लोकपर्व होली : सरस गीत, संगीत और नृत्य
प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
भारतीय पर्वोत्सवों की परंपरा में होली अपने उल्लासपूर्ण स्वभाव और अलबेलेपन के लिए जानी जाती है। यह सुदूर अतीत से चली आ रही जातीय स्मृतियों, पुराख्यानों और इतिहास को जीवंत करने वाला पर्व है। यह मूलतः लोक पर्व है, जिसे शास्त्रकारों ने अपने ढंग से महिमान्वित किया तो राज्याश्रय ने इसमें अपने रंग भरे। उत्तर भारत में जब फागुन उतरता है तो प्रकृति के आंगन में रंग और उमंग बिखरने लगते हैं, फिर मनुष्य इससे कैसे मुक्त रह सकेगा। भारत के अलग अलग अंचलों में होली से जुड़ी परंपराओं, रीति रिवाजों और कथा भूमि में कतिपय अंतर के बावजूद अनेक समानताएँ हैं। होली का रिश्ता सभी चरित नायकों से जुड़ा, चाहे स्वयं शिव हों या
राम, कृष्ण जैसे विष्णु के अवतार, सब होली के रंंग में डूबते हैं। https://youtu.be/tLmxEBBgrW4
(Chang Dhamal | Chang Dance of Shekhawati | Rajsthani Chang Dance | चंग धमाल नृत्य | शेखावाटी धमाल)
कृष्णकाव्य में लोक पर्व होली की विविध छबियाँ अंकित हुई हैं। चंग, डफ जैसे वाद्य हों या धमार का गान, होली के नृत्य हों या क्रीड़ाएँ, या फिर चंदन, केसर, गुलाल जैसे रंगों की बौछार - कृष्ण भक्ति में डूबे कवि अपने आराध्य के साथ वहाँ ले जाकर हमें भी डुबो देते हैं। मीरा फाग खेलते छैल-छबीले कृष्ण के प्रभाव से पूरे ब्रजमण्डल को रस में आप्लावित दिखाती हैं।
होरी खेलत हैं गिरधारी।
मुरली चंग बजत डफ न्यारो, संग जुवति ब्रजनारी।
चंदन केसर छिरकत मोहन अपने हाथ बिहारी।
भरि भरि मूठि गुलाल लाल चहुँ देत सबन पै डारी।
चंद्रसखी कुछ अलग अंदाज में इसे प्रस्तुत करती हैं :
आज बिरज में होरी रे रसिया।
आज बिरज में होली रे रसिया।।
होरी रे होरी रे बरजोरी रे रसिया।
घर घर से ब्रज बनिता आई,
कोई श्यामल कोई गोरी रे रसिया।
आज बिरज में…॥१॥
इत तें आये कुंवर कन्हाई,
उत तें आईं राधा गोरी रे रसिया
आज बिरज में…॥२॥
कोई लावे चोवा कोई लावे चंदन,
कोई मले मुख रोरी रे रसिया ।
आज बिरज में ॥३॥
उडत गुलाल लाल भये बदरा,
मारत भर भर झोरी रे रसिया।
आज बिरज में ॥४॥
चन्द्रसखी भज बालकृष्ण प्रभु,
चिर जीवो यह जोडी रे रसिया।
आज बिरज में ॥५॥
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Main Kaise Holi Khelungi Ya Sanwariya ke Sang | Holi Dance| मैं कैसे होली खेलूँगी या सांवरिया के संग
https://youtu.be/xn2avjUFfUU
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https://youtu.be/7j9RkWfF7Mo
Holi Mahakaleshwar Temple | Holi Festival | महाकालेश्वर मंदिर की होली| #mahakaleshwar #holi #ujjain
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होली की पृष्ठभूमि में प्रहलाद - नरसिंह की लीला से जुड़ा आख्यान प्रसिद्ध है। उसे महाराष्ट्र में कुछ इस तरह नृत्याभिव्यक्ति मिली है।
Songi Mukhaute Dance | Prahlad - Narasimha Leela | Happy Holi | सोंगी मुखौटे नृत्य | प्रह्लाद - नरसिंह लीला |
