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20200905

सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में शिक्षकों की भूमिका - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित शिक्षा में शिक्षकों का दायित्व बहुत  गहरा 

सूचना क्रांति के दौर में शिक्षक की भूमिका पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा सूचना क्रांति के दौर में शिक्षक की भूमिका विषय पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर, डॉ. रचना पांडेय, रायपुर, डॉ कविता रायजादा, आगरा एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु  चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय विश्वविद्यालय, भटिंडा, पंजाब के डॉ राजिंदर कुमार सेन ने की।




संगोष्ठी के मुख्य अतिथि लेखक एवं आलोचक प्रोफ़ेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी व्यापक रूप से सूचना और ज्ञान के विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। शिक्षकों और विद्यार्थियों को इस दौर में सूचना के संचालन में उपयोगी सभी पद्धतियों, विधियों और उपकरणों से जुड़ना होगा। प्रौद्योगिकी पर आधारित शिक्षा में शिक्षकों का दायित्व बहुत  अधिक बढ़ गया है। एक ओर उन्हें विद्यार्थियों को योजनाबद्ध ढंग से इलेक्ट्रॉनिक पाठ्य सामग्री को उपलब्ध कराना है। इसके साथ ही शिक्षक और विद्यार्थी के मध्य बेहतर मानवीय संबंधों का निर्माण भी करना है, जो विद्यार्थियों को आंतरिक रूप से मजबूत कर सके। ज्ञान एवं विवेक आधारित समाज के निर्माण के लिए शिक्षक अपने विद्यार्थियों को सूचना - संचार क्रांति का अर्थपूर्ण और समुचित प्रयोग करना सिखाएँ। सूचना क्रांति के दौर में शिक्षकों की मार्गदर्शक और उत्प्रेरक के रूप में भूमिका बढ़ती जा रही है। विद्यार्थीगण इंटरनेट पर उपलब्ध अपार सामग्री का विवेकपूर्ण इस्तेमाल करें, इसके लिए शिक्षकों को उन्हें सचेत करना होगा। नए दौर में शिक्षक अपने विद्यार्थियों को तथ्यों, विचारों और धारणाओं के तर्कसंगत एवं प्रायोगिक परिणामों से जोड़ने के लिए निरन्तर प्रयास करें। ज्ञान के स्रोत निरंतर बदल रहे हैं, ऐसे में शिक्षकों को शिक्षण प्रक्रिया में सार्थक परिवर्तन लाना होगा। 






डॉ. राजिंदर कुमार सेन, भटिंडा, पंजाब ने कहा कि भारतीय परंपरा में गुरु और शिक्षक को पर्याय माना गया है। शिक्षक हमारे शरीर, मस्तिष्क और आत्मा तीनों को प्रभावित करता है। वह विद्यार्थियों के चारित्रिक, भावात्मक और बौद्धिक उन्नयन के लिए योगदान देता है। शिक्षक नई शिक्षा नीति 2020 के प्रावधानों का अनुसरण करते हुए स्वयं को नई टेक्नोलॉजी से जोड़ें। साथ ही छात्रों में मूल्यों के प्रसार के लिए प्रयास करें। 





विशिष्ट अतिथि डॉ शहाबुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि केवल जीविका के निर्वाह के लिए शिक्षक कर्म को अंगीकार करना उचित नहीं है। यह बहुत बड़े दायित्व का कार्य है।


















मुख्य वक्ता श्री मोहन लाल वर्मा, जयपुर ने कहा कि विद्या और ज्ञान में पर्याप्त अंतर है। शिक्षक का कार्य केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं, वरन विद्यार्थियों के मध्य विद्या का प्रसार भी है, जो उन्हें सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त करती है।  



















विशिष्ट अतिथि डॉ. कविता रायजादा, आगरा ने पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा में शिक्षकों की जिम्मेदारी बढ़ गई है। विद्यार्थियों के साथ उनके माता - पिता भी इस प्रकार के शिक्षण से जुड़ रहे हैं।


संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। संगोष्ठी में श्री दर्शन सिंह रावत, उदयपुर, डॉ लता जोशी, मुंबई, मुक्ता कौशिक, रायपुर, ब्रजबाला शर्मा, प्रभा बैरागी, उज्जैन, मंजू भारती, निर्मल कौर, धीरज कुमार, पंजाब सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।












कार्यक्रम का संचालन पंजाब प्रांतीय इकाई की महासचिव डॉक्टर प्रवीण बाला, पटियाला, पंजाब ने किया। प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ डिंपल शर्मा ने की। आभार प्रदर्शन डॉ रश्मि रानी ने किया।


20200903

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - पुस्तक समीक्षा

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - एक दस्तावेजी ग्रन्थ 

समीक्षक - डाॅ देवेन्द्र जोशी

वक्त गुजर जाता है बातें याद रह जाती हैं। साहित्य को समाज का दर्पण इसलिए कहा जाता है कि समय गुजरने के बाद भी वह तत्कालीन समय की स्मृतियों की सुरभि से समाज को महकाता रहता है। अपनी रचनात्मक सुरभि से समाज को इसी तरह का महकाने का एक उल्लेखनीय कार्य विक्रम विश्वविद्यालय ने  हाल ही में कर दिखाया है। वह है प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा के संपादन में महात्मा गांधी : विचार और नवाचार ग्रंथ का प्रकाशन। 




यह पुस्तक महात्मा गांधी के 150 वें  जयंती वर्ष में गांधी जी पर एकाग्र विचारों के साथ विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित विविध नवाचार और गतिविधियों पर केंद्रित है, जो विगत दिनों प्रकाशित हो कर आई है। गांधी डेढ़ शती वर्ष की उपलब्धियों को बहुत सुंदर रूप से इसमें संजोया गया है। इसे एक दस्तावेजी ग्रंथ की संज्ञा देना अधिक उपयुक्त होगा। इस ग्रंथ  में गांधी जी के विचारों को शोध आलेखों और राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों के निष्कर्षों के साथ जिस तरह सुसंपादित किया गया है, वह अपने आप में गांधी पर केन्द्रित 21 वीं सदी का एक ऐसा शब्द गुच्छ बन पडा है, जो रचनात्मक सुरभि से समाज को दिग्दिगंत तक महकाता रहेगा। इसके लिए समूचे आयोजन के परिकल्पनाकार कुलपति  प्रो. बालकृष्ण शर्मा और उस संकल्पना को साकार करने वाले ग्रंथ संपादक, कुलानुशासक एवं गांधी अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा बधाई और साधुवाद के पात्र हैं।  प्रो शर्मा ने बडे मनोयोग से गांधी डेढ शती मनाने की न सिर्फ बृहद् रूपरेखा तैयार की, अपितु  उसे कारगर ढंग से क्रियान्वित भी किया। यही नहीं,  पूरे वर्ष तक चले इस रचनात्मक महायज्ञ का इस महाग्रंथ रूपी पूर्णाहुति के साथ उतना ही गरिमामय  समाहार भी किया।    

इस ग्रंथ का सबसे समृद्ध पक्ष प्रो बालकृष्ण शर्मा, डाॅ  मुक्ता, डाॅ राकेश पाण्डेय और प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा के महत्त्वपूर्ण आलेख हैं। ये आलेख समूची आयोजना और इस ग्रंथ की पीठिका की तरह हैं, जिस पर यह भव्य इमारत खडी की गई है। 

गांधी विचार के विविध पक्षों को लेकर जीवन सिंह ठाकुर, डाॅ मंजु तिवारी, डाॅ  पूरन सहगल, डाॅ  विनय कुमार पाठक, डाॅ पुष्पेन्द्र दुबे, डाॅ जगदीश चन्द्र शर्मा, डाॅ  जवाहर कर्नावट, डाॅ  प्रतिष्ठा शर्मा, डाॅ दिग्विजय शर्मा आदि ने अपने आलेखों से इस दस्तावेजी पुस्तक को यादगार बनाने में कोई कसर बाकी नहीं  छोड़ी है। 

