प्रेम और समरसता का व्यापक सन्देश दिया है लोक देवता देवनारायण जी ने
अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में लोक देवता देवनारायण : इतिहास, संस्कृति और साहित्य के संदर्भ में विषय पर हुआ मंथन
देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय देव चेतना परिषद द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी लोक देवता देवनारायण : इतिहास, संस्कृति और साहित्य के संदर्भ में विषय पर अभिकेंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि साहित्यकार श्री त्रिपुरारीलाल शर्मा, इंदौर थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के मंत्री डॉ हरिसिंह पाल, ओस्लो, नॉर्वे के साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक एवं श्री टीकम चंद बोहरा, कोटा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता अखंड भारत गुर्जर महासभा के अध्यक्ष श्री देवनारायण गुर्जर, जयपुर ने की। संगोष्ठी की प्रस्तावना संस्था के अध्यक्ष डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।
लोक साहित्यविद् डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय लोकमानस अपने परिवारजनों और पशु संपदा की संरक्षा के लिए लोक देवी-देवताओं की शरण में पहुंचता रहा है। उसने अपने परिवेश के अलौकिक शक्तिसंपन्न महापुरुष को लोकदेवता का दर्जा दिया है। ऐसे ही लोकदेवता भगवान श्री देवनारायण की पशुपालक एवं अन्य समाजों में प्रतिष्ठा है। उन्होंने पशुपालक समाज को वीरान जंगल में सभी प्रकार की सुरक्षा प्रदान की और उन्हें ईमानदारी एवं सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। देवनारायण के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर गायी जाने वाली लोकगाथा को आम लोगों के लिए उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जिससे नई पीढ़ी अपने महापुरुष के सम्बन्ध में आसानी से जान सके।
मुख्य वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने व्याख्यान देते हुए कहा कि मध्यकालीन भारतीय इतिहास और संस्कृति में देवनारायण जी का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने जल, वन, पशु और औषधि संरक्षण - संवर्धन में अविस्मरणीय कार्य किए। उनका चरित्र लोक हितकारी है। वे परस्पर प्रेम, भाईचारे और समरसता के माध्यम से समाज के नव निर्माण में जुटे रहे। बगड़ावत गाथा और हीड़ लोक काव्य में उनके चरित्र और कार्यों का प्रभावी अंकन हुआ है। भारतीय विश्वास है कि एक ही परम सत्ता अलग-अलग रूपों में अभिव्यक्त होती है। लोक देवी - देवता उसी परमेश्वर के विभिन्न रूपों के द्योतक हैं। लोक में पूजित देवताओं में देवनारायण जी, तेजाजी, रामदेव जी, पाबू जी, हरबू जी, गोगाजी आदि का विशिष्ट स्थान है। ये सभी परोपकार, साहस, वचन निर्वाह, आत्म त्याग जैसे कई लौकिक और अलौकिक गुणों के कारण लोक आस्था के केंद्र सदियों से बने हुए हैं।लोक कण्ठानुकण्ठ में जीवन्त प्रसिद्ध उक्ति है:
पाबू, हरबू, रामदे, मांगळिया मेहा।
पाँचों पीर पधारजो, गोगाजी जेहा।।
पश्चिम एवं मध्य भारत में बहु लोकप्रिय रामदेव जी, पाबू जी, देवनारायण जी, हरबू जी, गोगा जी, तेजा जी, मेहा जी सहित कई लोक देवताओं से जुड़ा लोक साहित्य विपुल मात्रा में वाचिक परम्परा में प्रवहमान हैं। यह साहित्य अनुश्रुति, इतिहास और लोक-संस्कृति की जैविक अंतर्क्रिया का विलक्षण दृष्टांत है। सूक्ष्मता से विचार करें तो लोक साहित्य और संस्कृति अथाह है। लोक-देवता साहित्य और संस्कृति में ऐतिहासिक घटनाओं के साथ युग जीवन और पर्यावरण की विविध छबियां सहज उपलब्ध हैं। कई जाति-समुदायों से जुड़े विशिष्ट प्रसंग और घटनाओं में ऐतिहासिक सन्दर्भ बिखरे पड़े हैं। उनकी सूक्ष्म पड़ताल की आवश्यकता है। लोक में गहराई से उतरे बिना लोक-देवता साहित्य और कलाओं के साथ न्याय संभव नहीं है। इनके माध्यम से इतिहास और जातीय स्मृतियों की अनेकानेक परतें उद्घाटित होती हैं। यह अनुसन्धानकर्ता पर निर्भर है कि वह उनकी कितनी थाह पाता है।