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https://youtu.be/2_RXFAiN_dA
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https://youtu.be/2_RXFAiN_dA
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https://youtu.be/LDZ1gEj7h8I
Mhara Hathan me Abeer Gulal re | Chalo Holi Khelanga| Holi Song | चालो होली खेलांगा |मालवी होली गीत
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राधा कृष्ण की लीला से जुड़ा लोक गीत मेरो खोए गयो बाजूबंद कान्हा होली में बहुलोकप्रिय है :
राधा कृष्ण की लीला से जुड़ा लोक गीत मेरो खोए गयो बाजूबंद कान्हा होली में बहुलोकप्रिय है :
Holi Song - Dance : Mero Khoy Gayo Bajuband Kanha Holi Main | Happy Holi to All | होली गीत - नृत्य | मेरो खोय गयो बाजूबन्द कान्हा होली में |
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पद्माकर ने लोक के साथ संवाद करते हुए अनेक रचनाएं लिखी हैं। होली पर उनके छंद विशेष ध्यान आकर्षित करते हैं
होली - पद्माकर
फागु के भीर अभीरन तें गहि, गोविंदै लै गई भीतर गोरी।
भाय करी मन की पदमाकर, ऊपर नाय अबीर की झोरी।।
छीन पितंबर कंमर तें, सु बिदा दई मोड़ि कपोलन रोरी।
नैन नचाई, कह्यौ मुसक्याइ, लला! फिर खेलन आइयो होरी॥
कढिगो अबीर पै अहीर को कढै नहीँ
- पद्माकर
एक संग धाय नंदलाल और गुलाल दोऊ,
दृगन गये ते भरी आनँद मढै नहीँ ।
धोय धोय हारी पदमाकर तिहारी सौँह,
अब तो उपाय एकौ चित्त मे चढै नहीँ ।
कैसी करूँ कहाँ जाऊँ कासे कहौँ कौन सुनै,
कोऊ तो निकारो जासोँ दरद बढै नहीँ ।
एरी! मेरी बीर जैसे तैसे इन आँखिन सोँ,
कढिगो अबीर पै अहीर को कढै नहीँ ।
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मालवा में बसे लोक और जनजातीय समुदायों में होली और फाग के साथ भीलों के भंगुर्या या भगोरिया का अपना अंदाज है। मदनमोहन व्यास की होली पर केंद्रित रचना देखिए :
होळी आइ रे (मालवी)
- मदनमोहन व्यास
होळी आइ रे फाग रचाओ रसिया
रे होळी आइ रे।
रंग गुलाल उड़े घर घर में,
सुख का साज सजाओ रसिया॥ होळी......
गउँ ने जुवारा चणा सब आया
तो हिळी-मिळी खाओ खिलाओ रसिया॥ होळी.....
मेहनत से जो आवे पसीनो,
ऊ गंगा जळ है न्हाओ रसिया॥ होळी......
रिम-झिम नाचे चाँद-चाँदणी,
तो हाथ में हाथ मिलाओ रसिया॥ होळी......
फागण धूप छाँव सो जावे रे कजा कदे आवे
तो मन को होंस पुराओ रसिया॥ होळी......
मन की मजबूरी को कचरो,
होळी में राख बणाओ रसिया॥ होळी.....
जय भारत जय महाकाळ की,
चारी देश गुँजाओ रसिया॥ होळी......
होळी आई रे फगा रचाओ रसिया॥ होळी......
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- मदनमोहन व्यास
होळी आइ रे फाग रचाओ रसिया
रे होळी आइ रे।
रंग गुलाल उड़े घर घर में,
सुख का साज सजाओ रसिया॥ होळी......
गउँ ने जुवारा चणा सब आया
तो हिळी-मिळी खाओ खिलाओ रसिया॥ होळी.....
मेहनत से जो आवे पसीनो,
ऊ गंगा जळ है न्हाओ रसिया॥ होळी......
