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20200901

नई शिक्षा नीति 2020 : सरोकार और संभावनाएँ - प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

इक्कीसवीं सदी की जरूरतों के अनुरूप है नई शिक्षा नीति 2020

नई शिक्षा नीति 2020 : सरोकार और संभावनाएँ विषय पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी 

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी नई शिक्षा नीति 2020 : सरोकार और संभावनाएं विषय पर अभिकेंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि ओस्लो, नॉर्वे के वरिष्ठ साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् श्री भरत व्यास, डॉ रीता सिंह, हिमाचल प्रदेश एवं श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई थीं। अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने की। संगोष्ठी की रूपरेखा संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।





इस अवसर पर संबोधित करते हुए श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि भारत की नई शिक्षा नीति 2020 की अवधारणा अत्यंत सार्थक है। इसके क्रियान्वयन में माता-पिता और स्थानीय लोगों को जोड़ा जाना चाहिए। तीन वर्ष के बच्चों को पूर्व बेसिक शिक्षा में सम्मिलित करने की सरकारी तैयारी एक सी और सभी के लिए जरूरी और संभव हो। कोई भी बच्चा स्कूल जाने से वंचित न हो, इसकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। जरूरी है कि इसमें सभी समुदायों, स्वयंसेवी एवं शैक्षिक संस्थानों को जोड़ा जाए। तभी सरकार अपना लक्ष्य जल्द प्राप्त कर लेगी। इसके साथ ही आधारभूत ढांचा बेहतर किया जाना चाहिए। 




प्रमुख वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि शिक्षा एक अविराम प्रक्रिया है, उसे समय, जरूरत और क्षेत्र के अनुरूप अद्यतन होते रहना चाहिए। नई शिक्षा नीति व्यापक परिवर्तन के साथ हमकदमी कर रही है। यह नीति  इक्कीसवीं सदी की  आवश्यकताओं के अनुरूप है। विद्यार्थी तेजी से परिवर्तनशील स्थितियों के मध्य सीखें ही नहीं, सतत सीखते रहने की कला को भी जानें, नई शिक्षा नीति में इस बात पर विशेष बल दिया गया है। इसके माध्यम से विद्यार्थियों में चरित्र निर्माण, तार्किकता और व्यावसायिक कौशल के साथ अंतरानुशासनिक क्षमता का विकास होगा। यह जरूरी है कि शिक्षण प्रणाली शिक्षार्थी केंद्रित हो। साथ ही उसमें लचीलापन हो तथा समग्रता और समन्वित रूप से देखने - समझने में सक्षम बनाने वाली हो। नई शिक्षा नीति में इन बातों का ध्यान रखा गया है। नई शिक्षा नीति स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक आवश्यकताओं को दृष्टि में रखकर बनाई गई है। इसका सफल क्रियान्वयन शिक्षा से जुड़े हुए सभी पक्षों का दायित्व है।






विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् श्री भरत व्यास ने कहा कि विद्या वह है, जो बंधनों से मुक्त कर सके। वर्तमान में स्मृति आधारित शिक्षा पद्धति अस्तित्व में है। नई शिक्षा नीति इसमें परिवर्तन लाने के लिए महत्त्वपूर्ण उपाय कर रही है, जहां क्रिया आधारित शिक्षण पर बल दिया गया है। हमारी ज्ञान परंपरा अत्यंत समृद्ध रही है। मौलिक चिंतन के लिए जरूरी है कि मातृभाषा के माध्यम से ज्ञान प्राप्त हो। इसके साथ ही शिक्षा में भारतीयता का तत्त्व हो और व्यावसायिक कौशल का भी विकास हो। इन सभी दृष्टियों से नई शिक्षा नीति में विशेष प्रावधान किए गए हैं।






अध्यक्षीय उद्बोधन में शिक्षाविद् श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति में कक्षाओं और पाठ्यक्रम की सरंचना में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए हैं। इसमें कौशल विकास को पर्याप्त महत्त्व मिला है। शैक्षिक संस्थाओं की फीस सरकार द्वारा नियंत्रित होगी। शिक्षा एक बड़ी संघटना है। हमारे जीडीपी का छह प्रतिशत व्यय शिक्षा के लिए किया जाएगा, जिससे शैक्षिक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण सुधार होंगे। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नामकरण शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है, जो स्वागत योग्य है।






विशिष्ट अतिथि डॉ रीता सिंह, हिमाचल प्रदेश ने कहा कि नई शिक्षा नीति में कौशल विकास पर बल दिया गया है। यह नीति व्यावहारिक दृष्टिकोण के साथ आई है। इसमें मातृभाषा के महत्त्व को स्वीकार किया गया है।




