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20210525

वैश्विक महामारी कोविड-19 : बचाव के उपाय, योग एवं आहार -प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Global Pandemic Kovid-19: Prevention Measures, Yoga and Diet - Prof. Shailendra Kumar Sharma

योग और प्राकृतिक चिकित्सा विश्व सभ्यता को भारत की महत्वपूर्ण देन है  – प्रो. शर्मा


वैश्विक महामारी कोविड-19 : बचाव के उपाय, योग एवं आहार पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी


भारत की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी आयोजन किया गया। अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी वैश्विक महामारी कोविड-19 : बचाव के उपाय, योग एवं आहार पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। अध्यक्षता योग विशेषज्ञ डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर ने की। मुख्य वक्ता योग विशेषज्ञ डॉक्टर निशा जोशी, इंदौर थीं। आयोजन के विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय मुख्य संयोजक प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे,  डॉक्टर एकता डंग, अंबाला, डॉ सुनीता गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे।  संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने किया।






आयोजन के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा विश्व सभ्यता को भारत की महत्वपूर्ण देन है। योग हमारे शरीर और मन के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया होने के साथ ही लौकिक जीवन के लिए उपादेय है। नवीन मेडिकल साइंस के साथ सदियों पूर्व विकसित आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा के समावेश के माध्यम से कोविड-19 जैसे संक्रामक रोगों से लड़ा जा सकता है। योग ने आज विश्व ख्याति अर्जित कर ली है। उसका प्रयोग नवीन ज्ञान विज्ञान के साथ किया जा रहा है। सदियों से प्रचलित घरेलू खानपान और स्वास्थ्य के उपाय कोरोना संक्रमण के दौर में उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं।




कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता योग विशेषज्ञ डॉ निशा जोशी, इंदौर ने कहा कि कोविड-19 हमारी जन्मजात रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करता है। योग एवं प्राणायाम के माध्यम से इस क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। हमारे इम्यून संस्थान के कई अंग हैं। उन्हें बेहतर करने के लिए आहार, जल एवं योग पर विशेष ध्यान देना चाहिए। प्राणायाम के माध्यम से हम अपने श्वसन तंत्र को बेहतर बना सकते हैं। डॉ जोशी ने आहार के माध्यम से प्राप्त होने वाले विभिन्न प्रकार के विटामिन और खनिज पदार्थों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हमारे भोजन के अनेक तत्व शरीर में उत्पन्न होने वाले निषेधात्मक तत्वों को बाहर करते हैं। सूर्य की रोशनी, गर्म जल,  विटामिन सी एवं मिनरल्स प्रदान करने वाले फल, मेवे, गुड़ आदि का सेवन भी स्वास्थ्य सुधार के लिए उपयोगी सिद्ध होता है। 



कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए योग विशेषज्ञ डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर ने कहा कि योग के माध्यम से निरोगी काया का सुख प्राप्त किया जा सकता है। हमें स्वस्थ रहने के लिए योग एवं प्राणायाम की आवश्यकता है। इनके माध्यम से रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण लाकर हम सभी प्रकार के रोगों से मुक्त हो सकते हैं। 




कार्यक के विशिष्ट अतिथि डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख पुणे ने कहा कि चीन के वुहान शहर से प्रारंभ हुए कोरोनावायरस के प्रभाव ने आज पूरी दुनिया को संकटग्रस्त कर दिया है। यह रोग मनुष्य के श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है। व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने से शारीरिक कष्ट बढ़ने लगता है। इस दृष्टि से आसन, ध्यान, प्राणायाम आदि रोग पर अंकुश लगाने के लिए सहायक सिद्ध होते हैं।






डॉक्टर एकता डंग, अंबाला ने कहा कि कोविड-19 से मुकाबले के लिए महत्वपूर्ण सूत्र बताए। उन्होंने कहा कि सकारात्मक दृष्टिकोण और मुस्कान के साथ-साथ आत्म संयम से हम शीघ्र स्वस्थ हो सकते हैं।



