

दिनांक :  26 एवं 27 नवंबर 2020 

प्रतिदिन - प्रातः 10 : 00 बजे

स्थान : अभिरंग नाट्यगृह, कालिदास संस्कृत अकादमी विश्वविद्यालय मार्ग, उज्जैन

पंजीयन के लिए संपर्क :

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

सचिव

कालिदास समिति

विक्रम विश्वविद्यालय

सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान 

देवास मार्ग, उज्जैन


ईमेल :

shailendrakumarsharmaprof@gmail.com

मो. 9826047765 

मो. 7089513740


सांस्कृतिक कार्यक्रम



गढ़कालिका पर वागर्चन की विधि सम्पन्न


अ.भा. कालिदास समारोह के अवसर पर प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी प्रातः 10 बजे वागर्चन की विधि सन्त सुन्दरदास सेवा संस्थान एवं युग निर्माण समिति उज्जैन के सहकार से सम्पन्न हुई। इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.अखिलेश कुमार पाण्डेय, पूर्व कुलपति प्रो.बालकृष्ण शर्मा, कालिदास समिति के सचिव प्रो.शैलेन्द्रकुमार शर्मा, प्रो.तुलसीदास परोहा, अकादमी की प्रभारी निदेशक श्रीमती प्रतिभा दवे, उपनिदेशक डॉ.योगेश्वरी फिरोजिया, डॉ.पीयूष त्रिपाठी, डॉ.रमेश शुक्ल, श्री सत्यनारायण नाटानी, श्री मोहन खंडेलवाल मुकुल, श्री आशीष खंडेलवाल आदि गणमान्यजनों ने देवी का पूजन एवं स्तुति की। विद्वानों का स्वागत श्री मोहन खंडेलवाल मुकुल ने किया। धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम समन्वयक श्री राजेन्द्र अवस्थी ने किया।





















 









कलश यात्रा एवं मंगल घट स्थापना के साथ कालिदास समारोह की शुरुआत

तीन दिवसीय अखिल भारतीय कालिदास समारोह देव प्रबोधिनी एकादशी (25 नवंबर) से प्रारंभ होगा। उद्घाटन कालिदास संस्कृत अकादमी के पं. सूर्यनारायण व्यास संकुल हॉल में शाम 4 बजे बतौर मुख्य अतिथि प्रदेश की संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर करेंगी। अध्यक्षता उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव करेंगे। पहले दिन कालिदास साहित्य में वर्णित नायिकाओं पर आधारित संस्कृत नाटक दीपशिखा का मंचन सतीश दवे के निर्देशन में होगा। दूसरे दिन शर्मा शर्मा के निर्देशन में हिंदी नाटक मालविकाग्निमित्र और तीसरे दिन प्रज्ञा गढ़वाल के निर्देशन में मालवी नृत्यनाटिका ऋतुसंहार का मंचन होगा। ये तीनों प्रस्तुतियां शाम 7 बजे से पं. सूर्यनारायण व्यास संकुल में होगी।


उद्घाटन से एक दिन पहले अकादमी ने रामघाट पर कलश पूजन किया और फिर प्रतीकात्मक यात्रा निकाल कलश को कालिदास अकादमी में स्थापित किया। विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अखिलेशकुमार पांडेय, कालिदास समिति के सचिव प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा, अकादमी की प्रभारी निदेशक प्रतिभा दवे, एसडीएम राकेशमोहन त्रिपाठी, नायब तहसीलदार भूमिका जैन, रूप पमनानी, ओम जैन उपस्थित थे। इस अवसर पर विधायक पारस जैन ने ज्योतिषविद् पं. आनंदशंकर व्यास का सम्मान किया। पं. व्यास ने कहा कि समारोह का मूल उद्देश्य संपूर्ण विश्व में संस्कृत संबंधी कार्य को एक मंच पर लाना है। पूर्व में महाकाल मंदिर और योगेश्वर टेकरी से मेघदूत के श्लोकों का प्रसारण होता था, वह दोबारा शुरू किया जाना चाहिए।


