परमसत्ता के अनुपम उपहार के रूप में दुनिया को देखने की दृष्टि देते हैं गुरु नानक
विक्रम विश्वविद्यालय में हुई गुरु नानक देव जी : विश्व चिंतन को प्रदेय पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी
विक्रम विश्वविद्यालय की हिंदी अध्ययनशाला एवं गुरु नानक अध्ययन केंद्र के संयुक्त तत्त्वावधान में गुरु नानक जयंती - गुरु पर्व के अवसर पर हिंदी अध्ययनशाला, वाग्देवी भवन में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। यह संगोष्ठी गुरु नानक देव जी : विश्व चिंतन को प्रदेय पर अभिकेंद्रित थी। आयोजन के प्रथम दिवस के मुख्य अतिथि डॉ हरिसिंह गौड़ केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर के हिंदी एवं संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रोफेसर आनंद प्रकाश त्रिपाठी थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने की। संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर प्रेमलता चुटैल, डॉक्टर जगदीश चंद्र शर्मा, डॉक्टर उमा वाजपेयी, डॉ शशि जोशी आदि ने गुरु नानक जी की वाणी और चिंतन के विविध आयामों पर अपने विचार व्यक्त किए।
मुख्य अतिथि डॉ हरिसिंह गौड़ केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर के हिंदी एवं संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि मध्यकालीन सन्तों ने जीवन में परिवर्तन की राह दिखाई है। गुरु नानक देव ने देश देशान्तरों की सोद्देश्य यात्रा की थी। उनमें संस्कृतियों को समझने की अभिलाषा थी, जिनसे उनका वैश्विक दृष्टिकोण विकसित हुआ। इतिहास, संस्कृति और धर्मों के अध्ययन से उनके जीवन में प्रकाश उत्पन्न हुआ। सामाजिक समरसता के लिए उन्होंने लंगर की अवधारणा दी। अहंकार के पूर्ण विसर्जन पर बल दिया। उन्होंने जाति प्रथा पर तीखा प्रहार किया। धार्मिक और सांस्कृतिक वैमस्य को समाप्त करने का महत्त्वपूर्ण प्रयत्न उन्होंने किया था।
हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि गुरु नानक देव जी की विश्व दृष्टि अत्यंत व्यापक थी। उनकी वाणी गहरे मूल्य बोध और आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित है। उन्होंने सभी पंथों के लोगों से भेद दृष्टि को भूलकर अपने मन को जीतने का आह्वान किया। वे नाम स्मरण को जीवन का पर्याय बनाने का संदेश देते हैं। उनके तीन विशिष्ट संदेशों को अंगीकार कर विश्व में व्यापक बदलाव लाया जा सकता है – किरत करो, नाम जपो और वंड छको। उनकी वाणी विपुल और व्यापक है, जिसमें सुदूर अतीत से चले आ रहे दर्शन, जातीय स्मृतियों के साथ ज्ञान, कर्म और भक्ति साधना का मर्म छुपा हुआ है। वे परमसत्ता के अनुपम उपहार के रूप में इस दुनिया को देखने की दृष्टि देते हैं, जिस पर सबका समान अधिकार है।
डॉ उमा वाजपेयी ने कहा कि गुरु नानक देव ने ईश्वर के एकत्व पर बल दिया। वे परिश्रम से आजीविका चलाने पर बल देते हैं। उन्होंने सन्त और सूफी काव्य के तत्त्वों का समन्वय स्थापित किया।
डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि नानक जी ने निवृत्ति के स्थान पर प्रवृत्ति पर बल दिया। बाह्याडंबर को वे ईश्वर प्राप्ति में बाधक मानते हैं। उन्होंने जाति व्यवस्था का तीखा विरोध किया। इसी तरह स्त्री के सशक्तीकरण की दिशा में उन्होंने महत्त्वपूर्ण संकेत दिए हैं। धर्म को वे विकासमान प्रक्रिया के रूप में दिखाते हैं। उन्होंने सेवा धर्म को महत्त्व दिया और धार्मिक समन्वय का मार्ग दिखाया।
डॉ शशि जोशी ने कहा कि गुरु नानक देव ने सब में परिव्याप्त एक ही चिति शक्ति की बात की, जो हमारा मूल तत्त्व है। उसे पहचानने की बात नानक देव करते हैं। उन्होंने शब्द को ब्रह्म माना। जप और ध्यान तत्त्व की प्रतिष्ठा उन्होंने की।
संगोष्ठी में डॉ बिंदु त्रिपाठी, अयोध्या, डॉ रचना जैन, सुदामा सखवार, प्रियंका नाग मोड़, प्रा चन्द्रशेखर शर्मा, मणि मिमरोट, डॉली सिंह, संदीप यादव, निरुपा उपाध्याय, भावना शर्मा, रीता माहेश्वरी, सलमा शाइन, संतोष चौहान आदि सहित विविध क्षेत्रों के प्रतिभागियों ने भाग लिया।
संचालन डॉ श्वेता पंड्या एवं श्रीराम सौराष्ट्रीय ने किया। आभार प्रदर्शन डॉक्टर शशि जोशी ने किया।
गुरुनानक देव जी के प्रकाश पर्व पर स्वस्तिकामनाएँ