डॉक्टर सुनीता गर्ग, पंचकूला हरियाणा ने कहा कि कोविड-19 से बचाव के लिए आहार और विहार की शुद्धता आवश्यक है। उन्होंने कोविड-19 उपचार के लिए योग एवं प्राणायाम की महत्ता प्रतिपादित की।




विशिष्ट अतिथि श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि व्यायाम मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बेहद आवश्यक है। लॉकडाउन के दौर में योग बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हो रहा है। योग के माध्यम से अनेक प्रकार के रोगों को भगाया जा सकता है। इसके साथ ही संतुलित आहार बेहद जरूरी है।


कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना श्रीमती संगीता पाल कच्छ, गुजरात ने की। प्रस्तावना डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने प्रस्तुत की। स्वागत भाषण श्रीमती प्रभा बैरागी, उज्जैन ने दिया


संगोष्ठी में डॉक्टर जी डी अग्रवाल, इंदौर, डॉक्टर गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज, डॉ रूली सिंह, मुंबई, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, मुंबई, डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली, श्री एचके मीणा, दीपा पंडित, डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉक्टर चेतना उपाध्याय, अजमेर, डॉक्टर बालासाहब तोरस्कर, मुंबई,  सुनीता गर्ग, पंचकूला, हरियाणा,  कृष्णा भोजावत, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉ मनीषा सिंह, संतोष यादव, श्री मोहनलाल वर्मा, अनिता ठाकुर, डॉक्टर रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, पूजा शर्मा, मुकेश जोशी, डॉक्टर शहनाज अहमद, गीता बघेरा, टीना द्विवेदी, ज्ञानवती सक्सेना, कल्पना खंडेलवाल आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।


अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉक्टर मुक्ता कान्हा कौशिक रायपुर ने किया। आभार प्रदर्शन डॉक्टर चेतना उपाध्याय, अजमेर ने किया।

















20210521

सुमित्रानंदन पंत : व्यापक पर्यावरणीय चेतना के कवि - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Sumitranandan Pant : Poet of Broad Environmental Consciousness - Prof. Shailendra Kumar Sharma

व्यापक पर्यावरणीय चेतना के कवि हैं पंत  – प्रो. शर्मा 


सुमित्रानंदन पंत की काव्यानुभूति और वर्तमान विश्व पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी और कवि सम्मेलन


भारत की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सुमित्रानंदन पंत की काव्यानुभूति और वर्तमान विश्व पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि हिंदी परिवार, इंदौर के संस्थापक एवं साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी थे। अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने की। मुख्य वक्ता राष्ट्रीय मुख्य संयोजक प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे थे। आयोजन के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं हिंदी सेवी श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ओस्लो नॉर्वे, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ विमल कुमार जैन, इंदौर, श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे।  संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ लता जोशी, मुंबई ने किया। 






मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी ने कहा कि पंत को याद करना प्रकृति की पूजा करना है। प्रकृति का खजाना अखूट है, जिससे कवि प्रेरणा लेता है। पंत जी प्रकृति के चितेरे हैं। पंत जी को पढ़ना अनंत की ओर यात्रा करना है। उनके काव्य से जीवन को प्रकाश मिलता है। 






विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि कविवर सुमित्रानंदन पंत व्यापक पर्यावरणीय चेतना के कवि हैं, जिसे वर्तमान विश्व को जरूरत है। उनके काव्य में कल्पना की स्वच्छंद उड़ान और प्रकृति के प्रति तादात्म्य रिश्ता मिलता है। उन्होंने प्रकृति तथा मनुष्य जीवन के कोमल और कठोर रूपों को अपने काव्य का विषय बनाया। वे कल्पना के सत्य को सबसे बड़ा सत्य मानता हैं। वे अपने युगीन संदर्भों से संपृक्त होकर निरन्तर गतिशील बने रहे। उनके काव्य से गुजरना पिछली सदी के विभिन्न काव्य सोपानों से होकर गुजरना है। उनकी काव्य यात्रा वृत्ताकार दिखाई देती है, जिसमें प्रकृति एवं मनुष्य के रिश्तों के साथ ग्राम्य जीवन, सामाजिक सरोकार, समता, अंतश्चेतना और मानवतावादी दृष्टि का सुमेल हुआ है। उनकी कविताओं में आध्यात्मिकता और भौतिकता के समन्वय की राह दिखाई देती है, जो वर्तमान विश्व के लिए प्रेरक है।