प्रारंभ में संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए डॉ. प्रभु चौधरी ने कहा कि ब्रिटिश शासकों ने गुरुकुल पद्धति की शिक्षा पर प्रहार किया था, जिससे हमारा मौलिक चिंतन नष्ट होने लगा था। नई शिक्षा नीति भारतीय चिंतन को केंद्र में रखकर तैयार की गई है।






संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि  श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुम्बई एवं डॉ लता जोशी, मुम्बई ने भी संबोधित किया। आयोजन में डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर, डॉ कौशल किशोर पांडेय, इंदौर, डॉ मुक्ता कौशिक, डॉ रश्मि चौबे, श्रीमती शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ शैल चंद्रा, रायपुर, डॉ भरत शेनेकर, पुणे, डॉ. रोहिणी डकारे, अहमदनगर, ममता झा, मुम्बई, श्री दिनेश परमार, पुष्पा गरोठिया, डॉ अशोक सिंह, डॉ श्वेता पंड्या, कमल भूरिया, विजय शर्मा आदि सहित देश के विभिन्न भागों के प्रतिभागी उपस्थित थे।















संगोष्ठी का संचालन रागिनी शर्मा, इंदौर ने किया। आभार साहित्यकार डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर ने माना।


20200830

लोक देवता देवनारायण जी : इतिहास, संस्कृति और साहित्य के परिप्रेक्ष्य - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

प्रेम और समरसता का व्यापक सन्देश दिया है लोक देवता देवनारायण जी ने
अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में लोक देवता देवनारायण : इतिहास, संस्कृति और साहित्य के संदर्भ में विषय पर हुआ मंथन


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय देव चेतना परिषद द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी लोक देवता देवनारायण : इतिहास, संस्कृति और साहित्य के संदर्भ में विषय पर अभिकेंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि साहित्यकार श्री त्रिपुरारीलाल शर्मा, इंदौर थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के मंत्री डॉ हरिसिंह पाल, ओस्लो, नॉर्वे के साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक एवं श्री टीकम चंद बोहरा, कोटा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता अखंड भारत गुर्जर महासभा के अध्यक्ष श्री देवनारायण गुर्जर, जयपुर ने की। संगोष्ठी की प्रस्तावना संस्था के अध्यक्ष डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।





लोक साहित्यविद् डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय लोकमानस अपने परिवारजनों और पशु संपदा की संरक्षा के लिए लोक देवी-देवताओं की शरण में पहुंचता रहा है। उसने अपने परिवेश के अलौकिक शक्तिसंपन्न महापुरुष को लोकदेवता का दर्जा दिया है। ऐसे ही लोकदेवता भगवान श्री देवनारायण की पशुपालक एवं अन्य समाजों में प्रतिष्ठा  है। उन्होंने पशुपालक समाज को वीरान जंगल में सभी प्रकार की सुरक्षा प्रदान की और उन्हें ईमानदारी एवं सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। देवनारायण के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर गायी जाने वाली लोकगाथा को आम लोगों के लिए उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जिससे नई पीढ़ी अपने महापुरुष के सम्बन्ध में आसानी से जान सके। 





मुख्य वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने व्याख्यान देते हुए कहा कि मध्यकालीन भारतीय इतिहास और संस्कृति में देवनारायण जी का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने जल, वन, पशु और औषधि संरक्षण - संवर्धन में अविस्मरणीय कार्य किए। उनका चरित्र लोक हितकारी है। वे परस्पर प्रेम, भाईचारे और समरसता के माध्यम से समाज के नव निर्माण में जुटे रहे। बगड़ावत गाथा और हीड़ लोक काव्य में उनके चरित्र और कार्यों का प्रभावी अंकन हुआ है। भारतीय विश्वास है कि एक ही परम सत्ता अलग-अलग रूपों में अभिव्यक्त होती है। लोक देवी - देवता उसी परमेश्वर के विभिन्न रूपों के द्योतक हैं। लोक में पूजित देवताओं में देवनारायण जी, तेजाजी, रामदेव जी, पाबू जी, हरबू जी, गोगाजी आदि का विशिष्ट स्थान है। ये सभी परोपकार,  साहस,  वचन निर्वाह, आत्म त्याग जैसे कई लौकिक और अलौकिक गुणों के कारण लोक आस्था के केंद्र सदियों से बने हुए हैं।लोक कण्ठानुकण्ठ में जीवन्त प्रसिद्ध उक्ति है:
पाबू, हरबू, रामदे, मांगळिया मेहा।
पाँचों पीर पधारजो, गोगाजी जेहा।।