उल्लेखनीय शोधपरक आलेखों के रूप में अर्चना त्रिवेदी एवं डाॅ  पुष्पेन्द्र  दुबे, ॠषिराज उपाध्याय, डाॅ  श्वेता पण्ड्या आदि के आलेखों की चर्चा की जा सकती है। विक्रम विश्वविद्यालय की गांधी 150 वीं जन्म-शती समारोह समिति के तत्त्वावधान में हिन्दी अध्ययनशाला, गांधी अध्ययन केंद्र सहित विभिन्न विभागों में आयोजित  राष्ट्रीय संगोष्ठियों, व्याख्यानों, परिसंवादों की खासियत यह रही कि इन्हें विश्वविद्यालय के अकादमिक परिसर तक सीमित न रखते हुए नगर और देश - प्रदेश के चिन्तनशील सर्जक, कवि और साहित्यकारों से भी जोडा गया। इसकी बानगी गांधी जीवन दर्शन पर बहुभाषी कवि गोष्ठी और भजनांजलि के रूप में देखने को मिली। इस सरस सुमधुर आयोजन में  सुनाई गई रचनाओं में से डाॅ देवेन्द्र जोशी की याद आएंगे गांधी, रफीक नागौरी की बापू और शिशिर उपाध्याय की गांधी बाबा पाछा आओ रचनाएँ इस ग्रंथ में शामिल की गई  हैं। 

इसी क्रम में वर्ष भर चली गांधी चिंतन से जुड़े  नवाचारों और रचनात्मक गतिविधियों के वृत्तांत को बहुरंगी चित्रों के साथ पुस्तक में सहेजा गया है। इस समूची आयोजना के बारे में जानकारी देते हुए संपादक प्रो शैलेन्द्र कुमार  शर्मा ने अपने संपादकीय में लिखा है कि समूचे आयोजन में  कला, साहित्य एवं भाषाओं, समाज विज्ञानों एवं विविध भौतिक एवं जीव विज्ञानों के शिक्षकों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों की सहभागिता सुनिश्चित की गई। इस दिशा में राष्ट्रीय  सेवा योजना और राष्ट्रीय कैडेट कोर के युवाओं की गतिशील हिस्सेदारी ने भी उल्लेखनीय योगदान  दिया। पूरे वर्ष के दौरान गांधी चिन्तन के विविध पहलुओं से जुडी संगोष्ठियों, व्याख्यानों कार्यशालाओं, साहित्य  एवं  संस्कृति कर्म, सामुदायिक एवं युवा गतिविधियों और बहुविध नवाचारों की अविराम शृंखला जारी रही। ..... दुनिया के किसी विश्वविद्यालय या संस्था ने इतनी बडी संख्या में लोगों की सक्रिय भागीदारी  के साथ विविधायामी और नवाचारी गतिविधियां  संयोजित नहीं की हैं, जितनी विक्रम विश्वविद्यालय में  संभव हुई हैं। ..... गांधी जी के 150 वें जयंती वर्ष में विक्रम विश्वविद्यालय के गांधी अध्ययन  केन्द्र  के ग्रंथालय और वाचनालय को आम जनता के लिए के लिए खोल दिया गया है। जहां संपूर्ण गांधी वाङ्मय, संदर्भ सामग्री और पत्र - पत्रिकाएँ बडी संख्या में उपलब्ध हैं। मध्यप्रदेश शासन, उच्च शिक्षा विभाग के सौजन्य से राजनीति विज्ञान अध्ययनशाला में गांधी  चेयर की स्थापना की गई  है। .... विभिन्न भाषाओं के कवियों की गांधी जी के प्रति भावांजलियों और महात्मा गांधी के युगांतरकारी कार्यों और प्रभाव को प्रत्यक्ष करते दुर्लभ फोटोग्राफ्स भी इस ग्रंथ  में  संजोये गये हैं।

