मनुष्य के तन में ही ईश्वर का मंदिर दिखाने की चेष्टा की कबीर ने
सन्त कबीर : सामाजिक सरोकार और मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में पर राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी आयोजित
देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी सन्त कबीर : सामाजिक सरोकार और मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ बी आर अम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ के कुलाधिपति डॉ प्रकाश बरतूनिया थे। विशिष्ट वक्ता डॉ सुरेश पटेल, इंदौर, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, डॉ संजीव निगम, मुंबई, हिंदी परिवार के अध्यक्ष श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर एवं महासचिव डॉ प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। आयोजन में विगत एक वर्ष में वेब पटल पर सौ से अधिक संगोष्ठियों के आयोजन के लिए संयोजक एवं समन्वयक डॉ प्रभु चौधरी को शतकीय संगोष्ठी सम्मान पत्र एवं स्मृति चिन्ह अर्पित कर उन्हें सम्मानित किया गया। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन श्रीमती पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने किया।
मुख्य अतिथि डॉ प्रकाश बरतूनिया, लखनऊ ने कहा कि संत कबीर भारत भूमि की ऋषि – मुनि, साधु - संतों की लंबी परंपरा के अंग हैं। उन्होंने भक्ति के लोकव्यापीकरण का महत्वपूर्ण कार्य किया। वे अपने वाणी के माध्यम से लोगों के दिलों तक पहुंचे। उन्होंने प्रेम का संदेश समाज को दिया है। वे श्रम के साथ ईश्वर के स्मरण पर बल देते हैं। समस्त मानव समुदाय आडंबर में न पड़े, इसका आह्वान कबीर की वाणी करती है। उनके गुरु स्वामी रामानंद से सभी वर्गों और समुदायों के लोग जुड़े थे।
विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि कबीर ने भारतीय समाज को जाति, वर्ग और धर्म की सीमाओं से ऊपर उठाने का प्रयत्न किया। वे तमाम प्रकार के सामाजिक और पन्थगत अलगाव से टकराते हैं। शास्त्र में लिखे हुए शब्द जब स्वयं परब्रह्म बन कर बैठ जाते हैं, तब कबीर उसका प्रतिरोध करते हैं। उन्होंने मनुष्य के तन में ही ईश्वर का मंदिर दिखाने की चेष्टा की, जिसकी शोभा अनूठी है। उनकी आत्मा भारतीय संविधान में रची बसी हुई है, जो समानता, न्याय और लोकतंत्र को आधार में लिए हुए है। कबीर ने अपने अहम् का विसर्जन व्यापक सत्ता में कर दिया था। वे बाजार में निष्पक्ष रूप में खड़े हुए थे। उनके लिए न कोई शासक है और न शासित। सही अर्थों में कबीर आत्मा का विशुद्ध रूप हैं। उन्होंने भक्ति के मर्म को सर्वसामान्य तक पहुंचाया।
विशिष्ट अतिथि कबीर पंथी प्राध्यापक डॉ सुरेश पटेल, इंदौर ने कहा कि कबीर ने अनेक प्रकार की चुनौतियां का सामना किया। उन्होंने देखा कि हवा और जल किसी के साथ भेदभाव नहीं करते तो मनुष्य भेदभाव क्यों करता है। उन्होंने करघा चलाते हुए लोगों को ज्ञान दिया। समाज के ताने-बाने को जोड़ने की जरूरत उन्होंने महसूस की। कबीर की शक्ति लोक की शक्ति है। वे सदैव लोकाश्रय में रहे। आजीवन उन्होंने मनुष्य से मनुष्य को जोड़ने की चेष्टा की। कबीर ने श्रम को कभी हीन दृष्टि से नहीं देखा।
डॉ संजीव निगम, मुंबई ने कहा कि कबीर ने जो भी देखा उसे अपनी वाणी के माध्यम से प्रस्तुत किया। कबीर ने संकेत दिया है कि लोग शिक्षित तो हो जाते हैं, लेकिन ज्ञानी नहीं बन पाते हैं। उनकी वाणी लोगों के कण्ठों में बस गई है। कई पीढ़ियां निकल गईं, किंतु कबीर की वाणी जीवित है। सामान्य जन से लेकर विशिष्ट जन तक सब कबीर को गा रहे हैं और उन्हें अपने जीवन में उतार रहे हैं। कबीर का लेखन शाश्वत लेखन है, जो आज भी प्रासंगिक है।
श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि कबीर ने संपूर्ण समाज को एकता के सूत्र में बांधने के लिए ताना-बाना बुना था। लोक समुदाय के बीच उनसे अधिक प्रभाव डालने वाला कोई दूसरा कवि नहीं हुआ। उनकी वाणी में अनमोल विचार संचित हैं।
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि संत कबीर क्रांतिकारी कवि थे। उन्होंने पाखंड के विरुद्ध स्वर उठाया। वे व्यष्टि नहीं, समष्टिवादी थे। उन्होंने सर्वधर्म सद्भाव को जीवन में चरितार्थ किया। अपनी वाणी के माध्यम से कबीर ने दया, करुणा और प्रेम की प्रतिष्ठा की। सत्य को बड़े साहस के साथ स्थापित करने का कार्य उन्होंने किया। वे सच्चे मानवतावादी थे। वे मानव मात्र की पीड़ा का शमन करना चाहते थे।
संगोष्ठी की प्रस्तावना श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने प्रस्तुत की। सरस्वती वंदना डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने की। संस्था परिचय डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने प्रस्तुत किया। अतिथि परिचय भुनेश्वरी जायसवाल, भिलाई ने दिया। कार्यक्रम की पीठिका एवं स्वागत भाषण डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत किया।
आयोजन में डॉ ममता झा, मुंबई, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मनीषा सिंह, मुंबई, डॉ दिग्विजय शर्मा, आगरा, दिव्या पांडे, डॉ रेखा भालेराव, उज्जैन, उर्वशी उपाध्याय प्रेरणा, प्रयागराज, शीतल वाही, भुवनेश्वरी जायसवाल, भिलाई आदि सहित अनेक साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।
संगोष्ठी का संचालन श्रीमती पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने किया। आभार प्रदर्शन उर्वशी उपाध्याय प्रेरणा, प्रयागराज ने किया।
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कबीर जयंती