मुख्य वक्ता डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि सुमित्रानंदन पंत छायावाद के अग्रगण्य कवि हैं। निजी अनुभूति का समाजीकरण पंत के काव्य में दिखाई देता है। उनकी कविताएं हृदय को स्पर्श करती हैं। उनके काव्य पर स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, महात्मा गांधी और मार्क्स का प्रभाव दिखाई देता है। वे गांधीजी के प्रभाव से असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हुए थे।




विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने पंत काव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए स्वरचित कविता समय पर आए ना ऋतुराज सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।





विशिष्ट अतिथि कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि पंत जी ने छायावाद को नई गति दी। विषयवस्तु की भिन्नता के बावजूद कल्पना की उड़ान उनके काव्य की विशेषता है। उन्होंने प्रकृति सौंदर्य का जीवंत वर्णन किया है। प्रकृति में मानवीय सत्ता का आरोपण पंत जी ने बहुत सुंदर ढंग से किया।






डॉ विमल कुमार जैन, इंदौर ने पंत की कर्मभूमि कौसानी की यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि कौसानी अत्यंत रमणीय स्थान है। उसी की प्रेरणा से पंत के काव्य में प्रकृति का सुंदर चित्रण मिलता है। उन्होंने पंत संग्रहालय में संकलित पंत जी की कविताओं के अंश सुनाए।


विशिष्ट अतिथि डॉक्टर मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने कहा कि पंत का व्यक्तित्व और कृतित्व - दोनों प्रभावकारी हैं। वे श्रेष्ठ विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी कवि हैं। डॉ कौशिक ने स्वरचित कविता प्रकृति तुम महान हो सुनाई।


वरिष्ठ साहित्यकार श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर ने कहा कि पंत जी ने बाल्यकाल में काव्य सृजन प्रारंभ कर दिया था। श्री अग्रवाल ने पंत की प्रसिद्ध रचना सुख - दुख सुनाई, जिसमें मनुष्य जीवन में सुख और दुख - दोनों के संतुलन को वर्णित किया गया है।


डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने कहा कि पंत जी कलाकार कवि हैं। वे सदैव विकासोन्मुख रहे। अनेक प्राणवान कविताओं की रचना उन्होंने की। डॉक्टर चौबे ने स्वरचित कविता प्रकृति मां का पाठ किया।


कार्यक्रम में कवि श्रीराम शर्मा परिंदा, मनावर ने अपनी एक व्यंग्य कविता सुनाई, जिसकी पंक्ति थी छोड़ दरख़्त परिंदा अब उड़ने की तैयारी है। डॉक्टर उर्वशी उपाध्याय, प्रयागराज ने अपनी कविता के माध्यम से समकालीन कोरोना महामारी पर टिप्पणी की। कार्यक्रम में डॉक्टर गरिमा गर्ग पंचकूला ने भी अपनी कविता प्रस्तुत की।


कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना श्रीमती रूली सिंह, मुंबई ने की। स्वागत भाषण डॉक्टर सुनीता चौहान मुंबई ने दिया। उन्होंने स्वरचित कविता जो बीत रही मुझ पर किसे बताऊं का पाठ किया। प्रस्तावना डॉ मनीषा सिंह ने प्रस्तुत की।


