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20210209

फणीश्वरनाथ रेणु का कथा – साहित्य : युग चेतना और ग्रामीण यथार्थ के परिप्रेक्ष्य में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Phanishwarnath Renu's Fiction: In the Context of Era Consciousness and Rural Reality - Prof. Shailendra Kumar Sharma

रेणु जी ने कथा साहित्य के माध्यम से राष्ट्रीय रूपक तैयार किया  

ग्रामीण भारत के दर्शन होते हैं रेणु जी के कथा साहित्य में 

रेणु हैं आदिम गंध के रचनाकार

कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु जन्म शतवार्षिकी पर  राष्ट्रीय संगोष्ठी


विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रख्यात कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु की जन्म शत वार्षिकी पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी फणीश्वरनाथ रेणु का कथा साहित्य : युग चेतना और ग्रामीण यथार्थ के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित थी। आयोजन के प्रमुख वक्ता इग्नू, नई दिल्ली के समकुलपति और आलोचक  प्रो. सत्यकाम एवं मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई के  विभागाध्यक्ष एवं आलोचक प्रो करुणाशंकर उपाध्याय थे। अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा ने की। आयोजन की विशिष्ट अतिथि  प्रो. प्रेमलता चुटैल, प्रो. गीता नायक, डॉ नरेन्द्रसिंह फौजदार, मथुरा, डॉ जगदीशचंद्र शर्मा, डॉ सी एल शर्मा, रतलाम, डॉ प्रतिष्ठा शर्मा आदि ने  विचार व्यक्त किए। 




मुख्य अतिथि प्रो. सत्यकाम, नई दिल्ली ने कहा कि फणीश्वरनाथ रेणु ने कथा साहित्य के माध्यम से राष्ट्रीय रूपक तैयार किया है। संकट और संक्रांति के काल में उन्होंने जो रचा, वह आज भी प्रासंगिक है। उन्हें भारतीय परंपरा के लेखक के रूप में देखा जाना चाहिए। उनका मैला आंचल भारतीय सांस्कृतिक चेतना का उपन्यास है। वे नव निर्माण और विकास की दृष्टि के बीच नया दृष्टिकोण विकसित कर रहे थे। उनका उपन्यास परती परिकथा पर्यावरणीय कथा के रूप में है।




लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि फणीश्वरनाथ रेणु के कथा साहित्य में युग चेतना के साथ अपनी जमीन पर खड़े ग्रामीण भारत के दर्शन होते हैं। उनके द्वारा चित्रित गांव, लोक समुदाय और संस्कृति जीवंतता  लिए हुए हैं। उनका परती परिकथा कोसी बांध निर्माण की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है, जो एक साथ पर्यावरणीय, सामाजिक और प्रेम संबंधों से जुड़े मुद्दों की ओर ध्यान खींचता है। उनकी कहानी पहलवान की ढोलक महामारी के बीच मृत्यु का साक्षात्कार करते लोगों में संजीवनी का काम करती है। 







आलोचक प्रो. करुणाशंकर उपाध्याय, मुम्बई ने कहा कि रेणु आदिम गंध के रचनाकार हैं। उनका मैला आंचल जयशंकर प्रसाद के उपन्यास कंकाल की परंपरा का उपन्यास है। ग्रामीण अंचल को समुचित सम्मान दिलाने का कार्य रेणु जी ने किया। उन्होंने निरंतर संघर्षरत मनुष्य जीवन के बहुस्तरीय आयामों को प्रकट किया। वे ग्राम्यांचल का चित्र ही नहीं खींचते, उसमें परिवर्तन की बात भी करते हैं। रेणु जी ने कहा है कि वे प्रेम की खेती करना चाहते हैं। वर्तमान में यांत्रिकी प्रभुत्व के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है, उसका प्रभाव मन पर भी पड़ रहा है। रेणु जी उसे सरस बनाना चाहते हैं।

प्रो. प्रेमलता चुटैल ने कहा कि रेणु जी ने अंचल को  नायक बनाया। उनकी कहानी पहलवान की ढोलक तत्कालीन दौर में हैजे की महामारी के मध्य प्रेरणा जगाने का काम करती है, जो आज भी प्रासंगिक है। कहानी में ढोलक की थाप महामारी से जूझ रहे लोगों को प्रेरणा देती है।




प्रो. गीता नायक ने कहा कि ग्रामीण आत्मीयता की गंध रेणु के साहित्य में मिलती है। उनका उपन्यास परती परिकथा रंगमंच की तरह दिखाई देता है। वह स्वतंत्रता के बाद के यथार्थ का जीवंत दस्तावेज है। संयुक्त परिवार की सुंदरता उनके उपन्यासों में मिलती है।



डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि रेणु जी ने कथा साहित्य में एक नई जमीन तोड़ी। आलोचकों ने उनकी उपलब्धि और सीमाओं दोनों को प्रकट किया, किंतु यह जरूरी है कि उन्हें समग्रता से देखा जाए।  


डॉ सी एल शर्मा, रतलाम ने कहा कि रेणु जी के उपन्यासों में प्रस्तुत चरित्र हमारे आसपास के समाज में आज भी मौजूद हैं। वे हमें वास्तविक जीवन से  भटकाते नहीं हैं। 


डॉ प्रतिष्ठा शर्मा ने कहा कि कृषि हमारे देश की रीढ़ है। रेणु जी ने सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक सभी क्षेत्रों में गांव की विशिष्ट भूमिका को अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया।




आयोजन में प्रोफेसर सत्यकाम  का सारस्वत सम्मान प्रो शर्मा, प्रो चुटैल, प्रो नायक आदि द्वारा उन्हें शॉल, साहित्य एवं स्मृति चिन्ह अर्पित कर किया गया।



आयोजन के पूर्व गांधी अध्ययन केंद्र में महात्मा गांधी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। साथ ही महात्मा गांधी चित्र दीर्घा और ग्रंथालय एवं विश्व हिंदी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र का अवलोकन अतिथियों ने किया।




इस अवसर पर प्रोफेसर हरिमोहन बुधौलिया, श्रीमती हीना तिवारी आदि सहित अनेक शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।




संचालन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ नरेन्द्रसिंह फौजदार एवं डॉ गीता नायक ने किया।













रेणु जन्मशती प्रसंग

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं

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  2. बहुत बहुत बधाई तथा हार्दिक शुभकामनाएं। प्रणाम सर।🙏🙏

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  3. हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं गुरुजी

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  4. Dr.Nagesh Parashar13.2.21

    बहुत बढ़िया, मंगलकामनाएं

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  5. रेणु एक कालजयी साहित्यकार! बहुत बहुत बधाई!💐💐👍👌👌👍

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