इस बहुरंगी पुस्तक का चित्ताकर्षक आवरण अक्षय आमेरिया ने तैयार किया है तथा प्रकाशन यूजीसी की 12 वीं पंचवर्षीय योजना के अनुदान से किया गया है। सरकारी अनुदान से हुए अनेक कार्यों को देखा गया है, लेकिन जितने मनोयोग से विक्रम विश्वविद्यालय ने इस पुस्तकीय दायित्व को अंजाम  दिया है, वह अपने आप में अद्वितीय है। कुल मिलाकर  गांधी डेढ सौ वे जयंती वर्ष में विक्रम विश्वविद्यालय ने गांधी स्मरण के जो कीर्तिमान कायम किए हैं, वे देश दुनिया के अन्य विश्वविद्यालयों और संस्थानों के लिए किसी मील के पत्थर से कम नहीं है। 


डाॅ देवेन्द्र  जोशी 

85, महेशनगर 

अंकपात मार्ग 

उज्जैन 

(मध्यप्रदेश) - 456006


पुस्तक का नाम : गांधी विचार और नवाचार 

संपादक :  प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा 

प्रकाशक : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

प्रकाशन वर्ष : 2020

20200901

नई शिक्षा नीति 2020 : सरोकार और संभावनाएँ - प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

इक्कीसवीं सदी की जरूरतों के अनुरूप है नई शिक्षा नीति 2020

नई शिक्षा नीति 2020 : सरोकार और संभावनाएँ विषय पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी 

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी नई शिक्षा नीति 2020 : सरोकार और संभावनाएं विषय पर अभिकेंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि ओस्लो, नॉर्वे के वरिष्ठ साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् श्री भरत व्यास, डॉ रीता सिंह, हिमाचल प्रदेश एवं श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई थीं। अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने की। संगोष्ठी की रूपरेखा संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।





इस अवसर पर संबोधित करते हुए श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि भारत की नई शिक्षा नीति 2020 की अवधारणा अत्यंत सार्थक है। इसके क्रियान्वयन में माता-पिता और स्थानीय लोगों को जोड़ा जाना चाहिए। तीन वर्ष के बच्चों को पूर्व बेसिक शिक्षा में सम्मिलित करने की सरकारी तैयारी एक सी और सभी के लिए जरूरी और संभव हो। कोई भी बच्चा स्कूल जाने से वंचित न हो, इसकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। जरूरी है कि इसमें सभी समुदायों, स्वयंसेवी एवं शैक्षिक संस्थानों को जोड़ा जाए। तभी सरकार अपना लक्ष्य जल्द प्राप्त कर लेगी। इसके साथ ही आधारभूत ढांचा बेहतर किया जाना चाहिए। 




प्रमुख वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि शिक्षा एक अविराम प्रक्रिया है, उसे समय, जरूरत और क्षेत्र के अनुरूप अद्यतन होते रहना चाहिए। नई शिक्षा नीति व्यापक परिवर्तन के साथ हमकदमी कर रही है। यह नीति  इक्कीसवीं सदी की  आवश्यकताओं के अनुरूप है। विद्यार्थी तेजी से परिवर्तनशील स्थितियों के मध्य सीखें ही नहीं, सतत सीखते रहने की कला को भी जानें, नई शिक्षा नीति में इस बात पर विशेष बल दिया गया है। इसके माध्यम से विद्यार्थियों में चरित्र निर्माण, तार्किकता और व्यावसायिक कौशल के साथ अंतरानुशासनिक क्षमता का विकास होगा। यह जरूरी है कि शिक्षण प्रणाली शिक्षार्थी केंद्रित हो। साथ ही उसमें लचीलापन हो तथा समग्रता और समन्वित रूप से देखने - समझने में सक्षम बनाने वाली हो। नई शिक्षा नीति में इन बातों का ध्यान रखा गया है। नई शिक्षा नीति स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक आवश्यकताओं को दृष्टि में रखकर बनाई गई है। इसका सफल क्रियान्वयन शिक्षा से जुड़े हुए सभी पक्षों का दायित्व है।






विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् श्री भरत व्यास ने कहा कि विद्या वह है, जो बंधनों से मुक्त कर सके। वर्तमान में स्मृति आधारित शिक्षा पद्धति अस्तित्व में है। नई शिक्षा नीति इसमें परिवर्तन लाने के लिए महत्त्वपूर्ण उपाय कर रही है, जहां क्रिया आधारित शिक्षण पर बल दिया गया है। हमारी ज्ञान परंपरा अत्यंत समृद्ध रही है। मौलिक चिंतन के लिए जरूरी है कि मातृभाषा के माध्यम से ज्ञान प्राप्त हो। इसके साथ ही शिक्षा में भारतीयता का तत्त्व हो और व्यावसायिक कौशल का भी विकास हो। इन सभी दृष्टियों से नई शिक्षा नीति में विशेष प्रावधान किए गए हैं।






अध्यक्षीय उद्बोधन में शिक्षाविद् श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति में कक्षाओं और पाठ्यक्रम की सरंचना में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए हैं। इसमें कौशल विकास को पर्याप्त महत्त्व मिला है। शैक्षिक संस्थाओं की फीस सरकार द्वारा नियंत्रित होगी। शिक्षा एक बड़ी संघटना है। हमारे जीडीपी का छह प्रतिशत व्यय शिक्षा के लिए किया जाएगा, जिससे शैक्षिक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण सुधार होंगे। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नामकरण शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है, जो स्वागत योग्य है।






विशिष्ट अतिथि डॉ रीता सिंह, हिमाचल प्रदेश ने कहा कि नई शिक्षा नीति में कौशल विकास पर बल दिया गया है। यह नीति व्यावहारिक दृष्टिकोण के साथ आई है। इसमें मातृभाषा के महत्त्व को स्वीकार किया गया है।




प्रारंभ में संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए डॉ. प्रभु चौधरी ने कहा कि ब्रिटिश शासकों ने गुरुकुल पद्धति की शिक्षा पर प्रहार किया था, जिससे हमारा मौलिक चिंतन नष्ट होने लगा था। नई शिक्षा नीति भारतीय चिंतन को केंद्र में रखकर तैयार की गई है।






संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि  श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुम्बई एवं डॉ लता जोशी, मुम्बई ने भी संबोधित किया। आयोजन में डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर, डॉ कौशल किशोर पांडेय, इंदौर, डॉ मुक्ता कौशिक, डॉ रश्मि चौबे, श्रीमती शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ शैल चंद्रा, रायपुर, डॉ भरत शेनेकर, पुणे, डॉ. रोहिणी डकारे, अहमदनगर, ममता झा, मुम्बई, श्री दिनेश परमार, पुष्पा गरोठिया, डॉ अशोक सिंह, डॉ श्वेता पंड्या, कमल भूरिया, विजय शर्मा आदि सहित देश के विभिन्न भागों के प्रतिभागी उपस्थित थे।















संगोष्ठी का संचालन रागिनी शर्मा, इंदौर ने किया। आभार साहित्यकार डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर ने माना।


20200830

लोक देवता देवनारायण जी : इतिहास, संस्कृति और साहित्य के परिप्रेक्ष्य - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

प्रेम और समरसता का व्यापक सन्देश दिया है लोक देवता देवनारायण जी ने
अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में लोक देवता देवनारायण : इतिहास, संस्कृति और साहित्य के संदर्भ में विषय पर हुआ मंथन


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय देव चेतना परिषद द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी लोक देवता देवनारायण : इतिहास, संस्कृति और साहित्य के संदर्भ में विषय पर अभिकेंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि साहित्यकार श्री त्रिपुरारीलाल शर्मा, इंदौर थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के मंत्री डॉ हरिसिंह पाल, ओस्लो, नॉर्वे के साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक एवं श्री टीकम चंद बोहरा, कोटा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता अखंड भारत गुर्जर महासभा के अध्यक्ष श्री देवनारायण गुर्जर, जयपुर ने की। संगोष्ठी की प्रस्तावना संस्था के अध्यक्ष डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।





