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20200908

विद्यार्थियों में अंतर्दृष्टि विकसित करते हैं शिक्षक : प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका 

राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षक सम्मान से अलंकृत किए गए पाँच शिक्षक

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका विषय पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि शिक्षाविद डॉ. कौशल किशोर पांडे, इंदौर थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉ शंभू पंवार, झुंझुनू एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु  चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने की। 







इस अवसर पर श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में अविस्मरणीय योगदान के लिए प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन, डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख, पुणे, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, श्री अविनाश शर्मा, जयपुर एवं श्रीमती शैल चंद्रा, रायपुर को डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षक सम्मान से अलंकृत किया गया। 






मुख्य अतिथि डॉ कौशल किशोर पांडे ने कहा कि भारतीय चिंतन में विद्या को विशेष महत्त्व मिला है। विद्या और अविद्या में से हमें विद्या को महत्व देना होगा, जो हमें अमरता प्रदान करती है। नई तकनीकी और विज्ञान के बढ़ते प्रभुत्व के बीच शिक्षक और माता-पिता हमें उच्च चिंतन से जोड़ते हैं। 




कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि शिक्षक संस्कारों की पाठशाला में मानव चरित्र का निर्माण करते हैं। वे मात्र पाठ्यक्रम ही नहीं पढ़ाते हैं, मानव व्यक्तित्व को नया आकार देते हैं। 



संगोष्ठी के मुख्य वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन ने कहा कि भारतीय चिंतन में ज्ञान से प्रज्ञा और सत्य की खोज को सर्वोपरि महत्त्व मिला है। श्रेष्ठ शिक्षक वह है, जो विद्यार्थियों में अंतर्दृष्टि विकसित करता है। इसीलिए भारतीय संस्कृति और काव्य परम्परा में शिक्षक की अपार महिमा का वर्णन हुआ है। शिक्षक अनगढ़ शिष्य के व्यक्तित्व का रूपांतरण कर श्रेष्ठ नागरिक और राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 


विशिष्ट अतिथि डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि शिक्षक समाज एवं राष्ट्र के निर्माता हैं। वे प्रामाणिकता और तल्लीनता के साथ राष्ट्र की सेवा करते हैं। शिक्षक का आचरण विद्यार्थियों को संस्कार देता है। पश्चिम की सभ्यता मानव को मनुष्य बनाने के बजाय रोजगार की ओर उन्मुख कर रही है। भारत को विश्वगुरु बनाने में शिक्षकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। 


वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि आदर्श शिक्षक वह है जो विद्यार्थियों को सीमित दायरे से मुक्त करता है। 


संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। आयोजन में डॉ शैल चंद्रा, रायपुर, डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई आदि ने भी विचार व्यक्त किए।  


संगोष्ठी में डॉ लता जोशी, मुंबई, मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, डॉ रोहिणी डाबर, अहमदनगर, डॉ भरत शेणकर, डॉक्टर प्रवीण बाला, पटियाला, सुश्री आभा श्रीवास्तव, डॉ विनीता ओझा, डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ वी के मिश्रा आदि सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।






प्रारंभ में सरस्वती वंदना जय भारती चंद्राकर, रायपुर ने की। कार्यक्रम का संचालन रागिनी शर्मा, पटियाला, पंजाब ने किया। आभार प्रदर्शन श्री अनिल ओझा ने किया।









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