संगोष्ठी में डॉक्टर गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज, डॉ रूली सिंह, मुंबई, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, मुंबई,  डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉक्टर चेतना उपाध्याय, अजमेर, डॉक्टर उर्वशी उपाध्याय, प्रयाग, श्री जयंत जोशी, धार, डॉक्टर समीर सैयद, अहमदनगर, डॉक्टर बालासाहब तोरस्कर, मुंबई, पूर्णिमा झेंडे, शकुंतला सिंह, सुनील मतकर, डॉ सुनीता चौहान, मुंबई, सुनीता गर्ग, डॉ गायत्री खंडाटे, हुबली, कर्नाटक, डॉ सरोज मैती आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।



अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन श्रीमती लता जोशी मुंबई ने किया। आभार प्रदर्शन संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने किया।









20210512

रसखान और रहीम : भारतीय साहित्य और संस्कृति को योगदान -प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Rasakhan and Rahim: Contribution to Indian Literature and Culture - Prof. Shailendra Kumar Sharma

भारतीय सांस्कृतिक चेतना और मूल्यों के सच्चे संवाहक हैं रसखान और  रहीम – प्रो. शर्मा 

रसखान और रहीम : भारतीय साहित्य और संस्कृति को योगदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी


भारत की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी रसखान और रहीम : भारतीय साहित्य और संस्कृति को योगदान  पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। मुख्य वक्ता राष्ट्रीय मुख्य संयोजक प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे थे। आयोजन के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं हिंदी सेवी श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ओस्लो नॉर्वे, हिंदी परिवार, इंदौर के संस्थापक एवं साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर,  डॉक्टर शबाना हबीब, तिरुअनंतपुरम, केरल, डॉ रजिया शेख, बसमत, हिंगोली, महाराष्ट्र, डॉ अर्चना झा, हैदराबाद एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने किया। 






मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि महाकवि रसखान और रहीम ने भारतीय सांस्कृतिक चेतना और जीवन मूल्यों को सरस ढंग से अभिव्यक्ति दी है। दोनों कवियों के माध्यम से भारतीय साहित्य को व्यापकता और विस्तार मिला। रसखान सच्चे अर्थों में रस की खान हैं। भक्ति का अत्यंत उदात्त रूप रसखान के यहां देखने को मिलता है। आराध्य के साथ तादात्म्य, उनके अप्रतिम सौंदर्य का वर्णन तथा अनन्यता का बोध रसखान के काव्य की विशेषताएं हैं। रसखान ने प्रेम पंथ की विलक्षणता को अत्यंत सरल ढंग से प्रकट किया है। उनके छंद प्रेम रस से सराबोर हैं। उनके काव्य में लौकिक और पारलौकिक दोनों प्रकार के प्रेम का सुंदर समन्वय दिखाई देता है। दिल्ली के गदर ने उन्हें व्यथित कर दिया था और वे ब्रजभूमि में आकर पुष्टिमार्ग में दीक्षित हो गए थे। रहीम ने भारतीय संस्कृति से जुड़े अनेक आख्यान, मिथक, लोक विश्वास और पदावली का बहुत सार्थक प्रयोग किया है। उनके काव्य में ऐसे अनेक  प्रसंग मिलते हैं, जो प्रायः सामान्य जन की निगाह से ओझल होते हैं। रहीम के काव्य में जीवन का कटु यथार्थ भी झलकता है। 



वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि रहीम के दोहे आज भी प्रासंगिक हैं। उनका प्रत्येक दोहा बहुमूल्य है। कोविड-19 के संकट के दौर में उनकी कविताएं नया प्रकाश देती हैं। श्री शुक्ल ने रसखान की प्रसिद्ध रचना मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गांव के ग्वारन को सस्वर सुनाया।