समारोह अंतर्गत मंगलवार शाम पं. सूर्यनारायण व्यास संकुल हॉल में नांदी कार्यक्रम अंतर्गत उज्जैन के नगाड़ा वादक नरेंद्र कुशवाह और लोक गायक सुंदरलाल मालवीय ने साथी कलाकारों के साथ प्रस्तुति दी। कार्यक्रम कोविड-19 गाइडलाइन पालन करते हुए किया गया। बताया कि कालिदास समारोह के उद्घाटन के साथ राष्ट्रीय चित्र एवं मूर्तिशिल्प कला की प्रदर्शनी का उद्घाटन भी होगा। ये प्रदर्शनी 1 दिसंबर तक सुबह 10 से रात 8 बजे तक लोग देख सकेंगे। इस प्रदर्शनी का अवलोकन यू-ट्यूब चैनल के माध्यम से भी किया जा सकेगा। समारोह के तीनों दिन अभिरंग नाट्यगृह में राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी भी होगी। 















कालिदास समारोह के संदर्भ में प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष 24 नवम्बर को प्रतीकात्मक रूप में कलश यात्रा के संदर्भ में भगवती शिप्रा का पूजन एवं मंगल कलश का पूजन प्रातः 9 बजे शिप्रा तट रामघाट पर किया गया। वहां से कलश लेकर भगवान महाकाल को प्रणाम करते हुए अकादमी में मंगल कलश की स्थापना की गई। इस अवसर पर जनप्रतिनिधि, प्रशासकीय अधिकारी, समाजसेवी एवं आयोजन के अधिकारियों की गरिमामयी उपस्थिति रही।












                                                                 



नान्दी के अंतर्गत हुई सांस्कृतिक प्रस्तुतियां


कालिदास समारोह शुभारंभ की पूर्व संध्या पर नांदी के अंतर्गत लोक गायक श्री सुंदर लाल मालवीय और उनके समूह द्वारा निर्गुणी भजनों की प्रस्तुति की गई। नगाड़ा सम्राट श्री नरेंद्र सिंह कुशवाहा एवं समूह द्वारा ताल वाद्य वादन किया गया।

महाकवि कालिदास : वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में समग्र दृष्टि - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

काल की सीमा से नहीं बंधते हैं महाकवि कालिदास 

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महाकवि कालिदास की समग्र दृष्टि पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न   


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में महाकवि कालिदास की समग्र दृष्टि पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश - दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ वक्ताओं और साहित्यकारों ने भाग लिया।  कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के पूर्व कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा थे। विशिष्ट वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, डॉ कौशल किशोर पांडेय, इंदौर, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महासचिव डॉ प्रभु चौधरी एवं उपस्थित वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन ने की। यह संगोष्ठी अखिल भारतीय कालिदास समारोह की पूर्व पीठिका के रूप में आयोजित की गई थी।









संगोष्ठी को संबोधित करते हुए पूर्व कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि महाकवि कालिदास अद्वितीय महाकवि हैं। टीकाकारों और समीक्षकों ने महाकवि की प्रशंसा करते हुए उनके साहित्य की अपार संभावनाओं की ओर संकेत किया है। महाकवि कालिदास का काव्य श्रेष्ठ बुद्धि वाले लोगों द्वारा अनुभवगम्य है। इसलिए उसकी व्याख्या या आस्वाद कोई सामान्य व्यक्ति नहीं ले सकता। भगवान विष्णु का विराट स्वरूप हर कोई नहीं देख सकता, केवल उनकी कृपा से अर्जुन ही उसका साक्षात्कार कर सके थे। इसी प्रकार कालिदास अर्थ गाम्भीर्य के कवि हैं। उन्हें कोई सामान्य व्यक्ति ग्रहण नहीं कर सकता। कालिदास दिव्य कवि हैं, वे काल की सीमा से नहीं बंधते हैं। वे जितने अपने समय में प्रासंगिक थे, उससे अधिक आज प्रासंगिक हैं। कालिदास का संकेत है कि कोई शस्त्र या शक्ति का प्रयोग तभी किया जाए, जब निर्बलों की रक्षा करनी हो। वे संकेत देते हैं कि जब आप किसी से परिचय बनाते हैं और बिना परीक्षण के प्रगाढ़ सम्बन्ध बना लेते हैं, इस प्रकार के अज्ञात हृदय से मित्रता श्रेयस्कर नहीं होती। उनके काव्य में जनमंगल की भावना है। उन्होंने अपने नाटकों के भरतवाक्य में विश्व मंगल की कामना की है। हम दुर्गम स्थितियों से मुक्त हो जाएं और सभी लोग सभी स्थानों पर प्रसन्न हों, यह उदात्त भावना कालिदास की है।