रिम-झिम नाचे चाँद-चाँदणी,
तो हाथ में हाथ मिलाओ रसिया॥ होळी......
फागण धूप छाँव सो जावे रे कजा कदे आवे
तो मन को होंस पुराओ रसिया॥ होळी......
मन की मजबूरी को कचरो,
होळी में राख बणाओ रसिया॥ होळी.....
जय भारत जय महाकाळ की,
चारी देश गुँजाओ रसिया॥ होळी......
होळी आई रे फगा रचाओ रसिया॥ होळी......
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Holi Festival |Mahakaleshwar Temple | महाकाल मंदिर की होली | #mahakaleshwar #holi #ujjain
मालवा क्षेत्र में होली की गैर पर गाए जाने वाले गीत बन को चले दोनों भाई सुनिए :
Best Nagada Recital | नगाड़ा, डमरू और शंख वादन | Folk Songs : Ban Ko Chale Donon Bhai | Dal Badli Ro Pani Saiyan |
होली/गैर गीत- बन को चले दोनों भाई | दल बादली रो पानी सैयां| Nagada Recital by Nagada Samrat Shri Narendra Singh Kushwah | Singer : Pt. Shailendra Bhatt | नगाड़ा वादन : नगाड़ा सम्राट नरेंद्र सिंह कुशवाह द्वारा | गायन : पं. शैलेन्द्र भट्ट |
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नजीर अकबराबादी ने होली पर खूब लिखा है :
जब खेली होली नंद ललन
- नज़ीर अकबराबादी
जब खेली होली नंद ललन हँस हँस नंदगाँव बसैयन में।
नर नारी को आनन्द हुए ख़ुशवक्ती छोरी छैयन में।।
कुछ भीड़ हुई उन गलियों में कुछ लोग ठठ्ठ अटैयन में।
खुशहाली झमकी चार तरफ कुछ घर-घर कुछ चौप्ययन में।।
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में।
गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में।।
जब ठहरी लपधप होरी की और चलने लगी पिचकारी भी।
कुछ सुर्खी रंग गुलालों की, कुछ केसर की जरकारी भी।।
होरी खेलें हँस हँस मनमोहन और उनसे राधा प्यारी भी।
यह भीगी सर से पाँव तलक और भीगे किशन मुरारी भी ।।
डफ बजे राग और रंग हुए, होरी खेलन की झमकन में।
गुलशोर गुलाल और रंग पड़े, हुई धूम कदम की चायन में ।।
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जब आई होली रँग-भरी सौ नाज़-अदा से मटक मटक
- नजीर अकबराबादी
जब आई होली रँग-भरी सौ नाज़-अदा से मटक मटक
और घुँघट के पट खोल दिए वह रूप दिखाया चमक चमक
कुछ मुखड़ा करता दमक दमक कुछ अबरन करता झलक झलक
जब पाँव रखा ख़ुश-वक़्ती से एक पायल बाजी झनक झनक
कुछ उछलेंं सैनैं नाज़ भरें कुछ कूदें आहें थिरक थिरक
ये रूप दिखा कर होली के जब नैन रसीले टुक मटके
मँगवाएँ थाल गुलालों के भरवाएँ रंगों से मटके
फिर स्वाँग बहुत तयार हुए और ठाठ ख़ुशी के झुरमुट के
गुल शोर हुए ख़ुश-हाली के और नाचने गाने के खटके
मृदंगे बाजें ताल बजे कुछ खनक खनक कुछ धनक धनक
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पुराणों में होली की परंपरा की उत्स कथा के रूप में प्रह्लाद की रक्षा और होलिका के दहन के कई संकेत मिलते हैं।