मुख्य वक्ता प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि महाकवि रसखान और रहीम के हृदय में राधा कृष्ण के प्रति गहरी आस्था थी। हिंदी साहित्य जगत में रहीम एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनका कार्यक्षेत्र और जीवन अनुभव अत्यंत विस्तृत और व्यापक रहा है। रहीम महान दानवीर, युद्धवीर और कुशल राजनीतिज्ञ थे। राज दरबार में वे शीर्ष पदों पर रहे, वही युद्ध क्षेत्र में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। व्यावहारिक जगत में उन्होंने कड़वे मीठे अनुभव प्राप्त किए थे, जो उनके नीतिपरक दोहों के विषय बने। रहीम शृंगार, भक्ति और नीति - तीनों में समान अधिकार से लिखते थे। उनके व्यक्तित्व में शस्त्र और शास्त्र का समन्वय दिखाई देता है। वे सच्चे धार्मिक आश्रयदाता थे। उनका जीवन अत्यंत संघर्षशील रहा। रहीम और रसखान का संपूर्ण साहित्य हिंदी ही नहीं, भारतीय साहित्य की धरोहर है। रसखान के काव्य में सांस्कृतिक सौमनस्य का भाव प्रकट हुआ है। वे बताते हैं कि प्रेम के माध्यम से सामान्य गोपिकाएं थी कृष्ण को सहज ही प्राप्त कर लेती हैं।




हिंदी परिवार, इंदौर के संस्थापक एवं साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए कहा कि भक्तिकाल हिंदी का स्वर्ण युग है। इस महत्वपूर्ण युग के दो रत्न हैं - रसखान और रहीम। दोनों कवि भारतीय आत्मा के प्रति सजगता पैदा करते हैं। दोनों ने देश को एकता के सूत्र में बांधने का अविस्मरणीय प्रयास किया। आज के दौर में भारतीय जनमानस को इनसे प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए। 







डॉ रजिया शहनाज़ शेख, बसमत, हिंगोली, महाराष्ट्र ने कहा कि रसखान भक्तिकाल के कृष्ण भक्त सगुण -निर्गुण कवि के रूप में जाने जाते हैं। उनका वास्तविक नाम सैय्यद इब्राहिम है, लेकिन उनके साहित्यिक गुण के कारण उन्हें रसखान कहा जाता है। उनका एक-एक पद्य जैसे रस की खान है। रसखान मुस्लिम होते हुए भी कृष्ण भक्त कवि हैं, यही कारण है कि रसखान ने हिंदू मुस्लिम एकता के लिए एक सेतु के रूप कार्य किया है। वे एक भारतीय समन्वयवादी कवि रहे हैं, जिनका समग्र साहित्य ही गंगा-जमुनी तहजीब का प्रमाण है। वे सौहार्द के कवि है। उन्होंने कृष्ण भक्ति के आगे सब कुछ त्याग दिया। रसखान के काव्य संग्रह सुजान रसखान और प्रेम वाटिका प्रमुख हैं। उन्होंने भागवत का अनुवाद फारसी और हिंदी में किया। भारत के उदारवादी समन्वय मूलक संस्कृति में पूर्ण आस्था रखने वाले कविवर अब्दुल रहीम खानखाना निसंदेह हिंदी के ऐसे समर्थ कवियों में शीर्षस्थ रहे हैं, जिन्होंने इस्लाम के संस्कार होते हुए भी अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदू धर्म, संस्कृति, दर्शन, समाज और देवी-देवताओं का भरपूर सम्मान और श्रद्धा के साथ चित्रण किया है।