पश्चिम एवं मध्य भारत में बहु लोकप्रिय रामदेव जी, पाबू जी, देवनारायण जी, हरबू जी, गोगा जी, तेजा जी, मेहा जी सहित कई लोक देवताओं से जुड़ा लोक साहित्य विपुल मात्रा में वाचिक परम्परा में प्रवहमान हैं। यह साहित्य अनुश्रुति, इतिहास और लोक-संस्कृति की जैविक अंतर्क्रिया का विलक्षण दृष्टांत है। सूक्ष्मता से विचार करें तो लोक साहित्य और संस्कृति अथाह है। लोक-देवता साहित्य और संस्कृति में ऐतिहासिक घटनाओं के साथ युग जीवन और पर्यावरण की विविध छबियां सहज उपलब्ध हैं। कई जाति-समुदायों से जुड़े विशिष्ट प्रसंग और घटनाओं में ऐतिहासिक सन्दर्भ बिखरे पड़े हैं। उनकी सूक्ष्म पड़ताल की आवश्यकता है। लोक में गहराई से उतरे बिना लोक-देवता साहित्य और कलाओं के साथ न्याय संभव नहीं है। इनके माध्यम से इतिहास और जातीय स्मृतियों की अनेकानेक परतें उद्घाटित होती हैं। यह अनुसन्धानकर्ता पर निर्भर है कि वह उनकी कितनी थाह पाता है। 

साहित्यकार श्री त्रिपुरारीलाल शर्मा, इंदौर ने कहा कि मालवा, राजस्थान, गुजरात क्षेत्र में अनेक लोक देवताओं का योगदान रहा है। इन सबके मध्य श्री देवनारायण जी पशु एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए विशिष्ट पहचान रखते हैं। लोक साहित्य और फड़ चित्रों में उनके लोकहितकारी कार्यों को अभिव्यक्ति मिली है। 


            


ओस्लो, नॉर्वे के प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि लोक संस्कृति के क्षेत्र में देवनारायण जी का योगदान अविस्मरणीय है। आज संपूर्ण विश्व पर्यावरण से जुड़ी  चिंताओं से गुजर रहा है। हम देवनारायण जी के दिखाए हुए मार्ग पर चलते हुए जल स्रोतों, वन और पर्यावरण की रक्षा करें। हमें जैविक खेती और जलस्रोतों के विकास के लिए व्यापक प्रयास करने होंगे। श्री शुक्ल ने कहा कि वे लोक देवता देवनारायण जी के जीवन चरित्र से जुड़े हुए काव्यांशों का नॉर्वेजियनन भाषा में अनुवाद करेंगे।



संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ समाजसेवी श्री देवनारायण गुर्जर, जयपुर में कहा कि देवनारायण जी ने पूर्व में धर्म के नाम पर चले आ रहे पाखंड को समाप्त किया। उन्होंने सामाजिक सद्भाव के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए। देवनारायण जी ने आपस में बिछड़े हुए लोगों को जोड़ा था। आज भी उनके आदर्शों पर चलते हुए देशवासियों को जोड़ने की आवश्यकता है। भारतीय समाज को देवनारायण जी के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।




वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी श्री टीकम चंद वोहरा, कोटा ने कहा कि देवनारायण जी का व्यक्तित्व परोपकारी था। उनके पूर्वज बगड़ावतों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दी। बाद में  देवनारायण जी ने उत्कट साहस और पराक्रम से मातृभूमि को पुनः प्राप्त किया। राजस्थान के मालासेरी डूंगरी के पास बगड़ावत और देवनारायण जी के जीवन और कार्यों को केंद्र में रखते हुए बृहद् संग्रहालय बनाया गया है, जिसके माध्यम से हम इतिहास के महत्त्वपूर्ण पक्षों के सम्बंध में जान सकते हैं।



कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि डॉ एम एल वर्मा, जयपुर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि श्री देवनारायण जी की लोक गाथा परंपरा से प्राप्त अखंड भारत के लोक जीवन और दर्शन को अभिव्यक्त करती है। देवनारायण जी की लीला कथा भागवत स्वरूप है। गुर्जर लोक संस्कृति में श्री देवनारायण जी की फड़ और लोक वार्ता अनहद नाद शब्द ब्रह्म रूप है, जिसे बगड़ावतों के कुल भाट छोछू ने श्रुति स्मृति स्वरूप लोक कल्याण के लिए गुर्जरी भाषा में गाया है।




साहित्यकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कहा कि देवनारायण जी अवतारी व्यक्तित्व थे। उन्होंने सृष्टि प्रेम का चिंतन प्रस्तुत किया और लोक कल्याण के कार्यों को करने की प्रेरणा दी।



स्वागत भाषण  संस्था के अध्यक्ष डॉ प्रभु चौधरी ने देते हुए कहा कि संस्था द्वारा देवनारायण जी सम्बन्धी  साहित्य का प्रकाशन किया जाएगा।




