देवनागरी लिपि को लेकर आत्म गौरव का भाव जगाना होगा – प्रो. शर्मा
आचार्य विनोबा भावे और सार्वदेशीय लिपि के रूप में देवनागरी पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न
प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा आचार्य विनोबा भावे और सार्वदेशीय लिपि के रूप में देवनागरी पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की मुख्य अतिथि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने की। यह संगोष्ठी आचार्य विनोबा भावे के 125 वें जयंती वर्ष के अवसर पर आयोजित की गई।
मुख्य अतिथि डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य विनोबा भावे ने देवनागरी लिपि के प्रचार और संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी प्रेरणा से स्थापित नागरी लिपि परिषद देश की विभिन्न भाषाओं और बोलियों को लिपि के माध्यम से जोडने का कार्य कर रही है। परिषद द्वारा कोकबोरोक, कश्मीरी आदि सहित अनेक भाषा और बोलियों को नागरी लिपि के माध्यम से लेखन के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में देवनागरी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है।
प्रमुख वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन ने कहा कि देवनागरी विश्वनागरी के रूप में दुनिया को जोड़ सकती है। इस लिपि में विश्व लिपि बनने की अपार संभावनाएं हैं। देवनागरी लिपि ध्वनि विज्ञान, लिपि विज्ञान, यंत्र विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी इन सभी दृष्टियों से उपयुक्त लिपि है। आचार्य विनोबा भावे की संकल्पना थी कि देवनागरी लिपि के माध्यम से उत्तर एवं दक्षिण भारत की भाषाएं जुड़ें। लिपिविहीन लोक और जनजातीय भाषाओं के लिए देवनागरी का प्रयोग करने से राष्ट्रीय एवं भावात्मक एकता में अभिवृद्धि होगी। दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशियाई भाषाओं के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग सहज ही किया जा सकता है। साथ ही यूरोप एवं अन्य महाद्वीपों की भाषाओं को सीखने में देवनागरी सहायक सिद्ध हो सकती है। गांधी जी ने विभिन्न पुस्तकों को अपनी मूल भाषा के लिए प्रचलित लिपि के साथ देवनागरी लिपि में प्रकाशित करने का संदेश दिया था। हमें देवनागरी लिपि को लेकर आत्म गौरव का भाव जगाना होगा। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दौर में देवनागरी लिपि का सामर्थ्य सिद्ध हो गया है।
संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। स्वागत भाषण डॉ रश्मि चौबे ने दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुम्बई ने कहा कि देवनागरी लिपि के माध्यम से विभिन्न भाषाओं को सीखना आसान होता है। भारतीय भाषाओं के लिए रोमन लिपि के प्रयोग की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए व्यापक जागरूकता और स्वाभिमान जगाने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम में साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी इंदौर ने डॉ प्रभु चौधरी की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक देवनागरी लिपि : तब से अब तक की समीक्षा प्रस्तुत की।
संगोष्ठी में डॉ लता जोशी, मुंबई, मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ भरत शेणकर, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ वी के मिश्रा, रामेश्वर शर्मा, श्री अनिल ओझा, इंदौर, गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, दीपिका सुतोदिया, गुवाहाटी, प्रभा बैरागी, श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली, शम्भू पंवार, झुंझुनूं, रागिनी शर्मा, इंदौर, डॉ शैल चंद्रा, डॉ ममता झा, दीपांकर तालुकदार, अशोक जाधव, सपन दहातोंडे, जी डी अग्रवाल, विनोद विश्वकर्मा, गुरुमूर्ति, अरुणा शुक्ला, ज्योति सिंह, श्वेता गुप्ता, दीपंकर दत्ता, सुरैया शेख, आलोक कुमार सिंह, संदीप कुमार, प्रियंका घिल्डियाल, जब्बार शेख, नयन दास, श्री सुंदरलाल जोशी, नागदा, राम शर्मा, मनावर, मनीषा सिंह, अनुराधा अच्छावन, समीर सैयद, डॉ श्वेता पंड्या, डॉ कुमार गौरव, विजय शर्मा, पंढरीनाथ देवले, विमला रावतले आदि सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।
प्रारंभ में सरस्वती वंदना ज्योति तिवारी ने की।
कार्यक्रम का संचालन सविता नागरे ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ मनीषा शर्मा, अमरकंटक ने किया।