डॉक्टर शबाना हबीब, तिरुअनंतपुरम ने कहा कि रहीम भारतीय उदारवादी और समन्वयात्मक संस्कृति के पोषक हैं। वे फारसी, संस्कृत, हिंदी, तुर्की आदि अनेक भाषाओं में निष्णात थे, लेकिन उन्होंने हिंदी की अविस्मरणीय सेवा की। हिंदी साहित्य के इतिहास में सतसई के रचनाकर कवि बिहारी के बाद रहीम को ही दोहा एवं सोरठा छंद का जादूगर कहा जा सकता है। तुलसीदास और गंग के वे समकालीन थे। अकबर के दरबारी कवियों में रहीम का उल्लेखनीय स्थान था, तथापि कविवर रहीम स्वयं कवियों को आश्रय प्रदान करते थे। इस विषय में महाकवि केशव, आसकरण, मंडन, नरहरि, गंग आदि ने रहीम की प्रशंसा की है। बिहारी, मतिराम, व्यास, वृंद, रसनिधि आदि कवियों का साहित्य रहीम की रचनाओं से प्रभावित रहा है। अपने युग के कवियों के प्रति उनके हृदय में गहरा सम्मान था और उन्होंने अनेक कवियों को सहयोग भी दिया। उनके काव्य में भक्ति और शृंगार के साथ परस्पर सौहार्द के दर्शन होते हैं। वे सरल और सरस हृदय मानव थे। नगरसभा के दोहों के माध्यम से उन्होंने नारी सौंदर्य का चित्रण किया है।






डॉ अर्चना झा, हैदराबाद ने कहा कि रहीम ने पौराणिकता, रीति नीति और मानवीय कर्म को अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। उन्होंने गंगा जमुनी तहजीब को प्रस्तुत करते हुए आपसी सद्भाव का संदेश दिया। रहीम सामाजिक चेतना जागृत करने वाले कवि हैं। वे संक्रमण काल के कवि हैं, जब निरंकुशता का विरोध होने लगा था।


संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कहा कि रसखान और रहीम सौहार्द की संस्कृति के संवाहक हैं। ईश्वर की भक्ति के साथ भारत भूमि के प्रति उनमें गहरा अनुराग था। उनके सृजन में किसी प्रकार का आडंबर नहीं है। उनका साहित्य भारत की अमूल्य निधि है। कृष्ण की विविध लीलाओं को इन कवियों ने अपने काव्य में कुशलता से बांधा है। वैश्विक आपदा के बीच मनोबल बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना जैसी संस्थाएं महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं।


राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्देश्य और विषय वस्तु पर प्रकाश डाला। 


संगोष्ठी का सफल संचालन एवं आभार प्रदर्शन रायपुर, छत्तीसगढ़ की डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक ने किया। उन्होंने कहा कि रसखान स्नेह के रस में डूबे हुए थे। कृष्ण के रूप सौंदर्य का उन्होंने सरस चित्रण किया है।




सरस्वती वंदना डॉ रूली सिंह, मुंबई ने प्रस्तुत की। स्वागत गीत संस्था की कार्यकारी अध्यक्ष कवयित्री श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने प्रस्तुत किया। 

संगोष्ठी में संस्था के अध्यक्ष शिक्षाविद् श्री ब्रजकिशोर शर्मा, कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉक्टर गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज, डॉ रूली सिंह, मुंबई, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, मुंबई, डॉक्टर दिव्या पांडेय, डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।








20210508

विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर : मानवतावाद और वैश्विक परिदृश्य - प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा | World Poet Rabindranath Tagore: Humanism and Global Perspectives - Prof. Shailendra Kumar Sharma

विश्व मानवता का पथ सदा आलोकित करती रहेंगी टैगोर की रचनाएं – प्रो. शर्मा 

नॉर्वेजियन भाषा में टैगोर का अनुवाद सुनाया श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने


विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर : मानवतावाद और वैश्विक परिदृश्य पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी


सृजनधर्मियों की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर : मानवतावाद और वैश्विक परिदृश्य  पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं हिंदी सेवी श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ओस्लो नॉर्वे एवं प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन के विशिष्ट अतिथि  हिंदी परिवार, इंदौर के संस्थापक एवं साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता, राष्ट्रीय मुख्य संयोजक प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉक्टर मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉक्टर शैल चंद्रा धमतरी, छत्तीसगढ़, एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ लता जोशी, मुंबई ने किया। 