विशिष्ट वक्ता लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि महाकवि कालिदास जीवन की समग्रता के कवि हैं। उनका साहित्य हमारी शाश्वत मूल्य दृष्टि, जातीय स्मृतियों, परंपराओं और इतिहास के अनेक महत्वपूर्ण पहलुओं से साक्षात्कार का अवसर देता है। क्या व्यक्ति और परिवार जीवन, क्या समाज जीवन, क्या राष्ट्र जीवन और क्या विश्व जीवन -  महाकवि की दृष्टि से कुछ भी ओझल नहीं है। इसीलिए दार्शनिक एवं काव्यशास्त्री आचार्य आनंदवर्धन की निगाह जब कालिदास पर जाती है तो उन्हें प्रतीत होता है कि इस संसार में अब तक की जो विचित्र कवि परंपरा है, उसमें कालिदास जैसे दो या तीन या पांच कवियों की ही गणना की जा सकती है। रघुवंश में महाकवि ने रघुकुल के राजाओं की महिमा एवं उनके वैशिष्ट्य का वर्णन करने के बहाने केवल राजन्य वर्ग ही नहीं, प्राणिमात्र के लिए सार्वभौमिक प्रादर्शों को प्रस्तुत किया हैं। उन्होंने भारत के भूगोल और निसर्ग वैभव का मनोरम चित्र उकेरा है, जो उनकी व्यापक दृष्टि का परिचायक है। वे भूमि के साथ निवासी और संस्कृति के चितेरे हैं और इन तीनों के समुच्चय से ही राष्ट्र बनता है। कालिदास हिमालय से लेकर विंध्य और वहां से लेकर सागर पर्यंत अविच्छिन्न राष्ट्रीयता के संपोषक हैं। दिलीप, रघु, दशरथ और राम जैसे शासक उनके लिए आदर्श हैं, जो सदैव  प्रजाहित में  लीन रहते हैं और राष्ट्र को भय, अनाचार, आधि - व्याधि रहित बनाए रखते हैं। परोपकार, तप और त्याग में लीन चरित्रों के सरस अंकन से कालिदास की रचनाओं में सबका मन रम जाता है।




कार्यक्रम में प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नार्वे ने नॉर्वेजियन भाषा में कालिदास कृत मेघदूत के चुनिंदा का अंशों का अनुवाद प्रस्तुत किया। उनका यह अनुवाद स्कैंडिनेवियन भाषाओं के मध्य कालिदास साहित्य का प्रथम अनुवाद है।




विशिष्ट अतिथि संस्कृतविद डॉ कौशल किशोर पांडेय, इंदौर ने कहा कि कालिदास की दृष्टि में पार्वती और परमेश्वर दोनों परस्पर संपृक्त हैं। उनकी दृष्टि में गृहिणी सखी भी है। यह बात आज भी प्रासंगिक है। कालिदास संकेत करते हैं कि शरीर धर्म के लिए प्रथम साधन है।  यह बात कोरोना संकट के दौर में स्पष्ट रूप से सिद्ध हो गई है। योगसाधना और गौ सेवा की उपादेयता को उन्होंने सदियों पहले प्रतिपादित किया था।                                                        


कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्था अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि वर्तमान का चित्र सभी कविगण करते हैं, किंतु आगामी काल की स्थितियों को जो प्रत्यक्ष कर देता है, वह कालजयी कवि होता है। कालिदास इसी प्रकार के कालजयी कवि हैं। रवींद्रनाथ टैगोर, दिनकर आदि की कविताओं पर कालिदास का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। महाकवि कालिदास की कविता विराट वेदना को प्रत्यक्ष करती है। उनकी कविताओं को पढ़कर प्रत्येक व्यक्ति का मन नर्तन करने लग जाता है।






वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि महाकवि कालिदास का उज्जयिनी से गहरा संबंध है। उनके जैसा उपमा का कोई दूसरा कवि नहीं हुआ।





संस्था की कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुम्बई ने कहा कि कालिदास भारतीय संस्कृति के जनकवि हैं। उनके काव्य में उदात्त नैतिकता और मर्यादा का अंकन हुआ है। कालिदास का कहना है कि सद् कर्मों से मानव भी देवता हो सकता है, किंतु असद् कर्मों से देवता को भी धरती पर आना पड़ता है।


प्रारंभ में संगोष्ठी की पूर्व पीठिका शिक्षाविद डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने प्रस्तुत की।





संगोष्ठी की संकल्पना, संस्था की गतिविधियों का प्रतिवेदन एवं अतिथि परिचय राष्ट्रीय महासचिव श्री प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत किया। संस्था का परिचय डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर ने दिया।




सरस्वती वंदना साहित्यकार डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने की। स्वागत भाषण डॉ लता जोशी, मुंबई ने दिया।


कार्यक्रम में डॉक्टर मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉक्टर लता जोशी, मुंबई, डॉ आशीष नायक, रायपुर, डॉ मनीषा सिंह, मुंबई, डॉक्टर ममता झा, मुंबई, डॉक्टर रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, प्रो बीएल आच्छा, चेन्नई, डॉक्टर संगीता पाल, कच्छ, डॉ समीर सैयद, डॉ ललिता घोड़के, डॉ अनिल काले, डॉ श्वेता पंड्या, उज्जैन, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ दर्शनसिंह रावत, जयपुर आदि सहित अनेक प्रतिभागी उपस्थित थे। 


कार्यक्रम का संचालन संस्था की डॉ मनीषा सिंह, मुंबई ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया।














 

































  


महाकवि कालिदास की समर्चना में अखिल भारतीय कालिदास समारोह का आयोजन प्रतिवर्ष देव प्रबोधिनी एकादशी से  किया जाता है।



20201121

दीपावली : आलोक के प्रति आस्था मनुष्य सभ्यता का प्रमुख अंग - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

आलोक के प्रति आस्था मनुष्य सभ्यता का प्रमुख अंग रही है – प्रो शर्मा 

लौकिक जीवन पर अलौकिक आभा का पर्व पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न   

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी एवं काव्य पाठ का आयोजन किया गया, जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ वक्ताओं और साहित्यकारों ने भाग लिया। राष्ट्रीय संगोष्ठी लौकिक जीवन पर अलौकिक आभा का पर्व पर केंद्रित थी। कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट वक्ता शिक्षाविद डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे थे। संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली, वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉ रश्मि चौबे, आगरा, डॉक्टर मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉक्टर लता जोशी, मुंबई, महासचिव डॉ प्रभु चौधरी एवं उपस्थित वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, ने की। यह संगोष्ठी दीपोत्सव पर्व पर आयोजित की गई।




मुख्य अतिथि लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि अनादि काल से आलोक के प्रति आस्था मनुष्य सभ्यता का प्रमुख अंग रही है।