लोक साहित्यविद् डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय लोकमानस अपने परिवारजनों और पशु संपदा की संरक्षा के लिए लोक देवी-देवताओं की शरण में पहुंचता रहा है। उसने अपने परिवेश के अलौकिक शक्तिसंपन्न महापुरुष को लोकदेवता का दर्जा दिया है। ऐसे ही लोकदेवता भगवान श्री देवनारायण की पशुपालक एवं अन्य समाजों में प्रतिष्ठा  है। उन्होंने पशुपालक समाज को वीरान जंगल में सभी प्रकार की सुरक्षा प्रदान की और उन्हें ईमानदारी एवं सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। देवनारायण के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर गायी जाने वाली लोकगाथा को आम लोगों के लिए उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जिससे नई पीढ़ी अपने महापुरुष के सम्बन्ध में आसानी से जान सके। 





मुख्य वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने व्याख्यान देते हुए कहा कि मध्यकालीन भारतीय इतिहास और संस्कृति में देवनारायण जी का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने जल, वन, पशु और औषधि संरक्षण - संवर्धन में अविस्मरणीय कार्य किए। उनका चरित्र लोक हितकारी है। वे परस्पर प्रेम, भाईचारे और समरसता के माध्यम से समाज के नव निर्माण में जुटे रहे। बगड़ावत गाथा और हीड़ लोक काव्य में उनके चरित्र और कार्यों का प्रभावी अंकन हुआ है। भारतीय विश्वास है कि एक ही परम सत्ता अलग-अलग रूपों में अभिव्यक्त होती है। लोक देवी - देवता उसी परमेश्वर के विभिन्न रूपों के द्योतक हैं। लोक में पूजित देवताओं में देवनारायण जी, तेजाजी, रामदेव जी, पाबू जी, हरबू जी, गोगाजी आदि का विशिष्ट स्थान है। ये सभी परोपकार,  साहस,  वचन निर्वाह, आत्म त्याग जैसे कई लौकिक और अलौकिक गुणों के कारण लोक आस्था के केंद्र सदियों से बने हुए हैं।लोक कण्ठानुकण्ठ में जीवन्त प्रसिद्ध उक्ति है:
पाबू, हरबू, रामदे, मांगळिया मेहा।
पाँचों पीर पधारजो, गोगाजी जेहा।।

पश्चिम एवं मध्य भारत में बहु लोकप्रिय रामदेव जी, पाबू जी, देवनारायण जी, हरबू जी, गोगा जी, तेजा जी, मेहा जी सहित कई लोक देवताओं से जुड़ा लोक साहित्य विपुल मात्रा में वाचिक परम्परा में प्रवहमान हैं। यह साहित्य अनुश्रुति, इतिहास और लोक-संस्कृति की जैविक अंतर्क्रिया का विलक्षण दृष्टांत है। सूक्ष्मता से विचार करें तो लोक साहित्य और संस्कृति अथाह है। लोक-देवता साहित्य और संस्कृति में ऐतिहासिक घटनाओं के साथ युग जीवन और पर्यावरण की विविध छबियां सहज उपलब्ध हैं। कई जाति-समुदायों से जुड़े विशिष्ट प्रसंग और घटनाओं में ऐतिहासिक सन्दर्भ बिखरे पड़े हैं। उनकी सूक्ष्म पड़ताल की आवश्यकता है। लोक में गहराई से उतरे बिना लोक-देवता साहित्य और कलाओं के साथ न्याय संभव नहीं है। इनके माध्यम से इतिहास और जातीय स्मृतियों की अनेकानेक परतें उद्घाटित होती हैं। यह अनुसन्धानकर्ता पर निर्भर है कि वह उनकी कितनी थाह पाता है। 

साहित्यकार श्री त्रिपुरारीलाल शर्मा, इंदौर ने कहा कि मालवा, राजस्थान, गुजरात क्षेत्र में अनेक लोक देवताओं का योगदान रहा है। इन सबके मध्य श्री देवनारायण जी पशु एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए विशिष्ट पहचान रखते हैं। लोक साहित्य और फड़ चित्रों में उनके लोकहितकारी कार्यों को अभिव्यक्ति मिली है। 