होलिका दहन का पौराणिक वर्णन
सौजन्य : डॉ. अरुणकुमार उपाध्याय, भुवनेश्वर, ओड़िसा
नारद पुराण, भाग १, अध्याय १२४-
फाल्गुने पूर्णिमायां तु होलिका पूजनं मतम्॥७६॥
संचयं सर्व काष्ठानामुपलानां च कारयेत्।
तत्राग्निं विधिवद्धुत्वा रक्षोघ्नैर्मन्त्रविस्तरैः॥७७॥
"असृक्पाभयसंसंत्रह्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव॥७८॥"
इति मन्त्रेण सन्दीप्य काष्ठादि क्षेपणैस्ततः।
परिक्रम्योत्सवः कार्य्यो गीतवादित्रनिःस्वनैः॥७९॥
होलिका राक्षसी चेयं प्रह्लाद भयदायिनी।
ततस्तां प्रदहन्त्येवं काष्ठाद्यैर्गीतमंगलैः॥८०॥
संवत्सरस्य दाहोऽयं कामदाहो मतान्तरे।
इति जानीहि विप्रेन्द्र लोके स्थितिरनेकधा॥८१॥
लक्ष्मीनारायण संहिता, भाग १, अध्याय २८० में भी प्रायः यही वर्णन है-
फाल्गुने पूर्णिमायां तु होलिका पूजनं मतम्।
काष्ठादि संचये वह्निं हुत्वा रक्षोघ्न मन्त्रकैः॥१४७॥
"असृक्या भयसन्त्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव॥१४८॥"
इति मन्त्रेण सन्दीप्य परिक्रम्य नयेद् व्रती।
होलिकां राक्षसीं चेमां प्रह्लाद भयदायिनीम्॥१४९॥
ज्वालयन्ति जना यद्वत् प्रह्लादेन सुभस्मिता।
संवत्सरस्य दाहोऽयं पापानामिति होलिका॥१५०॥
शंकरेण कृतः कामदाहोऽयं होलिका मता।
कल्पभेदेन दाहस्य भिद्यते तु कथानकम्॥१५१॥
दोलोत्सवस्तथा चात्र पूर्णायां वोत्तरेऽहनि।
उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रयोगे रैवताचले॥१५२॥
दोलामारोप्य कृष्णं चार्जुनं धर्माश्रये पुरा।
आन्दोलयामासुरत्र देवाः कार्यः स उत्सवः॥१५३॥
प्रातः पूजां प्रकुर्वीत नरनारायण प्रभोः।
उपचारैः षोडशभिर्महानीराजनेन च॥१५४॥
वस्त्र चन्दनपुष्पाद्यैस्तुलसीपत्र भूषणैः।
पातसैः पूरिकाभिश्च बदरादिफलैरपि॥१५५॥
वासन्तिकैश्च पुष्पाद्यैस्तथा रंगगुलालकैः।
पूजयेद्भोजयेच्चापि नीराजयेच्च रंजयेत्॥१५६॥
क्रीडां च कारयेद् यन्त्रैस्ततः प्रस्वापयेत् प्रभुम्।
भक्तान् बालान् भोजयित्वा व्रती भुञ्जीत वै ततः॥१५७॥
एवमभ्यंगकस्नानमाम्रकुसुमप्राशनम्।
वसन्तोत्सवरमणं धूलिवन्दनमित्यपि॥१५८॥
भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व ४, अध्याय १३२ में राजा रघु के समय बच्चों की संक्रामक बीमारी के रूप में ढौंढा राक्षसी का वर्णन है। वह घर में प्रवेश करते समय अडाडा मन्त्र का प्रयोग करती है, अतः उसे अडाडा भी कहते हैं। होम द्वारा उसका लय या नाश होता है, अतः उसे होलिका कहते हैं।
लक्ष्मी नारायण संहिता में रंग, गुलाल तथा धूलि से खेलने का भी उल्लेख है। भविष्य पुराणके अनुसार ढौंढा को अपमानित कर भगाने के लिए अपशब्द, प्रलाप या हर्ष के साथ हास्य तथा गायन करते हैं-
ततः किलकिला शब्दैस्तालशब्दैर्मनोहरैः।
तमग्निं त्रिः परिक्रम्य गायन्तु च हसन्तु च॥
जल्पन्तु ह्वेच्छया लोका निःशंका यस्य यन्मतम्॥२७॥