संजा लोकोत्सव : अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी
Sanja Festival: International Seminar
1 अक्टूबर 2023, रविवार, प्रातः काल 10 : 30 बजे
स्थान : कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन
प्रतिकल्पा सांस्कृतिक संस्था का आयोजन
विषय: भारतीय लोक और जनजातीय साहित्य एवं संस्कृति : सामाजिक परिवर्तन, विविध परम्पराएँ और शैलियाँ
Indian Folk and Tribal Literature and Culture : Social Change, Various Traditions and Genres
आत्मीय आमन्त्रण
देश की प्रतिष्ठित संस्था प्रतिकल्पा द्वारा प्रतिवर्षानुसार आयोजित संजा लोकोत्सव इस वर्ष 1 से 8 अक्टूबर 2023 तक संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के सहयोग से सम्पन्न होने जा रहा है। इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय अन्तरनुशासनिक संगोष्ठी दिनांक 1 अक्टूबर 2023 को भारतीय लोक और जनजातीय साहित्य एवं संस्कृति : सामाजिक परिवर्तन, विविध परम्पराएँ और शैलियाँ (Indian Folk and Tribal Literature and Culture : Social Change, Various Traditions and Genres) विषय पर संकल्पित है।
इस महत्त्वपूर्ण संगोष्ठी में प्रख्यात मनीषी, संस्कृतिकर्मी, साहित्यकार, विशेषज्ञ, शिक्षाविद्, शोधकर्ता आदि द्वारा विशिष्ट व्याख्यान, शोध - आलेख प्रस्तुति और संवाद होगा। इस महत्त्वपूर्ण आयोजन में आपकी सक्रिय सहभागिता का अनुरोध है।
मुख्य समन्वयक
प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा
कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष
विक्रम विश्वविद्यालय
उज्जैन
मध्यप्रदेश 456010
*संजा लोकोत्सव 2023 - आमंत्रण पत्र :*
https://drive.google.com/file/d/13MpZt-4cRdrsGDVqhMUcVcG1ZYAcsO4R/view?usp=drivesdk
विस्तृत जानकारी दी जा रही है:
● विस्तृत नियम निर्देश
● पंजीयन शुल्क
प्राध्यापक/ शिक्षाविद् / वरिष्ठ लोक अध्येता वर्ग 500 रु
अतिथि शिक्षक/ शोधार्थी / विद्यार्थी वर्ग 400 रु
पंजीयन राशि PRATIKALPA SANSKRITIK SANSTHA को देय Bank of Baroda A/C No. 57710100011613 IFSC Code BARB0FREEGA (Fifth character is zero) BRANCH – FREEGUNJ, UJJAIN में दिनांक 30 सितंबर 2023 तक ई- बैंकिंग द्वारा या नगद जमा करवा सकते हैं। उस पर अपना नाम एवं स्थान अवश्य दर्ज करें। प्रमाण पत्र प्राप्त करते समय बैंक की रसीद दिखानी होगी।
● शोध पत्र प्रस्तुति :
शोध आलेख लोक भाषा मालवी, निमाड़ी, बुन्देली, बघेली, छत्तीसगढ़ी, मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, मारवाड़ी, हाड़ौती, अवधी, ब्रजी, कौरवी, मैथिली, भोजपुरी, हरियाणवी, हिमाचली, डोगरी, कश्मीरी, पंजाबी, सिंधी, गुजराती, मराठी, ओड़िया, कोंकणी, बांग्ला, असमिया, तमिल, कन्नड़, मलयालम, तेलुगु, तुळु, पूर्वोत्तर भारत आदि सहित देश - देशान्तर के विविध लोकांचलों के लोक साहित्य, लोक संस्कृति और परंपराओं को केंद्र में रख कर तैयार किए जा सकते हैं।
इसी प्रकार विविध जनजातीय समुदायों, यथा भील, भिलाला, बारेला, संथाल, गोंड, मुंडा, खड़िया, हो, लेपचा, भूटिया, थारू, बोडो, गारो, खासी, नागा, कूकी, पारधी, गरासिया, मीणा, उरांव, बिरहोर, सहरिया, कोरकू, बैगा, परधान, मारिया, उरांव, अबूझमाड़िया, टोडा, कुरुम्बा आदि सहित देश-देशान्तर के मौखिक साहित्य, लोक संस्कृति और परम्पराओं के परिप्रेक्ष्य में आलेख तैयार किए जा सकते हैं।
बहुत ही सार्थक, सुंदर परिकल्पना सर, शुभकामनाएं!💐
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