साहित्यकार श्री त्रिपुरारीलाल शर्मा, इंदौर ने कहा कि मालवा, राजस्थान, गुजरात क्षेत्र में अनेक लोक देवताओं का योगदान रहा है। इन सबके मध्य श्री देवनारायण जी पशु एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए विशिष्ट पहचान रखते हैं। लोक साहित्य और फड़ चित्रों में उनके लोकहितकारी कार्यों को अभिव्यक्ति मिली है।
ओस्लो, नॉर्वे के प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि लोक संस्कृति के क्षेत्र में देवनारायण जी का योगदान अविस्मरणीय है। आज संपूर्ण विश्व पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं से गुजर रहा है। हम देवनारायण जी के दिखाए हुए मार्ग पर चलते हुए जल स्रोतों, वन और पर्यावरण की रक्षा करें। हमें जैविक खेती और जलस्रोतों के विकास के लिए व्यापक प्रयास करने होंगे। श्री शुक्ल ने कहा कि वे लोक देवता देवनारायण जी के जीवन चरित्र से जुड़े हुए काव्यांशों का नॉर्वेजियनन भाषा में अनुवाद करेंगे।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ समाजसेवी श्री देवनारायण गुर्जर, जयपुर में कहा कि देवनारायण जी ने पूर्व में धर्म के नाम पर चले आ रहे पाखंड को समाप्त किया। उन्होंने सामाजिक सद्भाव के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए। देवनारायण जी ने आपस में बिछड़े हुए लोगों को जोड़ा था। आज भी उनके आदर्शों पर चलते हुए देशवासियों को जोड़ने की आवश्यकता है। भारतीय समाज को देवनारायण जी के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।
वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी श्री टीकम चंद वोहरा, कोटा ने कहा कि देवनारायण जी का व्यक्तित्व परोपकारी था। उनके पूर्वज बगड़ावतों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दी। बाद में देवनारायण जी ने उत्कट साहस और पराक्रम से मातृभूमि को पुनः प्राप्त किया। राजस्थान के मालासेरी डूंगरी के पास बगड़ावत और देवनारायण जी के जीवन और कार्यों को केंद्र में रखते हुए बृहद् संग्रहालय बनाया गया है, जिसके माध्यम से हम इतिहास के महत्त्वपूर्ण पक्षों के सम्बंध में जान सकते हैं।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि डॉ एम एल वर्मा, जयपुर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि श्री देवनारायण जी की लोक गाथा परंपरा से प्राप्त अखंड भारत के लोक जीवन और दर्शन को अभिव्यक्त करती है। देवनारायण जी की लीला कथा भागवत स्वरूप है। गुर्जर लोक संस्कृति में श्री देवनारायण जी की फड़ और लोक वार्ता अनहद नाद शब्द ब्रह्म रूप है, जिसे बगड़ावतों के कुल भाट छोछू ने श्रुति स्मृति स्वरूप लोक कल्याण के लिए गुर्जरी भाषा में गाया है।
साहित्यकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कहा कि देवनारायण जी अवतारी व्यक्तित्व थे। उन्होंने सृष्टि प्रेम का चिंतन प्रस्तुत किया और लोक कल्याण के कार्यों को करने की प्रेरणा दी।
स्वागत भाषण संस्था के अध्यक्ष डॉ प्रभु चौधरी ने देते हुए कहा कि संस्था द्वारा देवनारायण जी सम्बन्धी साहित्य का प्रकाशन किया जाएगा।
संगोष्ठी में डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ मुक्ता कौशिक, डॉ शैल चंद्रा, रायपुर, डॉ भरत शेनेकर, पुणे, डॉ. रोहिणी डकारे, अहमदनगर, जितेंद्र पांडे, डॉ श्वेता पंड्या, विजय शर्मा सहित देश के विभिन्न भागों के प्रतिभागी उपस्थित थे।
संगोष्ठी में डॉ राकेश आर्य, नोएडा, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर एवं डॉ संजीव कुमारी गुर्जर, हिसार ने देवनारायण जी के सामाजिक, स्त्री शिक्षा एवं पर्यावरण विषयक विचारों की चर्चा की।
कार्यक्रम का संचालन अनुराधा अच्छावन, नई दिल्ली ने किया। आभार साहित्यकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने माना।