मुख्य अतिथि साहित्यकार नॉर्वे के श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि टैगोर दुनिया के सभी देशों में जाने जाते हैं। उन्होंने दुनिया के अनेक देशों की यात्रा की थी और उन्हें अपनी कलम के माध्यम से संजोया। बिना टैगोर के भारतीय साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। उनकी रचनाओं में व्यापक अर्थ भरे हुए हैं। उनकी कविताओं की प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी। श्री शुक्ल ने टैगोर की कविता के अंशों का अनुवाद करते हुए उन्हें नॉर्वेजियन भाषा में सुनाया।




विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर कालजयी रचनाकार हैं। उनके लिए राष्ट्रीयता और विश्व मानवता परस्पर पर्याय थे। आज विश्व चेतना बिखर रही है, उसे पुनः जोड़ने और परस्पर सद्भाव लाने के लिए टैगोर के मार्ग पर चलना आवश्यक है। उन्होंने उपनिषद के दर्शन के आलोक में अपनी दृष्टि विकसित की थी, किंतु पश्चिम से आने वाले साहित्य और विचारों के प्रति भी वे सजग थे। टैगोर की महान रचनाएं विश्व मानवता का पथ सदैव आलोकित करती रहेंगी। एक साथ कई रूपों में उन्होंने भारतीय संस्कृति का उदात्त संदेश समूचे विश्व को दिया। उनका संदेश है कि प्रकृति के साहचर्य के बिना मनुष्य अधूरा है, इसीलिए उन्होंने शिक्षा और प्रकृति के संबंधों को केंद्र में रखते हुए शांति निकेतन की स्थापना की। ईश्वर के साथ मनुष्य के शाश्वत सम्बन्ध को टैगोर ने अपनी रचनाओं में अलग-अलग रूपों में उभारा है। वे ऐसे मानवतावादी विचारक थे, जिन्होंने अनेक विधाओं में अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया।



वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर की प्रतिष्ठा विश्व कवि के रूप में है। उनकी प्रेरणा से महात्मा गांधी ने मातृभाषा के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा पर बल दिया। वे राष्ट्रभाषा हिंदी और देवनागरी लिपि के पक्षधर थे। टैगोर मानते हैं कि मनुष्य सेवा सर्वोपरि सेवा है। श्री वाजपेयी ने कहा कि रवींद्र नाट्य गृह एवं रवींद्रनाथ टैगोर मार्ग के माध्यम से इंदौर ने उनकी स्मृतियों को संजो कर रखा है। 



डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता ने कहा कि टैगोर ने प्रकृति के सान्निध्य में शैक्षिक परिसर को स्थापित किया था, जो शांतिनिकेतन के रूप में विश्व प्रसिद्ध है। प्रकृति के प्रत्येक वृक्ष को अपने पुत्र के समान मानते थे। वे महान मानवतावादी साहित्यकार थे। टैगोर के प्रति संपूर्ण हिंदी साहित्य सदैव ऋणी रहेगा। उनका समूचा साहित्य, संगीत और चित्र कृतियाँ व्यक्ति के प्रतिबिंब बन गए हैं। उनके कथा साहित्य और नाटकों पर बांग्ला में 216 फिल्में बनी हैं।



अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्री जी डी अग्रवाल,  इंदौर ने कहा कि टैगोर ने साहित्य, संगीत, चित्रकला, शिक्षा, दर्शन आदि जैसे कई क्षेत्रों में महारत हासिल की थी। उनका लेखन विपुल है, उसका जितना मंथन करें कम होगा। आज के अंध भौतिकता के दौर में टैगोर अनेक प्रेरणाएँ देते हैं।



संगोष्ठी की प्रस्तावना रखते हुए प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि परंपरा और संस्कार के साथ आधुनिकता का संगम टैगोर के जीवन और कृतित्व में दिखाई देता है। वे महान क्रांतिकारी विचारक और दार्शनिक थे। टैगोर ने राजनीति से स्वयं को दूर रखा। वे हिंदी के भक्त कवियों से जुड़े थे। उन्होंने कबीर की वाणी का अनुवाद बांग्ला में किया। इसी प्रकार महाकवि सूर, तुलसी और विद्यापति को लेकर भी उन्होंने लिखा। 



डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने कहा कि साहित्य, कला और दर्शन के क्षेत्र में टैगोर की अनुपम उपलब्धियां हैं। उनका दर्शन प्रकृतिवाद और आदर्शवाद का समन्वित रूप लिए हुए है। उनका शिक्षा दर्शन अध्यात्म केंद्रित है। वे मानते हैं कि सृजनात्मक क्रियाओं से मानव व्यक्तित्व का निर्माण संभव है। उन्होंने युवाओं के मानसिक विकास के साथ उनके सर्वांगीण विकास पर बल दिया। वे युवाओं में तपस्या की भावना जरूरी मानते हैं। उनकी विश्वविख्यात रचना गीतांजलि का अनुवाद दुनिया की अनेक भाषाओं में हुआ है।


डॉक्टर शैल चंद्रा, धमतरी ने कहा कि टैगोर का साहित्य वसुधैव कुटुंबकम् का संवाहक है। वे मनुष्य को परमात्मा की महान कृति मानते हैं।  उनके हृदय में पीड़ित मानवता के प्रति गहरी संवेदना थी। उन्होंने शोषण से मुक्ति की चेतना को अपने काव्य में व्यक्त किया है। वे सही अर्थों में विश्व कवि थे। गांधीजी के विचारों का उन पर प्रभाव था।



राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी की प्रस्तावना,  विषय वस्तु  और संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। 


सरस्वती वंदना रूली सिंह, मुंबई ने की। स्वागत भाषण डॉक्टर ममता झा, मुंबई ने दिया और टैगोर की प्रसिद्ध रचना मेरा शीश नवा दो सुनाई।



संगोष्ठी का सफल संचालन मुंबई की डॉक्टर लता जोशी ने किया। उन्होंने हरिप्रसाद द्विवेदी की रचना एक कुत्ता और एक मैना की चर्चा की और कहा कि टैगोर का जगत के प्राणियों और वनस्पतियों के साथ गहरा संबंध था। 





आभार गाजियाबाद की डॉक्टर रश्मि चौबे ने व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि टैगोर सार्वभौमिक और सार्वकालिक रचनाकार हैं। उनका सन्देश है कि यदि हमारे विचार शुद्ध होंगे तो विश्व सुख और शांतिमय हो जाएगा।


संगोष्ठी में संस्था की कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ ममता झा, डॉ रूली सिंह, मुंबई, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉक्टर शैल चंद्रा, धमतरी, छत्तीसगढ़, श्रीमती आर्यावती सरोज, लखनऊ, श्री ओम प्रकाश प्रजापति, नई दिल्ली, डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, मुंबई, डॉक्टर लता जोशी, मुंबई, डॉक्टर रोहिणी डावरे, डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई  आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।
















 






 




विश्व मानवता का पथ सदा आलोकित करती रहेंगी टैगोर की रचनाएं – प्रो. शर्मा*


*विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर : मानवतावाद और वैश्विक परिदृश्य पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी*

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*विश्व मानवता का पथ आलोकित करती रहेंगी टैगोर की रचनाएं - प्रो शर्मा*

*नॉर्वेजियन भाषा में टैगोर का अनुवाद सुनाया श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने*


*विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर  :  मानवतावाद और वैश्विक परिदृश्य पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी*


https://www.pnvexpres.page/2021/05/blog-post_19.html



*विश्व मानवता का पथ आलोकित करती रहेंगी टैगोर की रचनाएं - प्रो शर्मा*

*नॉर्वेजियन भाषा में टैगोर का अनुवाद सुनाया श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने*


*राष्ट्रीय शिक्षक संघ चेतना ने आयोजित की विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर  :  मानवतावाद और वैश्विक परिदृश्य पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी*

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