संगोष्ठी में डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ मुक्ता कौशिक, डॉ शैल चंद्रा, रायपुर, डॉ भरत शेनेकर, पुणे, डॉ. रोहिणी डकारे, अहमदनगर, जितेंद्र पांडे, डॉ श्वेता पंड्या, विजय शर्मा सहित देश के विभिन्न भागों के प्रतिभागी उपस्थित थे।





संगोष्ठी में डॉ राकेश आर्य, नोएडा, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर एवं डॉ संजीव कुमारी गुर्जर, हिसार ने देवनारायण जी के सामाजिक,  स्त्री शिक्षा एवं पर्यावरण विषयक विचारों की चर्चा की।


कार्यक्रम का संचालन अनुराधा अच्छावन, नई दिल्ली ने किया। आभार साहित्यकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने माना।


20200826

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर : व्यक्तित्व और योगदान

अहिल्याबाई असाधारण शासिका थीं, जिन्हें लोकमाता का दर्जा मिला 

लोकमाता अहिल्याबाई के बहुआयामी अवदान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा लोकमाता अहिल्याबाई के बहुआयामी अवदान पर केंद्रित कर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल एवं सारस्वत अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने की। मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर थे। आयोजन की रूपरेखा संस्था के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।



मुख्य अतिथि डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने संबोधित करते हुए अहिल्याबाई होलकर के जीवन प्रसंगों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर ने अपने जीवन में अनेक सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कार्य किए, जिन्हें आज भी याद किया जाता है। उन्होंने अनेक देवालय, बावड़ी, घाट, जलाशय आदि का निर्माण करवाया।




वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. जी. डी. अग्रवाल, इंदौर ने कार्यक्रम  को संबोधित करते हुए कहा कि  अहिल्याबाई एक असाधारण शासिका थी, जिन्हें लोकमाता का दर्जा मिला। लोकमाता अहिल्याबाई ने अपने आंसूओं को पीकर प्रजा के आँसू पोंछे। अहिल्याबाई का बहुआयामी  व्यक्तित्व इन काव्य पंक्तियों से स्पष्ट होता है, 
बाला बनी, वनिता बनी, विधवा बनी, रानी बनीl 
दानी बनी भक्तिन बनी, ज्ञानी बनी, देवी बनीl 
रानीत्व की बाई अहिल्या, अनुपम कहानी बनीl 
निज दिव्यता से गंगा का पानी बनीl 










सारस्वत अतिथि लेखक एवं आलोचक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने संबोधित करते हुए कहा कि अहिल्याबाई होल्कर ने भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने व्यापक दृष्टि के साथ देश को सांस्कृतिक और भावात्मक एकता के सूत्र में बांधने के लिए अविस्मरणीय प्रयास किए। लोकोपकार, न्याय और प्रजारंजन के साथ उन्होंने तप, त्याग और सेवाव्रत को अपने जीवन में मूर्त किया।







वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि प्रातः स्मरणीय माता अहिल्या बाई होलकर अवतारतुल्य थीं। भगवान शंकर की भक्ति उनकी अपार शक्ति थी, जिसका सदुपयोग उन्होंने अपनी प्रजा के  हित के लिए किया तथा पूरे भारत में ऐसे अनेक कार्य किए, जिसके कारण उनकी सुकीर्ति का ध्वज आज भी फहरा रहा है और फहराता रहेगा। राजमाता होकर भी वह लोक माता के रूप में जानी जाती रहीं और इसी रूप में वह अमर हुईं। उन्होंने बताया कि लोकमाता अहिल्याबाई होलकर शीर्षक उनका एक आलेख कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया था। 




कार्यक्रम की प्रस्तावना एवं स्वागत भाषण संस्था के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने दिया। कार्यक्रम को संस्था अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन एवं डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने भी संबोधित किया।


वरिष्ठ कवि श्री अनिल ओझा, इंदौर ने देवी अहिल्या बाई पर केंद्रित गीत सुनाया, जिसकी पंक्तियाँ थीं, 

माँ अहिल्या को नमन देवी अहिल्या को नमन।

 आपकी यश कीर्ति से नित गूँजते धरती गगन।

कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ. रोहिणी डावरे, अहमदनगर ने प्रस्तुत की।

कार्यक्रम में डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, डॉ रेखा रानी, फतेहगढ़, डॉ भरत शेनेकर, पुणे सहित देश के विभिन्न भागों के प्रतिभागी उपस्थित थे।



कार्यक्रम का संचालन निरूपा उपाध्याय, देवास ने किया। आभार प्रवीण बाला, पटियाला, पंजाब ने माना।


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