            


ओस्लो, नॉर्वे के प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि लोक संस्कृति के क्षेत्र में देवनारायण जी का योगदान अविस्मरणीय है। आज संपूर्ण विश्व पर्यावरण से जुड़ी  चिंताओं से गुजर रहा है। हम देवनारायण जी के दिखाए हुए मार्ग पर चलते हुए जल स्रोतों, वन और पर्यावरण की रक्षा करें। हमें जैविक खेती और जलस्रोतों के विकास के लिए व्यापक प्रयास करने होंगे। श्री शुक्ल ने कहा कि वे लोक देवता देवनारायण जी के जीवन चरित्र से जुड़े हुए काव्यांशों का नॉर्वेजियनन भाषा में अनुवाद करेंगे।



संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ समाजसेवी श्री देवनारायण गुर्जर, जयपुर में कहा कि देवनारायण जी ने पूर्व में धर्म के नाम पर चले आ रहे पाखंड को समाप्त किया। उन्होंने सामाजिक सद्भाव के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए। देवनारायण जी ने आपस में बिछड़े हुए लोगों को जोड़ा था। आज भी उनके आदर्शों पर चलते हुए देशवासियों को जोड़ने की आवश्यकता है। भारतीय समाज को देवनारायण जी के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।




वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी श्री टीकम चंद वोहरा, कोटा ने कहा कि देवनारायण जी का व्यक्तित्व परोपकारी था। उनके पूर्वज बगड़ावतों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दी। बाद में  देवनारायण जी ने उत्कट साहस और पराक्रम से मातृभूमि को पुनः प्राप्त किया। राजस्थान के मालासेरी डूंगरी के पास बगड़ावत और देवनारायण जी के जीवन और कार्यों को केंद्र में रखते हुए बृहद् संग्रहालय बनाया गया है, जिसके माध्यम से हम इतिहास के महत्त्वपूर्ण पक्षों के सम्बंध में जान सकते हैं।



कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि डॉ एम एल वर्मा, जयपुर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि श्री देवनारायण जी की लोक गाथा परंपरा से प्राप्त अखंड भारत के लोक जीवन और दर्शन को अभिव्यक्त करती है। देवनारायण जी की लीला कथा भागवत स्वरूप है। गुर्जर लोक संस्कृति में श्री देवनारायण जी की फड़ और लोक वार्ता अनहद नाद शब्द ब्रह्म रूप है, जिसे बगड़ावतों के कुल भाट छोछू ने श्रुति स्मृति स्वरूप लोक कल्याण के लिए गुर्जरी भाषा में गाया है।




साहित्यकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कहा कि देवनारायण जी अवतारी व्यक्तित्व थे। उन्होंने सृष्टि प्रेम का चिंतन प्रस्तुत किया और लोक कल्याण के कार्यों को करने की प्रेरणा दी।



स्वागत भाषण  संस्था के अध्यक्ष डॉ प्रभु चौधरी ने देते हुए कहा कि संस्था द्वारा देवनारायण जी सम्बन्धी  साहित्य का प्रकाशन किया जाएगा।




संगोष्ठी में डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ मुक्ता कौशिक, डॉ शैल चंद्रा, रायपुर, डॉ भरत शेनेकर, पुणे, डॉ. रोहिणी डकारे, अहमदनगर, जितेंद्र पांडे, डॉ श्वेता पंड्या, विजय शर्मा सहित देश के विभिन्न भागों के प्रतिभागी उपस्थित थे।





संगोष्ठी में डॉ राकेश आर्य, नोएडा, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर एवं डॉ संजीव कुमारी गुर्जर, हिसार ने देवनारायण जी के सामाजिक,  स्त्री शिक्षा एवं पर्यावरण विषयक विचारों की चर्चा की।


कार्यक्रम का संचालन अनुराधा अच्छावन, नई दिल्ली ने किया। आभार साहित्यकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने माना।


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