दीपावली लोक से लोकोत्तर को जोड़ने का अनूठा अवसर देती है। दीपावली त्रिविध तापों से ग्रस्त लौकिक जीवन पर अलौकिक आभा का पर्व है। दीपावली  के पाँच दिन अज्ञात अतीत से न जाने कितनी जातीय स्मृतियों, लोक एवं शास्त्र की परम्पराओं और सांस्कृतिक - सामाजिक मूल्यों को लेकर आते हैं और फिर हमारे आसपास से जुड़ी पारिवेशीय चेतना के साथ दोहराए जाते हैं। लक्ष्मी का स्थिर वास वहां माना गया है, जहां परस्पर प्रेम, शुभत्व, स्वच्छता और शुचिता होती है। इस पर्व के पीछे गहरी पर्यावरणीय दृष्टि रही है। लक्ष्मी का संबंध कृषि, वनस्पति, समुद्र एवं जल स्रोतों के साथ माना गया है। उनकी उपासना के लिए इन्हीं स्थानों से प्राप्त उपादानों को अर्पित किया जाता है। यह पर्व परंपरा के साथ आधुनिकता, पुराख्यान के साथ वैज्ञानिकता के समन्वय का पर्व है। दीपावली पर्व अनेक सदियों से सर्वधर्म सद्भाव और लोकोपकार के लिए समर्पित होने की प्रेरणा देता आ रहा है। सही अर्थों में यह समूचेपन का, मनुष्य जीवन के भरे-पूरेपन का उत्सव है।



विशिष्ट वक्ता वरिष्ठ शिक्षाविद डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि दीपावली पर्व भारतीय सभ्यता का सबसे अनूठा और परम पवित्र त्यौहार है। शास्त्र और लोक परंपरा में इस पर्व की विशेष महिमा मानी गई है, जिन पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।


विशिष्ट अतिथि साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि दीपोत्सव अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला पर्व है। अलौकिक आभा के माध्यम से जन समुदाय को सार्थक संदेश मिलते हैं। उन्होंने इस अवसर पर दीप गीत भी प्रस्तुत किया।

 




विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कहा कि दीपावली पुरुषार्थ और बंधुत्व का पर्व है। ज्योति का यह पर्व सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।


कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुम्बई ने कहा कि दीपावली परस्पर स्नेह और सद्भाव का पर्व है। कोविड संकट के बावजूद लोगों ने दीपों के इस पर्व को नई आशा का संचार करते हुए मनाया।

 



दीपोत्सव से जुड़ी कविताएं डॉ रश्मि चौबे, आगरा, डॉक्टर मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉक्टर लता जोशी, मुंबई आदि ने प्रस्तुत कीं।


संस्था का परिचय, संगोष्ठी की संकल्पना एवं स्वागत भाषण राष्ट्रीय महासचिव श्री प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि दीपावली ज्योति का सांस्कृतिक पर्व है। इसका संबंध लक्ष्मी पूजन के साथ भगवान राम के अयोध्या आगमन से भी माना गया है। संस्था की गतिविधियों का प्रतिवेदन डॉ भरत शेणकर, अहमदनगर ने प्रस्तुत किया।  




सरस्वती वंदना साहित्यकार श्री सुंदरलाल जोशी, नागदा ने की। अतिथि परिचय डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने दिया।


कार्यक्रम में डॉक्टर मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, आगरा, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉक्टर लता जोशी, मुंबई, राम शर्मा, मनावर, डॉ आशीष नायक, रायपुर, डॉक्टर गरिमा गर्ग, मथेसुल जयश्री अर्जुन आदि सहित अनेक प्रतिभागी उपस्थित थे। 


कार्यक्रम का संचालन संस्था की डॉक्टर रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने किया। आभार प्रदर्शन राष्ट्रीय उप महासचिव डॉक्टर लता जोशी, मुंबई ने किया।


























दीपावली पर्व पर स्वस्तिकामनाएँ।


Featured Post | विशिष्ट पोस्ट

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : वैचारिक प्रवाह से जोड़ती सार्थक पुस्तक | Mahatma Gandhi : Vichar aur Navachar - Prof. Shailendra Kumar Sharma

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : पुस्तक समीक्षा   - अरविंद श्रीधर भारत के दो चरित्र ऐसे हैं जिनके बारे में  सबसे...

हिंदी विश्व की लोकप्रिय पोस्ट